द्राभिषेक रहस्य: धन के लिए गन्ने का रस, तो बीमारी के लिए क्या चढ़ाएं?
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शिवपुराण एवं आगमिक ग्रंथों के विशेष रुद्राभिषेक प्रयोग
यह प्रतिवेदन शिवपुराण, रुद्रसंहिता, कुमारसंहिता, और विशिष्ट आगमिक ग्रंथों में वर्णित रुद्राभिषेक के उन विशेष अनुष्ठानों पर केंद्रित है, जिनके माध्यम से साधक अपनी विशिष्ट कामनाओं, जैसे सुख-समृद्धि, रोग-निवारण और मनोकामना सिद्धि को प्राप्त कर सकते हैं। इस शोध का उद्देश्य प्रामाणिक विधि, मंत्रों और द्रव्यों के शास्त्रीय संदर्भों को विस्तृत रूप में प्रस्तुत करना है।
I. प्रस्तावना: रुद्राभिषेक का शास्त्रीय आधार एवं प्रयोजन
A. शिव, रुद्र और सदाशिव का स्वरूप
भगवान शिव का 'रुद्र' स्वरूप, जो रुद्राभिषेक का मूल आधार है, कल्याणकारी और संहारक दोनों शक्तियों का समन्वय है। 'रुद्र' शब्द का शास्त्रीय अर्थ है 'दुःख को दूर करने वाला' (रुत् - दुःख, द्रावयति - दूर करने वाला)। जब साधक किसी विशेष कामना या सांसारिक समस्या के समाधान के लिए अनुष्ठान करता है, तो वह शिव के सक्रिय, त्वरित फल प्रदान करने वाले रुद्र स्वरूप का आह्वान करता है। यह स्वरूप रुद्रसंहिता और कुमारसंहिता में विस्तार से वर्णित है।
शास्त्रों में यह प्रतिपादित है कि तत्काल, भौतिक परिणामों की प्राप्ति के लिए अमूर्त सदाशिव रूप के बजाय सक्रिय रुद्र तत्व पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है, क्योंकि रुद्र सृष्टि और संहार के सक्रिय सिद्धांत हैं, जो कर्मिक परिणामों को तुरंत बदलने की क्षमता रखते हैं। विशेष कामनाओं की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक द्वारा शिव के इस स्वरूप को सक्रिय किया जाता है, जिससे साधक को त्वरित फल की प्राप्ति होती है।
B. शिवपुराण, रुद्रसंहिता, और आगम ग्रंथों में रुद्राभिषेक का महात्म्य
रुद्राभिषेक को सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली अनुष्ठानों में से एक माना गया है। शास्त्रों में इसका महात्म्य बताते हुए कहा गया है कि यह सभी पापों का नाश करता है और महापातक को भी भस्म करने की शक्ति रखता है। यह नकारात्मक ऊर्जाओं को हटाकर पूरे क्षेत्र में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है।
शिवपुराण की फलश्रुति के अनुसार, अकाल मृत्यु से बचने और जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए रुद्राभिषेक अत्यंत आवश्यक है। सर्वोच्च आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, 'लघुरुद्र' पाठ के साथ शिवलिंग का अभिषेक करने से साधक को मोक्ष प्राप्त होता है। रुद्राभिषेक मुख्यतः वेद मंत्रों (विशेषतः रुद्राष्टाध्यायी) द्वारा किया जाता है , जिससे इसकी शक्ति और प्रामाणिकता सुनिश्चित होती है।
C. सकाम और निष्काम रुद्राभिषेक में भेद
रुद्राभिषेक का प्रयोग सकाम और निष्काम दोनों उद्देश्यों के लिए किया जाता है। निष्काम अभिषेक में साधक केवल महादेव की प्रसन्नता और मोक्ष की कामना करता है, जिसके लिए प्रायः शुद्ध जल या पंचामृत का उपयोग किया जाता है।
इसके विपरीत, सकाम रुद्राभिषेक में अनुष्ठान के आरंभ में एक विशिष्ट कामना (जैसे धन या संतान) का स्पष्ट संकल्प लिया जाता है, और अभिषेक के लिए विशिष्ट द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, धन प्राप्ति के लिए गन्ने के रस का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार, सकाम कर्मों में केवल श्रद्धा ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि विशिष्ट द्रव्य, समय, और मंत्रों का प्रयोग अनिवार्य हो जाता है।
II. कामना-पूर्ति हेतु शुभ मुहूर्त एवं शिव वास विचार
कामना-पूर्ति हेतु किए जाने वाले रुद्राभिषेक की सफलता समय के शुद्ध चयन पर निर्भर करती है। शास्त्रीय विधानों के अनुसार, अनुष्ठान की प्रभावशीलता भगवान शिव की तात्कालिक उपस्थिति (शिव वास) से जुड़ी होती है।
A. रुद्राभिषेक का सर्वश्रेष्ठ काल
शास्त्र सामान्यतः किसी भी अभिषेक को दोपहर 12 बजे के भीतर समाप्त करने का निर्देश देते हैं। हालाँकि, रुद्राभिषेक के लिए यह नियम थोड़ा लचीला है। रुद्राभिषेक प्रदोष काल तक, अर्थात् सूर्यास्त से लगभग डेढ़ घंटा पहले से लेकर डेढ़ घंटा बाद तक, किया जा सकता है। प्रदोष काल भगवान शिव के अत्यधिक प्रसन्न रहने का समय माना जाता है, क्योंकि इस समय वे तांडव करते हैं। इस कालावधि में किए गए अनुष्ठान की ऊर्जा उच्चतम होती है, जिससे सकाम कामनाओं की पूर्ति की संभावना अधिकतम हो जाती है।
B. कामना सिद्धि हेतु शिव वास की गणना
सकाम रुद्राभिषेक के लिए शिव वास का विचार करना अनिवार्य है। शिव वास की गणना तिथि के आधार पर की जाती है। यदि अभिषेक ऐसे समय में किया जाए जब भगवान शिव माता गौरी के साथ या कैलाश पर्वत पर निवास करते हों, तभी रुद्राभिषेक मंत्र का जप और प्रयोग मनोकामना सिद्धि, सुख-समृद्धि और आनंद की वृद्धि प्रदान करता है। यदि शिव वास भोजन में या श्मशान में हो, तो सकाम कर्म वर्जित माने जाते हैं, क्योंकि इन स्थानों पर शिव का ध्यान भौतिक कामनाओं को पूर्ण करने के बजाय अन्य तत्वों पर केंद्रित होता है।
कामना सिद्धि हेतु शिव वास की अनुकूल तिथियाँ निम्न तालिका में प्रस्तुत हैं:
| तिथि | पक्ष | शिव वास स्थान | कामना सिद्धि हेतु फल | शास्त्रीय स्थिति |
|---|---|---|---|---|
| प्रथमा (1), अष्टमी (8), अमावस्या | कृष्ण पक्ष | माता गौरी के साथ | अनुकूल - सुख समृद्धि, आनंद वृद्धि | अति शुभ |
| द्वितीया (2), नवमी (9) | शुक्ल पक्ष | माता गौरी के साथ | अनुकूल - सुख समृद्धि, आनंद वृद्धि | अति शुभ |
| चतुर्थी (4), एकादशी (11) | कृष्ण पक्ष | कैलाश पर्वत पर | अनुकूल - सुख समृद्धि, आनंद वृद्धि | शुभ |
| पंचमी (5), द्वादशी (12) | शुक्ल पक्ष | कैलाश पर्वत पर | अनुकूल - सुख समृद्धि, आनंद वृद्धि | शुभ |
| तृतीया (3), दशमी (10) | दोनों पक्ष | नन्दी पर | मध्यम - विशेष कामना हेतु टाला जाना चाहिए। | मध्यम |
| षष्ठी (6), त्रयोदशी (13) | दोनों पक्ष | भोजन में | वर्जित - शिव के भोजन में व्यस्त होने के कारण फल प्राप्ति कठिन। | त्याज्य |
| सप्तमी (7), चतुर्दशी (14) | दोनों पक्ष | श्मशान में | पूर्णतः वर्जित - यह वास कामना पूर्ति के लिए फलदायी नहीं है, संकटकारी हो सकता है। | पूर्णतः त्याज्य |
यह देखा जाता है कि सकाम अनुष्ठान की सफलता के लिए शिव वास की अनुकूलता सुनिश्चित करना अनिवार्य है। जब शिव कैलाश या गौरी के साथ निवास करते हैं, तभी वह भक्त को भौतिक वरदान देने के लिए तैयार माने जाते हैं।
III. रुद्राभिषेक की आधारभूत सामग्री एवं संकल्प विधि
रुद्राभिषेक की सफलता केवल मंत्रों पर ही नहीं, बल्कि सामग्री की शुद्धता और संकल्प की स्पष्टता पर भी निर्भर करती है।
A. आवश्यक पूजन सामग्री की विस्तृत सूची
शास्त्रों के अनुसार, रुद्राभिषेक में निम्नलिखित सामग्री का होना अनिवार्य है, जिसका उपयोग कामना के अनुसार क्रमबद्ध तरीके से किया जाता है:
- अभिषेक द्रव्य: जल (गंगाजल और गुलाबजल मिश्रित) , अन-उबला गाय का दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, और पंचामृत। गन्ने का रस और सुगंधित तेल भी विशिष्ट कामना हेतु रखे जाते हैं।
- पत्र-पुष्प एवं प्राकृतिक वस्तुएँ: बिल्वपत्र (अत्यधिक महत्वपूर्ण), शमीपत्र, दूर्वा, आक , धतूरा, भांग। अखंड चावल का उपयोग आवश्यक है। कुछ आगमिक परंपराओं में तुलसी की मंजरी भी अर्पित की जाती है, जो हरिहर की एकात्मकता के सिद्धांत को दर्शाती है।
- वस्त्र एवं अलंकरण: शिवलिंग पर चढ़ाने हेतु वस्त्र, उपवस्त्र (कलावा), यज्ञोपवीत (जनेऊ), चंदन या अष्टगंध ।
- दीप एवं शुद्धि: धूप, कपूर, और घी का दिया (घी का दिया वातावरण को पवित्र करता है और शीघ्र प्रसन्नता लाता है)। आचमन पात्र, कुशा घास, फल, मिष्ठान्न, सुपारी, और नारियल।
B. संकल्प का महत्व और विशिष्ट कामनाओं का उल्लेख
संकल्प किसी भी सकाम अनुष्ठान की आधारशिला है। यह अनुष्ठान को एक विशिष्ट लक्ष्य की ओर निर्देशित करता है。
संकल्प प्रक्रिया:
- प्रारंभिक शुद्धि: संकल्प से पूर्व तीन बार आचमन करने का विधान है, मंत्रों के साथ—ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः। इसके बाद ॐ गोविन्दाय नमः बोलकर जल भूमि पर छोड़ा जाता है। इसके उपरांत तीन लघु प्राणायाम किए जाते हैं।
- संकल्प: यजमान (अभिषेक करने वाला) अपने हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर देश-काल का उच्चारण करते हुए अपना नाम, गोत्र, और सबसे महत्वपूर्ण, अपनी विशिष्ट कामना का स्पष्ट उल्लेख करता है (अमुक कामना सिद्धि अर्थम्)। यजमान की प्रार्थना की गहराई और हृदय की शिद्दत जितनी अधिक होती है, महादेव उतनी ही जल्दी मनोकामना पूरी करते हैं।
C. शुद्धता और प्रारंभिक शुद्धि
पूजा सदैव शुद्ध विचार, सात्विक आहार (बिना लहसुन-प्याज का भोजन) और पूर्ण श्रद्धा के साथ करनी चाहिए। अभिषेक की शुरुआत से पहले घी का दिया जलाना आवश्यक है, क्योंकि घी का दीपक भगवान को अति शीघ्र प्रसन्न करता है और वातावरण को पवित्रता प्रदान करता है।
IV. रुद्राभिषेक की संपूर्ण विधि: आह्वान से विसर्जन तक
रुद्राभिषेक एक चरणबद्ध प्रक्रिया है जो षोडशोपचार पूजा के नियमों का पालन करती है।
A. प्रारंभिक कर्म: शुद्धि, गौरी-गणेश पूजन
रुद्राभिषेक शुरू करने से पहले गौरी-गणेश, कुलदेवता, इष्टदेव और माता-पिता का नमन किया जाता है। प्रारंभिक नमन मंत्रों में ॐ गणेशाय नमः, ॐ कुल देवताब्यो नमः, ॐ इष्ट देवताब्यो नमः, ॐ माता पितृभ्याम् नमः शामिल हैं।
B. शिवलिंग का ध्यान एवं आह्वान
यदि रुद्राभिषेक किसी स्थापित मंदिर में किया जा रहा है, तो सीधे ध्यान से भी पूजन आरंभ किया जा सकता है, आवाहन और प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।
ध्यान (Meditation): साधक को श्री रुद्र के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। वह रुद्र जो बैल (वृष) पर आरूढ़ हैं, जिनके शरीर का आधा भाग देवी उमा का है (अर्धनारीश्वर स्वरूप), जो शांत, शुद्ध, नित्य और सर्वव्यापी हैं। इस ध्यान से भक्त पूजा के लिए मानसिक रूप से तैयार होता है।
समर्पण मंत्र: ध्यान के बाद आसन दिया जाता है, जिसके लिए बिल्व पत्र का प्रयोग किया जा सकता है। मंत्र इस प्रकार है:
C. षोडशोपचार क्रम
ध्यान और आसन के बाद निम्नलिखित क्रम से पूजन किया जाता है:
- स्नान: सर्वप्रथम शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है।
- वस्त्र/उपवस्त्र: अभिषेक शुरू करने से पहले या अभिषेक समाप्त होने के बाद वस्त्र और उपवस्त्र (कलावा) पहनाया जा सकता है।
- यज्ञोपवीत: जनेऊ पहनाया जाता है, जिसके बाद दो बार आचमन करने का विधान है।
- गंध/चंदन: अष्टगंध या चंदन अर्पित किया जाता है।
- अक्षत: अखंड चावल के दाने चढ़ाए जाते हैं।
- पुष्प/दूर्वा: पुष्प और दूर्वा अर्पित की जाती है।
D. अभिषेक क्रम (The Core Ritual)
यही रुद्राभिषेक का केंद्रीय भाग है, जिसे वेद मंत्रों या विशिष्ट रुद्र मंत्रों के साथ संपन्न किया जाता है।
- द्रव्य अर्पण विधि: शिवलिंग को पहले जल से स्नान कराने के बाद, सभी अभिषेक द्रव्यों को एक-एक करके अर्पित करना चाहिए। ये द्रव्य क्रमानुसार होते हैं: गंगाजल मिश्रित जल, अन-उबला दूध, गन्ने का रस, पंचामृत।
- जप: अभिषेक की पूरी प्रक्रिया के दौरान, यजमान और पुजारी को निरंतर ॐ नमः शिवाय (पंचाक्षरी मंत्र) या ॐ नमो भगवते रुद्राय (रुद्र मंत्र) का जप करते रहना चाहिए ।
- समापन: सभी द्रव्यों से अभिषेक पूर्ण हो जाने के बाद, शिवलिंग को पुनः शुद्ध जल से स्नान कराकर साफ कपड़े से पोंछा जाता है और वेदी पर रखा जाता है। इसके बाद पुनः वस्त्र, चंदन, और भोग नैवेद्य (मिठाई, फल) अर्पित किए जाते हैं।
E. विशेष पत्र-पुष्प अर्पण
शिवलिंग पर बिल्व पत्र अनिवार्य रूप से चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त, मनोकामना सिद्धि हेतु शमी पत्र, धतूरा, आक और भांग भी अर्पित किए जाते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि यद्यपि कुछ परंपराएँ तुलसी मंजरी चढ़ाने की बात करती हैं , यह उन साधकों के लिए अधिक उपयुक्त है जो शिव और विष्णु को अभिन्न (हरिहर) मानते हैं।
5. कामना-पूर्ति हेतु विशेष रुद्राभिषेक द्रव्य और फल
कामना-पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक की विशेषता यह है कि विशिष्ट कामनाओं की पूर्ति के लिए विशिष्ट अभिषेक द्रव्यों का चयन किया जाता है। यह विधान शिवपुराण की फलश्रुति और आगमिक परंपरा पर आधारित है, जो द्रव्य के तात्विक गुणों को कामना से जोड़ता है।
यह अनुष्ठान मात्र भक्ति का कार्य नहीं है, बल्कि यह एक सूक्ष्म भौतिकी है, जहाँ पदार्थ की ऊर्जा को मंत्रों के माध्यम से विशिष्ट परिणाम के लिए निर्देशित किया जाता है। उदाहरण के लिए, गन्ने का रस (मिठास और वृद्धि का प्रतीक) को लक्ष्मी और धन की प्राप्ति के लिए प्रयोग किया जाता है।
कामना-पूर्ति हेतु विशेष अभिषेक द्रव्यों का शास्त्रीय वर्गीकरण
| क्रमांक | अभिषेक द्रव्य | कामना सिद्धि | शास्त्रीय/आगमिक फलश्रुति | संदर्भ |
|---|---|---|---|---|
| 1 | शुद्ध जल (शीतल जल) | मानसिक शांति, कष्टों से मुक्ति, ज्वर निवारण | रोगमुक्ति और शांति | शिवपुराण |
| 2 | दुग्ध (गाय का दूध) | दीर्घायु, संतान सुख, वंश वृद्धि, गृह-क्लेश शांति | लंबी आयु और पारिवारिक खुशहाली | शिवपुराण, रुद्रसंहिता |
| 3 | दधि (दही) | संतान सुख, भूमि-भवन और वाहन की प्राप्ति | भौतिक समृद्धि और वंश का आशीर्वाद | आगम/शिवपुराण |
| 4 | घृत (घी) | शरीर की अस्वस्थता (रोग) दूर करना, वंश वृद्धि, अकाल मृत्यु से रक्षा | उत्तम स्वास्थ्य और वंश की निरंतरता | शिवपुराण |
| 5 | मधु (शहद) | जीवन के सभी कष्टों, दुखों का निवारण, असाध्य रोग मुक्ति | समस्याओं का अंत और स्वास्थ्य लाभ | शिवपुराण |
| 6 | गन्ने का रस | अखंड लक्ष्मी की प्राप्ति, धन वृद्धि, आर्थिक संकट निवारण | स्थिर धन और ऐश्वर्य की कृपा | आगम/ज्योतिष |
| 7 | पंचामृत | सभी प्रकार के कष्टों का नाश, सामान्य मनोकामना पूर्ति | समग्र कल्याण और दुःख निवारण | शिवपुराण |
| 8 | तिल का तेल | ज्ञान में वृद्धि, शनि, राहु, केतु के दोषों की शांति | बुद्धि और दोष निवारण | ज्योतिष/आगम |
| 9 | तीर्थ जल | मोक्ष की प्राप्ति, सभी पापों का क्षय | परम लक्ष्य की सिद्धि | स्कंद पुराण |
यह तालिका स्पष्ट करती है कि रुद्राभिषेक एक विशिष्ट उपचार पद्धति के रूप में कार्य करता है, जहाँ अभिषेक द्रव्य का चयन व्यक्ति की आध्यात्मिक आवश्यकता (मोक्ष के लिए तीर्थ जल) या भौतिक आवश्यकता (धन के लिए गन्ने का रस) के अनुरूप होता है।
6. मंत्र शक्ति: रुद्राष्टाध्यायी एवं अन्य मुख्य मंत्र प्रयोग
रुद्राभिषेक में मंत्रों का प्रयोग उसकी शक्ति का मुख्य स्रोत है। यह अनुष्ठान मुख्य रूप से वेद मंत्रों (रुद्राष्टाध्यायी) के पाठ द्वारा किया जाता है , जो इसे एक साधारण पूजा के बजाय एक महारुद्र यज्ञ का रूप देता है।
A. रुद्राष्टाध्यायी (रुद्रम्) पाठ का विधान
रुद्राष्टाध्यायी का पाठ रुद्राभिषेक का अनिवार्य अंग है। यह वेदों से प्राप्त मंत्रों का एक शक्तिशाली संग्रह है जो भगवान रुद्र का आह्वान करता है। यह पाठ यज्ञ की उच्चतम शक्ति को क्रियान्वित करता है, जिसके कारण यह पातक कर्म और महापातक को भी भस्म करने में सक्षम होता है।
पाठ के समापन पर शांति मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। ये मंत्र यह सुनिश्चित करते हैं कि यदि पाठ कर्मणा में कोई मात्रा या अक्षर भ्रष्ट (अशुद्ध) रह गया हो, तो भी परमेश्वर उसे स्वीकार कर लें और पूर्ण फल प्रदान करें।
शांति मंत्र का अंश:
...अनेन कृते श्री रुद्राष्टाध्याई पाठ कर्मणा श्री भवानी शंकर महा रुद्रः प्रियताम् ।
B. पंचाक्षरी मंत्र और मूल रुद्र मंत्र का जाप
अभिषेक के दौरान निरंतर जप ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
पंचाक्षरी मंत्र:
यह सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है। यजमान को अभिषेक चलते रहने तक इसका जप करते रहना चाहिए।
रुद्र मंत्र:
यह रुद्र का सीधा आह्वान है, जिसका अर्थ है 'मैं पवित्र रुद्र को नमन करता हूँ'।
C. रुद्र गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र का विशिष्ट प्रयोग
रुद्र गायत्री:
इस मंत्र का जप विशेष रूप से बुद्धि, ज्ञान और आत्मिक प्रबोधन के लिए किया जाता है। यह साधक को ज्ञान से प्रकाशित करने की प्रार्थना है।
महामृत्युंजय मंत्र:
यह मंत्र मुख्य रूप से असाध्य रोगों और अकाल मृत्यु के भय को दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। रुद्राभिषेक के साथ इस मंत्र का जाप विशेष रूप से उन यजमानों के लिए लाभकारी होता है जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हों।
7. दुर्लभ एवं विशिष्ट कामना सिद्धि प्रयोग
शास्त्रों में विशिष्ट कामनाओं की पूर्ति हेतु सामान्य अभिषेक से परे, दुर्लभ और केंद्रित प्रयोगों का वर्णन मिलता है।
A. ज्योतिषीय दोष निवारण प्रयोग
रुद्राभिषेक को ज्योतिषीय दोषों को शांत करने का एक प्रभावी साधन माना गया है:
- कालसर्प योग निवारण: कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को रुद्राभिषेक मंत्र का जाप करते हुए अभिषेक कराना चाहिए।
- शनि/राहु/केतु दोष शांति: जिन लोगों की राशि में शनि की साढ़ेसाती, ढैया, या राहु-केतु का प्रभाव होता है, उन्हें काले तिल का दिया जलाना चाहिए। यह उपाय सर्प दोष और शनि दोषों से छुटकारा दिलाने में अत्यंत सहायक है। यह उपाय हर सोमवार को शिवलिंग के पास अपनी मनोकामना दोहराकर करना चाहिए।
- राशि अनुसार अभिषेक: आगम परंपरा में राशि के अनुसार अभिषेक द्रव्य का प्रयोग करने का विधान है, जिससे फल की प्राप्ति सुनिश्चित होती है:
- मिथुन राशि: गन्ने के रस से अभिषेक धन प्राप्ति के लिए अति लाभदायक है।
- तुला राशि: जल में शहद, सुगंध और चमेली का तेल मिलाकर अभिषेक करना चाहिए।
- कुंभ राशि: गंगाजल में सुगंध, काले तिल तथा शहद मिलाकर अभिषेक करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
B. संतान प्राप्ति हेतु विशिष्ट क्रिया: कुंदकेश्वर महादेव प्रयोग
संतान प्राप्ति की कामना के लिए शिवपुराण (या तत्सम स्थानीय आगमों) में कुंदकेश्वर महादेव का विशेष प्रयोग वर्णित है, जिसे पति-पत्नी दोनों मिलकर करते हैं। यह प्रयोग सामान्य अभिषेक से अधिक केंद्रित होता है, क्योंकि इसमें मंत्र, विशिष्ट देवता रूप और औषधीय तत्वों का मिश्रण शामिल होता है:
- आंकड़े की जड़ का प्रयोग: श्री शिवाय नमस्तुभ्यम् महामंत्र का जाप करते हुए, लाल धागे में आंकड़े की जड़ को अपनी कमर में बाँध लें।
- पीपल पत्ता अर्पण: एक पीपल का पत्ता लेकर कुंदकेश्वर महादेव का नाम लेते हुए शिवलिंग पर समर्पित करें।
- पत्ते का सेवन: समर्पित किए गए पीपल के पत्ते को उठाकर घर लाएँ। इसे दूध में उबालकर पति-पत्नी दोनों सेवन करें।
- नियम: यह क्रिया कुछ समय तक प्रतिदिन की जा सकती है, जिससे शीघ्र संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यह विशिष्ट प्रयोग आयुर्वेद और आगमिक पूजा पद्धतियों के समन्वय को दर्शाता है, जहाँ कुंदकेश्वर महादेव को वंश वृद्धि के लिए विशेष रूप से किया जाता है, और पीपल के पत्ते (जिसे पारंपरिक रूप से प्रजनन क्षमता से जोड़ा जाता है) को दूध के माध्यम से शरीर में शामिल किया जाता है।
C. भौतिक समृद्धि एवं कल्याण हेतु प्रयोग
- अखंड लक्ष्मी प्राप्ति: गन्ने के रस से महादेव का अभिषेक करने पर माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में कभी धन की कमी नहीं होती।
- भूमि-भवन और वाहन: दही (दधि) से रुद्राभिषेक करवाया जाए तो इससे भूमि, भवन और वाहन की प्राप्ति होती है।
8. सुरक्षा, सावधानियाँ और फलश्रुति
सकाम रुद्राभिषेक में विधि-विधान के साथ-साथ सावधानियों का पालन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि अनुष्ठान का पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
A. आचमन, वस्त्र धारण, और पूजा में पवित्रता के नियम
- शुद्धता: पूजा के दौरान मन और शरीर दोनों की पवित्रता अनिवार्य है। यजमान को सात्विक आहार और शुद्ध विचारों के साथ पूजा करनी चाहिए।
- दीपक: पूजा करते समय हमेशा घी का दिया ही जलाना चाहिए, क्योंकि यह वातावरण को पवित्र बनाता है और भगवान को शीघ्र प्रसन्न करता है।
- आचमन और वस्त्र: अभिषेक करने से पहले और बाद में आचमन और शुद्ध वस्त्र धारण करने के शास्त्रीय नियमों का पालन करना चाहिए।
B. वर्जित सामग्रियाँ और क्रियाएँ
किसी भी पूजा में वर्जित सामग्री का प्रयोग फल को नष्ट कर सकता है:
- द्रव्य: खंडित अक्षत (चावल), केतकी का फूल, हल्दी (शिवलिंग पर), शंख से अभिषेक (सामान्यतः) वर्जित माना जाता है।
- शिव वास का उल्लंघन: सबसे गंभीर सावधानी यह है कि सकाम कर्मों का आरंभ तब नहीं किया जाना चाहिए जब शिव वास भोजन में (षष्ठी, त्रयोदशी) या श्मशान में (सप्तमी, चतुर्दशी) हो। इस नियम का पालन न करने पर कामना सिद्धि कठिन हो जाती है, बल्कि संकट उत्पन्न हो सकता है।
C. रुद्राभिषेक की फलश्रुति
रुद्राभिषेक, विशेषकर वेद मंत्रों (रुद्राष्टाध्यायी) द्वारा किया गया, व्यक्ति के सभी कष्टों को हर लेता है। यह पाया गया है कि रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और कुंडली से पातक कर्म तथा महापातक भी भस्म हो जाते हैं。
भगवान शिव के पूजन का यह अद्वितीय महात्म्य है कि उनके अभिषेक से सभी देवताओं की पूजा स्वतः ही हो जाती है।
निष्कर्ष मंत्र (समापन): अनुष्ठान की समाप्ति पर, यजमान को शांत होकर महादेव से प्रार्थना करनी चाहिए, जो शांति मंत्रों के साथ समाप्त होती है:
निष्कर्ष एवं अनुशंसा
कामना-पूर्ति हेतु विशेष रुद्राभिषेक एक अत्यंत विशिष्ट और प्रमाणिक शास्त्रीय प्रयोग है, जिसकी सफलता अनुष्ठान की सटीकता और श्रद्धा के त्रिकोण पर निर्भर करती है। यह अनुष्ठान मात्र एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि एक अत्यंत परिष्कृत प्रणाली है जो ब्रह्मांडीय समय (शिव वास), भौतिक ऊर्जा (अभिषेक द्रव्य), और वैदिक ध्वनि तरंगों (रुद्राष्टाध्यायी) को समकालिक करके वांछित फल को अभिव्यक्त करती है。
कामना सिद्धि चाहने वाले साधकों के लिए यह अनुशंसा की जाती है कि वे निम्नलिखित तीन अनिवार्य चरणों का कठोरता से पालन करें:
- काल शुद्धि: सकाम कर्म हेतु सदैव शिव वास की गणना करें। अमावस्या, अष्टमी, द्वितीया, नवमी (गौरी वास), चतुर्थी, एकादशी, पंचमी, और द्वादशी (कैलाश वास) को ही अनुष्ठान प्रारंभ करें।
- द्रव्य चयन: कामना के अनुरूप सटीक अभिषेक द्रव्य का चयन करें (जैसे, धन हेतु गन्ने का रस; स्वास्थ्य हेतु घी/शहद; संतान हेतु दधि)।
- मंत्र बल: यदि संभव हो, तो रुद्राष्टाध्यायी के माध्यम से अभिषेक कराएँ ताकि कर्मों को भस्म करने की उच्चतम वैदिक शक्ति प्राप्त हो सके।
अतः, रुद्राभिषेक एक दुर्लभ शिव प्रयोग है, जो विधि, श्रद्धा और काल-शुद्धि के संयोजन से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करने का सामर्थ्य रखता है。