घर में धन की कभी कमी नहीं होगी: 'भंडार भरण' शिव शाबर मंत्र (तुरंत असर)!
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AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।शिव शाबर मंत्र: कठिन समस्याओं के समाधान हेतु प्रमाणित साधना विज्ञान
शाबर परंपरा तंत्र और लोक-विश्वास के समन्वय से उत्पन्न एक अलौकिक शक्ति पद्धति है, जिसका मूल स्रोत भगवान शिव स्वयं हैं। यह रिपोर्ट कठिन परिस्थितियों में फंसे साधकों के लिए शिव से संबंधित दुर्लभ और स्वयं सिद्ध शाबर मंत्रों को उनकी पूर्ण पाठ-विधि, साधना-क्रम और अनिवार्य सावधानियों सहित प्रस्तुत करती है। यह संकलन सुनिश्चित करता है कि साधक सरलता, शुद्धता और सुरक्षा के साथ इन अचूक मंत्रों का प्रयोग कर सकें।
खंड 1: शाबर परंपरा का मूल परिचय और शिव-कृपा
1.1. शाबर मंत्र: लोक भाषा की अलौकिक शक्ति और उनका अर्थ
शाबर मंत्र भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक विशिष्ट अंग हैं, जिनकी पहचान उनकी सरलता और त्वरित प्रभावशीलता से होती है। शाबर मंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनकी रचना शुद्ध संस्कृत के जटिल व्याकरण और छंदों के स्थान पर आम क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों (देसी भाषा) में की गई है 1। इस कारण ये मंत्र साधारण व्यक्ति के लिए भी सहजता से पठनीय और प्रयोग योग्य होते हैं, जहाँ वैदिक या तांत्रिक मंत्रों के लिए कठोर शास्त्रीय ज्ञान की आवश्यकता होती है।
इन मंत्रों की शक्ति का प्रमुख आधार उनकी स्वयं सिद्ध प्रकृति है। इसका तात्पर्य यह है कि अधिकांश शाबर मंत्रों को अलग से कीलन मुक्त करने या कठोर पुरश्चरण द्वारा सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। इन मंत्रों को गुरु या सिद्ध साधक के मुख से सुनकर, और निष्ठा तथा नियमों के साथ जपकर शीघ्र परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। शाबर परंपरा लोक-तंत्र और जन-श्रुतियों से जुड़ी हुई है, और यह हमारी संस्कृति में एक जीवंत विश्वास के रूप में मौजूद है । जब जीवन में साधारण उपाय विफल हो जाते हैं, तब भी लोकमानस में किसी सिद्ध के पास जाकर मंत्र (शाबर प्रयोग) से समाधान पाने की उम्मीद बनी रहती है।
1.2. शाबर मंत्रों की उत्पत्ति: महादेव, नाथपंथ और नवनाथ सिद्धों का योगदान
शाबर मंत्रों की उत्पत्ति सीधे भगवान शिव से जुड़ी है, जिन्हें तंत्र-मंत्र-यंत्र का जनक माना जाता है । पौराणिक कथाओं के अनुसार, ये मंत्र सृष्टि के कल्याण और विशेष रूप से ऋषियों की रक्षा के लिए प्रकट हुए थे। हिमालय की कंदराओं और घने वनों में तपस्या कर रहे ऋषियों को असुरों के उत्पात (जैसे मृत शरीर फेंकना, मायावी रूप धारण करना और हिंसात्मक प्रहार) से बचाने के लिए भगवान शिव ने ये शाबर मंत्र प्रदान किए। ये मंत्र ऋषियों को न केवल आत्म-रक्षा प्रदान करने में सक्षम थे, बल्कि असुर शक्तियों को परास्त करने की शक्ति भी रखते थे।
शाबर मंत्रों के संरक्षण और प्रचार का श्रेय मुख्य रूप से नाथपंथ के महान सिद्धों, विशेषकर गुरु गोरखनाथ और नवनाथ चौरासी सिद्धों को जाता है। इसीलिए कई शाबर मंत्रों में गोरखनाथ का विशेष उल्लेख या आवाहन किया जाता है, जैसे कि नकारात्मक ऊर्जा (काली विद्या) के बंधन को काटने वाले मंत्रों में होता है। इस प्रकार, शाबर परंपरा शिव की कृपा और नाथ सिद्धों के तप का प्रत्यक्ष फल है।
1.3. वैदिक, तांत्रिक और शाबर मंत्रों में मौलिक अंतर
शाबर मंत्र, उनकी देसी शैली और त्वरित प्रभावशीलता के कारण, वैदिक और तांत्रिक मंत्रों से भिन्न माने जाते हैं। यह मौलिक अंतर साधक को अपनी साधना का चुनाव करते समय स्पष्ट होना चाहिए:
| विशेषता | शाबर मंत्र (देसी) | वैदिक/पौराणिक मंत्र | तांत्रिक मंत्र (बीज युक्त) |
|---|---|---|---|
| भाषा/शैली | क्षेत्रीय बोलियाँ, गद्यात्मक, सहज, लोक शैली | शुद्ध संस्कृत, छंदबद्ध, जटिल व्याकरण | संस्कृत, बीज मंत्रों (जैसे ह्रीं, क्रीं) का प्रयोग |
| सिद्धि आवश्यकता | अधिकतर 'स्वयं सिद्ध' या अल्प साधना अपेक्षित। | पुरश्चरण, न्यास, कीलन, कठिन विधि आवश्यक। | पुरस्चरण, न्यास, तथा विशिष्ट मुद्राएँ आवश्यक। |
| प्रकृति/ऊर्जा | तीव्र प्रभावशीलता, सीधा शक्ति प्रयोग (तामसिक/राजसिक उन्मुख) | सात्त्विक/राजसिक, आध्यात्मिक उन्नति पर बल। | शक्ति केंद्रिक, भोग और मोक्ष दोनों हेतु। |
| प्रामाणिकता | शाबर संहिता, गुरु वाणी ('ईश्वर वाचा') | वेद, उपनिषद, पुराण, आगम। | आगम शास्त्र, तंत्र ग्रंथ। |
शाबर मंत्रों को अक्सर तामसिक श्रेणी में रखा जाता है । इस वर्गीकरण का कारण उनकी भाषा या शक्ति नहीं है, बल्कि उनका सीधा और त्वरित प्रयोग है जो तत्काल शक्ति प्राप्ति और समस्या समाधान पर केंद्रित होता है (जैसे शत्रु नाश या भौतिक बाधा दूर करना), जिसे पारंपरिक रूप से राजसिक या तामसिक कर्मों की श्रेणी में गिना जाता है। हालाँकि, यह समझना महत्वपूर्ण है कि यदि साधक इस तीव्र ऊर्जा का उपयोग केवल कल्याणकारी प्रयोजनों—आत्म-रक्षा, भय निवारण, रोग मुक्ति और धर्म की स्थापना—के लिए करता है, तो साधना का संकल्प और उद्देश्य उस प्रयोग को सात्त्विक बना देता है। शिव शाबर मंत्र साधक की ‘त्राहिमाम’ पुकार के जवाब में प्राप्त एक शक्तिशाली ‘अस्त्र’ हैं, जिसका उपयोग केवल धर्म और आत्म-कल्याण के लिए ही किया जाना चाहिए।
खंड 2: शाबर साधना के नैतिक नियम और पूर्वापेक्षाएँ (आधार)
शाबर साधना अत्यंत तीव्र होने के कारण इसमें पूर्ण सफलता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नैतिक और साधनागत नियमों का पालन अनिवार्य है। इन नियमों का उल्लंघन न केवल साधना में बाधक हो सकता है, बल्कि साधक के लिए घातक भी सिद्ध हो सकता है।
2.1. सात्त्विक संकल्प और कल्याणकारी प्रयोजन का महत्व
शाबर मंत्र एक शक्तिशाली हथियार के समान हैं, और उचित रीति से प्रयोग करने पर सुरक्षा और सफलता देते हैं, किंतु लापरवाही या गलत उपयोग करने पर ये घातक भी सिद्ध हो सकते हैं। अतः, यह अनिवार्य है कि साधक का संकल्प केवल सात्त्विक और कल्याणकारी प्रयोजनों के लिए हो। साधना का उद्देश्य किसी के प्रति द्वेषपूर्ण या अनैतिक प्रतिशोध लेना नहीं होना चाहिए। इसका प्रयोग भय, शत्रु बाधा, रोग, दरिद्रता, और जीवन की कठिन बाधाओं से आत्म-मुक्ति प्राप्त करने के लिए ही किया जाना चाहिए, जैसा कि 'भंडार भरण' मंत्र का मूल भाव है।
2.2. गुरु की अनिवार्यता: गुरु-परंपरा का महत्व और गुरु-स्थापना की विधि
शाबर साधना में सफलता और सुरक्षा के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक माना गया है। शाबर परंपरा में, गुरु के मुख से निकला वचन ही अंतिम सत्य यानी ब्रह्म वाक्य बन जाता है (इसे 'ईश्वर वाचा' कहा जाता है)।
गुरु का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है: वह साधना से उत्पन्न होने वाली तीव्र ऊर्जा को नियंत्रित और संतुलित करते हैं 9। शाबर साधना में इतनी तीव्र ऊर्जा का प्रवाह होता है कि यदि साधक स्वयं उसे संभाल न पाए, तो गुरु उसे सुरक्षित मार्ग दिखाते हैं, जिससे साधक को जल्दी सफलता मिलती है। सच्चे गुरु की पहचान केवल बाहरी दिखावे (जैसे जटाएँ रखना या बड़े आसन लगाना) से नहीं होती, बल्कि उनकी आंतरिक शक्ति, ज्ञान और दृढ़ता से होती है। यह साधना आंतरिक शुद्धि पर केंद्रित है, न कि बाहरी प्रदर्शन पर ।
2.3. गुरु न मिलने पर इष्ट (शिव) का आश्रय: पुरस्चरण का विधान
यह मान्यता है कि शाबर साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं, लेकिन यह मार्ग अत्यधिक सुरक्षित और श्रमसाध्य है। यदि साधक को योग्य और सिद्ध गुरु प्राप्त न हो, तो उसे शाबर मंत्र साधना शुरू करने से पहले एक विशेष पूर्वापेक्षा पूरी करनी होती है।
अनिवार्य पूर्वाभ्यास: गुरु के अभाव में, साधक को सबसे पहले अपने इष्ट देव (भगवान शिव) के मूल मंत्र (जैसे 'ॐ नमः शिवाय') का एक पुरस्चरण पूरा कर लेना चाहिए। पुरस्चरण का अर्थ है सवा लाख (1,25,000) जप करना। यह पुरस्चरण क्रिया साधक के मन, शरीर और ऊर्जा तंत्र को शाबर मंत्रों की तीव्र ऊर्जा को सहन करने और नियंत्रित करने के लिए तैयार करती है।
2.4. साधना में शुद्धि और परहेज: भोजन, ब्रह्मचर्य और व्यसनों से दूरी
शाबर साधना के दौरान कुछ अनिवार्य नियमों का पालन अत्यंत सख्ती से करना चाहिए:
- ब्रह्मचर्य: साधना काल (विशेषतः 41 दिन की अवधि) में ब्रह्मचर्य का शक्ति से पालन करना चाहिए। साधक अश्विनी या वज्र मुद्रा का अभ्यास कर सकता है, जो ब्रह्मचर्य पालन में सहायक होती है।
- भोजन और व्यसन: धूम्रपान, मध्यपान (शराब), अन्य व्यसन, और मांसाहार से पूरी तरह से बचना चाहिए।
- निष्ठा: प्रतिदिन साधना नियम और निष्ठापूर्वक करनी चाहिए।
- उच्चारण: शाबर मंत्रों की शक्ति के कारण, उच्चारण की शुद्धता (उच्चारण दोष) का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मंत्रों का गलत उच्चारण न केवल मंत्र को फलित होने से रोकता है, बल्कि साधक का नुकसान या अहित भी कर सकता है।
शाबर मंत्रों की तीव्रता को देखते हुए, साधक को दोहरी सुरक्षा की दीवार बनानी आवश्यक है: पहली आंतरिक शुद्धि (ब्रह्मचर्य, संकल्प) और दूसरी बाहरी सुरक्षा (गुरु मार्गदर्शन, पुरस्चरण, और शरीर रक्षा मंत्र)।
खंड 3: शिव शाबर मंत्र: पूर्ण पाठ और प्रामाणिक संदर्भ (प्रमुख मंत्र)
कठिन समस्याओं के समाधान हेतु, लोक-परंपरा में अत्यंत प्रसिद्ध 'भंडार भरण शंकर शाबर मंत्र' का पूर्ण विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
3.1. 'भंडार भरण शंकर शाबर मंत्र' (सर्व-समस्या निवारक)
यह मंत्र जीवन की सभी मूलभूत कठिनाइयों—दरिद्रता, रोग, शत्रु बाधा, और अभाव—को दूर करने के लिए विशेष रूप से सिद्ध माना जाता है।
3.1.1. मंत्र का शुद्ध और पूर्ण पाठ
यह मंत्र शिव-कृपा और नाथपंथी परंपरा की दुहाई शक्ति को समाहित करता है:
ॐ शंकर शंकर काशी के वासी। अर्ज हमारी दर्श दिखाओ। गौरा संग आओ, दोनों सूत संग लाओ। दरिद्र काटो, रोग काटो, शत्रु नाशो, भंडार भरो। न करो तो तो को राजा राम की दुहाई।
3.1.2. सरल देसी भाषा में मंत्र का भावार्थ और शक्ति-कथन
यह मंत्र भगवान शिव के समक्ष एक बच्चे की सहज पुकार है, जिसमें अत्यंत तीव्र परिणाम सुनिश्चित करने के लिए 'दुहाई' का प्रयोग किया गया है।
- आवाहन: हे शंकर, जो काशी (मोक्ष स्थान) के निवासी हैं! हमारी विनम्र विनती स्वीकार करें और हमें साक्षात दर्शन दें।
- परिवार सहित प्रार्थना: आप माँ गौरा (शक्ति और समृद्धि की प्रतीक) और अपने दोनों पुत्रों (बुद्धि के दाता गणेश और शक्ति के प्रतीक कार्तिकेय) के साथ हमारे जीवन में पधारें। यह आवाहन साधक के जीवन में शिव परिवार की समग्र ऊर्जा को स्थापित करने के लिए होता है।
- समस्या निवारण: हमारी दारिद्रयता (आर्थिक कष्ट, दुर्भाग्य), सभी प्रकार के रोग, और सभी शत्रुओं (आंतरिक और बाहरी) का नाश करें।
- कल्याण और समृद्धि: हमारे जीवन के भंडारों को भर दें, हमें सुख, समृद्धि और पूर्णता प्रदान करें।
- दुहाई : यदि आप हमारी यह अर्ज स्वीकार नहीं करते और कार्य सिद्ध नहीं करते, तो आपको मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम की आन (शपथ या दुहाई) है। शाबर मंत्रों में इस प्रकार की 'दुहाई' का प्रयोग शक्ति को त्वरित कार्य करने के लिए प्रेरित या बाध्य करने हेतु किया जाता है।
3.1.3. मंत्र का शाबर ग्रंथ / लोक-परंपरा में संदर्भ
यह मंत्र किसी एक विशिष्ट पुराण या वैदिक संहिता में नहीं पाया जाता। यह नाथपंथ, गोरखनाथी परंपरा और लोक-परंपरा (जन-श्रुतियों) में शाबर संहिता के एक भाग के रूप में मान्य है। इसे शिव साधकों के लिए अत्यंत अचूक और शीघ्र फलदायी माना गया है।
3.2. अन्य प्रमुख शिव/नाथपंथी शाबर प्रयोग
कठिन समस्याओं के समाधान में अक्सर रक्षात्मक शाबर मंत्रों का प्रयोग पूरक के रूप में किया जाता है:
- शिव रक्षा हेतु शाबर कवच: विपत्तियों और नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए शिव कवच या शरभ सालुव शाबर कवच (जो भगवान शिव का उग्र रूप है) का पाठ किया जाता है।
- गोरखनाथ शाबर मंत्र (काली विद्या/बंधन नाश): नाथपंथ के ये मंत्र सीधे शिव की ऊर्जा से जुड़े होते हैं और काली विद्या, जादू-टोना या नकारात्मक बंधन को काटने और लौटाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- मंत्रांश उदाहरण: "ओम गोरखनाथाय नमः। जो भी काली विद्या मुझ पर करी, उसकी शक्ति क्षीण हो, वह बंधन वहीं लौटे। मुझे शुद्ध और सुरक्षित रखो। ओम गोरखनाथाय सर्व रक्षकाय नमः ह फट स्वाहा।"
खंड 4: शिव शाबर साधना की विस्तृत क्रियाविधि (पाठ-विधि)
साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक साधक को निम्नलिखित विस्तृत क्रियाविधि का पालन दृढ़ संकल्प के साथ करना चाहिए।
4.1. साधना के लिए स्थान, समय और आसन का चुनाव
4.1.1. शुभ तिथियाँ और सिद्धिकाल
शाबर साधना शुरू करने के लिए कुछ विशेष कालखंड अत्यंत शुभ माने गए हैं:
- सर्वोत्तम समय: सावन (श्रावण) का महीना इस साधना को करने के लिए सर्वाधिक चमत्कारिक परिणाम देता है। इसके अलावा, वर्ष के किसी भी सोमवार को यह साधना शुरू की जा सकती है।
- तीव्र सिद्धिकाल: ग्रहण काल, पूर्णिमा की रात, या अमावस्या की रात इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए उत्तम समय हैं, क्योंकि इन अवधियों में प्रकृति में एक अद्भुत ऊर्जा प्रवाहित होती है।
- स्थान: साधना के लिए शांत और पवित्र स्थान का चुनाव करें, जैसे घर का पूजा स्थल, कोई एकांत कमरा, या प्रकृति से जुड़ा कोई मंदिर/नदी तट।
4.1.2. आसन और जप के लिए दिशा-निर्देश
- आसन: साधक को लाल रंग का ऊनी आसन प्रयोग करना चाहिए। घर के पूजा स्थल में भगवान शिव की फोटो या मूर्ति स्थापित करें और उनके समक्ष एक लाल कपड़ा बिछाकर बैठें।
- सामान्य दिशा: सामान्यतः, आध्यात्मिक उन्नति और धन-समृद्धि की साधनाओं के लिए उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना सर्वोत्तम माना जाता है।
यह जानना आवश्यक है कि शाबर मंत्रों का प्रयोग जब विशिष्ट भौतिक या राजसिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है (जैसे व्यवसाय या संपत्ति), तो दिशा का चयन उद्देश्य के अनुसार बदल जाता है। यह सूक्ष्म समायोजन साधना की फलदायकता को अधिकतम करता है।
4.2. जप के नियम और संख्या
- माला: यदि साधक माला का प्रयोग करना चाहे, तो उसे केवल रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करना चाहिए। माला का प्रयोग किए बिना भी जप किया जा सकता है, यदि समय निश्चित हो।
- साधना अवधि: इस साधना को पूर्ण विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ लगातार 41 दिनों तक करना अनिवार्य है।
- दैनिक जप संख्या: साधना काल में प्रतिदिन जप की संख्या 501 बार या 1100 बार होनी चाहिए। वैकल्पिक रूप से, साधक लगातार सवा घंटा इस मंत्र का जाप कर सकता है।
- नित्य जप (साधना पूर्ण होने पर): एक बार 41 दिन की साधना पूरी हो जाने के बाद, जीवन में मंत्र के प्रभाव को बनाए रखने के लिए साधक को प्रतिदिन 11, 21, 27 बार या एक माला (108 बार) का जप करना चाहिए ।
- उच्चारण की शुद्धता: जप शुरू करने से पहले, मंत्र को अच्छी तरह से याद कर लें। मंत्र के उच्चारण की शुद्धता (लय और शब्द) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मंत्र का सही उच्चारण साधक का कल्याण करता है, जबकि गलत उच्चारण या लय दोष हानि पहुंचा सकता है और मंत्र को फलित होने से रोकता है।
4.3. ध्यान विधि: भगवान शिव और माँ पार्वती का सहज (सरल) ध्यान
साधना में सफलता के लिए भाव और दृढ़ विश्वास अनिवार्य होता है। ध्यान को सरल और सहज रखना चाहिए, ताकि देसी भाषा के मंत्र का भाव मन पर छाया रहे।
- भाव ध्यान: आँखें बंद कर सीधे मंत्र के अर्थ को मन में धारण करें। यह अजपा जप कहलाता है।
- विग्रह ध्यान: भगवान शिव (काशी के वासी) और माँ गौरा को, उनके दोनों पुत्रों सहित, अपने सामने (फोटो या मूर्ति में) प्रकट होने का आह्वान करते हुए ध्यान करें। यह ध्यान परिवार की पूर्ण शक्ति को साधक के जीवन में आमंत्रित करता है।
- प्राणायाम द्वारा ऊर्जा संतुलन: शाबर मंत्रों की तीव्र ऊर्जा को संतुलित करने के लिए, साधना काल के दौरान मूल मंत्र के साथ अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने का विधान है। इसमें 1:8:4 के अनुपात का पालन किया जाता है—अर्थात् एक मंत्र से पूरक (श्वास लेना), आठ मंत्रों से कुंभक (श्वास रोकना), और चार मंत्रों से रेचक (श्वास छोड़ना) करें। यह क्रिया जितनी अधिक की जा सके, उतना ही साधक के ऊर्जा चक्रों के लिए हितकर है।
खंड 5: षोडशोपचार सहित साधना क्रम (पूजन विधि)
शाबर साधना शुरू करने के लिए पारंपरिक पूजन विधि का पालन करना सुरक्षा और सफलता सुनिश्चित करता है।
5.1. संकल्प लेने की विधि
साधना का आरंभ दृढ़ संकल्प से होना चाहिए।
- साधना शुरू करने से पहले, घर के पूजा स्थल पर सीधे हाथ में शुद्ध जल लें 18।
- सर्वप्रथम श्री गणेश जी और अपने सद्गुरु जी का ध्यान करें और उनसे साधना की निर्विघ्न समाप्ति के लिए प्रार्थना करें।
- जल हाथ में लेकर अपना नाम, गोत्र, स्थान और साधना का उद्देश्य (जैसे 'भंडार भरण', 'रोग नाश', या 'शत्रु मुक्ति') स्पष्ट रूप से उच्चारित करते हुए संकल्प लें। संकल्प पूर्ण होने पर जल को भूमि पर छोड़ दें।
5.2. श्री गणेश, गुरु और इष्ट शिव का आवाहन और स्थापना
शाबर मंत्रों को सिद्ध करने से पहले गुरु और गणेश की पूजा आराधना अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए 9।
- गुरु वंदना: सर्वप्रथम गुरु मंत्र का जप करें या गुरु वंदना (जैसे अखण्ड मण्डलाकारं व्यापतं येन चराचरम् तत पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरूवे नमः का पाठ करें।
- आवाहन: भगवान शिव को (गौरा और सूतों सहित) मूर्ति या फोटो में आह्वान करें।
5.3. पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन का सहज क्रम
साधना स्थल पर शुद्ध जल, धूप, दीप और पूजा सामग्री तैयार रखें। पारंपरिक पूजन क्रम इस प्रकार है:
- जलपात्र (कर्मपात्र) और घण्टा पूजन: सर्वप्रथम जलपात्र और घण्टा का पूजन करें। घण्टा पूजन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देवता का आगमन हो और बाधाएँ (राक्षस) दूर हों आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्।
- घृतदीप (ज्योति) पूजन: दीपक प्रज्जवलित करें और उसे कर्मसाक्षी मानते हुए उससे साधना की समाप्ति तक स्थिर रहने की प्रार्थना करें भो दीप देवीरूपस्तवं कर्मसाक्षी हूयविघ्नकृत यावत् कर्म समाप्ति स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव।
- वस्त्र समर्पण: शिव परिवार की मूर्ति या फोटो को वस्त्र समर्पित करें ।
- आचमन और नैवेद्य: आचमन के लिए जल समर्पित करें। इसके पश्चात भोग (नैवेद्य) और दीपदान करें। नैवेद्य के बाद पुनः आचमन के लिए जल अर्पित किया जाता है।
5.4. साधना काल में प्रतिदिन शिवलिंग अभिषेक का महत्व
साधना काल (41 दिन) के दौरान एक विशेष क्रिया अनिवार्य है। प्रतिदिन जप पूर्ण होने के बाद, साधक को शिवलिंग का जल या गाय के दूध से अभिषेक अवश्य करना चाहिए।
यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह साधक को शाबर मार्ग (जो कि शक्ति-केंद्रित है) पर चलते हुए भी वैदिक शुद्धि और सात्त्विकता से जोड़ती है। यह मंत्र की तीव्रता से उत्पन्न होने वाली किसी भी संभावित ऊर्जा असंतुलन को शांत करता है और साधक को शिव की सात्त्विक कृपा का पात्र बनाता है, जिससे मंत्र का तामसिक प्रभाव कल्याणकारी रूप में परिवर्तित हो जाता है।
5.5. साधना की अवधि और पुरश्चरण का विधान
- साधना अवधि: 41 दिनों तक दृढ़ संकल्प के साथ लगातार जप करने से मंत्र स्वतः सिद्ध हो जाते हैं।
- पुनः जागरण (जागरण): साधना पूर्ण होने के बाद भी, हर वर्ष उन्हीं तिथियों में या किसी शुभ तिथि पर मंत्र का पुनः जागरण करना चाहिए। जागरण में कम से कम एक माला जप करने और होम करने का विधान है। अधिक जप करने पर यह मंत्र बहुत ज्यादा फलदाई होता है।
खंड 6: कठिन समस्याओं के समाधान हेतु व्यावहारिक प्रयोग (प्रयोग क्षेत्र)
'भंडार भरण शंकर शाबर मंत्र' की शक्ति का प्रयोग जीवन के अनेक कठिन क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह मंत्र रोग, शत्रु, दरिद्रता और भौतिक अभाव का नाश करता है, जैसा कि मंत्र के मूल पाठ में स्पष्ट रूप से आह्वान किया गया है।
6.1. भय, मानसिक अशांति और वैवाहिक कलह का नाश
इस शाबर मंत्र के नियमपूर्वक जप से बड़ी से बड़ी मुश्किलें दूर हो जाती हैं, जिसमें घर में सुख-समृद्धि की स्थापना, वैवाहिक जीवन में कलह की समाप्ति, और मानसिक शांति की प्राप्ति शामिल है।
प्रयोग: प्रतिदिन जप के बाद शिव परिवार का ध्यान करें। यदि साधक को किसी अज्ञात भय या घबराहट (डर या आशंका) का सामना करना पड़ रहा हो, तो आत्मविश्वास बढ़ाने और शांति प्राप्त करने के लिए इस मंत्र का जप लाभकारी होता है। सुरक्षा के लिए शिव कवच या शरभ मंत्र जैसे रक्षा मंत्रों का श्रवण भी भय को दूर करने में सहायक होता है।
6.2. शत्रु दमन और कोर्ट-कचहरी में विजय हेतु विशेष प्रयोग
मंत्र में स्पष्ट रूप से 'शत्रु नाशो' का आह्वान किया गया है, जिसका अर्थ है शत्रुओं का नाश या उनकी शक्ति का शमन।
प्रयोग: शत्रु बाधा या कोर्ट-कचहरी संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु, साधक को उच्च जप संख्या (जैसे 1100 बार) का प्रयोग करना चाहिए।
सावधानियाँ: शत्रु नाश का प्रयोग केवल न्याय और आत्मरक्षा के लिए ही होना चाहिए। किसी भी प्रतिशोध या द्वेषपूर्ण भावना के लिए इसका प्रयोग सख्त वर्जित है। साधना से पहले शरभ सालुव शाबर कवच या अन्य भैरवी रक्षा मंत्रों का पाठ अनिवार्य है ताकि शत्रु के नकारात्मक प्रभाव साधक को छू न सकें।
6.3. रोग मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ
मंत्र में 'रोग काटो' का स्पष्ट उल्लेख है। इस मंत्र का प्रयोग गंभीर रोगों से मुक्ति और स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जा सकता है।
प्रयोग: यदि कोई व्यक्ति गंभीर रोग से पीड़ित है, तो साधक को मंत्र का जप करते हुए शिव लिंग पर जल या दूध चढ़ाने के बाद उस प्रसाद को रोगी को ग्रहण कराना चाहिए। लोक-परंपराओं में, रोग निवारण के लिए मंत्र से अभिमंत्रित भस्म (राख) को रोगी के माथे पर लगाने का भी विधान पाया जाता है। रोग और दारिद्र्य को नष्ट करने के लिए दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र (यद्यपि यह शाबर मंत्र नहीं है) को भी त्रिसंध्या (सुबह, दोपहर, शाम) पढ़ने की सलाह दी जाती है।
6.4. व्यवसाय, धन और दारिद्र्य निवारण हेतु दिशा अनुसार प्रयोग
'भंडार भरो' (भंडार भरण) का आह्वान धन, समृद्धि, व्यवसाय में उन्नति और दरिद्रता के नाशन के लिए मुख्य है। व्यवसाय के प्रकार के आधार पर, शाबर साधना में दिशा का चयन इस प्रकार किया जाता है:
व्यवसाय/धन प्राप्ति हेतु जप दिशा
| व्यवसाय का क्षेत्र | जप के लिए दिशा (मुख) | तत्व/ऊर्जा संबंध | सिद्धांत |
|---|---|---|---|
| लॉटरी, सट्टा, शेयर मार्केट, बैंकिंग, मेडिकल, होटल, नौकरी (तेज/मानसिक कार्य, उन्नति) | उत्तर दिशा | कुबेर (धन का स्वामी), बुध (बुद्धि/संचार) | तरल संपत्ति और मानसिक कार्य में सफलता हेतु। |
| जमीन क्रय-विक्रय, खेती, लोहा, कोयला, चमड़ा, ब्रोकरेज/दलाली (भौतिक/श्रम प्रधान कार्य) | दक्षिण दिशा | मंगल (भूमि/श्रम), शनि (कठोरता/धातु) | भौतिक संपत्ति, अचल संपत्ति और दलाली कार्य में सफलता हेतु। |
| सामान्य कल्याण और सुख-समृद्धि | उत्तर दिशा | शांति, स्थिरता | नित्य साधना हेतु। |
साधक को अपने विशिष्ट कार्यक्षेत्र के अनुसार दिशा का चुनाव करना चाहिए ताकि मंत्र की ऊर्जा उस उद्देश्य पर अधिकतम रूप से केंद्रित हो सके।
खंड 7: शाबर कवच और सुरक्षा विधान
शाबर साधना की सफलता और सुरक्षा के लिए साधना पूर्व शरीर की रक्षा करना और मंत्र के अंत में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दावली (दुहाई) को समझना अनिवार्य है।
7.1. साधना पूर्व 'शरीर रक्षा मंत्र' का प्रयोग
शाबर मंत्रों की तीव्र ऊर्जा और उनके संभावित तामसिक क्षेत्र (जैसे नकारात्मक शक्तियों से निपटना) के कारण, साधना शुरू करने से पहले शरीर की सुरक्षा हेतु घेरा बनाना अत्यंत आवश्यक है।
शरीर रक्षा मंत्र (उदाहरण):
"नमों आदि आदेश गुरू के जय हनुमान वीर महान करथों तोला प्रनाम, भूत-प्रेत मरी-मशान भाग जाय तोर सुन के नाम, मोर शरीर के रक्षा करिबे नही तो सिता भैया के सैया पर पग ला धरबे, मोर फू के मोर गुरू के फू के गुरू कौन गौर महादेव के फू के जा रे शरीर बँधा जा।"
विधि: शाबर साधना शुरू करने से ठीक पहले, इस मंत्र को ग्यारह बार पढ़कर अपने चारों ओर एक सुरक्षा घेरा (मंडल) बना लें । यह घेरा साधना में आने वाले सभी विघ्नों, बाहरी बाधाओं, भूत-प्रेत, और मरी-मशान (नकारात्मक शक्तियों) से साधक की रक्षा करता है। यह सुरक्षा कवच सुनिश्चित करता है कि साधक निर्विघ्न होकर अपनी साधना पूरी कर सके।
7.2. मंत्र की दुहाई और आन का अर्थ: शाबर परंपरा की विशिष्ट शब्दावली
शाबर मंत्रों की एक विशिष्ट संरचना होती है, जिसमें 'ईश्वर वाचा' (गुरु/ईश्वर का वचन) और अंत में 'दुहाई', 'आन' या 'सौगंध' जैसे शब्द प्रयुक्त होते हैं। इन शब्दों का प्रयोग शाबर परंपरा की देसी भाषा की शक्ति को दर्शाता है।
दुहाई/आन का कार्य: ये शब्द उस शक्ति (जैसे शंकर या गोरखनाथ) को त्वरित कार्य करने के लिए बाध्य या प्रेरित करते हैं। जब 'भंडार भरण शंकर शाबर मंत्र' में कहा जाता है: "न करो तो तो को राजा राम की दुहाई," तो यह भगवान शिव को मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम की शपथ देकर, अपने भक्तों का कार्य तुरंत सिद्ध करने की तीव्र और सहज प्रार्थना है। यह तंत्र में अनिवार्य रूप से कार्य सिद्ध करने का एक शक्तिशाली मनोवैज्ञानिक और ऊर्जात्मक उपकरण है।
7.3. समापन विधि: क्षमा-प्रार्थना और आशीर्वाद
साधना की समाप्ति के बाद, भगवान शिव से जाने-अनजाने में हुई त्रुटियों, उच्चारण दोषों या विधि में हुई कमी के लिए क्षमा-प्रार्थना करें।
साधना के पूर्ण होने पर, साधक को अपने संकल्प के अनुरूप गरीब या ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, या वस्त्र दान (भंडारा) करने का विधान है।
साधना के बाद नित्य रूप से जप जारी रखना (11 या 21 बार) मंत्र के प्रभाव को जीवन भर बनाए रखता है।
निष्कर्ष: शिव शाबर मंत्रों से जीवन की बाधाओं से मुक्ति
यह संकलन भगवान शिव की कृपा, नाथपंथ के ज्ञान, और भारतीय लोक-परंपरा की शक्ति का एक अनूठा समन्वय है। शिव शाबर मंत्र, अपनी सरल और सहज देसी भाषा के कारण, आधुनिक साधक के लिए भी कठिन समस्याओं (रोग, शत्रु, व्यवसाय बाधा, दरिद्रता) का समाधान प्राप्त करने का एक सीधा और तीव्र मार्ग प्रस्तुत करते हैं।
यह प्रमाणित साधना विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि सफलता केवल मंत्र के पाठ पर निर्भर नहीं करती, बल्कि साधक के समर्पण, दृढ़ विश्वास और सात्त्विक नियमों के पालन पर निर्भर करती है। मंत्र की शक्ति तीव्र है, इसलिए शुद्ध उच्चारण और गुरु मार्गदर्शन (अथवा शिव मंत्र का पुरस्चरण) तथा शरीर रक्षा मंत्रों का प्रयोग साधना की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है । इस मार्ग पर चलने वाला साधक भगवान शिव की त्वरित कृपा से जीवन की सभी भौतिक और आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्त होकर कल्याण प्राप्त करता है। यह साधना पद्धतियाँ उस सनातन विश्वास को उजागर करती हैं जो विज्ञान के युग में भी लोक विश्वास के तौर पर जीवित है, जब सभी साधारण उपाय विफल हो जाते हैं।