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स्कंद पुराण – पढ़िए सम्पूर्ण स्कंद पुराण का संक्षिप्त सारांश

स्कंद पुराण – पढ़िए सम्पूर्ण स्कंद पुराण का संक्षिप्त सारांशAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

स्कंद पुराण: एक विस्तृत परिचय

परिचय

स्कंद पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में सबसे वृहद ग्रंथ माना जाता है। इसमें अस्सी एक हजार एक सौ (81,100) श्लोकों का उल्लेख मिलता है, लेकिन उपलब्ध प्रतियों में इसकी संपूर्णता को लेकर मतभेद हैं।

इस पुराण को भगवान स्कंद (कार्तिकेय) द्वारा वर्णित किया गया बताया गया है, जिसमें तत्पुरुष कल्प से संबंधित घटनाओं का उल्लेख है। इसमें महादेव शिव द्वारा प्रतिपादित धर्म का विस्तार किया गया है।

टिप्पणी

यह पुराण संहिताओं , खंडों और माहात्म्य में विभाजित है, और इसके संपूर्ण स्वरूप को लेकर विद्वानों में असहमति है।

स्कंद पुराण की संरचना और प्रमुख विषय

स्कंद पुराण का इतिहास और संरचना अत्यंत विस्तृत और जटिल है। यह पुराण विशेष रूप से भगवान शिव और उनके भक्तों के समर्पण से संबंधित कथाओं का एक प्रमुख स्रोत है।

1. उपलब्ध संस्करण और प्रमाणिकता का विवाद

स्कंद पुराण का सर्वश्रेष्ठ और सबसे व्यापक संस्करण अभी तक उपलब्ध नहीं है। इसके विभिन्न भाग और खंड अलग-अलग स्थानों पर और समय के साथ सुरक्षित रहे हैं। पुराण के इस विशेष रूप में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में विभिन्न संहिताएँ (भाग) और खंड विद्यमान हैं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण खंड निम्नलिखित हैं:

1.1 खंड और संहिताएँ

  • स्कंद पुराण के विभिन्न खंडों में भगवान शिव, देवी पार्वती, और भगवान कार्तिकेय के बारे में कथाएँ हैं।
  • प्रत्येक खंड में अलग-अलग विषयों का वर्णन किया गया है, जैसे कि उत्तरण खंड, कैलास खंड, मध्य खंड, कांची खंड आदि।
  • इन खंडों में संस्कृत श्लोकों और कथाओं का संग्रह किया गया है, जिनमें से कुछ भाग निश्चित रूप से प्राचीन हैं, जबकि कुछ संस्करणों में बाद में जोड़े गए तत्व हो सकते हैं।

1.2 संख्या और प्रामाणिकता

  • स्कंद पुराण के बारे में एक सामान्य दावा है कि इसमें 500 खंड और 500,000 श्लोक हैं, जो इसे विश्व के सबसे बड़े पुराणों में से एक बनाता है।
  • लेकिन यह संख्या वास्तविकता में इतनी विशाल है या नहीं, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।
  • स्कंद पुराण के आधुनिक संस्करणों में जो सामग्री उपलब्ध है, वह इस विशाल संख्या से कहीं छोटी होती है।
  • अतः इस बारे में कोई संदेह है कि क्या सभी खंड और श्लोक एक साथ एकत्र किए गए हैं या अगर प्राचीन संस्करणों में कोई घट-बढ़ की गई है।

1.3 विभिन्न संस्करणों का अस्तित्व

  • कई प्राचीन ग्रंथों और संदर्भों में यह पाया जाता है कि स्कंद पुराण के विभिन्न संस्करणों और विविध पाठों का संग्रह किया गया था।
  • कुछ भाग विशेष रूप से उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित हैं, और इन दोनों क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरीके से संरक्षित किया गया है।
  • ऐसे भी कुछ खंड हैं जो विशेष रूप से कांची या मध्यम क्षेत्र की भक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि कुछ में शिव के व्रत और पूजा विधियों पर जोर दिया जाता है।

1.4 संप्रदायिक और भौगोलिक भिन्नताएँ

स्कंद पुराण के अलग-अलग संस्करणों में विभिन्न कथाएँ और अनुष्ठान समाहित होते हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं को दर्शाते हैं। कुछ संस्करणों में विशेष रूप से शैव संप्रदाय के महत्व को उजागर किया गया है, जबकि कुछ में भगवान विष्णु और देवी के व्रतों और पूजा विधियों पर जोर दिया गया है।

2. प्रमुख खंड (खंडों की सूची और विवरण)

स्कंद पुराण में कुल मिलाकर 500 खंडों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख खंडों को विशेष महत्व प्राप्त है। ये खंड न केवल धार्मिक और धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में बताते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, तीर्थयात्राओं, पूजा विधियों , और भगवान शिव के अद्भुत लीलाओं के बारे में भी गहरी जानकारी प्रदान करते हैं। आइए इन प्रमुख खंडों पर अधिक विस्तार से चर्चा करें:

1. काशी खंड

  • काशी की धार्मिक महिमा: काशी को भारत के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक माना जाता है, और यहां भगवान शिव के विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। इस खंड में काशी के विभिन्न धार्मिक स्थलों, मंदिरों और तीर्थों का वर्णन किया गया है।
  • शिव पूजा और तीर्थयात्रा की विधियाँ: काशी में शिव पूजा और काशी तीर्थयात्रा के विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियों का विस्तृत वर्णन है। यह खंड तीर्थयात्रियों के लिए एक मार्गदर्शिका के रूप में काम करता है।
  • महर्षि अगस्त्य का योगदान: महर्षि अगस्त्य को दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस खंड में उनकी काशी यात्रा और वहां उनके योगदान का उल्लेख मिलता है।
  • राजा दिवोदास की कथा: राजा दिवोदास की कथा में काशी में शिव पूजा के क्षय और फिर पुनर्स्थापना की प्रक्रिया का विवरण है , जिसमें बुद्ध धर्म के प्रभाव का उल्लेख है। यह कथा बताती है कि कैसे काशी में शिव पूजा का पतन हुआ और फिर कैसे वह पुनः स्थापित हुई।

2. उत्कल खंड

उत्कल खंड विशेष रूप से ओडिशा के धार्मिक स्थलों और उनके महत्व का वर्णन करता है। इस खंड के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • जगन्नाथ पुरी तीर्थ: उत्कल खंड में जगन्नाथ पुरी के महत्व का विशेष उल्लेख है। पुरी, जो ओडिशा राज्य में स्थित है, भगवान जगन्नाथ का मुख्य तीर्थ स्थल है। यह खंड इस स्थान की धार्मिक और सांस्कृतिक महिमा को दर्शाता है।
  • शैव और वैष्णव पूजा का समन्वय: इस खंड में शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वय का भी उल्लेख है। यह बताता है कि कैसे विभिन्न पूजा पद्धतियाँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और भारतीय धार्मिक परंपराओं में उनका सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व है।

3. ब्रह्मोत्तर खंड, रेवा खंड, हिमवत खंड

ये खंड विभिन्न तीर्थ स्थलों और पवित्र नदियों के महत्व को दर्शाते हैं। इन खंडों के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • ब्रह्मोत्तर खंड: इसमें गंगा, यमुन, सरस्वती और अन्य पवित्र नदियों के महत्व का वर्णन है, साथ ही उन स्थानों की भी चर्चा है जहाँ इन नदियों के किनारे तीर्थ यात्रा करने से पुण्य मिलता है।
  • रेवा खंड: इस खंड में नर्मदा नदी और इसके किनारे स्थित तीर्थों का उल्लेख है। नर्मदा को एक पवित्र नदी माना जाता है, और इसके तट पर स्थित प्रमुख तीर्थ स्थलों का वर्णन किया गया है।
  • हिमवत खंड: हिमालय के पर्वत और उसकी धार्मिक महत्वता पर आधारित यह खंड भगवान शिव और उनके अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। हिमालय के विभिन्न तीर्थ स्थल, जैसे केदारनाथ और बद्रीनाथ, का इस खंड में उल्लेख किया गया है।

4. शिव रहस्य खंड

शिव रहस्य खंड भगवान शिव के अद्भुत लीलाओं और सिद्धांतों को प्रकट करने वाला खंड है। इस खंड में शिव के अनेक रहस्यमय और दिव्य पहलुओं पर चर्चा की गई है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भगवान शिव की अद्भुत लीलाएँ: इस खंड में भगवान शिव की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है, जैसे उनकी पूजा की विधियाँ, उनके अवतार, और उनके चमत्कारी कार्य। यह खंड भगवान शिव के रहस्यों को उजागर करता है।
  • शिव का तात्त्विक और आध्यात्मिक महत्व: शिव रहस्य खंड में भगवान शिव को सर्वोच्च ब्रह्म और परमेश्वर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह खंड शिव की पूजा और ध्यान विधियों पर भी गहन विचार प्रस्तुत करता है।
  • शिव के सिद्धांत: इस खंड में भगवान शिव के आध्यात्मिक सिद्धांत और उपदेश दिए गए हैं, जो उनके भक्तों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं। यह खंड शैव धर्म के गहरे रहस्यों और दर्शन का खुलासा करता है।

3. स्कंद पुराण की प्रमुख संहिताएँ

आइए स्कंद पुराण की संहिताओं के विषय में और विस्तार से समझते हैं:

1. सूत्र संहिता (Suta Sanhita)

सूत्र संहिता स्कंद पुराण का सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन भाग माना जाता है। इसमें शैव धर्म की मूल धारा को स्थापित करने वाली मुख्य बातें दी गई हैं। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की व्याख्या: सूत्र संहिता में चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का उल्लेख किया गया है। यह शास्त्र के आधार पर जीवन के चारों पक्षों का संतुलन स्थापित करने का मार्गदर्शन करता है। धर्म से जुड़ी उपासना, अर्थ के संग्रह के लिए निष्कलंक मार्ग, और काम के सही उद्देश्य को समझाने के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा मोक्ष के मार्ग को भी स्पष्ट किया गया है।
  • भगवान शिव और स्कंद (कार्तिकेय) की उपासना विधियाँ: शिव और स्कंद की पूजा के विधि-विधान का अत्यंत विस्तार से उल्लेख किया गया है। शिव के विभिन्न रूपों, जैसे शिवलिंग, और उनके मंत्रों का प्रयोग करके भक्तों को उनके साथ जोड़ने की प्रक्रिया को बताया गया है। स्कंद (कार्तिकेय) की उपासना में विशेष रूप से युद्धकला, साहस और विश्वास के तत्वों को प्रधानता दी गई है।
  • योग और ध्यान: यह संहिता ध्यान योग, साधना, और ध्यान के माध्यम से आत्मा के परमात्मा से मिलन के मार्ग का उद्घाटन करती है। ध्यान के तकनीकी पक्ष और साधक को ध्यान में सहायता करने वाले मंत्रों का उल्लेख किया गया है।
  • वैदिक अनुष्ठान: इस भाग में यज्ञ, हवन, व्रत, पूजा पद्धतियाँ आदि वैदिक अनुष्ठानों का महत्व समझाया गया है। अनुष्ठान विशेष रूप से भक्तों के जीवन में शुद्धता और भक्ति को बढ़ाते हैं, और इनके माध्यम से दिव्य शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।

2. सनतकुमार संहिता (Sanatkumara Sanhita)

यह संहिता सनतकुमार ऋषि द्वारा प्रतिपादित ज्ञान और शिव की भक्ति पर आधारित है। इसमें भक्ति योग, ध्यान योग और शैव सिद्धांतों की व्याख्या की गई है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भक्तियोग और ध्यान योग: सनतकुमार संहिता में भक्तियोग (भक्ति मार्ग) और ध्यान योग का महत्व बताया गया है। भक्तियोग के माध्यम से परमात्मा के साथ संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया पर जोर दिया गया है, जबकि ध्यान योग के माध्यम से साधक मानसिक और आत्मिक शांति को प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान की विभिन्न विधियों और उनके लाभों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
  • शिव तत्व की व्याख्या: इसमें शिव को साकार और निराकार रूप में व्याख्यायित किया गया है। यह संहिता बताती है कि शिव एक अत्यधिक शुद्ध और उच्चतम रूप में अपने भक्तों से जुड़े रहते हैं और वे साकार रूप में पूजा के योग्य हैं।
  • गुरु-शिष्य परंपरा: यह संहिता गुरु-शिष्य परंपरा पर बल देती है। गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा और शिष्य के प्रति समर्पण को सर्वोच्च मान्यता दी गई है। गुरु के माध्यम से शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और यह पारंपरिक शिक्षा पद्धति का प्रमुख हिस्सा है।
  • अद्वैत और शैव सिद्धांत: इस संहिता में अद्वैत दर्शन (निराकार ब्रह्म की अवधारणा) और शैव सिद्धांतों को स्पष्ट किया गया है। इसमें बताया गया है कि आत्मा और परमात्मा एक हैं, और शैव धर्म में शिव ही सर्वोच्च सत्ता माने जाते हैं।

3. सौर संहिता

यह संहिता सूर्य देवता की उपासना और उनकी पूजा विधियों पर आधारित है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • सूर्य उपासना: सौर संहिता में सूर्य देव की पूजा विधि, सूर्य मंत्रों, और सूर्य के दिव्य गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। सूर्य को जीवन का स्रोत माना जाता है, और उनकी पूजा से शरीर और मन में शुद्धता और बल का संचार होता है। इस संहिता में सूर्य के विभिन्न रूपों की पूजा विधियों का पालन करने के लिए विस्तार से निर्देश दिए गए हैं।
  • सूर्य और शिव का पारस्परिक संबंध: यह संहिता सूर्य और शिव के पारस्परिक संबंध को भी स्पष्ट करती है। सूर्य की शक्ति शिव से प्राप्त होती है, और दोनों के पूजन से जीवन में समृद्धि और उन्नति आती है।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर: सौर संहिता में कोणार्क सूर्य मंदिर का विशेष उल्लेख है, जो सूर्य देवता के समर्पण में एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर भारत में सूर्य पूजा का एक प्रमुख केंद्र है, और इस संहिता में मंदिर के महत्व और उसकी पौराणिक कथाओं का वर्णन किया गया है।
  • सूर्य के मंत्र: सूर्य के मंत्रों का जप करने से मानसिक शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य में सुधार होता है। इन मंत्रों के प्रभाव और शक्तियों का भी उल्लेख किया गया है।

4. कपिल संहिता

यह संहिता कपिल मुनि के नाम पर आधारित है और मुख्यतः सांख्य दर्शन और योग पर केंद्रित है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • सांख्य दर्शन: कपिल संहिता का मुख्य आधार सांख्य दर्शन है, जो संसार की उत्पत्ति, तत्वों की पहचान और आत्मा-परमात्मा के संबंध की व्याख्या करता है। इसमें संसार के 24 तत्त्वों का वर्णन किया गया है, जो ब्रह्मांड के निर्माण में योगदान करते हैं।
  • योग और ध्यान: कपिल संहिता योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा के परमात्मा से मिलन के मार्ग को स्पष्ट करती है। योग के विभिन्न प्रकारों (हठयोग, राजयोग, कर्मयोग) का उल्लेख किया गया है, जो व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शुद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
  • तत्व ज्ञान और पंचतत्त्व: कपिल संहिता में पंचतत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की व्याख्या की गई है। इन तत्त्वों के माध्यम से सृष्टि का निर्माण और कार्यप्रणाली समझाई जाती है। यह संहिता तत्वज्ञान के जरिए आत्मा के परमात्मा से मिलन का मार्ग बताती है।
  • आत्मा और परमात्मा का संबंध: यह संहिता आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध को समझाती है। इसमें बताया गया है कि योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा परमात्मा से एकात्मता प्राप्त कर सकती है।

5. शिव भक्ति और स्कंद पुराण का महत्व

1. महादेव शिव की उपासना और महिमा

स्कंद पुराण में भगवान शिव की उपासना और उनकी महिमा पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। इसे शैव परंपरा का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, जिसमें शिव के पूजा-विधान, उनके रूप, और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण में शिव की उपासना का मार्ग इस प्रकार स्पष्ट किया गया है:

  • शिवलिंग पूजा
    • शिवलिंग की स्थापना: इस पुराण में शिवलिंग के स्थापित करने के महत्व को बताया गया है। शिवलिंग को प्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है और इसे विशेष मंत्रों के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है।
    • शिवलिंग पूजा विधि: स्कंद पुराण में शिवलिंग पूजा की विधियों का विस्तार से उल्लेख है, जैसे बेलपत्र, दूध, जल, फल आदि से पूजा की जाती है। पूजा के दौरान विशेष रूप से "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप किया जाता है, जो शिव के विभिन्न रूपों को प्रसन्न करने के लिए प्रभावी माना जाता है।
  • शिव पूजा का महत्व
    • शिव पूजा में विशेष रूप से भक्ति और समर्पण का स्थान है। स्कंद पुराण में शिव के भक्तों को यह निर्देशित किया गया है कि वे अपने कर्मों को सही दिशा में लगाकर, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शिव की पूजा करें। यह पूजा व्यक्ति के आत्मिक और मानसिक शुद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
    • शिव पूजा के विभिन्न रूपों में, जैसे रुद्राभिषेक, महाशिवरात्रि व्रत, और नंदीश्वर पूजा का महत्व बताया गया है। यह अनुष्ठान न केवल भौतिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी शांति और संतुलन का अनुभव कराते हैं।

2. शिव और कार्तिकेय से संबंधित कथाएँ

स्कंद पुराण में शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय (जो स्कंद के नाम से भी प्रसिद्ध हैं) से जुड़ी कई कथाएँ दी गई हैं। इन कथाओं के माध्यम से शैव परंपरा में शिव और उनके पुत्र के अद्वितीय संबंध, उनके कार्य, और उनके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

  • कार्तिकेय का जन्म
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय के जन्म की कथा का विशेष स्थान है। कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। जब दैत्यराज तारकासुर ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो शिव ने अपने वीर और शक्तिशाली पुत्र कार्तिकेय को जन्म दिया, जो देवताओं के रक्षक बने।
    • कार्तिकेय का जन्म महर्षि अगस्त्य के यज्ञ में हुआ था और वह छह प्रमुख ग्रहों के साथ उत्पन्न हुए थे, जिनका प्रतिनिधित्व करने वाली शेष छह माता (कृतिका देवी) थीं। यही कारण है कि कार्तिकेय को "कार्तिकेय" और "कुमार" के रूप में भी पूजा जाता है।
  • तारकासुर का वध
    • एक और प्रमुख कथा है जिसमें कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। तारकासुर ने देवताओं को परेशान कर रखा था, और केवल शिव के पुत्र द्वारा ही उसे हराया जा सकता था। इस युद्ध के दौरान कार्तिकेय की महान वीरता और शक्ति को सामने लाया गया।
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय के इस कार्य को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इससे यह सिद्ध हुआ कि भगवान शिव के दैवीय वंशज भी उतने ही शक्तिशाली और प्रभावशाली होते हैं।
  • कार्तिकेय की उपासना
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय की पूजा विधि और उनके महत्व पर भी जोर दिया गया है। उन्हें विशेष रूप से "कुमार" या "कार्तिकेय" के नाम से पूजा जाता है।
    • कार्तिकेय की पूजा युवा शक्ति, वीरता, और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए की जाती है। विशेष रूप से उनके उपासक युद्ध में विजय प्राप्त करने, मानसिक साहस और सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए इस पूजा का पालन करते हैं।

3. शिव की अन्य लीलाएँ और महिमा

स्कंद पुराण में शिव के विभिन्न रूपों और उनकी लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन लीलाओं के माध्यम से शिव की असीम शक्ति, उनकी शरणागत वत्सलता, और उनके भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है।

  • शिव के त्रिदेव रूप: शिव को शास्त्रों में एक त्रिदेव के रूप में वर्णित किया गया है, जो सृजन, पालन, और संहार के कार्य करते हैं। स्कंद पुराण में इन तीन रूपों के महत्व को बताया गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि शिव का त्रिदेव रूप देवता और जीवात्माओं के बीच संतुलन बनाए रखता है।
  • शिव और पार्वती की विवाह कथा: शिव और पार्वती का विवाह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण घटना है, जिसे स्कंद पुराण में पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह विवाह न केवल शैव परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह मानव जीवन में पवित्र संबंधों के महत्व को भी उजागर करता है।

4. शिव भक्ति का समग्र महत्व

स्कंद पुराण में शिव भक्ति को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की उपासना करता है, वह समस्त संसार के कष्टों से मुक्त होकर, परम शिव के साथ एक हो जाता है। भगवान शिव की पूजा से भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है, और वह जीवन के हर पहलू में सफलता प्राप्त करता है।

शिव भक्ति के लाभ:

  • आध्यात्मिक उन्नति: शिव की भक्ति से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति का जीवन आध्यात्मिक दृष्टि से प्रौढ़ होता है।
  • शक्ति और साहस: शिव की उपासना से मानसिक और शारीरिक शक्ति का विकास होता है, और व्यक्ति किसी भी संकट का सामना करने में सक्षम होता है।
  • शिव के आशीर्वाद से मोक्ष: स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी निष्ठा से शिव का पूजन करता है, उसे आत्मा का शुद्धिकरण और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

6. स्कंद पुराण और तांत्रिक प्रभाव

1. शिव साधना और तांत्रिक अनुष्ठान

स्कंद पुराण में शिव साधना और तांत्रिक अनुष्ठानों का गूढ़ और विस्तृत विवरण मिलता है, जो तंत्रशास्त्र और शैव परंपरा को एकजुट करता है। यह पुराण एक शास्त्र के रूप में शिव की साधना के सही मार्ग को प्रस्तुत करता है, जिसमें तंत्र, मंत्र, और यंत्रों के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति के उपाय दिए गए हैं।

(a) शिव साधना का महत्व

स्कंद पुराण में शिव की साधना को अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। यहाँ शिव साधना के विभिन्न रूपों की व्याख्या की गई है, जैसे:

  • मंत्र साधना: "ॐ नमः शिवाय" या "महाकाल शिव मंत्र" जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है, जो शिव के आशीर्वाद और शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रभावी माने जाते हैं।
  • मुद्राएँ और प्राणायाम: शिव साधना में विशेष मुद्राओं और प्राणायामों का प्रयोग किया जाता है, जो मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, शिव मुद्रा का अभ्यास किया जाता है।
  • शिव तंत्र: तंत्रशास्त्र में शिव के विभिन्न रूपों और शक्तियों का उल्लेख किया गया है। तंत्र मंत्रों के द्वारा शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विधियाँ दी जाती हैं। यह तंत्र साधना जीवन के विभिन्न पहलुओं में सफलता और शक्ति लाने के लिए की जाती है।

(b) शिव और तंत्र साधना

तंत्र शास्त्र के माध्यम से शिव साधना का मार्ग और अधिक प्रभावी माना जाता है। इस साधना में शक्ति और ऊर्जा का संचार करने के लिए विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठान (rituals) और यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। स्कंद पुराण में तंत्र साधना के महत्व को स्पष्ट किया गया है, जिसमें निम्नलिखित तांत्रिक विधियों का उल्लेख मिलता है:

  • तंत्र यंत्र पूजा: तंत्र यंत्र, जैसे शिव यंत्र, महाकाल यंत्र, या चंद्र महादेव यंत्र की पूजा की जाती है। इन यंत्रों का प्रयोग ऊर्जा और शक्ति को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।
  • मंत्र जप: विशेष तांत्रिक मंत्रों का जप करने से शक्ति का संचार होता है और व्यक्ति को आत्मसिद्धि मिलती है। इसमें तांत्रिक बीज मंत्रों का उपयोग होता है, जो विशेष देवता या शक्ति से संबंधित होते हैं।

2. योग साधना, ध्यान, और वैदिक अनुष्ठान

स्कंद पुराण में योग, ध्यान, और वैदिक अनुष्ठान के तत्वों का भी विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। ये सभी तत्व तंत्र साधना और शिव साधना के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति में सहायक माने जाते हैं।

(a) योग साधना

योग साधना का महत्व स्कंद पुराण में विशेष रूप से दिखाया गया है, जहाँ यह ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग प्रस्तुत करती है। विशेष रूप से, शिव योग का अभ्यास किया जाता है, जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा को शिव के साथ एक करने की कोशिश करता है।

  • राज योग: यह ध्यान के उच्चतम स्तर तक पहुंचने का मार्ग है। इसमें शरीर और मन को नियंत्रित करते हुए व्यक्ति अपने भीतर की चेतना को शिव से जोड़ने का प्रयास करता है।
  • हठ योग: यह शरीर के भौतिक संतुलन को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जिससे ध्यान की शक्ति को बढ़ाया जा सके। हठ योग में शारीरिक मुद्राओं (आसन), प्राणायाम और ध्यान की विधियाँ दी जाती हैं।

(b) ध्यान साधना

स्कंद पुराण में ध्यान साधना को सबसे महत्वपूर्ण साधना माना गया है। यह साधना व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति की प्राप्ति में सहायक होती है। शिव ध्यान के विशेष रूपों का वर्णन किया गया है, जैसे:

  • शिव ध्यान: शिव के विभिन्न रूपों का ध्यान करना, जैसे नंदीश्वर, अर्धनारीश्वर, या शिवलिंग के रूप में उनका ध्यान करना।
  • मनोयोग ध्यान: इसमें व्यक्ति अपनी मानसिक अवस्था को केंद्रित करके, शिव के मंत्रों का जाप करते हुए, उसे ध्यान की स्थिति में रखते हुए शिव की दिव्य ऊर्जा को आकर्षित करता है।

(c) वैदिक अनुष्ठान

वैदिक अनुष्ठान, जो कि शास्त्रों और वेदों से जुड़े होते हैं, स्कंद पुराण में शिव की पूजा के साथ एकीकृत होते हैं। इसमें विशेष रूप से यज्ञों और हवन का महत्व है। स्कंद पुराण में यह बताया गया है कि शिव के आशीर्वाद के लिए नित्य वैदिक अनुष्ठान करना चाहिए।

  • महायज्ञ: भगवान शिव की पूजा में महायज्ञ का विशेष स्थान है। इसमें विशेष मंत्रों और हवन सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  • नित्य हवन: शिव की उपासना के लिए नित्य हवन करने से घर में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।

3. तंत्र और साधना का संयोजन

स्कंद पुराण में तंत्र, योग, और वैदिक अनुष्ठानों का संयोजन इस प्रकार किया गया है कि वे सभी मिलकर एक व्यक्ति को शैव धर्म में उच्चतम स्तर तक पहुंचाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। स्कंद पुराण में यह सिद्ध किया गया है कि तंत्र साधना के माध्यम से शिव के दिव्य रूप को प्राप्त किया जा सकता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।

(a) आध्यात्मिक और भौतिक लाभ

तांत्रिक साधना के माध्यम से एक व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, बल्कि भौतिक रूप से भी वह समृद्धि, शक्ति और ज्ञान प्राप्त करता है। तंत्र का सही प्रयोग मानसिक संतुलन, शांति, और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता लाता है।

(b) शिव साधना और जीवन के उद्देश्य

स्कंद पुराण में शिव साधना को केवल धार्मिक कर्तव्य के रूप में नहीं, बल्कि जीवन के उद्देश्य और आत्मा की मुक्ति के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह साधना व्यक्ति को जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर अग्रसर करती है और आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलता है।

निष्कर्ष

स्कंद पुराण में तांत्रिक साधना और शिव साधना को अत्यधिक महत्व दिया गया है, जिसमें ध्यान, योग, तंत्र, और वैदिक अनुष्ठानों के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं। यह पुराण न केवल शैव परंपरा का एक अद्भुत ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों को एकीकृत करता है और व्यक्तियों को साधना और भक्ति के सर्वोत्तम मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

स्कंद पुराण का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1. अन्य पुराणों से तुलना

  • स्कंद पुराण सबसे बड़ा पुराण माना जाता है, लेकिन इसकी पूरी संरचना का अभाव है।
  • मत्स्य पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन इसके मूल स्वरूप पर असहमति बनी हुई है।
  • कई खंड केवल क्षेत्रीय तीर्थ माहात्म्य (Tirtha Mahatmya) को समर्पित हैं।

2. रचना काल और ऐतिहासिक प्रमाण

  • यह ग्रंथ 1000 ईस्वी से पहले का माना जाता है।
  • काशी खंड में 11वीं शताब्दी से पहले की काशी की धार्मिक स्थिति का उल्लेख है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यह ग्रंथ महमूद गजनवी के आक्रमण से पहले लिखा गया होगा।
  • इसमें बुद्ध धर्म के प्रभाव का उल्लेख मिलता है, जिससे यह बौद्ध काल के बाद का प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

  • स्कंद पुराण भगवान शिव, स्कंद (कार्तिकेय), तीर्थों, और धार्मिक अनुष्ठानों से संबंधित सबसे विस्तृत पुराणों में से एक है।
  • यह हिंदू धर्म के तीर्थ स्थानों और शिव मंदिरों की महिमा को व्यक्त करता है।
  • यह वैष्णव और शैव संप्रदाय दोनों के तत्वों को समाहित करता है।
  • स्कंद पुराण का संपूर्ण रूप अस्तित्व में नहीं है, और विभिन्न संहिताएँ और खंड ही इसके प्रमाण के रूप में उपलब्ध हैं।
  • यह ग्रंथ मध्यकालीन भारत के धार्मिक और सामाजिक परिदृश्य को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्या स्कंद पुराण वास्तव में 81,100 श्लोकों का है?

  • संभावित रूप से नहीं, क्योंकि विभिन्न खंडों और संहिताओं का संकलन इसकी श्लोक संख्या को अत्यधिक बढ़ा सकता है।
  • वर्तमान में उपलब्ध संस्करणों में इसकी संपूर्णता संदेहास्पद है।

क्या यह पुराण शिव और स्कंद की पूजा पर ही केंद्रित है?

  • मुख्यतः हाँ, लेकिन इसमें वैष्णव तीर्थों का भी उल्लेख मिलता है।
  • इसमें शिव, कार्तिकेय और अन्य देवताओं की उपासना को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

क्या स्कंद पुराण आज भी प्रासंगिक है?

  • आज भी काशी, पुरी, और अन्य तीर्थों में इस पुराण के अंशों का पाठ किया जाता है।
  • विशेष रूप से काशी खंड और उत्कल खंड धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

अंतिम विचार

  • स्कंद पुराण में उपलब्ध विभिन्न खंड और संहिताएँ इसे अन्य पुराणों से विशिष्ट बनाती हैं।
  • हालांकि, इसकी मूल संरचना को लेकर विद्वानों में असहमति है, और यह अधिकतर धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्रा संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • इसकी ऐतिहासिकता और धार्मिक प्रासंगिकता इसे एक महत्वपूर्ण ग्रंथ बनाती है, लेकिन इसकी समग्रता को लेकर प्रश्न बने हुए हैं।


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स्कंद पुराण – पढ़िए सम्पूर्ण स्कंद पुराण का संक्षिप्त सारांश

स्कंद पुराण – पढ़िए सम्पूर्ण स्कंद पुराण का संक्षिप्त सारांशAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

स्कंद पुराण: एक विस्तृत परिचय

परिचय

स्कंद पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में सबसे वृहद ग्रंथ माना जाता है। इसमें अस्सी एक हजार एक सौ (81,100) श्लोकों का उल्लेख मिलता है, लेकिन उपलब्ध प्रतियों में इसकी संपूर्णता को लेकर मतभेद हैं।

इस पुराण को भगवान स्कंद (कार्तिकेय) द्वारा वर्णित किया गया बताया गया है, जिसमें तत्पुरुष कल्प से संबंधित घटनाओं का उल्लेख है। इसमें महादेव शिव द्वारा प्रतिपादित धर्म का विस्तार किया गया है।

टिप्पणी

यह पुराण संहिताओं , खंडों और माहात्म्य में विभाजित है, और इसके संपूर्ण स्वरूप को लेकर विद्वानों में असहमति है।

स्कंद पुराण की संरचना और प्रमुख विषय

स्कंद पुराण का इतिहास और संरचना अत्यंत विस्तृत और जटिल है। यह पुराण विशेष रूप से भगवान शिव और उनके भक्तों के समर्पण से संबंधित कथाओं का एक प्रमुख स्रोत है।

1. उपलब्ध संस्करण और प्रमाणिकता का विवाद

स्कंद पुराण का सर्वश्रेष्ठ और सबसे व्यापक संस्करण अभी तक उपलब्ध नहीं है। इसके विभिन्न भाग और खंड अलग-अलग स्थानों पर और समय के साथ सुरक्षित रहे हैं। पुराण के इस विशेष रूप में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में विभिन्न संहिताएँ (भाग) और खंड विद्यमान हैं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण खंड निम्नलिखित हैं:

1.1 खंड और संहिताएँ

  • स्कंद पुराण के विभिन्न खंडों में भगवान शिव, देवी पार्वती, और भगवान कार्तिकेय के बारे में कथाएँ हैं।
  • प्रत्येक खंड में अलग-अलग विषयों का वर्णन किया गया है, जैसे कि उत्तरण खंड, कैलास खंड, मध्य खंड, कांची खंड आदि।
  • इन खंडों में संस्कृत श्लोकों और कथाओं का संग्रह किया गया है, जिनमें से कुछ भाग निश्चित रूप से प्राचीन हैं, जबकि कुछ संस्करणों में बाद में जोड़े गए तत्व हो सकते हैं।

1.2 संख्या और प्रामाणिकता

  • स्कंद पुराण के बारे में एक सामान्य दावा है कि इसमें 500 खंड और 500,000 श्लोक हैं, जो इसे विश्व के सबसे बड़े पुराणों में से एक बनाता है।
  • लेकिन यह संख्या वास्तविकता में इतनी विशाल है या नहीं, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।
  • स्कंद पुराण के आधुनिक संस्करणों में जो सामग्री उपलब्ध है, वह इस विशाल संख्या से कहीं छोटी होती है।
  • अतः इस बारे में कोई संदेह है कि क्या सभी खंड और श्लोक एक साथ एकत्र किए गए हैं या अगर प्राचीन संस्करणों में कोई घट-बढ़ की गई है।

1.3 विभिन्न संस्करणों का अस्तित्व

  • कई प्राचीन ग्रंथों और संदर्भों में यह पाया जाता है कि स्कंद पुराण के विभिन्न संस्करणों और विविध पाठों का संग्रह किया गया था।
  • कुछ भाग विशेष रूप से उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित हैं, और इन दोनों क्षेत्रों में इसे अलग-अलग तरीके से संरक्षित किया गया है।
  • ऐसे भी कुछ खंड हैं जो विशेष रूप से कांची या मध्यम क्षेत्र की भक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि कुछ में शिव के व्रत और पूजा विधियों पर जोर दिया जाता है।

1.4 संप्रदायिक और भौगोलिक भिन्नताएँ

स्कंद पुराण के अलग-अलग संस्करणों में विभिन्न कथाएँ और अनुष्ठान समाहित होते हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं को दर्शाते हैं। कुछ संस्करणों में विशेष रूप से शैव संप्रदाय के महत्व को उजागर किया गया है, जबकि कुछ में भगवान विष्णु और देवी के व्रतों और पूजा विधियों पर जोर दिया गया है।

2. प्रमुख खंड (खंडों की सूची और विवरण)

स्कंद पुराण में कुल मिलाकर 500 खंडों का उल्लेख किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख खंडों को विशेष महत्व प्राप्त है। ये खंड न केवल धार्मिक और धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में बताते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, तीर्थयात्राओं, पूजा विधियों , और भगवान शिव के अद्भुत लीलाओं के बारे में भी गहरी जानकारी प्रदान करते हैं। आइए इन प्रमुख खंडों पर अधिक विस्तार से चर्चा करें:

1. काशी खंड

  • काशी की धार्मिक महिमा: काशी को भारत के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक माना जाता है, और यहां भगवान शिव के विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं। इस खंड में काशी के विभिन्न धार्मिक स्थलों, मंदिरों और तीर्थों का वर्णन किया गया है।
  • शिव पूजा और तीर्थयात्रा की विधियाँ: काशी में शिव पूजा और काशी तीर्थयात्रा के विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियों का विस्तृत वर्णन है। यह खंड तीर्थयात्रियों के लिए एक मार्गदर्शिका के रूप में काम करता है।
  • महर्षि अगस्त्य का योगदान: महर्षि अगस्त्य को दक्षिण भारत में हिंदू धर्म के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस खंड में उनकी काशी यात्रा और वहां उनके योगदान का उल्लेख मिलता है।
  • राजा दिवोदास की कथा: राजा दिवोदास की कथा में काशी में शिव पूजा के क्षय और फिर पुनर्स्थापना की प्रक्रिया का विवरण है , जिसमें बुद्ध धर्म के प्रभाव का उल्लेख है। यह कथा बताती है कि कैसे काशी में शिव पूजा का पतन हुआ और फिर कैसे वह पुनः स्थापित हुई।

2. उत्कल खंड

उत्कल खंड विशेष रूप से ओडिशा के धार्मिक स्थलों और उनके महत्व का वर्णन करता है। इस खंड के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • जगन्नाथ पुरी तीर्थ: उत्कल खंड में जगन्नाथ पुरी के महत्व का विशेष उल्लेख है। पुरी, जो ओडिशा राज्य में स्थित है, भगवान जगन्नाथ का मुख्य तीर्थ स्थल है। यह खंड इस स्थान की धार्मिक और सांस्कृतिक महिमा को दर्शाता है।
  • शैव और वैष्णव पूजा का समन्वय: इस खंड में शैव और वैष्णव परंपराओं के समन्वय का भी उल्लेख है। यह बताता है कि कैसे विभिन्न पूजा पद्धतियाँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और भारतीय धार्मिक परंपराओं में उनका सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व है।

3. ब्रह्मोत्तर खंड, रेवा खंड, हिमवत खंड

ये खंड विभिन्न तीर्थ स्थलों और पवित्र नदियों के महत्व को दर्शाते हैं। इन खंडों के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • ब्रह्मोत्तर खंड: इसमें गंगा, यमुन, सरस्वती और अन्य पवित्र नदियों के महत्व का वर्णन है, साथ ही उन स्थानों की भी चर्चा है जहाँ इन नदियों के किनारे तीर्थ यात्रा करने से पुण्य मिलता है।
  • रेवा खंड: इस खंड में नर्मदा नदी और इसके किनारे स्थित तीर्थों का उल्लेख है। नर्मदा को एक पवित्र नदी माना जाता है, और इसके तट पर स्थित प्रमुख तीर्थ स्थलों का वर्णन किया गया है।
  • हिमवत खंड: हिमालय के पर्वत और उसकी धार्मिक महत्वता पर आधारित यह खंड भगवान शिव और उनके अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है। हिमालय के विभिन्न तीर्थ स्थल, जैसे केदारनाथ और बद्रीनाथ, का इस खंड में उल्लेख किया गया है।

4. शिव रहस्य खंड

शिव रहस्य खंड भगवान शिव के अद्भुत लीलाओं और सिद्धांतों को प्रकट करने वाला खंड है। इस खंड में शिव के अनेक रहस्यमय और दिव्य पहलुओं पर चर्चा की गई है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भगवान शिव की अद्भुत लीलाएँ: इस खंड में भगवान शिव की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है, जैसे उनकी पूजा की विधियाँ, उनके अवतार, और उनके चमत्कारी कार्य। यह खंड भगवान शिव के रहस्यों को उजागर करता है।
  • शिव का तात्त्विक और आध्यात्मिक महत्व: शिव रहस्य खंड में भगवान शिव को सर्वोच्च ब्रह्म और परमेश्वर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह खंड शिव की पूजा और ध्यान विधियों पर भी गहन विचार प्रस्तुत करता है।
  • शिव के सिद्धांत: इस खंड में भगवान शिव के आध्यात्मिक सिद्धांत और उपदेश दिए गए हैं, जो उनके भक्तों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं। यह खंड शैव धर्म के गहरे रहस्यों और दर्शन का खुलासा करता है।

3. स्कंद पुराण की प्रमुख संहिताएँ

आइए स्कंद पुराण की संहिताओं के विषय में और विस्तार से समझते हैं:

1. सूत्र संहिता (Suta Sanhita)

सूत्र संहिता स्कंद पुराण का सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन भाग माना जाता है। इसमें शैव धर्म की मूल धारा को स्थापित करने वाली मुख्य बातें दी गई हैं। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की व्याख्या: सूत्र संहिता में चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का उल्लेख किया गया है। यह शास्त्र के आधार पर जीवन के चारों पक्षों का संतुलन स्थापित करने का मार्गदर्शन करता है। धर्म से जुड़ी उपासना, अर्थ के संग्रह के लिए निष्कलंक मार्ग, और काम के सही उद्देश्य को समझाने के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा मोक्ष के मार्ग को भी स्पष्ट किया गया है।
  • भगवान शिव और स्कंद (कार्तिकेय) की उपासना विधियाँ: शिव और स्कंद की पूजा के विधि-विधान का अत्यंत विस्तार से उल्लेख किया गया है। शिव के विभिन्न रूपों, जैसे शिवलिंग, और उनके मंत्रों का प्रयोग करके भक्तों को उनके साथ जोड़ने की प्रक्रिया को बताया गया है। स्कंद (कार्तिकेय) की उपासना में विशेष रूप से युद्धकला, साहस और विश्वास के तत्वों को प्रधानता दी गई है।
  • योग और ध्यान: यह संहिता ध्यान योग, साधना, और ध्यान के माध्यम से आत्मा के परमात्मा से मिलन के मार्ग का उद्घाटन करती है। ध्यान के तकनीकी पक्ष और साधक को ध्यान में सहायता करने वाले मंत्रों का उल्लेख किया गया है।
  • वैदिक अनुष्ठान: इस भाग में यज्ञ, हवन, व्रत, पूजा पद्धतियाँ आदि वैदिक अनुष्ठानों का महत्व समझाया गया है। अनुष्ठान विशेष रूप से भक्तों के जीवन में शुद्धता और भक्ति को बढ़ाते हैं, और इनके माध्यम से दिव्य शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।

2. सनतकुमार संहिता (Sanatkumara Sanhita)

यह संहिता सनतकुमार ऋषि द्वारा प्रतिपादित ज्ञान और शिव की भक्ति पर आधारित है। इसमें भक्ति योग, ध्यान योग और शैव सिद्धांतों की व्याख्या की गई है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भक्तियोग और ध्यान योग: सनतकुमार संहिता में भक्तियोग (भक्ति मार्ग) और ध्यान योग का महत्व बताया गया है। भक्तियोग के माध्यम से परमात्मा के साथ संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया पर जोर दिया गया है, जबकि ध्यान योग के माध्यम से साधक मानसिक और आत्मिक शांति को प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान की विभिन्न विधियों और उनके लाभों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
  • शिव तत्व की व्याख्या: इसमें शिव को साकार और निराकार रूप में व्याख्यायित किया गया है। यह संहिता बताती है कि शिव एक अत्यधिक शुद्ध और उच्चतम रूप में अपने भक्तों से जुड़े रहते हैं और वे साकार रूप में पूजा के योग्य हैं।
  • गुरु-शिष्य परंपरा: यह संहिता गुरु-शिष्य परंपरा पर बल देती है। गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा और शिष्य के प्रति समर्पण को सर्वोच्च मान्यता दी गई है। गुरु के माध्यम से शिष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है, और यह पारंपरिक शिक्षा पद्धति का प्रमुख हिस्सा है।
  • अद्वैत और शैव सिद्धांत: इस संहिता में अद्वैत दर्शन (निराकार ब्रह्म की अवधारणा) और शैव सिद्धांतों को स्पष्ट किया गया है। इसमें बताया गया है कि आत्मा और परमात्मा एक हैं, और शैव धर्म में शिव ही सर्वोच्च सत्ता माने जाते हैं।

3. सौर संहिता

यह संहिता सूर्य देवता की उपासना और उनकी पूजा विधियों पर आधारित है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • सूर्य उपासना: सौर संहिता में सूर्य देव की पूजा विधि, सूर्य मंत्रों, और सूर्य के दिव्य गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। सूर्य को जीवन का स्रोत माना जाता है, और उनकी पूजा से शरीर और मन में शुद्धता और बल का संचार होता है। इस संहिता में सूर्य के विभिन्न रूपों की पूजा विधियों का पालन करने के लिए विस्तार से निर्देश दिए गए हैं।
  • सूर्य और शिव का पारस्परिक संबंध: यह संहिता सूर्य और शिव के पारस्परिक संबंध को भी स्पष्ट करती है। सूर्य की शक्ति शिव से प्राप्त होती है, और दोनों के पूजन से जीवन में समृद्धि और उन्नति आती है।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर: सौर संहिता में कोणार्क सूर्य मंदिर का विशेष उल्लेख है, जो सूर्य देवता के समर्पण में एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर भारत में सूर्य पूजा का एक प्रमुख केंद्र है, और इस संहिता में मंदिर के महत्व और उसकी पौराणिक कथाओं का वर्णन किया गया है।
  • सूर्य के मंत्र: सूर्य के मंत्रों का जप करने से मानसिक शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य में सुधार होता है। इन मंत्रों के प्रभाव और शक्तियों का भी उल्लेख किया गया है।

4. कपिल संहिता

यह संहिता कपिल मुनि के नाम पर आधारित है और मुख्यतः सांख्य दर्शन और योग पर केंद्रित है। इसके प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • सांख्य दर्शन: कपिल संहिता का मुख्य आधार सांख्य दर्शन है, जो संसार की उत्पत्ति, तत्वों की पहचान और आत्मा-परमात्मा के संबंध की व्याख्या करता है। इसमें संसार के 24 तत्त्वों का वर्णन किया गया है, जो ब्रह्मांड के निर्माण में योगदान करते हैं।
  • योग और ध्यान: कपिल संहिता योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा के परमात्मा से मिलन के मार्ग को स्पष्ट करती है। योग के विभिन्न प्रकारों (हठयोग, राजयोग, कर्मयोग) का उल्लेख किया गया है, जो व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शुद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
  • तत्व ज्ञान और पंचतत्त्व: कपिल संहिता में पंचतत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की व्याख्या की गई है। इन तत्त्वों के माध्यम से सृष्टि का निर्माण और कार्यप्रणाली समझाई जाती है। यह संहिता तत्वज्ञान के जरिए आत्मा के परमात्मा से मिलन का मार्ग बताती है।
  • आत्मा और परमात्मा का संबंध: यह संहिता आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध को समझाती है। इसमें बताया गया है कि योग और ध्यान के माध्यम से आत्मा परमात्मा से एकात्मता प्राप्त कर सकती है।

5. शिव भक्ति और स्कंद पुराण का महत्व

1. महादेव शिव की उपासना और महिमा

स्कंद पुराण में भगवान शिव की उपासना और उनकी महिमा पर विशेष रूप से जोर दिया गया है। इसे शैव परंपरा का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, जिसमें शिव के पूजा-विधान, उनके रूप, और उनकी शक्तियों का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण में शिव की उपासना का मार्ग इस प्रकार स्पष्ट किया गया है:

  • शिवलिंग पूजा
    • शिवलिंग की स्थापना: इस पुराण में शिवलिंग के स्थापित करने के महत्व को बताया गया है। शिवलिंग को प्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है और इसे विशेष मंत्रों के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है।
    • शिवलिंग पूजा विधि: स्कंद पुराण में शिवलिंग पूजा की विधियों का विस्तार से उल्लेख है, जैसे बेलपत्र, दूध, जल, फल आदि से पूजा की जाती है। पूजा के दौरान विशेष रूप से "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप किया जाता है, जो शिव के विभिन्न रूपों को प्रसन्न करने के लिए प्रभावी माना जाता है।
  • शिव पूजा का महत्व
    • शिव पूजा में विशेष रूप से भक्ति और समर्पण का स्थान है। स्कंद पुराण में शिव के भक्तों को यह निर्देशित किया गया है कि वे अपने कर्मों को सही दिशा में लगाकर, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शिव की पूजा करें। यह पूजा व्यक्ति के आत्मिक और मानसिक शुद्धि के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
    • शिव पूजा के विभिन्न रूपों में, जैसे रुद्राभिषेक, महाशिवरात्रि व्रत, और नंदीश्वर पूजा का महत्व बताया गया है। यह अनुष्ठान न केवल भौतिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी शांति और संतुलन का अनुभव कराते हैं।

2. शिव और कार्तिकेय से संबंधित कथाएँ

स्कंद पुराण में शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय (जो स्कंद के नाम से भी प्रसिद्ध हैं) से जुड़ी कई कथाएँ दी गई हैं। इन कथाओं के माध्यम से शैव परंपरा में शिव और उनके पुत्र के अद्वितीय संबंध, उनके कार्य, और उनके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

  • कार्तिकेय का जन्म
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय के जन्म की कथा का विशेष स्थान है। कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। जब दैत्यराज तारकासुर ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो शिव ने अपने वीर और शक्तिशाली पुत्र कार्तिकेय को जन्म दिया, जो देवताओं के रक्षक बने।
    • कार्तिकेय का जन्म महर्षि अगस्त्य के यज्ञ में हुआ था और वह छह प्रमुख ग्रहों के साथ उत्पन्न हुए थे, जिनका प्रतिनिधित्व करने वाली शेष छह माता (कृतिका देवी) थीं। यही कारण है कि कार्तिकेय को "कार्तिकेय" और "कुमार" के रूप में भी पूजा जाता है।
  • तारकासुर का वध
    • एक और प्रमुख कथा है जिसमें कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। तारकासुर ने देवताओं को परेशान कर रखा था, और केवल शिव के पुत्र द्वारा ही उसे हराया जा सकता था। इस युद्ध के दौरान कार्तिकेय की महान वीरता और शक्ति को सामने लाया गया।
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय के इस कार्य को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इससे यह सिद्ध हुआ कि भगवान शिव के दैवीय वंशज भी उतने ही शक्तिशाली और प्रभावशाली होते हैं।
  • कार्तिकेय की उपासना
    • स्कंद पुराण में कार्तिकेय की पूजा विधि और उनके महत्व पर भी जोर दिया गया है। उन्हें विशेष रूप से "कुमार" या "कार्तिकेय" के नाम से पूजा जाता है।
    • कार्तिकेय की पूजा युवा शक्ति, वीरता, और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए की जाती है। विशेष रूप से उनके उपासक युद्ध में विजय प्राप्त करने, मानसिक साहस और सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए इस पूजा का पालन करते हैं।

3. शिव की अन्य लीलाएँ और महिमा

स्कंद पुराण में शिव के विभिन्न रूपों और उनकी लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन लीलाओं के माध्यम से शिव की असीम शक्ति, उनकी शरणागत वत्सलता, और उनके भक्तों के प्रति प्रेम को दर्शाया गया है।

  • शिव के त्रिदेव रूप: शिव को शास्त्रों में एक त्रिदेव के रूप में वर्णित किया गया है, जो सृजन, पालन, और संहार के कार्य करते हैं। स्कंद पुराण में इन तीन रूपों के महत्व को बताया गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि शिव का त्रिदेव रूप देवता और जीवात्माओं के बीच संतुलन बनाए रखता है।
  • शिव और पार्वती की विवाह कथा: शिव और पार्वती का विवाह एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण घटना है, जिसे स्कंद पुराण में पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह विवाह न केवल शैव परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह मानव जीवन में पवित्र संबंधों के महत्व को भी उजागर करता है।

4. शिव भक्ति का समग्र महत्व

स्कंद पुराण में शिव भक्ति को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसके अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान शिव की उपासना करता है, वह समस्त संसार के कष्टों से मुक्त होकर, परम शिव के साथ एक हो जाता है। भगवान शिव की पूजा से भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है, और वह जीवन के हर पहलू में सफलता प्राप्त करता है।

शिव भक्ति के लाभ:

  • आध्यात्मिक उन्नति: शिव की भक्ति से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति का जीवन आध्यात्मिक दृष्टि से प्रौढ़ होता है।
  • शक्ति और साहस: शिव की उपासना से मानसिक और शारीरिक शक्ति का विकास होता है, और व्यक्ति किसी भी संकट का सामना करने में सक्षम होता है।
  • शिव के आशीर्वाद से मोक्ष: स्कंद पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी निष्ठा से शिव का पूजन करता है, उसे आत्मा का शुद्धिकरण और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

6. स्कंद पुराण और तांत्रिक प्रभाव

1. शिव साधना और तांत्रिक अनुष्ठान

स्कंद पुराण में शिव साधना और तांत्रिक अनुष्ठानों का गूढ़ और विस्तृत विवरण मिलता है, जो तंत्रशास्त्र और शैव परंपरा को एकजुट करता है। यह पुराण एक शास्त्र के रूप में शिव की साधना के सही मार्ग को प्रस्तुत करता है, जिसमें तंत्र, मंत्र, और यंत्रों के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति के उपाय दिए गए हैं।

(a) शिव साधना का महत्व

स्कंद पुराण में शिव की साधना को अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। यहाँ शिव साधना के विभिन्न रूपों की व्याख्या की गई है, जैसे:

  • मंत्र साधना: "ॐ नमः शिवाय" या "महाकाल शिव मंत्र" जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है, जो शिव के आशीर्वाद और शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रभावी माने जाते हैं।
  • मुद्राएँ और प्राणायाम: शिव साधना में विशेष मुद्राओं और प्राणायामों का प्रयोग किया जाता है, जो मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, शिव मुद्रा का अभ्यास किया जाता है।
  • शिव तंत्र: तंत्रशास्त्र में शिव के विभिन्न रूपों और शक्तियों का उल्लेख किया गया है। तंत्र मंत्रों के द्वारा शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विधियाँ दी जाती हैं। यह तंत्र साधना जीवन के विभिन्न पहलुओं में सफलता और शक्ति लाने के लिए की जाती है।

(b) शिव और तंत्र साधना

तंत्र शास्त्र के माध्यम से शिव साधना का मार्ग और अधिक प्रभावी माना जाता है। इस साधना में शक्ति और ऊर्जा का संचार करने के लिए विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठान (rituals) और यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। स्कंद पुराण में तंत्र साधना के महत्व को स्पष्ट किया गया है, जिसमें निम्नलिखित तांत्रिक विधियों का उल्लेख मिलता है:

  • तंत्र यंत्र पूजा: तंत्र यंत्र, जैसे शिव यंत्र, महाकाल यंत्र, या चंद्र महादेव यंत्र की पूजा की जाती है। इन यंत्रों का प्रयोग ऊर्जा और शक्ति को आकर्षित करने के लिए किया जाता है।
  • मंत्र जप: विशेष तांत्रिक मंत्रों का जप करने से शक्ति का संचार होता है और व्यक्ति को आत्मसिद्धि मिलती है। इसमें तांत्रिक बीज मंत्रों का उपयोग होता है, जो विशेष देवता या शक्ति से संबंधित होते हैं।

2. योग साधना, ध्यान, और वैदिक अनुष्ठान

स्कंद पुराण में योग, ध्यान, और वैदिक अनुष्ठान के तत्वों का भी विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। ये सभी तत्व तंत्र साधना और शिव साधना के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति में सहायक माने जाते हैं।

(a) योग साधना

योग साधना का महत्व स्कंद पुराण में विशेष रूप से दिखाया गया है, जहाँ यह ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग प्रस्तुत करती है। विशेष रूप से, शिव योग का अभ्यास किया जाता है, जिसमें व्यक्ति अपनी आत्मा को शिव के साथ एक करने की कोशिश करता है।

  • राज योग: यह ध्यान के उच्चतम स्तर तक पहुंचने का मार्ग है। इसमें शरीर और मन को नियंत्रित करते हुए व्यक्ति अपने भीतर की चेतना को शिव से जोड़ने का प्रयास करता है।
  • हठ योग: यह शरीर के भौतिक संतुलन को प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जिससे ध्यान की शक्ति को बढ़ाया जा सके। हठ योग में शारीरिक मुद्राओं (आसन), प्राणायाम और ध्यान की विधियाँ दी जाती हैं।

(b) ध्यान साधना

स्कंद पुराण में ध्यान साधना को सबसे महत्वपूर्ण साधना माना गया है। यह साधना व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति की प्राप्ति में सहायक होती है। शिव ध्यान के विशेष रूपों का वर्णन किया गया है, जैसे:

  • शिव ध्यान: शिव के विभिन्न रूपों का ध्यान करना, जैसे नंदीश्वर, अर्धनारीश्वर, या शिवलिंग के रूप में उनका ध्यान करना।
  • मनोयोग ध्यान: इसमें व्यक्ति अपनी मानसिक अवस्था को केंद्रित करके, शिव के मंत्रों का जाप करते हुए, उसे ध्यान की स्थिति में रखते हुए शिव की दिव्य ऊर्जा को आकर्षित करता है।

(c) वैदिक अनुष्ठान

वैदिक अनुष्ठान, जो कि शास्त्रों और वेदों से जुड़े होते हैं, स्कंद पुराण में शिव की पूजा के साथ एकीकृत होते हैं। इसमें विशेष रूप से यज्ञों और हवन का महत्व है। स्कंद पुराण में यह बताया गया है कि शिव के आशीर्वाद के लिए नित्य वैदिक अनुष्ठान करना चाहिए।

  • महायज्ञ: भगवान शिव की पूजा में महायज्ञ का विशेष स्थान है। इसमें विशेष मंत्रों और हवन सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  • नित्य हवन: शिव की उपासना के लिए नित्य हवन करने से घर में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।

3. तंत्र और साधना का संयोजन

स्कंद पुराण में तंत्र, योग, और वैदिक अनुष्ठानों का संयोजन इस प्रकार किया गया है कि वे सभी मिलकर एक व्यक्ति को शैव धर्म में उच्चतम स्तर तक पहुंचाने के लिए मार्गदर्शन करते हैं। स्कंद पुराण में यह सिद्ध किया गया है कि तंत्र साधना के माध्यम से शिव के दिव्य रूप को प्राप्त किया जा सकता है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।

(a) आध्यात्मिक और भौतिक लाभ

तांत्रिक साधना के माध्यम से एक व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, बल्कि भौतिक रूप से भी वह समृद्धि, शक्ति और ज्ञान प्राप्त करता है। तंत्र का सही प्रयोग मानसिक संतुलन, शांति, और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता लाता है।

(b) शिव साधना और जीवन के उद्देश्य

स्कंद पुराण में शिव साधना को केवल धार्मिक कर्तव्य के रूप में नहीं, बल्कि जीवन के उद्देश्य और आत्मा की मुक्ति के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह साधना व्यक्ति को जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर अग्रसर करती है और आत्म-प्राप्ति के मार्ग पर चलता है।

निष्कर्ष

स्कंद पुराण में तांत्रिक साधना और शिव साधना को अत्यधिक महत्व दिया गया है, जिसमें ध्यान, योग, तंत्र, और वैदिक अनुष्ठानों के माध्यम से परम शिव की प्राप्ति के उपाय बताए गए हैं। यह पुराण न केवल शैव परंपरा का एक अद्भुत ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पक्षों को एकीकृत करता है और व्यक्तियों को साधना और भक्ति के सर्वोत्तम मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

स्कंद पुराण का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1. अन्य पुराणों से तुलना

  • स्कंद पुराण सबसे बड़ा पुराण माना जाता है, लेकिन इसकी पूरी संरचना का अभाव है।
  • मत्स्य पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है, लेकिन इसके मूल स्वरूप पर असहमति बनी हुई है।
  • कई खंड केवल क्षेत्रीय तीर्थ माहात्म्य (Tirtha Mahatmya) को समर्पित हैं।

2. रचना काल और ऐतिहासिक प्रमाण

  • यह ग्रंथ 1000 ईस्वी से पहले का माना जाता है।
  • काशी खंड में 11वीं शताब्दी से पहले की काशी की धार्मिक स्थिति का उल्लेख है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यह ग्रंथ महमूद गजनवी के आक्रमण से पहले लिखा गया होगा।
  • इसमें बुद्ध धर्म के प्रभाव का उल्लेख मिलता है, जिससे यह बौद्ध काल के बाद का प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

  • स्कंद पुराण भगवान शिव, स्कंद (कार्तिकेय), तीर्थों, और धार्मिक अनुष्ठानों से संबंधित सबसे विस्तृत पुराणों में से एक है।
  • यह हिंदू धर्म के तीर्थ स्थानों और शिव मंदिरों की महिमा को व्यक्त करता है।
  • यह वैष्णव और शैव संप्रदाय दोनों के तत्वों को समाहित करता है।
  • स्कंद पुराण का संपूर्ण रूप अस्तित्व में नहीं है, और विभिन्न संहिताएँ और खंड ही इसके प्रमाण के रूप में उपलब्ध हैं।
  • यह ग्रंथ मध्यकालीन भारत के धार्मिक और सामाजिक परिदृश्य को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्या स्कंद पुराण वास्तव में 81,100 श्लोकों का है?

  • संभावित रूप से नहीं, क्योंकि विभिन्न खंडों और संहिताओं का संकलन इसकी श्लोक संख्या को अत्यधिक बढ़ा सकता है।
  • वर्तमान में उपलब्ध संस्करणों में इसकी संपूर्णता संदेहास्पद है।

क्या यह पुराण शिव और स्कंद की पूजा पर ही केंद्रित है?

  • मुख्यतः हाँ, लेकिन इसमें वैष्णव तीर्थों का भी उल्लेख मिलता है।
  • इसमें शिव, कार्तिकेय और अन्य देवताओं की उपासना को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

क्या स्कंद पुराण आज भी प्रासंगिक है?

  • आज भी काशी, पुरी, और अन्य तीर्थों में इस पुराण के अंशों का पाठ किया जाता है।
  • विशेष रूप से काशी खंड और उत्कल खंड धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

अंतिम विचार

  • स्कंद पुराण में उपलब्ध विभिन्न खंड और संहिताएँ इसे अन्य पुराणों से विशिष्ट बनाती हैं।
  • हालांकि, इसकी मूल संरचना को लेकर विद्वानों में असहमति है, और यह अधिकतर धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्रा संबंधी जानकारी प्रदान करता है।
  • इसकी ऐतिहासिकता और धार्मिक प्रासंगिकता इसे एक महत्वपूर्ण ग्रंथ बनाती है, लेकिन इसकी समग्रता को लेकर प्रश्न बने हुए हैं।


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