बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे बाबा बैद्यनाथ धाम या देवघर के नाम से जाना जाता है, 12 ज्योतिर्लिंगों में अत्यंत पूजनीय है। इसे "कामना लिंग" भी कहा जाता है, अर्थात् यहां की आराधना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां स्वयं प्रकट होकर रावण के घावों पर मरहम लगाया था, इसलिए उनका नाम बैद्य (वैद्य/चिकित्सक) पड़ा। यह ज्योतिर्लिंग शिव शक्ति के मिलन का भी स्थल है क्योंकि यहां पार्वती का शक्तिपीठ (जयदुर्गा मंदिर) भी समीप में स्थित है। इस मंदिर में श्रद्धा से पूजा करने पर आरोग्य एवं समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार लंका के राजा रावण ने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न किया और शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान पाया। शर्त यह थी कि शिवलिंग को रास्ते में कहीं पृथ्वी पर न रखें। देवताओं की चाल से रावण को मार्ग में जरूरत पड़ने पर शिवलिंग एक ग्वाले (विष्णु के अवतार) को थमाना पड़ा और उसने शिवलिंग पृथ्वी पर स्थापित कर दिया। रावण के सभी प्रयास असफल रहे और शिव यहीं बैद्यनाथ धाम में विराजमान हो गए।
इतिहास में इस मंदिर परिसर का विकास कई राजाओं द्वारा किया गया, विशेषकर पूर्व बंगाल के राजाओं ने। वर्तमान में 21 मंदिरों का समूह है, जिसमें मुख्य शिव मंदिर का शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित है।
बैद्यनाथ धाम झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन जसीडीह (जसीडीह जंक्शन) है, जहां से देवघर लगभग 7 किमी दूर है। पटना, कोलकाता आदि शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं। श्रावण मास में विशेष कांवड़िया मार्ग बनाया जाता है, जिसमें सुल्तानगंज (बिहार) से 100 किमी की पैदल यात्रा करके श्रद्धालु गंगाजल लाते हैं और बैद्यनाथ को अर्पित करते हैं। देवघर में रहने के लिए धर्मशालाएं, होटल और पर्यटन आवास गृह आसानी से उपलब्ध हैं।
बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए भक्त घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, विशेषकर श्रावण में। मंदिर में पूजन स्वयं या पुजारियों की मदद से किया जा सकता है – भक्त जल, दूध, बेलपत्र, आक के फूल, भांग आदि शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। एक विशेष प्रथा के तहत यहाँ श्रृंगार पूजा होती है, जिसमें शिवलिंग को फूल-माला, वस्त्र, चंदन से सजाया जाता है। भोर में मंगला आरती, दोपहर भोग आरती और रात शयन आरती होती है। शिवरात्रि पर रात्रि भर प्रति प्रहर अभिषेक किया जाता है।
श्रावण मास बैद्यनाथधाम का सबसे प्रसिद्ध समय है, जब करोड़ों कांवड़िये "बोल बम" के जयकारे लगाते हुए जलाभिषेक करने आते हैं। पूरे श्रावण महीने मेला लगा रहता है और प्रशासन विशेष इंतजाम करता है। महाशिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाई जाती है, जिसमें रात्रि जागरण, झांकियां तथा विवाहोत्सव आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा और विजयादशमी पर भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। सावन के हर सोमवार को स्थानीय स्तर पर शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमें बाबा की पालकी को नगर भ्रमण कराया जाता है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर में सबसे ऊपर पंचशूल स्थापित है, जो पाँच तंत्र मंत्रों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि रावण ने अपनी भक्ति के प्रतीक स्वरूप अपने नौ सिर यहीं अर्पित किए थे और दसवें सिर को काटने से पहले शिव प्रकट हुए। यही कारण है कि कुछ विद्वान बैद्यनाथ को रावणेश्वर भी कहते हैं। मंदिर परिसर में अन्नपूर्णा भंडार है जहां भक्त प्रसाद पा सकते हैं। देवघर शहर को “देवताओं का घर” कहा जाता है, क्योंकि बैद्यनाथ सहित यहाँ कई देवस्थल हैं। पास ही नृसिंह शिला, सूर्य मंदिर, शिवगंगा तालाब जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं, जो इस तीर्थ की महिमा को बढ़ाते हैं।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे बाबा बैद्यनाथ धाम या देवघर के नाम से जाना जाता है, 12 ज्योतिर्लिंगों में अत्यंत पूजनीय है। इसे "कामना लिंग" भी कहा जाता है, अर्थात् यहां की आराधना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां स्वयं प्रकट होकर रावण के घावों पर मरहम लगाया था, इसलिए उनका नाम बैद्य (वैद्य/चिकित्सक) पड़ा। यह ज्योतिर्लिंग शिव शक्ति के मिलन का भी स्थल है क्योंकि यहां पार्वती का शक्तिपीठ (जयदुर्गा मंदिर) भी समीप में स्थित है। इस मंदिर में श्रद्धा से पूजा करने पर आरोग्य एवं समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार लंका के राजा रावण ने कठोर तप करके शिव को प्रसन्न किया और शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान पाया। शर्त यह थी कि शिवलिंग को रास्ते में कहीं पृथ्वी पर न रखें। देवताओं की चाल से रावण को मार्ग में जरूरत पड़ने पर शिवलिंग एक ग्वाले (विष्णु के अवतार) को थमाना पड़ा और उसने शिवलिंग पृथ्वी पर स्थापित कर दिया। रावण के सभी प्रयास असफल रहे और शिव यहीं बैद्यनाथ धाम में विराजमान हो गए।
इतिहास में इस मंदिर परिसर का विकास कई राजाओं द्वारा किया गया, विशेषकर पूर्व बंगाल के राजाओं ने। वर्तमान में 21 मंदिरों का समूह है, जिसमें मुख्य शिव मंदिर का शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित है।
बैद्यनाथ धाम झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन जसीडीह (जसीडीह जंक्शन) है, जहां से देवघर लगभग 7 किमी दूर है। पटना, कोलकाता आदि शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं। श्रावण मास में विशेष कांवड़िया मार्ग बनाया जाता है, जिसमें सुल्तानगंज (बिहार) से 100 किमी की पैदल यात्रा करके श्रद्धालु गंगाजल लाते हैं और बैद्यनाथ को अर्पित करते हैं। देवघर में रहने के लिए धर्मशालाएं, होटल और पर्यटन आवास गृह आसानी से उपलब्ध हैं।
बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए भक्त घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, विशेषकर श्रावण में। मंदिर में पूजन स्वयं या पुजारियों की मदद से किया जा सकता है – भक्त जल, दूध, बेलपत्र, आक के फूल, भांग आदि शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। एक विशेष प्रथा के तहत यहाँ श्रृंगार पूजा होती है, जिसमें शिवलिंग को फूल-माला, वस्त्र, चंदन से सजाया जाता है। भोर में मंगला आरती, दोपहर भोग आरती और रात शयन आरती होती है। शिवरात्रि पर रात्रि भर प्रति प्रहर अभिषेक किया जाता है।
श्रावण मास बैद्यनाथधाम का सबसे प्रसिद्ध समय है, जब करोड़ों कांवड़िये "बोल बम" के जयकारे लगाते हुए जलाभिषेक करने आते हैं। पूरे श्रावण महीने मेला लगा रहता है और प्रशासन विशेष इंतजाम करता है। महाशिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाई जाती है, जिसमें रात्रि जागरण, झांकियां तथा विवाहोत्सव आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा और विजयादशमी पर भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। सावन के हर सोमवार को स्थानीय स्तर पर शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमें बाबा की पालकी को नगर भ्रमण कराया जाता है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर में सबसे ऊपर पंचशूल स्थापित है, जो पाँच तंत्र मंत्रों के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि रावण ने अपनी भक्ति के प्रतीक स्वरूप अपने नौ सिर यहीं अर्पित किए थे और दसवें सिर को काटने से पहले शिव प्रकट हुए। यही कारण है कि कुछ विद्वान बैद्यनाथ को रावणेश्वर भी कहते हैं। मंदिर परिसर में अन्नपूर्णा भंडार है जहां भक्त प्रसाद पा सकते हैं। देवघर शहर को “देवताओं का घर” कहा जाता है, क्योंकि बैद्यनाथ सहित यहाँ कई देवस्थल हैं। पास ही नृसिंह शिला, सूर्य मंदिर, शिवगंगा तालाब जैसे दर्शनीय स्थल भी हैं, जो इस तीर्थ की महिमा को बढ़ाते हैं।