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श्रीमद्भागवत पुराण-पढ़िए सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण का संक्षिप्त सारांश

श्रीमद्भागवत पुराण-पढ़िए सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण का संक्षिप्त सारांशAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

श्रीमद्भागवत पुराण: एक विस्तृत परिचय

परिचय

श्रीमद्भागवत पुराण (या भागवत महापुराण) हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है और इसे वैष्णव संप्रदाय में सबसे अधिक सम्मानित ग्रंथों में गिना जाता है। इस ग्रंथ को भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करने के लिए लिखा गया है, विशेष रूप से उनके कृष्णावतार पर इसका विशेष जोर है।

यह पुराण अठारह हजार श्लोकों में विभाजित है, और बारह स्कंधों (खंडों) में विभाजित है। इसमें 332 अध्याय हैं, जो धर्म, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के सिद्धांतों को स्थापित करते हैं। यह पुराण भक्तियोग को सर्वोच्च मार्ग मानता है और भक्तों को बताता है कि कैसे भगवान की भक्ति से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

1. प्रथम स्कंध (शुरुआती ज्ञान और कथा का प्रारंभ)

श्रीमद्भागवत महापुराण का प्रथम स्कंध इसकी भूमिका और प्रारंभिक कथाओं को प्रस्तुत करता है। इसमें बताया गया है कि यह भगवान वेदव्यास द्वारा रचित है और उनके पुत्र शुकदेव ने इसे राजा परिक्षित को सुनाया था। यह स्कंध इस महापुराण के महत्त्व, उद्देश्य और पौराणिक कथाओं की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करता है।

1.1 व्यासदेव द्वारा पुराण की रचना और नारद मुनि की प्रेरणा

  • महर्षि व्यासदेव ने वेदों का विभाजन किया और महाभारत की रचना की, लेकिन उन्हें पूर्ण संतोष नहीं मिला।
  • तब नारद मुनि उनसे मिलने आए और उन्हें बताया कि उन्होंने भगवान की भक्ति और लीला का महत्त्वपूर्ण वर्णन नहीं किया।
  • नारद ने कहा कि संसार के कल्याण के लिए एक ऐसा ग्रंथ रचना चाहिए, जिसमें भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की लीलाएँ विस्तार से हों।
  • इसके बाद व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की और इसे अपने पुत्र शुकदेव मुनि को सुनाया।

इससे यह सिद्ध होता है कि श्रीमद्भागवत केवल ज्ञान का ग्रंथ नहीं, बल्कि भगवान की भक्ति का एक सर्वोच्च ग्रंथ है।

1.2 राजा परिक्षित को शाप और भागवत कथा का आरंभ

  • राजा परिक्षित अर्जुन के पोते और अभिमन्यु के पुत्र थे।
  • एक बार, वे शिकार खेलते-खेलते महर्षि शमीक के आश्रम में पहुंचे और प्यासे थे।
  • उन्होंने ऋषि से जल माँगा, लेकिन ऋषि ध्यान में लीन थे, इसलिए उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
  • क्रोधित होकर परिक्षित ने उनके गले में मृत साँप डाल दिया।
  • जब यह बात शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली, तो उन्होंने क्रोधित होकर राजा परिक्षित को सात दिनों में तक्षक नाग के दंश से मृत्यु का शाप दे दिया।
  • इस शाप के कारण ही राजा परिक्षित ने श्रीमद्भागवत कथा सुननी शुरू की, जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।

1.3 ब्रह्मा द्वारा नारद को सृष्टि और भक्ति का उपदेश

  • नारद मुनि ने भगवान ब्रह्मा से पूछा कि सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई और ईश्वर की भक्ति का क्या महत्व है?
  • ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु ही सृष्टि के कारण हैं और भक्ति के बिना संसार का कोई मूल्य नहीं है।
  • उन्होंने बताया कि भक्ति ही आत्मा को ईश्वर से जोड़ने का मार्ग है और जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है, वही सच्चे अर्थों में मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

इस कथा से स्पष्ट होता है कि भक्ति केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि मोक्ष का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है।

2. द्वितीय स्कंध (सृष्टि और परम तत्व का ज्ञान)

द्वितीय स्कंध भगवान विष्णु के विराट स्वरूप, सृष्टि की उत्पत्ति और मोक्ष प्राप्ति के मार्गों का विस्तार से वर्णन करता है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान विष्णु ही सृष्टि के मूल कारण, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। साथ ही, मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महिमा को भी समझाया गया है।

2.1 ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सृष्टि का विस्तार

  • श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की इच्छा से होती है।
  • जब सृष्टि नहीं थी, तब केवल भगवान नारायण ही शेषनाग पर योगनिद्रा में स्थित थे।
  • उनकी नाभि से एक विशाल कमल प्रकट हुआ, जिसमें भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ।
  • ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की और जीवन को विभिन्न लोकों में स्थापित किया।

2.2 सृष्टि की संरचना और चौदह लोक

सृष्टि की संरचना चौदह लोकों में विभाजित है, जो इस प्रकार हैं:

ऊर्ध्व लोक (ऊपरी सात लोक)
  • सत्यलोक – भगवान ब्रह्मा का लोक, जहाँ ऋषि-मुनि रहते हैं।
  • तपोलोक – तपस्वी ऋषियों का निवास।
  • जनलोक – संतों और दिव्य आत्माओं का निवास।
  • महर्लोक – महान ऋषियों का लोक।
  • स्वर्लोक – इंद्र और देवताओं का लोक।
  • भुवर्लोक – पृथ्वी और अंतरिक्ष के बीच का क्षेत्र।
  • भूलोक – मानवों की पृथ्वी।
अधोलोक (निचले सात लोक)
  • अतल – दैत्य और असुरों का निवास।
  • वितल – बलि राज का साम्राज्य।
  • सुतल – राक्षसों का स्थान।
  • रसातल – नागलोक, जहाँ अनेक नाग जातियाँ निवास करती हैं।
  • महातल – नागों और दैत्यों का एक अन्य लोक।
  • तलातल – माया और तामसिक शक्तियों का स्थान।
  • पाताल – सबसे निचला लोक, जहाँ शेषनाग निवास करते हैं।

इन लोकों का विस्तार यह दिखाता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक दिव्य योजना के अनुसार कार्य करता है, और भगवान विष्णु ही इसके संरक्षक हैं।

2. भगवान विष्णु के विराट रूप का वर्णन

द्वितीय स्कंध में भगवान विष्णु के विराट स्वरूप का अद्भुत वर्णन किया गया है।

  • भगवान सम्पूर्ण ब्रह्मांड से भी बड़े हैं।
  • उनका सिर सत्यलोक है, उनके नेत्र सूर्य और चंद्रमा, उनकी श्वास वायु, उनके चरण पृथ्वी, उनकी वाणी वेद, और उनका हृदय धर्म का निवास है।
  • उनके रोमकूपों से अनंत ब्रह्मांडों की उत्पत्ति होती है और उनका संहार भी उन्हीं के द्वारा होता है।
  • वे सम्पूर्ण लोकों में एक ही समय पर स्थित रहते हैं, लेकिन भक्तों के प्रेम के कारण वे बालरूप में भी प्रकट होते हैं।

भगवान विष्णु का विराट स्वरूप यह दर्शाता है कि वे ही सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं और उनके बिना ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं।

3. मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महिमा

श्रीमद्भागवत में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।

  • जब मृत्यु का समय आता है, तब व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल मिलता है।
  • यदि व्यक्ति अंत समय में भगवान का स्मरण करता है, तो वह पापों से मुक्त होकर भगवान के धाम में जाता है।
  • उदाहरण के लिए, अजामिल नामक ब्राह्मण अपने अंतिम समय में "नारायण" शब्द का उच्चारण करता है, जिससे वह यमलोक जाने से बचकर विष्णु धाम पहुँच जाता है।
  • यह भी बताया गया है कि मृत्यु के समय जिस भावना से व्यक्ति जाता है, उसका अगला जन्म उसी के अनुसार होता है।

इसलिए जीवनभर भगवान की भक्ति करनी चाहिए, ताकि मृत्यु के समय स्वतः ही उनका स्मरण हो सके और मोक्ष की प्राप्ति हो।

3. तृतीय स्कंध (सृष्टि की प्रक्रिया और कपिल उपदेश)

तृतीय स्कंध में सृष्टि की उत्पत्ति, भगवान विष्णु के अवतारों और कपिल मुनि के द्वारा प्रदत्त सांख्य योग का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान विष्णु ही सम्पूर्ण सृष्टि के कारण हैं और उनके द्वारा ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार होता है।

1. सृष्टि की प्रक्रिया और उत्पत्ति

  • श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण सृष्टि भगवान विष्णु की इच्छा से उत्पन्न होती है और ब्रह्मा जी के माध्यम से इसका विस्तार होता है।
  • सृष्टि के आरंभ में केवल परब्रह्म (भगवान विष्णु) का अस्तित्व था, और कोई अन्य वस्तु नहीं थी।
  • भगवान विष्णु के भीतर ही समस्त सृष्टि के बीज (प्रकृति और जीव) निहित थे।
  • जब सृष्टि की रचना का समय आया, तब भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ, जिससे भगवान ब्रह्मा उत्पन्न हुए।
  • ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा गया, और उन्होंने योगबल से चार वेदों और चार सनतकुमारों की रचना की।
  • इसके बाद ब्रह्मा जी ने दस प्रजापतियों को उत्पन्न किया, जिन्होंने आगे चलकर मानव, पशु-पक्षी, देवता, असुर, और अन्य जीवों की रचना की।
  • इस सृष्टि को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार धारण किए और धर्म की स्थापना की।

इस भाग में यह समझाया गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक दिव्य प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य करता है, और भगवान विष्णु ही इसके आधारभूत कारण हैं।

2. कपिल मुनि अवतार (सांख्य योग का प्रवर्तन)

  • भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया, जो सांख्य योग के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • उन्होंने अपनी माता देवहूति को सांख्य दर्शन का उपदेश दिया, जिससे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।

2. कपिल मुनि और उनकी माता देवहूति

1. कपिल मुनि का जन्म

  • महाराज स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ था।
  • देवहूति ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की और भगवान विष्णु से एक दिव्य संतान की प्राप्ति की कामना की।
  • भगवान विष्णु ने उन्हें कपिल मुनि के रूप में अवतार लेने का वरदान दिया।
  • कपिल मुनि के जन्म के बाद कर्दम ऋषि सन्यास लेकर वन को चले गए, और कपिल मुनि अपनी माता को आत्मज्ञान का उपदेश देने लगे।

2. कपिल मुनि द्वारा सांख्य योग का उपदेश

  • कपिल मुनि ने अपनी माता देवहूति को सांख्य योग का उपदेश दिया, जिससे उन्होंने अज्ञान से मुक्त होकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया।

(1) सांख्य योग क्या है?

  • सांख्य योग ज्ञान और विवेक का मार्ग है, जिसमें बताया गया है कि जीवात्मा और प्रकृति भिन्न हैं, और आत्मा का परम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है।

(2) कपिल मुनि द्वारा दिए गए मुख्य उपदेश

  • मनुष्य को आत्मा और शरीर का भेद समझना चाहिए।
  • यह संसार नश्वर है, केवल आत्मा ही शाश्वत है।
  • भगवान की भक्ति से ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
  • इच्छाओं और सांसारिक मोह को त्याग कर, आत्मज्ञान प्राप्त करना ही मोक्ष का मार्ग है।
  • भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से व्यक्ति सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है।

4. चतुर्थ स्कंध (राजाओं और धर्म का वर्णन)

चतुर्थ स्कंध में धर्म, अधर्म, तपस्या, राजा के कर्तव्य और भगवान विष्णु की भक्ति से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण कथाएँ दी गई हैं। इसमें दक्ष प्रजापति के यज्ञ, राजा ध्रुव की तपस्या, राजा वेन के अधर्म और राजा पृथु के अवतार का विस्तृत वर्णन किया गया है।

1. दक्ष प्रजापति का यज्ञ और भगवान शिव का अपमान

1. दक्ष प्रजापति कौन थे?

  • दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे।
  • उन्होंने सृष्टि को बढ़ाने के लिए अपनी कन्याओं का विवाह विभिन्न ऋषियों और देवताओं से किया।
  • उनकी एक पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था।

2. दक्ष प्रजापति का अहंकार

  • दक्ष प्रजापति भगवान शिव को नीची दृष्टि से देखते थे, क्योंकि वे सामान्य साधुओं की तरह रहते थे और राजसी आचरण नहीं करते थे।
  • एक बार, जब ब्रह्मलोक में यज्ञ का आयोजन हुआ, तो सभी देवता उपस्थित थे, लेकिन भगवान शिव वहां नहीं गए।
  • दक्ष ने क्रोधित होकर भगवान शिव का अपमान किया और उनके लिए अपशब्द कहे।
  • भगवान शिव ने यह सब सुना, लेकिन शांत रहे और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

3. दक्ष यज्ञ का आयोजन और सती का आत्मदाह

  • बाद में दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
  • सती ने अपने पिता के यज्ञ में जाने का आग्रह किया, लेकिन भगवान शिव ने कहा कि जहाँ सम्मान न हो, वहाँ जाना उचित नहीं।
  • सती अपने पति की आज्ञा के विरुद्ध यज्ञ में पहुँचीं, लेकिन वहाँ उन्हें और भगवान शिव को अपमानित किया गया।
  • अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने योगबल से आत्मदाह कर लिया।
  • जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए।

4. वीरभद्र का प्रकट होना और दक्ष का विनाश

  • भगवान शिव ने अपने जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया और उन्हें यज्ञ नष्ट करने के लिए भेजा।
  • वीरभद्र ने यज्ञ स्थल में उत्पात मचाया और दक्ष प्रजापति का सिर काट दिया।
  • यज्ञ को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गए।
  • अंत में भगवान ब्रह्मा और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा मांगी, और भगवान शिव ने दक्ष को बकरे के सिर के साथ पुनर्जीवित कर दिया।

2. राजा ध्रुव की कथा – 4 वर्ष की आयु में घनघोर तपस्या

1. ध्रुव कौन थे?

  • राजा उत्तानपाद के दो पुत्र थे – ध्रुव और उत्तम।
  • ध्रुव की माता सुनिति थीं, जो राजा की बड़ी रानी थीं, लेकिन राजा को छोटी रानी सुरुचि अधिक प्रिय थीं।

2. ध्रुव का अपमान और वन गमन

  • एक दिन ध्रुव राजा के सिंहासन पर बैठना चाहते थे, लेकिन उनकी सौतेली माँ सुरुचि ने उन्हें रोक दिया।
  • सुरुचि ने ध्रुव से कहा, "तुम इस सिंहासन पर नहीं बैठ सकते, क्योंकि तुमने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया है। यदि तुम भगवान विष्णु की भक्ति करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करो, तो ही तुम इसे प्राप्त कर सकते हो।"
  • यह सुनकर ध्रुव अत्यंत आहत हुए और अपनी माता सुनिति के पास गए।
  • माता ने कहा कि जो व्यक्ति संसार में सच्चा न्याय और सम्मान दिला सकता है, वह केवल भगवान विष्णु हैं।
  • यह सुनकर ध्रुव ने भगवान विष्णु की भक्ति करने के लिए वन जाने का निश्चय किया।

3. घनघोर तपस्या और भगवान विष्णु का दर्शन

  • ध्रुव केवल पाँच वर्ष की आयु में वन में चले गए और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगे।
  • ऋषि नारद ने ध्रुव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन ध्रुव अपनी तपस्या से विचलित नहीं हुए।
  • उन्होंने छह महीने तक कठिन तपस्या की, जिसमें वे पहले केवल फल-फूल खाते थे, फिर केवल पानी पीते थे, और अंत में केवल वायु से जीवित रहे।
  • उनकी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया।
  • भगवान ने ध्रुव से कहा कि वे एक महान राजा बनेंगे और मृत्यु के पश्चात ध्रुव तारा के रूप में अमर रहेंगे।

3. राजा वेन का अधर्म और राजा पृथु का अवतार

1. राजा वेन का अधर्म

  • राजा वेन एक अधर्मी राजा था, जिसने अपनी शक्ति के मद में आकर सभी धार्मिक कर्मकांडों को बंद कर दिया।
  • उसने यज्ञ और भगवान की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे देवता और ऋषि अत्यंत दुखी हो गए।
  • उन्होंने राजा वेन को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह अहंकारी और क्रूर बना रहा।
  • जब राजा वेन का अत्याचार अधिक बढ़ गया, तो ऋषियों ने अपने तपोबल से उसे मार दिया।

2. राजा पृथु का अवतार और पृथ्वी का दोहन

  • राजा वेन के मरने के बाद उसके शव से भगवान विष्णु के अंश से पृथु का प्रकट होना हुआ।
  • राजा पृथु एक महान धर्मपरायण राजा बने और उन्होंने धरती को पुनः समृद्ध किया।
  • उस समय पृथ्वी माता (भूमि देवी) ने अन्न देना बंद कर दिया था, क्योंकि राजा वेन के पापों से वह क्रोधित थीं।
  • राजा पृथु ने गाय के रूप में पृथ्वी का दोहन किया और पुनः धरती को उर्वर बनाया।
  • राजा पृथु को ही पृथ्वी का प्रथम सम्राट माना जाता है, और उनके नाम पर ही पृथ्वी का नाम पड़ा।

5. पंचम स्कंध (भूगोल और ब्रह्मांड की संरचना)

पंचम स्कंध में भूगोल, ब्रह्मांड की संरचना, सप्तद्वीपों (सात द्वीपों), लोकों, स्वर्ग, नरक, और भगवान विष्णु की विभूतियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस स्कंध का मुख्य उद्देश्य ब्रह्मांड की भव्यता को दर्शाना और जीव के वास्तविक स्वरूप को समझाना है।

1. भगवान ऋषभदेव की कथा – विष्णु के अवतार

1. ऋषभदेव का जन्म और जीवन
  • राजा नाभि और रानी मेरुदेवी ने भगवान विष्णु से एक दिव्य पुत्र की प्रार्थना की थी।
  • भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में अवतार लिया, जो आगे चलकर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भी बने।
  • ऋषभदेव संपूर्ण रूप से विरक्त और आत्म-साक्षात्कार से युक्त थे।
  • उन्होंने राज्य, सुख-सुविधाएँ और सांसारिक बंधनों को त्यागकर गहन तपस्या की।
2. ऋषभदेव का त्याग और सन्यास
  • उन्होंने अपने सौ पुत्रों को धर्म और राजधर्म की शिक्षा दी।
  • उनके सबसे बड़े पुत्र भरत थे, जिनके नाम पर ही इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।
  • ऋषभदेव ने राजपाट त्यागकर जंगलों में कठोर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया।

2. जम्बूद्वीप और सप्तद्वीपों का भूगोल

1. जम्बूद्वीप का वर्णन
  • संपूर्ण पृथ्वी को जम्बूद्वीप कहा गया है, जो सात क्षेत्रों में विभाजित है।
  • जम्बूद्वीप के बीचों-बीच मेरु पर्वत स्थित है, जो ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है।
  • जम्बूद्वीप के नौ खंड हैं, जिनमें भारतवर्ष सबसे प्रमुख है।
  • भारतवर्ष में ही कर्मयोग, भक्ति, मोक्ष और धर्म का पालन संभव है।
2. सप्तद्वीपों (सात द्वीपों) का भूगोल

श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण पृथ्वी सात द्वीपों (सप्तद्वीपों) में विभाजित है, जो चारों ओर महासागरों से घिरे हैं:

  • जम्बूद्वीप – यह सबसे महत्वपूर्ण द्वीप है, जिसमें भारतवर्ष स्थित है।
  • प्लक्षद्वीप – इस द्वीप में सोने की भूमि और दिव्य वृक्ष पाए जाते हैं।
  • शाल्मलिद्वीप – यहाँ के निवासी विशेष रूप से अग्नि उपासक होते हैं।
  • कुशद्वीप – इस द्वीप में विशेष रूप से कुश घास उगती है, जिससे यज्ञ किए जाते हैं।
  • क्रौंचद्वीप – इसे एक विशाल पर्वत से ढका हुआ बताया गया है।
  • शाकद्वीप – यहाँ रहने वाले लोग अत्यंत धार्मिक और सत्यनिष्ठ होते हैं।
  • पुष्करद्वीप – यह सबसे बड़ा और बाहरी क्षेत्र में स्थित द्वीप है, जहाँ ब्रह्मलोक का प्रभाव अधिक बताया गया है।

6. षष्ठ स्कंध (अजामिल और भक्ति का महत्व)

षष्ठ स्कंध में भक्ति, भगवान विष्णु के नाम की महिमा, कर्मों के प्रभाव और भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया गया है। इसमें विशेष रूप से अजामिल की कथा, भगवान के नाम की शक्ति, और दधीचि मुनि के अस्थिदान की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

1. अजामिल की कथा – 'नारायण' नाम का प्रभाव

1. अजामिल कौन था?
  • अजामिल एक ब्राह्मण पुत्र था, जो बचपन में अत्यंत धार्मिक और सदाचारी था।
  • उसने शास्त्रों का अध्ययन किया, वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और यज्ञ-हवन आदि धार्मिक कृत्यों में निपुण था।
  • उसका विवाह एक धार्मिक स्त्री से हुआ और वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा था।
2. अजामिल का पतन
  • एक दिन उसने जंगल में एक वेश्या और शराबी पुरुष को प्रेमालाप करते देखा।
  • यह दृश्य उसके मन में वासना और विकार भर गया और उसने अपनी पत्नी को छोड़कर उस वेश्या के साथ रहना प्रारंभ कर दिया।
  • उसने अधर्म का जीवन अपनाया, चोरी-डकैती की, झूठ बोला और अन्य पाप कर्मों में लिप्त हो गया।
  • उसके कई संतानें हुईं, जिनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा।
3. मृत्यु के समय 'नारायण' नाम का उच्चारण
  • अजामिल ८८ वर्ष का हो गया और मृत्यु के समय उसके पापों के कारण यमदूत उसे लेने आए।
  • भयभीत होकर उसने अपने पुत्र नारायण को पुकारा – "नारायण! नारायण!"
  • यह नाम सुनते ही भगवान विष्णु के पार्षद (विष्णुदूत) वहाँ प्रकट हो गए।
  • उन्होंने यमदूतों को रोक दिया और कहा, "जो भी भगवान का नाम लेता है, वह यमराज के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाता है।"
  • यमदूतों ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन विष्णुदूतों ने समझाया कि केवल एक बार भगवान का नाम लेने से भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
  • इस विवाद को सुनकर यमराज स्वयं अपने सभागृह में अपने अनुचरों को यह शिक्षा देते हैं कि "विष्णु भक्ति करने वालों को दंड देना अनुचित है।"
4. अजामिल को भगवान का साक्षात्कार और मोक्ष
  • जब अजामिल को इस घटना का ज्ञान हुआ, तो वह गंगा तट पर चला गया और कठोर तपस्या करने लगा।
  • अंततः उसने सच्चे हृदय से भगवान विष्णु की भक्ति की और मोक्ष प्राप्त किया।
  • विष्णुदूत उसे साक्षात भगवान विष्णु के धाम ले गए।

2. भगवान विष्णु के नाम की महिमा

षष्ठ स्कंध में भगवान विष्णु के नाम की महिमा को अत्यंत महत्व दिया गया है।

1. हरि नाम जप की महिमा

  • भगवान विष्णु के नाम का जाप सबसे श्रेष्ठ साधना मानी गई है।
  • यह कहा गया है कि कलियुग में केवल हरिनाम संकीर्तन से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी पापी क्यों न हो, यदि वह सच्चे मन से भगवान का नाम लेता है, तो वह पवित्र हो जाता है।

2. भगवन्नाम का प्रभाव

  • "राम" नाम का एक बार उच्चारण करने से हजारों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
  • भगवान विष्णु के नाम की महिमा से अत्यंत पापी व्यक्ति भी परम धाम प्राप्त कर सकता है।
  • यमराज स्वयं कहते हैं कि "जो भी भगवान नारायण का स्मरण करता है, वह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।"

3. इंद्र का अहंकार और दधीचि मुनि द्वारा अपनी हड्डियों का दान

1. इंद्र का अहंकार

  • इंद्र स्वर्ग का राजा था, लेकिन उसे अपने पद का अत्यंत अहंकार था।
  • उसने ऋषियों और संतों का अनादर किया, जिससे देवताओं की शक्ति कम होने लगी।
  • इसी बीच वृत्रासुर नामक असुर ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा से अमोघ वरदान प्राप्त कर लिया।
  • ब्रह्मा ने कहा कि वृत्रासुर को कोई भी सामान्य हथियार नहीं मार सकता और उसे केवल किसी ऋषि की हड्डियों से बने वज्र से ही हराया जा सकता है।

2. दधीचि मुनि का त्याग

  • देवताओं ने दधीचि मुनि के पास जाकर उनसे अपनी हड्डियों का दान करने की विनती की।
  • दधीचि मुनि को यह ज्ञात हुआ कि उनकी हड्डियों से बना वज्र ही वृत्रासुर का वध कर सकता है।
  • उन्होंने बिना किसी संकोच के अपना शरीर त्याग दिया और इंद्र के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दीं।
  • उनकी हड्डियों से बना वज्र इंद्र को प्रदान किया गया, जिससे उसने वृत्रासुर का वध किया और देवताओं को पुनः स्वर्ग में स्थापित किया।

7. सप्तम स्कंध (भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह अवतार)

सप्तम स्कंध में भक्त प्रह्लाद की कथा और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह स्कंध यह सिद्ध करता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा के बल पर भक्त किसी भी कठिन परिस्थिति में भगवान की कृपा से सुरक्षित रहता है।

1. हिरण्यकश्यप का अहंकार और अत्याचार

1. हिरण्यकश्यप कौन था?

  • हिरण्यकश्यप एक असुरराज था, जिसे भगवान ब्रह्मा से असीम शक्ति और अमरता का वरदान प्राप्त था।
  • उसने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे यह वरदान मांगा:
    • वह न मनुष्यों द्वारा मारा जाए, न पशु द्वारा।
    • न दिन में मरे, न रात में।
    • न घर के अंदर मरे, न बाहर।
    • न किसी हथियार से मरे।
    • न आकाश में, न पृथ्वी पर।
  • इस वरदान के कारण वह अजेय हो गया और तीनों लोकों पर शासन करने लगा।
  • उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और संपूर्ण संसार में विष्णु भक्ति को बंद करने का आदेश दिया।

2. भक्त प्रह्लाद की कथा – विष्णु भक्ति की अद्भुत मिसाल

1. प्रह्लाद का जन्म और बचपन

  • हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु जब गर्भवती थीं, तब वे देवताओं द्वारा बंदी बना ली गई थीं।
  • ऋषि नारद ने कयाधु को अपने आश्रम में शरण दी और उन्हें भगवान विष्णु की महिमा सुनाई।
  • गर्भ में ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का ज्ञान प्राप्त कर लिया और उनका परम भक्त बन गया।

2. प्रह्लाद की विष्णु भक्ति और हिरण्यकश्यप का क्रोध

  • जब प्रह्लाद बड़ा हुआ, तब उसने अपने पिता के आदेशों को अस्वीकार कर दिया और भगवान विष्णु की भक्ति करने लगा।
  • हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी भक्ति से पीछे नहीं हटा।
  • उसने प्रह्लाद को शिक्षकों (शांड और अमर्क) के पास भेजा, ताकि वे उसे असुर धर्म सिखाएं, लेकिन प्रह्लाद ने वहाँ भी विष्णु भक्ति का प्रचार किया।
  • यह देखकर हिरण्यकश्यप अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया।

3. प्रह्लाद की परीक्षा – भगवान की रक्षा

  • हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की:
    • विष में मिलाकर मारने का प्रयास: हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जहर पिलाने का प्रयास किया, लेकिन विष भगवान विष्णु की कृपा से अमृत बन गया।
    • पहाड़ से गिराकर मारने का प्रयास: प्रह्लाद को एक ऊँचे पहाड़ से फेंक दिया गया, लेकिन भगवान ने उसे सुरक्षित उतार दिया।
    • हाथियों से कुचलवाने का प्रयास: उसे क्रोधित हाथियों के सामने डाल दिया गया, लेकिन वे भी उसे छूने की हिम्मत नहीं कर सके।
    • आग में जलाने का प्रयास – होलिका दहन: हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के पास अग्नि में न जलने का वरदान था।
      • उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का प्रयास किया, लेकिन भगवान की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।
      • यह घटना आज भी 'होलिका दहन' के रूप में मनाई जाती है, जो यह दर्शाती है कि भक्त को भगवान की कृपा से कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता।

4. भगवान नरसिंह का अवतार और हिरण्यकश्यप का वध

1. हिरण्यकश्यप का प्रह्लाद से अंतिम प्रश्न

  • जब सभी प्रयास असफल हो गए, तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से क्रोधित होकर पूछा – "तेरा विष्णु कहाँ है? क्या वह इस खंभे में भी है?"
  • प्रह्लाद ने उत्तर दिया – "हाँ, भगवान सर्वत्र हैं।"
  • यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने अपने गदा से खंभे पर प्रहार किया।

2. भगवान नरसिंह का प्रकट होना

  • खंभा चटक गया और उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह (आधा सिंह, आधा मानव) रूप में प्रकट होकर गर्जना की।
  • भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपने गोद में उठाया।
  • न वे उसे दिन में मारे, न रात में – बल्कि संध्या समय में मारा।
  • न घर में, न बाहर – बल्कि महल के द्वार पर।
  • न किसी हथियार से – बल्कि अपने नाखूनों से चीरकर।
  • न आकाश में, न पृथ्वी पर – बल्कि अपनी गोद में रखकर।
  • इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप के अहंकार और अत्याचार का अंत किया।

5. भक्त प्रह्लाद का राजतिलक और भगवान की महिमा

  • हिरण्यकश्यप के अंत के बाद देवताओं ने भगवान नरसिंह से शांत होने की प्रार्थना की, लेकिन वे अत्यंत क्रोधित थे।
  • अंततः भक्त प्रह्लाद ने भगवान नरसिंह की स्तुति की, जिससे भगवान का क्रोध शांत हुआ।
  • भगवान ने प्रह्लाद को वरदान दिया कि वह एक महान राजा बनेगा और धर्म की स्थापना करेगा।
  • प्रह्लाद ने भगवान की आज्ञा से राज्य संभाला और अपना जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में व्यतीत किया।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति ही जीवन का सबसे बड़ा धन है और भगवान अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।

8. अष्टम स्कंध (समुद्र मंथन और अन्य अवतार)

अष्टम स्कंध में समुद्र मंथन की कथा, भगवान मोहिनी अवतार, भगवान वामन अवतार और राजा बलि की कथा, और भगवान मत्स्य अवतार का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस स्कंध का मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि भगवान विष्णु हर युग में धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

1. समुद्र मंथन की कथा

1. देवताओं और असुरों की शक्ति की असमानता

  • एक समय देवता और असुरों के बीच लगातार युद्ध चल रहा था।
  • असुरों की शक्ति बढ़ने लगी, जिससे देवता पराजित हो गए और स्वर्ग पर असुरों का अधिकार हो गया।
  • सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और सहायता की प्रार्थना की।
  • भगवान विष्णु ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त किया जाए, जिससे देवता पुनः बलवान हो सकते हैं।
  • इसके लिए देवताओं और असुरों को मिलकर समुद्र मंथन करना पड़ा।

2. समुद्र मंथन की प्रक्रिया

  • मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया।
  • असुरों ने वासुकि नाग का सिर पकड़ा और देवताओं ने उसकी पूंछ।
  • जब मंथन शुरू हुआ, तो वासुकि नाग के मुख से विष (कालकूट) निकला, जिससे तीनों लोकों में विनाश होने लगा।
  • सभी देवता भगवान शिव के पास गए, जिन्होंने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

2. भगवान मोहिनी अवतार – अमृत वितरण

  • अमृत कलश प्राप्त होते ही असुरों ने उसे हथिया लिया और अमृत स्वयं पीने लगे।
  • देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
  • भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप (एक अति सुंदर स्त्री) धारण किया।
  • मोहिनी रूप देखकर असुर मोहित हो गए और उन्होंने अमृत वितरण का कार्य मोहिनी को सौंप दिया।
  • भगवान मोहिनी ने चालाकी से अमृत देवताओं को पिला दिया और असुरों को वंचित कर दिया।
  • राहु नामक असुर ने भेष बदलकर अमृत पी लिया, लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान बता दी।
  • भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया, लेकिन उसने अमृत पी लिया था, इसलिए उसका सिर (राहु) और धड़ (केतु) अमर हो गए।

3. भगवान वामन अवतार और राजा बलि की कथा

1. राजा बलि का पराक्रम और दानशीलता

  • राजा बलि महान दानवीर और पराक्रमी असुरराज थे।
  • उन्होंने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।

2. भगवान विष्णु का वामन अवतार

  • भगवान विष्णु ने वामन (एक छोटे ब्राह्मण बालक) रूप में अवतार लिया।
  • वे राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी।
  • राजा बलि ने दान देने से पहले अपने गुरु शुक्राचार्य से परामर्श लिया।
  • शुक्राचार्य ने राजा बलि को सावधान किया कि यह विष्णु हैं और यह चालाकी से तुम्हारा सारा राज्य ले लेंगे।
  • लेकिन राजा बलि अपने वचन से नहीं डगमगाए और दान देने के लिए तैयार हो गए।

3. भगवान वामन का विराट रूप और बलि की परीक्षा

  • भगवान वामन ने अपना विशाल विराट रूप धारण कर लिया।
  • पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी नाप ली।
  • दूसरे पग में संपूर्ण स्वर्ग नाप लिया।
  • तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तब राजा बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया।
  • भगवान वामन ने राजा बलि की भक्ति और दानशीलता देखकर उन्हें सुतल लोक का राजा बना दिया और हमेशा उनकी रक्षा का वचन दिया।

4. भगवान मत्स्य अवतार की कथा

1. मत्स्य अवतार का उद्देश्य

  • भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) रूप में अवतार लिया।
  • इसका उद्देश्य सृष्टि को प्रलय से बचाना और वेदों की रक्षा करना था।

2. राजा सत्यव्रत और मत्स्य अवतार

  • राजा सत्यव्रत (जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने) एक दिन जल में स्नान कर रहे थे।
  • उन्होंने अपने हाथ में एक छोटी मछली (मत्स्य) को देखा।
  • मत्स्य ने राजा से अपने संरक्षण की प्रार्थना की।
  • राजा ने मछली को एक घड़े में रखा, लेकिन मछली लगातार बढ़ती गई।
  • फिर उन्होंने इसे तालाब, नदी और अंत में समुद्र में छोड़ा, लेकिन वह और विशाल हो गई।

3. मत्स्य अवतार द्वारा प्रलय की भविष्यवाणी

  • तब भगवान मत्स्य ने प्रकट होकर राजा सत्यव्रत को बताया कि शीघ्र ही प्रलय आने वाला है।
  • उन्होंने राजा को एक विशाल नाव तैयार करने और उसमें सात ऋषियों, विभिन्न जीवों और वेदों को रखने का आदेश दिया।
  • जब प्रलय आया, तब मत्स्य अवतार ने नाव को अपनी शक्ति से सुरक्षित स्थान पर ले जाकर सृष्टि को बचाया।

9. नवम स्कंध (राजवंशों की वंशावली और भगवान परशुराम की कथा)

नवम स्कंध में सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं की वंशावली, भगवान श्रीराम के पूर्वजों का वर्णन और भगवान परशुराम के अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह स्कंध भारतीय इतिहास और पौराणिक परंपरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है , क्योंकि इसमें प्राचीन राजवंशों का वृत्तांत मिलता है।

1. सूर्यवंश और चंद्रवंश – दो प्रमुख राजवंशों का वर्णन

1. सूर्यवंश (रघुवंश) का वर्णन

सूर्यवंश की उत्पत्ति भगवान सूर्य (विवस्वान) से हुई, इसलिए इसे सूर्यवंश कहा जाता है। इस वंश के महान राजा इक्ष्वाकु, हरिश्चंद्र, दिलीप और भगवान श्रीराम थे।

(1) राजा इक्ष्वाकु
  • राजा इक्ष्वाकु सूर्यवंश के प्रथम राजा थे, जो वैवस्वत मनु के पुत्र थे।
  • वे अत्यंत धर्मपरायण और पराक्रमी शासक थे।
  • उनके शासनकाल में राजधर्म और सत्यनिष्ठा को सर्वोपरि रखा गया।
(2) राजा हरिश्चंद्र
  • राजा हरिश्चंद्र सत्य और धर्म के पालन के लिए प्रसिद्ध थे।
  • उन्होंने अपना पूरा राज्य दान कर दिया और सत्य की रक्षा के लिए घोर कष्ट सहे।
  • अंततः उनकी परीक्षा पूर्ण हुई और उन्हें पुनः उनका राज्य प्राप्त हुआ।
  • उनकी कथा यह सिखाती है कि सत्य और धर्म की परीक्षा अवश्य होती है, लेकिन अंततः सत्य की विजय होती है।
(3) राजा सगर और कपिल मुनि की कथा
  • राजा सगर की 60 हजार संतानों का वध कपिल मुनि के क्रोध से हुआ।
  • बाद में उनके वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाया, जिससे उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिली।
  • यही कारण है कि गंगा नदी को भगीरथी भी कहा जाता है।
(4) राजा दिलीप और उनके पुत्र रघु
  • राजा दिलीप ने गायों की सेवा कर पुण्य अर्जित किया।
  • उनके पुत्र राजा रघु इतने पराक्रमी थे कि उनके नाम पर रघुवंश की स्थापना हुई।
  • रघुवंश में आगे चलकर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ।
(5) भगवान श्रीराम के पूर्वजों का वर्णन
  • श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के यहाँ हुआ, जो सूर्यवंश के प्रतापी राजा थे।
  • उनका राजवंश मर्यादा, धर्म, और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित था।
  • श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की और अपने राज्य में रामराज्य की स्थापना की।

2. चंद्रवंश का वर्णन

चंद्रवंश की उत्पत्ति चंद्रदेव (सोम) से हुई, इसलिए इसे चंद्रवंश कहा जाता है।

(1) राजा ययाति
  • राजा ययाति एक महान सम्राट थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था अपने पुत्र पुरु को दान कर दी थी।
  • उनका यह त्याग संस्कार और कर्तव्य की भावना को दर्शाता है।
  • ययाति के पुत्रों में पुरु, यदु और अनु प्रमुख थे।
(2) यदुवंश और भगवान श्रीकृष्ण का जन्म
  • यदु के वंश में आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
  • यदुवंश अत्यंत शक्तिशाली और वीर योद्धाओं का वंश था।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वंश में जन्म लेकर कंस और कई अधर्मियों का नाश किया।
(3) कुरुवंश और महाभारत की पृष्ठभूमि
  • चंद्रवंश से ही आगे चलकर कुरुवंश की स्थापना हुई।
  • इस वंश में कौरव और पांडवों का जन्म हुआ, जिन्होंने महाभारत युद्ध लड़ा।
  • पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में धर्म की विजय सुनिश्चित की।

3. भगवान परशुराम के अवतार की कथा

1. भगवान परशुराम का जन्म

  • भगवान परशुराम का जन्म भृगु ऋषि के वंश में हुआ।
  • उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं।
  • परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।
  • वे शस्त्रविद्या और ब्रह्मतेज के अद्भुत संगम थे।

2. सहस्त्रार्जुन द्वारा जमदग्नि ऋषि की हत्या

  • राजा सहस्त्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन) ने जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी।
  • इस घटना से परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सम्पूर्ण क्षत्रिय वंश का नाश करने का संकल्प लिया।

3. 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करना

  • परशुराम ने एक के बाद एक, सभी अत्याचारी क्षत्रियों को समाप्त कर दिया।
  • इन्होंने २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया।
  • उन्होंने अपने पिता के हत्यारे सहस्त्रार्जुन का वध किया।

4. भगवान राम से भेंट

  • जब भगवान श्रीराम ने शिवधनुष तोड़ा, तब परशुराम उनसे मिलने पहुंचे।
  • उन्होंने भगवान श्रीराम की शक्ति की परीक्षा ली और अंततः यह समझ गए कि श्रीराम ही विष्णु के पूर्णावतार हैं।
  • इसके बाद परशुराम ने संन्यास ग्रहण कर दिया और तपस्या में लीन हो गए।

10. दशम स्कंध (भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ)

दशम स्कंध भागवत पुराण का सबसे महत्वपूर्ण और विस्तारपूर्ण भाग है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ, अद्भुत पराक्रम, दुष्टों का संहार और धर्म की स्थापना का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस स्कंध में भगवान विष्णु के पूर्णावतार श्रीकृष्ण की जन्म से लेकर महाभारत तक की कथा दी गई है।

1. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म

1.1 कंस का अत्याचार और भविष्यवाणी

  • मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस अत्याचारी और अधर्मी राजा था।
  • उसकी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ।
  • विवाह के समय आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा।
  • कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके एक-एक कर सभी संतानों का वध करने लगा।

1.2 श्रीकृष्ण का जन्म और गोकुल गमन

  • भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ।
  • योगमाया के प्रभाव से कारागार के द्वार खुल गए और वासुदेव ने कृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना पार की।
  • गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के यहाँ श्रीकृष्ण को छोड़कर, वासुदेव योगमाया को कारागार में ले आए।
  • कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा, तो वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और कंस को चेतावनी दी कि तेरा वध करने वाला जन्म ले चुका है।

2. श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ (गोकुल और वृंदावन में लीलाएँ)

2.1 पूतना वध

  • कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जो स्त्री रूप धारण कर बच्चों को विष पिलाकर मार देती थी।
  • उसने श्रीकृष्ण को दूध पिलाने का प्रयास किया, लेकिन भगवान ने उसका वध कर दिया।

2.2 शकटासुर, तृणावर्त और अन्य राक्षसों का संहार

  • शकटासुर – भगवान ने अपने छोटे पैरों से ही रथ (शकट) को गिरा दिया और शकटासुर का वध किया।
  • तृणावर्त – यह वायुरूपी असुर था, जिसने श्रीकृष्ण को उड़ाने का प्रयास किया, लेकिन भगवान ने उसका गला दबाकर उसे मार डाला।

2.3 यशोदा को विराट रूप का दर्शन

  • श्रीकृष्ण जब छोटे थे, तब यशोदा माता ने उनके मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड देखा।
  • यह लीलाएँ सिद्ध करती हैं कि श्रीकृष्ण केवल एक बालक नहीं, बल्कि साक्षात परमेश्वर हैं।

2.4 माखन चोरी और गोपियों की लीलाएँ

  • श्रीकृष्ण और बलराम ग्वालबालों के साथ माखन चोरी करते और गोपियों को सताते थे।
  • एक दिन यशोदा माता ने उन्हें पकड़ा और ऊखल से बाँध दिया (दमोदर लीला), जिससे उनकी बाल लीला का स्वरूप और दिव्यता प्रकट हुई।

3. गोवर्धन लीला और कंस वध

3.1 गोवर्धन पूजन और इंद्र का अहंकार

  • गोकुल में इंद्र की पूजा होती थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोपों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा।
  • क्रोधित होकर इंद्र ने मूसलधार बारिश कर दी।
  • श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी गोप-गोपियों की रक्षा की।
  • अंततः इंद्र ने अपनी गलती स्वीकार की और श्रीकृष्ण की शरण में आया।

3.2 कंस द्वारा अक्रूर को भेजना और मथुरा गमन

  • कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने के लिए अक्रूर को भेजा।
  • अक्रूर जी ने श्रीकृष्ण को मथुरा आने के लिए मनाया।
  • वहाँ कंस ने कई मल्ल (चाणूर और मुष्टिक) से भगवान का सामना करवाया।

3.3 कंस वध

  • कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन भगवान ने चाणूर और मुष्टिक को पराजित कर दिया।
  • अंत में कृष्ण ने कंस के बाल पकड़कर उसे भूमि पर पटक दिया और उसका वध कर दिया।
  • कंस के मरने के बाद मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त कर दिया गया।

4. द्वारका स्थापना और अन्य लीलाएँ

1. द्वारका की स्थापना

  • श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर समुद्र के किनारे द्वारका नगरी बसाई।
  • यहाँ से उन्होंने कई राजाओं को अधर्म से मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।

2. नरकासुर वध और 16,108 रानियों का उद्धार

  • नरकासुर नामक असुर ने १६,१०८ कन्याओं को बंदी बना रखा था।
  • श्रीकृष्ण ने उसका वध कर उन कन्याओं को मुक्त किया और समाज में उनकी रक्षा के लिए सभी से विवाह कर लिया।

5. महाभारत और गीता का उपदेश

1. अर्जुन का मोह और गीता का ज्ञान

  • जब महाभारत युद्ध के समय अर्जुन मोहग्रस्त हो गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवद गीता का उपदेश दिया।
  • इसमें श्रीकृष्ण ने कहा –
    • "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
    • "हर व्यक्ति का परम धर्म भगवान की भक्ति करना है।"
    • "मैं ही सबका मूल कारण हूँ और मुझमें ही सब विलीन होते हैं।"

2. कौरवों और पांडवों के बीच मध्यस्थता

  • श्रीकृष्ण ने पहले शांति का प्रस्ताव रखा, लेकिन दुर्योधन ने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • अंततः महाभारत का युद्ध हुआ और अधर्मियों का नाश हुआ।

3. श्रीकृष्ण का अंतिम उपदेश

  • जब युद्ध समाप्त हुआ, तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्मराज्य चलाने की सीख दी।
  • उन्होंने विदुर और उधव को भी जीवन का अंतिम ज्ञान प्रदान किया।

11. एकादश स्कंध (योग और वैराग्य का उपदेश)

एकादश स्कंध भागवत पुराण का आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को वैराग्य, भक्तियोग और आत्मज्ञान का उपदेश दिया। यह स्कंध श्रीकृष्ण की अंतिम शिक्षाओं, यदुवंश के विनाश और उनके लीलाओं के समापन का वर्णन करता है।

1. श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश (उद्धव गीता)

1. उद्धव और उनका श्रीकृष्ण से प्रश्न
  • उद्धव भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय भक्त और सेवक थे।
  • जब श्रीकृष्ण ने देखा कि उनका अवतार काल समाप्त होने वाला है, तब उद्धव को आत्मज्ञान और भक्तियोग की शिक्षा देने का निर्णय लिया।
  • उद्धव ने श्रीकृष्ण से पूछा –
    • "जब आप इस संसार से विदा होंगे, तब हम भक्तों का मार्गदर्शन कौन करेगा?"
    • "जीवन का उद्देश्य क्या है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग क्या है?"
2. भगवान श्रीकृष्ण द्वारा वैराग्य और भक्तियोग का उपदेश
  • भगवान ने कहा कि यह संसार नश्वर है और केवल भगवान की भक्ति से ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
  • उद्धव गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन की सच्चाई को समझाने के लिए कई उपमाएँ दीं:
    • बालक के समान भक्ति – जिस प्रकार बालक अपने माता-पिता पर पूर्ण विश्वास रखता है, वैसे ही भक्त को भगवान पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
    • संपत्ति और मोह की असारता – संसार के सभी सुख और संपत्ति नाशवान हैं, इसलिए मनुष्य को वैराग्य अपनाना चाहिए।
    • भक्तियोग की महिमा – भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति भक्ति मार्ग पर चलता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
    • सच्चे गुरु की आवश्यकता – श्रीकृष्ण ने उद्धव को बताया कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्ति असंभव है।
3. उद्धव को अंतिम आदेश
  • भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को हिमालय जाने और वहां तपस्या करने का निर्देश दिया।
  • उन्होंने कहा –
    • "जो मेरा नाम लेता है, मेरा स्मरण करता है, वही मुझसे जुड़ जाता है।"
    • "मैं सदा अपने भक्तों की रक्षा करता हूँ और उन्हें मुक्ति प्रदान करता हूँ।"

2. यदुवंश का नाश और श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति

1. यदुवंश का पतन क्यों हुआ?
  • श्रीकृष्ण के जीवन के अंतिम समय में यदुवंशियों में अहंकार और आपसी कलह बढ़ गई।
  • उन्होंने अपने ही कुल के ऋषियों और संतों का अपमान किया, जिससे ब्राह्मणों ने उन्हें शाप दे दिया।
  • श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि यदुवंश का अंत निश्चित था, क्योंकि यह ब्रह्मा की योजना का हिस्सा था।
2. यदुवंश का आपसी संघर्ष और विनाश
  • शाप के प्रभाव से यदुवंशी मदिरा पीकर आपस में लड़ने लगे।
  • उन्होंने लोहे की मूसल से एक-दूसरे का संहार कर दिया।
  • अंततः पूरे यदुवंश का नाश हो गया और श्रीकृष्ण ने स्वयं यह सब स्वीकार किया, क्योंकि यही नियति थी।
3. श्रीकृष्ण का पृथ्वी से प्रस्थान (निर्वाण लीला)
1. श्रीकृष्ण का वनगमन और ध्यान
  • यदुवंश के विनाश के बाद श्रीकृष्ण जंगल में चले गए और ध्यानमग्न हो गए।
  • उन्होंने प्रभास क्षेत्र में एक पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम किया।
2. शिकारी द्वारा श्रीकृष्ण का तीर मारना
  • एक शिकारी जरा ने श्रीकृष्ण के पैर को हिरण समझकर तीर चला दिया।
  • जब शिकारी ने देखा कि उसने स्वयं भगवान को तीर मार दिया है, तो वह अत्यंत दुखी हुआ।
  • श्रीकृष्ण ने उसे क्षमादान दिया और कहा कि यह सब पूर्व निर्धारित था।
3. श्रीकृष्ण का बैकुंठ गमन
  • जब श्रीकृष्ण ने देखा कि अब उनका कार्य पूरा हो चुका है, तो उन्होंने अपना दिव्य रूप प्रकट किया।
  • वे बैकुंठधाम वापस चले गए, जहाँ वे अपने शाश्वत स्वरूप में स्थित हैं।

12. द्वादश स्कंध (कलियुग और भागवत पुराण की महिमा)

द्वादश स्कंध भागवत पुराण का अंतिम स्कंध है, जिसमें कलियुग के लक्षण, मानव जाति के पतन, राजा परीक्षित के तक्षक नाग द्वारा वध, और भागवत पुराण की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस स्कंध में यह भी बताया गया है कि भागवत पुराण के श्रवण, अध्ययन और अनुसरण से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

1. कलियुग के लक्षण और मानव जाति का पतन

1. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का अंतर

भागवत पुराण में बताया गया है कि चार युगों में मानव के नैतिक गुणों और धार्मिकता की स्थिति बदलती रहती है।

1. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का अंतर

भागवत पुराण में बताया गया है कि चार युगों में मानव के नैतिक गुणों और धार्मिकता की स्थिति बदलती रहती है।

युग धर्म के स्तंभ (सत्य, दया, तप, शौच) मानव स्वभाव
सतयुग 4 में से 4 (पूर्ण धर्म) सभी लोग धार्मिक, सत्यवादी और संतोषी होते हैं।
त्रेतायुग 4 में से 4 लोग धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कामना और लोभ बढ़ जाता है।
द्वापरयुग 4 में से 2 सत्य और धर्म की हानि होती है, राजा न्याय करते हैं, लेकिन युद्ध और छल-कपट बढ़ जाता है।
कलियुग 4 में से 1 केवल नाममात्र का धर्म बचता है, अधर्म का बोलबाला होता है।

यह स्कंध हमें बताता है कि कलियुग में धर्म का ह्रास होगा, लेकिन जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करेगा, वह इस युग के प्रभाव से बच सकता है।

2. राजा परीक्षित का तक्षक नाग द्वारा वध

1. राजा परीक्षित को शाप क्यों मिला?

  • राजा परीक्षित एक प्रतापी और धर्मपरायण राजा थे।
  • एक दिन उन्होंने शमीक ऋषि को ध्यानमग्न देखा और उनसे पानी माँगा।
  • जब ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो परीक्षित ने क्रोधवश उनके गले में मृत सर्प डाल दिया।
  • जब ऋषि के पुत्र ने यह देखा, तो उन्होंने परीक्षित को शाप दिया कि सात दिनों के भीतर तक्षक नाग उन्हें डसकर मार देगा।

2. परीक्षित का मृत्यु से पहले भागवत पुराण श्रवण

  • जब राजा परीक्षित को शाप मिला, तो उन्होंने सभी सांसारिक मोह छोड़ दिए और गंगा किनारे चले गए।
  • वहाँ पर शुकदेव मुनि ने उन्हें भागवत पुराण सुनाया।
  • परीक्षित ने भगवान विष्णु की महिमा और उनके लीलाओं का श्रवण किया।
  • सातवें दिन, जब तक्षक नाग आया, तो परीक्षित भगवान का स्मरण कर मोक्ष को प्राप्त हुए।

यह कथा यह सिखाती है कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

3. भागवत पुराण की महिमा और इसकी कथा का फल

1. भागवत पुराण को पढ़ने और सुनने से क्या लाभ होता है?

  • जो व्यक्ति श्रद्धा और प्रेम से भागवत पुराण का पाठ करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • कलियुग में कोई भी व्यक्ति जो भगवान विष्णु की भक्ति करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
  • भगवत पुराण में गीता के समान ही आध्यात्मिक ज्ञान दिया गया है, जो मनुष्य को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
  • पढ़ने-सुनने वाले को पुण्य प्राप्त होता है और वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होता है।

2. सप्ताहिक भागवत कथा का महत्व

  • शुकदेव मुनि ने परीक्षित को सात दिनों में भागवत कथा सुनाई, इसलिए आज भी सप्ताहिक भागवत कथा का विशेष महत्व है।
  • जो भी इस कथा को सात दिनों तक श्रवण करता है, उसे जीवन में शांति और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भागवत पुराण यह बताता है कि इस संसार में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है भगवान की भक्ति। मोक्ष प्राप्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ साधन है।

धार्मिक महत्व

  • यह पुराण भक्ति मार्ग को सर्वोत्तम मानता है।
  • इसमें बताया गया है कि भगवान के नाम का स्मरण ही मोक्ष का उपाय है।
  • "कलियुग में केवल श्रीहरि का नाम ही मोक्षदायक है।"
  • इस ग्रंथ में वेदांत, उपनिषद और सांख्य दर्शन का समावेश है।

निष्कर्ष

श्रीमद्भागवत पुराण एक भक्ति प्रधान ग्रंथ है जो विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और विष्णु भक्ति पर केंद्रित है। इसे पढ़ने और सुनने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। यह न केवल हिंदू धर्म बल्कि भारतीय संस्कृति का भी महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

यह सनातन धर्म का सार है और इसमें वेदों, उपनिषदों और पुराणों का सार प्रस्तुत किया गया है।


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श्रीमद्भागवत पुराण-पढ़िए सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण का संक्षिप्त सारांश

श्रीमद्भागवत पुराण-पढ़िए सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत पुराण का संक्षिप्त सारांशAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

श्रीमद्भागवत पुराण: एक विस्तृत परिचय

परिचय

श्रीमद्भागवत पुराण (या भागवत महापुराण) हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है और इसे वैष्णव संप्रदाय में सबसे अधिक सम्मानित ग्रंथों में गिना जाता है। इस ग्रंथ को भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करने के लिए लिखा गया है, विशेष रूप से उनके कृष्णावतार पर इसका विशेष जोर है।

यह पुराण अठारह हजार श्लोकों में विभाजित है, और बारह स्कंधों (खंडों) में विभाजित है। इसमें 332 अध्याय हैं, जो धर्म, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के सिद्धांतों को स्थापित करते हैं। यह पुराण भक्तियोग को सर्वोच्च मार्ग मानता है और भक्तों को बताता है कि कैसे भगवान की भक्ति से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

1. प्रथम स्कंध (शुरुआती ज्ञान और कथा का प्रारंभ)

श्रीमद्भागवत महापुराण का प्रथम स्कंध इसकी भूमिका और प्रारंभिक कथाओं को प्रस्तुत करता है। इसमें बताया गया है कि यह भगवान वेदव्यास द्वारा रचित है और उनके पुत्र शुकदेव ने इसे राजा परिक्षित को सुनाया था। यह स्कंध इस महापुराण के महत्त्व, उद्देश्य और पौराणिक कथाओं की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करता है।

1.1 व्यासदेव द्वारा पुराण की रचना और नारद मुनि की प्रेरणा

  • महर्षि व्यासदेव ने वेदों का विभाजन किया और महाभारत की रचना की, लेकिन उन्हें पूर्ण संतोष नहीं मिला।
  • तब नारद मुनि उनसे मिलने आए और उन्हें बताया कि उन्होंने भगवान की भक्ति और लीला का महत्त्वपूर्ण वर्णन नहीं किया।
  • नारद ने कहा कि संसार के कल्याण के लिए एक ऐसा ग्रंथ रचना चाहिए, जिसमें भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की लीलाएँ विस्तार से हों।
  • इसके बाद व्यासदेव ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की और इसे अपने पुत्र शुकदेव मुनि को सुनाया।

इससे यह सिद्ध होता है कि श्रीमद्भागवत केवल ज्ञान का ग्रंथ नहीं, बल्कि भगवान की भक्ति का एक सर्वोच्च ग्रंथ है।

1.2 राजा परिक्षित को शाप और भागवत कथा का आरंभ

  • राजा परिक्षित अर्जुन के पोते और अभिमन्यु के पुत्र थे।
  • एक बार, वे शिकार खेलते-खेलते महर्षि शमीक के आश्रम में पहुंचे और प्यासे थे।
  • उन्होंने ऋषि से जल माँगा, लेकिन ऋषि ध्यान में लीन थे, इसलिए उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
  • क्रोधित होकर परिक्षित ने उनके गले में मृत साँप डाल दिया।
  • जब यह बात शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली, तो उन्होंने क्रोधित होकर राजा परिक्षित को सात दिनों में तक्षक नाग के दंश से मृत्यु का शाप दे दिया।
  • इस शाप के कारण ही राजा परिक्षित ने श्रीमद्भागवत कथा सुननी शुरू की, जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।

1.3 ब्रह्मा द्वारा नारद को सृष्टि और भक्ति का उपदेश

  • नारद मुनि ने भगवान ब्रह्मा से पूछा कि सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई और ईश्वर की भक्ति का क्या महत्व है?
  • ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु ही सृष्टि के कारण हैं और भक्ति के बिना संसार का कोई मूल्य नहीं है।
  • उन्होंने बताया कि भक्ति ही आत्मा को ईश्वर से जोड़ने का मार्ग है और जो व्यक्ति भगवान की भक्ति करता है, वही सच्चे अर्थों में मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

इस कथा से स्पष्ट होता है कि भक्ति केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि मोक्ष का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है।

2. द्वितीय स्कंध (सृष्टि और परम तत्व का ज्ञान)

द्वितीय स्कंध भगवान विष्णु के विराट स्वरूप, सृष्टि की उत्पत्ति और मोक्ष प्राप्ति के मार्गों का विस्तार से वर्णन करता है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान विष्णु ही सृष्टि के मूल कारण, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। साथ ही, मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महिमा को भी समझाया गया है।

2.1 ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सृष्टि का विस्तार

  • श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की इच्छा से होती है।
  • जब सृष्टि नहीं थी, तब केवल भगवान नारायण ही शेषनाग पर योगनिद्रा में स्थित थे।
  • उनकी नाभि से एक विशाल कमल प्रकट हुआ, जिसमें भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ।
  • ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की और जीवन को विभिन्न लोकों में स्थापित किया।

2.2 सृष्टि की संरचना और चौदह लोक

सृष्टि की संरचना चौदह लोकों में विभाजित है, जो इस प्रकार हैं:

ऊर्ध्व लोक (ऊपरी सात लोक)
  • सत्यलोक – भगवान ब्रह्मा का लोक, जहाँ ऋषि-मुनि रहते हैं।
  • तपोलोक – तपस्वी ऋषियों का निवास।
  • जनलोक – संतों और दिव्य आत्माओं का निवास।
  • महर्लोक – महान ऋषियों का लोक।
  • स्वर्लोक – इंद्र और देवताओं का लोक।
  • भुवर्लोक – पृथ्वी और अंतरिक्ष के बीच का क्षेत्र।
  • भूलोक – मानवों की पृथ्वी।
अधोलोक (निचले सात लोक)
  • अतल – दैत्य और असुरों का निवास।
  • वितल – बलि राज का साम्राज्य।
  • सुतल – राक्षसों का स्थान।
  • रसातल – नागलोक, जहाँ अनेक नाग जातियाँ निवास करती हैं।
  • महातल – नागों और दैत्यों का एक अन्य लोक।
  • तलातल – माया और तामसिक शक्तियों का स्थान।
  • पाताल – सबसे निचला लोक, जहाँ शेषनाग निवास करते हैं।

इन लोकों का विस्तार यह दिखाता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक दिव्य योजना के अनुसार कार्य करता है, और भगवान विष्णु ही इसके संरक्षक हैं।

2. भगवान विष्णु के विराट रूप का वर्णन

द्वितीय स्कंध में भगवान विष्णु के विराट स्वरूप का अद्भुत वर्णन किया गया है।

  • भगवान सम्पूर्ण ब्रह्मांड से भी बड़े हैं।
  • उनका सिर सत्यलोक है, उनके नेत्र सूर्य और चंद्रमा, उनकी श्वास वायु, उनके चरण पृथ्वी, उनकी वाणी वेद, और उनका हृदय धर्म का निवास है।
  • उनके रोमकूपों से अनंत ब्रह्मांडों की उत्पत्ति होती है और उनका संहार भी उन्हीं के द्वारा होता है।
  • वे सम्पूर्ण लोकों में एक ही समय पर स्थित रहते हैं, लेकिन भक्तों के प्रेम के कारण वे बालरूप में भी प्रकट होते हैं।

भगवान विष्णु का विराट स्वरूप यह दर्शाता है कि वे ही सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं और उनके बिना ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं।

3. मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने की महिमा

श्रीमद्भागवत में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।

  • जब मृत्यु का समय आता है, तब व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल मिलता है।
  • यदि व्यक्ति अंत समय में भगवान का स्मरण करता है, तो वह पापों से मुक्त होकर भगवान के धाम में जाता है।
  • उदाहरण के लिए, अजामिल नामक ब्राह्मण अपने अंतिम समय में "नारायण" शब्द का उच्चारण करता है, जिससे वह यमलोक जाने से बचकर विष्णु धाम पहुँच जाता है।
  • यह भी बताया गया है कि मृत्यु के समय जिस भावना से व्यक्ति जाता है, उसका अगला जन्म उसी के अनुसार होता है।

इसलिए जीवनभर भगवान की भक्ति करनी चाहिए, ताकि मृत्यु के समय स्वतः ही उनका स्मरण हो सके और मोक्ष की प्राप्ति हो।

3. तृतीय स्कंध (सृष्टि की प्रक्रिया और कपिल उपदेश)

तृतीय स्कंध में सृष्टि की उत्पत्ति, भगवान विष्णु के अवतारों और कपिल मुनि के द्वारा प्रदत्त सांख्य योग का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान विष्णु ही सम्पूर्ण सृष्टि के कारण हैं और उनके द्वारा ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार होता है।

1. सृष्टि की प्रक्रिया और उत्पत्ति

  • श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण सृष्टि भगवान विष्णु की इच्छा से उत्पन्न होती है और ब्रह्मा जी के माध्यम से इसका विस्तार होता है।
  • सृष्टि के आरंभ में केवल परब्रह्म (भगवान विष्णु) का अस्तित्व था, और कोई अन्य वस्तु नहीं थी।
  • भगवान विष्णु के भीतर ही समस्त सृष्टि के बीज (प्रकृति और जीव) निहित थे।
  • जब सृष्टि की रचना का समय आया, तब भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ, जिससे भगवान ब्रह्मा उत्पन्न हुए।
  • ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा गया, और उन्होंने योगबल से चार वेदों और चार सनतकुमारों की रचना की।
  • इसके बाद ब्रह्मा जी ने दस प्रजापतियों को उत्पन्न किया, जिन्होंने आगे चलकर मानव, पशु-पक्षी, देवता, असुर, और अन्य जीवों की रचना की।
  • इस सृष्टि को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार धारण किए और धर्म की स्थापना की।

इस भाग में यह समझाया गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक दिव्य प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य करता है, और भगवान विष्णु ही इसके आधारभूत कारण हैं।

2. कपिल मुनि अवतार (सांख्य योग का प्रवर्तन)

  • भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया, जो सांख्य योग के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • उन्होंने अपनी माता देवहूति को सांख्य दर्शन का उपदेश दिया, जिससे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।

2. कपिल मुनि और उनकी माता देवहूति

1. कपिल मुनि का जन्म

  • महाराज स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ था।
  • देवहूति ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की और भगवान विष्णु से एक दिव्य संतान की प्राप्ति की कामना की।
  • भगवान विष्णु ने उन्हें कपिल मुनि के रूप में अवतार लेने का वरदान दिया।
  • कपिल मुनि के जन्म के बाद कर्दम ऋषि सन्यास लेकर वन को चले गए, और कपिल मुनि अपनी माता को आत्मज्ञान का उपदेश देने लगे।

2. कपिल मुनि द्वारा सांख्य योग का उपदेश

  • कपिल मुनि ने अपनी माता देवहूति को सांख्य योग का उपदेश दिया, जिससे उन्होंने अज्ञान से मुक्त होकर आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया।

(1) सांख्य योग क्या है?

  • सांख्य योग ज्ञान और विवेक का मार्ग है, जिसमें बताया गया है कि जीवात्मा और प्रकृति भिन्न हैं, और आत्मा का परम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है।

(2) कपिल मुनि द्वारा दिए गए मुख्य उपदेश

  • मनुष्य को आत्मा और शरीर का भेद समझना चाहिए।
  • यह संसार नश्वर है, केवल आत्मा ही शाश्वत है।
  • भगवान की भक्ति से ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
  • इच्छाओं और सांसारिक मोह को त्याग कर, आत्मज्ञान प्राप्त करना ही मोक्ष का मार्ग है।
  • भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से व्यक्ति सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है।

4. चतुर्थ स्कंध (राजाओं और धर्म का वर्णन)

चतुर्थ स्कंध में धर्म, अधर्म, तपस्या, राजा के कर्तव्य और भगवान विष्णु की भक्ति से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण कथाएँ दी गई हैं। इसमें दक्ष प्रजापति के यज्ञ, राजा ध्रुव की तपस्या, राजा वेन के अधर्म और राजा पृथु के अवतार का विस्तृत वर्णन किया गया है।

1. दक्ष प्रजापति का यज्ञ और भगवान शिव का अपमान

1. दक्ष प्रजापति कौन थे?

  • दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे।
  • उन्होंने सृष्टि को बढ़ाने के लिए अपनी कन्याओं का विवाह विभिन्न ऋषियों और देवताओं से किया।
  • उनकी एक पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था।

2. दक्ष प्रजापति का अहंकार

  • दक्ष प्रजापति भगवान शिव को नीची दृष्टि से देखते थे, क्योंकि वे सामान्य साधुओं की तरह रहते थे और राजसी आचरण नहीं करते थे।
  • एक बार, जब ब्रह्मलोक में यज्ञ का आयोजन हुआ, तो सभी देवता उपस्थित थे, लेकिन भगवान शिव वहां नहीं गए।
  • दक्ष ने क्रोधित होकर भगवान शिव का अपमान किया और उनके लिए अपशब्द कहे।
  • भगवान शिव ने यह सब सुना, लेकिन शांत रहे और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

3. दक्ष यज्ञ का आयोजन और सती का आत्मदाह

  • बाद में दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
  • सती ने अपने पिता के यज्ञ में जाने का आग्रह किया, लेकिन भगवान शिव ने कहा कि जहाँ सम्मान न हो, वहाँ जाना उचित नहीं।
  • सती अपने पति की आज्ञा के विरुद्ध यज्ञ में पहुँचीं, लेकिन वहाँ उन्हें और भगवान शिव को अपमानित किया गया।
  • अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने योगबल से आत्मदाह कर लिया।
  • जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए।

4. वीरभद्र का प्रकट होना और दक्ष का विनाश

  • भगवान शिव ने अपने जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया और उन्हें यज्ञ नष्ट करने के लिए भेजा।
  • वीरभद्र ने यज्ञ स्थल में उत्पात मचाया और दक्ष प्रजापति का सिर काट दिया।
  • यज्ञ को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गए।
  • अंत में भगवान ब्रह्मा और अन्य देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा मांगी, और भगवान शिव ने दक्ष को बकरे के सिर के साथ पुनर्जीवित कर दिया।

2. राजा ध्रुव की कथा – 4 वर्ष की आयु में घनघोर तपस्या

1. ध्रुव कौन थे?

  • राजा उत्तानपाद के दो पुत्र थे – ध्रुव और उत्तम।
  • ध्रुव की माता सुनिति थीं, जो राजा की बड़ी रानी थीं, लेकिन राजा को छोटी रानी सुरुचि अधिक प्रिय थीं।

2. ध्रुव का अपमान और वन गमन

  • एक दिन ध्रुव राजा के सिंहासन पर बैठना चाहते थे, लेकिन उनकी सौतेली माँ सुरुचि ने उन्हें रोक दिया।
  • सुरुचि ने ध्रुव से कहा, "तुम इस सिंहासन पर नहीं बैठ सकते, क्योंकि तुमने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया है। यदि तुम भगवान विष्णु की भक्ति करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करो, तो ही तुम इसे प्राप्त कर सकते हो।"
  • यह सुनकर ध्रुव अत्यंत आहत हुए और अपनी माता सुनिति के पास गए।
  • माता ने कहा कि जो व्यक्ति संसार में सच्चा न्याय और सम्मान दिला सकता है, वह केवल भगवान विष्णु हैं।
  • यह सुनकर ध्रुव ने भगवान विष्णु की भक्ति करने के लिए वन जाने का निश्चय किया।

3. घनघोर तपस्या और भगवान विष्णु का दर्शन

  • ध्रुव केवल पाँच वर्ष की आयु में वन में चले गए और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगे।
  • ऋषि नारद ने ध्रुव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन ध्रुव अपनी तपस्या से विचलित नहीं हुए।
  • उन्होंने छह महीने तक कठिन तपस्या की, जिसमें वे पहले केवल फल-फूल खाते थे, फिर केवल पानी पीते थे, और अंत में केवल वायु से जीवित रहे।
  • उनकी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया।
  • भगवान ने ध्रुव से कहा कि वे एक महान राजा बनेंगे और मृत्यु के पश्चात ध्रुव तारा के रूप में अमर रहेंगे।

3. राजा वेन का अधर्म और राजा पृथु का अवतार

1. राजा वेन का अधर्म

  • राजा वेन एक अधर्मी राजा था, जिसने अपनी शक्ति के मद में आकर सभी धार्मिक कर्मकांडों को बंद कर दिया।
  • उसने यज्ञ और भगवान की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे देवता और ऋषि अत्यंत दुखी हो गए।
  • उन्होंने राजा वेन को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह अहंकारी और क्रूर बना रहा।
  • जब राजा वेन का अत्याचार अधिक बढ़ गया, तो ऋषियों ने अपने तपोबल से उसे मार दिया।

2. राजा पृथु का अवतार और पृथ्वी का दोहन

  • राजा वेन के मरने के बाद उसके शव से भगवान विष्णु के अंश से पृथु का प्रकट होना हुआ।
  • राजा पृथु एक महान धर्मपरायण राजा बने और उन्होंने धरती को पुनः समृद्ध किया।
  • उस समय पृथ्वी माता (भूमि देवी) ने अन्न देना बंद कर दिया था, क्योंकि राजा वेन के पापों से वह क्रोधित थीं।
  • राजा पृथु ने गाय के रूप में पृथ्वी का दोहन किया और पुनः धरती को उर्वर बनाया।
  • राजा पृथु को ही पृथ्वी का प्रथम सम्राट माना जाता है, और उनके नाम पर ही पृथ्वी का नाम पड़ा।

5. पंचम स्कंध (भूगोल और ब्रह्मांड की संरचना)

पंचम स्कंध में भूगोल, ब्रह्मांड की संरचना, सप्तद्वीपों (सात द्वीपों), लोकों, स्वर्ग, नरक, और भगवान विष्णु की विभूतियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस स्कंध का मुख्य उद्देश्य ब्रह्मांड की भव्यता को दर्शाना और जीव के वास्तविक स्वरूप को समझाना है।

1. भगवान ऋषभदेव की कथा – विष्णु के अवतार

1. ऋषभदेव का जन्म और जीवन
  • राजा नाभि और रानी मेरुदेवी ने भगवान विष्णु से एक दिव्य पुत्र की प्रार्थना की थी।
  • भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में अवतार लिया, जो आगे चलकर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भी बने।
  • ऋषभदेव संपूर्ण रूप से विरक्त और आत्म-साक्षात्कार से युक्त थे।
  • उन्होंने राज्य, सुख-सुविधाएँ और सांसारिक बंधनों को त्यागकर गहन तपस्या की।
2. ऋषभदेव का त्याग और सन्यास
  • उन्होंने अपने सौ पुत्रों को धर्म और राजधर्म की शिक्षा दी।
  • उनके सबसे बड़े पुत्र भरत थे, जिनके नाम पर ही इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।
  • ऋषभदेव ने राजपाट त्यागकर जंगलों में कठोर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया।

2. जम्बूद्वीप और सप्तद्वीपों का भूगोल

1. जम्बूद्वीप का वर्णन
  • संपूर्ण पृथ्वी को जम्बूद्वीप कहा गया है, जो सात क्षेत्रों में विभाजित है।
  • जम्बूद्वीप के बीचों-बीच मेरु पर्वत स्थित है, जो ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है।
  • जम्बूद्वीप के नौ खंड हैं, जिनमें भारतवर्ष सबसे प्रमुख है।
  • भारतवर्ष में ही कर्मयोग, भक्ति, मोक्ष और धर्म का पालन संभव है।
2. सप्तद्वीपों (सात द्वीपों) का भूगोल

श्रीमद्भागवत के अनुसार, संपूर्ण पृथ्वी सात द्वीपों (सप्तद्वीपों) में विभाजित है, जो चारों ओर महासागरों से घिरे हैं:

  • जम्बूद्वीप – यह सबसे महत्वपूर्ण द्वीप है, जिसमें भारतवर्ष स्थित है।
  • प्लक्षद्वीप – इस द्वीप में सोने की भूमि और दिव्य वृक्ष पाए जाते हैं।
  • शाल्मलिद्वीप – यहाँ के निवासी विशेष रूप से अग्नि उपासक होते हैं।
  • कुशद्वीप – इस द्वीप में विशेष रूप से कुश घास उगती है, जिससे यज्ञ किए जाते हैं।
  • क्रौंचद्वीप – इसे एक विशाल पर्वत से ढका हुआ बताया गया है।
  • शाकद्वीप – यहाँ रहने वाले लोग अत्यंत धार्मिक और सत्यनिष्ठ होते हैं।
  • पुष्करद्वीप – यह सबसे बड़ा और बाहरी क्षेत्र में स्थित द्वीप है, जहाँ ब्रह्मलोक का प्रभाव अधिक बताया गया है।

6. षष्ठ स्कंध (अजामिल और भक्ति का महत्व)

षष्ठ स्कंध में भक्ति, भगवान विष्णु के नाम की महिमा, कर्मों के प्रभाव और भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया गया है। इसमें विशेष रूप से अजामिल की कथा, भगवान के नाम की शक्ति, और दधीचि मुनि के अस्थिदान की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है।

1. अजामिल की कथा – 'नारायण' नाम का प्रभाव

1. अजामिल कौन था?
  • अजामिल एक ब्राह्मण पुत्र था, जो बचपन में अत्यंत धार्मिक और सदाचारी था।
  • उसने शास्त्रों का अध्ययन किया, वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और यज्ञ-हवन आदि धार्मिक कृत्यों में निपुण था।
  • उसका विवाह एक धार्मिक स्त्री से हुआ और वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा था।
2. अजामिल का पतन
  • एक दिन उसने जंगल में एक वेश्या और शराबी पुरुष को प्रेमालाप करते देखा।
  • यह दृश्य उसके मन में वासना और विकार भर गया और उसने अपनी पत्नी को छोड़कर उस वेश्या के साथ रहना प्रारंभ कर दिया।
  • उसने अधर्म का जीवन अपनाया, चोरी-डकैती की, झूठ बोला और अन्य पाप कर्मों में लिप्त हो गया।
  • उसके कई संतानें हुईं, जिनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम नारायण रखा।
3. मृत्यु के समय 'नारायण' नाम का उच्चारण
  • अजामिल ८८ वर्ष का हो गया और मृत्यु के समय उसके पापों के कारण यमदूत उसे लेने आए।
  • भयभीत होकर उसने अपने पुत्र नारायण को पुकारा – "नारायण! नारायण!"
  • यह नाम सुनते ही भगवान विष्णु के पार्षद (विष्णुदूत) वहाँ प्रकट हो गए।
  • उन्होंने यमदूतों को रोक दिया और कहा, "जो भी भगवान का नाम लेता है, वह यमराज के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाता है।"
  • यमदूतों ने इस पर आपत्ति जताई, लेकिन विष्णुदूतों ने समझाया कि केवल एक बार भगवान का नाम लेने से भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
  • इस विवाद को सुनकर यमराज स्वयं अपने सभागृह में अपने अनुचरों को यह शिक्षा देते हैं कि "विष्णु भक्ति करने वालों को दंड देना अनुचित है।"
4. अजामिल को भगवान का साक्षात्कार और मोक्ष
  • जब अजामिल को इस घटना का ज्ञान हुआ, तो वह गंगा तट पर चला गया और कठोर तपस्या करने लगा।
  • अंततः उसने सच्चे हृदय से भगवान विष्णु की भक्ति की और मोक्ष प्राप्त किया।
  • विष्णुदूत उसे साक्षात भगवान विष्णु के धाम ले गए।

2. भगवान विष्णु के नाम की महिमा

षष्ठ स्कंध में भगवान विष्णु के नाम की महिमा को अत्यंत महत्व दिया गया है।

1. हरि नाम जप की महिमा

  • भगवान विष्णु के नाम का जाप सबसे श्रेष्ठ साधना मानी गई है।
  • यह कहा गया है कि कलियुग में केवल हरिनाम संकीर्तन से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी पापी क्यों न हो, यदि वह सच्चे मन से भगवान का नाम लेता है, तो वह पवित्र हो जाता है।

2. भगवन्नाम का प्रभाव

  • "राम" नाम का एक बार उच्चारण करने से हजारों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
  • भगवान विष्णु के नाम की महिमा से अत्यंत पापी व्यक्ति भी परम धाम प्राप्त कर सकता है।
  • यमराज स्वयं कहते हैं कि "जो भी भगवान नारायण का स्मरण करता है, वह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है।"

3. इंद्र का अहंकार और दधीचि मुनि द्वारा अपनी हड्डियों का दान

1. इंद्र का अहंकार

  • इंद्र स्वर्ग का राजा था, लेकिन उसे अपने पद का अत्यंत अहंकार था।
  • उसने ऋषियों और संतों का अनादर किया, जिससे देवताओं की शक्ति कम होने लगी।
  • इसी बीच वृत्रासुर नामक असुर ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा से अमोघ वरदान प्राप्त कर लिया।
  • ब्रह्मा ने कहा कि वृत्रासुर को कोई भी सामान्य हथियार नहीं मार सकता और उसे केवल किसी ऋषि की हड्डियों से बने वज्र से ही हराया जा सकता है।

2. दधीचि मुनि का त्याग

  • देवताओं ने दधीचि मुनि के पास जाकर उनसे अपनी हड्डियों का दान करने की विनती की।
  • दधीचि मुनि को यह ज्ञात हुआ कि उनकी हड्डियों से बना वज्र ही वृत्रासुर का वध कर सकता है।
  • उन्होंने बिना किसी संकोच के अपना शरीर त्याग दिया और इंद्र के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दीं।
  • उनकी हड्डियों से बना वज्र इंद्र को प्रदान किया गया, जिससे उसने वृत्रासुर का वध किया और देवताओं को पुनः स्वर्ग में स्थापित किया।

7. सप्तम स्कंध (भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह अवतार)

सप्तम स्कंध में भक्त प्रह्लाद की कथा और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह स्कंध यह सिद्ध करता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा के बल पर भक्त किसी भी कठिन परिस्थिति में भगवान की कृपा से सुरक्षित रहता है।

1. हिरण्यकश्यप का अहंकार और अत्याचार

1. हिरण्यकश्यप कौन था?

  • हिरण्यकश्यप एक असुरराज था, जिसे भगवान ब्रह्मा से असीम शक्ति और अमरता का वरदान प्राप्त था।
  • उसने कठिन तपस्या करके ब्रह्मा को प्रसन्न किया और उनसे यह वरदान मांगा:
    • वह न मनुष्यों द्वारा मारा जाए, न पशु द्वारा।
    • न दिन में मरे, न रात में।
    • न घर के अंदर मरे, न बाहर।
    • न किसी हथियार से मरे।
    • न आकाश में, न पृथ्वी पर।
  • इस वरदान के कारण वह अजेय हो गया और तीनों लोकों पर शासन करने लगा।
  • उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और संपूर्ण संसार में विष्णु भक्ति को बंद करने का आदेश दिया।

2. भक्त प्रह्लाद की कथा – विष्णु भक्ति की अद्भुत मिसाल

1. प्रह्लाद का जन्म और बचपन

  • हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु जब गर्भवती थीं, तब वे देवताओं द्वारा बंदी बना ली गई थीं।
  • ऋषि नारद ने कयाधु को अपने आश्रम में शरण दी और उन्हें भगवान विष्णु की महिमा सुनाई।
  • गर्भ में ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का ज्ञान प्राप्त कर लिया और उनका परम भक्त बन गया।

2. प्रह्लाद की विष्णु भक्ति और हिरण्यकश्यप का क्रोध

  • जब प्रह्लाद बड़ा हुआ, तब उसने अपने पिता के आदेशों को अस्वीकार कर दिया और भगवान विष्णु की भक्ति करने लगा।
  • हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह अपनी भक्ति से पीछे नहीं हटा।
  • उसने प्रह्लाद को शिक्षकों (शांड और अमर्क) के पास भेजा, ताकि वे उसे असुर धर्म सिखाएं, लेकिन प्रह्लाद ने वहाँ भी विष्णु भक्ति का प्रचार किया।
  • यह देखकर हिरण्यकश्यप अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया।

3. प्रह्लाद की परीक्षा – भगवान की रक्षा

  • हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की:
    • विष में मिलाकर मारने का प्रयास: हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जहर पिलाने का प्रयास किया, लेकिन विष भगवान विष्णु की कृपा से अमृत बन गया।
    • पहाड़ से गिराकर मारने का प्रयास: प्रह्लाद को एक ऊँचे पहाड़ से फेंक दिया गया, लेकिन भगवान ने उसे सुरक्षित उतार दिया।
    • हाथियों से कुचलवाने का प्रयास: उसे क्रोधित हाथियों के सामने डाल दिया गया, लेकिन वे भी उसे छूने की हिम्मत नहीं कर सके।
    • आग में जलाने का प्रयास – होलिका दहन: हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के पास अग्नि में न जलने का वरदान था।
      • उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का प्रयास किया, लेकिन भगवान की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया।
      • यह घटना आज भी 'होलिका दहन' के रूप में मनाई जाती है, जो यह दर्शाती है कि भक्त को भगवान की कृपा से कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता।

4. भगवान नरसिंह का अवतार और हिरण्यकश्यप का वध

1. हिरण्यकश्यप का प्रह्लाद से अंतिम प्रश्न

  • जब सभी प्रयास असफल हो गए, तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से क्रोधित होकर पूछा – "तेरा विष्णु कहाँ है? क्या वह इस खंभे में भी है?"
  • प्रह्लाद ने उत्तर दिया – "हाँ, भगवान सर्वत्र हैं।"
  • यह सुनकर हिरण्यकश्यप ने अपने गदा से खंभे पर प्रहार किया।

2. भगवान नरसिंह का प्रकट होना

  • खंभा चटक गया और उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह (आधा सिंह, आधा मानव) रूप में प्रकट होकर गर्जना की।
  • भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपने गोद में उठाया।
  • न वे उसे दिन में मारे, न रात में – बल्कि संध्या समय में मारा।
  • न घर में, न बाहर – बल्कि महल के द्वार पर।
  • न किसी हथियार से – बल्कि अपने नाखूनों से चीरकर।
  • न आकाश में, न पृथ्वी पर – बल्कि अपनी गोद में रखकर।
  • इस प्रकार भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप के अहंकार और अत्याचार का अंत किया।

5. भक्त प्रह्लाद का राजतिलक और भगवान की महिमा

  • हिरण्यकश्यप के अंत के बाद देवताओं ने भगवान नरसिंह से शांत होने की प्रार्थना की, लेकिन वे अत्यंत क्रोधित थे।
  • अंततः भक्त प्रह्लाद ने भगवान नरसिंह की स्तुति की, जिससे भगवान का क्रोध शांत हुआ।
  • भगवान ने प्रह्लाद को वरदान दिया कि वह एक महान राजा बनेगा और धर्म की स्थापना करेगा।
  • प्रह्लाद ने भगवान की आज्ञा से राज्य संभाला और अपना जीवन भगवान विष्णु की भक्ति में व्यतीत किया।

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति ही जीवन का सबसे बड़ा धन है और भगवान अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं।

8. अष्टम स्कंध (समुद्र मंथन और अन्य अवतार)

अष्टम स्कंध में समुद्र मंथन की कथा, भगवान मोहिनी अवतार, भगवान वामन अवतार और राजा बलि की कथा, और भगवान मत्स्य अवतार का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस स्कंध का मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि भगवान विष्णु हर युग में धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

1. समुद्र मंथन की कथा

1. देवताओं और असुरों की शक्ति की असमानता

  • एक समय देवता और असुरों के बीच लगातार युद्ध चल रहा था।
  • असुरों की शक्ति बढ़ने लगी, जिससे देवता पराजित हो गए और स्वर्ग पर असुरों का अधिकार हो गया।
  • सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और सहायता की प्रार्थना की।
  • भगवान विष्णु ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त किया जाए, जिससे देवता पुनः बलवान हो सकते हैं।
  • इसके लिए देवताओं और असुरों को मिलकर समुद्र मंथन करना पड़ा।

2. समुद्र मंथन की प्रक्रिया

  • मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया।
  • असुरों ने वासुकि नाग का सिर पकड़ा और देवताओं ने उसकी पूंछ।
  • जब मंथन शुरू हुआ, तो वासुकि नाग के मुख से विष (कालकूट) निकला, जिससे तीनों लोकों में विनाश होने लगा।
  • सभी देवता भगवान शिव के पास गए, जिन्होंने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा।

2. भगवान मोहिनी अवतार – अमृत वितरण

  • अमृत कलश प्राप्त होते ही असुरों ने उसे हथिया लिया और अमृत स्वयं पीने लगे।
  • देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
  • भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप (एक अति सुंदर स्त्री) धारण किया।
  • मोहिनी रूप देखकर असुर मोहित हो गए और उन्होंने अमृत वितरण का कार्य मोहिनी को सौंप दिया।
  • भगवान मोहिनी ने चालाकी से अमृत देवताओं को पिला दिया और असुरों को वंचित कर दिया।
  • राहु नामक असुर ने भेष बदलकर अमृत पी लिया, लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसकी पहचान बता दी।
  • भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया, लेकिन उसने अमृत पी लिया था, इसलिए उसका सिर (राहु) और धड़ (केतु) अमर हो गए।

3. भगवान वामन अवतार और राजा बलि की कथा

1. राजा बलि का पराक्रम और दानशीलता

  • राजा बलि महान दानवीर और पराक्रमी असुरराज थे।
  • उन्होंने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
  • देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।

2. भगवान विष्णु का वामन अवतार

  • भगवान विष्णु ने वामन (एक छोटे ब्राह्मण बालक) रूप में अवतार लिया।
  • वे राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी।
  • राजा बलि ने दान देने से पहले अपने गुरु शुक्राचार्य से परामर्श लिया।
  • शुक्राचार्य ने राजा बलि को सावधान किया कि यह विष्णु हैं और यह चालाकी से तुम्हारा सारा राज्य ले लेंगे।
  • लेकिन राजा बलि अपने वचन से नहीं डगमगाए और दान देने के लिए तैयार हो गए।

3. भगवान वामन का विराट रूप और बलि की परीक्षा

  • भगवान वामन ने अपना विशाल विराट रूप धारण कर लिया।
  • पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी नाप ली।
  • दूसरे पग में संपूर्ण स्वर्ग नाप लिया।
  • तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तब राजा बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में रख दिया।
  • भगवान वामन ने राजा बलि की भक्ति और दानशीलता देखकर उन्हें सुतल लोक का राजा बना दिया और हमेशा उनकी रक्षा का वचन दिया।

4. भगवान मत्स्य अवतार की कथा

1. मत्स्य अवतार का उद्देश्य

  • भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) रूप में अवतार लिया।
  • इसका उद्देश्य सृष्टि को प्रलय से बचाना और वेदों की रक्षा करना था।

2. राजा सत्यव्रत और मत्स्य अवतार

  • राजा सत्यव्रत (जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने) एक दिन जल में स्नान कर रहे थे।
  • उन्होंने अपने हाथ में एक छोटी मछली (मत्स्य) को देखा।
  • मत्स्य ने राजा से अपने संरक्षण की प्रार्थना की।
  • राजा ने मछली को एक घड़े में रखा, लेकिन मछली लगातार बढ़ती गई।
  • फिर उन्होंने इसे तालाब, नदी और अंत में समुद्र में छोड़ा, लेकिन वह और विशाल हो गई।

3. मत्स्य अवतार द्वारा प्रलय की भविष्यवाणी

  • तब भगवान मत्स्य ने प्रकट होकर राजा सत्यव्रत को बताया कि शीघ्र ही प्रलय आने वाला है।
  • उन्होंने राजा को एक विशाल नाव तैयार करने और उसमें सात ऋषियों, विभिन्न जीवों और वेदों को रखने का आदेश दिया।
  • जब प्रलय आया, तब मत्स्य अवतार ने नाव को अपनी शक्ति से सुरक्षित स्थान पर ले जाकर सृष्टि को बचाया।

9. नवम स्कंध (राजवंशों की वंशावली और भगवान परशुराम की कथा)

नवम स्कंध में सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजाओं की वंशावली, भगवान श्रीराम के पूर्वजों का वर्णन और भगवान परशुराम के अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह स्कंध भारतीय इतिहास और पौराणिक परंपरा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है , क्योंकि इसमें प्राचीन राजवंशों का वृत्तांत मिलता है।

1. सूर्यवंश और चंद्रवंश – दो प्रमुख राजवंशों का वर्णन

1. सूर्यवंश (रघुवंश) का वर्णन

सूर्यवंश की उत्पत्ति भगवान सूर्य (विवस्वान) से हुई, इसलिए इसे सूर्यवंश कहा जाता है। इस वंश के महान राजा इक्ष्वाकु, हरिश्चंद्र, दिलीप और भगवान श्रीराम थे।

(1) राजा इक्ष्वाकु
  • राजा इक्ष्वाकु सूर्यवंश के प्रथम राजा थे, जो वैवस्वत मनु के पुत्र थे।
  • वे अत्यंत धर्मपरायण और पराक्रमी शासक थे।
  • उनके शासनकाल में राजधर्म और सत्यनिष्ठा को सर्वोपरि रखा गया।
(2) राजा हरिश्चंद्र
  • राजा हरिश्चंद्र सत्य और धर्म के पालन के लिए प्रसिद्ध थे।
  • उन्होंने अपना पूरा राज्य दान कर दिया और सत्य की रक्षा के लिए घोर कष्ट सहे।
  • अंततः उनकी परीक्षा पूर्ण हुई और उन्हें पुनः उनका राज्य प्राप्त हुआ।
  • उनकी कथा यह सिखाती है कि सत्य और धर्म की परीक्षा अवश्य होती है, लेकिन अंततः सत्य की विजय होती है।
(3) राजा सगर और कपिल मुनि की कथा
  • राजा सगर की 60 हजार संतानों का वध कपिल मुनि के क्रोध से हुआ।
  • बाद में उनके वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाया, जिससे उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिली।
  • यही कारण है कि गंगा नदी को भगीरथी भी कहा जाता है।
(4) राजा दिलीप और उनके पुत्र रघु
  • राजा दिलीप ने गायों की सेवा कर पुण्य अर्जित किया।
  • उनके पुत्र राजा रघु इतने पराक्रमी थे कि उनके नाम पर रघुवंश की स्थापना हुई।
  • रघुवंश में आगे चलकर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ।
(5) भगवान श्रीराम के पूर्वजों का वर्णन
  • श्रीराम का जन्म राजा दशरथ के यहाँ हुआ, जो सूर्यवंश के प्रतापी राजा थे।
  • उनका राजवंश मर्यादा, धर्म, और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित था।
  • श्रीराम ने रावण का वध कर धर्म की पुनः स्थापना की और अपने राज्य में रामराज्य की स्थापना की।

2. चंद्रवंश का वर्णन

चंद्रवंश की उत्पत्ति चंद्रदेव (सोम) से हुई, इसलिए इसे चंद्रवंश कहा जाता है।

(1) राजा ययाति
  • राजा ययाति एक महान सम्राट थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था अपने पुत्र पुरु को दान कर दी थी।
  • उनका यह त्याग संस्कार और कर्तव्य की भावना को दर्शाता है।
  • ययाति के पुत्रों में पुरु, यदु और अनु प्रमुख थे।
(2) यदुवंश और भगवान श्रीकृष्ण का जन्म
  • यदु के वंश में आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
  • यदुवंश अत्यंत शक्तिशाली और वीर योद्धाओं का वंश था।
  • भगवान श्रीकृष्ण ने इसी वंश में जन्म लेकर कंस और कई अधर्मियों का नाश किया।
(3) कुरुवंश और महाभारत की पृष्ठभूमि
  • चंद्रवंश से ही आगे चलकर कुरुवंश की स्थापना हुई।
  • इस वंश में कौरव और पांडवों का जन्म हुआ, जिन्होंने महाभारत युद्ध लड़ा।
  • पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में धर्म की विजय सुनिश्चित की।

3. भगवान परशुराम के अवतार की कथा

1. भगवान परशुराम का जन्म

  • भगवान परशुराम का जन्म भृगु ऋषि के वंश में हुआ।
  • उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं।
  • परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है।
  • वे शस्त्रविद्या और ब्रह्मतेज के अद्भुत संगम थे।

2. सहस्त्रार्जुन द्वारा जमदग्नि ऋषि की हत्या

  • राजा सहस्त्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन) ने जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी।
  • इस घटना से परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सम्पूर्ण क्षत्रिय वंश का नाश करने का संकल्प लिया।

3. 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करना

  • परशुराम ने एक के बाद एक, सभी अत्याचारी क्षत्रियों को समाप्त कर दिया।
  • इन्होंने २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया।
  • उन्होंने अपने पिता के हत्यारे सहस्त्रार्जुन का वध किया।

4. भगवान राम से भेंट

  • जब भगवान श्रीराम ने शिवधनुष तोड़ा, तब परशुराम उनसे मिलने पहुंचे।
  • उन्होंने भगवान श्रीराम की शक्ति की परीक्षा ली और अंततः यह समझ गए कि श्रीराम ही विष्णु के पूर्णावतार हैं।
  • इसके बाद परशुराम ने संन्यास ग्रहण कर दिया और तपस्या में लीन हो गए।

10. दशम स्कंध (भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ)

दशम स्कंध भागवत पुराण का सबसे महत्वपूर्ण और विस्तारपूर्ण भाग है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ, अद्भुत पराक्रम, दुष्टों का संहार और धर्म की स्थापना का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस स्कंध में भगवान विष्णु के पूर्णावतार श्रीकृष्ण की जन्म से लेकर महाभारत तक की कथा दी गई है।

1. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म

1.1 कंस का अत्याचार और भविष्यवाणी

  • मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस अत्याचारी और अधर्मी राजा था।
  • उसकी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ।
  • विवाह के समय आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा।
  • कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके एक-एक कर सभी संतानों का वध करने लगा।

1.2 श्रीकृष्ण का जन्म और गोकुल गमन

  • भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ।
  • योगमाया के प्रभाव से कारागार के द्वार खुल गए और वासुदेव ने कृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना पार की।
  • गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के यहाँ श्रीकृष्ण को छोड़कर, वासुदेव योगमाया को कारागार में ले आए।
  • कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा, तो वह देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और कंस को चेतावनी दी कि तेरा वध करने वाला जन्म ले चुका है।

2. श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ (गोकुल और वृंदावन में लीलाएँ)

2.1 पूतना वध

  • कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा, जो स्त्री रूप धारण कर बच्चों को विष पिलाकर मार देती थी।
  • उसने श्रीकृष्ण को दूध पिलाने का प्रयास किया, लेकिन भगवान ने उसका वध कर दिया।

2.2 शकटासुर, तृणावर्त और अन्य राक्षसों का संहार

  • शकटासुर – भगवान ने अपने छोटे पैरों से ही रथ (शकट) को गिरा दिया और शकटासुर का वध किया।
  • तृणावर्त – यह वायुरूपी असुर था, जिसने श्रीकृष्ण को उड़ाने का प्रयास किया, लेकिन भगवान ने उसका गला दबाकर उसे मार डाला।

2.3 यशोदा को विराट रूप का दर्शन

  • श्रीकृष्ण जब छोटे थे, तब यशोदा माता ने उनके मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड देखा।
  • यह लीलाएँ सिद्ध करती हैं कि श्रीकृष्ण केवल एक बालक नहीं, बल्कि साक्षात परमेश्वर हैं।

2.4 माखन चोरी और गोपियों की लीलाएँ

  • श्रीकृष्ण और बलराम ग्वालबालों के साथ माखन चोरी करते और गोपियों को सताते थे।
  • एक दिन यशोदा माता ने उन्हें पकड़ा और ऊखल से बाँध दिया (दमोदर लीला), जिससे उनकी बाल लीला का स्वरूप और दिव्यता प्रकट हुई।

3. गोवर्धन लीला और कंस वध

3.1 गोवर्धन पूजन और इंद्र का अहंकार

  • गोकुल में इंद्र की पूजा होती थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोपों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा।
  • क्रोधित होकर इंद्र ने मूसलधार बारिश कर दी।
  • श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी गोप-गोपियों की रक्षा की।
  • अंततः इंद्र ने अपनी गलती स्वीकार की और श्रीकृष्ण की शरण में आया।

3.2 कंस द्वारा अक्रूर को भेजना और मथुरा गमन

  • कंस ने श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा बुलाने के लिए अक्रूर को भेजा।
  • अक्रूर जी ने श्रीकृष्ण को मथुरा आने के लिए मनाया।
  • वहाँ कंस ने कई मल्ल (चाणूर और मुष्टिक) से भगवान का सामना करवाया।

3.3 कंस वध

  • कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी, लेकिन भगवान ने चाणूर और मुष्टिक को पराजित कर दिया।
  • अंत में कृष्ण ने कंस के बाल पकड़कर उसे भूमि पर पटक दिया और उसका वध कर दिया।
  • कंस के मरने के बाद मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त कर दिया गया।

4. द्वारका स्थापना और अन्य लीलाएँ

1. द्वारका की स्थापना

  • श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर समुद्र के किनारे द्वारका नगरी बसाई।
  • यहाँ से उन्होंने कई राजाओं को अधर्म से मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।

2. नरकासुर वध और 16,108 रानियों का उद्धार

  • नरकासुर नामक असुर ने १६,१०८ कन्याओं को बंदी बना रखा था।
  • श्रीकृष्ण ने उसका वध कर उन कन्याओं को मुक्त किया और समाज में उनकी रक्षा के लिए सभी से विवाह कर लिया।

5. महाभारत और गीता का उपदेश

1. अर्जुन का मोह और गीता का ज्ञान

  • जब महाभारत युद्ध के समय अर्जुन मोहग्रस्त हो गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवद गीता का उपदेश दिया।
  • इसमें श्रीकृष्ण ने कहा –
    • "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।"
    • "हर व्यक्ति का परम धर्म भगवान की भक्ति करना है।"
    • "मैं ही सबका मूल कारण हूँ और मुझमें ही सब विलीन होते हैं।"

2. कौरवों और पांडवों के बीच मध्यस्थता

  • श्रीकृष्ण ने पहले शांति का प्रस्ताव रखा, लेकिन दुर्योधन ने इसे अस्वीकार कर दिया।
  • अंततः महाभारत का युद्ध हुआ और अधर्मियों का नाश हुआ।

3. श्रीकृष्ण का अंतिम उपदेश

  • जब युद्ध समाप्त हुआ, तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धर्मराज्य चलाने की सीख दी।
  • उन्होंने विदुर और उधव को भी जीवन का अंतिम ज्ञान प्रदान किया।

11. एकादश स्कंध (योग और वैराग्य का उपदेश)

एकादश स्कंध भागवत पुराण का आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को वैराग्य, भक्तियोग और आत्मज्ञान का उपदेश दिया। यह स्कंध श्रीकृष्ण की अंतिम शिक्षाओं, यदुवंश के विनाश और उनके लीलाओं के समापन का वर्णन करता है।

1. श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को उपदेश (उद्धव गीता)

1. उद्धव और उनका श्रीकृष्ण से प्रश्न
  • उद्धव भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय भक्त और सेवक थे।
  • जब श्रीकृष्ण ने देखा कि उनका अवतार काल समाप्त होने वाला है, तब उद्धव को आत्मज्ञान और भक्तियोग की शिक्षा देने का निर्णय लिया।
  • उद्धव ने श्रीकृष्ण से पूछा –
    • "जब आप इस संसार से विदा होंगे, तब हम भक्तों का मार्गदर्शन कौन करेगा?"
    • "जीवन का उद्देश्य क्या है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग क्या है?"
2. भगवान श्रीकृष्ण द्वारा वैराग्य और भक्तियोग का उपदेश
  • भगवान ने कहा कि यह संसार नश्वर है और केवल भगवान की भक्ति से ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
  • उद्धव गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन की सच्चाई को समझाने के लिए कई उपमाएँ दीं:
    • बालक के समान भक्ति – जिस प्रकार बालक अपने माता-पिता पर पूर्ण विश्वास रखता है, वैसे ही भक्त को भगवान पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
    • संपत्ति और मोह की असारता – संसार के सभी सुख और संपत्ति नाशवान हैं, इसलिए मनुष्य को वैराग्य अपनाना चाहिए।
    • भक्तियोग की महिमा – भगवान ने कहा कि जो व्यक्ति भक्ति मार्ग पर चलता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
    • सच्चे गुरु की आवश्यकता – श्रीकृष्ण ने उद्धव को बताया कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्ति असंभव है।
3. उद्धव को अंतिम आदेश
  • भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को हिमालय जाने और वहां तपस्या करने का निर्देश दिया।
  • उन्होंने कहा –
    • "जो मेरा नाम लेता है, मेरा स्मरण करता है, वही मुझसे जुड़ जाता है।"
    • "मैं सदा अपने भक्तों की रक्षा करता हूँ और उन्हें मुक्ति प्रदान करता हूँ।"

2. यदुवंश का नाश और श्रीकृष्ण की लीला समाप्ति

1. यदुवंश का पतन क्यों हुआ?
  • श्रीकृष्ण के जीवन के अंतिम समय में यदुवंशियों में अहंकार और आपसी कलह बढ़ गई।
  • उन्होंने अपने ही कुल के ऋषियों और संतों का अपमान किया, जिससे ब्राह्मणों ने उन्हें शाप दे दिया।
  • श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि यदुवंश का अंत निश्चित था, क्योंकि यह ब्रह्मा की योजना का हिस्सा था।
2. यदुवंश का आपसी संघर्ष और विनाश
  • शाप के प्रभाव से यदुवंशी मदिरा पीकर आपस में लड़ने लगे।
  • उन्होंने लोहे की मूसल से एक-दूसरे का संहार कर दिया।
  • अंततः पूरे यदुवंश का नाश हो गया और श्रीकृष्ण ने स्वयं यह सब स्वीकार किया, क्योंकि यही नियति थी।
3. श्रीकृष्ण का पृथ्वी से प्रस्थान (निर्वाण लीला)
1. श्रीकृष्ण का वनगमन और ध्यान
  • यदुवंश के विनाश के बाद श्रीकृष्ण जंगल में चले गए और ध्यानमग्न हो गए।
  • उन्होंने प्रभास क्षेत्र में एक पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम किया।
2. शिकारी द्वारा श्रीकृष्ण का तीर मारना
  • एक शिकारी जरा ने श्रीकृष्ण के पैर को हिरण समझकर तीर चला दिया।
  • जब शिकारी ने देखा कि उसने स्वयं भगवान को तीर मार दिया है, तो वह अत्यंत दुखी हुआ।
  • श्रीकृष्ण ने उसे क्षमादान दिया और कहा कि यह सब पूर्व निर्धारित था।
3. श्रीकृष्ण का बैकुंठ गमन
  • जब श्रीकृष्ण ने देखा कि अब उनका कार्य पूरा हो चुका है, तो उन्होंने अपना दिव्य रूप प्रकट किया।
  • वे बैकुंठधाम वापस चले गए, जहाँ वे अपने शाश्वत स्वरूप में स्थित हैं।

12. द्वादश स्कंध (कलियुग और भागवत पुराण की महिमा)

द्वादश स्कंध भागवत पुराण का अंतिम स्कंध है, जिसमें कलियुग के लक्षण, मानव जाति के पतन, राजा परीक्षित के तक्षक नाग द्वारा वध, और भागवत पुराण की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस स्कंध में यह भी बताया गया है कि भागवत पुराण के श्रवण, अध्ययन और अनुसरण से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

1. कलियुग के लक्षण और मानव जाति का पतन

1. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का अंतर

भागवत पुराण में बताया गया है कि चार युगों में मानव के नैतिक गुणों और धार्मिकता की स्थिति बदलती रहती है।

1. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का अंतर

भागवत पुराण में बताया गया है कि चार युगों में मानव के नैतिक गुणों और धार्मिकता की स्थिति बदलती रहती है।

युग धर्म के स्तंभ (सत्य, दया, तप, शौच) मानव स्वभाव
सतयुग 4 में से 4 (पूर्ण धर्म) सभी लोग धार्मिक, सत्यवादी और संतोषी होते हैं।
त्रेतायुग 4 में से 4 लोग धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कामना और लोभ बढ़ जाता है।
द्वापरयुग 4 में से 2 सत्य और धर्म की हानि होती है, राजा न्याय करते हैं, लेकिन युद्ध और छल-कपट बढ़ जाता है।
कलियुग 4 में से 1 केवल नाममात्र का धर्म बचता है, अधर्म का बोलबाला होता है।

यह स्कंध हमें बताता है कि कलियुग में धर्म का ह्रास होगा, लेकिन जो व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करेगा, वह इस युग के प्रभाव से बच सकता है।

2. राजा परीक्षित का तक्षक नाग द्वारा वध

1. राजा परीक्षित को शाप क्यों मिला?

  • राजा परीक्षित एक प्रतापी और धर्मपरायण राजा थे।
  • एक दिन उन्होंने शमीक ऋषि को ध्यानमग्न देखा और उनसे पानी माँगा।
  • जब ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो परीक्षित ने क्रोधवश उनके गले में मृत सर्प डाल दिया।
  • जब ऋषि के पुत्र ने यह देखा, तो उन्होंने परीक्षित को शाप दिया कि सात दिनों के भीतर तक्षक नाग उन्हें डसकर मार देगा।

2. परीक्षित का मृत्यु से पहले भागवत पुराण श्रवण

  • जब राजा परीक्षित को शाप मिला, तो उन्होंने सभी सांसारिक मोह छोड़ दिए और गंगा किनारे चले गए।
  • वहाँ पर शुकदेव मुनि ने उन्हें भागवत पुराण सुनाया।
  • परीक्षित ने भगवान विष्णु की महिमा और उनके लीलाओं का श्रवण किया।
  • सातवें दिन, जब तक्षक नाग आया, तो परीक्षित भगवान का स्मरण कर मोक्ष को प्राप्त हुए।

यह कथा यह सिखाती है कि मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

3. भागवत पुराण की महिमा और इसकी कथा का फल

1. भागवत पुराण को पढ़ने और सुनने से क्या लाभ होता है?

  • जो व्यक्ति श्रद्धा और प्रेम से भागवत पुराण का पाठ करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • कलियुग में कोई भी व्यक्ति जो भगवान विष्णु की भक्ति करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
  • भगवत पुराण में गीता के समान ही आध्यात्मिक ज्ञान दिया गया है, जो मनुष्य को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
  • पढ़ने-सुनने वाले को पुण्य प्राप्त होता है और वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होता है।

2. सप्ताहिक भागवत कथा का महत्व

  • शुकदेव मुनि ने परीक्षित को सात दिनों में भागवत कथा सुनाई, इसलिए आज भी सप्ताहिक भागवत कथा का विशेष महत्व है।
  • जो भी इस कथा को सात दिनों तक श्रवण करता है, उसे जीवन में शांति और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भागवत पुराण यह बताता है कि इस संसार में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है भगवान की भक्ति। मोक्ष प्राप्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ साधन है।

धार्मिक महत्व

  • यह पुराण भक्ति मार्ग को सर्वोत्तम मानता है।
  • इसमें बताया गया है कि भगवान के नाम का स्मरण ही मोक्ष का उपाय है।
  • "कलियुग में केवल श्रीहरि का नाम ही मोक्षदायक है।"
  • इस ग्रंथ में वेदांत, उपनिषद और सांख्य दर्शन का समावेश है।

निष्कर्ष

श्रीमद्भागवत पुराण एक भक्ति प्रधान ग्रंथ है जो विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और विष्णु भक्ति पर केंद्रित है। इसे पढ़ने और सुनने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। यह न केवल हिंदू धर्म बल्कि भारतीय संस्कृति का भी महत्वपूर्ण ग्रंथ है।

यह सनातन धर्म का सार है और इसमें वेदों, उपनिषदों और पुराणों का सार प्रस्तुत किया गया है।


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