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श्रीराम चालीसा: 7 दिवसीय साधना और रचयिता का इतिहास !

AI सारांश (Summary)

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बृहद शोध प्रतिवेदन: भगवान श्रीराम चालीसा — मूल पाठ, ऐतिहासिक मीमांसा एवं साधना विज्ञान

१. भूमिका एवं विषय प्रवर्तन

सनातन धर्म की भक्ति परंपरा में 'चालीसा' साहित्य का स्थान अत्यंत विशिष्ट और प्रभावशाली है। यह संस्कृत के जटिल स्तोत्रों और जनसामान्य की सरल भक्ति भावना के मध्य एक सेतु का कार्य करता है। जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास कृत 'श्रीरामचरितमानस' ने रामकथा को घर-घर पहुँचाया, उसी प्रकार 'चालीसा' शैली ने इष्टदेव की नित्य आराधना को सुलभ बनाया। प्रस्तुत शोध प्रतिवेदन का उद्देश्य भगवान श्रीराम की चालीसा का एक सर्वांगीण, सूक्ष्म और विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करना है।

2. भगवान श्रीराम चालीसा: संपूर्ण मूल पाठ

शोध और विभिन्न प्राचीन गुटकों (पुस्तिकाओं) के विश्लेषण के पश्चात, गीता प्रेस और अन्य प्रामाणिक प्रकाशनों द्वारा स्वीकृत भगवान श्रीराम चालीसा का शुद्ध पाठ यहाँ प्रस्तुत है।

॥ दोहा ॥

आदि गणेश मनाय के, ध्याऊँ अवधबिहारी । कृपा सिन्धु रघुनाथ जी, कीजै विमल मति भारी ॥ (टिप्पणी: कई संस्करणों में यह प्रारंभिक दोहा भिन्न हो सकता है, परंतु मूल चालीसा का प्रारंभ नीचे दी गई चौपाई से होता है)

॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥ १ ॥ ध्यान धरै शिवजी मन माहीं । ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥ २ ॥ तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥ तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥ ३ ॥ ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥ चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥ ४ ॥ गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥ ५ ॥ राम नाम है अपरम्पारा । चारिउ वेद जाहि पुकारा ॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ॥ ६ ॥ शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥ फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ॥ ७ ॥ भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुँ न रण में हारो ॥ नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥ ८ ॥ लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा रहत रण-काज प्रचारी ॥ ताते निश्चय रण में जीतें । जहाँ जाईं तहँ रन्को बीतें ॥ ९ ॥ महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ॥ सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥ १० ॥ घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ॥ सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥ ११ ॥ सिद्धि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ॥ औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥ १२ ॥ इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ॥ जो तुम्हरे चरनन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ॥ १३ ॥ सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ॥ तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥ १४ ॥ जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥ रामात्मा पोषण हारे । जय दशरथ के राज दुलारे ॥ १५ ॥ ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ॥ धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ॥ १६ ॥ सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥ सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥ १७ ॥ सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥ सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ॥ १८ ॥ सत्य शुद्ध देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥ सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ॥ १९ ॥ याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥ आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिव मेरा ॥ २० ॥ और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ॥ तीनहुँ काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥ २१ ॥ साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्धता पावै ॥ अन्त समय रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥ २२ ॥ श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ॥

॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय । हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ॥ राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय । जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय ॥ ॥ इति श्री राम चालीसा समाप्त ॥

3. रचयिता 'हरिदास' की ऐतिहासिक एवं साहित्यिक पहचान

श्रीराम चालीसा की अन्तिम पंक्तियों में रचयिता का नाम स्पष्ट रूप से अंकित है—"श्री हरिदास कहै अरु गावै" और "हरिदास हरि कृपा से"। यह उल्लेख शोधकर्ताओं के लिए एक जटिल पहेली प्रस्तुत करता है, क्योंकि भारतीय भक्ति आंदोलन के इतिहास में 'हरिदास' नाम के अनेक प्रमुख संत और कवि हुए हैं। इस खंड में हम उपलब्ध साक्ष्यों, भाषाई शैली और संप्रदायों के आधार पर रचयिता की पहचान को स्थापित करने का प्रयास करेंगे।

3.1 संभावित रचयिताओं का तुलनात्मक विश्लेषण

शोध के दौरान 'हरिदास' नामधारी तीन प्रमुख ऐतिहासिक व्यक्तित्व सामने आते हैं। नीचे दी गई तालिका में उनका तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है ताकि यह समझा जा सके कि श्रीराम चालीसा के वास्तविक रचयिता कौन हो सकते हैं:

क्र. संत/कवि का नाम कालखंड (अनुमानित) मुख्य संप्रदाय/इष्ट रचना शैली एवं भाषा श्रीराम चालीसा के रचयिता होने की संभावना
१. स्वामी हरिदास (वृंदावन) 16 वीं शताब्दी (अकबर समकालीन) सखी संप्रदाय (कृष्ण-राधा) ब्रजभाषा, ध्रुपद गायन, 'केलिमाल' अत्यंत क्षीण: ये अनन्य कृष्ण भक्त थे और बांके बिहारी के उपासक थे। इनकी रचनाएँ विशुद्ध ब्रज में हैं और राम-भक्ति परक चालीसा इनकी शैली से मेल नहीं खाती ।
२. संत हरिदास (निरंजनी) 16वीं-17वीं शताब्दी निरंजनी संप्रदाय (निर्गुण-सगुण मिश्रित) राजस्थानी मिश्रित हिंदी मध्यम: इनकी वाणी में निर्गुण ब्रह्म की प्रधानता है, जबकि राम चालीसा पूर्णतः सगुण साकार राम की उपासना है ।
३. हरिदास (रामानंदी संत) 18वीं-19वीं शताब्दी रामानंदी संप्रदाय खड़ी बोली मिश्रित अवधी सर्वाधिक प्रबल: चालीसा शैली का उदय १८वीं सदी के बाद अधिक हुआ। भाषा में आधुनिकता का पुट है जो तुलसीदास के बाद के काल का संकेत देता है।

३.२ रचयिता के रूप में 'रामानंदी संत हरिदास' की स्थापना

विस्तृत विश्लेषण यह संकेत देता है कि श्रीराम चालीसा के रचयिता वे प्रसिद्ध स्वामी हरिदास (संगीतज्ञ तानसेन के गुरु) नहीं हैं, बल्कि ये 18वीं या 19वीं शताब्दी के कोई सिद्ध रामानंदी वैरागी संत हैं जिनका नाम भी हरिदास था। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं:

  • भाषा विज्ञान: श्रीराम चालीसा की भाषा तुलसीदास जी की 'रामचरितमानस' (16वीं सदी) की क्लिष्ट अवधी से भिन्न है। इसमें "सुन लीजै", "होई", "पावै" जैसे प्रयोग खड़ी बोली और ब्रज के उस मिश्रण को दर्शाते हैं जो 18वीं-19वीं सदी के उत्तर भारत में प्रचलित था। यह वह समय था जब संस्कृत के स्थान पर जनभाषा में 'चालीसा' और 'आरती' लिखने की परंपरा जोर पकड़ रही थी।
  • काव्य शैली : 'चालीसा' एक विशेष काव्य विधा है जो गोस्वामी तुलसीदास के बाद विकसित हुई। यद्यपि हनुमान चालीसा तुलसीदास कृत मानी जाती है, परंतु अन्य देवताओं की चालीसाएँ बाद के संतों द्वारा रची गईं। इस चालीसा में "साग पत्र सो भोग लगावै" जैसी पंक्तियाँ एक सरल, ग्रामीण और गृहस्थ भक्ति का संकेत देती हैं, जो रामानंदी संप्रदाय की उदारवादी परंपरा के अनुकूल है।
  • नाम की छाप: अंतिम दोहे में "हरिदास हरि कृपा से" का उल्लेख यह स्पष्ट करता है कि कवि अपना श्रेय भगवान 'हरि' (विष्णु/राम) को दे रहे हैं। रामानंदी संप्रदाय में दीक्षा के बाद शिष्यों को प्रायः 'दास' उपनाम दिया जाता है (जैसे तुलसीदास, नाभादास)। अतः 'हरिदास' नाम के किसी विरक्त संत ने जन-कल्याण हेतु इस चालीसा की रचना की होगी।

3.3 भ्रांतियों का निवारण

प्रायः सामान्य श्रद्धालु यह मान लेते हैं कि रामायण से संबंधित समस्त साहित्य गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है। इंटरनेट पर उपलब्ध कई स्रोतों में भ्रमवश इसे तुलसीदास कृत बता दिया जाता है , लेकिन मूल पाठ का साक्ष्य इसे नकारता है। तुलसीदास जी की रचनाओं में सर्वत्र 'तुलसी' या 'तुलसीदास' की छाप मिलती है (जैसे: "तुलसीदास सदा हरि चेरा" - हनुमान चालीसा)। श्रीराम चालीसा में स्पष्ट रूप से 'हरिदास' का नाम है।

निष्कर्ष: श्रीराम चालीसा के रचयिता संत हरिदास हैं, जो संभवतः 18वीं-19वीं सदी के एक रामभक्त कवि थे। उनका उद्देश्य संस्कृत न जानने वाले सामान्य भक्तों के लिए राम-आराधना को सुलभ बनाना था।

4. रचना का काल एवं ऐतिहासिक उद्गम

4.1 काल-निर्धारण

श्रीराम चालीसा के सटीक रचना वर्ष का लिखित प्रमाण किसी ऐतिहासिक पांडुलिपि में उपलब्ध नहीं है, परंतु साहित्यिक साक्ष्यों और प्रकाशन इतिहास के आधार पर इसका काल-निर्धारण किया जा सकता है।
तर्क: यह वह दौर था जब मुद्रण कला के आगमन से पूर्व हस्तलिखित गुटकों में भजनों का संग्रह किया जाता था। नवल किशोर प्रेस और बाद में खेमराज श्रीकृष्णदास प्रेस (बंबई) तथा गीता प्रेस (गोरखपुर) ने जब धार्मिक साहित्यों का मानकीकरण और प्रकाशन शुरू किया, तब ये लोक-प्रचलित चालीसाएँ लिखित रूप में स्थिर हो गईं।

4.2 भौगोलिक उद्गम

भाषा में अवधी और ब्रज के मिश्रण के साथ-साथ 'खड़ी बोली' का प्रभाव यह दर्शाता है कि इसकी रचना पश्चिमी उत्तर प्रदेश या अवध क्षेत्र (वर्तमान लखनऊ, अयोध्या, कानपुर क्षेत्र) में हुई होगी। "ध्याऊँ अवधबिहारी" पंक्ति सीधे तौर पर अयोध्या क्षेत्र की भक्ति परंपरा से जुड़ाव दर्शाती है।

6. साधना विधि एवं अनुष्ठान

उपयोगकर्ता द्वारा "श्रद्धा एवं नियमपूर्वक पाठ" की विधि विशेष रूप से पूछी गई है। शास्त्रों और संत परंपरा के अनुसार, किसी भी चालीसा का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब उसे विधि-विधान से किया जाए। श्रीराम चालीसा पाठ की विस्तृत विधि निम्न प्रकार है।

6.1 नित्य पाठ की सामान्य विधि

जो साधक प्रतिदिन सामान्य रूप से पाठ करना चाहते हैं, वे इन नियमों का पालन करें:

  • समय: सर्वोत्तम समय 'ब्रह्ममुहूर्त' (सूर्योदय से 1.5 घंटे पूर्व) है। यदि यह संभव न हो, तो स्नान के पश्चात प्रातः पूजा के समय या संध्या वंदन (सूर्यास्त) के समय पाठ करें।
  • दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। पूर्व दिशा सूर्य (राम सूर्यवंशी हैं) की दिशा है, अतः यह सर्वश्रेष्ठ है।
  • आसन : ऊनी आसन (पीले या लाल रंग का) या कुशा का आसन प्रयोग करें। भूमि पर सीधे न बैठें।
  • चित्र/मूर्ति: सामने लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान श्रीराम दरबार (राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान) का चित्र या विग्रह स्थापित करें।
  • दीपक एवं धूप: गाय के घी का दीपक (दाहिनी ओर) और धूपबत्ती जलाएं। यह वातावरण को शुद्ध और सात्विक बनाता है।

6.2 विशेष अनुष्ठान: 'सात दिवसीय नियम'

श्रीराम चालीसा के अंतिम दोहे में एक विशिष्ट अनुष्ठान का वर्णन है, जो मनोकामना पूर्ति के लिए अमोघ माना जाता है:
"सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय। हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥"

विधि-विधान:

  • संकल्प: किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार, रविवार या रामनवमी के दिन से यह अनुष्ठान प्रारंभ करें। पहले दिन हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प लें: "मैं (अमुक नाम/गोत्र) अपनी (अमुक मनोकामना) की पूर्ति हेतु अगले 7 दिनों तक श्रीराम चालीसा का पाठ करने का संकल्प लेता हूँ।"
  • संख्या: प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में पाठ करें (जैसे: 7, 11, 21 या 108 पाठ)। सामान्य गृहस्थ के लिए प्रतिदिन 11 पाठ करना शुभ माना जाता है।
  • ब्रह्मचर्य और आहार: इन 7 दिनों में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। आहार पूर्णतः सात्विक (लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा रहित) होना चाहिए। एक समय भोजन (फलाहार) करना विशेष फलदायी है।
  • भोग (नैवेद्य): चालीसा में उल्लेख है—"तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै, साग पत्र सो भोग लगावै".
    भगवान राम को तुलसी दल अनिवार्य रूप से अर्पित करें। विष्णु अवतार होने के कारण बिना तुलसी के वे भोग स्वीकार नहीं करते।
    भोग में 'साग-पत्र' का उल्लेख शबरी और विदुर की भक्ति को दर्शाता है। इसका अर्थ है सादा, घर का बना शुद्ध भोजन, फल या मिठाई।
  • समापन : सातवें दिन पाठ पूर्ण होने के बाद, राम जी की आरती करें। यथाशक्ति छोटे हवन (राम नाम की आहुति) का आयोजन करें और प्रसाद वितरण करें।

6.3 पाठ के दौरान ध्यान रखने योग्य सूक्ष्म बातें

  • उच्चारण: पाठ का उच्चारण स्पष्ट और लयबद्ध होना चाहिए। बहुत जल्दबाजी में पाठ न करें।
  • मनोभाव: "राम चरण चित लाय" — पाठ करते समय मन में यह भाव रखें कि आप अयोध्या में भगवान के सिंहासन के समक्ष बैठे हैं।
  • समर्पण: पाठ के अंत में जल छोड़ते हुए कहें—"श्रीरामार्पणमस्तु" (यह सब श्रीराम को समर्पित है)।

7. तुलनात्मक अध्ययन: गीता प्रेस एवं अन्य संस्करण

सिफारिश: पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे साधना के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित "चालीसा संग्रह" या "नित्यकर्म पूजा प्रकाश" में दी गई श्रीराम चालीसा को ही मानक मानें, क्योंकि वे पांडुलिपियों के शोधन के बाद ही प्रकाशित करते हैं।

8. चालीसा पाठ के लाभ एवं प्रभाव

श्रद्धापूर्वक श्रीराम चालीसा का पाठ करने से साधक के जीवन में बहुआयामी सकारात्मक परिवर्तन आते हैं:

  • दैहिक लाभ : पाठ में वर्णित "नाम तुम्हार हरत संतापा" के अनुसार, राम नाम के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप और अनिद्रा जैसे रोगों में राहत प्रदान करती हैं। इसे 'मंत्र चिकित्सा' का एक रूप माना जाता है।
  • दैविक लाभ : "अन्त समय रघुबर पुर जाई" — यह पाठ जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। यह साधक के पाप कर्मों का क्षय करता है ("सब विधि करत पाप को छारा").
  • भौतिक लाभ : "जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय" — नौकरी, विवाह, संतान प्राप्ति या शत्रु भय निवारण के लिए यह पाठ अमोघ अस्त्र माना जाता है।
  • ज्ञान और विवेक: "ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा" पंक्ति का निरंतर जप करने से विद्यार्थियों को स्मरण शक्ति और प्रज्ञा की प्राप्ति होती है।
॥ सियावर रामचन्द्र की जय ॥
॥ पवनसुत हनुमान की जय ॥

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