2. कमला
उत्पत्ति की कथा या स्रोत
कमला देवी दस महाविद्याओं में अंतिम मानी जाती हैं और ये माँ लक्ष्मी का ही पूर्ण तांत्रिक स्वरूप हैं। कमला का शाब्दिक अर्थ है “कमल पर विराजित” – देवी लक्ष्मी को कमल के फूल पर आसन लेने के कारण कमला कहा जाता है। पुराणों में लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र-मंथन की प्रसिद्ध कथा से जुड़ी है। श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा क्षीरसागर मंथन करने पर चौदह रत्न निकले, उनमें एक अनुपम सुन्दरी देवी प्रकट हुईं जो कमल के पुष्प पर विराजमान थीं – यही महालक्ष्मी थीं। इस तरह लक्ष्मी (कमला) समुद्र से उत्पन्न हुईं और भगवान विष्णु ने उन्हें अपनी पत्नी रूप में स्वीकार किया। तांत्रिक संदर्भ में कमला महाविद्या की उत्पत्ति सती की दस महाविद्या रूपों में से एक के रूप में मानी जाती है। कुछ तांत्रिक कथाओं में कमला को दुर्गा के ही सौम्य लक्ष्मी रूप में वर्णन मिलता है, जो देवियों में ऐश्वर्य और ऐश्वर्य-प्रदाता शक्ति हैं। देवी कमला की महिमा देवी भागवत में भी आई है, जहाँ देवी कहती हैं कि “मैं ही लक्ष्मी रूप में समस्त लोकों का पालन-पोषण करती हूँ”। इसलिए कमला को पालन-शक्ति या श्री शक्ति भी कहते हैं।
आध्यात्मिक एवं तांत्रिक महत्त्व
कमला देवी समृद्धि, सौभाग्य और धन की अधिष्ठात्री रूप हैं, जो दर्शाती हैं कि परमात्मा की कृपा केवल उग्र रूपों द्वारा भय दूर करने तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह वर प्रदान करने और जीवन में मंगल तथा ऐश्वर्य लाने में भी प्रकट होती है। दस महाविद्याओं में कमला ही सबसे सौम्य और कल्याणकारी रूप हैं। कमला भक्तों को भौतिक सुख-संपदा के साथ-साथ आध्यात्मिक समृद्धि भी देती हैं।तांत्रिक दृष्टि से, कमला का स्वरूप इस तथ्य का संकेत देता है कि पूर्ण ज्ञान (विद्या) की प्राप्ति के पश्चात् अंततः लक्ष्मी अर्थात् दिव्य संपदा और आध्यात्मिक समृद्धि की प्राप्ति होती है।। वे श्री विद्या की भी एक पहलू हैं – कमला को श्री या महालक्ष्मी कहते हैं। साधक कमला उपासना से अर्थ, काम, धर्म, मोक्ष चारों पुरुषार्थ प्राप्त कर सकता है। देवी कमला भगवती महालक्ष्मी होने के कारण जहाँ जाती हैं वहीं सुख-शांति और ऋद्धि-सिद्धि का वास होता है। कमला को अष्टलक्ष्मी के सभी रूपों की मूल शक्ति माना जाता है – जैसे धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, संतिलक्ष्मी आदि उन्हीं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं। भक्तों के लिए कमला की पूजा से दरिद्रता, दुःख और दरिदेवत्व का नाश होता है तथा घर में वैभव व खुशहाली आती है। तंत्रमार्ग के उपासक कमला महाविद्या की साधना में मंत्र-जप, यंत्र स्थापना और विशेष हवन करते हैं जिससे न सिर्फ भौतिक समृद्धि बल्कि आध्यात्मिक प्रगति भी होती है।
पूजा विधि और अनुष्ठान
कमला (महालक्ष्मी) की उपासना बहुत व्यापक रूप से हिन्दू परिवारों में होती है। सामान्य रूप से प्रत्येक शुक्रवार तथा दीपावली की अमावस्या को माता लक्ष्मी की पूजा की परम्परा है। इस पूजा में कमल का फूल, कमल गट्टे (कमलगट्टा), हल्दी, चन्दन, केसर, धान की लाई, खीर व मिष्ठान का भोग लगाया जाता है।पूजन के दौरान भक्त श्रद्धापूर्वक “ॐ महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र या श्रीसूक्त का पाठ करते हैं। तांत्रिक पूजा में कमला महाविद्या के लिए विशेष बीज मंत्र — “ह्रीं श्रीं क्लीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं क्लीं स्वाहा” — का जप किया जाता है। इस मंत्र का जाप विशेष संख्या में किया जाता है, जो सामान्यतः १०८, १००८ या ११०००० बार तक होता है, जिससे साधक को दिव्य अनुग्रह प्राप्त हो सके। ब्रह्ममुहूर्त उनकी उपासना शुभ मानी गई है। नवदुर्गा के समान ही धनतेरस से दीपावली तक लक्ष्मी-कुबेर पूजन का विधान है, जिसमें कमला की कृपा से धन-धान्य की वृद्धि होती है। तंत्रग्रंथों में वर्णित कमला अनुष्ठान रात्रिकाल में पीले वस्त्र पहनकर, कमल के फूलों से मंडप सजा कर और घी के दीपक जला कर किया जाता है। चूँकि कमला को पीतवर्ण (पीला रंग) प्रिय है, कई पूजा में हल्दी से रंगे हुए नैवेद्य या पीले पुष्प अर्पित करने का विधान है। उनके मंत्र-जप में शुद्धता व सकारात्मक मनोभाव बहुत ज़रूरी है क्योंकि कमला सौम्य हैं – उन्हें रौद्र या उग्र भाव पसंद नहीं, बल्कि प्रेमपूर्ण आग्रह से वह शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
प्रमुख मंदिर या स्थान
देवी कमला सीधे “लक्ष्मी” के रूप में सम्पूर्ण भारत में पूजी जाती हैं, इसलिए उनके असंख्य मंदिर हैं। विशेषकर विष्णु मंदिरों में लक्ष्मी जी की उपासना सहचरी रूप में की जाती है फिर भी कुछ स्थल ऐसे हैं जहाँ महाविद्या कमला को केंद्र में रखकर पूजा होती है। महाराष्ट्र में कोल्हापुर की महालक्ष्मी (अंबाबाई) मंदिर अति प्रसिद्ध शक्तिपीठ है – माना जाता है यहाँ सती की आंखें गिरी थीं और देवी महालक्ष्मी रूप में विराजमान हैं। यह कमला महाविद्या का ही प्रसिद्द स्थल है जहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं। दक्षिण भारत में श्रीरंगम (तमिलनाडु) के रंगनाथस्वामी मंदिर में श्रीरंगनायकी के नाम से लक्ष्मी की विशिष्ट आराधना होती है। कर्नाटक में बेलगाम जिले के चिक्कलदिन्नी गाँव में कमला देवी का प्राचीन मंदिर है, जहाँ कमल की आकृति वाले आसन पर देवी लक्ष्मी विराजित हैं। तमिलनाडु के तिरुवारूर स्थित भगवाने शिव के प्रसिद्द मंदिर में देवी कमलाम्बिका की पूजा होती है।– यद्यपि वहाँ कमलाम्बा को त्रिपुरसुन्दरी (ललिता) माना जाता है, कमलस्वरूपा देवी हैं जो कमलासन पर विराजती हैं। कमला महाविद्या को कई स्थानों पर कानाकु अथवा कनक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है – जैसे आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में कनकदुर्गा मंदिर में लक्ष्मी के स्वर्णरूप को पूजते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत में दीपावली के दौरान हर घर में कमला का पूजन होता है। नेपाल के काठमांडू में कमला जनकी मंदिर और कमलेश्वर मंदिर हैं, हालाँकि वे लक्ष्मी के साथ सीता जी के भी मंदिर हैं। कमला को समर्पित अधिकांश स्थल लक्ष्मी नाम से ही जाने जाते हैं, इसलिए महाविद्या कमला की आराधना प्रत्यक्ष रूप से घर-घर में लक्ष्मी पूजन के रूप में होती है।
शास्त्रीय संदर्भ
कमला महाविद्या का सीधा उल्लेख तंत्रग्रंथों में कमलात्मिका के नाम से हुआ , शाक्तानंद तरंगिणी आदि में दस महाविद्याओं की सूची में कमला (कमलात्मिका) को अन्त में गिना गया है। देवी महात्म्य में महालक्ष्मी देवी का विस्तारपूर्वक वर्णन है – उसमें देवी महिषासुरमर्दिनी को लक्ष्मीस्वरूपा माना गया है। उदाहरणस्वरूप, एक स्थान पर कहा गया:या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” — इस मंत्र द्वारा देवी की वंदना की जाती है, जो समस्त प्राणियों में लक्ष्मी रूप में स्थित हैं।, उनको नमस्कार। लक्ष्मी तंत्र, श्रीसूक्त (ऋग्वेद) और विष्णुपुराण जैसे ग्रंथों में देवी लक्ष्मी (कमला) की महिमा गाई गई है। शास्त्रों में कमला को भगवान विष्णु की शक्ति कहा गया – विष्णु जहाँ योगनिद्रा में हैं वहाँ उनको जगाने के लिए ब्रह्मा महामाया की स्तुति करते हैं और जब विष्णु जाग जाते हैं तब कमला स्वरूप में लक्ष्मी से उन्हें पुनः शक्ति मिलती है। गुह्यतिगुह्य तंत्र नामक ग्रंथ में दस महाविद्या को दस विष्णु अवतारों से जोड़ा गया है, वहाँ कमला को कृष्णावतार के तुल्य बताया गया है (क्योंकि श्रीकृष्ण के साथ रुक्मिणी/राधा लक्ष्मी का अवतार थीं)। देवी भागवत पुराण के नवम स्कन्ध में महालक्ष्मी-व्रत की कथा आती है, जिससे लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। कमला देवी को स्वयं विष्णुपत्नी एवं चंचला (चंचल = चलायमान, जो सदा एक जगह स्थिर नहीं रहती) कहा गया है – इसका मतलब है लक्ष्मी (धन-संपदा) को स्थिर रखने के लिए उनके प्रति श्रद्धा और धर्म जरूरी है। इस प्रकार शास्त्रों ने लक्ष्मी-कमला को धन एवं सौभाग्य की अधिष्ठात्री मानते हुए संयमपूर्वक उनका पूजन करने की शिक्षा दी है। कमला महाविद्या की स्तुति में तांत्रिक मंत्रों के साथ-साथ वैदिक लक्ष्मी सूक्त का पाठ भी किया जाता है, जो प्रमाणित ग्रंथों से लिया गया है।