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पढ़िए कौन हैं राधा रानी? क्या भागवत में उनका उल्लेख है और पुराण क्या कहते हैं उनके बारे में?

पढ़िए कौन हैं राधा रानी? क्या भागवत में उनका उल्लेख है और पुराण क्या कहते हैं उनके बारे में?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

भागवत में राधा नाम की अद्भुत महिमा: कृपालु जी महाराज के प्रवचन का संपूर्ण विवरण।

राधा नाम का प्रश्न: भागवत में उल्लेख का रहस्य।

कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि भागवत में श्री राधा का नाम क्यों नहीं है, यह एक बड़ी जिज्ञासा है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं है। भागवत में श्री राधा का उल्लेख स्पष्ट रूप से कई जगहों पर हुआ है, परंतु वह प्रत्यक्ष नाम के बजाय पर्यायवाची शब्दों या भावों के रूप में प्रकट होता है।

1. भागवत में राधा का प्रत्यक्ष नाम।

भागवत पुराण में निम्नलिखित श्लोक राधा के नाम का सीधा उल्लेख करते हैं:

  • “राधास्वराधसा ब्रह्मणी रंस्यते नमः”
    यह तृतीय स्कंध के द्वितीय अध्याय का 21वां श्लोक है। इसमें राधा का स्पष्ट नाम दिया गया है।
  • योगमाया: राधा का एक अन्य नाम योगमाया है। योगमाया का उल्लेख 10वें स्कंध के 29वें अध्याय के पहले श्लोक में है:
  • “भगवान पितरत्री शारदोद फुल्ल मल्लिका भिक्षारन्तु मनश्चक्र योगमायामुपाश्रिता।”

    इस श्लोक में योगमाया का तात्पर्य श्री राधा से है।

2. राधा का अप्रत्यक्ष उल्लेख और पर्यायवाची शब्द।

भागवत में कई पर्यायवाची शब्दों के माध्यम से राधा का उल्लेख मिलता है। उदाहरण:

  • गोपिका: श्री राधा को गोपिका के रूप में संबोधित किया गया है।
  • रमापति का संदेश: जब उद्धव गोकुल में गोपियों के पास संदेश लेकर गए, तो गोपियों ने श्री कृष्ण को ‘रमापति’ कहकर संबोधित किया:
  • “हे रामनाथ, हे कृष्णनाथ, वृजनाथ आरति नाशन”

    यह दशम स्कंध के 47वें अध्याय का श्लोक है, जिसमें गोपियों ने श्रीकृष्ण के लिए अपने गहरे प्रेम का वर्णन किया है।

  • राधिता:
  • “अनया राधितोनूं भगवान हरिरीश्वर”

    यह 10वें स्कंध के 30वें अध्याय का 28वां श्लोक है । इसमें स्पष्ट है कि गोपियां कह रही हैं कि राधा ने भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी आराधना की है।

3. अन्य पुराणों में राधा का उल्लेख।

भागवत के अलावा, अन्य प्रमुख पुराणों में राधा का उल्लेख किया गया है:

  • पद्म पुराण:
  • “राधा वा मानसंबूता महालक्ष्मी प्रकृतिता”
    “राधा की कला से अनगिनत देवियां उत्पन्न हुईं।”
  • मत्स्य पुराण:
  • “राधा वृन्दा बने मंथे वृन्दावन”
  • देवी भागवत पुराण:
  • “राधनो तिसकलान कामान तस्मात राधा प्रकृतिता”

4. श्रीकृष्ण के साथ राधा की लीलाएं।

भागवत में श्रीकृष्ण और राधा की लीलाओं का वर्णन भी अप्रत्यक्ष रूप से मिलता है। गोपियों के साथ रासलीला और उनके प्रेम के दौरान राधा की महिमा को भावनाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।

महाभाव और गोपियों का संवाद।

  • गोपियों के भाव:
  • “याम गोपी मनयत कृष्ण विहाय अन्य स्त्रियो बाने।”

    गोपियों का यह भाव बताता है कि राधा ही श्रीकृष्ण के हृदय का मूल हैं।

  • महाविष्णु का प्रकट होना: एक प्रसंग में, गोपियों ने जब श्रीकृष्ण के विरह में महाविष्णु को देखा, तो उन्होंने पहचानने से इनकार कर दिया। यह बताता है कि उनके लिए केवल श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम ही सच्चा है।

5. राधा के 28 नाम।

उपनिषदों और पुराणों में राधा के 28 नाम दिए गए हैं, जो उनकी महिमा को और बढ़ाते हैं। इनमें से प्रमुख नाम हैं:

  • योगमाया
  • गोपी
  • रमापति
  • महालक्ष्मी

6. श्री राधा की आध्यात्मिक महिमा।

कृपालु जी महाराज ने बताया कि राधा केवल श्रीकृष्ण की सहचरी नहीं हैं, बल्कि वे उनकी पराशक्ति और संपूर्ण ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति हैं।

  • “श्री” का अर्थ: राधा को भागवत में कई बार ‘श्री’ कहकर संबोधित किया गया है।
  • “श्रीजी का मंदिर”: श्री का अर्थ राधा है, न कि महालक्ष्मी।

7. भागवत का अंतिम संदेश।

कृपालु जी महाराज ने इस प्रवचन में बताया कि राधा-कृष्ण का प्रेम केवल सांसारिक प्रेम नहीं है, यह आत्मा और परमात्मा का दिव्य संबंध है। राधा भागवत के हर अध्याय में किसी न किसी रूप में उपस्थित हैं।

“राधा शब्द का अर्थ है समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली शक्ति।”

निष्कर्ष।

इस प्रवचन में कृपालु जी महाराज ने स्पष्ट किया कि भागवत में राधा का नाम हर अध्याय, हर श्लोक और हर भावना में समाहित है। प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष , राधा के बिना श्रीकृष्ण की लीला अधूरी है।

यह प्रवचन सभी भक्तों को प्रेरित करता है कि वे राधा-कृष्ण की महिमा को समझें और अपने जीवन में प्रेम, भक्ति और समर्पण का महत्व जानें।

श्री राधे राधे।


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पढ़ें: भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण और भक्त प्रह्लाद के बीच क्यों हुआ था वो भीषण युद्ध?
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पढ़िए कौन हैं राधा रानी? क्या भागवत में उनका उल्लेख है और पुराण क्या कहते हैं उनके बारे में?

पढ़िए कौन हैं राधा रानी? क्या भागवत में उनका उल्लेख है और पुराण क्या कहते हैं उनके बारे में?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

भागवत में राधा नाम की अद्भुत महिमा: कृपालु जी महाराज के प्रवचन का संपूर्ण विवरण।

राधा नाम का प्रश्न: भागवत में उल्लेख का रहस्य।

कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि भागवत में श्री राधा का नाम क्यों नहीं है, यह एक बड़ी जिज्ञासा है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं है। भागवत में श्री राधा का उल्लेख स्पष्ट रूप से कई जगहों पर हुआ है, परंतु वह प्रत्यक्ष नाम के बजाय पर्यायवाची शब्दों या भावों के रूप में प्रकट होता है।

1. भागवत में राधा का प्रत्यक्ष नाम।

भागवत पुराण में निम्नलिखित श्लोक राधा के नाम का सीधा उल्लेख करते हैं:

  • “राधास्वराधसा ब्रह्मणी रंस्यते नमः”
    यह तृतीय स्कंध के द्वितीय अध्याय का 21वां श्लोक है। इसमें राधा का स्पष्ट नाम दिया गया है।
  • योगमाया: राधा का एक अन्य नाम योगमाया है। योगमाया का उल्लेख 10वें स्कंध के 29वें अध्याय के पहले श्लोक में है:
  • “भगवान पितरत्री शारदोद फुल्ल मल्लिका भिक्षारन्तु मनश्चक्र योगमायामुपाश्रिता।”

    इस श्लोक में योगमाया का तात्पर्य श्री राधा से है।

2. राधा का अप्रत्यक्ष उल्लेख और पर्यायवाची शब्द।

भागवत में कई पर्यायवाची शब्दों के माध्यम से राधा का उल्लेख मिलता है। उदाहरण:

  • गोपिका: श्री राधा को गोपिका के रूप में संबोधित किया गया है।
  • रमापति का संदेश: जब उद्धव गोकुल में गोपियों के पास संदेश लेकर गए, तो गोपियों ने श्री कृष्ण को ‘रमापति’ कहकर संबोधित किया:
  • “हे रामनाथ, हे कृष्णनाथ, वृजनाथ आरति नाशन”

    यह दशम स्कंध के 47वें अध्याय का श्लोक है, जिसमें गोपियों ने श्रीकृष्ण के लिए अपने गहरे प्रेम का वर्णन किया है।

  • राधिता:
  • “अनया राधितोनूं भगवान हरिरीश्वर”

    यह 10वें स्कंध के 30वें अध्याय का 28वां श्लोक है । इसमें स्पष्ट है कि गोपियां कह रही हैं कि राधा ने भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी आराधना की है।

3. अन्य पुराणों में राधा का उल्लेख।

भागवत के अलावा, अन्य प्रमुख पुराणों में राधा का उल्लेख किया गया है:

  • पद्म पुराण:
  • “राधा वा मानसंबूता महालक्ष्मी प्रकृतिता”
    “राधा की कला से अनगिनत देवियां उत्पन्न हुईं।”
  • मत्स्य पुराण:
  • “राधा वृन्दा बने मंथे वृन्दावन”
  • देवी भागवत पुराण:
  • “राधनो तिसकलान कामान तस्मात राधा प्रकृतिता”

4. श्रीकृष्ण के साथ राधा की लीलाएं।

भागवत में श्रीकृष्ण और राधा की लीलाओं का वर्णन भी अप्रत्यक्ष रूप से मिलता है। गोपियों के साथ रासलीला और उनके प्रेम के दौरान राधा की महिमा को भावनाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।

महाभाव और गोपियों का संवाद।

  • गोपियों के भाव:
  • “याम गोपी मनयत कृष्ण विहाय अन्य स्त्रियो बाने।”

    गोपियों का यह भाव बताता है कि राधा ही श्रीकृष्ण के हृदय का मूल हैं।

  • महाविष्णु का प्रकट होना: एक प्रसंग में, गोपियों ने जब श्रीकृष्ण के विरह में महाविष्णु को देखा, तो उन्होंने पहचानने से इनकार कर दिया। यह बताता है कि उनके लिए केवल श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम ही सच्चा है।

5. राधा के 28 नाम।

उपनिषदों और पुराणों में राधा के 28 नाम दिए गए हैं, जो उनकी महिमा को और बढ़ाते हैं। इनमें से प्रमुख नाम हैं:

  • योगमाया
  • गोपी
  • रमापति
  • महालक्ष्मी

6. श्री राधा की आध्यात्मिक महिमा।

कृपालु जी महाराज ने बताया कि राधा केवल श्रीकृष्ण की सहचरी नहीं हैं, बल्कि वे उनकी पराशक्ति और संपूर्ण ब्रह्मांड की आधारभूत शक्ति हैं।

  • “श्री” का अर्थ: राधा को भागवत में कई बार ‘श्री’ कहकर संबोधित किया गया है।
  • “श्रीजी का मंदिर”: श्री का अर्थ राधा है, न कि महालक्ष्मी।

7. भागवत का अंतिम संदेश।

कृपालु जी महाराज ने इस प्रवचन में बताया कि राधा-कृष्ण का प्रेम केवल सांसारिक प्रेम नहीं है, यह आत्मा और परमात्मा का दिव्य संबंध है। राधा भागवत के हर अध्याय में किसी न किसी रूप में उपस्थित हैं।

“राधा शब्द का अर्थ है समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली शक्ति।”

निष्कर्ष।

इस प्रवचन में कृपालु जी महाराज ने स्पष्ट किया कि भागवत में राधा का नाम हर अध्याय, हर श्लोक और हर भावना में समाहित है। प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष , राधा के बिना श्रीकृष्ण की लीला अधूरी है।

यह प्रवचन सभी भक्तों को प्रेरित करता है कि वे राधा-कृष्ण की महिमा को समझें और अपने जीवन में प्रेम, भक्ति और समर्पण का महत्व जानें।

श्री राधे राधे।


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