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माँ भुवनेश्वरी साधना: 30 दिनों में 'ऐश्वर्य' और कामना-सिद्धि (मंत्र) !

AI सारांश (Summary)

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माँ भुवनेश्वरी साधना

क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर प्रतिष्ठित हैं । उनके नाम का अर्थ है 'भुवन' (संपूर्ण ब्रह्मांड या लोक) की 'ईश्वरी' (शासिका या स्वामिनी)। यदि माँ काली 'काल' (समय) का प्रतिनिधित्व करती हैं, तो माँ भुवनेश्वरी 'आकाश' या 'स्थान' की अधिष्ठात्री देवी हैं । वे ज्ञान शक्ति की देवी मानी जाती हैं और सृष्टि की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । माँ भुवनेश्वरी का स्वरूप अत्यंत सौम्य और प्रकाशमान है। उनके तीन नेत्र हैं, और उनकी शारीरिक कांति उदयकालीन सूर्य के समान देदीप्यमान होती है। वे अपने चार हाथों में से दो में पाश और अंकुश धारण करती हैं, जबकि अन्य दो हाथ वरद (वरदान देने की) और अभय (भय दूर करने की) मुद्रा में होते हैं । वे समस्त ब्रह्मांड को अपने भीतर धारण करने वाली और उसका पोषण करने वाली माँ के रूप में पूजी जाती हैं। भुवनेश्वरी साधना का केंद्र 'आकाश' या 'स्थान' की अवधारणा है, जो साधक को भौतिक और मानसिक सीमाओं से परे ले जाकर असीम विस्तार और सार्वभौमिक चेतना का अनुभव कराती है।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ भुवनेश्वरी के भैरव त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले शिव) या सदाशिव माने जाते हैं।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

माँ भुवनेश्वरी की साधना के लिए भुवनेश्वरी यंत्र, मूंगे का दाना (या लाल रंग का कोई अन्य रत्न), और भुवनेश्वरी माला (अथवा पीले हकीक या स्फटिक की माला) की आवश्यकता होती है । साधक के लिए श्वेत आसन और श्वेत धोती या वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है ।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

भुवनेश्वरी यंत्र का विस्तृत ज्यामितीय विवरण उपलब्ध है । इस यंत्र में सामान्यतः एक भूपुर (चार द्वारों वाला बाहरी वर्गाकार घेरा) होता है, जिसके भीतर अष्टदल कमल (आठ पंखुड़ियों वाला कमल, जो पंच महाभूतों और तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है) होता है। कमल के केंद्र में एक षट्कोण (दो परस्पर जुड़े त्रिकोण, जो शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक हैं) और षट्कोण के बिल्कुल मध्य में एक बिंदु (Bindu) होता है, जो परम चेतना या स्वयं देवी भुवनेश्वरी का प्रतीक है। यंत्र को पूर्व दिशा में, पश्चिम की ओर मुख करके स्थापित करना चाहिए । साधना के समय, लाल वस्त्र से ढके हुए बाजोट (छोटी चौकी) पर यंत्र को स्थापित करके उसका पंचोपचार पूजन (कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प अर्पित करना) किया जाता है ।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ भुवनेश्वरी की साधना किसी भी शुभ दिन, विशेषकर सफला एकादशी जैसी तिथियों पर, या गुप्त नवरात्रि के दौरान प्रारंभ की जा सकती है । रात्रि में दस बजे के उपरांत का समय साधना के लिए उत्तम माना गया है।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: ह्रीं । यह बीज मंत्र माया बीज या शक्ति बीज भी कहलाता है और सृष्टि, स्थिति और लय तीनों शक्तियों का द्योतक है।

मूल मंत्र: "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौः भुवनेश्वर्ये नमः" अथवा केवल "ह्रीं"। एक अन्य मंत्र है: "ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नमः"

ध्यान श्लोक (उदाहरण):

"ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्। स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्॥"

(अर्थ: उदयकालीन सूर्य के समान कान्ति वाली, मस्तक पर चन्द्रकला का किरीट धारण करने वाली, उन्नत पयोधरों वाली, तीन नेत्रों से युक्त, मंद मुस्कान युक्त मुख वाली, वरद, अंकुश, पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली भुवनेश्वरी देवी का मैं भजन करता हूँ।) अन्य ध्यान श्लोक में भी उपलब्ध हैं।

v. पूजा विधान:

साधक को रात्रि में दस बजे के उपरांत, स्नान आदि से निवृत्त होकर, श्वेत स्वच्छ वस्त्र धारण कर, श्वेत आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए । सर्वप्रथम गुरु चित्र का स्थापन और पूजन करें। इसके बाद अपने सामने लाल वस्त्र से ढके बाजोट पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन संपन्न करें। फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प, विनियोग और न्यास (करन्यास, अंगन्यास आदि) करे । महाविद्या भुवनेश्वरी से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हुए 'मूंगे का दाना' यंत्र पर अर्पित करें । इसके पश्चात् दोनों हाथों में पुष्प लेकर भुवनेश्वरी का ध्यान करें और वे पुष्प यंत्र पर अर्पित कर दें। निर्दिष्ट मंत्र का जाप (उदाहरण के लिए, 9 दिनों तक) करें ।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

साधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करनी चाहिए। साधना संपन्न होने के उपरांत समस्त साधना सामग्री (यंत्र, माला आदि) को किसी पवित्र जलाशय या नदी में विसर्जित कर देना चाहिए ।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ भुवनेश्वरी सौम्य कोटि की महाविद्या हैं, जो मुख्यतः दक्षिणाचार या सात्विक साधना पद्धति की ओर संकेत करता है। उनकी साधना में सामान्यतः उग्र तांत्रिक क्रियाओं का समावेश नहीं होता। दुर्गा सप्तशती का पाठ भी उनके सौम्य और मातृ स्वरूप से जुड़ता है।

घ. साधना के लाभ:

माँ भुवनेश्वरी की साधना से साधक को सांसारिक सुख, अष्टसिद्धियाँ, अनुपम सौंदर्य, अचल संपत्ति और विलासिता की प्राप्ति होती है । साधक के ओज और तेज में वृद्धि होती है, वह निर्भय बनता है और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है । यह साधना संतान प्राप्ति में सहायक है, आत्मिक ज्ञान प्रदान करती है, और साधक को ऊर्जावान बनाकर कार्य करने की शक्ति देती है । उनकी कृपा से सम्मोहन शक्ति, वाक् सिद्धि और समस्त प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं । साधक को प्रेम, शांति, सद्भाव, उत्तम स्वास्थ्य, विभिन्न कौशल, गहन ज्ञान, तीक्ष्ण बुद्धि और प्रचुर समृद्धि की प्राप्ति होती है । भुवनेश्वरी की पूजा से 'ज्ञान शक्ति' जागृत होती है, जिससे साधक भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में स्पष्टता और बुद्धिमत्ता प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसे भ्रम (माया) से मुक्त होने में मदद करता है। भुवनेश्वरी की साधना यह दर्शाती है कि तांत्रिक दृष्टिकोण में ज्ञान केवल बौद्धिक समझ नहीं है, बल्कि एक अनुभवात्मक अवस्था है जो स्थान और सीमाओं की पारंपरिक धारणाओं को पार करती है, जिससे साधक ब्रह्मांड को स्वयं में अनुभव करता है।


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