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महामृत्युंजय मंत्र: अकाल मृत्यु को टालने वाला 'अचूक' तांत्रिक प्रयोग !

AI सारांश (Summary)

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महामृत्युंजय मंत्र: अकाल मृत्यु को टालने वाला 'अचूक' तांत्रिक प्रयोग !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

महाकाल मंत्र साधना – काल विजयी दुर्लभ शिव मंत्र: एक प्रामाणिक शास्त्रीय संकलन

उद्देश्य एवं प्रस्तावना:

इस शोध-संकलन का प्रमुख उद्देश्य शास्त्रों, पुराणों और प्रामाणिक तंत्र-ग्रंथों में वर्णित भगवान शिव के 'काल विजयी' स्वरूप से संबंधित मंत्रों और उनकी साधना-पद्धति को एकत्रित कर, पूर्ण और प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत करना है। वेदों के हृदय से लेकर तंत्र के गुह्य विधानों तक, भगवान शिव को 'महाकाल', 'मृत्युंजय' और 'भैरव' के रूप में काल (मृत्यु) पर विजय प्रदान करने वाला माना गया है।

यह संकलन एक गंभीर साधक की दृष्टि से तैयार किया गया है, जहाँ प्रत्येक मंत्र, उसकी विधि, न्यास, संकल्प और पुरश्चरण का विवरण केवल प्रमाणित शास्त्रीय स्रोतों के आधार पर दिया गया है। कोई भी मंत्र या विधि अधूरी नहीं छोड़ी गई है, ताकि साधक को एक स्पष्ट, सुरक्षित और शास्त्र-सम्मत मार्ग प्राप्त हो सके।

खण्ड 1: मृत्यु पर विजय का महामंत्र - श्री महामृत्युंजय साधना

अध्याय 1: प्रस्तावना - कालजयी मंत्र का पौराणिक एवं वैदिक आधार

महामृत्युंजय मंत्र, जिसे 'त्र्यम्बकं मंत्र' भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रामाणिक मंत्रों में से एक है। इसकी शक्ति और वैधता अद्वितीय है क्योंकि यह श्रुति (वेद), स्मृति (पुराण) और तंत्र, इन तीनों प्रमुख स्तंभों द्वारा समान रूप से समर्थित और पूजित है।

वैदिक उद्गम (श्रुति प्रमाण):

इस मंत्र का सर्वप्रथम और सबसे प्रामाणिक स्रोत ऋग्वेद है। यह ऋग्वेद के सप्तम मण्डल के 41वें सूक्त का 12 वां मंत्र है, जिसके ऋषि वसिष्ठ हैं । यह मंत्र रुद्र (त्र्यम्बक) को संबोधित है। इसका उल्लेख यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता 1.8.3; वाजसनेयी संहिता 3.60) में भी मिलता है। यह इसका 'श्रुति प्रमाण' है, जो इसे सर्वोच्च वैदिक वैधता प्रदान करता है।

पौराणिक आख्यान (स्मृति प्रमाण):

पुराणों में इस मंत्र की शक्ति को दो प्रमुख कथाओं के माध्यम से सिद्ध किया गया है:

  • ऋषि मार्कंडेय की कथा: ऋषि मार्कंडेय को उनकी अल्पायु (16 वर्ष) के बारे में ज्ञात हुआ। अपनी मृत्यु को टालने के लिए, उन्होंने इस महामंत्र की रचना की और इसका अखंड जप किया। जब यमराज उनके प्राण हरने आए, तो बालक मार्कंडेय ने शिवलिंग को पकड़ लिया। तब भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए, उन्होंने यमराज को परास्त किया और मार्कंडेय को 'चिरंजीवी' होने का वरदान दिया। यह कथा सिद्ध करती है कि यह मंत्र 'काल' या 'मृत्यु' पर 'जय' प्राप्त कराने में सक्षम है।
  • शुक्राचार्य की मृत-संजीविनी विद्या: इस मंत्र को 'मृत-संजीविनी' मंत्र के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव ने यह गुप्त विद्या दैत्य-गुरु शुक्राचार्य को प्रदान की थी, जिससे वे मृत दैत्यों को पुनः जीवित कर सकते थे। यह प्रसंग इस मंत्र की 'जीवन-पुनर्स्थापना' की असीम क्षमता को दर्शाता है।

तांत्रिक रहस्योद्घाटन (तंत्र प्रमाण):

'नेत्र तंत्र' जैसे गंभीर तांत्रिक ग्रंथ इस मंत्र को "वेदों का हृदय" कहते हैं। इस ग्रंथ में, भगवान शिव स्वयं पार्वती जी को इसका रहस्य बताते हुए कहते हैं कि यह मंत्र उनकी (शिव की) आँखों में निहित 'अग्नि' है, जो मृत्यु को भी भस्म करने की शक्ति रखती है।

इस प्रकार, यह मंत्र केवल एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि यह वैदिक ज्ञान (श्रुति), पौराणिक भक्ति (स्मृति) और तांत्रिक क्रिया (तंत्र) के बीच का एक दिव्य सेतु है।

अध्याय 2: प्रमुख मंत्र - पाठ, स्रोत और प्रामाणिक अर्थ

साधना की प्रामाणिकता के लिए मंत्र का शुद्ध और पूर्ण होना अनिवार्य है। यहाँ महामृत्युंजय मंत्र के प्रमुख प्रामाणिक स्वरूप प्रस्तुत हैं।

1. वैदिक महामृत्युंजय मंत्र (मूल मंत्र)

यह मंत्र का सर्वाधिक प्रसिद्ध और ऋग्वेद में वर्णित मूल स्वरूप है।

संस्कृत पाठ:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

(टिप्पणी: वैदिक पाठ में 'ॐ' नहीं होता, इसे जप के लिए जोड़ा जाता है।)

स्रोत: ऋग्वेद (7.51.12) , यजुर्वेद (3.60) ।

पदच्छेद एवं प्रामाणिक अर्थ:

  • त्र्यम्बकम्: तीन नेत्रों वाले (भगवान शिव, जो भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं)।
  • यजामहे: हम पूजन करते हैं, हम आह्वान करते हैं, हम यज्ञ करते हैं।
  • सुगन्धिम्: सुगंधित (पुण्य-कीर्ति, ज्ञान और सदाचार की सुगंध से युक्त)।
  • पुष्टिवर्धनम्: पोषण और समृद्धि को बढ़ाने वाले (जो सभी जीवों का पोषण करते हैं)।
  • उर्वारुकमिव बन्धनान्: 'उर्वारुक' (ककड़ी) 'इव' (की तरह) 'बन्धनान्' (बंधन से)। जैसे पकी हुई ककड़ी का फल स्वयं ही अपनी बेल (बंधन) से सहजता से अलग हो जाता है।
  • मृत्योर्मुक्षीय: मुझे मृत्यु (अकाल मृत्यु और सांसारिक बंधनों) से मुक्त करें।
  • मा अमृतात्: (यह मंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है) 'मा' (नहीं) 'अमृतात्' (अमरता या मोक्ष से)।

गहन भावार्थ:

इस मंत्र का अर्थ केवल 'लंबी आयु' या 'अकाल मृत्यु से रक्षा' तक सीमित नहीं है। इसका अंतिम भाग मा अमृतात् (अमरता से नहीं) इसे 'मोक्ष-मंत्र' बनाता है । साधक प्रार्थना कर रहा है: "हे त्रिनेत्रधारी शिव, जो सर्व-पोषक और सुगंधित हैं, हम आपका यजन करते हैं। जिस प्रकार पकी हुई ककड़ी का फल बिना किसी कष्ट के अपनी बेल से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार आप हमें 'मृत्यु' (सांसारिक बंधन और भय) से मुक्त करें; किन्तु 'अमरता' (अर्थात् मोक्ष) से कभी भी वियुक्त (अलग) न करें।" यह मृत्यु के भय और पुनर्जन्म के चक्र, दोनों से मुक्ति की प्रार्थना है।

2. तांत्रिक (बीज-सहित) महामृत्युंजय मंत्र

यह वैदिक मंत्र का तांत्रिक प्रयोग है, जिसमें शक्तिशाली बीज मंत्रों का 'संपुट' लगाकर मंत्र की ऊर्जा को कई गुना बढ़ा दिया जाता है। यह एक अत्यंत तीव्र और उग्र प्रयोग है।

संस्कृत पाठ:

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ॥

स्रोत: तांत्रिक ग्रंथ।

बीज-रहस्य: इस मंत्र में वैदिक मंत्र के आगे और पीछे (उलटे क्रम में) तीन तांत्रिक बीज हौं, जूं, और सः जोड़े गए हैं।

  • हौं: यह शिव का निष्ठा बीज या आवरण बीज है।
  • जूं: यह 'संजीविनी' बीज है, जो प्राणों को खींचने और जीवंत करने की शक्ति रखता है।
  • सः: यह शक्ति या परम शिव (परा-तत्त्व) का द्योतक है।

यह बीज-संपुट इस मंत्र को एक शांत वैदिक प्रार्थना से एक शक्तिशाली तांत्रिक 'अस्त्र' में परिवर्तित कर देता है, जिसका प्रयोग विशेष रूप से गंभीर संकटों के निवारण हेतु किया जाता है।

3. लघु मृत्युंजय मंत्र

यह मंत्र महामृत्युंजय का संक्षिप्त, तीव्र और प्रभावी स्वरूप है, जो दैनिक जप या विशिष्ट अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त है।

पाठ 1: ॐ जूं सः माम् पालय पालय सः जूं ॐ।

पाठ 2 (केवल बीज): ॐ ह्रौं जूं सः।

अध्याय 3: दैनिक पाठ-विधि (सामान्य साधकों हेतु)

जो साधक सवा लाख जप का पूर्ण पुरश्चरण या अनुष्ठान करने में असमर्थ हैं, वे इस "सरल विकल्प" का पालन करके भी मंत्र का दैनिक लाभ (स्वास्थ्य, शांति और भय-मुक्ति) प्राप्त कर सकते हैं।

समय: मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ समय 'ब्रह्म मुहूर्त' (सूर्योदय से लगभग 1.5 घंटे पहले) माना गया है। यदि यह संभव न हो, तो प्रातः या सायं काल में स्नान के बाद पूजा के समय कर सकते हैं।

स्थान एवं पूजा: अपने पूजा स्थान पर भगवान शिव का चित्र, मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें। एक घृत (घी) या तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करें ।

अभिषेक (वैकल्पिक): यदि शिवलिंग है, तो जप से पूर्व शुद्ध जल और बेलपत्र अर्पित करें। यह मंत्र के प्रभाव को बढ़ाता है।

दिशा: साधक का मुख पूर्वाभिमुख (पूर्व दिशा की ओर) होना चाहिए।

आसन: भूमि पर सीधे न बैठें। कुश का आसन, ऊनी आसन (कंबल) या मृगचर्म (यदि उपलब्ध हो) का प्रयोग करें।

माला: महामृत्युंजय मंत्र के जप के लिए केवल 'रुद्राक्ष' की माला ही सर्वश्रेष्ठ और प्रामाणिक मानी गई है।

जप-संख्या: अपनी सुविधानुसार प्रतिदिन कम से कम एक माला (108 बार) जप करें। यदि समय कम हो, तो 11, 21 या 51 बार भी किया जा सकता है, किन्तु 108 की संख्या पूर्ण मानी जाती है।

नियम एवं निषेध:

  • उच्चारण: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए। बहुत शीघ्रता या जल्दबाजी में जप न करें।
  • ध्वनि: जप को मन-ही-मन (मानसिक जप), बहुत धीमे स्वर (उपांशु जप) में करना चाहिए। चिल्लाकर या सस्वर जप (वैदिक पाठ के अतिरिक्त) नहीं करना चाहिए।
  • एकाग्रता: जप के समय ध्यान पूरी तरह मंत्र पर केंद्रित हो। बीच में किसी से बात न करें।
  • स्थिति: जप सदैव बैठकर ही करें। चलते-फिरते, वाहन चलाते हुए या लेटे हुए मंत्र जप न करें।
  • अपवाद: यदि कोई व्यक्ति अत्यंत गंभीर रोगी है और बैठने में असमर्थ है, तो वह लेटकर भी मानसिक जप कर सकता है।

अध्याय 4: विस्तृत साधना-विधि (अनुष्ठान एवं पुरश्चरण)

गंभीर रोगों, मारक दशाओं, या विशेष कामना-सिद्धि के लिए इस मंत्र का 'अनुष्ठान' या 'पुरश्चरण' किया जाता है। सवा लाख (1,25,000) मंत्र जप का अनुष्ठान मानक माना गया है। यह एक तकनीकी और शास्त्र-सम्मत प्रक्रिया है, जिसे चरण-दर-चरण प्रस्तुत किया जा रहा है।

(अ) पूर्व-तैयारी

किसी शुभ मुहूर्त (जैसे श्रावण मास, शिवरात्रि, प्रदोष) में साधना प्रारंभ करें। स्थान को शुद्ध करें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गुरु, गणेश, और अपने कुल-देवता का पूजन अवश्य करें।

(ब) संकल्प

संकल्प किसी भी साधना का 'बीज' है। यह एक आध्यात्मिक प्रतिज्ञा है जो साधक के लक्ष्य, समय, स्थान और देवता को एक-दूसरे से बाँधती है। हाथ में जल, अक्षत (चावल), पुष्प, एक सिक्का (द्रव्य) और सुपारी लेकर निम्नलिखित (या पुरोहित द्वारा प्रदत्त) संकल्प-पाठ बोलें:

प्रामाणिक संस्कृत संकल्प (उदाहरण):

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो ह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे... (यहाँ पंचांग का विवरण दें, जैसे - जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, अमुक-क्षेत्रे, अमुक-संवत्सरे, अमुक-मासे, अमुक-पक्षे, अमुक-तिथौ, अमुक-वासरे)... अमुक-गोत्रोत्पन्नः अमुक-शर्मा/वर्मा/गुप्तो हं मम आत्मनः श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्तये, मम सकल-आधि-व्याधि-दोष-निवारणार्थम्, अकाल-मृत्यु-भय-नाशार्थम्, दीर्घ-आयुः-आरोग्य-प्राप्त्यर्थम् (अथवा अपनी विशिष्ट कामना बोलें) श्रीमहामृत्युंजय-देव-प्रीत्यर्थम् सवा-लक्ष (1,28,000) संख्यापरिमितं महामृत्युंजय-मंत्र-जप-अनुष्ठानं करिष्ये।

(यह कहकर जल को भूमि पर या एक ताम्र-पात्र में छोड़ दें।)

(स) पवित्रिकरण (न्यास प्रक्रिया)

'न्यास' तांत्रिक साधना का एक अनिवार्य अंग है। यह केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि मंत्र के ऋषि, देवता और शक्ति को अपने शरीर के विभिन्न अंगों में 'स्थापित' करने की प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार, न्यास करने से साधक का नश्वर शरीर उस दिव्य मंत्र को धारण करने के योग्य बनता है। न्यास के बिना की गई साधना अपूर्ण मानी जाती है।

(नोट: निम्नलिखित क्रियाएँ साधक को स्वयं मंत्र बोलते हुए अपने शरीर के अंगों पर स्पर्श करनी होती हैं।)

(द) विनियोग एवं ऋष्यादि न्यास

(हाथ में जल लेकर विनियोग करें और जल छोड़ दें)

विनियोग:

ॐ अस्य श्रीमहामृत्युंजयमंत्रस्य, वसिष्ठ-ऋषिः, अनुष्टुप्-छन्दः, श्रीत्र्यम्बकरुद्रो-देवता, श्रीं-बीजम्, ह्रीं-शक्तिः, कं-कीलकम्, मम-अभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास:

  • ॐ वसिष्ठ-ऋषये नमः, शिरसि। (सिर का स्पर्श करें)
  • ॐ अनुष्टुप्-छन्दसे नमः, मुखे। (मुख का स्पर्श करें)
  • ॐ श्रीत्र्यम्बकरुद्र-देवतायै नमः, हृदि। (हृदय का स्पर्श करें)
  • ॐ श्रीं-बीजाय नमः, गुह्ये। (गुह्य स्थान का स्पर्श करें)
  • ॐ ह्रीं-शक्तये नमः, पादयोः। (दोनों पैरों का स्पर्श करें)
  • ॐ कं-कीलकाय नमः, नाभौ। (नाभि का स्पर्श करें)
  • ॐ विनियोगाय नमः, सर्वाङ्गे। (सभी अंगों का स्पर्श करें)

(य) करन्यास

(मंत्र के भागों को हाथों की उंगलियों में स्थापित करना)

  • ॐ त्र्यम्बकम् - अंगुष्ठाभ्यां नमः। (दोनों अंगूठों का स्पर्श करें)
  • ॐ यजामहे - तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों का स्पर्श करें)
  • ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं - मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों मध्यमा उंगलियों का स्पर्श करें)
  • ॐ उर्वारूकमिव बन्धनात् - अनामिकाभ्यां नमः। (दोनों अनामिका उंगलियों का स्पर्श करें)
  • ॐ मृत्योर्मुक्षीय - कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (दोनों कनिष्ठिका उंगलियों का स्पर्श करें)
  • ॐ मामृतात् - करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (दोनों हथेलियों और उनके पृष्ठ भाग का स्पर्श करें)

(र) हृदयादि न्यास (षडंग न्यास)

(मंत्र के भागों से शरीर के छः प्रमुख अंगों का पवित्रीकरण)

  • ॐ त्र्यम्बकं - हृदयाय नमः। (हृदय का स्पर्श करें)
  • ॐ यजामहे - शिरसे स्वाहा। (सिर का स्पर्श करें)
  • ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं - शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें)
  • ॐ उर्वारूकमिव बन्धनात् - कवचाय हुं। (दोनों कंधों/भुजाओं का स्पर्श करें)
  • ॐ मृत्योर्मुक्षीय - नेत्रत्रयाय वौषट्। (दोनों नेत्रों और तृतीय नेत्र (भौंहों के मध्य) का स्पर्श करें)
  • ॐ मामृतात् - अस्त्राय फट्। (सिर के ऊपर से हाथ घुमाकर चुटकी बजाएं)

(ल) ध्यान (Dhyana)

न्यास द्वारा देवता को शरीर में स्थापित करने के बाद, उनके दिव्य स्वरूप का मानसिक चित्रण किया जाता है।

ध्यान श्लोक (संस्कृत):

हस्ताम्भोज-युगस्थ-कुम्भयुगलाद्-उद्धृत्य तोयं शिरः
सिञ्चन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ।
अक्षस्रङ्मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थ-चन्द्र-स्रवत् !
पीयूषोत्र-तनुं भजे सगिरिजं मृत्युञ्जयं त्र्यम्बकम्

मानसिक चित्रण: इस श्लोक के अनुसार साधक को ध्यान करना चाहिए कि, भगवान मृत्युंजय (शिव) श्वेत कमल पर माता पार्वती (सगिरिजं) के साथ विराजमान हैं। उनके मस्तक पर स्थित चन्द्रमा से अमृत (पीयूष) बह रहा है। वे अपने आठ हाथों में से दो मुख्य हाथों से अमृत-कलश धारण किए हुए हैं, और दो अन्य हाथों से कलश लेकर अपना ही अभिषेक (सिञ्चन्तं) कर रहे हैं, तथा अन्य हाथों में रुद्राक्ष-माला (अक्षस्रक्) और मृग-मुद्रा धारण किए हुए हैं। ऐसे त्रिनेत्र, अमृतमय, शांत-स्वरूप भगवान मृत्युंजय का ध्यान करें।

(व) पूजन-क्रम

ध्यान के बाद, भगवान शिव का पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) या षोडशोपचार पूजन करें। महामृत्युंजय अनुष्ठान में 'पार्थिव पूजन' (मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजन करना) का विशेष महत्व है।

(श) जप और पुरश्चरण

पूजन के उपरांत, रुद्राक्ष माला पर मंत्र का जप प्रारंभ करें। 'सवा लाख' (1,25,000) के पूर्ण अनुष्ठान के लिए, मंत्र सिद्धि हेतु 'पुरश्चरण' का विधान अनिवार्य है। पुरश्चरण के पाँच अंग होते हैं।

  • जप: निर्धारित संख्या (उदा. 1,25,000)।
  • हवन: जप संख्या का दशांश (1/10), अर्थात् 12,500 आहुतियाँ।
  • तर्पण: हवन संख्या का दशांश (1/10), अर्थात् 12,50 तर्पण।
  • मार्जन: तर्पण संख्या का दशांश (1/10), अर्थात् 125 मार्जन।
  • ब्राह्मण भोजन: मार्जन संख्या का दशांश (1/10), अर्थात् 13 (या यथाशक्ति) ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा।

हवन सामग्री: हवन के लिए 'तिल', 'चावल' (अक्षत), 'जौ', 'गुड़' और 'घी' इन पाँच सामग्रियों का मिश्रण प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है।

विशेष विकल्प: यदि साधक किसी कारणवश हवन करने में पूर्णतः असमर्थ हो, तो शास्त्रों में विकल्प दिया गया है कि वह जप संख्या का दशांश (अर्थात् 12,500 मंत्र) अतिरिक्त जप करे।

तालिका १: महामृत्युंजय पुरश्चरण विधान (1,25,000 जप पर आधारित)

अंग क्रिया संख्या (लगभग)
1. जप महामृत्युंजय मंत्र का जप 1,25,000
2. हवन जप का दशांश (1/10) 12,500 आहुतियाँ
3. तर्पण हवन का दशांश (1/10) 1,250 तर्पण
4. मार्जन तर्पण का दशांश (1/10) 126 मार्जन
5. ब्राह्मण भोजन मार्जन का दशांश (1/10) 13 ब्राह्मण (या यथाशक्ति)

(ष) जप समर्पण एवं क्षमा-प्रार्थना

अनुष्ठान के अंत में (अथवा यदि अनुष्ठान कई दिनों का है, तो प्रतिदिन के जप के अंत में) हाथ में जल लेकर किए गए जप के फल को भगवान को समर्पित करना अनिवार्य है।

समर्पण मंत्र:

ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादान्महेश्वर

जलांजलि (जल छोड़ना):

अनेन श्रीमहामृत्युंजय-जपाख्येन कर्मणा, भगवान् श्रीसाम्बसदाशिवः प्रीयताम् नमः।

(यह कहकर जल और अक्षत भगवान के चित्र या शिवलिंग के सामने छोड़ दें।)

इसके पश्चात् भगवान से अनजाने में हुई भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें।

अंतिम निष्कर्ष

यह संकलन शास्त्रों के आधार पर "महाकाल मंत्र साधना" और "काल विजयी शिव मंत्रों" का एक समग्र और प्रामाणिक विवरणी प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। इसका उद्देश्य साधक को एक "प्रमाणिक मानचित्र" प्रदान करना है। तथापि, इस आध्यात्मिक यात्रा को पूर्ण करने और 'काल' पर 'विजय' की सिद्धि प्राप्त करने के लिए, एक योग्य और सिद्ध 'गुरु' का सान्ध्य, उनका मार्गदर्शन और उनकी दीक्षा ही एकमात्र सुरक्षित और प्रभावी मार्ग है।


महाकाल मृत्युंजय साधना पुरश्चरण न्यास संकल्प रुद्राक्ष त्र्यम्बकम् बीज वैदिक