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माँ छिन्नमस्ता की महाप्रचंड साधना: शत्रु होंगे पल में ढेर, जागेंगी गुप्त शक्तियाँ! (असली तांत्रिक विधि और मंत्र)

माँ छिन्नमस्ता की महाप्रचंड साधना: शत्रु होंगे पल में ढेर, जागेंगी गुप्त शक्तियाँ! (असली तांत्रिक विधि और मंत्र)AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

माँ छिन्नमस्ता साधना

क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में एक अत्यंत उग्र और रहस्यमयी देवी हैं। उनका स्वरूप अद्वितीय और प्रतीकात्मक है: वे अपना मस्तक स्वयं अपने खड्ग से काटकर अपने एक हाथ में धारण करती हैं, जबकि दूसरे हाथ में खड्ग होता है। उनके कटे हुए धड़ से रक्त की तीन धाराएँ निकलती हैं – एक धारा को वे स्वयं पीती हैं, और अन्य दो धाराएँ उनकी सहचरियों डाकिनी और वर्णिनी (जिन्हें जया और विजया भी कहा जाता है) के मुख में जाती हैं। वे प्रचंड चंडिका का स्वरूप हैं और वज्र वैरोचिनी के नाम से भी जानी जाती हैं । उनकी गणना काली कुल की देवियों में होती है। माँ छिन्नमस्ता विरोधाभासों की देवी हैं; वे एक साथ जीवन-दात्री (सहचरियों का पोषण) और जीवन-संहारक (आत्म-विच्छेदन) दोनों हैं। उन्हें यौन आत्म-नियंत्रण और यौन ऊर्जा दोनों का प्रतीक माना जाता है, जो साधक की व्याख्या और साधना के स्तर पर निर्भर करता है। उनका स्वरूप मृत्यु, क्षणभंगुरता और विनाश के साथ-साथ जीवन, अमरता और पुनर्निर्माण का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह साधना आत्म-बलिदान, जीवन-मृत्यु के चक्र की स्वीकृति और कुंडलिनी शक्ति के प्रचंड जागरण का प्रतीक है। मस्तक काटना अहंकार के विनाश और अद्वैत चेतना की प्राप्ति को दर्शाता है।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ छिन्नमस्ता के भैरव कबन्ध हैं, जो स्वयं बिना सिर वाले शिव का स्वरूप हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से चेतना की उस अवस्था को दर्शाता है जो शारीरिक सीमाओं और अहंकार से परे है।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

छिन्नमस्ता यंत्र (विशेष रूप से 'वायु गमन छिन्नमस्ता यंत्र' का उल्लेख मिलता है), सिंदूर, नागरबेल के पान, पुष्प, अक्षत, शंख। जप के लिए काले हकीक, अष्टमुखी रुद्राक्ष या लाजवर्त की माला का प्रयोग किया जा सकता है।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

छिन्नमस्ता यंत्र सामान्यतः तांबे का बना होता है। इस यंत्र में देवी छिन्नमस्ता की आत्म-विच्छेदित छवि अंकित होती है। यंत्र को किसी पवित्र स्थान, जैसे पूजा कक्ष में, स्थापित करके नियमित रूप से उसकी पूजा की जानी चाहिए। एक विधान के अनुसार, पूजा घर में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख करके नीले रंग के आसन पर बैठकर, लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र स्थापित किया जाता है। एक अन्य तांत्रिक विधि में, यंत्र पर सोलह घृत धाराएँ बनाकर, प्रत्येक धारा पर एक पान रखकर, और मध्य में सिंदूर लगाकर यंत्र को स्थापित करने का उल्लेख है। यंत्र का विस्तृत विवरण में भी देखा जा सकता है।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ छिन्नमस्ता की जयंती (वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि) उनकी साधना के लिए विशेष शुभ मानी जाती है। गुप्त नवरात्रि का पाँचवाँ दिन भी उनकी पूजा के लिए उपयुक्त है।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: हूं।

मूल मंत्र: "श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा:"

ध्यान श्लोक (उदाहरण):

"प्रचण्डचण्डिकां वक्ष्ये सर्वकामफलप्रदाम्। यस्याः स्मरणमात्रेण सदाशिवो भवेन्नरः॥"

(अर्थ: मैं सर्वकामना सिद्धि प्रदान करने वाली प्रचंड चंडिका का वर्णन करता हूँ, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य सदाशिव स्वरूप हो जाता है।) शक्तिसंगम तंत्र के अनुसार, जो तारा हैं वही छिन्नमस्ता हैं।

v. पूजा विधान:

इस साधना के लिए साधक में दृढ़ संकल्प होना अत्यंत आवश्यक है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। देवी का आवाहन, संकल्प, विनियोग और विभिन्न न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करने का विधान है। शंख में जल, अक्षत और पुष्प डालकर देवी का आवाहन किया जाता है। इसके बाद निर्दिष्ट मंत्र का (उदाहरण के लिए 11 माला) नित्य 11 दिनों तक जाप करना चाहिए। प्रत्येक दिन जाप के उपरांत आरती और क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। कुछ परंपराओं में प्रदोषकाल में भी उनकी पूजा का विधान है।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ छिन्नमस्ता की साधना अत्यंत उग्र और पूर्ण रूप से तांत्रिक है, अतः इसे किसी योग्य और अनुभवी गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही करना चाहिए । साधना को अत्यंत गुप्त रखना चाहिए। साधना काल में पवित्रता, एकाग्रता और अटूट श्रद्धा बनाए रखना अनिवार्य है।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ छिन्नमस्ता उग्र कोटि की देवी हैं । उनकी साधना में तीव्र तांत्रिक क्रियाओं का समावेश होता है, जो स्पष्ट रूप से वामाचार की ओर संकेत करता है। एक संदर्भ के अनुसार, भैरवी, छिन्नमस्ता और धूमावती की पूजा वामाचारी प्रक्रिया से, घर से दूर, किसी आत्म-साक्षात्कारी तंत्र गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए। छिन्नमस्ता की साधना तांत्रिक मार्ग की उस चरम स्थिति को दर्शाती है जहाँ साधक जीवन और मृत्यु, शुद्धता और अशुद्धता के द्वंद्वों से ऊपर उठकर परम सत्य का साक्षात्कार करता है। यह सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देने और चेतना की गहनतम गहराइयों में उतरने का एक शक्तिशाली आह्वान है।

घ. साधना के लाभ:

माँ छिन्नमस्ता की साधना से शत्रुओं का पूर्ण नाश होता है, सभी प्रकार के विवादों, कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय प्राप्त होती है, और नौकरी एवं रोजगार में उन्नति व सफलता मिलती है। यह साधना कुंडलिनी जागरण और षट्चक्रों के संतुलन में अत्यंत सहायक है, जिससे साधक को विभिन्न सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । यह अत्यधिक यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने में और यौन प्रदर्शन में सुधार करने में भी मदद करती है । साधक को सर्वोच्च ज्ञान और उच्चतर बुद्धि की प्राप्ति होती है, विशेषकर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए यह साधना लाभकारी है । यह काले जादू, तंत्र बाधा और अन्य नकारात्मक शक्तियों से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है, तथा साधक में अदम्य साहस और आत्मबल का संचार करती है, जिससे उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने में सक्षम है। छिन्नमस्ता की उग्र साधना साधक को भय, सामाजिक वर्जनाओं और अहंकार की सीमाओं से परे ले जाती है, जिससे साधक में अदम्य साहस और गहन आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है।


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माँ छिन्नमस्ता की महाप्रचंड साधना: शत्रु होंगे पल में ढेर, जागेंगी गुप्त शक्तियाँ! (असली तांत्रिक विधि और मंत्र)AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

माँ छिन्नमस्ता साधना

क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ छिन्नमस्ता दस महाविद्याओं में एक अत्यंत उग्र और रहस्यमयी देवी हैं। उनका स्वरूप अद्वितीय और प्रतीकात्मक है: वे अपना मस्तक स्वयं अपने खड्ग से काटकर अपने एक हाथ में धारण करती हैं, जबकि दूसरे हाथ में खड्ग होता है। उनके कटे हुए धड़ से रक्त की तीन धाराएँ निकलती हैं – एक धारा को वे स्वयं पीती हैं, और अन्य दो धाराएँ उनकी सहचरियों डाकिनी और वर्णिनी (जिन्हें जया और विजया भी कहा जाता है) के मुख में जाती हैं। वे प्रचंड चंडिका का स्वरूप हैं और वज्र वैरोचिनी के नाम से भी जानी जाती हैं । उनकी गणना काली कुल की देवियों में होती है। माँ छिन्नमस्ता विरोधाभासों की देवी हैं; वे एक साथ जीवन-दात्री (सहचरियों का पोषण) और जीवन-संहारक (आत्म-विच्छेदन) दोनों हैं। उन्हें यौन आत्म-नियंत्रण और यौन ऊर्जा दोनों का प्रतीक माना जाता है, जो साधक की व्याख्या और साधना के स्तर पर निर्भर करता है। उनका स्वरूप मृत्यु, क्षणभंगुरता और विनाश के साथ-साथ जीवन, अमरता और पुनर्निर्माण का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह साधना आत्म-बलिदान, जीवन-मृत्यु के चक्र की स्वीकृति और कुंडलिनी शक्ति के प्रचंड जागरण का प्रतीक है। मस्तक काटना अहंकार के विनाश और अद्वैत चेतना की प्राप्ति को दर्शाता है।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ छिन्नमस्ता के भैरव कबन्ध हैं, जो स्वयं बिना सिर वाले शिव का स्वरूप हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से चेतना की उस अवस्था को दर्शाता है जो शारीरिक सीमाओं और अहंकार से परे है।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

छिन्नमस्ता यंत्र (विशेष रूप से 'वायु गमन छिन्नमस्ता यंत्र' का उल्लेख मिलता है), सिंदूर, नागरबेल के पान, पुष्प, अक्षत, शंख। जप के लिए काले हकीक, अष्टमुखी रुद्राक्ष या लाजवर्त की माला का प्रयोग किया जा सकता है।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

छिन्नमस्ता यंत्र सामान्यतः तांबे का बना होता है। इस यंत्र में देवी छिन्नमस्ता की आत्म-विच्छेदित छवि अंकित होती है। यंत्र को किसी पवित्र स्थान, जैसे पूजा कक्ष में, स्थापित करके नियमित रूप से उसकी पूजा की जानी चाहिए। एक विधान के अनुसार, पूजा घर में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख करके नीले रंग के आसन पर बैठकर, लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र स्थापित किया जाता है। एक अन्य तांत्रिक विधि में, यंत्र पर सोलह घृत धाराएँ बनाकर, प्रत्येक धारा पर एक पान रखकर, और मध्य में सिंदूर लगाकर यंत्र को स्थापित करने का उल्लेख है। यंत्र का विस्तृत विवरण में भी देखा जा सकता है।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ छिन्नमस्ता की जयंती (वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि) उनकी साधना के लिए विशेष शुभ मानी जाती है। गुप्त नवरात्रि का पाँचवाँ दिन भी उनकी पूजा के लिए उपयुक्त है।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: हूं।

मूल मंत्र: "श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा:"

ध्यान श्लोक (उदाहरण):

"प्रचण्डचण्डिकां वक्ष्ये सर्वकामफलप्रदाम्। यस्याः स्मरणमात्रेण सदाशिवो भवेन्नरः॥"

(अर्थ: मैं सर्वकामना सिद्धि प्रदान करने वाली प्रचंड चंडिका का वर्णन करता हूँ, जिनके स्मरण मात्र से मनुष्य सदाशिव स्वरूप हो जाता है।) शक्तिसंगम तंत्र के अनुसार, जो तारा हैं वही छिन्नमस्ता हैं।

v. पूजा विधान:

इस साधना के लिए साधक में दृढ़ संकल्प होना अत्यंत आवश्यक है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। देवी का आवाहन, संकल्प, विनियोग और विभिन्न न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करने का विधान है। शंख में जल, अक्षत और पुष्प डालकर देवी का आवाहन किया जाता है। इसके बाद निर्दिष्ट मंत्र का (उदाहरण के लिए 11 माला) नित्य 11 दिनों तक जाप करना चाहिए। प्रत्येक दिन जाप के उपरांत आरती और क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। कुछ परंपराओं में प्रदोषकाल में भी उनकी पूजा का विधान है।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ छिन्नमस्ता की साधना अत्यंत उग्र और पूर्ण रूप से तांत्रिक है, अतः इसे किसी योग्य और अनुभवी गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही करना चाहिए । साधना को अत्यंत गुप्त रखना चाहिए। साधना काल में पवित्रता, एकाग्रता और अटूट श्रद्धा बनाए रखना अनिवार्य है।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ छिन्नमस्ता उग्र कोटि की देवी हैं । उनकी साधना में तीव्र तांत्रिक क्रियाओं का समावेश होता है, जो स्पष्ट रूप से वामाचार की ओर संकेत करता है। एक संदर्भ के अनुसार, भैरवी, छिन्नमस्ता और धूमावती की पूजा वामाचारी प्रक्रिया से, घर से दूर, किसी आत्म-साक्षात्कारी तंत्र गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए। छिन्नमस्ता की साधना तांत्रिक मार्ग की उस चरम स्थिति को दर्शाती है जहाँ साधक जीवन और मृत्यु, शुद्धता और अशुद्धता के द्वंद्वों से ऊपर उठकर परम सत्य का साक्षात्कार करता है। यह सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देने और चेतना की गहनतम गहराइयों में उतरने का एक शक्तिशाली आह्वान है।

घ. साधना के लाभ:

माँ छिन्नमस्ता की साधना से शत्रुओं का पूर्ण नाश होता है, सभी प्रकार के विवादों, कोर्ट-कचहरी के मामलों में विजय प्राप्त होती है, और नौकरी एवं रोजगार में उन्नति व सफलता मिलती है। यह साधना कुंडलिनी जागरण और षट्चक्रों के संतुलन में अत्यंत सहायक है, जिससे साधक को विभिन्न सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । यह अत्यधिक यौन इच्छाओं को नियंत्रित करने में और यौन प्रदर्शन में सुधार करने में भी मदद करती है । साधक को सर्वोच्च ज्ञान और उच्चतर बुद्धि की प्राप्ति होती है, विशेषकर चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए यह साधना लाभकारी है । यह काले जादू, तंत्र बाधा और अन्य नकारात्मक शक्तियों से पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है, तथा साधक में अदम्य साहस और आत्मबल का संचार करती है, जिससे उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने में सक्षम है। छिन्नमस्ता की उग्र साधना साधक को भय, सामाजिक वर्जनाओं और अहंकार की सीमाओं से परे ले जाती है, जिससे साधक में अदम्य साहस और गहन आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है।


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