i. आवश्यक सामग्री:
माँ भुवनेश्वरी की साधना के लिए भुवनेश्वरी यंत्र, मूंगे का दाना (या लाल रंग का कोई अन्य रत्न), और भुवनेश्वरी माला (अथवा पीले हकीक या स्फटिक की माला) की आवश्यकता होती है । साधक के लिए श्वेत आसन और श्वेत धोती या वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है ।
ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:
भुवनेश्वरी यंत्र का विस्तृत ज्यामितीय विवरण उपलब्ध है । इस यंत्र में सामान्यतः एक भूपुर (चार द्वारों वाला बाहरी वर्गाकार घेरा) होता है, जिसके भीतर अष्टदल कमल (आठ पंखुड़ियों वाला कमल, जो पंच महाभूतों और तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है) होता है। कमल के केंद्र में एक षट्कोण (दो परस्पर जुड़े त्रिकोण, जो शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक हैं) और षट्कोण के बिल्कुल मध्य में एक बिंदु (Bindu) होता है, जो परम चेतना या स्वयं देवी भुवनेश्वरी का प्रतीक है। यंत्र को पूर्व दिशा में, पश्चिम की ओर मुख करके स्थापित करना चाहिए । साधना के समय, लाल वस्त्र से ढके हुए बाजोट (छोटी चौकी) पर यंत्र को स्थापित करके उसका पंचोपचार पूजन (कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प अर्पित करना) किया जाता है ।
iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:
माँ भुवनेश्वरी की साधना किसी भी शुभ दिन, विशेषकर सफला एकादशी जैसी तिथियों पर, या गुप्त नवरात्रि के दौरान प्रारंभ की जा सकती है । रात्रि में दस बजे के उपरांत का समय साधना के लिए उत्तम माना गया है।
iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:
बीज मंत्र: ह्रीं । यह बीज मंत्र माया बीज या शक्ति बीज भी कहलाता है और सृष्टि, स्थिति और लय तीनों शक्तियों का द्योतक है।
मूल मंत्र: "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौः भुवनेश्वर्ये नमः" अथवा केवल "ह्रीं"। एक अन्य मंत्र है: "ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नमः" ।
ध्यान श्लोक (उदाहरण):
"ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्। स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्॥"
(अर्थ: उदयकालीन सूर्य के समान कान्ति वाली, मस्तक पर चन्द्रकला का किरीट धारण करने वाली, उन्नत पयोधरों वाली, तीन नेत्रों से युक्त, मंद मुस्कान युक्त मुख वाली, वरद, अंकुश, पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली भुवनेश्वरी देवी का मैं भजन करता हूँ।) अन्य ध्यान श्लोक में भी उपलब्ध हैं।
v. पूजा विधान:
साधक को रात्रि में दस बजे के उपरांत, स्नान आदि से निवृत्त होकर, श्वेत स्वच्छ वस्त्र धारण कर, श्वेत आसन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए । सर्वप्रथम गुरु चित्र का स्थापन और पूजन करें। इसके बाद अपने सामने लाल वस्त्र से ढके बाजोट पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन संपन्न करें। फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प, विनियोग और न्यास (करन्यास, अंगन्यास आदि) करे । महाविद्या भुवनेश्वरी से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हुए 'मूंगे का दाना' यंत्र पर अर्पित करें । इसके पश्चात् दोनों हाथों में पुष्प लेकर भुवनेश्वरी का ध्यान करें और वे पुष्प यंत्र पर अर्पित कर दें। निर्दिष्ट मंत्र का जाप (उदाहरण के लिए, 9 दिनों तक) करें ।
vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:
साधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करनी चाहिए। साधना संपन्न होने के उपरांत समस्त साधना सामग्री (यंत्र, माला आदि) को किसी पवित्र जलाशय या नदी में विसर्जित कर देना चाहिए ।
vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:
माँ भुवनेश्वरी सौम्य कोटि की महाविद्या हैं, जो मुख्यतः दक्षिणाचार या सात्विक साधना पद्धति की ओर संकेत करता है। उनकी साधना में सामान्यतः उग्र तांत्रिक क्रियाओं का समावेश नहीं होता। दुर्गा सप्तशती का पाठ भी उनके सौम्य और मातृ स्वरूप से जुड़ता है।