गौरी-शंकर साधना: शीघ्र विवाह, दांपत्य सुख का अचूक उपाय!
AI सारांश (Summary)
यदि आप पूरा लेख नहीं पढ़ना चाहते, तो AI द्वारा तैयार संक्षिप्त सारांश देख सकते हैं। यह आपके लिए उपयोगी रहेगा।
AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।गौरी–शंकर साधना: शीघ्र विवाह, दांपत्य-सौभाग्य एवं ग्रहशांति हेतु संयुक्त शुभ साधना-विधि का शास्त्रीय विवेचन
I. शास्त्रीय आधार एवं गौरी–शंकर तत्व-बोध: शिव-शक्ति के संयुक्त स्वरूप का मर्म
यह रिपोर्ट शिवपुराण, स्कंदपुराण, देवीभागवत, कौमार तांत्र और आगमिक ग्रंथों में वर्णित गौरी–शंकर की संयुक्त उपासना का एक प्रामाणिक एवं विस्तृत संकलन प्रस्तुत करती है। इस साधना का मूल उद्देश्य साधक के जीवन में शीघ्र विवाह, शुभ संयोग, दांपत्य-सौभाग्य की स्थापना और कुंडलीगत ग्रहों के क्लेश की शांति करना है। इस उपासना की प्रभावकारिता मात्र दो देवताओं के आह्वान में नहीं, बल्कि शिव (चेतना) और पार्वती (शक्ति) के शाश्वत, अविनाभावी संबंध के साथ स्वयं को संरेखित करने में निहित है।
A. शिव–पार्वती का संयुक्त स्वरूप: दांपत्य-सौभाग्य का परम प्रतीक
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती का संयुक्त स्वरूप समस्त सृष्टि का मूल आधार है। यह सनातन दर्शन इस बात की पुष्टि करता है कि संपूर्ण विशाल विश्व की सृष्टि इन्हीं दोनों के आधार पर टिकी हुई है। गौरी-शंकर स्वरूप की उपासना दांपत्य जीवन को सुखी बनाती है और मनोवांछित सौभाग्य प्रदान करती है।
शिव-शक्ति का तात्विक मर्म
साधना के गहन विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि गौरी-शंकर का पूजन केवल पति-पत्नी के बाह्य योग का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह साधक के आंतरिक शिव (पुरुष) और शक्ति (प्रकृति) के मिलन को दर्शाता है। यह वह प्रक्रिया है जहाँ व्यक्ति के मन की आंतरिक ऊर्जा का संतुलन (लेफ्ट और राइट एनर्जी का बैलेंस) स्थापित होता है। जब साधक के भीतर यह संतुलन बनता है, तो वह स्वयं में पूर्ण होने लगता है।
माता पार्वती को महादेव की अर्धांगिनी और उनकी प्राणप्रिया कहा गया है। किसी भी स्त्री साधक के लिए माता गौरी की पूजा सौभाग्यदायक है, और जो स्त्री इनकी पूजा करती है, वह अवश्य ही मनोवांछित वर को प्राप्त करती है। पुरुष साधक भी इसी स्वरूप की उपासना करके पार्वती-शिव के समान अटूट, स्थिर और मंगलमय वैवाहिक संबंध की कामना करते हैं। यह आंतरिक संतुलन ही दांपत्य सुख का मूल कारण है, क्योंकि यह साधक को आत्म-पूर्णता की ओर ले जाता है, जो एक स्थायी और सामंजस्यपूर्ण बाहरी संबंध के लिए अनिवार्य शर्त है।
B. साधना का उद्देश्य: शीघ्र विवाह, शुभ संयोग एवं ग्रहशांति
गौरी–शंकर की संयुक्त साधना का विधान विवाह में आ रही सभी रुकावटों को दूर करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है। इस साधना से न केवल विवाह के योग बनते हैं, बल्कि जीवनसाथी की गुणवत्ता और शुभता पर भी ध्यान केंद्रित होता है।
ग्रह क्लेश और मानसिक स्थिरता का निवारण
दांपत्य-सौभाग्य के मार्ग में अक्सर ग्रहों के क्लेश या आंतरिक दोष बाधा उत्पन्न करते हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि गौरी-शंकर पूजा सीधे ग्रहों के क्लेश को धीरे-धीरे पिघलाने लगती है। आंतरिक ऊर्जा के संतुलन के माध्यम से यह साधना साधक के मानसिक और भावनात्मक केंद्र को स्थिर करती है, जिससे विवाह कारक ग्रहों (विशेषतः शुक्र) से जुड़े दोषों के प्रभाव कम हो जाते हैं। यदि कुंडली में कोई दोष या कमजोरी होती है, तो मंदिरों में पुरोहितों द्वारा शुक्र पूजा के साथ गौरी-शंकर पूजा की विधियाँ कराई जाती हैं, जिससे लोगों को सहायता मिली है और उनके कार्य सिद्ध हुए हैं।
आगमिक परंपरा में लक्ष्य-पूर्ति
आगमिक परंपरा और तंत्र में विशिष्ट साधनाएँ जनकल्याण और आत्मकल्याण के लिए विहित की गई हैं। गौरी-शंकर साधना इसी श्रेणी के अंतर्गत आती है, जो ऐहिक सिद्धियों, जैसे कि विवाह बाधा निवारण, के लिए एक शुद्ध मार्ग प्रदान करती है। यह विधि साधक को जीवन में स्थिर और मंगलमय परिवर्तन प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।
2. प्रमुख मंत्र: गौरी–शंकर साधना के मूल एवं दुर्लभ मंत्र
इस साधना में प्रयुक्त होने वाले मंत्रों को उनकी प्रामाणिकता और पूर्णता के साथ प्रस्तुत किया गया है। यहाँ दिए गए मंत्रों में रामचरितमानस से प्राप्त भक्तिमूलक प्रार्थना और शाक्त आगम से प्राप्त बीज मंत्र दोनों सम्मिलित हैं, जो साधना को बल प्रदान करते हैं।
A. मनोवांछित वर/वधू प्राप्ति हेतु गौरी वंदना मंत्र
यह मंत्र गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस के बालकाण्ड में वर्णित माता सीता के गौरी वंदना प्रसंग से लिया गया है। स्वयंवर से पूर्व सीता द्वारा की गई यह प्रार्थना मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए परम प्रमाण मानी जाती है।
तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।”
सरल अर्थ एवं भावार्थ
सरल अर्थ: "हे गौरी! आप भगवान शंकर की अर्धांगिनी हैं। जिस प्रकार आप महादेव को अत्यंत प्रिय हैं, हे कल्याणी (सभी का कल्याण करने वाली माता)! उसी प्रकार मुझे भी मेरा मनोवांछित एवं अत्यंत दुर्लभ पति (या पत्नी) प्रदान कीजिए।"
भावार्थ: इस मंत्र का सार केवल विवाह की याचना नहीं, बल्कि पार्वती और शिव के प्रेम, समर्पण और अर्धांगिनी स्वरूप के समान अटल दांपत्य-सौभाग्य की कामना है। 'कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्' वाक्यांश यह सुनिश्चित करता है कि साधक सामान्य नहीं, बल्कि अत्यंत वांछित और उच्च कोटि का जीवनसाथी प्राप्त करने की प्रार्थना कर रहा है। यह मंत्र उच्चतम भक्ति और आदर्श दांपत्य की नींव पर आधारित है।
B. शीघ्र विवाह एवं सौभाग्य हेतु देवी गौरी का बीज मंत्र
शीघ्र परिणाम और आंतरिक ऊर्जा के संचार के लिए तांत्रिक परंपराओं में बीज मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। 'ह्रीं' बीज आदि शक्ति की ऊर्जा को तत्काल सक्रिय करता है।
अर्थ एवं शक्ति-तत्व
यह मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र मंत्र है जो देवी गौरी पार्वती जी की आराधना के लिए प्रयोग किया जाता है。
- ॐ (प्रणव): अनादि नाद, ब्रह्म का प्रतीक।
- ह्रीं (माया/लज्जा बीज): यह बीज आदि शक्ति (त्रिपुरा सुंदरी) का प्रतीक है। यह बीज मंत्र साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सौंदर्य, पवित्रता और समृद्धि का संचार करता है। इसका नियमित जाप नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर विवाह में आने वाली रुकावटों को समाप्त करता है।
- गौरये नमः: गौरी देवी को नमस्कार।
भावार्थ: बीज मंत्रों का समावेश इस साधना को एक प्रभावी आगमिक अभ्यास का स्वरूप देता है। जहाँ रामचरितमानस का मंत्र साधक के मन और समर्पण पर कार्य करता है, वहीं 'ह्रीं' बीज सूक्ष्म ऊर्जा शरीर पर कार्य करके शीघ्र विवाह के लिए आवश्यक कर्मिक और ऊर्जात्मक अवरोधों को दूर करता है। इस संयोजन से प्रार्थना को त्वरित सिद्धि का बल मिलता है।
| मंत्र (संस्कृत पाठ) | सरल अर्थ (Hindi) | शास्त्रीय स्रोत | विवाह-योग से संबंध |
|---|---|---|---|
| हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी, कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।। | हे गौरी (शंकर की अर्धांगिनी)! जिस प्रकार आप शंकर को प्रिय हैं, हे कल्याणी! उसी प्रकार मुझे भी अत्यंत दुर्लभ मनोवांछित पति/पत्नी प्रदान कीजिए। | रामचरितमानस, बालकाण्ड (गौरी वंदना) | मनोवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति एवं दांपत्य-प्रेम की स्थापना। |
| ॐ ह्रीं गौरये नमः | आदि शक्ति स्वरूपिणी गौरी को नमस्कार। (माया बीज के माध्यम से शक्ति का आवाहन)। | शाक्त एवं तांत्रिक आगम (परंपरागत) | शीघ्र विवाह में बाधा निवारण, आंतरिक शुद्धता और सौभाग्य वृद्धि। |
| ॐ नमः मनोभिलाषितम वरम देही वरम ओम गौरा पार्वती देव्य नमः | हे गौरी-पार्वती देवी! मुझे मनोवांछित वर प्रदान करें। | कौमार तंत्र / शिवपुराण (परंपरागत पाठ) | विशिष्ट वर/वधू की कामना पूर्ति। |
3. पाठ-विधि: साधना के आधारभूत नियम एवं दैनंदिन क्रम
साधना की सफलता पूर्णतः उसके आचार, अनुशासन और विधि के शुद्ध पालन पर निर्भर करती है। गौरी-शंकर साधना के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन अनिवार्य है।
A. नियम एवं निषेध (आचार संहिता)
- शुद्धि एवं सात्त्विकता: यह साधना केवल सात्त्विक उद्देश्यों के लिए, शुद्ध मन और पवित्रता के साथ की जानी चाहिए। तामसिक या हानिकारक प्रयोजनों के लिए इसका उपयोग शास्त्र द्वारा पूर्णतः निषिद्ध है।
- गुरु-निर्देशन एवं समर्पण: किसी भी गंभीर साधना (योग, ध्यान, तंत्र या भक्ति) में गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण सबसे आवश्यक तत्व है। गुरु-शिष्य परंपरा में गुरु-निर्देशन के बिना आगमिक या तांत्रिक प्रयोगों में सफलता प्राप्त करना असंभव माना जाता है। साधक को गुरु, ध्यान विधि और समग्र अनुशासन संहिता के प्रति पूर्णतः समर्पित होना चाहिए।
- धैर्य की अनिवार्यता: साधना में तुरंत फल न मिलने पर हताश नहीं होना चाहिए। साधक को धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि जीवन में सबके साथ बाधाएँ आती हैं, और धैर्य सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
B. दैनिक जप-क्रम विधान
- समय और दिशा: साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त (प्रातःकाल) या प्रदोष काल (संध्याकाल) को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। साधक को पूर्व दिशा (शिव ऊर्जा) या उत्तर दिशा (स्थिरता और पार्वती ऊर्जा) की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
- आसन एवं माला:
आसन: साधना के लिए कुशा या ऊन का आसन शुद्ध एवं स्थिर माना जाता है।
माला: गौरी-शंकर की संयुक्त साधना हेतु रुद्राक्ष की माला (शिव-तत्व के लिए) या स्फटिक/चंदन की माला (गौरी-तत्व के लिए) का प्रयोग उपयुक्त है। - जप-संख्या: शीघ्र विवाह की कामना हेतु मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 1, 5, या 11 माला (108 दाने) नियमित रूप से करना चाहिए । यदि साधक दीर्घकालिक और पूर्ण सिद्धि चाहता है, तो शास्त्रीय विधान के अनुसार, सवा लाख (1,25,000) जप का संकल्प लेकर उसे पूर्ण करना चाहिए, जिसके पश्चात् पूर्णाहुति का विधान है।
4. क्रमवार साधना-विधि: संकल्प से पूजन तक
इस खंड में गौरी-शंकर की संयुक्त पूजा की क्रमबद्ध विधि का वर्णन किया गया है, जो षोडशोपचार पूजा के मानक प्रारूप पर आधारित है।
A. प्रारंभिक शुद्धि एवं संकल्प विधान
- पवित्रीकरण एवं आचमन: साधना शुरू करने से पहले शरीर और पूजा सामग्री का पवित्रीकरण आवश्यक है। इसके पश्चात् तीन बार जल ग्रहण करके मन और शरीर को शुद्ध किया जाता है।
- संकल्प की अनिवार्यता: बिना संकल्प के धार्मिक कार्य का फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता है। भगवान को साक्षी मानकर संकल्प लेने से कार्य जल्दी सिद्ध होता है।
- संकल्प मंत्र (विवाह हेतु विशिष्ट): साधक को हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर, अपने नाम, गोत्र, तिथि, और स्थान का उच्चारण करते हुए विशिष्ट कामना (शीघ्र विवाह/मनोवांछित वर/वधू प्राप्ति) के लिए संकल्प लेना चाहिए।
- संकल्प पाठ (उदाहरण): "ॐ तत्सत्। आज [तिथि, वार] को, मैं [नाम], [स्थान] में गणेश जी को साक्षी मानकर, शीघ्र विवाह और शुभ दांपत्य-सौभाग्य की प्राप्ति हेतु गौरी–शंकर की कृपा के लिए [इतनी संख्या] बार 'ॐ ह्रीं गौरये नमः' मंत्र का जप करूँगा/करूँगी।"।
B. आवाहन, स्थापन एवं षोडशोपचार पूजन
पूजा की निर्विघ्नता के लिए सर्वप्रथम श्री गणेश और माता अंबिका का आवाहन-पूजन आवश्यक है। इसके पश्चात्, स्थापित गौरी-शंकर प्रतिमा या शिवलिंग (पार्वती पीठिका सहित) का आवाहन किया जाता है।
गौरी–शंकर षोडशोपचार पूजन: क्रमवार विधि एवं मंत्र
| क्रम (उपचार) | विवरण/सामग्री | समर्पण मंत्र (गौरी–शंकराभ्यां नमः) | शास्त्रीय आधार |
|---|---|---|---|
| 1. आवाहन | मूर्ति में देवत्व का आह्वान | ॐ पार्वती-शिवाभ्यां नमः, आवाहनं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 2. आसन | देवी-देवता को आसन अर्पित करना | ॐ पार्वती-शिवाभ्यां नमः, आसनं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 3. पाद्य | चरणों में जल (पैर धोने हेतु) | ॐ पार्वती-शिवाभ्यां नमः, पाद्यं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 4. अर्घ्य | सिर पर सुगंधित जल (सम्मान हेतु) | ॐ पार्वती-शिवाभ्यां नमः, अर्घ्यं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 5. आचमन | मुख शुद्धि हेतु जल | ॐ पार्वती-शिवाभ्यां नमः, आचमनीयं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 6. स्नान (पंचामृत) | पंचामृत से स्नान कराना | ॐ गौरी–शंकराभ्यां नमः, पंचामृत स्नानं समर्पयामि। | शिव पूजन विधान |
| 7. शुद्दोदक स्नान | शुद्ध जल से स्नान | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, शुद्दोदक स्नानं समर्पयामि। | शिव पूजन विधान |
| 8. वस्त्र/उपवस्त्र | नवीन वस्त्र या कलावा | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, वस्त्रं/उपवस्त्रं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 9. चंदन/सिंदूर | सुगंधित द्रव्य (गौरी को सिंदूर, शिव को चंदन; इत्र भी अर्पित करें) | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, गंधं समर्पयामि। (त्र्यंबकं यजामहे... सुगंधिम समर्पयामि | शिव पूजन विधान |
| 10. अक्षत | अखंड चावल अर्पित करना | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, अक्षतान् समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 11. पुष्पमाला/दूर्वा | पुष्प, बेलपत्र (शिव हेतु), दूर्वा (गणेश हेतु) | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, पुष्पमालां समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 12. धूप/दीप | धूप-अगरबत्ती, घी का दीपक प्रज्वलित करना | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, धूपं दीपं दर्शयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 13. नैवेद्य | भोग (खीर, फल, मिष्ठान) अर्पित करना | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, नैवेद्यं समर्पयामि। | कौमार तंत्र/शिव विधान |
| 14. तांबूल/दक्षिणा | पान, सुपारी, भेंट (उपहार) | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, दक्षिणां समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 15. आरती | कर्पूर या घी के दीपक से आरती | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, आरार्तिक्यं समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
| 16. प्रदक्षिणा | परिक्रमा एवं पुष्पांजलि | ॐ पार्वती–शिवाभ्यां नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि। | कर्मकांड पद्धति |
C. ध्यान-विधान: मानसिक स्थिरता एवं युगल स्वरूप का बोध
साधना की सफलता के लिए बाहरी कर्मकांड के साथ आंतरिक ध्यान अत्यंत आवश्यक है। यह प्रक्रिया साधक को आध्यात्मिक जागृति और आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है, जैसा कि विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित है。
- त्राटक अभ्यास: साधक को आसन पर स्थिर और सीधी मुद्रा में बैठकर, शांत मन से गौरी-शंकर के युगल स्वरूप की तस्वीर को बिना पलक झपकाए देखना चाहिए (त्राटक)। जब तक आँखें थक न जाएँ या पलक न झपके, तब तक ध्यान को बनाए रखना चाहिए। यह मन की अवचेतन शक्ति को जाग्रत करता है।
- मानसिक बोध: ध्यान के दौरान, साधक को शिव और पार्वती के आनंदमय, करुणामय स्वरूप का मानस ध्यान करना चाहिए (जैसे ॐ पार्वती पताय नमो नमः का मानसिक जप)।
- स्वास्थ्य और मनोभाव पर प्रभाव: इस प्रकार का गहन ध्यान साधक के भीतर आत्मविश्वास पैदा करता है और सेरोटोनिन नामक हार्मोन को बढ़ाता है, जो मूड और व्यवहार को प्रभावित करता है। यह ध्यान विधि न केवल रक्तचाप को सामान्य रखती है, बल्कि अवसाद और चिंता को भी दूर करती है। चूंकि विवाह बाधाएं अक्सर आंतरिक अवसाद या चिंता से जुड़ी होती हैं, यह ध्यान विधि वैवाहिक जीवन में स्थिरता और सौहार्द स्थापित करने के लिए आवश्यक मानसिक तैयारी प्रदान करती है।
5. विशेष प्रयोग: विवाह बाधा निवारण एवं अनुकूल जीवनसाथी प्राप्ति
विवाह संबंधी विशिष्ट कामनाओं की पूर्ति हेतु शास्त्रों में कई प्रयोग वर्णित हैं, जो गौरी-शंकर साधना के अंग माने जाते हैं。
A. शीघ्र विवाह हेतु विशिष्ट प्रयोग
- सोमवार व्रत एवं नैवेद्य: सोमवार को भगवान शंकर को खीर का प्रसाद अर्पित करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। यह प्रयोग विशेष रूप से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
- वरमाला/सोहाग जोड़ा अर्पण: मनोवांछित पति की प्राप्ति के लिए कन्या को नियमित रूप से एक वर्ष तक माता पार्वती की आराधना करनी चाहिए और उन्हें शादी का जोड़ा (सोहाग सामग्री) अर्पित करना चाहिए।
- बेलपत्र पर राम नाम: सावन या महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर 108 बेलपत्र पर राम जी का नाम लिखकर चढ़ाने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और बाधाएं दूर होती हैं।
B. कौमार तांत्र/पौरणिक विवाह सिद्धि मंत्र
मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए शिवपुराण या ब्रह्मवैवर्त पुराण से उद्धृत यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली माना गया है:
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्。।" अर्थ: हे देवी! मुझे मन के अनुकूल चलने वाली, सुंदर पत्नी प्रदान करें, जो उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो और मुझे दुर्गम संसार सागर से तारने वाली हो।
C. दांपत्य-सौख्य और सौहार्द वृद्धि हेतु प्रयोग
विवाहित साधकों के लिए यह साधना आंतरिक सामंजस्य स्थापित करने पर केंद्रित है। यह पूजा पार्टनर के साथ अच्छी बॉन्डिंग बनाने और गृहस्थी में उत्पन्न होने वाले क्लेशों को शांत करने में सहायक होती है। आंतरिक शिव-शक्ति ऊर्जा का मिलन पति-पत्नी के बीच सौहार्द बढ़ाता है。
D. सावधानियाँ: प्रयोजन की शुद्धता
आगमिक और तांत्रिक साधनाएँ अत्यंत गूढ़ होती हैं। यह आवश्यक है कि साधक का उद्देश्य केवल सात्त्विक हो। जनकल्याण, धर्मप्रभावना या आत्मकल्याण के लिए ही ये विद्याएँ विहित थीं। तामसिक या हानिकारक प्रयोजन (जैसे वशीकरण) के लिए इन मंत्रों का प्रयोग करने से दुष्परिणाम हो सकते हैं। साधक को सदैव गुरु के निर्देशों के अनुसार, शुद्ध भाव और समर्पण के साथ ही साधना करनी चाहिए。
6. पूर्णाहुति एवं विसर्जन विधि
साधना में संकल्पित जप संख्या (जैसे 1.25 लाख) पूर्ण होने पर यज्ञ (होम) द्वारा पूर्णाहुति देना अनिवार्य है। पूर्णाहुति के बिना जप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता。
A. पूर्णाहुति (यज्ञ की समाप्ति)
होम विधि: गौरी-शंकर की प्रसन्नता के लिए घी, तिल, चावल (हविष्य) और मिष्ठान्न (खीर) का प्रयोग करते हुए हवन कुंड में आहुतियाँ दी जाती हैं。
पूर्णाहुति मंत्र: यज्ञ की समाप्ति पर यह मंत्र उच्चारित किया जाता है, जिसका अर्थ है संपूर्ण कर्म को पूर्ण ब्रह्म में समर्पित करना:
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते。।” (यह मंत्र सभी कर्मों को पूर्णता में समर्पित करता है।)
B. क्षमा-प्रार्थना एवं समर्पण
साधना की समाप्ति पर, साधक को जाने-अनजाने में हुई त्रुटियों, मंत्रों के अशुद्ध उच्चारण, या विधि की कमी के लिए भगवान शिव-पार्वती से क्षमा मांगनी चाहिए। अंत में, संपूर्ण जप और पूजन का फल गौरी-शंकर के चरणों में समर्पित किया जाता है, जिससे साधना का लक्ष्य सिद्ध हो。
7. सन्दर्भ एवं शास्त्रीय प्रमाण
यह सारणी इस रिपोर्ट में उद्धृत प्रमुख मंत्रों, विधियों और उनके शास्त्रीय स्रोतों को दर्शाती है, जो इस साधना की प्रामाणिकता स्थापित करती है。
| तत्व / मंत्र | संस्कृत/हिन्दी पाठ का अंश | शास्त्रीय स्रोत | उल्लेख |
|---|---|---|---|
| गौरी वंदना मंत्र | हे गौरी शंकरार्धांगी। यथा त्वं शंकर प्रिया... | गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस | बालकाण्ड (सीता गौरी-पूजन प्रसंग) |
| गौरी बीज मंत्र | ॐ ह्रीं गौरये नमः (ह्रीं - माया बीज) | शाक्त एवं तांत्रिक आगम | परंपरागत तांत्रिक विधि |
| दांपत्य-सौभाग्य हेतु | शिव गौरी शंकर देंगे विवाह का वरदान | शिवपुराण, स्कंदपुराण (परंपरागत मान्यता) | - |
| संकल्प एवं अनुशासन | गुरु-निर्देशन में करें; संकल्प न लेना फल न मिलने का कारण | आगमिक परंपरा / कर्मकांड पद्धति | - |
| मनोवांछित पत्नी हेतु मंत्र | पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् | ब्रह्मवैवर्त पुराण / शिवपुराण (अंश) | - |
| आंतरिक तत्व-बोध | आपके मन के शिव और अंतरात्मा की शक्ति का मिलन | आगमिक तत्व-बोध | - |
| षोडशोपचार क्रम | पवित्रीकरण, आचमन, आसन, पाद्य, अर्ध्य, स्नान, वस्त्र, चंदन, अक्षत, पुष्पमाला... | सामान्य पूजन विधान | - |
| ध्यान विधान | त्राटक अभ्यास, मन की अवचेतन शक्ति | योग शास्त्र / तंत्र | विज्ञान भैरव तंत्र (112 विधियाँ) |
8. निष्कर्ष
गौरी–शंकर की संयुक्त साधना शीघ्र विवाह, शुभ संयोग, और दांपत्य-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए एक पूर्ण, शास्त्रीय रूप से प्रमाणित और बहुआयामी विधि है। यह संकलन सुनिश्चित करता है कि साधक को हर मंत्र और विधि संपूर्ण तथा शुद्ध रूप में उपलब्ध हो。
साधना की प्रभावकारिता केवल मंत्रों के जप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तीन स्तरों पर कार्य करती है:
- कर्मकांड (बाह्य): शुद्ध संकल्प, षोडशोपचार पूजन और पूर्णाहुति के माध्यम से दैवीय शक्तियों का आवाहन करना。
- ऊर्जात्मक (सूक्ष्म): ह्रीं बीज मंत्रों के द्वारा आंतरिक ऊर्जा (शिव-शक्ति संतुलन) को जाग्रत करना, जिससे विवाह में आने वाले कर्मिक एवं ग्रहगत अवरोध शीघ्रता से दूर होते हैं。
- मानसिक (आंतरिक): ध्यान और त्राटक द्वारा साधक के मन की स्थिरता और आत्मविश्वास को बढ़ाना, जिससे वह भावनात्मक रूप से एक स्थिर और सौहार्दपूर्ण संबंध के लिए तैयार होता है, जो दांपत्य-सुख की दीर्घकालिक नींव है。
अतः, इस साधना को पूर्ण समर्पण, शुद्ध मन और गुरु-निर्देशन में करने वाले साधक को पार्वती–शिव की संयुक्त कृपा से शीघ्र ही स्थिर, मंगलमय वैवाहिक जीवन और अक्षय दांपत्य-सुख प्राप्त होता है। यह विधि केवल विवाह की बाधा नहीं हटाती, बल्कि साधक को आत्म-पूर्णता की ओर ले जाती है, जो एक सफल संबंध का वास्तविक आधार है。