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कर्ज मुक्ति का 'रामबाण' उपाय: प्रदोष काल में चुपचाप बोलें ये गुप्त मंत्र !

AI सारांश (Summary)

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कर्ज मुक्ति का 'रामबाण' उपाय: प्रदोष काल में चुपचाप बोलें ये गुप्त मंत्र !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

प्रदोष-वेला-रहस्यम्: शिव मंत्र एवं संपूर्ण साधना-विधान

भूमिका: यह शोध-पत्र केवल एक लेख नहीं, अपितु शिवपुराण, स्कंदपुराण, प्रदोष-कल्प तथा आगम-शास्त्रों में वर्णित 'प्रदोष-काल' की महिमा और साधना का एक प्रामाणिक 'साधना-कल्प' है।

'प्रदोष' अर्थात् 'दोषों का शमन' करने वाली पवित्र वेला। यह वह दिव्य काल है जब भगवान शिव, जो ब्रह्मांड का हलाहल विष पीकर नीलकंठ कहलाये, उसी विष-ऊर्जा को परमानंद में परिवर्तित कर 'आनंद-तांडव' करते हैं। इस संकलन का उद्देश्य साधक को प्रदोष-काल के गूढ़ रहस्यों से परिचित कराना तथा उन गोपनीय एवं दुर्लभ मंत्रों को अक्षरशः, शुद्ध और संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना है, जिनकी साधना से जीवन के समस्त दोषों—चाहे वे पाप-कर्म हों, पितृ-दोष हों या शनि जैसे ग्रह-दोष—का निवारण कर तीव्र शिव-कृपा, मनोकामना-सिद्धि और अंततः परम-गति प्राप्त की जा सकती है। यहाँ प्रस्तुत प्रत्येक विधि और मंत्र शास्त्र-प्रमाणित एवं साधना-योग्य है।

अध्याय 1: अर्थ और भावार्थ - प्रदोषकाल की ऊर्जा, मंत्र-संयोग और शिव-तत्त्व

प्रदोष-काल की साधना का आधार उस काल की विशिष्ट ऊर्जा-संरचना में निहित है। यह समझना अनिवार्य है कि यह समय इतना शक्तिशाली क्यों माना गया है।

1.1: प्रदोष काल का शास्त्रीय अर्थ एवं काल-निर्णय

'प्रदोष' (प्र+दोष) शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'दोषों का निवारण' या 'रात्रि का आरम्भ'। यह दिन और रात्रि का पवित्र संधिकाल है।

शास्त्रीय गणना के अनुसार, प्रदोष काल का समय स्थानीय 'सूर्यास्त' पर आधारित होता है। प्रामाणिक प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट (लगभग 2 घटी) पूर्व आरम्भ होकर सूर्यास्त के 45 मिनट पश्चात् तक रहता है। इस प्रकार, यह कुल 90 मिनट (अर्थात् 1.5 घंटे) की समयावधि होती है।

यद्यपि कुछ पंचांगों में किसी विशेष दिन यह मुहूर्त दो घंटे से अधिक का भी दिख सकता है , या सामान्य तौर पर सूर्यास्त से 30-35 मिनट पहले और बाद का समय भी कहा जाता है , तथापि साधक के लिए सबसे शुद्ध और शास्त्र-सम्मत गणना 90 मिनट की ही है। साधक को अपने स्थानीय सूर्यास्त के समय के अनुसार इस 90 मिनट के 'कोर' समय को ही प्रदोष-काल मानकर साधना आरम्भ करनी चाहिए।

1.2: गूढ़ पौराणिक रहस्य – विषपान एवं आनंद तांडव

प्रदोष-काल का गूढ़ रहस्य 'शिव पुराण' और 'स्कंद पुराण' में वर्णित 'समुद्र मंथन' की कथा में निहित है।

  • विषपान-काल: जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब अमृत से पूर्व ब्रह्मांड का सबसे घातक 'हलाहल' विष उत्पन्न हुआ। जब यह विष सृष्टि का नाश करने लगा, तब समस्त लोकों की रक्षा हेतु, भगवान शिव ने 'त्रयोदशी तिथि' के दिन, इसी 'प्रदोष काल' में, उस संपूर्ण विष का पान कर लिया।
  • नीलकंठ और आनंद-तांडव: उस विष को उन्होंने अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे 'नीलकंठ' कहलाये। विषपान के उपरांत, भगवान शिव को कष्ट होने के बजाय, उन्होंने उस परम-नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर समाहित कर लिया और परमानंद की स्थिति में प्रवेश कर गए।

भावार्थ : प्रदोष काल वह समय है जब शिव ने ब्रह्मांड की संपूर्ण नकारात्मकता (विष/दोष) को आत्मसात कर उसे परमानंद में परिवर्तित कर दिया। यह रूपांतरण उनके 'आनंद तांडव' के रूप में कैलाश पर्वत पर प्रकट हुआ, जिसे देखने के लिए समस्त देवता उपस्थित थे। साधक के लिए इसका भावार्थ यह है कि यह 90 मिनट की अवधि एक 'अलकेमिकल विंडो' है। इस समय, साधक द्वारा की गई साधना और मंत्र-जाप, उसके अपने जीवन के 'विष' (कर्म-दोष, पाप, बाधाएं, रोग, दुःख) को शिव-तत्त्व में विलीन कर, उसे आनंद और सफलता में रूपांतरित करने की सर्वाधिक क्षमता रखते हैं।

1.3: दिव्य ऊर्जा-संयोग एवं शिव-तत्त्व की जागृति

प्रदोष काल में ब्रह्मांडीय ऊर्जा अपने चरम पर होती है, क्योंकि यह 'शिव-तत्त्व' के पूर्ण जागरण का काल है। शिव पुराण के अनुसार, इस समय भगवान शिव, माता पार्वती के साथ, अपने वाहन नंदी पर विराजमान होकर प्रसन्न मुद्रा में त्रिलोक का भ्रमण करते हैं।

अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः ।
तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः ॥
अर्थ: "इसलिए प्रदोष के समय, केवल भगवान शिव ही पूजनीय हैं, अन्य कोई (जैसे हरि-विष्णु या पद्मज-ब्रह्मा) नहीं। क्योंकि उस एक महेश की विधिपूर्वक पूजा करने से, अन्य सभी देवता (जो उस समय शिव की सेवा में उपस्थित होते हैं) स्वतः ही प्रसन्न हो जाते हैं।"

अध्याय 2: प्रमुख प्रदोष-काल मंत्र संग्रह (संपूर्ण पाठ, हिंदी अर्थ एवं स्रोत सहित)

यहाँ प्रदोष काल में जपने योग्य उन विशिष्ट मंत्रों का संपूर्ण और शुद्ध पाठ, उनके गूढ़ अर्थ और शास्त्रीय स्रोत सहित प्रस्तुत किया जा रहा है।

2.1: आधार एवं सर्व-सिद्धि मंत्र

1. शिव पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय ॥
विवेचन: यह पंचाक्षर (पाँच अक्षर) मंत्र न, म, शि, वा, य - पञ्च-तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। 'ॐ' के साथ जुड़कर यह शिव की चेतना से साधक को एकाकार करता है।
2. महामृत्युंजय मंत्र ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
विवेचन: प्रदोष-काल का सीधा संबंध शिव द्वारा 'मृत्यु' (विष) पर विजय पाने से है, अतः यह मंत्र इस काल का कवच-मंत्र है।
3. शिव गायत्री मंत्र ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
4. उमा-महेश्वर मंत्र ॐ उमा सहित शिवाय नमः ॥
विवेचन: यह मंत्र विशेष रूप से पारिवारिक सुख, सौभाग्य और शिव-पार्वती दोनों की संयुक्त कृपा-प्राप्ति के लिए है।

2.2: स्कंद-पुराणोक्त दुर्लभ 'प्रदोष स्तोत्राष्टकम्'

यह स्तोत्र प्रदोष-महिमा का सर्वोच्च उद्घोष है।

सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रवीमि सारं ब्रवीम्युपनिषद्धृदयं ब्रवीमि ।
संसारमुल्बणमसारमवाप्य जन्तोः सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा ॥
भावार्थ: "(सूत जी कहते हैं) मैं सत्य कहता हूँ, मैं परलोक के हित की बात कहता हूँ... इस भयंकर और असार संसार में जन्म लेकर, प्राणी के लिए एकमात्र सार-वस्तु भगवान ईश्वर (शिव) के चरण-कमलों की सेवा ही है॥

(शेष श्लोक और भावार्थ मूल पाठ के अनुसार पूर्णतः सम्मिलित हैं, यहाँ स्थान की मर्यादा हेतु संक्षेप में संकेतित हैं।)

॥ इति श्रीस्कान्दोक्तं प्रदोषस्तोत्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

2.3: 'प्रदोष स्तोत्रम्' (दारिद्र्य एवं ऋण-मोचन हेतु)

जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत । जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥

(दारिद्र्य एवं ऋण-मुक्ति हेतु विशेष श्लोक):

महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च ॥
महाशोकनिविष्टस्य महा
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः ।
ग्रहैःप्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥
भावार्थ: "हे शंकर! मैं महा-दारिद्र्य में डूबा हुआ हूँ... ऋण के भार से दबा हुआ हूँ... मुझ पर आप प्रसन्न हूजिए॥"
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

2.4: रुद्रयामल एवं आगमिक परंपरा के गोपनीय मंत्र

'रुद्रयामल' परंपरा से दो अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली मंत्र:

1. पिंगल रुद्र मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं सर्व मंगलाय पिंगलाय ॐ नमः ॥
गूढ़ विवेचन: श्रीं (ऐश्वर्य), ह्रीं (शक्ति), पिंगलाय (सूर्य नाड़ी शुद्धि)।
2. वृषभारूढ़ गौरी-पति मंत्र ऊँ क्लीं क्लीं क्लीं वृषभारूढ़ाय वामांगे गौरी कृताय क्लीं क्लीं क्लीं ऊँ नमः शिवाय ॥
गूढ़ विवेचन: क्लीं (काम-बीज) संपुटित। यह मंत्र तीव्र 'मनोकामना-सिद्धि' और 'सौभाग्य-प्राप्ति' के लिए है।

अध्याय 3: मंत्र-जप एवं पाठ-विधि (विनियोग)

3.1: शुद्धिकरण (Purification)

  • आत्म-शुद्धि मंत्र: ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
  • आसन-शुद्धि मंत्र: ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रां कुरु चासनम् ॥
  • माला-शुद्धि मंत्र: ओम ऐं श्री अक्षमालाए नमः ॥

3.2: जप-विधान एवं नियम

समय: स्थानीय सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व से 45 मिनट पश्चात् तक।
दिशा: उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण)।
आसन: कुशा का आसन सर्वश्रेष्ठ।
माला: रुद्राक्ष की माला।
जप-संख्या: कम से कम 108 बार (एक माला)।

3.3: नियम-निषेध

प्रदोष व्रत के दिन अन्न का त्याग करें (फलाहार लें)। क्रोध न करें, ब्रह्मचर्य का पालन करें और मौन रखें। यह साधना केवल सात्त्विक उद्देश्यों के लिए है; तामसिक प्रयोग वर्जित हैं।

अध्याय 4: संपूर्ण प्रदोष साधना-विधि (आगमिक क्रमवार प्रक्रिया)

4.1: प्रथम चरण - संकल्प

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । अद्य ... (मास, पक्ष, तिथि, वार) ... गोत्रोत्पन्नः ... अहं ... मम सकुटुम्बस्य श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-पुण्य-फलप्राप्त्यर्थं, मम जीवने समस्त-दोष-निवारणार्थं, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-फलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वर-प्रीत्यर्थं प्रदोष-काले शिव-पार्वती-पूजनं स-नंदी-पूजनं च करिष्ये ॥

4.2: द्वितीय चरण - आवाहन एवं शिव-पंचोपचार पूजन

आगमिक मंत्रों के साथ पंचोपचार पूजा करें:

  • गन्धं: ॐ लं पृथिव्यात्मने गन्धं समर्पयामि ॥
  • पुष्पं: ॐ हं आकाशात्मने पुष्पं समर्पयामि ॥
  • धूपं: ॐ यं वाय्वात्मने धूपं आघ्रापयामि ॥
  • दीपं: ॐ रं अग्न्यात्मने दीपं दर्शयामि ॥
  • नैवेद्यं: ॐ वं अमृतात्मने नैवेद्यं निवेदयामि ॥

4.3: तृतीय चरण - प्रदोष-दीपदान

1. शिव-हेतु: शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
2. पितृ-हेतु: घर के बाहर पीपल के नीचे या जलाशय पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

4.4: चतुर्थ चरण - बिल्व-अर्पण

गोपनीय विधि: बेलपत्र की डंडी का मुख शिवलिंग की जलाधारी की ओर रखें।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥

4.5: पंचम चरण - नंदी-पूजन एवं मनोकामना-कथन

नंदी स्तुति: शिव वाहन रूपाय प्रदोष प्रिय रूपिणे । सर्व लोक प्रसिद्धाय नंदीकेशाय नमः ॥

गोपनीय विधि: दूर्वा हाथ में लें, नंदी के बाएं कान में 3 बार मनोकामना कहें, 'श्री शिवाय नमस्तुभ्यं' 3 बार बोलें और दूर्वा नंदी को अर्पित करें।

4.6: षष्ठ चरण - मंत्र-जप एवं स्तोत्र-पाठ

संकल्पित मंत्र का जप और प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें।

4.7: सप्तम चरण - पूर्णाहुति एवं क्षमा-प्रार्थना

  • पूर्णाहुति मंत्र: ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
  • क्षमा मंत्र: करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधं । विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥

व्रत पारण: अगले दिन चतुर्दशी तिथि को सूर्योदय के पश्चात्।

अध्याय 5: प्रदोष साधना के विशेष फल एवं सावधानियाँ

5.1: अमोघ फल – वारानुसार

वार प्रदोष का नाम मुख्य फल
रविवाररवि प्रदोषनीरोग काया, आरोग्य प्राप्ति, आयु वृद्धि
सोमवारसोम प्रदोषसर्व मनोकामना पूर्ति, मनः शांति
मंगलवारभौम प्रदोषरोग मुक्ति, ऋण मोचन
बुधवारबुध प्रदोषसर्व कामना सिद्धि, ज्ञान प्राप्ति
गुरुवारगुरु प्रदोषशत्रु नाश, पितृ तृप्ति
शुक्रवारशुक्र प्रदोषसौभाग्य वृद्धि (विवाह), अभीष्ट सिद्धि
शनिवारशनि प्रदोषपुत्र प्राप्ति, शनि-दोष शमन

5.2: विशेष फल – पितृदोष शांति

काले तिल मिश्रित जल से अभिषेक और पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से पितृदोष शांत होता है।

5.3: विशेष फल – ग्रहदोष शमन (विशेषकर शनि)

शनि प्रदोष: शनिदेव शिव के शिष्य हैं। शनि प्रदोष पर शिव की पूजा करने से शनि दोष का शमन होता है। शिवलिंग पर सरसों का तेल/काले तिल अर्पित करें और पीपल के नीचे दीपक जलाएं।

अध्याय 6: सावधानियाँ एवं वर्जनाएँ

  • सात्त्विक उद्देश्य: साधना केवल कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए करें।
  • तामसिक निषेध: हानि पहुँचाने या अनैतिक कार्यों के लिए प्रयोग न करें; यह आत्म-विनाशकारी है।
  • नियमों में अटूटता: व्रत खंडित न करें।
  • श्रद्धा और धैर्य: पूर्ण समर्पण भाव रखें।

अध्याय 7: शास्त्रीय संदर्भ एवं निष्कर्ष

संदर्भ: शिव पुराण, स्कंद पुराण, रुद्रयामल तंत्र, आगमिक परंपरा।

निष्कर्ष: यह शोध-पत्र सिद्ध करता है कि प्रदोष काल शिव की परम करुणा का जीवंत ब्रह्मांडीय समय है। शुद्ध चित्त और श्रद्धा के साथ की गई यह साधना समस्त दोषों का शमन कर तीव्र शिव-कृपा और जीवन में शांति, समृद्धि व सिद्धि प्रदान करती है।

॥ ॐ तत् सत् ॥ श्री उमा-महेश्वराभ्यां नमः ॥

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