कपाली का शाब्दिक अर्थ है “कपाल (खोपड़ी) धारण करने वाला”। इस रुद्र रूप में भगवान शिव अपने हाथ में एक कपाल लिए होते हैं। शिवपुराण की कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा के पाँचवें सिर को काटने के कारण शिव को कपाल धारण करना पड़ा था, इसी से उनका एक नाम कपाली (या कपालिन) प्रसिद्ध हुआ। इस रूप में शिव मृत्यु और नाश के तत्त्व के स्वामी हैं – उनके हाथ में मानव खोपड़ी इस बात का प्रतीक है कि जीवन नश्वर है और मृत्यु अटल सत्य है। कपाली रूप हमें मृत्यु को भय बिना स्वीकार करने और संसार की नश्वरता को समझने का संदेश देता है।
कपाली उन ग्यारह रुद्रों में प्रथम थे जो कश्यप की पत्नी सुरभि के गर्भ से प्रकट हुए। शिव के इस अवतार के प्रकट होने का कारण देवताओं को असुरों से मुक्त कराना था। एकादश रुद्रों में कपाली को प्रमुख माना जाता है और शेष दस रुद्र उनके नेतृत्व में थे।
कपाली रुद्र मृत्यु और समय के स्वभाव का द्योतक हैं। वह हमें जगत के अस्थायी होने का बोध कराते हैं। मान्यता है कि कपाली शमशान (श्मशान) के अधिपति हैं और मृत्यु के बाद आत्माओं को मोक्ष दिलाने में सहायक होते हैं। उन्हें कैलाशवासी शिव का उग्र रूप भी कहा जाता है।
शिवपुराण में वर्णित युद्ध में कपाली रुद्र ने शेष रुद्रों सहित असुरों का संहार किया था। एक उल्लेख के अनुसार इन रुद्रों ने एक गजासुर नामक हाथी राक्षस का वध भी किया था, जिसमें कपाली अग्रणी थे। शिव के हाथी-चर्म धारण करने की कथा संभवतः इसी से जुड़ी है कि रुद्रावतार कपाली ने गजासुर को मारकर उसका चमड़ा धारण किया।
चेन्नई के मइलापुर स्थित कपालेश्वर मंदिर भगवान शिव के कपाली स्वरूप को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। यहां शिवलिंग को “कपालेश्वर” कहा जाता है और देवी पार्वती “कर्पागंबाल” नाम से पूजी जाती हैं। यह मंदिर तमिलनाडु के प्राचीनतम शिव मंदिरों में एक है और प्रत्येक वर्ष हजारों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
पुराणों के अनुसार कपाली सहित सभी 11 रुद्र उद्धार कार्य पूर्ण करने के बाद स्वर्गलोक में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि ये रुद्र गण ईशान दिशा में स्थित शिवलोक “ईशानपुरी” में रहते हैं और कालांतर में भी देवताओं की रक्षा हेतु तत्पर रहते हैं।
पिंगल का अर्थ है पीतवर्ण या सुनहरा-भूरा रंग वाला। शिव के इस रुद्र अवतार को पिंगल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका स्वरूप सूर्य के समान दीप्तिमान सुनहरा है। योगशास्त्र में मनुष्य की सुषुम्ना नाड़ी के दो सहायक नाड़ियों में से दायीं ओर की नाड़ी को पिंगला कहा गया है, जो सूर्य स्वरूप ऊर्जा का वहन करती है। पिंगल रुद्र को प्रतीकात्मक रूप से सूर्य-ऊर्जा का अधिष्ठाता माना जाता है। यह जीवनदायिनी प्राणशक्ति के रूप में भी जाने जाते हैं।
पिंगल भी सुरभि के गर्भ से उत्पन्न ग्यारह रुद्रों में से एक हैं। देवताओं के कार्य सिद्धि हेतु भगवान शिव ने ही यह स्वरूप धारण किया। कुछ वेद मंत्रों में “पिंगेश्वर” का उल्लेख मिलता है जिसे शिव का एक रूप माना जाता है।
पिंगल रुद्र ऊर्जा, जीवटता और सकारात्मकता के प्रतीक हैं। इनका संबंध सूर्य की आरोग्यदायी किरणों से है जो जीवन को शक्ति और प्रकाश देती हैं। योग में पिंगला नाड़ी शरीर की जीवन ऊर्जा (प्राणशक्ति) को नियंत्रित करती है, इसलिए पिंगल रुद्र को जीवनदायी शक्ति का स्वरूप कहा जा सकता है। इनकी उपासना से आरोग्य और तेज मिलता है, ऐसी मान्यता है।
पिंगल रुद्र ने देवताओं की सेना में रहते हुए असुरों से युद्ध किया और अपने तेज से शत्रुओं को पराभूत किया। सूर्य के गुणों से युक्त होने के कारण उन्होंने प्रकाश द्वारा अंधकार रूपी असुर शक्तियों का नाश किया। पौराणिक विवरणों में इनके कोई स्वतंत्र कारनामे नहीं मिलते, किंतु समग्र रूप से देव-दानव संग्राम में इनका योगदान महत्वपूर्ण था।
पिंगलेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के कच्छ जिले में अरब सागर के तट पर स्थित एक लोकप्रिय शिव मंदिर है, जहां शिवजी पिंगल रूप में पूजित हैं। यह मंदिर समुद्र के बीच एक पत्थर के चबूतरे पर बना है और ज्वार के समय चारों ओर से पानी से घिर जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में पिंगलेश्वर महादेव के नाम से प्राचीन मंदिर होने का उल्लेख मिलता है। इन मंदिरों में भगवान शिव को पिंगल रुद्र रूप में अर्चना की जाती है।
पिंगल रुद्र को सूर्य मंडल का अधिपति माना जाता है, अतः कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि ये सूर्यलोक में विराजमान हैं और वहीं से जगत को ऊर्जा प्रदान करते हैं। सामान्यतया सभी रुद्रों का वर्तमान निवास स्वर्ग के ईशान कोण में ही बताया गया है, जहां से वे ब्रह्मांड में व्याप्त होकर कार्य करते हैं।
कपाली का शाब्दिक अर्थ है “कपाल (खोपड़ी) धारण करने वाला”। इस रुद्र रूप में भगवान शिव अपने हाथ में एक कपाल लिए होते हैं। शिवपुराण की कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा के पाँचवें सिर को काटने के कारण शिव को कपाल धारण करना पड़ा था, इसी से उनका एक नाम कपाली (या कपालिन) प्रसिद्ध हुआ। इस रूप में शिव मृत्यु और नाश के तत्त्व के स्वामी हैं – उनके हाथ में मानव खोपड़ी इस बात का प्रतीक है कि जीवन नश्वर है और मृत्यु अटल सत्य है। कपाली रूप हमें मृत्यु को भय बिना स्वीकार करने और संसार की नश्वरता को समझने का संदेश देता है।
कपाली उन ग्यारह रुद्रों में प्रथम थे जो कश्यप की पत्नी सुरभि के गर्भ से प्रकट हुए। शिव के इस अवतार के प्रकट होने का कारण देवताओं को असुरों से मुक्त कराना था। एकादश रुद्रों में कपाली को प्रमुख माना जाता है और शेष दस रुद्र उनके नेतृत्व में थे।
कपाली रुद्र मृत्यु और समय के स्वभाव का द्योतक हैं। वह हमें जगत के अस्थायी होने का बोध कराते हैं। मान्यता है कि कपाली शमशान (श्मशान) के अधिपति हैं और मृत्यु के बाद आत्माओं को मोक्ष दिलाने में सहायक होते हैं। उन्हें कैलाशवासी शिव का उग्र रूप भी कहा जाता है।
शिवपुराण में वर्णित युद्ध में कपाली रुद्र ने शेष रुद्रों सहित असुरों का संहार किया था। एक उल्लेख के अनुसार इन रुद्रों ने एक गजासुर नामक हाथी राक्षस का वध भी किया था, जिसमें कपाली अग्रणी थे। शिव के हाथी-चर्म धारण करने की कथा संभवतः इसी से जुड़ी है कि रुद्रावतार कपाली ने गजासुर को मारकर उसका चमड़ा धारण किया।
चेन्नई के मइलापुर स्थित कपालेश्वर मंदिर भगवान शिव के कपाली स्वरूप को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर है। यहां शिवलिंग को “कपालेश्वर” कहा जाता है और देवी पार्वती “कर्पागंबाल” नाम से पूजी जाती हैं। यह मंदिर तमिलनाडु के प्राचीनतम शिव मंदिरों में एक है और प्रत्येक वर्ष हजारों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
पुराणों के अनुसार कपाली सहित सभी 11 रुद्र उद्धार कार्य पूर्ण करने के बाद स्वर्गलोक में विराजमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि ये रुद्र गण ईशान दिशा में स्थित शिवलोक “ईशानपुरी” में रहते हैं और कालांतर में भी देवताओं की रक्षा हेतु तत्पर रहते हैं।
पिंगल का अर्थ है पीतवर्ण या सुनहरा-भूरा रंग वाला। शिव के इस रुद्र अवतार को पिंगल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका स्वरूप सूर्य के समान दीप्तिमान सुनहरा है। योगशास्त्र में मनुष्य की सुषुम्ना नाड़ी के दो सहायक नाड़ियों में से दायीं ओर की नाड़ी को पिंगला कहा गया है, जो सूर्य स्वरूप ऊर्जा का वहन करती है। पिंगल रुद्र को प्रतीकात्मक रूप से सूर्य-ऊर्जा का अधिष्ठाता माना जाता है। यह जीवनदायिनी प्राणशक्ति के रूप में भी जाने जाते हैं।
पिंगल भी सुरभि के गर्भ से उत्पन्न ग्यारह रुद्रों में से एक हैं। देवताओं के कार्य सिद्धि हेतु भगवान शिव ने ही यह स्वरूप धारण किया। कुछ वेद मंत्रों में “पिंगेश्वर” का उल्लेख मिलता है जिसे शिव का एक रूप माना जाता है।
पिंगल रुद्र ऊर्जा, जीवटता और सकारात्मकता के प्रतीक हैं। इनका संबंध सूर्य की आरोग्यदायी किरणों से है जो जीवन को शक्ति और प्रकाश देती हैं। योग में पिंगला नाड़ी शरीर की जीवन ऊर्जा (प्राणशक्ति) को नियंत्रित करती है, इसलिए पिंगल रुद्र को जीवनदायी शक्ति का स्वरूप कहा जा सकता है। इनकी उपासना से आरोग्य और तेज मिलता है, ऐसी मान्यता है।
पिंगल रुद्र ने देवताओं की सेना में रहते हुए असुरों से युद्ध किया और अपने तेज से शत्रुओं को पराभूत किया। सूर्य के गुणों से युक्त होने के कारण उन्होंने प्रकाश द्वारा अंधकार रूपी असुर शक्तियों का नाश किया। पौराणिक विवरणों में इनके कोई स्वतंत्र कारनामे नहीं मिलते, किंतु समग्र रूप से देव-दानव संग्राम में इनका योगदान महत्वपूर्ण था।
पिंगलेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के कच्छ जिले में अरब सागर के तट पर स्थित एक लोकप्रिय शिव मंदिर है, जहां शिवजी पिंगल रूप में पूजित हैं। यह मंदिर समुद्र के बीच एक पत्थर के चबूतरे पर बना है और ज्वार के समय चारों ओर से पानी से घिर जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में पिंगलेश्वर महादेव के नाम से प्राचीन मंदिर होने का उल्लेख मिलता है। इन मंदिरों में भगवान शिव को पिंगल रुद्र रूप में अर्चना की जाती है।
पिंगल रुद्र को सूर्य मंडल का अधिपति माना जाता है, अतः कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि ये सूर्यलोक में विराजमान हैं और वहीं से जगत को ऊर्जा प्रदान करते हैं। सामान्यतया सभी रुद्रों का वर्तमान निवास स्वर्ग के ईशान कोण में ही बताया गया है, जहां से वे ब्रह्मांड में व्याप्त होकर कार्य करते हैं।