पारद शिवलिंग: असली की पहचान और पूजा विधि !
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AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।खण्ड 1: सामान्य साधकों हेतु सरल दैनिक पूजन विधि (गृहस्थ)
जो साधक उपरोक्त जटिल तांत्रिक या पौराणिक विधान करने में असमर्थ हैं, वे पारद शिवलिंग की एक अत्यंत सरल दैनिक पूजा से भी अक्षय पुण्य और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
स्थापना: योनिका का मुख उत्तर दिशा की ओर और साधक का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
सरल दैनिक क्रम (5 से 10 मिनट):
- प्रतिदिन प्रातः स्नान के पश्चात्, शुद्ध जल अथवा दुग्ध-मिश्रित जल (कच्चा दूध और जल) से पारद शिवलिंग पर अभिषेक करें।
- अभिषेक करते समय, शिव-पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय का 5 से 10 मिनट तक निरंतर जाप करते रहें।
- अभिषेक के बाद शिवलिंग को एक स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर उन पर चन्दन अथवा विभूति (भस्म) का त्रिपुंड तिलक लगाएं।
- एक बिल्व पत्र (यदि उपलब्ध हो) और जो भी श्वेत पुष्प या मौसमी पुष्प उपलब्ध हों, उन्हें अर्पित करें।
- भगवान के सम्मुख घी का एक दीपक और धूप (अगरबत्ती) प्रज्वलित करें।
- नैवेद्य (भोग) के रूप में चीनी, मिश्री, बताशे या किसी भी मौसमी फल का भोग लगाएं।
- घंटी बजाते हुए संक्षिप्त आरती करें और पूजा में हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा-प्रार्थना करें।
गृहस्थों के लिए विशेष आश्वासन
गृहस्थ साधकों के मन में प्रायः यह भय होता है कि यदि वे नित्य पूजा नहीं कर पाए तो दोष लगेगा। पारद शिवलिंग के विषय में शास्त्र और अनुभवसिद्ध मत स्पष्ट करते हैं कि यदि आप किसी कारणवश (यात्रा, अस्वस्थता आदि) यह नित्य पूजा नहीं भी कर पाते हैं, तो भी पारद शिवलिंग का किसी भी प्रकार का दोष नहीं लगता है। यह शिवलिंग (अन्य कई विग्रहों के विपरीत) दंडित नहीं करता, यह केवल कृपा प्रदान करता है।
खण्ड 2: साधना के नियम, निषेध एवं अनिवार्य सावधानियाँ
पारद शिवलिंग की साधना जितनी फलदायी है, उतनी ही संवेदनशील भी है। साधक की आध्यात्मिक, भौतिक और रासायनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन नियमों का पालन अनिवार्य है।
1. आध्यात्मिक एवं तांत्रिक सावधानी (सर्वप्रमुख)
गुरु की अनिवार्यता:'तांत्रिक' और 'बीज मंत्र' युक्त साधनाएं, बिना गुरु-दीक्षा के कभी भी प्रारम्भ न करें। ये शक्तिशाली मंत्र ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं का आवाहन करते हैं, जिन्हें संभालने और दिशा देने के लिए गुरु की शक्ति अनिवार्य है। अनियंत्रित ऊर्जा लाभ की जगह हानि, भय या मानसिक असंतुलन पैदा कर सकती है।
2. भौतिक एवं रासायनिक सावधानी ('स्वर्ण भक्षी')
स्वर्ण का निषेध: पारद शिवलिंग को कभी भी सोने (Gold) के आभूषण (अंगूठी, चेन), स्वर्ण पत्र, या सोने की प्लेट से स्पर्श न कराएं।
वैज्ञानिक कारण: 'दीपन' संस्कार द्वारा सिद्ध किया गया पारद 'स्वर्ण भक्षी' होता है। यह सोने के संपर्क में आते ही उसे 'खा' जाता है , जिससे आपका आभूषण और सिद्ध शिवलिंग दोनों खंडित और अशुद्ध हो जाएंगे।
3. आनुष्ठानिक (Ritual) सावधानी
- लौह/स्टील का निषेध: पारद शिवलिंग को कभी भी लोहे या स्टील की प्लेट/वेदी पर स्थापित न करें। इन धातुओं को पूजन में 'तामसिक' माना गया है।
- आधार धातु: शिवलिंग की स्थापना हेतु केवल तांबा या पीतल अथवा चांदी की वेदी का ही प्रयोग करें।
- आचरण की शुद्धता: जिस घर में प्राण-प्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित किया गया हो, वहां मांस-मदिरा का सेवन और अनैतिक (कलह, व्यभिचार) कार्य पूर्णतः वर्जित हैं।
- रुद्राक्ष: पारद शिवलिंग के साथ रुद्राक्ष रखना अनिवार्य माना गया है, इससे शिवलिंग का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
4. प्रामाणिकता की पहचान
बाज़ार में उपलब्ध अधिकांश सस्ते शिवलिंग सीसा, जस्ता या अन्य धातुओं के मिश्रण से बने होते हैं , जो न केवल निष्प्रभावी होते हैं, बल्कि विषैले भी हो सकते हैं।
असली पारद शिवलिंग की पहचान:
- अत्यधिक वजन: असली, शुद्ध पारद शिवलिंग अपने आकार की तुलना में असाधारण रूप से भारी होता है।
- रंग एवं घर्षण: यह अत्यंत चमकदार, चांदी जैसा होता है। इसे हथेली पर या सफेद कपड़े पर घिसने पर कालिख नहीं निकलती , या केवल हल्का-सा चांदी जैसा निशान आता है, काला नहीं।
- चुम्बकीय गुण: शुद्ध पारद शिवलिंग 'अचुम्बकीय' होता है।
स्वर्ण-परीक्षण: यदि संदेह हो, तो शिवलिंग पर क्षण भर के लिए शुद्ध स्वर्ण स्पर्श कराएं (यह परीक्षण केवल विशेषज्ञ की देखरेख में करें)। यदि शिवलिंग शुद्ध है, तो वह स्वर्ण पर हल्का सफेद निशान छोड़ देगा या स्वर्ण को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करेगा।
खण्ड 3: निष्कर्ष
यह प्रामाणिक संकलन 'रसार्णव तंत्र', 'रसरत्नसमुच्चय', 'शिव पुराण' और 'रुद्रयामल तंत्र' जैसे विभिन्न प्रामाणिक ग्रंथों के आधार पर पारद शिवलिंग के 'रसशास्त्र' (निर्माण की गुह्य विधि) और 'तंत्र' (पूजन की चमत्कारिक साधना) को एक साथ प्रस्तुत करता है।
शास्त्रीय प्रमाणों से यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि 'रसलिंग' की महिमा सर्वोच्च है और 'शिवनिर्णय रत्नाकर' के वचन "रसात्परतरं लिङ्गं न् भूतो न भविष्यति" (पारद से श्रेष्ठ लिंग न हुआ है और न होगा) इस तथ्य की पुष्टि करते हैं।
- प्रामाणिकता: साधक का शिवलिंग शुद्ध, अष्ट-संस्कारित और चैतन्य होना चाहिए।
- सावधानी: साधक को दो प्रमुख नियमों का सदैव पालन करना चाहिए— पहला, तीव्र तांत्रिक साधनाएं केवल 'गुरु-निर्देशन' में ही करें, और दूसरा, शिवलिंग को 'स्वर्ण' से कभी स्पर्श न कराएं।
इन मर्यादाओं का पालन करते हुए जो भी साधक 'पारदेशर' की शरण में जाता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति सहज ही हो जाती है।