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पढ़िए:प्रलय कितने प्रकार के होते हैं? कैसे होता है महाप्रलय? और महाप्रलय के बाद सृष्टि का क्या होता है?

पढ़िए:प्रलय कितने प्रकार के होते हैं? कैसे होता है महाप्रलय? और महाप्रलय के बाद सृष्टि का क्या होता है?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

समय और युगों की अवधारणा

  • विष्णु पुराण में समय की गणना अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से दी गई है । इस गणना को समझने के लिए इसे कई स्तरों में विभाजित किया गया है।

1. ब्रह्मांडीय समय चक्र

  • (A) महायुग और चार युगों का चक्र

    हिंदू धर्म के अनुसार, समय चक्रीय है और इसे चार युगों में विभाजित किया गया है। ये चार युग निम्नलिखित हैं:

    • सत्य युग – 17,28,000 वर्ष

      यह सबसे पहला और सबसे लंबा युग होता है।

      इस युग में संपूर्ण सृष्टि धार्मिक, पवित्र और सत्यनिष्ठ होती है।

      इस युग में मनुष्यों की औसत आयु एक लाख वर्ष होती थी और वे बिना किसी पाप के जीवन व्यतीत करते थे।

      भगवान विष्णु का प्रमुख अवतार मत्स्य, कूर्म और वराह अवतार इस युग में हुआ।

    • त्रेता युग – 12,96,000 वर्ष

      सत्य का स्तर घटकर तीन-चौथाई (¾) रह जाता है।

      इस युग में धर्म में कुछ गिरावट आती है, पाप और असत्य की शुरुआत होती है।

      मनुष्यों की औसत आयु 10,000 वर्ष होती थी।

      इस युग में भगवान राम और भगवान परशुराम अवतरित हुए।

    • द्वापर युग – 8,64,000 वर्ष

      सत्य का स्तर आधा (½) रह जाता है।

      इस युग में अधर्म और कलह बढ़ने लगती है, समाज में युद्ध, असंतोष और पाप बढ़ते हैं।

      मनुष्यों की औसत आयु 1,000 वर्ष होती थी।

      भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के रूप में अवतार लिया।

    • कलियुग – 4,32,000 वर्ष

      सत्य का स्तर केवल एक-चौथाई (¼) रह जाता है।

      यह युग पाप, असत्य, हिंसा, भ्रष्टाचार, अधर्म और भौतिक सुखों की प्रधानता का युग है।

      मनुष्यों की औसत आयु 100 वर्ष से भी कम हो जाती है।

      इस युग में भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्कि अवतार होगा, जो अधर्म का नाश करेंगे।

    चारों युगों का चक्र मिलाकर एक महायुग (4,320,000 वर्ष) बनता है।

2. मन्वंतर – मनुओं के शासनकाल

  • एक मन्वंतर में 71 महायुग होते हैं।

    प्रत्येक मन्वंतर में एक नया मनु (मानव जाति के प्रवर्तक) और देवताओं का नया शासन होता है।

    अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान में 7वां मन्वंतर (वैवस्वत मन्वंतर) चल रहा है।

    हर मन्वंतर में नए देवता, इंद्र, सप्तर्षि और मानव जाति उत्पन्न होते हैं।

3. कल्प और ब्रह्मा का एक दिन

  • एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं।

    ब्रह्मा का एक दिन (12 घंटे) = 1000 महायुग = 4.32 अरब वर्ष।

    ब्रह्मा की रात भी 1000 महायुग (4.32 अरब वर्ष) के बराबर होती है।

    ब्रह्मा के एक दिन और एक रात मिलाकर 8.64 अरब वर्ष होते हैं।

    जब ब्रह्मा सोते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाती है और जब वे जागते हैं, तो सृष्टि पुनः आरंभ होती है।

ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे होने पर महाप्रलय होता है, जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है

  • सृष्टि का संहार और पुनः सृजन

    विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि केवल एक बार निर्मित नहीं होती, बल्कि यह निरंतर चक्रीय प्रक्रिया के तहत बार-बार बनती और नष्ट होती है। सृष्टि के इस चक्रीय क्रम को प्रलय कहा जाता है। प्रलय के बाद फिर से पुनः सृजन होता है।

    इस प्रक्रिया को तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है:

  • 1. नित्य प्रलय

    समय:

    यह हर कल्प के अंत में होता है, जो कि ब्रह्मा के एक दिन (4.32 अरब वर्ष) की समाप्ति के साथ आता है।

    जब ब्रह्मा सो जाते हैं, तो इस प्रलय की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।

    घटनाएँ:

    जब ब्रह्मा अपने दिन के अंत में योगनिद्रा में जाते हैं, तब संपूर्ण भौतिक सृष्टि नष्ट हो जाती है।

    भूलोक (पृथ्वी), भुवर्लोक (ग्रह-नक्षत्रों का लोक) और स्वर्गलोक (देवताओं का लोक) जल में डूब जाते हैं।

    पाताल और उच्च लोक इस प्रलय से अप्रभावित रहते हैं।

    यह प्रलय केवल आंशिक विनाश करता है, क्योंकि ब्रह्मा जागने के बाद पुनः सृष्टि का निर्माण करते हैं।

    विशेषताएँ:

    इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड नष्ट नहीं होता, केवल भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्गलोक ही नष्ट होते हैं।

    इस समय भगवान विष्णु "योगनिद्रा" में होते हैं और ब्रह्मा अगली सृष्टि की योजना बनाते हैं।

  • 2. नैमित्तिक प्रलय

    समय:

    यह हर कल्प (ब्रह्मा के 1 दिन = 4.32 अरब वर्ष) के अंत में होता है।

    इसमें पूर्ण पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश और आकाशगंगा सहित संपूर्ण दृश्य ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है।

    यह प्रलय तब आता है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं।

    घटनाएँ:

    इस प्रलय में भूलोक (पृथ्वी), भुवर्लोक (ग्रह-नक्षत्र), स्वर्गलोक (देवताओं का लोक) सहित सभी नष्ट हो जाते हैं।

    देवता, ऋषि, मनुष्य, सभी विनष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु में समा जाते हैं।

    पूर्ण ब्रह्मांड एक महासागर में विलीन हो जाता है।

    सप्तर्षि (सात महान ऋषि) और उच्च लोकों के देवता जीवित रहते हैं।

    इस प्रलय में केवल उच्च आध्यात्मिक लोक ही सुरक्षित रहते हैं, जहाँ मुक्त आत्माएँ स्थित होती हैं।

    विशेषताएँ:

    इसे "मध्यवर्ती प्रलय" भी कहा जाता है।

    इस प्रलय में ब्रह्मा का जीवनकाल समाप्त नहीं होता, लेकिन वह कुछ समय के लिए सृजन नहीं करते।

    जब भगवान विष्णु पुनः जागते हैं, तब नए ब्रह्मांड की रचना प्रारंभ होती है।

  • 3. प्राकृत प्रलय

    समय:

    जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब यह प्रलय आता है।

    इस अवधि को "परम प्रलय" भी कहा जाता है, क्योंकि यह संपूर्ण ब्रह्मांड के अस्तित्व का पूर्ण रूप से अंत कर देता है।

    यह प्रलय लगभग 311.04 खरब वर्षों में एक बार आता है।

    घटनाएँ:

    इस प्रलय में ब्रह्मा, सभी देवता, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा, तारे और समस्त ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है।

    पंचमहाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं।

    समस्त जीवात्माएँ भगवान विष्णु में विलीन हो जाती हैं।

    इस समय भगवान विष्णु के शरीर से संपूर्ण सृष्टि पुनः उनके भीतर समा जाती है और कुछ समय के लिए केवल विष्णु ही शेष रहते हैं।

    इस प्रलय के बाद समस्त सृष्टि शून्य हो जाती है।

    विशेषताएँ:

    इसे "महाप्रलय" भी कहा जाता है।

    यह पूर्ण विनाश लाने वाला प्रलय है, जिसमें कोई भी जीवित प्राणी , कोई भी लोक, कोई भी तत्व बचा नहीं रहता।

    केवल भगवान विष्णु की चेतना शेष रहती है, जिसमें सभी जीवात्माएँ लय अवस्था में विलीन हो जाती हैं।

  • पुनः सृजन

    समय:

    महाप्रलय के बाद कुछ समय तक केवल भगवान विष्णु ही शेष रहते हैं।

    जब भगवान विष्णु पुनः सृजन का संकल्प करते हैं, तब उनकी नाभि से एक कमल प्रकट होता है।

    इस कमल से ब्रह्मा जी जन्म लेते हैं और उन्हें पुनः सृष्टि रचने का कार्य सौंपा जाता है।

    घटनाएँ:

    ब्रह्मा जी पहले महत्तत्त्व और पंचमहाभूतों का निर्माण करते हैं।

    इसके बाद मनु, सप्तर्षि, देवता, असुर, यक्ष, गंधर्व और अन्य जीवों की उत्पत्ति होती है।

    इस प्रकार एक नए ब्रहांड का जन्म होता है और समय का चक्र पुनः आरंभ होता है।

  • निष्कर्ष

    • ✔ नित्य प्रलय – हर कल्प (4.32 अरब वर्ष) के अंत में होता है।
    • ✔ नैमित्तिक प्रलय – जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तब होता है।
    • ✔ प्राकृत प्रलय – जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब होता है।
    • ✔ पुनः सृजन – भगवान विष्णु के संकल्प से पुनः ब्रह्मांड की रचना होती है।

    यह विवरण यह दर्शाता है कि हिंदू धर्म में सृष्टि और प्रलय की अवधारणा अत्यंत वैज्ञानिक, तार्किक और विस्तृत रूप में दी गई है।


प्रलयमहाप्रलयसृष्टिब्रह्मांडविनाशविष्णुब्रह्मा
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समय और युगों की अवधारणा

  • विष्णु पुराण में समय की गणना अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक रूप से दी गई है । इस गणना को समझने के लिए इसे कई स्तरों में विभाजित किया गया है।

1. ब्रह्मांडीय समय चक्र

  • (A) महायुग और चार युगों का चक्र

    हिंदू धर्म के अनुसार, समय चक्रीय है और इसे चार युगों में विभाजित किया गया है। ये चार युग निम्नलिखित हैं:

    • सत्य युग – 17,28,000 वर्ष

      यह सबसे पहला और सबसे लंबा युग होता है।

      इस युग में संपूर्ण सृष्टि धार्मिक, पवित्र और सत्यनिष्ठ होती है।

      इस युग में मनुष्यों की औसत आयु एक लाख वर्ष होती थी और वे बिना किसी पाप के जीवन व्यतीत करते थे।

      भगवान विष्णु का प्रमुख अवतार मत्स्य, कूर्म और वराह अवतार इस युग में हुआ।

    • त्रेता युग – 12,96,000 वर्ष

      सत्य का स्तर घटकर तीन-चौथाई (¾) रह जाता है।

      इस युग में धर्म में कुछ गिरावट आती है, पाप और असत्य की शुरुआत होती है।

      मनुष्यों की औसत आयु 10,000 वर्ष होती थी।

      इस युग में भगवान राम और भगवान परशुराम अवतरित हुए।

    • द्वापर युग – 8,64,000 वर्ष

      सत्य का स्तर आधा (½) रह जाता है।

      इस युग में अधर्म और कलह बढ़ने लगती है, समाज में युद्ध, असंतोष और पाप बढ़ते हैं।

      मनुष्यों की औसत आयु 1,000 वर्ष होती थी।

      भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम के रूप में अवतार लिया।

    • कलियुग – 4,32,000 वर्ष

      सत्य का स्तर केवल एक-चौथाई (¼) रह जाता है।

      यह युग पाप, असत्य, हिंसा, भ्रष्टाचार, अधर्म और भौतिक सुखों की प्रधानता का युग है।

      मनुष्यों की औसत आयु 100 वर्ष से भी कम हो जाती है।

      इस युग में भगवान विष्णु का अंतिम अवतार कल्कि अवतार होगा, जो अधर्म का नाश करेंगे।

    चारों युगों का चक्र मिलाकर एक महायुग (4,320,000 वर्ष) बनता है।

2. मन्वंतर – मनुओं के शासनकाल

  • एक मन्वंतर में 71 महायुग होते हैं।

    प्रत्येक मन्वंतर में एक नया मनु (मानव जाति के प्रवर्तक) और देवताओं का नया शासन होता है।

    अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान में 7वां मन्वंतर (वैवस्वत मन्वंतर) चल रहा है।

    हर मन्वंतर में नए देवता, इंद्र, सप्तर्षि और मानव जाति उत्पन्न होते हैं।

3. कल्प और ब्रह्मा का एक दिन

  • एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं।

    ब्रह्मा का एक दिन (12 घंटे) = 1000 महायुग = 4.32 अरब वर्ष।

    ब्रह्मा की रात भी 1000 महायुग (4.32 अरब वर्ष) के बराबर होती है।

    ब्रह्मा के एक दिन और एक रात मिलाकर 8.64 अरब वर्ष होते हैं।

    जब ब्रह्मा सोते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाती है और जब वे जागते हैं, तो सृष्टि पुनः आरंभ होती है।

ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे होने पर महाप्रलय होता है, जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है

  • सृष्टि का संहार और पुनः सृजन

    विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि केवल एक बार निर्मित नहीं होती, बल्कि यह निरंतर चक्रीय प्रक्रिया के तहत बार-बार बनती और नष्ट होती है। सृष्टि के इस चक्रीय क्रम को प्रलय कहा जाता है। प्रलय के बाद फिर से पुनः सृजन होता है।

    इस प्रक्रिया को तीन मुख्य प्रकारों में विभाजित किया गया है:

  • 1. नित्य प्रलय

    समय:

    यह हर कल्प के अंत में होता है, जो कि ब्रह्मा के एक दिन (4.32 अरब वर्ष) की समाप्ति के साथ आता है।

    जब ब्रह्मा सो जाते हैं, तो इस प्रलय की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।

    घटनाएँ:

    जब ब्रह्मा अपने दिन के अंत में योगनिद्रा में जाते हैं, तब संपूर्ण भौतिक सृष्टि नष्ट हो जाती है।

    भूलोक (पृथ्वी), भुवर्लोक (ग्रह-नक्षत्रों का लोक) और स्वर्गलोक (देवताओं का लोक) जल में डूब जाते हैं।

    पाताल और उच्च लोक इस प्रलय से अप्रभावित रहते हैं।

    यह प्रलय केवल आंशिक विनाश करता है, क्योंकि ब्रह्मा जागने के बाद पुनः सृष्टि का निर्माण करते हैं।

    विशेषताएँ:

    इसमें संपूर्ण ब्रह्मांड नष्ट नहीं होता, केवल भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्गलोक ही नष्ट होते हैं।

    इस समय भगवान विष्णु "योगनिद्रा" में होते हैं और ब्रह्मा अगली सृष्टि की योजना बनाते हैं।

  • 2. नैमित्तिक प्रलय

    समय:

    यह हर कल्प (ब्रह्मा के 1 दिन = 4.32 अरब वर्ष) के अंत में होता है।

    इसमें पूर्ण पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश और आकाशगंगा सहित संपूर्ण दृश्य ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है।

    यह प्रलय तब आता है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं।

    घटनाएँ:

    इस प्रलय में भूलोक (पृथ्वी), भुवर्लोक (ग्रह-नक्षत्र), स्वर्गलोक (देवताओं का लोक) सहित सभी नष्ट हो जाते हैं।

    देवता, ऋषि, मनुष्य, सभी विनष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु में समा जाते हैं।

    पूर्ण ब्रह्मांड एक महासागर में विलीन हो जाता है।

    सप्तर्षि (सात महान ऋषि) और उच्च लोकों के देवता जीवित रहते हैं।

    इस प्रलय में केवल उच्च आध्यात्मिक लोक ही सुरक्षित रहते हैं, जहाँ मुक्त आत्माएँ स्थित होती हैं।

    विशेषताएँ:

    इसे "मध्यवर्ती प्रलय" भी कहा जाता है।

    इस प्रलय में ब्रह्मा का जीवनकाल समाप्त नहीं होता, लेकिन वह कुछ समय के लिए सृजन नहीं करते।

    जब भगवान विष्णु पुनः जागते हैं, तब नए ब्रह्मांड की रचना प्रारंभ होती है।

  • 3. प्राकृत प्रलय

    समय:

    जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब यह प्रलय आता है।

    इस अवधि को "परम प्रलय" भी कहा जाता है, क्योंकि यह संपूर्ण ब्रह्मांड के अस्तित्व का पूर्ण रूप से अंत कर देता है।

    यह प्रलय लगभग 311.04 खरब वर्षों में एक बार आता है।

    घटनाएँ:

    इस प्रलय में ब्रह्मा, सभी देवता, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा, तारे और समस्त ब्रह्मांड नष्ट हो जाता है।

    पंचमहाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं।

    समस्त जीवात्माएँ भगवान विष्णु में विलीन हो जाती हैं।

    इस समय भगवान विष्णु के शरीर से संपूर्ण सृष्टि पुनः उनके भीतर समा जाती है और कुछ समय के लिए केवल विष्णु ही शेष रहते हैं।

    इस प्रलय के बाद समस्त सृष्टि शून्य हो जाती है।

    विशेषताएँ:

    इसे "महाप्रलय" भी कहा जाता है।

    यह पूर्ण विनाश लाने वाला प्रलय है, जिसमें कोई भी जीवित प्राणी , कोई भी लोक, कोई भी तत्व बचा नहीं रहता।

    केवल भगवान विष्णु की चेतना शेष रहती है, जिसमें सभी जीवात्माएँ लय अवस्था में विलीन हो जाती हैं।

  • पुनः सृजन

    समय:

    महाप्रलय के बाद कुछ समय तक केवल भगवान विष्णु ही शेष रहते हैं।

    जब भगवान विष्णु पुनः सृजन का संकल्प करते हैं, तब उनकी नाभि से एक कमल प्रकट होता है।

    इस कमल से ब्रह्मा जी जन्म लेते हैं और उन्हें पुनः सृष्टि रचने का कार्य सौंपा जाता है।

    घटनाएँ:

    ब्रह्मा जी पहले महत्तत्त्व और पंचमहाभूतों का निर्माण करते हैं।

    इसके बाद मनु, सप्तर्षि, देवता, असुर, यक्ष, गंधर्व और अन्य जीवों की उत्पत्ति होती है।

    इस प्रकार एक नए ब्रहांड का जन्म होता है और समय का चक्र पुनः आरंभ होता है।

  • निष्कर्ष

    • ✔ नित्य प्रलय – हर कल्प (4.32 अरब वर्ष) के अंत में होता है।
    • ✔ नैमित्तिक प्रलय – जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तब होता है।
    • ✔ प्राकृत प्रलय – जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब होता है।
    • ✔ पुनः सृजन – भगवान विष्णु के संकल्प से पुनः ब्रह्मांड की रचना होती है।

    यह विवरण यह दर्शाता है कि हिंदू धर्म में सृष्टि और प्रलय की अवधारणा अत्यंत वैज्ञानिक, तार्किक और विस्तृत रूप में दी गई है।


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