विष्णु पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है और इसे वैष्णव पुराण के रूप में जाना जाता है। इसका उल्लेख है कि इसमें पराशर ऋषि ने वराह कल्प की घटनाओं से प्रारंभ कर सभी कर्तव्यों का वर्णन किया है।
मत्स्य पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, इसमें तेईस हजार (23000) श्लोक होने चाहिए, लेकिन उपलब्ध प्रतियों में इसकी संख्या लगभग सात हजार तक सीमित पाई गई है।
विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मांड की संरचना, समय की गणना और विभिन्न लोकों का विस्तृत विवरण मिलता है। यह ग्रंथ स्पष्ट रूप से बताता है कि भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं, और उन्हीं से सृजन, पालन और संहार की प्रक्रिया संचालित होती है।
विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल परमात्मा विष्णु ही थे, जो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापक थे।
महत तत्त्व से अहंकार उत्पन्न हुआ, जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया:
सृष्टि की संरचना के लिए विष्णु ने पंचमहाभूतों (पाँच मूलभूत तत्वों) को प्रकट किया:
इन पंचमहाभूतों से ही संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रह-नक्षत्र, जीव और पदार्थ का निर्माण हुआ।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के प्रभाव से सृष्टि में चौदह लोकों का निर्माण हुआ।
इन लोकों को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
विष्णु पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भूलोक (पृथ्वी) कर्मभूमि है, जहाँ जीव अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग, नरक या मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
विष्णु पुराण में समय की गणना अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक पद्धति से दी गई है।
1 महायुग = चार युगों का चक्र
चारों युगों का चक्र मिलाकर एक महायुग (4,320,000 वर्ष) बनता है।
एक मन्वंतर में 71 महायुग होते हैं।
अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर है।
एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं।
1 ब्रह्मा दिन = 1000 महायुग
ब्रह्मा की रात भी 1000 महायुग के बराबर होती है।
ब्रह्मा के 1 दिन और 1 रात मिलाकर 8.64 अरब वर्ष होते हैं।
ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे होने पर महाप्रलय होता है, जिसमें संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाती है।
इस गणना से स्पष्ट होता है कि हिंदू धर्म में समय को अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा गया है।
प्रत्येक कल्प के अंत में ब्रह्मा सो जाते हैं और सृष्टि का नाश हो जाता है।
जब ब्रह्मा पुनः जागते हैं, तो सृष्टि पुनः प्रारंभ होती है।
जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि जल में समा जाती है।
यह प्रलय हर कल्प के अंत में होता है।
जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब संपूर्ण ब्रह्मांड का नाश हो जाता है और सभी जीव भगवान विष्णु में विलीन हो जाते हैं।
इसके बाद पुनः सृष्टि की रचना होती है।
विष्णु पुराण में मन्वंतर का अत्यंत विस्तृत वर्णन किया गया है। मन्वंतर का अर्थ है "मनु का युग", अर्थात वह समय जब एक मनु समस्त प्रजा का पालन करते हैं और उनके शासन में देवता, ऋषि, असुर, दानव तथा अन्य जीव भी उसी काल में विद्यमान रहते हैं।
एक कल्प में कुल चौदह मन्वंतर होते हैं, और हर मन्वंतर में एक नया मनु तथा देवताओं का नया शासन होता है। प्रत्येक मन्वंतर में पृथ्वी पर नई सृष्टि होती है, और इसमें नए ऋषि, राजा, तथा धर्म के नए रूप प्रकट होते हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार, अब तक छः मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान में हम सातवें मन्वंतर में हैं, जिसे वैवस्वत मन्वंतर कहा जाता है।
क्रमांक | मनु का नाम | प्रमुख घटनाएँ |
---|---|---|
1 | स्वायंभुव मनु | प्रथम मनु, सृष्टि का प्रारंभ, ऋषि, देवता और असुरों की उत्पत्ति |
2 | स्वारोचिष मनु | देवताओं और असुरों के बीच प्रथम युद्ध |
3 | उत्तम मनु | मानव सभ्यता का विस्तार |
4 | तामस मनु | पाप और पुण्य का विस्तृत ज्ञान |
5 | रैवत मनु | योग और तपस्या का प्रभाव |
6 | चाक्षुष मनु | महर्षि भृगु और अन्य ऋषियों का युग |
7 | वैवस्वत मनु | वर्तमान युग, श्रीराम, श्रीकृष्ण और महाभारत की घटनाएँ |
8 | सावर्णि मनु | भविष्य के युग का प्रारंभ |
9 | दक्षसावर्णि मनु | नए देवताओं का उदय |
10 | ब्रह्मसावर्णि मनु | सत्य युग की पुनः स्थापना |
11 | धर्मसावर्णि मनु | ब्रह्मज्ञान का विस्तार |
12 | रुद्रसावर्णि मनु | शिव के भक्ति का प्रभाव |
13 | देवसावर्णि मनु | विष्णु भक्ति और धर्म पुनः स्थापित |
14 | इंद्रसावर्णि मनु | अंतिम मनु, प्रलय की ओर बढ़ता युग |
हर मन्वंतर में नए मनु, नए देवता और नए ऋषि होते हैं, जो संसार को धर्म और नीति का ज्ञान कराते हैं।
विष्णु पुराण में सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं की वंशावली को अत्यंत विस्तार से बताया गया है, जो ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सूर्यदेव से उत्पन्न राजा इक्ष्वाकु से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीराम के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
सूर्यदेव से उत्पन्न राजा इक्ष्वाकु से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीराम के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
प्रमुख राजा | विशेषता |
---|---|
इक्ष्वाकु | सूर्यवंश के प्रथम राजा |
कुशल्य | वंश का विस्तार करने वाले राजा |
सगर | जिन्होंने गंगा को खोजने का कार्य किया |
भगीरथ | जिन्होंने गंगा को धरती पर उतारा |
दशरथ | श्रीराम के पिता |
श्रीराम | भगवान विष्णु के अवतार |
यह वंश वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारंभ हुआ था, और इसमें अनेक धर्मपरायण राजाओं ने जन्म लिया।
चंद्रदेव से उत्पन्न राजा ययाति से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीकृष्ण, यदुवंश और कुरुवंश के कारण प्रसिद्ध है।
प्रमुख राजा | विशेषता |
---|---|
ययाति | चंद्रवंश के प्रथम प्रमुख राजा |
पुरु | पौरव वंश के संस्थापक |
यदु | यदुवंश के प्रवर्तक |
कौरव और पांडव | महाभारत के प्रमुख पात्र |
श्रीकृष्ण | भगवान विष्णु के अवतार |
चंद्रवंश दो भागों में विभाजित है – यदुवंश और कुरुवंश। यदुवंश में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, और कुरुवंश में कौरव और पांडव हुए।
विष्णु पुराण में राजा भरत का उल्लेख मिलता है, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम "भारत" पड़ा।
भरत राजा ऋषभदेव के पुत्र थे, और उन्होंने अपने शासनकाल में धर्म, नीति और न्याय की स्थापना की।
उनके राज्य का विस्तार संपूर्ण आर्यावर्त में था, और उन्होंने अनेक राज्यों को एक सूत्र में बाँधकर एक महान सम्राट के रूप में शासन किया।
विष्णु पुराण में भारतवर्ष का विशेष महत्त्व बताया गया है, क्योंकि यह पुण्यभूमि है और यही मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे उत्तम स्थान माना गया है।
महाभारत की पृष्ठभूमि को समझने के लिए विष्णु पुराण में यदुवंश और कुरुवंश का विस्तृत वर्णन किया गया है।
यदुवंश की स्थापना यदु राजा ने की थी, जो चंद्रवंश से उत्पन्न हुए थे।
इस वंश में अनेक महान राजा हुए, जिनमें श्रीकृष्ण सबसे महत्वपूर्ण हैं।
कुरुवंश की स्थापना राजा कुरु ने की थी।
इस वंश में शांतनु, भीष्म, धृतराष्ट्र, पांडु, दुर्योधन और पांडवों का जन्म हुआ।
महाभारत का युद्ध इसी वंश के दो शाखाओं – कौरव और पांडव – के बीच हुआ था।
विष्णु पुराण में इस वंश के विस्तार को अत्यंत गहराई से बताया गया है, जिससे महाभारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने में सहायता मिलती है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के पूर्णावतार हैं, जिन्होंने अधर्म के नाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जन्म लिया।
जब पृथ्वी माता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि असुरों का अत्याचार बहुत बढ़ गया है, तब उन्होंने यदुवंश में जन्म लेने का संकल्प लिया।
कंस को यह भविष्यवाणी सुनाई गई थी कि उसकी मृत्यु उसकी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी।
इस कारण, कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके सभी संतान को मार दिया।
जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब भगवान विष्णु के प्रभाव से वसुदेव की हथकड़ियाँ खुल गईं, और यमुना नदी ने मार्ग दिया, जिससे वसुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़कर आ सके।
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को हुआ और तभी से जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है।
गोकुल और वृंदावन में श्रीकृष्ण ने अनेक बाल लीलाएँ कीं, जिससे उनका ईश्वरीय स्वरूप प्रकट हुआ।
श्रीकृष्ण की मृत्यु यह दर्शाती है कि संसार में जो जन्म लेता है, उसे एक दिन जाना ही पड़ता है, लेकिन ईश्वर सदा अमर रहते हैं।
विष्णु पुराण में धर्म, कर्म और मोक्ष को जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक बताया गया है। यह ग्रंथ मानव जीवन के उद्देश्य, पाप-पुण्य के प्रभाव और मोक्ष प्राप्ति के मार्गों का विस्तार से वर्णन करता है।
विष्णु पुराण के अनुसार, धर्म चार स्तंभों पर आधारित होता है, जिन्हें सत्य, दया, तप और दान कहा गया है।
जब ये चारों स्तंभ संतुलित होते हैं, तभी समाज और व्यक्ति दोनों में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है।
"जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा" – यह सिद्धांत विष्णु पुराण का मूल संदेश है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि मोक्ष (मुक्ति) ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और इसे प्राप्त करने के लिए तीन प्रमुख मार्ग बताए गए हैं।
यह सबसे सरल और सबसे प्रभावी मार्ग माना जाता है।
यह मार्ग कठिन है और केवल महान ऋषि-मुनि ही इसे प्राप्त कर सकते हैं।
भगवद्गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया था।
विष्णु पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है और इसे वैष्णव पुराण के रूप में जाना जाता है। इसका उल्लेख है कि इसमें पराशर ऋषि ने वराह कल्प की घटनाओं से प्रारंभ कर सभी कर्तव्यों का वर्णन किया है।
मत्स्य पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, इसमें तेईस हजार (23000) श्लोक होने चाहिए, लेकिन उपलब्ध प्रतियों में इसकी संख्या लगभग सात हजार तक सीमित पाई गई है।
विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मांड की संरचना, समय की गणना और विभिन्न लोकों का विस्तृत विवरण मिलता है। यह ग्रंथ स्पष्ट रूप से बताता है कि भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं, और उन्हीं से सृजन, पालन और संहार की प्रक्रिया संचालित होती है।
विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में केवल परमात्मा विष्णु ही थे, जो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापक थे।
महत तत्त्व से अहंकार उत्पन्न हुआ, जिसे तीन भागों में विभाजित किया गया:
सृष्टि की संरचना के लिए विष्णु ने पंचमहाभूतों (पाँच मूलभूत तत्वों) को प्रकट किया:
इन पंचमहाभूतों से ही संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रह-नक्षत्र, जीव और पदार्थ का निर्माण हुआ।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के प्रभाव से सृष्टि में चौदह लोकों का निर्माण हुआ।
इन लोकों को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
विष्णु पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि भूलोक (पृथ्वी) कर्मभूमि है, जहाँ जीव अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग, नरक या मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
विष्णु पुराण में समय की गणना अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक पद्धति से दी गई है।
1 महायुग = चार युगों का चक्र
चारों युगों का चक्र मिलाकर एक महायुग (4,320,000 वर्ष) बनता है।
एक मन्वंतर में 71 महायुग होते हैं।
अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर है।
एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं।
1 ब्रह्मा दिन = 1000 महायुग
ब्रह्मा की रात भी 1000 महायुग के बराबर होती है।
ब्रह्मा के 1 दिन और 1 रात मिलाकर 8.64 अरब वर्ष होते हैं।
ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे होने पर महाप्रलय होता है, जिसमें संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाती है।
इस गणना से स्पष्ट होता है कि हिंदू धर्म में समय को अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक दृष्टि से देखा गया है।
प्रत्येक कल्प के अंत में ब्रह्मा सो जाते हैं और सृष्टि का नाश हो जाता है।
जब ब्रह्मा पुनः जागते हैं, तो सृष्टि पुनः प्रारंभ होती है।
जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि जल में समा जाती है।
यह प्रलय हर कल्प के अंत में होता है।
जब ब्रह्मा के 100 वर्ष पूरे हो जाते हैं, तब संपूर्ण ब्रह्मांड का नाश हो जाता है और सभी जीव भगवान विष्णु में विलीन हो जाते हैं।
इसके बाद पुनः सृष्टि की रचना होती है।
विष्णु पुराण में मन्वंतर का अत्यंत विस्तृत वर्णन किया गया है। मन्वंतर का अर्थ है "मनु का युग", अर्थात वह समय जब एक मनु समस्त प्रजा का पालन करते हैं और उनके शासन में देवता, ऋषि, असुर, दानव तथा अन्य जीव भी उसी काल में विद्यमान रहते हैं।
एक कल्प में कुल चौदह मन्वंतर होते हैं, और हर मन्वंतर में एक नया मनु तथा देवताओं का नया शासन होता है। प्रत्येक मन्वंतर में पृथ्वी पर नई सृष्टि होती है, और इसमें नए ऋषि, राजा, तथा धर्म के नए रूप प्रकट होते हैं।
विष्णु पुराण के अनुसार, अब तक छः मन्वंतर बीत चुके हैं, और वर्तमान में हम सातवें मन्वंतर में हैं, जिसे वैवस्वत मन्वंतर कहा जाता है।
क्रमांक | मनु का नाम | प्रमुख घटनाएँ |
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1 | स्वायंभुव मनु | प्रथम मनु, सृष्टि का प्रारंभ, ऋषि, देवता और असुरों की उत्पत्ति |
2 | स्वारोचिष मनु | देवताओं और असुरों के बीच प्रथम युद्ध |
3 | उत्तम मनु | मानव सभ्यता का विस्तार |
4 | तामस मनु | पाप और पुण्य का विस्तृत ज्ञान |
5 | रैवत मनु | योग और तपस्या का प्रभाव |
6 | चाक्षुष मनु | महर्षि भृगु और अन्य ऋषियों का युग |
7 | वैवस्वत मनु | वर्तमान युग, श्रीराम, श्रीकृष्ण और महाभारत की घटनाएँ |
8 | सावर्णि मनु | भविष्य के युग का प्रारंभ |
9 | दक्षसावर्णि मनु | नए देवताओं का उदय |
10 | ब्रह्मसावर्णि मनु | सत्य युग की पुनः स्थापना |
11 | धर्मसावर्णि मनु | ब्रह्मज्ञान का विस्तार |
12 | रुद्रसावर्णि मनु | शिव के भक्ति का प्रभाव |
13 | देवसावर्णि मनु | विष्णु भक्ति और धर्म पुनः स्थापित |
14 | इंद्रसावर्णि मनु | अंतिम मनु, प्रलय की ओर बढ़ता युग |
हर मन्वंतर में नए मनु, नए देवता और नए ऋषि होते हैं, जो संसार को धर्म और नीति का ज्ञान कराते हैं।
विष्णु पुराण में सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं की वंशावली को अत्यंत विस्तार से बताया गया है, जो ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सूर्यदेव से उत्पन्न राजा इक्ष्वाकु से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीराम के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
सूर्यदेव से उत्पन्न राजा इक्ष्वाकु से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीराम के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
प्रमुख राजा | विशेषता |
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इक्ष्वाकु | सूर्यवंश के प्रथम राजा |
कुशल्य | वंश का विस्तार करने वाले राजा |
सगर | जिन्होंने गंगा को खोजने का कार्य किया |
भगीरथ | जिन्होंने गंगा को धरती पर उतारा |
दशरथ | श्रीराम के पिता |
श्रीराम | भगवान विष्णु के अवतार |
यह वंश वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारंभ हुआ था, और इसमें अनेक धर्मपरायण राजाओं ने जन्म लिया।
चंद्रदेव से उत्पन्न राजा ययाति से यह वंश प्रारंभ हुआ। यह वंश श्रीकृष्ण, यदुवंश और कुरुवंश के कारण प्रसिद्ध है।
प्रमुख राजा | विशेषता |
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ययाति | चंद्रवंश के प्रथम प्रमुख राजा |
पुरु | पौरव वंश के संस्थापक |
यदु | यदुवंश के प्रवर्तक |
कौरव और पांडव | महाभारत के प्रमुख पात्र |
श्रीकृष्ण | भगवान विष्णु के अवतार |
चंद्रवंश दो भागों में विभाजित है – यदुवंश और कुरुवंश। यदुवंश में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, और कुरुवंश में कौरव और पांडव हुए।
विष्णु पुराण में राजा भरत का उल्लेख मिलता है, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम "भारत" पड़ा।
भरत राजा ऋषभदेव के पुत्र थे, और उन्होंने अपने शासनकाल में धर्म, नीति और न्याय की स्थापना की।
उनके राज्य का विस्तार संपूर्ण आर्यावर्त में था, और उन्होंने अनेक राज्यों को एक सूत्र में बाँधकर एक महान सम्राट के रूप में शासन किया।
विष्णु पुराण में भारतवर्ष का विशेष महत्त्व बताया गया है, क्योंकि यह पुण्यभूमि है और यही मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे उत्तम स्थान माना गया है।
महाभारत की पृष्ठभूमि को समझने के लिए विष्णु पुराण में यदुवंश और कुरुवंश का विस्तृत वर्णन किया गया है।
यदुवंश की स्थापना यदु राजा ने की थी, जो चंद्रवंश से उत्पन्न हुए थे।
इस वंश में अनेक महान राजा हुए, जिनमें श्रीकृष्ण सबसे महत्वपूर्ण हैं।
कुरुवंश की स्थापना राजा कुरु ने की थी।
इस वंश में शांतनु, भीष्म, धृतराष्ट्र, पांडु, दुर्योधन और पांडवों का जन्म हुआ।
महाभारत का युद्ध इसी वंश के दो शाखाओं – कौरव और पांडव – के बीच हुआ था।
विष्णु पुराण में इस वंश के विस्तार को अत्यंत गहराई से बताया गया है, जिससे महाभारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने में सहायता मिलती है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के पूर्णावतार हैं, जिन्होंने अधर्म के नाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए जन्म लिया।
जब पृथ्वी माता ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि असुरों का अत्याचार बहुत बढ़ गया है, तब उन्होंने यदुवंश में जन्म लेने का संकल्प लिया।
कंस को यह भविष्यवाणी सुनाई गई थी कि उसकी मृत्यु उसकी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी।
इस कारण, कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके सभी संतान को मार दिया।
जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब भगवान विष्णु के प्रभाव से वसुदेव की हथकड़ियाँ खुल गईं, और यमुना नदी ने मार्ग दिया, जिससे वसुदेव कृष्ण को गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़कर आ सके।
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को हुआ और तभी से जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है।
गोकुल और वृंदावन में श्रीकृष्ण ने अनेक बाल लीलाएँ कीं, जिससे उनका ईश्वरीय स्वरूप प्रकट हुआ।
श्रीकृष्ण की मृत्यु यह दर्शाती है कि संसार में जो जन्म लेता है, उसे एक दिन जाना ही पड़ता है, लेकिन ईश्वर सदा अमर रहते हैं।
विष्णु पुराण में धर्म, कर्म और मोक्ष को जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक बताया गया है। यह ग्रंथ मानव जीवन के उद्देश्य, पाप-पुण्य के प्रभाव और मोक्ष प्राप्ति के मार्गों का विस्तार से वर्णन करता है।
विष्णु पुराण के अनुसार, धर्म चार स्तंभों पर आधारित होता है, जिन्हें सत्य, दया, तप और दान कहा गया है।
जब ये चारों स्तंभ संतुलित होते हैं, तभी समाज और व्यक्ति दोनों में शांति और समृद्धि बनी रहती है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का फल भोगता है।
"जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा" – यह सिद्धांत विष्णु पुराण का मूल संदेश है।
विष्णु पुराण में बताया गया है कि मोक्ष (मुक्ति) ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और इसे प्राप्त करने के लिए तीन प्रमुख मार्ग बताए गए हैं।
यह सबसे सरल और सबसे प्रभावी मार्ग माना जाता है।
यह मार्ग कठिन है और केवल महान ऋषि-मुनि ही इसे प्राप्त कर सकते हैं।
भगवद्गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का उपदेश दिया था।