जब चारों तरफ से 'मुसीबत' आ जाए: बटुक भैरव का यह मंत्र तुरंत दिखाएगा चमत्कार !
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खण्ड 1: बटुक भैरव स्वरूप, आगमिक पृष्ठभूमि और शास्त्रीय आधार
बटुक भैरव का स्वरूप: सौम्यता और बालभाव
भगवान बटुक भैरव देवाधिदेव महादेव के उग्र भैरव स्वरूप का बाल रूप हैं। भैरव का शाब्दिक अर्थ है 'भय को हरने या जीतने वाला'। भैरव को वैसे तो उग्र देवता में गिना जाता है, किंतु बटुक रूप अत्यंत सौम्य (अति सौम्य) माना जाता है और भक्तों पर त्वरित कृपा करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रूधिर से हुई थी, जिसके बाद वे काल भैरव और बटुक भैरव में विभक्त हो गए। इसी कारण बटुक भैरव को भगवान शिव के गण और माता पार्वती जी के अनुचर के रूप में पूजा जाता है।
गृहस्थ जीवन में निवास करने वाले साधकों के लिए बटुक भैरव का बाल रूप विशेष रूप से अनुकूल माना गया है। कई साधक काल भैरव जैसे भैरव के उग्र स्वरूपों की उपासना को वाममार्ग से संबंधित मानकर या उनकी तीव्रता से भयभीत होकर साधना से विमुख हो जाते हैं। हालांकि, बटुक भैरव का स्वरूप दयानिधि है और उनका 'आपदुद्धारणाय' (संकट निवारण) बीज मंत्र यह सुनिश्चित करता है कि साधक को केवल सुरक्षा (अभय) और सौख्य की प्राप्ति हो। समस्त भैरवों में बटुक भैरव की उपासना का अधिक प्रचलन गृहस्थों की भौतिक एवं आध्यात्मिक सुरक्षा की आवश्यकता को दर्शाता है, जिसके लिए उनका बाल रूप सौम्य उपासना से भी सहज ही प्रसन्न हो जाता है।
भैरव उपासना का आगमिक और तांत्रिक महत्त्व
तंत्रशास्त्र में भगवान भैरव का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। उन्हें स्वयं तंत्र-मंत्र का देवता माना जाता है। तांत्रिक ग्रंथों में, विशेष रूप से रुद्रयामल तंत्र साधना में, बटुक भैरव को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। भैरव न केवल क्षेत्रपाल हैं, बल्कि उनकी कृपा के बिना कोई भी तांत्रिक सिद्धि पूर्ण नहीं होती। तंत्रशास्त्र के आचार्यों ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि किसी भी उपासना-कर्म की सिद्धि के लिए जप और पाठ आरंभ करने से पूर्व भैरवनाथ का आदेश (आज्ञा या अनुज्ञा) प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
बटुक भैरव का महत्व शक्ति उपासना से भी जुड़ा हुआ है। यह माना जाता है कि माता दुर्गा की उपासना बटुक भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती। विशिष्ट कामनाओं की पूर्ति हेतु, साधकों को भैरवाष्टमी के दिन दुर्गा उपासना के साथ भैरव उपासना का नियम अवश्य बनाना चाहिए। बटुक भैरव का बाल रूप, जो कल्पवृक्ष के समान फलदायी है, सुनिश्चित करता है कि साधक को न केवल आध्यात्मिक सुरक्षा मिले, बल्कि उसे भौतिक जीवन की बाधाओं और अभावों से भी मुक्ति प्राप्त हो।
शास्त्रीय स्रोत और प्रमाण
प्रस्तुत साधना पद्धति का आधार तांत्रिक और आगमिक ग्रंथ हैं, जो इसकी प्रामाणिकता स्थापित करते हैं। बटुक भैरव से संबंधित कई महत्वपूर्ण स्तोत्र, कवच और मंत्र श्री रुद्रयामल तंत्र से उद्धृत किए गए हैं, जिनमें श्री बटुक भैरव ब्रह्म कवच प्रमुख है। इसके अतिरिक्त, बटुक भैरव के जप-मन्त्रों और पंच-तत्त्वात्मक पूजन विधि का उल्लेख बटुक भैरव कल्प जैसे प्रामाणिक ग्रन्थों में प्राप्त होता है। ये स्रोत बटुक भैरव की उपासना को शुद्ध तांत्रिक विधान के रूप में स्थापित करते हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि साधक को संपूर्ण, शुद्ध और साधना-योग्य रूप में विधि प्राप्त हो।
खण्ड 2: बटुक भैरव आपदुद्धारण महामंत्र और न्यास विधान
बटुक भैरव साधना का मूल आधार उनका 'आपदुद्धारण' महामंत्र है, जिसका नियमित जप साधक को त्वरित रूप से सभी संकटों से मुक्त करता है।
आपदुद्धारण बटुक भैरव मूल मंत्र
बटुक भैरव का यह मंत्र 'आपदुद्धारण' (आपत्तियों का उद्धार करने वाला) के रूप में विख्यात है और अनेक तांत्रिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है:
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं।
मंत्र का बीजात्मक विश्लेषण:
यह मंत्र स्वयं में एक शक्ति-संपन्न तांत्रिक महामंत्र है, जिसके प्रमुख बीजों का अर्थ निम्नानुसार है:
ॐ: यह प्रणव बीज है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आदिम ध्वनि, शक्ति और सत्ता को दर्शाता है।
ह्रीं: यह माया बीज या महामाया बीज है, जो माता भुवनेश्वरी का बीज है। यह साधक को माया के बंधनों से मुक्त करता है, सभी प्रकार की विपत्तियों और दुखों से बचाता है, और मनोवांछित फल देता है।
बटुकाय: यह बटुक भैरव के बाल स्वरूप को संबोधित करता है।
आपदुद्धारणाय : यह दो शब्दों ('आपत्ति' अर्थात् संकट, दुःख, विपत्ति और 'उद्धारणाय' अर्थात् उद्धार करने वाला) का मेल है। इसका अर्थ है, "जो सभी संकटों और विपत्तियों से उद्धार करता है।"
कुरु कुरु : यह क्रियात्मक आग्रह है, जिसका अर्थ है "त्वरित कार्य करो" या "शीघ्रता से करो।" यह भैरव को संकटों के निवारण हेतु तुरंत क्रियाशील होने का निर्देश देता है।
वैकल्पिक एवं विशिष्ट प्रयोग मंत्र:
प्रयोगों के भेद से मंत्र में 'स्वाहा' (आहुति या समर्पण हेतु) अथवा अन्य बीज जोड़े जाते हैं:
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कuru बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा।
बटुक भैरव मंत्र का शास्त्रीय विन्यास (ऋषि-छन्द-देवता)
किसी भी तांत्रिक या वैदिक मंत्र के जाप से पहले उसका विनियोग, जिसमें ऋषि, छन्द, और देवता का स्मरण किया जाता है, अनिवार्य है। यह मंत्र की शक्ति को साधक के शरीर में स्थापित करता है। प्रामाणिक तांत्रिक कल्पों के अनुसार, बटुक भैरव आपदुद्धारण महामंत्र का विन्यास इस प्रकार है:
| तत्त्व | विन्यास (शास्त्रीय) | महत्व |
|---|---|---|
| ऋषि | श्री भैरव ऋषि (कल्पोक्त) | मंत्र के ज्ञाता और द्रष्टा। |
| छन्द | बटुक छन्द (कल्पोक्त)/अनुष्टुप | मंत्र के उच्चारण की लय और संरचना। |
| देवता | श्री आपदुद्धारण बटुक भैरव | साध्य देव का स्वरूप। |
| बीज/शक्ति | ह्रीं (Hreem) | मंत्र की मूल शक्ति का धारक। |
कर न्यास और षडङ्ग न्यास
न्यास साधना का वह प्रारंभिक चरण है, जिसके द्वारा साधक का शरीर मंत्रमय और पवित्र हो जाता है। न्यास करने से देवता की शक्तियाँ साधक के शरीर के विभिन्न अंगों पर स्थापित होती हैं, जिससे साधना के दौरान आने वाले विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाली शक्तियाँ दूर रहती हैं, और साधक को देवता के उग्र या भयंकर रूप के दर्शन नहीं होते। दैनिक साधना में कर न्यास (हाथों पर मंत्र स्थापन) और षडङ्ग न्यास (छह अंगों पर मंत्र स्थापन) कम से कम तीन प्रकार के न्यास के रूप में अनिवार्य रूप से किए जाने चाहिए।
ध्यान विधि: बटुक भैरव का विग्रह
मंत्र जप से पूर्व बटुक भैरव के स्वरूप का मानसिक स्थापन अत्यंत आवश्यक है। बटुक भैरव के सात्त्विक बाल स्वरूप का ध्यान श्लोक (वन्दे बालं) साधक के मन को एकाग्र करता है और भैरव की सौम्यता को मानसिक रूप से जागृत करता है। इस ध्यान श्लोक का पाठ कूर्म मुद्रा के साथ किया जाता है।
सात्त्विक ध्यान श्लोक:
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।
अर्थ: मैं बटुक भैरव के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका स्वरूप स्फटिक के समान शुद्ध है, जिनका मुख घुंघराले केशों से शोभायमान है। वे नव-मणियों से जड़ित दिव्य आभूषणों और घुँघरू (किंकिणी-नूपुर) से सुसज्जित हैं। उनका आकार दीप्तिमान है, मुख निर्मल और वे अत्यंत प्रसन्नचित्त त्रिनेत्रधारी हैं। वे अपने कर-कमलों में निरंतर शूल (त्रिशूल) और दण्ड धारण किए हुए हैं।
खण्ड 3: साधना की पाठ-विधि, नियम और समय-निर्धारण
संकल्प, आसन शुद्धि और गुरु पूजन
साधना आरंभ करने से पहले, साधक को स्नान करके शुद्ध हो जाना चाहिए। नित्य पूजन में एक क्रम का पालन आवश्यक है: सर्वप्रथम गुरु का पाठ (गुरु पाठ), उसके बाद गणपति का पाठ, और अंत में भैरव का हृदय पाठ (साधना) आरंभ करना चाहिए।
संकल्प: साधक को अपनी मनोकामना (सात्त्विक उद्देश्य) को स्पष्ट रूप से बोलकर संकल्प लेना चाहिए, जिसके लिए वह साधना कर रहा है।
आसन और वस्त्र: साधना में लाल या काले वस्त्र धारण करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष या हकीक की माला का उपयोग किया जाता है।
जप संख्या, माला और दिशा-निर्देश
बटुक भैरव साधना में जप की संख्या साधक की स्थिति पर निर्भर करती है—नित्य जप और अनुष्ठान के लिए अलग-अलग नियम हैं।
दिशा: यह साधना मुख्य रूप से दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है, जो भैरव की दिशा है।
जप संख्या (नित्य): दैनिक साधना के रूप में साधक को कम से कम 7 बार से शुरू कर 108 बार (एक माला) तक मंत्र का जाप करना चाहिए।
जप संख्या (अनुष्ठान): यदि अनुष्ठान के रूप में साधना करनी है, तो प्रतिदिन 11 माला का जप 21 मंगलवार तक या 41 दिन लगातार करना चाहिए।
साधना की निरंतरता का महत्व:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सिद्धि प्राप्त करने के लिए अनुष्ठान को बार-बार दोहराया जाना चाहिए। यह ऊर्जा के सानिध्य और स्थिरता को बढ़ाता है। एक बार अनुष्ठान करके रुक जाने के बजाय, साधक को कम से कम तीन से पांच बार अनुष्ठान करने का नियम बनाना चाहिए। यदि साधक लगातार अनुष्ठान नहीं कर सकता, तो 7, 9, या 11 दिन के चक्र में साधना करके कुछ दिनों का अंतराल देकर पुनः साधना शुरू कर देनी चाहिए, जिससे नकारात्मक ऊर्जा पूरी तरह से स्थान छोड़ दे और साधक का लाभ स्थायी हो।
साधना का काल-निर्धारण (समय और मुहूर्त)
बटुक भैरव की उपासना काल भैरव की तरह मुख्यतः रात्रि काल से जुड़ी है।
तांत्रिक काल: तांत्रिक पूजा निशिता काल मुहूर्त (मध्यरात्रि) में की जाती है, और शनिवार और रविवार का दिन इसके लिए सबसे उत्तम माना गया है।
गृहस्थ हेतु काल: गृहस्थ साधकों के लिए प्रदोष काल (शाम का समय जब दिन और रात का मिलन होता है) या शाम 7 बजे से 10 बजे के बीच का समय अत्यंत शुभ माना जाता है।
आरंभ का दिन: साधना का आरंभ किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष अष्टमी (कालाष्टमी) के दिन करना चाहिए।
खण्ड 4: बटुक भैरव पूजन क्रम: पंच-तत्त्वात्मक विधान
बटुक भैरव की पूजा में पंचोपचार (पांच उपचार) या षोडशोपचार (सोलह उपचार) पूजन किया जाता है। तांत्रिक पद्धति में पंच-तत्त्वात्मक पूजन का विशेष विधान है, जहाँ सृष्टि के पाँच तत्वों को बीज मंत्रों के माध्यम से जागृत कर भैरव को अर्पित किया जाता है।
आवाहन, पीठ पूजन और दीपदान
स्थापन: बटुक भैरव यंत्र या चित्र को लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित किया जाता है। यंत्र की स्थापना वास्तु शास्त्र के अनुसार घर या पूजा क्षेत्र की उत्तर-पूर्व दिशा में करने से सकारात्मक ऊर्जा का इष्टतम प्रवाह सुनिश्चित होता है।
आवाहन: ध्यान श्लोक का जप कूर्म मुद्रा के साथ करते हुए बटुक भैरव का आवाहन तीनों आवाहन मुद्राओं से करना चाहिए।
दीपदान: भैरव की पूजा में केवल तेल के दीपक (विशेष रूप से सरसों का तेल) का ही उपयोग करना चाहिए।
पंच-तत्त्वात्मक पूजन विधि (षोडशोपचार का भाग)
इस विधि में पंच महाभूतों से संबंधित बीज मंत्रों का प्रयोग करते हुए देवताओं को भोग (उपचार) समर्पित किया जाता है, जिससे पूजन सूक्ष्म स्तर पर भी प्रभावी होता है।
| पूजा सामग्री | तत्त्व | बीज मंत्र | समर्पण मंत्र |
|---|---|---|---|
| गन्ध (चंदन) | पृथ्वी तत्त्व | ॐ लं | ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः। |
| पुष्प (फूल) | आकाश तत्त्व | ॐ हं | ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।}$ |
| धूप (गुग्गुल) | वायु तत्त्व | ॐ यं | ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः। |
| दीप (दीपक) | अग्नि तत्त्व | ॐ रं | ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः। |
| नैवेद्य | जल तत्त्व | ॐ वं | (विशिष्ट भोग समर्पण मंत्र का प्रयोग) |
नैवेद्य एवं भोग-प्रसाद विधान
बटुक भैरव को समर्पित भोग (नैवेद्य) का विधान विशिष्ट है, जिसे दिनों के अनुसार अर्पित किया जाना चाहिए:
बटुक भैरव नैवेद्य क्रम
| दिवस (Day) | नैवेद्य | शास्त्रीय फल |
|---|---|---|
| रविवार | चावल-दूध की खीर | शांति और आरोग्य। |
| सोमवार | मोतीचूर के लड्डू | मानसिक स्थिरता। |
| मंगलवार | घी-गुड़, लापसी, या लड्डू | ऋण मुक्ति, व्यापार वृद्धि और संकट निवारण। |
| बुधवार | दही-बूरा (शक्कर) | बुद्धि, विद्या और ज्ञान प्राप्ति। |
| शनिवार | उड़द दाल के व्यंजन (दही वड़ा/पकौड़ी) | शनि, राहु-केतु दोष और ग्रह पीड़ा शमन। |
बटुक भैरव को गुड़ और उड़द दाल से बने व्यंजन विशेष रूप से प्रिय हैं। पूजा के उपरांत भैरव को अर्पित नैवेद्य को उसी स्थान पर ग्रहण करने का नियम है। भैरव का वाहन कुत्ता (श्वान) है। इसलिए, साधना की सफलता और भैरव की कृपा के लिए, हर मंगलवार को लड्डू का भोग कुत्तों को खिलाना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
खण्ड 5: फलश्रुति और विशिष्ट प्रयोग
बटुक भैरव की साधना का फल त्वरित और व्यापक होता है। यह साधना साधक को भौतिक सुख-समृद्धि, सुरक्षा और आध्यात्मिक सिद्धियाँ प्रदान करती है।
बटुक भैरव की कृपा से प्राप्त होने वाले लाभ
आपदुद्धार एवं सुरक्षा: बटुक भैरव का जप करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और व्यक्ति को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। भैरव भक्तों के रक्षक माने जाते हैं, और उनकी उपासना से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं।
संकट एवं नकारात्मकता निवारण: जीवन की सभी बाधाएँ, जिनमें शत्रु बाधा, मुकदमे, और तांत्रिक अभिचार कर्म (तंत्र-बाधा) शामिल हैं, दूर होती हैं। बटुक भैरव के नाम जप से बड़े से बड़ा बंधन दोष भी कट जाता है।
धन और वैभव: धन की कमी दूर होती है, सुख-समृद्धि बढ़ती है, और भैरव की कृपा से साधक को अक्षयं सौख्यं (अक्षय सुख) की प्राप्ति होती है। भैरव का स्मरण मात्र ही व्यापार-बाधा और धन संबंधी कष्टों का निवारण कर देता है।
मानसिक एवं आत्मिक बल: यह साधना साधक को निडर, साहसी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण करती है।
ग्रह दोष और नकारात्मकता नाश हेतु प्रयोग
बटुक भैरव साधना ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे राहु और शनि ग्रह के दोषों को शांत करने में अद्वितीय रूप से प्रभावी हैं।
राहु-केतु और शनि दोष निवारण: यह साधना विशेष रूप से काल सर्प दोष, राहु की महादशा, अंतरर्दशा, तथा शनि की साढ़े साती या ढैय्या के अशुभ प्रभाव को कम करने में 'गागर में सागर' के समान सिद्ध होती है।
विशेष ग्रह-शांति मंत्र: शनि और राहु से संबंधित पीड़ा से मुक्ति के लिए कालाष्टमी पर भैरव के सामने दीपक लगाकर इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय। कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा।
शत्रु एवं भूत-प्रेत बाधा नाश: यदि कोई शत्रु पीड़ा या भूत-प्रेत बाधा से ग्रसित है, तो भैरव के समक्ष निम्न मंत्र का जाप शत्रु से मुक्ति और बाधाओं का नाश करता है:
ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि।
गृहस्थ जीवन में स्थिरता और व्यापार-वृद्धि हेतु विशेष प्रयोग
गृहस्थ साधकों के लिए बटुक भैरव की साधना दैनिक जीवन में स्थिरता और उन्नति लाने का अचूक उपाय है।
व्यापार-वृद्धि: व्यापार में वृद्धि और स्थिरता के लिए संकल्प पूर्वक हर मंगलवार को लड्डू के भोग को कुत्तों को खिलाना चाहिए, और बटुक भैरव यंत्र को स्थापित कर उसकी पूजा करनी चाहिए।
यंत्र साधना: बटुक भैरव यंत्र, जो भगवान भैरव की शक्तिशाली ऊर्जाओं को प्रसारित करता है, उसे उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करके पूजा करने से साधना का प्रभाव बढ़ता है और सकारात्मक कंपन का प्रवाह सुनिश्चित होता है।
नित्य अनुग्रह: साधना के अनुष्ठान समाप्त होने के बाद भी, साधक को बटुक भैरव के मंत्रों का प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप अवश्य करना चाहिए ताकि उनकी कृपा स्थायी रूप से बनी रहे।
खण्ड 6: साधना में अनुशासन, गुरु तत्त्व और सावधानियाँ
बटुक भैरव की तंत्र साधना अत्यंत शक्तिशाली है, इसलिए यह अनिवार्य है कि साधक शास्त्रीय नियमों, नैतिक अनुशासन और गुरु तत्त्व के मार्गदर्शन का पूर्णतः पालन करे।
गुरु-निर्देशन की अनिवार्यता और गुरु तत्त्व
तांत्रिक साधना एक जटिल और गहन प्रथा है। ग्रंथों के अनुसार, यह केवल एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही की जानी चाहिए। प्रामाणिक मंत्रों का सही ज्ञान और उनकी शक्ति गुरु के मुख से प्राप्त होने पर ही सुनिश्चित होती है।
तंत्रशास्त्र के आचार्य स्पष्ट निर्देश देते हैं कि किसी भी अनुष्ठान को आरंभ करने से पूर्व भैरवनाथ का आदेश (अनुज्ञा) प्राप्त करना अनिवार्य है। गुरु ही वह माध्यम है, जो साधक को मंत्र की दीक्षा, सही विधान और देवता का आदेश प्रदान करता है। गुरु के बिना साधना में त्रुटि होने की संभावना रहती है, और यदि कोई चूक होती है, तो उसका जिम्मेदार साधक स्वयं होता है।
| विषय | आवश्यक नियम | निषिद्ध कर्म |
|---|---|---|
| गुरु तत्त्व | योग्य गुरु से दीक्षा और निर्देश प्राप्त करें। भैरव आदेश के बिना तांत्रिक कर्म न करें। | गुरु आज्ञा का उल्लंघन, मंत्र को अप्रामाणिक ढंग से जपना। |
| आचरण | पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, खान-पान और वाणी की शुद्धि। | क्रोध, आलस्य , सहवास, तामसिक भोजन (मांस, मदिरा)। |
| उद्देश्य | सात्त्विक कल्याण, सुरक्षा, समृद्धि, रोगनाश। | मारण, मोहन, उच्चाटन आदि तामसिक या हानिकारक प्रयोग। |
| माला/दिशा | रुद्राक्ष या हकीक माला, लाल/काला आसन, दक्षिण मुख। | प्लास्टिक या अन्य अपवित्र माला, उत्तर दिशा की ओर मुख करना (सामान्यतः वर्जित)। |
यह संकलन बटुक भैरव (बालरूप भैरव) की तंत्र साधना को शास्त्रीय और आगमिक प्रमाणों के आधार पर पूर्ण रूप से प्रस्तुत करता है। बटुक भैरव की उपासना गृहस्थ साधकों के लिए कल्पवृक्ष के समान है, जो उन्हें आपदुद्धारण महामंत्र के माध्यम से त्वरित रूप से सभी संकटों से मुक्ति दिलाती है।
बटुक भैरव साधना की सफलता के तीन प्रमुख स्तम्भ हैं:
प्रामाणिकता: मंत्रों और विधियों का पूर्ण, शुद्ध स्वरूप में प्रयोग (जैसे पंच-तत्त्वात्मक पूजन)।
गुरु-आदेश: साधना का आरंभ एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन और भैरव की अनुज्ञा से ही करना।
निरंतरता और श्वान सेवा: अनुष्ठान को दोहराना और बटुक भैरव के वाहन (श्वान) की सेवा में निरंतर संलग्न रहना।
इन शास्त्रीय नियमों और सात्त्विक अनुशासन का पालन करने वाले साधक निश्चित रूप से भगवान बटुक भैरव की कृपा से जीवन में धन, सुख, समृद्धि, और अभेद्य आध्यात्मिक सुरक्षा प्राप्त करते हैं।