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जानिए देवी लक्ष्मी जी के वे 108 नाम जो समृद्धि, शांति और शुभ ऊर्जा का आह्वान करते हैं – हर नाम स्वयं में एक मंत्र है।

जानिए देवी लक्ष्मी जी के वे 108 नाम जो समृद्धि, शांति और शुभ ऊर्जा का आह्वान करते हैं – हर नाम स्वयं में एक मंत्र है।AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

देवी लक्ष्मी के 108 नाम

नीचे देवी महालक्ष्मी के 108 प्रमुख नाम उनकी व्याख्या और शास्त्रीय स्रोतों के साथ तालिका में दिए गए हैं। प्रत्येक नाम का अर्थ बताते हुए यह समझाया गया है कि लक्ष्मी को वह नाम क्यों दिया गया, तथा संभव हो तो प्रामाणिक शास्त्र/पुराण से संदर्भ जोड़ा गया है।

क्रम. नाम (देवी लक्ष्मी) स्रोत/संदर्भनाम का अर्थ एवं कारण (कैसे/क्यों पड़ा)
1. प्रकृति गरुड़ पुराण आदि
देवी लक्ष्मी को प्रकृति कहा गया है क्योंकि वे सृष्टि की मूल आदिशक्ति हैं। गरुड़ पुराण में लक्ष्मी को महालक्ष्मी रूप में प्रकृति (मूल भौतिक प्रकृति) माना गया है, जो विश्व की रचना, पालन और संहार में विष्णु की सहायक शक्ति हैं। इस प्रकार समस्त सृष्टि की उत्पत्ति होने के कारण उनका नाम प्रकृति पड़ा।
2. विकृति लक्ष्मी तंत्र परंपरा
विकृति का अर्थ है परिवर्तन या विविध रूप। लक्ष्मी को विकृति इसलिए कहते हैं क्योंकि वे प्रकृति की विविध परिवर्तित अवस्थाओं में प्रकट होती हैं। संपूर्ण जगत में जो परिवर्तन और विविधता है, वह लक्ष्मी की ही शक्ति से है – प्रकृति के विभिन्न रूपों में उनका विस्तार है। अतः देवी के अनेक रूपों (जैसे श्री, भू, दुर्गा आदि) में प्रकट होने के कारण उन्हें विकृति कहा गया है।
।. विद्या विष्णु पुराण
विद्या अर्थात ज्ञान। विष्णु पुराण में लक्ष्मी को श्री कहा गया है जो विष्णु की ज्ञान-दृष्टि हैं – “विष्णु ज्ञान हैं तो श्री उनकी अंतरदृष्टि (बुद्धि) हैं। अर्थात लक्ष्मी स्वयं आध्यात्मिक एवं लौकिक ज्ञान का स्वरूप हैं। भक्तों को आत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाली होने से उन्हें विद्या रूप में पूजा जाता है।
4. सर्वभूतहितप्रदा
सर्वभूतहितप्रदा का अर्थ है “सभी प्राणियों का हित प्रदान करने वाली”। यह नाम दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी समस्त जीवों के कल्याण हेतु कार्य करती हैं। वे सभी प्राणियों को जीवनोपयोगी धन-धान्य, सुख-संपदा और कृपा प्रदान करती हैं। लोकमान्यता है कि उनकी कृपा से संपूर्ण जगत का पालन होता है, इसीलिए उन्हें सर्व भूतों का हित करने वाली कहा गया है।
5. श्रद्धा पुराण
श्रद्धा यानी भक्ति और अटल आस्था। देवी लक्ष्मी को श्रद्धा कहा जाता है क्योंकि वे ईश्वर में श्रद्धा के रूप में हृदय में विराजित रहती हैं और भक्तों में विश्वास एवं भक्ति उत्पन्न करती हैं। पुराणों में लक्ष्मी के नामों में श्रद्धा का भी उल्लेख मिलता है।, जो दर्शाता है कि वे भक्तों की आस्था की अधिष्ठात्री देवी हैं।
6. विभूति विष्णु पुराण, श्रीसूक्त
विभूति का शाब्दिक अर्थ है ऐश्वर्य या चमत्कारिक शक्ति। विष्णु पुराण आदि में वर्णन है कि भगवान विष्णु के सभी ऐश्वर्य, तेज और विभूतियाँ श्री (लक्ष्मी) से ही प्राप्त होती हैं। इसलिए लक्ष्मी को विभूति कहा गया – क्योंकि वे स्वयं समस्त ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री हैं और धन, वैभव, यश जैसी विभूतियाँ उन्हीं से प्रसादरूप में प्राप्त होती हैं।
7. सुरभि विष्णु पुराण
सुरभि का अर्थ है “कामधेनु गाय” या सुगंधित। समुद्र-मंथन की कथा में देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कामधेनु गाय (जिसे सुरभि भी कहते हैं) प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी समृद्धि की दात्री हैं और कामधेनु भी समृद्धि का प्रतीक है, इसलिए लक्ष्मी का एक नाम सुरभि भी है। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि जैसे कामधेनु सभी इच्छाएँ पूर्ण करती है, वैसे ही लक्ष्मी की कृपा से भी सभी धन-धान्य की कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
8. परमत्मिका दुर्गा सप्तशती एवं तंत्र
परमात्मिका का अर्थ है “परम आत्मस्वरूपा” – अर्थात परमात्मा (ईश्वर) की आत्मशक्ति के रूप में उपस्थित। शास्त्रों में लक्ष्मी को विष्णु की योगमाया माना गया है, जो परमात्मा की सृजन शक्ति हैं। वे स्वयं परम ब्रह्म की शक्ति तथा समस्त सृष्टि की आत्मा हैं। इसीलिए उन्हें परमात्मिका कहा जाता है, क्योंकि वे परमात्मा के साथ अभिन्न स्वरूप रखती हैं।
9. वाक् (वाच) विष्णु पुराण
वाक् का अर्थ वाणी या वाक्शक्ति है। विष्णु पुराण के अनुसार श्री (लक्ष्मी) वाणी हैं और विष्णु अर्थ (सार) हैं – “विष्णु अर्थ हैं और श्री वाणी (वाक्) हैं। अर्थात ज्ञान को व्यक्त करने वाली वाणी भी लक्ष्मीस्वरूपा है। उन्हें वाग्देवी के रूप में भी पूजा जाता है – इस नाम से संकेत मिलता है कि देवी लक्ष्मी समस्त शुभ वचनों और वेदवाणियों की अधिष्ठात्री हैं।
10. पद्मालय आइकोनोग्राफी
पद्मालय का अर्थ है “कमल का निवास” – अर्थात जो कमल में निवास करती हैं। देवी लक्ष्मी को कमल पर विराजमान दिखाया जाता है और उन्हें “कमलवासिनी” कहा जाता है। श्रीसूक्त में भी उनका वर्णन कमल पर आसीन, कमल को हाथ में धारण करने वाली के रूप में है। क्योंकि वे कमल पुष्प को आसन के रूप में धारण करती हैं, अतः उनका नाम पद्मालय (कमल-आलया) प्रसिद्ध हुआ।
11. पद्मा विष्णु पुराण, श्रीसूक्त
पद्मा यानी कमल। देवी लक्ष्मी को पद्मा कहा जाता है क्योंकि समुद्रमंथन से प्रकट होते समय उनके हाथों में कमल था और वे स्वयं कमल के साथ अवतरित हुईं। “कमला” और “पद्मा” उनके अत्यंत प्रचलित नाम हैं जो यह दर्शाते हैं कि वे कमल के समान कोमल, पवित्र एवं शोभामयी हैं। पुराणों में कहा गया है कि समुद्र से प्रकट होने के कारण लक्ष्मी को पद्मा (कमलिनी) और कुमारिका कहा गया तथा वे कमलधारिणी होने से पद्मा नाम से पूजित हैं।
12. शुचि
शुचि का अर्थ है पवित्र या निर्मल। देवी लक्ष्मी को शुचि कहा जाता है क्योंकि वे निर्मल हृदय वाली और शुद्ध स्वरूपा हैं। लक्ष्मी जहाँ रहती हैं वहाँ पवित्रता और शुभता स्वतः आ जाती है। वे पापरहित (निर्दोष) दिव्य प्रकृति की हैं, इसलिए अनघा और विमला नामों की तरह शुचि नाम भी उनकी पावनता को इंगित करता है।
13. स्वाहा दुर्गा सप्तशती, देवी उपासना
वैदिक यज्ञ परंपरा में स्वाहा मंत्र द्वारा देवताओं को हवन अर्पित किया जाता है। देवी के रूप में स्वाहा अग्नि की पत्नी और सभी देव होम की शक्ति मानी जाती हैं। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है: "त्वं स्वाहा" – हे देवी, तुम वह स्वाहा हो जिसके उच्चारण से देवताओं को हविष्य प्राप्त होता है। अर्थात् लक्ष्मी को स्वाहा रूप में देवताओं को तृप्त करने वाली शक्ति माना गया है, इसलिए उनका एक नाम स्वाहा है।
14. स्वधा दुर्गा सप्तशती
श्राद्ध एवं पितृ-तर्पण में स्वधा मन्त्र उच्चारित कर पितरों को अर्घ्य दिया जाता है। देवी को स्वधा भी कहा गया है क्योंकि वे पितरों को समर्पित अन्न-जल की शक्ति स्वरूप हैं। देवी माहात्म्य में स्तुति है: "त्वं स्वधा" – हे देवी, तुम ही वह स्वधा हो जिसके माध्यम से पितृगण तृप्त होते हैं। इस प्रकार लक्ष्मी स्वधा देवी के रूप में पितरों का हित करने वाली मानी गई हैं, इसलिए यह नाम उनकी पितृ-पोषणकारी शक्ति को दर्शाता है।
15. सुधा देवी महात्म्य
सुधा का अर्थ है अमृत या अमृततुल्य मधुरस। देवी लक्ष्मी को सुधा कहा जाता है क्योंकि वे जीवनदायिनी अमृत की भांति हैं। दुर्गा स्तुति में देवी को “अमृत स्वरूपा” कहा गया है। लक्ष्मी की कृपा से देवताओं को अमृत (अमरत्व) प्राप्त हुआ था, अतः वे सुधा अर्थात अमृतस्वरूपिणी कही गईं। उनके चरणों की रज भी सुधा के समान कल्याणकारी बताई गई है।
16. धन्या अष्टलक्ष्मी
धन्या का शाब्दिक अर्थ है “भाग्यशालिनी” या “धन-धान्य से सम्पन्न”। लक्ष्मी को धन्या इसलिए कहते हैं क्योंकि वे स्वयं समस्त सौभाग्य की अधिष्ठात्री हैं और जिन पर उनकी कृपा हो, वे परम भाग्यशाली (धन्य) हो जाते हैं। अष्टलक्ष्मी स्वरूपों में धान्य-लक्ष्मी अन्न एवं अन्नपूर्णता की देवी हैं, अतः लक्ष्मी के धन्या नाम में इस बात का भी संकेत है कि वे अन्न-धान्य सहित सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।
. हिरण्मयी (हिरण्ययी) वेद (श्रीसूक्त)
हिरण्मयी का अर्थ है स्वर्ण के समान उज्ज्वल आभा वाली। वैदिक श्री सूक्त में महालक्ष्मी को “हिरण्यवर्णा” अर्थात स्वर्णिम आभा वाली कहा गया है। पुराणों में भी उनके सुनहरे स्वरूप का उल्लेख “हिरण्यवर्णा” नाम से हुआ है। यह नाम दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी का तेज सोने के समान दमकता है और वे स्वर्णिम समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं।
18. लक्ष्मी वेद, व्युत्पत्ति
लक्ष्मी स्वयं देवी का प्रमुख नाम है, जिसका मूल संस्कृत धातु लक्ष् (लक्ष्य) है। लक्ष्मी शब्द का अर्थ है लक्ष्य, चिह्न या लक्षित सम्पन्नता। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह जगन्माता अपने भक्तों की परेशानियों (लक्ष्यों) को करके, उन पर दया करके सभी शुभ वस्तुएँ प्रदान करती हैं। श्रीवैष्णव आचार्यों के मत में लक्ष्मी भगवान विष्णु से भक्तों की ओर से मध्यस्थ बनकर अनुग्रह दिलाती हैं। संक्षेप में, लक्ष्मी नाम से ही ज्ञात होता है कि वे सारी संपत्तियों और सिद्धियों का लक्ष्य (आधार) हैं।
19. नित्यपुष्टा
नित्यपुष्टा का अर्थ है “नित्य पोषित” या “जिसकी पुष्टि (शक्ति) नित्य बढ़ती रहती है”। यह नाम संकेत देता है कि देवी लक्ष्मी की शक्ति और कृपा सदा बढ़ती रहती है। जिन गृहों में लक्ष्मी का वास होता है वहाँ दिन-दूनी रात-चौगुनी उन्नति होती है। लक्ष्मी स्वयं चिर यौवना एवं अखंड ऊर्जा की प्रतीक हैं, अतः उन्हें नित्यपुष्टा कहा गया है (अर्थात सदैव पुष्ट व समृद्ध)।
20. विभावरी लक्ष्मी सहस्रनाम
विभावरी का अर्थ है अंधकार को नष्ट करने वाली उजियारी रात या भोर की ज्योतिस्वरूपा। लक्ष्मी सहस्रनाम में विभावरी नाम की व्याख्या है – “जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करती हैं”hindupedia.com। अर्थात देवी लक्ष्मी अपने प्रकाश से अज्ञान रूपी रात्रि को समाप्त कर देती हैं। इस नाम से लक्ष्मी के उस स्वरूप का बोध होता है जो संसार से अंधकार, संकट और दरिद्रता को मिटाकर प्रकाश एवं समृद्धि लाता है।
21. अदिति पुराण
अदिति का अर्थ है “बन्धनों से रहित” अथवा ऋग्वेद में अदिति को देवताओं की माता कहा गया है। लक्ष्मी को अदिति रूप में इसलिए जाना जाता है क्योंकि वे संपूर्ण जगत की माता और मुक्तिदायिनी शक्ति हैं। गरुड़ पुराण में लक्ष्मी को श्री, भू और दुर्गा – तीन स्वरूपों में वर्णित किया गया है, जिनमें भू (पृथ्वी) रूप में वे सभी देवों-दानवों का पोषण करती हैं। अदिति देवमाता हैं, उसी प्रकार लक्ष्मी जगन्माता हैं – इस मातृस्वरूप के कारण उनका नाम अदिति माना जा सकता है।
22. दिति
दिति हिंदू मान्यताओं में दैत्यों (असुरों) की जननी मानी जाती हैं। लक्ष्मी को दिति कहना इस भाव को दर्शाता है कि वे शुभ-अशुभ सभी प्राणियों को धन-संपत्ति देती हैं। वे सूर्यों (देवों) और असुरों दोनों का पालन-पोषण करने वाली शक्ति हैं – हालांकि अधर्मियों के पास गया धन अंततः नष्ट होता है, परंतु वह भी लक्ष्मी की ही देन होती है। अतः दिति नाम इस ओर संकेत करता है कि लक्ष्मी की शक्ति सर्वव्यापी है, चाहे देव हों या असुर, सभी उनकी संपदा के भूखे हैं।
23. दीपा परंपरा (दीपावली)
दीपा का अर्थ है दीपक या प्रकाश। लक्ष्मी को दीपा नाम इसलिए मिला क्योंकि वे ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलाती हैं। दीपावली को लक्ष्मी का पर्व माना जाता है, जब पूरे भारत में दीप प्रज्ज्वलित कर माता लक्ष्मी का स्वागत होता है। दिवाली की रात्रि दीपों से जगमगा उठती है – यह दर्शाता है कि लक्ष्मी के आने से अज्ञान और दरिद्रता का अंधकार मिट जाता है और प्रकाश (खुशहाली) छा जाता है।
।. वसुधा विष्णु पुराण
वसुधा का अर्थ है धरती (धन देने वाली धरा)। विष्णु पुराण में श्री (लक्ष्मी) को पृथ्वी कहा गया है – “श्री ही धरती हैं। भूदेवी (पृथ्वी) लक्ष्मी का ही एक रूप मानी जाती हैं जो सबको अन्न-धन देती हैं। अतः वसुधा नाम दर्शाता है कि लक्ष्मी धरती माता के रूप में सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण करती हैं।
25. वसुधारिणी विष्णु पुराण
वसुधारिणी का अर्थ है “धरती को धारण करने वाली”। विष्णु पुराण में कहा गया है – “श्री धरती हैं और विष्णु उस धरती के धारक”। किंतु अन्य व्याख्या में श्री स्वयं पृथ्वी की धारक भी हैं। इस दृष्टि से वसुधारिणी लक्ष्मी का वह रूप है जो सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने ऊपर धारण करके उसका भरण-पोषण करती हैं। यह नाम पृथ्वी रूप में लक्ष्मी के स्थैर्य और पोषण शक्ति को दर्शाता है।
26. कमला वेद (श्रीसूक्त)
कमला भी कमलवाली को कहते हैं। लक्ष्मी को कमला इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे कमल पर विराजमान होती हैं और स्वयं कमल के समान सुंदर हैं। श्री सूक्त तथा अन्य ग्रंथों में कमला नाम आया है। कमलात्मिका भी उनका एक नाम है जिसका अर्थ है “कमलरूपा”। चूँकि कमल पवित्रता, समृद्धि और सौंदर्य का प्रतीक है, देवी लक्ष्मी को कमला नाम देकर यही गुण बताए गए हैं।
27. कान्ता रामायण आदि
कान्ता का अर्थ है “प्रेमिका” या “सुंदरी”। लक्ष्मी को कान्ता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे भगवान विष्णु की परम प्रिया हैं। वे विष्णु के हृदय में निवास करती हैं – इसलिए विष्णु का एक नाम श्रीनिवास (श्री = लक्ष्मी, निवास = निवासस्थान) भी है। इसके अलावा कान्ता उनके दिव्य सौंदर्य का भी द्योतक है, जो सभी का मन मोह लेता है। इस प्रकार विष्णु-वल्लभा और रमणी होने से उनका नाम कान्ता पड़ा।
28. कामाक्षी लक्ष्मी तंत्र
कामाक्षी का अर्थ है “जिसकी आंखें कामना पूर्ण करने वाली हैं”। शास्त्रों में कामाक्षी देवी को वे शक्तिस्वरूपा माना गया है जिनकी कृपा-दृष्टि से भक्तों की कामनाएँ पूर्ण होती हैं। लक्ष्मी सहस्रनाम तथा तंत्रों में लक्ष्मी को कामाक्षी कहा गया है। इस नाम के पीछे भाव यह है कि माता लक्ष्मी अपनी सुकोमल दृष्टि मात्र से भक्तों को सुख-संपदा (अभिलषित फल) प्रदान कर देती हैं।
29. क्षीरोदतनया (क्षीरोदसम्भवा) विष्णु पुराण
क्षीरोदतनया का शाब्दिक अर्थ है “क्षीरसागर की पुत्री” – अर्थात जो क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न हुईं। यह देवी लक्ष्मी का प्रसिद्ध वर्णन है कि वे देवासुर-संग्राम के समय समुद्र मंथन से प्रकट हुईं क्षीरसागर से जन्म लेने के कारण उन्हें क्षीरोदतनया (समुद्रतनया) कहा गया। पद्म पुराण व विष्णु पुराण में विस्तार से उनका क्षीरसागर से प्रादुर्भाव वर्णित है, इसलिए यह नाम उनके उस पौराणिक उद्भव की स्मृति दिलाता है।
30. अनुग्रहप्रदा भविष्योत्तर पुराण
अनुग्रहप्रदा का अर्थ है “दया/कृपा प्रदान करने वाली”। भक्तों पर अनुग्रह (कृपा-दृष्टि) करना लक्ष्मी का स्वभाव है। भविष्योत्तर पुराण की कथा में भगवान शिव पार्वती को व्रत (वरलक्ष्मी व्रत) की महिमा बताते हैं – यह व्रत करने से लक्ष्मी प्रसन्न होकर सारे वरदान देती हैं। इससे लक्ष्मी का अनुग्रहकारी रूप प्रकट होता है। अतः उन्हें अनुग्रह प्रदान करने वाली, यानी अनुग्रहप्रदा कहा गया है, क्योंकि वे प्रसन्न होकर भक्तों को मनचाहा फल देती हैं।
31. बुद्धि विष्णु पुराण
बुद्धि का अर्थ है प्रज्ञा या तीक्ष्ण अंतरदृष्टि। विष्णु पुराण में वर्णित है कि लक्ष्मी भगवान की प्रेरक बुद्धि हैं – श्री (लक्ष्मी) को विष्णु की अंतरज्ञान शक्ति कहा गया। अतः लक्ष्मी को बुद्धि रूप में मानते हैं क्योंकि वे मानव को विवेक, निर्णायक शक्ति और प्रबुद्धि प्रदान करती हैं। जीवन में सफलता और कौशल को लक्ष्मी-कृपा माना जाता है, इसलिए उनका नाम बुद्धि भी सार्थक है।
32. अनघा पुराण
अनघा का अर्थ है निर्दोष, निष्पाप या पवित्र. देवी लक्ष्मी को अनघा कहा जाता है क्योंकि उनमें कोई दोष नहीं है – वे सर्वथा पवित्र और शुभ हैं। पुराणों में लक्ष्मी के अन्य नामों के बीच अनघा नाम भी मिलता है।, जो यह दर्शाता है कि माता लक्ष्मी पूर्णतया निर्मल हैं। उनके इस नाम से श्रद्धालु ये कामना करते हैं कि देवी अपने भक्तों के पाप दोष दूर करके उन्हें भी निष्पाप (निर्दोष) बना दें।
33. हरिवल्लभा पुराण
हरिवल्लभा का अर्थ है “भगवान हरि (विष्णु) की प्यारी (पत्नी)”। यह नाम स्वयं स्पष्ट करता है कि लक्ष्मी, भगवान विष्णु की अर्धांगिनी एवं अतिप्रिय हैं। शास्त्रों में श्री लक्ष्मी को विष्णुप्रिया, हरिप्रिया या हरिवल्लभा कहा गया है। हरिवल्लभा नाम बताता है कि विष्णु और लक्ष्मी अभिन्न हैं – लक्ष्मी बिना विष्णु अपूर्ण हैं और विष्णु बिना लक्ष्मी। इस प्रकार यह नाम देवी के दिव्य दांपत्य और स्नेहमयी स्वरूप का प्रतीक है।
34. अशोका रामायण
अशोका का अर्थ है “जिसे शोक नहीं” या “जो शोक har ले लेती हैं” (दुःखों का नाश करने वाली). माता सीता को भी अशोकवासिनी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने असोक वृक्ष के नीचे दुःख झेला था, लेकिन देवी लक्ष्मी के लिए अशोका नाम यह दर्शाता है कि उनकी कृपा से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। जिस घर में लक्ष्मी का वास होता है वहाँ दरिद्रता तथा दुख नहीं ठहरते। इसलिए वे अशोका कहलाईं – अर्थात दुखों का हरण करने वाली शुभ शक्ति।
35. अमृता पुराण
अमृता शब्द मृत्यु में अ उपसर्ग लगाने से बना है, जिसका अर्थ है “मृत्यु/क्षय को न होने देने वाली” यानि अमरत्व या जीवनदायिनी शक्ति। देवी लक्ष्मी को अमृता इसीलिए कहा गया है क्योंकि वे अपने भक्तों के जीवन में नवचेतना और सुखों का अमृत घोल देती हैं। समुद्र मंथन से अमृत प्रकट हुआ था और उसी के साथ लक्ष्मी भी प्रकट हुईं – इस पौराणिक संदर्भ से भी अमृता नाम लक्ष्मी के लिए जुड़ा। वे सुधा (अमृत) स्वरूपा हैं जो प्राणियों को पोषण व आरोग्य देती हैं।
36. दीप्त लक्ष्मी सहस्रनाम
दीप्त का अर्थ है देदीप्यमान या प्रखर ज्वाला के समान चमकने वाली। लक्ष्मी के तेज को दीप्ति कहा गया है। लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र में उनके कई रूपों में उन्हें दीप्ता कहा गया है। – जो यह दर्शाता है कि उनका स्वरूप प्रभापुंज के समान उज्ज्वल है। इस नाम से माता लक्ष्मी के उस ज्योतिर्मय रूप की आराधना की जाती है जो अज्ञानरूपी अंधकार को जलाकर भस्म कर देता है।
37. लोकशोकविनाशिनी
लोक-शोक-विनाशिनी का अर्थ है “तीनों लोकों के शोक (दुःख) का नाश करने वाली देवी”। यह नाम सूचित करता है कि देवी लक्ष्मी के आशीष से विश्व के समस्त कष्ट दूर हो सकते हैं। पौराणिक कथाओं में जब-जब संसार या देवता दुखी हुए, लक्ष्मी ने प्रकट होकर कष्ट हरे हैं – जैसे समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत दिलाकर उनका संताप मिटाया। इस प्रकार लक्ष्मी समष्टि के दुखों को खत्म करने वाली माँ हैं, इसलिए उन्हें लोकशोकविनाशिनी कहा गया।
38. धर्मनिलया विष्णु पुराण
धर्मनिलया का अर्थ है “धर्म का निवास/आधार”। विष्णु पुराण में श्रीहरि (विष्णु) और श्री (लक्ष्मी) के संबंध में कहा गया है – “विष्णु धर्म हैं तो श्री धर्म का आचरण (कर्म) हैं। अर्थात् धर्म के सिद्धांत विष्णु हैं, तो धर्म को आधार देकर चलाने वाली शक्ति लक्ष्मी हैं। इसलिए लक्ष्मी धर्म की नींव के रूप में धर्मनिलया कही जाती हैं। वे सच्चरित्रता, सत्कर्म और मर्यादा की संरक्षिका हैं – समाज में धर्म उन्हीं की कृपा से कायम रहता है।
39. करुणा भक्तिमाला
करुणा का अर्थ है दया या करुणाभाव। देवी लक्ष्मी को करुणा की प्रतिमूर्ति माना गया है। श्री वैष्णव सिद्धांत में कहा गया है कि यद्यपि सभी शुभ गुण भगवान विष्णु से आते हैं, परंतु करुणा (दया) का स्रोत लक्ष्मीजी हैं। यहाँ तक कि विष्णु भी लक्ष्मी की उपस्थिति के कारण ही करुणामय होते हैं। इसीलिए भक्तजन उन्हें करुणा कहकर पुकारते हैं – वे करूणासागर हैं, जो संतप्त हृदयों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
40. लोकमाता विष्णु पुराण
लोकमाता का अर्थ है “संसार की माता”। विष्णु पुराण में श्री लक्ष्मी को जगत जननी कहा गया है – “श्री ही संसार की माता हैं। वे सभी जीवों की पालनकर्ता माता के रूप में मानी जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक माँ अपने बच्चों का भरण-पोषण करती है। इस नाम द्वारा लक्ष्मी के सार्वभौमिक मातृत्व की स्तुति की जाती है – वे देवता, मानव, पशु-पक्षी सभी की माँ हैं जो स्नेहपूर्वक सबका लालन करती हैं।
41. पद्मप्रिया शास्त्र
पद्मप्रिया का अर्थ है “कमल को प्रिय रखने वाली”। देवी लक्ष्मी को कमल अतिप्रिय है – वे स्वयं कमल पर विराजमान रहती हैं और कमलों की माला धारण करती हैं। अनेक स्तोत्रों में उनका वर्णन पद्मप्रिया (कमलप्रिया) के रूप में हुआ है। यह नाम बतलाता है कि देवी को कमल के फूल अत्यंत प्रिय हैं और वे स्वयं भी कमल के समान कोमल हृदया हैं। भक्त उन्हें कमल-गट्टे, कमल पुष्प चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं।
42. पद्महस्ता आइकोनोग्राफी
पद्महस्ता का अर्थ है “कमल-हाथ” – अर्थात जिनके हाथ में कमल है। प्रायः सभी चित्रों/मूर्तियों में माता लक्ष्मी के हाथों में कमल का फूल रहता है। पुराणों में उन्हें पद्महस्ता कहकर संबोधित किया गया है। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि कमल उनका प्रमुख प्रतीक है – कमल उनके सौंदर्य , पावनता और वैभव का द्योतक है। साथ ही, कमल उन्हें सृजन-शक्ति प्रदान करता है (कमल बीज के रूप में सृष्टि का उद्गम)।
43. पद्माक्षी शास्त्र
पद्माक्षी का अर्थ है “कमल के समान नेत्रों वाली”। देवी लक्ष्मी के नेत्रों की सुंदरता की तुलना खिलते हुए कमल की पंखुड़ियों से की गई है। शास्त्रों में पद्माक्षी लक्ष्मी के नामों में शामिल है। कमलनयन होने का अभिप्राय यह है कि उनके नेत्र शीतल, शांत और सुन्दर हैं – वे करुणा और प्रेम से परिपूर्ण दृष्टि सब पर डालती हैं। श्रीसूक्त में भी उन्हें पद्मचरण पद्माक्षी पद्ममालाधरा कहा गया है।
44. पद्मसुन्दरी तंत्र
पद्मसुन्दरी का अर्थ है “कमल जैसी सुन्दरी”। तांत्रिक ग्रंथों में महाविद्याओं में एक कमला (पद्मसुंदरी) भी हैं, जिन्हें लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। लक्ष्मी को पद्मसुन्दरी इसलिए कहते हैं क्योंकि उनका सौंदर्य खिल हुए कमल के समान उज्ज्वल और पावन है। यह नाम लक्ष्मी के मोहक, शीतल और मनोहर स्वरूप का वर्णन करता है – जैसे कीचड़ में रहकर भी कमल निर्मल रहता है, वैसे ही लक्ष्मी समस्त सांसारिक विकारों से परे रहकर दिव्य सौंदर्य बिखेरती हैं।
45. पद्मोद्भवा विष्णु पुराण
पद्मोद्भवा का शाब्दिक अर्थ है “कमल से उत्पन्न” (पद्म से उत्पन्न)। पौराणिक दृष्टि से इस नाम की दो व्याख्या हो सकती है: एक तो यह कि लक्ष्मी कमल (समुद्र) से उत्पन्न हुईं, और दूसरी कि ब्रह्मा के कमल से उत्पन्न सृष्टि की आधारशक्ति भी लक्ष्मी हैं। कुछ स्रोतों में पद्मोद्भविनी लक्ष्मी का उल्लेख है।, जिसमें उनका संबंध उत्पत्ति से जोड़ा गया। समुद्र मंथन में प्रकट होते समय वे हाथ में कमल लिए थीं और एक कमलासन पर अवतरित हुईं, इस कारण कवियों ने उन्हें पद्मोद्भवा कहकर भी संबोधित किया है।
46. पद्ममुखी पुराण
पद्ममुखी का अर्थ है “कमल के समान मुखवाली” – अर्थात जिनका मुखड़ा खिले कमल जैसा सुंदर है। देवी लक्ष्मी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए शास्त्र कहते हैं उनका मुखारविंद (मुख कमल के समान) है। उदाहरणतः विष्णुपुराण और श्रीसूक्त में उनकी प्रसन्न-वदना (हँसमुख) व कमल-सदृश आभा का बखान है। पद्ममुखी नाम से लक्ष्मी के उस रूप की वंदना होती है जिसके दर्शन मात्र से भक्त के मन में आनंद के कमल खिल उठते हैं।
47. पद्मनाभप्रिया वेद (पुरुषसूक्त)
पद्मनाभ-प्रिया का अर्थ है “पद्मनाभ (विष्णु) की प्रिया पत्नी”। पद्मनाभ विष्णु का नाम है (जिनकी नाभि से कमल निकला)। पद्मनाभप्रिया नाम स्पष्ट रूप से बताता है कि लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं। पुरुषसूक्त में भी विष्णु को “लक्ष्मी की पत्नी वाला” कहा गया – "लक्ष्मीश्च पत्नीयं"। श्री लक्ष्मी सदा विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान रहती हैं वह स्थल श्रीवत्स चिह्न कहलाता है। अतः पद्मनाभप्रिया नाम से उनकी महत्त्वपूर्ण पहचान – विष्णुप्रिया – प्रकट होती है।
48. रमा रामायण, पुराण
रमा का अर्थ है “आनंददायिनी” अथवा “आनंद में लीन रहने वाली”। लक्ष्मी का यह प्रचलित नाम है (सीता जी को भी रामायण में श्री व रमा कहा गया है)। रमा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वे विष्णु को प्रसन्न करने वाली हैं (मधुसूदन कामिनी) और स्वयं भी परम आनंदमयी हैं। पुराणों में उल्लेख है कि लक्ष्मी इंदिरा व रमा रूप में नित्य विष्णु के साथ वैकुण्ठ में विहार करती हैं। अतः रमा नाम उनके सौम्य, रमणीय एवं सुखद स्वभाव का परिचायक है।
49. पद्ममालाधरा श्रीसूक्त
पद्म-माला-धरा का अर्थ है “कमलमालाधारिणी” – अर्थात जो कमलों की माला धारण करती हैं। देवी लक्ष्मी का एक रूप कमलमाला पहने हुए दिखाया जाता है। श्रीसूक्त में आता है कि देवी कमलमालिनी हैं। पुराणों में भी पद्ममालाधरा देवी के रूप में उनका नाम प्राप्त होता है। यह नाम संकेत करता है कि लक्ष्मीजी को कमल कितने प्रिय हैं – वे केवल हाथ में कमल ही नहीं रखतीं, बल्कि अपने श्रंगार में भी कमलों की माला पहनती हैं।
50. देवी सर्वत्र
देवी का अर्थ है देवत्व से युक्त – अर्थात दिव्य, प्रकाशस्वरूपा और पूजनीया नारी शक्ति। देवी नाम स्वयं लक्ष्मी के संपूर्ण देवित्व को प्रकट करता है। शास्त्रों में देवी शब्द का प्रयोग आद्या शक्ति के लिए होता है, जिसमें पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी सभी समाहित हैं। देवी महात्म्य में तो दुर्गा को प्रकृति, बुद्धि, लक्ष्मी आदि रूपों में सर्वदेवमयी कहा गया है। लक्ष्मी चूंकि विष्णु की शक्ति और विश्व की जननी हैं, इसलिए वे परमदेवी हैं – यही अर्थ इस नाम में समाहित है।
51. पद्मिनी श्रीसूक्त
पद्मिनी का तात्पर्य “कमलों से युक्त” या “कमलिनी” है। श्री लक्ष्मी को पद्मिनी कहा गया है क्योंकि वे कमल से अभिषिक्त होती हैं – कमल उनके सौंदर्य और वैभव का अभिन्न अंग है। श्रीसूक्त में एक प्रसंग आता है: “पद्मिनीं पुष्करिणीं...” जहाँ पद्मिनी शब्द लक्ष्मी के कमलवान रूप को इंगित करता है। अर्थात कमल के तालाब (पद्म-सरovar) में निवास करने वाली देवी खुद कमलिनी (पद्मिनी) हैं।
52. पद्मगन्धिनी श्रीसूक्त
पद्मगन्धिनी का अर्थ है “जिससे कमल के समान सुगंध आती है”। पद्म (कमल) स्वयं सुवासित होता है, उसी प्रकार देवी लक्ष्मी की उपस्थिति भी सुगंधित और पवित्र होती है। श्रीसूक्त में एक मंत्र है "गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्" – यानि लक्ष्मी ऐसी हैं जिनसे पावन सुगंध फैलती है। इस नाम द्वारा उनकी दिव्य सुगंधमयी आभा की ओर संकेत किया गया है – जिस स्थान पर वे आती हैं, वहाँ वातावरण सुगंधित (पुण्यगंध) हो जाता है।
53. पुण्यगन्धा श्रीसूक्त
पुण्यगन्धा का अर्थ है “पवित्र (पुण्य) सुगंध वाली”। यह नाम भी लक्ष्मी के सुवासित स्वरूप का वर्णन करता है। ऐसी मान्यता है कि वास्तविक समृद्धि केवल धन ही नहीं, बल्कि पुण्य और सत्कर्मों की सुगंध भी है। लक्ष्मी जहाँ वास करती हैं वहाँ पुण्य फलते-फूलते हैं और एक सात्त्विक सुगंध वातावरण में छा जाती है। इसलिए उन्हें पुण्यगन्धा कहा गया – जिनकी उपस्थिति पुण्यमय सुगंध बिखेरती है।
54. सुप्रसन्ना लक्ष्मी स्तुति
सुप्रसन्ना का अर्थ है “अत्यंत प्रसन्न” या “सदैव प्रसन्न रहने वाली”। देवी लक्ष्मी को प्रसन्नवदना कहा जाता है – उनके मुखमंडल पर सदा प्रसन्नता की आभा रहती है लक्ष्मी स्तुति में आता है: “प्रसन्नवदना सौभाग्यदाम्… भजामि” – अर्थात मैं उस प्रसन्न मुखवाली लक्ष्मी का भजन करता हूँ जो सौभाग्य देने वाली हैं। अतः सुप्रसन्ना नाम से माँ लक्ष्मी की कृपालु, हँसमुख एवं प्रसन्नचित्त स्वरूप की महिमा प्रकट होती है – वे प्रसन्न होकर सबको सुख प्रदान करती हैं।
55. प्रसादाभिमुखी तंत्र/स्तोत्र
प्रसादाभिमुखी का अर्थ है “सदा अनुग्रह (प्रसाद) देने को तत्पर चेहरा”। माता लक्ष्मी अपने भक्तों को प्रसाद स्वरूप आशीर्वाद देने के लिए सदा उत्सुक रहती हैं। उनके एक नाम प्रसन्नाक्षी (प्रसन्न नेत्रों वाली) भी है, जो मिलता-जुलता भाव देता है। प्रसादाभिमुखी नाम इंगित करता है कि देवी का मुख हमेशा भक्तों को वरदान देने की तरफ रहता है – वे कृपा बरसाने को उद्यत रहती हैं। यह उनकी दयामयी स्वभाव की ओर इशारा है कि वे थोड़ी भक्ति से ही प्रसन्न होकर प्रसाद (कृपा) बांटती हैं।
56. प्रभा विष्णु पुराण
प्रभा का अर्थ है प्रकाश या आभा। विष्णु पुराण में श्री लक्ष्मी को सूर्य के प्रकाश के समान बताया गया – “विष्णु सूर्य हैं तो श्री उनकी किरण-प्रभा हैं। अर्थात लक्ष्मी, भगवान का तेज हैं जो सारे संसार को प्रकाशमान करता है। इसलिए उन्हें प्रभा कहा जाता है। इस नाम से लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की आराधना होती है जो अज्ञान रूपी तम को मिटाकर ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलाती हैं।
57. चन्द्रवदना पुराण
चन्द्रवदना का अर्थ है “चंद्रमा के समान मुखवाली”। देवी लक्ष्मी का मुखमंडल पूर्ण चंद्र के समान उज्ज्वल और शीतल बताया गया है। पौराणिक स्रोतों में उन्हें चन्द्रवदना (चंद्रमुखी) नाम से स्तुत किया गया है। इस नाम के पीछे भाव यह है कि लक्ष्मीजी का चेहरा चंद्रमा की तरह शांत, दैदीप्यमान व कल्याणकारी है – उसे देखकर भक्तों के मन शीतल आनंद से भर जाते हैं।
58. चन्द्रा काव्य
चन्द्रा स्वयं एक उपमा स्वरूप नाम है, जिसका अर्थ “चंद्रमा” है। देवी लक्ष्मी को रूप-लावण्य, शीतलता और सौम्यता में चंद्रमा के समान माना गया है, इसलिए चन्द्रा नाम उन्हें दिया गया। चंद्रमा रात्रि के अंधकार को दूर कर जगत में शीतल प्रकाश भरता है, वैसे ही लक्ष्मी दरिद्रता रूपी अंधकार मिटाकर शीतल (मंगलमयी) प्रकाश भरती हैं। अतः यह नाम उनकी चंद्र-सदृश गुणों – शीतलता, कोमलता एवं उजास – की ओर इशारा करता है।
59. चन्द्रसहोदरी पुराण
चन्द्रसहोदरी का अर्थ है “चंद्रमा की सहोदर (बहन)”। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से लक्ष्मी और चंद्रमा दोनों ही उत्पन्न हुए थे, इसलिए उन्हें चंद्रमा की सहोदर कहा गया। इस नाम का तात्पर्य यह भी है कि लक्ष्मी और चंद्रमा दोनों एक ही स्रोत (क्षीरसागर) से जन्मे रत्न हैं – चंद्रमा रात्रि को रोशन करता है, और लक्ष्मी जीवन को। दोनों में शीतलता व कल्याण का अंश समान है। अतः देवी का यह नाम समुद्र-मंथन की घटना से जुड़ी उनकी सिबलिंग-जैसी स्थिति को दर्शाता है।
60. चतुर्भुजा आइकोनोग्राफी
चतुर्भुजा का अर्थ है चार भुजाओं वाली। देवी लक्ष्मी को प्रायः चार हाथों वाली दर्शाया जाता है। शास्त्रों में वर्णन है कि लक्ष्मी के चार हाथ मानव जीवन के चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – के प्रतीक हैं। चतुर्भुजा नाम इसी शास्त्रीय विवरण से आया है। विष्णु जैसे चतुर्भुज हैं, वैसे ही उनकी शक्ति लक्ष्मी भी चतुर्भुजा हैं। चार हाथों में वे कमल, कलश, अभयमुद्रा, वरमुद्रा आदि रखती हैं। यह नाम उनकी सर्वसमर्थ देवी रूप को इंगित करता है।
61. चन्द्ररूपा शास्त्र
चन्द्ररूपा का अर्थ है “चंद्रमा के सदृश स्वरूप वाली”। यह चन्द्रवदना और इन्दुशीतला जैसा ही नाम है, जो लक्ष्मी के चंद्र-समान स्वरूप को रेखांकित करता है। कुछ ग्रंथों में लक्ष्मी को चन्द्ररूपा कहा गया है। – इसका आशय है कि उनका रूप एवं स्वभाव चंद्रमा की भाँति शांतिदायक है। इस नाम के द्वारा भक्त प्रार्थना करते हैं कि माँ लक्ष्मी के चंद्रमयी स्वरूप की छाया उन पर पड़े, जिससे उनके जीवन में भी शीतल संतोष और शांति भर जाए।
62. इन्दिरा पुराण
इन्दिरा देवी लक्ष्मी का अत्यंत प्रसिद्ध नाम है। इन्दिरा शब्द “इन्द्र” से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ चमक या ऐश्वर्य होता है। लक्ष्मी को इन्दिरा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे तेजस्विनी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। पुराणों में इन्दिरा को लक्ष्मी का पर्याय बताया गया है। श्रीसूक्त में भी इन्दिरा नाम से लक्ष्मी का आह्वान है। यह नाम विशेषकर उनके प्रभावशाली स्वरूप और राजसी विभूति को दर्शाता है – इंद्र की तरह समृद्धि प्रदान करने वाली शक्ति होने से वे इन्दिरा हैं।
63. इन्दुशीतला लोकपरंपरा
इन्दुशीतला में “इन्दु” का अर्थ चंद्रमा है और “शीतला” का अर्थ ठंडक पहुंचाने वाली। लक्ष्मी को इन्दुशीतला कहा गया है क्योंकि उनकी उपस्थिति चंद्रमा की किरणों जैसी शीतल और सुखद है। जिस प्रकार चंद्रमा की चाँदनी गर्मी को हर लेती है, उसी प्रकार माँ लक्ष्मी के आगमन से जीवन के संताप दूर हो जाते हैं और शीतल (शांतिमय) वातावरण बन जाता है। यह नाम उनके शांत, सौम्य और करुणामय रूप की अभिव्यक्ति है।
64. आह्लादजननी स्तुति
आह्लादजननी का अर्थ है “आनंद उत्पन्न करने वाली माता”। देवी लक्ष्मी को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वे अपने भक्तों के जीवन में परम आनंद (आह्लाद) भर देती हैं। उनकी कृपा से हर्ष, उल्लास और सकारात्मकता का संचार होता है। पौराणिक कथाओं में जहां भी लक्ष्मी विराजती हैं, वहाँ हर्ष और समृद्धि स्वयमेव आ जाते हैं। इस प्रकार आह्लादजननी नाम माँ लक्ष्मी की उस शक्ति को दर्शाता है जिससे संपूर्ण जगत को आनंद और उत्साह मिलता है।
65. पुष्टा अष्टलक्ष्मी
पुष्टा का अर्थ है “पोषित” या “तंदुरुस्त/समृद्ध”। लक्ष्मी को पुष्टा इसलिए कहा गया है क्योंकि वे संपूर्ण जगत को पोषण देती हैं और स्वयं भी पूर्ण समृद्धि की प्रतीक हैं। अष्टलक्ष्मी अवधारणा में पुष्टि लक्ष्मी (या धन लक्ष्मी) के रूप में वे बल, स्वास्थ्य और धन की दात्री हैं। पुष्टा नाम यह इंगित करता है कि जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उनका जीवन दिन-प्रतिदिन पुष्ट (समृद्ध) होता जाता है। साथ ही यह नाम देवी के स्निग्ध एवं सहृदय स्वरूप को भी दर्शाता है, जो अपने भक्तों का पालन-पोषण माँ की तरह करती हैं।
66. शिवा दुर्गा सप्तशती
शिवा नाम का अर्थ है “कल्याणकारी”। यहाँ शिव से तात्पर्य भगवान शिव नहीं बल्कि शुभता/मंगल से है। दुर्गा सप्तशती की स्तुति में देवी से कहा गया – "दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तुते", जिसमें शिवा का अर्थ कल्याणमयी देवी है। लक्ष्मीजी को शिवा इसीलिए कहते हैं क्योंकि वे स्वयं मंगलमयी हैं और जहाँ विराजती हैं वहाँ शुभ-अशुभ का कल्याण कर देती हैं। उनका यह नाम उनकी मंगलदायिनी शक्ति का परिचायक है।
67. शिवकारी
शिवकारी का शाब्दिक अर्थ है “कल्याण करने वाली”। यह नाम शिवा नाम का ही विस्तार है – लक्ष्मी शुभकारी हैं जो संसार का हित करती हैं। वे अपने भक्तों के जीवन में आनंद, शांति और समृद्धि रूपी कल्याण लाती हैं। सभी शुभ कर्मों में उनकी कृपा शामिल रहती है, इसलिए उन्हें शिव-कार्य (भलाई) करने वाली कहा गया। ऋग्वेद में भी श्री को “मंगलम् यन्न आसादयति स शिवकरी” कहकर संबोधित किया गया है, यानी जो जहाँ जाती हैं वहाँ कल्याण कर देती हैं।
68. सत्य धर्मशास्त्र
सत्य का अर्थ है सत्य स्वरूपा या सत्य पर आधारित। लक्ष्मी को सत्य कहा गया है क्योंकि वे धर्म, सत्य और न्याय की आधारभूत शक्ति हैं। जिस घर में सत्य और धर्म होता है वहाँ लक्ष्मी स्थायी होती हैं। महाभारत में भी कहा गया है कि लक्ष्मी सच्चरित्र और सत्यनिष्ठ लोगों के पास निवास करती हैं। इस प्रकार सत्य नाम से उन्हें उस नैतिक शक्ति के रूप में सराहा गया है जो सत्य के साथ रहती है और उसे फलवती बनाती है।
69. विमला पुराण
विमला का अर्थ है निष्कलंक, बिल्कुल शुद्ध। देवी लक्ष्मी विमला हैं क्योंकि उनमें कोई दोष या कलुष नहीं है। पुराणों में उनका विमला नाम उल्लेखित है।, जो उनके निर्मल, उज्ज्वल स्वरूप का गुणगान करता है। विमला होने के कारण वे अपने आसपास के वातावरण और अपने भक्तों के जीवन को भी पवित्र कर देती हैं। इस नाम द्वारा भक्त उनकी निर्मल कृपा की कामना करते हैं, जो पापों को धोकर जीवन को पवित्र बना देती है।
70. विश्वजननी विष्णु पुराण
विश्वजननी का अर्थ है “संसार की उत्पन्न करने वाली माँ” – अर्थात जगज्जननी। विष्णु पुराण में लक्ष्मी को स्पष्ट रूप से विश्व की माता कहा गया है। विश्व-जननी नाम उसी तथ्य को दोहराता है कि लक्ष्मी ही समस्त सृष्टि की माता हैं। उन्हीं की कोख से (शक्ति से) पूरा ब्रह्मांड जन्म लेता है। इस मातृत्व भाव से भरा हुआ यह नाम हमें याद दिलाता है कि सभी प्राणियों के पोषण और रक्षण के पीछे उसी माँ (लक्ष्मी) की शक्ति काम कर रही है।
71. तुष्टि अष्टलक्ष्मी
तुष्टि का अर्थ है संतोष या संतुष्टि। देवी लक्ष्मी को तुष्टि रूप में इसलिए देखा जाता है क्योंकि उनकी कृपा से ही मनुष्य को आंतरिक संतोष प्राप्त होता है। नवधन (आठ लक्ष्मियाँ) में से एक स्वरूप तुष्टि (संतोष लक्ष्मी) है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है – यह लक्ष्मी ही का एक रूप है। अतः तुष्टि नाम से उनका अभिप्राय उस संतोषदायिनी शक्ति से है जो मानव को लालच छोड़कर संतुष्ट रहना सिखाती है और वास्तविक सुख देती है।
72. दारिद्र्यनाशिनी लक्ष्मी सहस्रनाम
दारिद्र्यनाशिनी का अर्थ है “दरिद्रता (गरीबी) का नाश करने वाली”। यह माता लक्ष्मी का प्रसिद्ध गुण है कि उनकी कृपा से दरिद्रता मिट जाती है। लक्ष्मी सहस्रनाम में दारिद्र्यध्वंसिनी (दारिद्र्य-द्वंसीनी) नाम से उनकी स्तुति की गई है – “वह जो दरिद्रता का नाश करती है” । पौराणिक आख्यानों में भी जब लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं तो दरिद्रता (अलक्ष्मी) का अंत हुआ और समृद्धि लौटी। अतः इस नाम से भक्त प्रार्थना करते हैं कि मां लक्ष्मी उनके जीवन से भी सभी प्रकार की दरिद्रता और अभाव का नाश करें।
73. प्रीति-पुष्करिणी अष्टलक्ष्मी
प्रीति-पुष्करिणी में प्रीति का अर्थ प्रेम/स्नेह है और पुष्करिणी का अर्थ सरोवर (तालाब) है। यानी प्रेम रूपी सरोवर। लक्ष्मी को प्रीति पुष्करिणी इसलिए कहा गया है क्योंकि उनका हृदय प्रेम और करुणा के अथाह सरोवर के समान है। वे अपने भक्तों पर स्नेह लुटाती हैं। नवशक्तियों में प्रेम (प्रीति) को भी लक्ष्मी का रूप माना गया है। इस नाम द्वारा यह दर्शाया गया है कि देवी लक्ष्मी का चरित्र प्रेमपूर्ण है – वे जगत को अपने वात्सल्य रूपी सरोवर से सींचती हैं।
74. शान्ता अष्टलक्ष्मी
शान्ता का अर्थ है “शांत” अथवा शांति प्रदान करने वाली। लक्ष्मी को शान्ता कहा गया है क्योंकि वे कलह का अंत कर घर-परिवार में शांति स्थापित करती हैं। अष्टलक्ष्मी की गणना में शांतिदात्री लक्ष्मी भी मानी गई हैं। जिस स्थान पर लक्ष्मी का वास होता है वहाँ वैर-कलह, अशांति नहीं रहती – वहां मानसिक और पारिवारिक सुख-शांति बनी रहती है। इस प्रकार लक्ष्मी का शान्ता स्वरूप लोक में सुव्यवस्थित, शांतिमय जीवन का आधार है।
75. शुक्लमाल्यांबरा लक्ष्मी ध्यान
शुक्ल-माल्य-अंबरा का अर्थ है “श्वेत पुष्पमाला और सफेद वस्त्र धारण करने वाली देवी”। कई जगह माता लक्ष्मी को गौरवर्णा, श्वेताम्बरा बताया गया है। लक्ष्मी ध्यान श्लोक में आता है: – अर्थात् देवी धवल वस्त्र और सुगंधित फूलों की माला से सुशोभित हैं। श्वेतांबर (सफेद वस्त्र) और श्वेत पुष्पमाला लक्ष्मी की पवित्रता एवं निर्मलता के द्योतक हैं। यह नाम उसी शास्त्रीय विवरण को दर्शाता है कि लक्ष्मीजी उज्ज्वल सफेद वस्त्र और मालाएँ पहनती हैं, जो उनकी शीतलता व पवित्रता का प्रतीक है।
76. श्री वेद, पुराण
श्री शब्द स्वयं में समृद्धि, सौभाग्य और ऐश्वर्य का सूचक है। लक्ष्मी का यह वैदिक नाम है – उन्हें श्री इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वे तेज, ऐश्वर्य और कल्याण की अधिष्ठात्री हैं। “श्री” नाम विशेषतः उनके उस रूप को दर्शाता है जो समस्त धन-धान्य, मान-सम्मान और राजसी विभूति का मूल है। वैदिक ऋचाओं में श्री को सर्व मंगल और समृद्धि की अधिदेवी माना गया है। भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं: “यत्नों में मैं श्री (कौशल) हूँ” – यहाँ श्री का अर्थ लक्ष्मी से है। अतः श्री नाम से देवी लक्ष्मी की समस्त ऐश्वर्य एवं सौभाग्य देने वाली शक्ति की स्तुति होती है।
77. भास्करी विष्णु पुराण
भास्करी का अर्थ है “भास्कर (सूर्य) के समान प्रकाशमान”। विष्णु पुराण में कहा गया कि विष्णु सूर्य के समान तेजस्वी हैं और लक्ष्मी सूर्य के उस प्रकाश (कांति) की अधिष्ठात्री हैं। अतः देवी लक्ष्मी को भास्करी नाम दिया गया, क्योंकि उनका तेज सूर्य की प्रभा जैसा दैदीप्यमान है। इसके अतिरिक्त भास्करी नाम इस बात की ओर भी संकेत करता है कि वे सभी को प्रकाशमान भाग्य (रोशन किस्मत) प्रदान करती हैं – जिस पर उनकी कृपा हो, उसका भाग्य सूरज की तरह चमक उठता है।
78. बिल्वनिलया शैव/शक्त परंपरा
बिल्वनिलया का अर्थ है “बिल्व (बेल) वृक्ष में निवास करने वाली”। पद्मपुराण आदि में कथा है कि देवी लक्ष्मी के हृदय से बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुआ और वह शिव को अति प्रिय हो गया। इसके अलावा एक लोककथा के अनुसार लक्ष्मी ने एक बार कोल्हापुर (करवीर क्षेत्र) में बिल्ववृक्षों के वन में निवास किया था उन्हें करवीरवासिनी कहा गया। इन कथाओं के कारण लक्ष्मी का एक नाम बिल्वनिलया भी प्रसिद्ध हुआ। बिल्व वृक्ष देवी लक्ष्मी का प्रतीक बन गया – बिल्वपत्र और बिल्वफल को पूजन में शुभ माना जाता है। यह नाम स्मरण दिलाता है कि देवी लक्ष्मी की कृपा से ही शिव को प्रिय वह पवित्र बिल्व प्रादुर्भूत हुआ, और लक्ष्मी उस वृक्ष में निवास कर धरती को पवित्र करती हैं।
79. वरारोहा ललिता सहस्रनाम
वरारोहा शब्द के कई अर्थ संभव हैं, पर सामान्यतः यह नारी सौंदर्य और शुभ वरदान दोनों से जुड़ा है। ललिता सहस्रनाम में वरारोहा शब्द का प्रयोग देवी के सुंदर आलिंगन या सुगठित जंघा-सौंदर्य के लिए हुआ है। लक्ष्मी के संदर्भ में वरारोहा का अर्थ “श्रेष्ठ आरोह वाली” या “सर्वोत्तम रूप में प्रतिष्ठित” लिया जा सकता है। कुछ व्याख्याओं में इसे “उत्तम जंघाओं वाली” देवी कहा गया है (सौंदर्यसूचक), वहीं अन्य इसे “श्रेष्ठ आसन (अरूह) पर आसीन” या “श्रेष्ठ वाहन पर आरूढ़” मानते हैं। इस नाम से लक्ष्मी की परम सौंदर्यमयी एवं उन्नत प्रतिष्ठा का बखान होता है।
80. यशस्विनी पुराण
यशस्विनी का अर्थ है “यश से युक्त” अर्थात अति ख्यातिप्राप्त या कीर्तिमयी। देवी लक्ष्मी को यशस्विनी कहा जाता है क्योंकि समस्त यश और कीर्ति का मूल भी वे ही हैं। नवगुणों में “कीर्ति (यश)” एक लक्ष्मी का रूप माना गया है। जिस व्यक्ति पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उसे संसार में यश और सम्मान मिलता है। इस प्रकार लक्ष्मी स्वयं जगत की यशस्विनी हैं – उनके महात्म्य का यश तीनों लोकों में गाया जाता है। यह नाम उनके गौरवशाली, सर्वपूजित स्वरूप का द्योतक है।
81. वसुन्धरा अष्टलक्ष्मी (भू देवी)
वसुन्धरा का अर्थ है “धन देने वाली धरती” या पृथ्वी। देवी लक्ष्मी का एक रूप भू देवी हैं, जो स्वयं पृथ्वी हैं। अष्टलक्ष्मियों में भू-लक्ष्मी (या धरती माता) भी लक्ष्मीजी का प्रमुख रूप है। वसुन्धरा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि देवी पृथ्वी सबको धन, धान्य, औषधि, जल आदि जीवनोपयोगी संपदा प्रदान करती है। वसु का अर्थ धन और धरा = धारण करना; इस प्रकार वसुन्धरा यानी जो धन का धारण-पोषण करती है – पृथ्वी माता स्वरूपा लक्ष्मी।
82. उदाराङ्गी (उदारांगा)
उदारांगी का शाब्दिक अर्थ है “उदार/सुंदर अंगों वाली”। यह नाम देवी के सौन्दर्य और उनके हृदय की उदारता दोनों को दर्शाता है। लक्ष्मीजी को उदारांग कहा जाता है क्योंकि उनका स्वरूप परम सुंदर है और वे अत्यंत उदा र हृदय वाली हैं – सबको दान देना, शुभ करना उनका स्वभाव है। उदारांगी नाम में यह भावना निहित है कि देवी अंग-प्रत्यंग से सौंदर्यमयी होने के साथ-साथ स्वभाव से उदार और दयालु हैं। उनकी उदारता रूपी सुंदरता से जगत अभिभूत रहता है।
83. हरिणी पुराण
हरिणी का शाब्दिक अर्थ है “हरिण (मृग) समान चंचल/कोमल”। देवी लक्ष्मी को हरिणी कहा गया है क्योंकि उनका स्वभाव कोमल एवं मनोहारी है, जैसे हरिणी होती है। पुराणों में लक्ष्मी के नामों की सूची में हरिणी नाम भी मिलता है। यह नाम लक्ष्मीजी की सुकोमल, चपल और आकर्षक छवि को व्यक्त करता है – जैसे हिरणी की आँखें बड़ी और सुंदर होती हैं, वैसे ही लक्ष्मी की आँखें कमल के समान बड़ी और कोमल हैं। साथ ही हरिणी की भांति उनकी गति (लीला) भी अप्रत्याशित और दिव्य है।
84. हेममालिनी पुराण
हेममालिनी का अर्थ है “स्वर्ण की माला धारण करने वाली”। हेम मतलब सोना और मालिनी यानी माला पहनने वाली देवी। लक्ष्मी को स्वर्ण आभूषण और माला अति प्रिय हैं – वे स्वयं भी स्वर्णाभूषणों से विभूषि त रहती हैं। पुराणों में हेममालिनी नाम लक्ष्मी को संबोधित करता है। यह नाम संकेत करता है कि देवी लक्ष्मी के गले में सुवर्ण हार सुशोभित है, जो उनके धवल स्वरूप पर चमकता है। स्वर्णमालाधारी होने से उनका वैभव और ऐश्वर्य प्रकट होता है।
85. धनधान्यकरी अष्टलक्ष्मी
धन-धान्यकरी का अर्थ है “धन और अन्न देने वाली”। लक्ष्मी का यह रूप हम दैनिक जीवन में देखते हैं – उनकी कृपा से आर्थिक संपन्नता (धन) और अन्न की प्रचुरता (धान्य) प्राप्त होती है। अष्टलक्ष्मी में धनलक्ष्मी और धान्यलक्ष्मी दो रूप इसी धन-धान्य की दात्री के रूप में पूजे जाते हैं। धनलक्ष्मी रूप में वे स्वर्ण, धन आदि देती हैं, वहीं धान्यलक्ष्मी रूप में अन्न एवं खाद्य सामग्री की भरपूर कृपा करती हैं अतः धनधान्यकरी नाम से उनका सार रूप में आह्वान किया जाता है कि वे जीवन में आर्थिक व खाद्य सम्पन्नता भर दें।
86. सिद्धि लक्ष्मी सहस्रनाम
सिद्धि का अर्थ है “सफलता” या “अलौकिक शक्ति”। लक्ष्मी को सिद्धि कहा जाता है क्योंकि वे धर्म, अर्थ , काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ में सफलता दिलाने वाली शक्ति हैं। सिद्धिलक्ष्मी नाम से भी उनकी आराधना होती है। लक्ष्मी सहस्रनाम में सिद्धलक्ष्मी नाम से देवी को सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली बताया गया है। भक्त जन मानते हैं कि विद्या, कला, व्यापार या साधना – हर क्षेत्र की सफलता के लिए लक्ष्मी की कृपा (सिद्धि) आवश्यक है। इसलिए देवी का यह नाम प्रत्येक कार्य में उनकी आवश्यकता को दर्शाता है।
87. स्त्रैणसौम्या (सदासौम्या) वरलक्ष्मी कथा
स्त्रैण-सौम्या का अर्थ संभवतः “स्त्रियों पर सौम्यता/दया रखने वाली” है (कुछ पाठांतरों में सदा सौम्या भी मिलता है जिसका अर्थ सदा शांति प्रदान करने वाली होता है)। देवी लक्ष्मी को स्त्री जाति की रक्षक भी माना गया है – सुशील स्त्रियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। वरलक्ष्मी व्रत की कथा में यह प्रसंग है कि पुण्यवती नारी चरुमति पर लक्ष्मी इतनी प्रसन्न हुईं कि स्वप्न में आकर व्रत करने को कहा और व्रत से प्रसन्न होकर उसके सहित अन्य स्त्रियों के शरीर पर स्वर्णाभूषण प्रकट कर दिए। यह कथा दर्शाती है कि लक्ष्मी सुहागन स्त्रियों की सौम्य संरक्षिका हैं। अतः स्त्रैणसौम्या नाम उनके उस रूप का द्योतक है जिसमें वे नारी सम्मान और कल्याण की अधिष्ठात्री हैं।
88. शुभप्रदा शास्त्र
शुभप्रदा का अर्थ है “शुभ (मंगल) प्रदान करने वाली”। देवी लक्ष्मी को शुभप्रदा कहते हैं क्योंकि वे अपने भक्तों को जीवन के सभी शुभ फल प्रदान करती हैं – जैसे धन, सुख, स्वास्थ्य, संतति, कीर्ति आदि। वे अपने आगमन से ही घर में सुख-शांति ले आती हैं। मंगलमूर्ति गणेश के साथ भी लक्ष्मी का नाम जोड़ा जाता है (शुभ-लाभ) । पुराणों में लक्ष्मी को शुभां कहकर पुकारा गया है जिसका भाव यही है कि वे मंगल की उत्प्रेरक हैं। अतः शुभप्रदा नाम से लक्ष्मी के उस कल्याणकारी रूप की स्तुति की जाती है जो भक्तों के जीवन में सर्वथा मंगल ही मंगल भर देता है।
89. नृपवेश्मगतानन्दा लोक-विश्वास
नृप-वेेश्म-गत-आनन्दा का अर्थ है “राजाओं के महलों में जाकर आनंद देने वाली”। यह नाम बताता है कि देवी लक्ष्मी राजाओं (शासकों) के भवन में वास करती हैं और वहाँ ऐश्वर्य तथा आनंद भर देती हैं। प्राचीन मान्यता थी कि जहां धर्मपरायण राजा होता है, वहाँ लक्ष्मी स्थायी रहती हैं जिससे राज्य सुखी और समृद्ध होता है। श्रीराम राज्य इसका उदाहरण है जहां प्रजा लक्ष्मी-कृपा से आनंदित थी। लक्ष्मी के इस नाम से संकेत है कि वे समृद्धि को राजप्रासादों से लेकर सामान्य गृहों तक ले जाती हैं, किंतु विशेषतः वह राज्य सुखी होता है जहाँ लक्ष्मी (धन-नैतिकता) का निवास हो।
90. वरलक्ष्मी भविष्योत्तर पुराण
वरलक्ष्मी का अर्थ है “वरणीय लक्ष्मी” या “वर देने वाली लक्ष्मी”। भविष्योत्तर पुराण में वर्णित वरलक्ष्मी व्रत की महिमा से यह नाम प्रसिद्ध हुआ है। कथा में स्वयं शिव पार्वती से कहते हैं कि वरलक्ष्मी व्रत करने से लक्ष्मीजी सहज प्रसन्न होकर सारे वर (मनोकामनाएँ) पूर्ण करती हैं। इसी कारण व्रत का नाम भी वरलक्ष्मी पड़ा – यानी इच्छा पूर्ति करने वाली लक्ष्मी। यह नाम सीधे तौर पर दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी सभी प्रका र के वरदान देने में समर्थ हैं और भक्तों की पुकार पर उन्हें मनचाहा फल देती हैं।
91. वसुप्रदा अष्टलक्ष्मी
वसु-प्रदा का अर्थ है “धन (वसु) प्रदान करने वाली”। देवी लक्ष्मी ही समस्त धन-संपदा की दात्री हैं। अष्टलक्ष्मी में धनलक्ष्मी स्वरूप इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि लक्ष्मी की कृपा से धन-वर्षा होती है। विष्णु पुराण में भी कहा गया कि लक्ष्मी के बिना कोई भी धनवान नहीं हो सकता। वसुप्रदा नाम में लक्ष्मी के इस धनदायी रूप का गुणगान है – वे चाहें तो रंक (निर्धन) को पल में राजा बना दें। अतः इस नाम से देवी से प्रार्थना की जाती है कि वे कृपा कर अपार धन प्रदान करें।
92. शुभा स्तुति
शुभा का अर्थ है कल्याणमयी या स्वयं शुभत्व से युक्त। लक्ष्मी को शुभा कहा गया है क्योंकि वे साक्षात शुभ-शक्ति हैं – जहाँ वे रहती हैं वहाँ अशुभ कुछ नहीं टिकता। शास्त्र कहते हैं, “यस्य गृहे स्थिता लक्ष्मीः तस्य शुभं ही शुभम्” – जिसके घर लक्ष्मी हैं वहाँ प्रत्येक घटना शुभफलदायी होती है। इसीलिए लक्ष्मीजी को शुभां (शुभस्वरूपा) कहते हैं। यह नाम उनके मंगलदायक और पवित्र गुणों को संक्षेप में प्रकट करता है।
93. हिरण्यप्राकारा वेद (श्रीसूक्त)
हिरण्यप्राकारा का शाब्दिक अर्थ है “सोने की प्राचीर/परिवेश से युक्त”। श्रीसूक्त में लक्ष्मी को “हिरण्यप्राकारमा” कहा गया है, जिसमें भाव है कि देवी चारों ओर स्वर्णिम आभा से घिरी हैं। उनका निवास स्वर्ण-प्राचीरों वाले वैकुण्ठ धाम में है। इस नाम से माँ लक्ष्मी की अपार संपदा और तेज का पता चलता है – वे स्वर्ण महलों में निवास करने योग्य हैं और उनका परिवेश सोने जैसा उज्ज्वल है। साथ ही यह नाम यह भी दर्शाता है कि जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उनके चारों ओर सोने सी चमकती सुख-संपदा की दीवार खड़ी हो जाती है जो हर संकट को रोके रहती है।
94. समुद्रतनया विष्णु पुराण
समुद्रतनया का अर्थ है “समुद्र की पुत्री”। यह देवी लक्ष्मी का प्रसiddhi नाम है क्योंकि वे क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न हुई थीं। विष्णु पुराण, हरिवंश आदि में लक्ष्मी को क्षीरसागर-मंथन से उद्भवित बताया गया और क्षीराब्धि-कन्या या सागरतनया जैसे विशेषण दिए गए। समुद्रतनया नाम उसी पौराणिक घटना की ओर सीधा संकेत करता है – की लक्ष्मीजी समुद्र-राज की कन्या हैं। इस नाम के स्मरण से भक्त उस कथा को याद करते हैं जिसमें देवताओं ने उन्हें समुद्र से प्राप्त कर श्री रूप में सम्मानित किया था।
95. जया दुर्गा सप्तशती
जया का अर्थ है “विजयिनी” (सदैव विजय पाने वाली)। देवी-देवताओं के लिए जय संज्ञा का प्रयोग होता है, जैसे दुर्गाजी को “जयन्ती” कहा गया है। लक्ष्मीजी को जया कहने का तात्पर्य है कि वे स्वयं भी सभी संघर्षों में विजयी हैं और अपने भक्तों को भी विजय दिलाती हैं। पौराणिक कथाओं में गजलक्ष्मी रूप में उन्होंने देवराज इंद्र को खोया ऐश्वर्य वापस दिलाया था – यह विजय का प्रतीक है। अतः जया नाम से उनका आवाहन कर भक्त जीवन के संग्रामों में विजय का आशीर्वाद मांगते हैं।
96. मङ्गला (देवी) दुर्गा सप्तशती
मङ्गला देवी अर्थात “मंगल (शुभ) करने वाली देवी”। दुर्गा सप्तशती के पाठ में देवी को मङ्गला नाम से संबोधित किया गया – “जयन्ती मङ्गला काली…” जिसमें मङ्गला का अर्थ है शुभदायिनी। लक्ष्मी स्वयं परम मङ्गलमयी देवी हैं, वे अपने भक्तों के जीवन में सौभाग्य और शुभ घटनाएँ लाती हैं। मंगला गौरी व्रत और शुक्रवार के श्री व्रत में भी लक्ष्मी से घर-परिवार में अखंड मंगल बनाए रखने की प्रार्थना की जाती है। इसलिए यह नाम उनके परम मंगलमय, शुभकारी स्वरूप का स्मरण दिलाता है।
97. विष्णुवक्षस्थलस्थिता पुराण
विष्णु-वक्षःस्थल-स्थिता का अर्थ है “विष्णु के वक्षस्थल (सीने) में प्रतिष्ठित”। यह नाम दर्शाता है कि माता लक्ष्मी सदा भगवान विष्णु के हृदय में निवास करती हैं। पुराणों में वर्णित है कि लक्ष्मी विष्णु के वक्ष पर विराजमान हैं, इसलिए विष्णु को श्रीनिवास (श्री का निवास) कहा जाता है। स्वयं ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में कहा गया “लक्ष्मी उनके (पुरुष के) हृदयरूप में पत्नि हैं”। विष्णु के हृदय में निवास का यह भाव भक्तों को सिखाता है कि वे भगवान के हृदय में दया और प्रेमरूप से स्थित हैं। इस तरह विष्णुवक्षस्थलस्थिता नाम से लक्ष्मी के विष्णु के साथ अभिन्न संबंध (हृदय में सदाविकार) को व्यक्त किया जाता है।
98. विष्णुपत्नी वेद (पुरुषसूक्त)
विष्णुपत्नी यानी भगवान विष्णु की पत्नी। यह नाम सरल होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे लक्ष्मी की पहचान विष्णु से जुड़ी हुई है। ऋग्वेद के प्रसिद्ध पुरुषसूक्त में स्पष्ट कहा गया – “लक्ष्मीश्च पत्नीयम्” अर्थात भगवान नारायण की पत्नी लक्ष्मी ही हैं। सभी पुराणों में भी लक्ष्मी को विष्णुपत्नी (श्रीदेवी) के रूप में पूजा गया है। इस नाम से शाश्वत सत्य स्थापित होता है कि नारायण और लक्ष्मी सदा साथ हैं – भक्त पहले लक्ष्मी (करुणामयी माँ) की शरण जाते हैं, जो पति विष्णु से उन्हें क्षमा दिलाती हैं।
99. प्रसन्नाक्षी पुराण
प्रसन्नाक्षी का अर्थ है “प्रसन्न (हँसते हुए) नेत्रों वाली देवी”। लक्ष्मीजी को प्रसन्नाक्षी कहा जाता है क्योंकि उनके नेत्र सदैव आनंद और दया से भरे होते हैं। उनका हर दृष्टिपात ऐसा है मानो प्रेम बरसा रहा हो। पौराणिक वर्णनों में उनका प्रसन्नाक्षी/प्रसन्नदर्शना रूप बड़ी सहजता से दिखाया गया है – जैसे गरुड़पुराण में श्री को “विलासपूर्ण कटाक्षों वाली” कहा गया। प्रसन्नाक्षी नाम यह विश्वास दिलाता है कि माता लक्ष्मी प्रसन्नचित्त हो अपने भक्तों पर प्रेमपूर्ण दृष्टि डाल रही हैं और उनके दुःख हर रही हैं।
100. नारायणसमाश्रिता वैष्णव परंपरा
नारायण-समाश्रिता का अर्थ है “नारायण का आश्रय लेकर रहने वाली”। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मीजी सदैव भगवान नारायण के आश्रित रहती हैं – वे उनसे कभी अलग नहीं होतीं। वे नारायण के वक्ष में, उनके हृदय में, तथा उनके सान्निध्य में नित्य विराजमान हैं। इस अटूट साथ के कारण ही उन्हें नारायणी भी कहा जाता है। नारायण-समाश्रिता नाम यह दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी को स्वयं सर्वाश्रय नारायण का सहचर्य प्राप्त है, इसलिए वे अभय हैं और अपने भक्तों को भी परमेश्वर की शरण में ले जाकर अभय कर देती हैं।
101. दारिद्र्यध्वंसिनी लक्ष्मी सहस्रनाम
दारिद्र्यध्वंसिनी का अर्थ “दरिद्रता का ध्वंस (नाश) करने वाली” – यह दारिद्र्यनाशिनी (नाम क्रमांक 72) का ही समानार्थी नाम है। सहस्रनाम स्तोत्र में यह नाम लक्ष्मी की कृपा से दरिद्रता मिट जाने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वस्तुतः हिंदू शास्त्रों में श्री (लक्ष्मी) को श्रीहरि की योगमाया कहा गया है – जहाँ श्री नहीं, वहाँ अश्री (दरिद्रता) है। अतः जहाँ लक्ष्मी स्थापित होती हैं, वहाँ से दरिद्रता, क्लेश अपने आप मिट जाते हैं। इस नाम द्वारा भक्त अपनी निर्धनता के विनाश की कामना लक्ष्मी से करते हैं।
102. देवी (महादेवी) देवी उपनिषद
देवी नाम का पुनः उल्लेख यह दर्शाता है कि लक्ष्मी ही समस्त देवियों की अधिष्ठात्री महादेवी हैं। देवी उपनिषद में आदिशक्ति कहती हैं – “मैं ही ब्रह्मविद्या हूँ, रुद्राणी (पार्वती) हूँ, वाराही, वैष्णवी, लक्ष्मी, सरस्वती सब मैं ही हूँ”। अतः लक्ष्मी इस दृष्टि से स्वयं महादेवी हैं। यहाँ दूसरी बार देवी नाम उल्लिखित करके यह इंगित किया गया है कि यद्यपि इस सहस्रनाम/शतनाम में विविध विशेषण हैं, किन्तु लक्ष्मी अंततः वही एकदेवी हैं जिन्हें भिन्न नामों से पुकारा गया।
103. सर्वोपद्रववारिणी पुराण
सर्व-उपद्रव-वारिणी का अर्थ है “सभी आपदाओं/उपद्रवों को वारने (टालने) वाली”। यह नाम दर्शाता है कि माता लक्ष्मी की कृपा से बड़े से बड़े संकट टल जाते हैं। जब वे साथ हों तो कोई उपद्रव पास नहीं फटकता। श्रीसूक्त में भी प्रार्थना है कि “हे लक्ष्मी, मेरी सब विपदाओं को दूर करो”। विष्णु के साथ होने के कारण लक्ष्मी रक्षक स्वरूपा भी हैं – भक्तों के सभी विघ्न-बाधाओं का निवारण वे करती हैं। इस नाम द्वारा लक्ष्मीजी को विश्व की संकटमोचक देवी के रूप में स्मरण किया जाता है।
104. नवदुर्गा लक्ष्मी तंत्र, नारद पुराण
नवदुर्गा का अर्थ है देवी दुर्गा के नौ रूप। शाक्त मत में दुर्गा के नौ रूपों को (शैलपुत्री आदि) नवदुर्गा कहा जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि में होती है। लक्ष्मी तंत्र तथा स्कान्द पुराणान्तर्गत लक्ष्मी सहस्रनाम में लक्ष्मी को परमाद्या महादेवी कहा गया है और दुर्गा, महाकाली, महासरस्वती आदि शक्तियाँ लक्ष्मी के ही विभिन्न रूप बताए गए हैं। नारद पुराण में भी लक्ष्मी के शक्तिशाली रूपों को दुर्गा आदि नामों से वर्णित किया गया है। इस प्रकार नवदुर्गा नाम का उल्लेख लक्ष्मी की सर्वशक्तिमान रूप में दुर्गा समेत समस्त देवियों की अधीश्वरी के अर्थ में होता है।
105. महाकाली लक्ष्मी सहस्रनाम, देवी महात्म्य
महाकाली का अर्थ है “महान काली” – अर्थात काल का संहार करने वाली महामाया। लक्ष्मी सहस्रनाम में लक्ष्मी की महिमा महादेवी, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूपों में गाई गई है। देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) में भी लक्ष्मी को महाकाली के रूप में पूजकर असुरों का नाश करने वाली कहा गया है। पौराणिक कथा में जब दुर्गम नामक असुर ने अत्याचार बढ़ाया तो लक्ष्मी ने दुर्गा रूप धारण कर उसे मारा और तभी से उनका नाम दुर्गा/काली पड़ा। इसप्रकार महाकाली नाम भगवती लक्ष्मी के उग्रतारिणी रूप को इंगित करता है, जिसमें वे समय (काल) को भी जीत लेती हैं।
106. ब्रह्माविष्णुशिवात्मिका शक्त परंपरा
ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका का अर्थ है “ब्रह्मा, विष्णु, शिव – इन तीनों की आत्मस्वरूप शक्ति”। शास्त्रों में एक ओर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की शक्तियाँ सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती बताई गई हैं, तो दूसरी ओर श्रीविद्या परंपरा में लक्ष्मी को स्वयं पराशक्ति मानकर त्रिदेवों की उत्पत्ति का स्रोत कहा गया है। देवी उपनिषद में आदिशक्ति कहती हैं – “ब्रह्मयोनि अहमस्मि” – अर्थात मैं ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव की जननी शक्ति हूँ। इस नाम से लक्ष्मीजी का वही सर्वोत्पत्तिकारिणी पराशक्ति स्वरूप प्रकट होता है कि त्रिदेव भी जिनसे ऊर्जा पाते हैं , वह शक्ति लक्ष्मी ही हैं।
107. त्रिकालज्ञानसम्पन्ना शास्त्र
त्रिकाल-ज्ञान-संपन्ना का अर्थ है “भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों काल का पूर्ण ज्ञान रखने वाली”। यह देवी के सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले) स्वरूप को इंगित करता है। लक्ष्मीजी को सर्वज्ञ शक्ति माना जाता है – वे सभी जीवों के गत, आगत और वर्तमान का ज्ञान रखती हैं। देवीभागवत आदि पुराणों में कहा गया है कि देवी की दृष्टि समस्त लोकों और कालों पर एकसमान रहती है – वे ईश्वरीय ज्ञान की अधीश्वरी हैं। इस नाम से भक्त विश्वास करते हैं कि माँ लक्ष्मी को उनके मन की, भविष्य की सब बात ज्ञात है; अतः वे हमारी उचित मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगी।
108. भुवनेश्वरी लक्ष्मी सहस्रनाम, तंत्र
भुवनेश्वरी का अर्थ है “तीनों लोकों की ईश्वरी” (भुवन = जगत, ईश्वरी = अधिपति देवी)। यह भी आद्या शक्ति (महादेवी) का एक नाम है, जो दस महाविद्याओं में गिना जाता है। लक्ष्मी सहस्रनाम में भी भुवनेश्वरी नाम से लक्ष्मी की स्तुति की गई है। देवी लक्ष्मी वास्तव में समस्त ब्रह्मांड की संचालिका हैं – त्रिलोक्य की संपदा की स्वामिनी होने के कारण वे भुवनेश्वरी हैं। इस अंतिम नाम के साथ सारतः लक्ष्मीजी की सर्वव्योापक महाशक्ति का बोध होता है कि वे ही इस संपूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री राजेश्वरी हैं।


लक्ष्मीदेवीमहालक्ष्मीसौभाग्यश्रीशक्ति
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जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।
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जानिए देवी लक्ष्मी जी के वे 108 नाम जो समृद्धि, शांति और शुभ ऊर्जा का आह्वान करते हैं – हर नाम स्वयं में एक मंत्र है।

जानिए देवी लक्ष्मी जी के वे 108 नाम जो समृद्धि, शांति और शुभ ऊर्जा का आह्वान करते हैं – हर नाम स्वयं में एक मंत्र है।AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

देवी लक्ष्मी के 108 नाम

नीचे देवी महालक्ष्मी के 108 प्रमुख नाम उनकी व्याख्या और शास्त्रीय स्रोतों के साथ तालिका में दिए गए हैं। प्रत्येक नाम का अर्थ बताते हुए यह समझाया गया है कि लक्ष्मी को वह नाम क्यों दिया गया, तथा संभव हो तो प्रामाणिक शास्त्र/पुराण से संदर्भ जोड़ा गया है।

क्रम. नाम (देवी लक्ष्मी) स्रोत/संदर्भनाम का अर्थ एवं कारण (कैसे/क्यों पड़ा)
1. प्रकृति गरुड़ पुराण आदि
देवी लक्ष्मी को प्रकृति कहा गया है क्योंकि वे सृष्टि की मूल आदिशक्ति हैं। गरुड़ पुराण में लक्ष्मी को महालक्ष्मी रूप में प्रकृति (मूल भौतिक प्रकृति) माना गया है, जो विश्व की रचना, पालन और संहार में विष्णु की सहायक शक्ति हैं। इस प्रकार समस्त सृष्टि की उत्पत्ति होने के कारण उनका नाम प्रकृति पड़ा।
2. विकृति लक्ष्मी तंत्र परंपरा
विकृति का अर्थ है परिवर्तन या विविध रूप। लक्ष्मी को विकृति इसलिए कहते हैं क्योंकि वे प्रकृति की विविध परिवर्तित अवस्थाओं में प्रकट होती हैं। संपूर्ण जगत में जो परिवर्तन और विविधता है, वह लक्ष्मी की ही शक्ति से है – प्रकृति के विभिन्न रूपों में उनका विस्तार है। अतः देवी के अनेक रूपों (जैसे श्री, भू, दुर्गा आदि) में प्रकट होने के कारण उन्हें विकृति कहा गया है।
।. विद्या विष्णु पुराण
विद्या अर्थात ज्ञान। विष्णु पुराण में लक्ष्मी को श्री कहा गया है जो विष्णु की ज्ञान-दृष्टि हैं – “विष्णु ज्ञान हैं तो श्री उनकी अंतरदृष्टि (बुद्धि) हैं। अर्थात लक्ष्मी स्वयं आध्यात्मिक एवं लौकिक ज्ञान का स्वरूप हैं। भक्तों को आत्मिक ज्ञान प्रदान करने वाली होने से उन्हें विद्या रूप में पूजा जाता है।
4. सर्वभूतहितप्रदा
सर्वभूतहितप्रदा का अर्थ है “सभी प्राणियों का हित प्रदान करने वाली”। यह नाम दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी समस्त जीवों के कल्याण हेतु कार्य करती हैं। वे सभी प्राणियों को जीवनोपयोगी धन-धान्य, सुख-संपदा और कृपा प्रदान करती हैं। लोकमान्यता है कि उनकी कृपा से संपूर्ण जगत का पालन होता है, इसीलिए उन्हें सर्व भूतों का हित करने वाली कहा गया है।
5. श्रद्धा पुराण
श्रद्धा यानी भक्ति और अटल आस्था। देवी लक्ष्मी को श्रद्धा कहा जाता है क्योंकि वे ईश्वर में श्रद्धा के रूप में हृदय में विराजित रहती हैं और भक्तों में विश्वास एवं भक्ति उत्पन्न करती हैं। पुराणों में लक्ष्मी के नामों में श्रद्धा का भी उल्लेख मिलता है।, जो दर्शाता है कि वे भक्तों की आस्था की अधिष्ठात्री देवी हैं।
6. विभूति विष्णु पुराण, श्रीसूक्त
विभूति का शाब्दिक अर्थ है ऐश्वर्य या चमत्कारिक शक्ति। विष्णु पुराण आदि में वर्णन है कि भगवान विष्णु के सभी ऐश्वर्य, तेज और विभूतियाँ श्री (लक्ष्मी) से ही प्राप्त होती हैं। इसलिए लक्ष्मी को विभूति कहा गया – क्योंकि वे स्वयं समस्त ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री हैं और धन, वैभव, यश जैसी विभूतियाँ उन्हीं से प्रसादरूप में प्राप्त होती हैं।
7. सुरभि विष्णु पुराण
सुरभि का अर्थ है “कामधेनु गाय” या सुगंधित। समुद्र-मंथन की कथा में देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कामधेनु गाय (जिसे सुरभि भी कहते हैं) प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी समृद्धि की दात्री हैं और कामधेनु भी समृद्धि का प्रतीक है, इसलिए लक्ष्मी का एक नाम सुरभि भी है। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि जैसे कामधेनु सभी इच्छाएँ पूर्ण करती है, वैसे ही लक्ष्मी की कृपा से भी सभी धन-धान्य की कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
8. परमत्मिका दुर्गा सप्तशती एवं तंत्र
परमात्मिका का अर्थ है “परम आत्मस्वरूपा” – अर्थात परमात्मा (ईश्वर) की आत्मशक्ति के रूप में उपस्थित। शास्त्रों में लक्ष्मी को विष्णु की योगमाया माना गया है, जो परमात्मा की सृजन शक्ति हैं। वे स्वयं परम ब्रह्म की शक्ति तथा समस्त सृष्टि की आत्मा हैं। इसीलिए उन्हें परमात्मिका कहा जाता है, क्योंकि वे परमात्मा के साथ अभिन्न स्वरूप रखती हैं।
9. वाक् (वाच) विष्णु पुराण
वाक् का अर्थ वाणी या वाक्शक्ति है। विष्णु पुराण के अनुसार श्री (लक्ष्मी) वाणी हैं और विष्णु अर्थ (सार) हैं – “विष्णु अर्थ हैं और श्री वाणी (वाक्) हैं। अर्थात ज्ञान को व्यक्त करने वाली वाणी भी लक्ष्मीस्वरूपा है। उन्हें वाग्देवी के रूप में भी पूजा जाता है – इस नाम से संकेत मिलता है कि देवी लक्ष्मी समस्त शुभ वचनों और वेदवाणियों की अधिष्ठात्री हैं।
10. पद्मालय आइकोनोग्राफी
पद्मालय का अर्थ है “कमल का निवास” – अर्थात जो कमल में निवास करती हैं। देवी लक्ष्मी को कमल पर विराजमान दिखाया जाता है और उन्हें “कमलवासिनी” कहा जाता है। श्रीसूक्त में भी उनका वर्णन कमल पर आसीन, कमल को हाथ में धारण करने वाली के रूप में है। क्योंकि वे कमल पुष्प को आसन के रूप में धारण करती हैं, अतः उनका नाम पद्मालय (कमल-आलया) प्रसिद्ध हुआ।
11. पद्मा विष्णु पुराण, श्रीसूक्त
पद्मा यानी कमल। देवी लक्ष्मी को पद्मा कहा जाता है क्योंकि समुद्रमंथन से प्रकट होते समय उनके हाथों में कमल था और वे स्वयं कमल के साथ अवतरित हुईं। “कमला” और “पद्मा” उनके अत्यंत प्रचलित नाम हैं जो यह दर्शाते हैं कि वे कमल के समान कोमल, पवित्र एवं शोभामयी हैं। पुराणों में कहा गया है कि समुद्र से प्रकट होने के कारण लक्ष्मी को पद्मा (कमलिनी) और कुमारिका कहा गया तथा वे कमलधारिणी होने से पद्मा नाम से पूजित हैं।
12. शुचि
शुचि का अर्थ है पवित्र या निर्मल। देवी लक्ष्मी को शुचि कहा जाता है क्योंकि वे निर्मल हृदय वाली और शुद्ध स्वरूपा हैं। लक्ष्मी जहाँ रहती हैं वहाँ पवित्रता और शुभता स्वतः आ जाती है। वे पापरहित (निर्दोष) दिव्य प्रकृति की हैं, इसलिए अनघा और विमला नामों की तरह शुचि नाम भी उनकी पावनता को इंगित करता है।
13. स्वाहा दुर्गा सप्तशती, देवी उपासना
वैदिक यज्ञ परंपरा में स्वाहा मंत्र द्वारा देवताओं को हवन अर्पित किया जाता है। देवी के रूप में स्वाहा अग्नि की पत्नी और सभी देव होम की शक्ति मानी जाती हैं। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है: "त्वं स्वाहा" – हे देवी, तुम वह स्वाहा हो जिसके उच्चारण से देवताओं को हविष्य प्राप्त होता है। अर्थात् लक्ष्मी को स्वाहा रूप में देवताओं को तृप्त करने वाली शक्ति माना गया है, इसलिए उनका एक नाम स्वाहा है।
14. स्वधा दुर्गा सप्तशती
श्राद्ध एवं पितृ-तर्पण में स्वधा मन्त्र उच्चारित कर पितरों को अर्घ्य दिया जाता है। देवी को स्वधा भी कहा गया है क्योंकि वे पितरों को समर्पित अन्न-जल की शक्ति स्वरूप हैं। देवी माहात्म्य में स्तुति है: "त्वं स्वधा" – हे देवी, तुम ही वह स्वधा हो जिसके माध्यम से पितृगण तृप्त होते हैं। इस प्रकार लक्ष्मी स्वधा देवी के रूप में पितरों का हित करने वाली मानी गई हैं, इसलिए यह नाम उनकी पितृ-पोषणकारी शक्ति को दर्शाता है।
15. सुधा देवी महात्म्य
सुधा का अर्थ है अमृत या अमृततुल्य मधुरस। देवी लक्ष्मी को सुधा कहा जाता है क्योंकि वे जीवनदायिनी अमृत की भांति हैं। दुर्गा स्तुति में देवी को “अमृत स्वरूपा” कहा गया है। लक्ष्मी की कृपा से देवताओं को अमृत (अमरत्व) प्राप्त हुआ था, अतः वे सुधा अर्थात अमृतस्वरूपिणी कही गईं। उनके चरणों की रज भी सुधा के समान कल्याणकारी बताई गई है।
16. धन्या अष्टलक्ष्मी
धन्या का शाब्दिक अर्थ है “भाग्यशालिनी” या “धन-धान्य से सम्पन्न”। लक्ष्मी को धन्या इसलिए कहते हैं क्योंकि वे स्वयं समस्त सौभाग्य की अधिष्ठात्री हैं और जिन पर उनकी कृपा हो, वे परम भाग्यशाली (धन्य) हो जाते हैं। अष्टलक्ष्मी स्वरूपों में धान्य-लक्ष्मी अन्न एवं अन्नपूर्णता की देवी हैं, अतः लक्ष्मी के धन्या नाम में इस बात का भी संकेत है कि वे अन्न-धान्य सहित सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।
. हिरण्मयी (हिरण्ययी) वेद (श्रीसूक्त)
हिरण्मयी का अर्थ है स्वर्ण के समान उज्ज्वल आभा वाली। वैदिक श्री सूक्त में महालक्ष्मी को “हिरण्यवर्णा” अर्थात स्वर्णिम आभा वाली कहा गया है। पुराणों में भी उनके सुनहरे स्वरूप का उल्लेख “हिरण्यवर्णा” नाम से हुआ है। यह नाम दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी का तेज सोने के समान दमकता है और वे स्वर्णिम समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं।
18. लक्ष्मी वेद, व्युत्पत्ति
लक्ष्मी स्वयं देवी का प्रमुख नाम है, जिसका मूल संस्कृत धातु लक्ष् (लक्ष्य) है। लक्ष्मी शब्द का अर्थ है लक्ष्य, चिह्न या लक्षित सम्पन्नता। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह जगन्माता अपने भक्तों की परेशानियों (लक्ष्यों) को करके, उन पर दया करके सभी शुभ वस्तुएँ प्रदान करती हैं। श्रीवैष्णव आचार्यों के मत में लक्ष्मी भगवान विष्णु से भक्तों की ओर से मध्यस्थ बनकर अनुग्रह दिलाती हैं। संक्षेप में, लक्ष्मी नाम से ही ज्ञात होता है कि वे सारी संपत्तियों और सिद्धियों का लक्ष्य (आधार) हैं।
19. नित्यपुष्टा
नित्यपुष्टा का अर्थ है “नित्य पोषित” या “जिसकी पुष्टि (शक्ति) नित्य बढ़ती रहती है”। यह नाम संकेत देता है कि देवी लक्ष्मी की शक्ति और कृपा सदा बढ़ती रहती है। जिन गृहों में लक्ष्मी का वास होता है वहाँ दिन-दूनी रात-चौगुनी उन्नति होती है। लक्ष्मी स्वयं चिर यौवना एवं अखंड ऊर्जा की प्रतीक हैं, अतः उन्हें नित्यपुष्टा कहा गया है (अर्थात सदैव पुष्ट व समृद्ध)।
20. विभावरी लक्ष्मी सहस्रनाम
विभावरी का अर्थ है अंधकार को नष्ट करने वाली उजियारी रात या भोर की ज्योतिस्वरूपा। लक्ष्मी सहस्रनाम में विभावरी नाम की व्याख्या है – “जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करती हैं”hindupedia.com। अर्थात देवी लक्ष्मी अपने प्रकाश से अज्ञान रूपी रात्रि को समाप्त कर देती हैं। इस नाम से लक्ष्मी के उस स्वरूप का बोध होता है जो संसार से अंधकार, संकट और दरिद्रता को मिटाकर प्रकाश एवं समृद्धि लाता है।
21. अदिति पुराण
अदिति का अर्थ है “बन्धनों से रहित” अथवा ऋग्वेद में अदिति को देवताओं की माता कहा गया है। लक्ष्मी को अदिति रूप में इसलिए जाना जाता है क्योंकि वे संपूर्ण जगत की माता और मुक्तिदायिनी शक्ति हैं। गरुड़ पुराण में लक्ष्मी को श्री, भू और दुर्गा – तीन स्वरूपों में वर्णित किया गया है, जिनमें भू (पृथ्वी) रूप में वे सभी देवों-दानवों का पोषण करती हैं। अदिति देवमाता हैं, उसी प्रकार लक्ष्मी जगन्माता हैं – इस मातृस्वरूप के कारण उनका नाम अदिति माना जा सकता है।
22. दिति
दिति हिंदू मान्यताओं में दैत्यों (असुरों) की जननी मानी जाती हैं। लक्ष्मी को दिति कहना इस भाव को दर्शाता है कि वे शुभ-अशुभ सभी प्राणियों को धन-संपत्ति देती हैं। वे सूर्यों (देवों) और असुरों दोनों का पालन-पोषण करने वाली शक्ति हैं – हालांकि अधर्मियों के पास गया धन अंततः नष्ट होता है, परंतु वह भी लक्ष्मी की ही देन होती है। अतः दिति नाम इस ओर संकेत करता है कि लक्ष्मी की शक्ति सर्वव्यापी है, चाहे देव हों या असुर, सभी उनकी संपदा के भूखे हैं।
23. दीपा परंपरा (दीपावली)
दीपा का अर्थ है दीपक या प्रकाश। लक्ष्मी को दीपा नाम इसलिए मिला क्योंकि वे ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलाती हैं। दीपावली को लक्ष्मी का पर्व माना जाता है, जब पूरे भारत में दीप प्रज्ज्वलित कर माता लक्ष्मी का स्वागत होता है। दिवाली की रात्रि दीपों से जगमगा उठती है – यह दर्शाता है कि लक्ष्मी के आने से अज्ञान और दरिद्रता का अंधकार मिट जाता है और प्रकाश (खुशहाली) छा जाता है।
।. वसुधा विष्णु पुराण
वसुधा का अर्थ है धरती (धन देने वाली धरा)। विष्णु पुराण में श्री (लक्ष्मी) को पृथ्वी कहा गया है – “श्री ही धरती हैं। भूदेवी (पृथ्वी) लक्ष्मी का ही एक रूप मानी जाती हैं जो सबको अन्न-धन देती हैं। अतः वसुधा नाम दर्शाता है कि लक्ष्मी धरती माता के रूप में सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण करती हैं।
25. वसुधारिणी विष्णु पुराण
वसुधारिणी का अर्थ है “धरती को धारण करने वाली”। विष्णु पुराण में कहा गया है – “श्री धरती हैं और विष्णु उस धरती के धारक”। किंतु अन्य व्याख्या में श्री स्वयं पृथ्वी की धारक भी हैं। इस दृष्टि से वसुधारिणी लक्ष्मी का वह रूप है जो सम्पूर्ण पृथ्वी का भार अपने ऊपर धारण करके उसका भरण-पोषण करती हैं। यह नाम पृथ्वी रूप में लक्ष्मी के स्थैर्य और पोषण शक्ति को दर्शाता है।
26. कमला वेद (श्रीसूक्त)
कमला भी कमलवाली को कहते हैं। लक्ष्मी को कमला इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे कमल पर विराजमान होती हैं और स्वयं कमल के समान सुंदर हैं। श्री सूक्त तथा अन्य ग्रंथों में कमला नाम आया है। कमलात्मिका भी उनका एक नाम है जिसका अर्थ है “कमलरूपा”। चूँकि कमल पवित्रता, समृद्धि और सौंदर्य का प्रतीक है, देवी लक्ष्मी को कमला नाम देकर यही गुण बताए गए हैं।
27. कान्ता रामायण आदि
कान्ता का अर्थ है “प्रेमिका” या “सुंदरी”। लक्ष्मी को कान्ता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे भगवान विष्णु की परम प्रिया हैं। वे विष्णु के हृदय में निवास करती हैं – इसलिए विष्णु का एक नाम श्रीनिवास (श्री = लक्ष्मी, निवास = निवासस्थान) भी है। इसके अलावा कान्ता उनके दिव्य सौंदर्य का भी द्योतक है, जो सभी का मन मोह लेता है। इस प्रकार विष्णु-वल्लभा और रमणी होने से उनका नाम कान्ता पड़ा।
28. कामाक्षी लक्ष्मी तंत्र
कामाक्षी का अर्थ है “जिसकी आंखें कामना पूर्ण करने वाली हैं”। शास्त्रों में कामाक्षी देवी को वे शक्तिस्वरूपा माना गया है जिनकी कृपा-दृष्टि से भक्तों की कामनाएँ पूर्ण होती हैं। लक्ष्मी सहस्रनाम तथा तंत्रों में लक्ष्मी को कामाक्षी कहा गया है। इस नाम के पीछे भाव यह है कि माता लक्ष्मी अपनी सुकोमल दृष्टि मात्र से भक्तों को सुख-संपदा (अभिलषित फल) प्रदान कर देती हैं।
29. क्षीरोदतनया (क्षीरोदसम्भवा) विष्णु पुराण
क्षीरोदतनया का शाब्दिक अर्थ है “क्षीरसागर की पुत्री” – अर्थात जो क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न हुईं। यह देवी लक्ष्मी का प्रसिद्ध वर्णन है कि वे देवासुर-संग्राम के समय समुद्र मंथन से प्रकट हुईं क्षीरसागर से जन्म लेने के कारण उन्हें क्षीरोदतनया (समुद्रतनया) कहा गया। पद्म पुराण व विष्णु पुराण में विस्तार से उनका क्षीरसागर से प्रादुर्भाव वर्णित है, इसलिए यह नाम उनके उस पौराणिक उद्भव की स्मृति दिलाता है।
30. अनुग्रहप्रदा भविष्योत्तर पुराण
अनुग्रहप्रदा का अर्थ है “दया/कृपा प्रदान करने वाली”। भक्तों पर अनुग्रह (कृपा-दृष्टि) करना लक्ष्मी का स्वभाव है। भविष्योत्तर पुराण की कथा में भगवान शिव पार्वती को व्रत (वरलक्ष्मी व्रत) की महिमा बताते हैं – यह व्रत करने से लक्ष्मी प्रसन्न होकर सारे वरदान देती हैं। इससे लक्ष्मी का अनुग्रहकारी रूप प्रकट होता है। अतः उन्हें अनुग्रह प्रदान करने वाली, यानी अनुग्रहप्रदा कहा गया है, क्योंकि वे प्रसन्न होकर भक्तों को मनचाहा फल देती हैं।
31. बुद्धि विष्णु पुराण
बुद्धि का अर्थ है प्रज्ञा या तीक्ष्ण अंतरदृष्टि। विष्णु पुराण में वर्णित है कि लक्ष्मी भगवान की प्रेरक बुद्धि हैं – श्री (लक्ष्मी) को विष्णु की अंतरज्ञान शक्ति कहा गया। अतः लक्ष्मी को बुद्धि रूप में मानते हैं क्योंकि वे मानव को विवेक, निर्णायक शक्ति और प्रबुद्धि प्रदान करती हैं। जीवन में सफलता और कौशल को लक्ष्मी-कृपा माना जाता है, इसलिए उनका नाम बुद्धि भी सार्थक है।
32. अनघा पुराण
अनघा का अर्थ है निर्दोष, निष्पाप या पवित्र. देवी लक्ष्मी को अनघा कहा जाता है क्योंकि उनमें कोई दोष नहीं है – वे सर्वथा पवित्र और शुभ हैं। पुराणों में लक्ष्मी के अन्य नामों के बीच अनघा नाम भी मिलता है।, जो यह दर्शाता है कि माता लक्ष्मी पूर्णतया निर्मल हैं। उनके इस नाम से श्रद्धालु ये कामना करते हैं कि देवी अपने भक्तों के पाप दोष दूर करके उन्हें भी निष्पाप (निर्दोष) बना दें।
33. हरिवल्लभा पुराण
हरिवल्लभा का अर्थ है “भगवान हरि (विष्णु) की प्यारी (पत्नी)”। यह नाम स्वयं स्पष्ट करता है कि लक्ष्मी, भगवान विष्णु की अर्धांगिनी एवं अतिप्रिय हैं। शास्त्रों में श्री लक्ष्मी को विष्णुप्रिया, हरिप्रिया या हरिवल्लभा कहा गया है। हरिवल्लभा नाम बताता है कि विष्णु और लक्ष्मी अभिन्न हैं – लक्ष्मी बिना विष्णु अपूर्ण हैं और विष्णु बिना लक्ष्मी। इस प्रकार यह नाम देवी के दिव्य दांपत्य और स्नेहमयी स्वरूप का प्रतीक है।
34. अशोका रामायण
अशोका का अर्थ है “जिसे शोक नहीं” या “जो शोक har ले लेती हैं” (दुःखों का नाश करने वाली). माता सीता को भी अशोकवासिनी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने असोक वृक्ष के नीचे दुःख झेला था, लेकिन देवी लक्ष्मी के लिए अशोका नाम यह दर्शाता है कि उनकी कृपा से सभी दुःख दूर हो जाते हैं। जिस घर में लक्ष्मी का वास होता है वहाँ दरिद्रता तथा दुख नहीं ठहरते। इसलिए वे अशोका कहलाईं – अर्थात दुखों का हरण करने वाली शुभ शक्ति।
35. अमृता पुराण
अमृता शब्द मृत्यु में अ उपसर्ग लगाने से बना है, जिसका अर्थ है “मृत्यु/क्षय को न होने देने वाली” यानि अमरत्व या जीवनदायिनी शक्ति। देवी लक्ष्मी को अमृता इसीलिए कहा गया है क्योंकि वे अपने भक्तों के जीवन में नवचेतना और सुखों का अमृत घोल देती हैं। समुद्र मंथन से अमृत प्रकट हुआ था और उसी के साथ लक्ष्मी भी प्रकट हुईं – इस पौराणिक संदर्भ से भी अमृता नाम लक्ष्मी के लिए जुड़ा। वे सुधा (अमृत) स्वरूपा हैं जो प्राणियों को पोषण व आरोग्य देती हैं।
36. दीप्त लक्ष्मी सहस्रनाम
दीप्त का अर्थ है देदीप्यमान या प्रखर ज्वाला के समान चमकने वाली। लक्ष्मी के तेज को दीप्ति कहा गया है। लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र में उनके कई रूपों में उन्हें दीप्ता कहा गया है। – जो यह दर्शाता है कि उनका स्वरूप प्रभापुंज के समान उज्ज्वल है। इस नाम से माता लक्ष्मी के उस ज्योतिर्मय रूप की आराधना की जाती है जो अज्ञानरूपी अंधकार को जलाकर भस्म कर देता है।
37. लोकशोकविनाशिनी
लोक-शोक-विनाशिनी का अर्थ है “तीनों लोकों के शोक (दुःख) का नाश करने वाली देवी”। यह नाम सूचित करता है कि देवी लक्ष्मी के आशीष से विश्व के समस्त कष्ट दूर हो सकते हैं। पौराणिक कथाओं में जब-जब संसार या देवता दुखी हुए, लक्ष्मी ने प्रकट होकर कष्ट हरे हैं – जैसे समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत दिलाकर उनका संताप मिटाया। इस प्रकार लक्ष्मी समष्टि के दुखों को खत्म करने वाली माँ हैं, इसलिए उन्हें लोकशोकविनाशिनी कहा गया।
38. धर्मनिलया विष्णु पुराण
धर्मनिलया का अर्थ है “धर्म का निवास/आधार”। विष्णु पुराण में श्रीहरि (विष्णु) और श्री (लक्ष्मी) के संबंध में कहा गया है – “विष्णु धर्म हैं तो श्री धर्म का आचरण (कर्म) हैं। अर्थात् धर्म के सिद्धांत विष्णु हैं, तो धर्म को आधार देकर चलाने वाली शक्ति लक्ष्मी हैं। इसलिए लक्ष्मी धर्म की नींव के रूप में धर्मनिलया कही जाती हैं। वे सच्चरित्रता, सत्कर्म और मर्यादा की संरक्षिका हैं – समाज में धर्म उन्हीं की कृपा से कायम रहता है।
39. करुणा भक्तिमाला
करुणा का अर्थ है दया या करुणाभाव। देवी लक्ष्मी को करुणा की प्रतिमूर्ति माना गया है। श्री वैष्णव सिद्धांत में कहा गया है कि यद्यपि सभी शुभ गुण भगवान विष्णु से आते हैं, परंतु करुणा (दया) का स्रोत लक्ष्मीजी हैं। यहाँ तक कि विष्णु भी लक्ष्मी की उपस्थिति के कारण ही करुणामय होते हैं। इसीलिए भक्तजन उन्हें करुणा कहकर पुकारते हैं – वे करूणासागर हैं, जो संतप्त हृदयों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
40. लोकमाता विष्णु पुराण
लोकमाता का अर्थ है “संसार की माता”। विष्णु पुराण में श्री लक्ष्मी को जगत जननी कहा गया है – “श्री ही संसार की माता हैं। वे सभी जीवों की पालनकर्ता माता के रूप में मानी जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक माँ अपने बच्चों का भरण-पोषण करती है। इस नाम द्वारा लक्ष्मी के सार्वभौमिक मातृत्व की स्तुति की जाती है – वे देवता, मानव, पशु-पक्षी सभी की माँ हैं जो स्नेहपूर्वक सबका लालन करती हैं।
41. पद्मप्रिया शास्त्र
पद्मप्रिया का अर्थ है “कमल को प्रिय रखने वाली”। देवी लक्ष्मी को कमल अतिप्रिय है – वे स्वयं कमल पर विराजमान रहती हैं और कमलों की माला धारण करती हैं। अनेक स्तोत्रों में उनका वर्णन पद्मप्रिया (कमलप्रिया) के रूप में हुआ है। यह नाम बतलाता है कि देवी को कमल के फूल अत्यंत प्रिय हैं और वे स्वयं भी कमल के समान कोमल हृदया हैं। भक्त उन्हें कमल-गट्टे, कमल पुष्प चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं।
42. पद्महस्ता आइकोनोग्राफी
पद्महस्ता का अर्थ है “कमल-हाथ” – अर्थात जिनके हाथ में कमल है। प्रायः सभी चित्रों/मूर्तियों में माता लक्ष्मी के हाथों में कमल का फूल रहता है। पुराणों में उन्हें पद्महस्ता कहकर संबोधित किया गया है। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि कमल उनका प्रमुख प्रतीक है – कमल उनके सौंदर्य , पावनता और वैभव का द्योतक है। साथ ही, कमल उन्हें सृजन-शक्ति प्रदान करता है (कमल बीज के रूप में सृष्टि का उद्गम)।
43. पद्माक्षी शास्त्र
पद्माक्षी का अर्थ है “कमल के समान नेत्रों वाली”। देवी लक्ष्मी के नेत्रों की सुंदरता की तुलना खिलते हुए कमल की पंखुड़ियों से की गई है। शास्त्रों में पद्माक्षी लक्ष्मी के नामों में शामिल है। कमलनयन होने का अभिप्राय यह है कि उनके नेत्र शीतल, शांत और सुन्दर हैं – वे करुणा और प्रेम से परिपूर्ण दृष्टि सब पर डालती हैं। श्रीसूक्त में भी उन्हें पद्मचरण पद्माक्षी पद्ममालाधरा कहा गया है।
44. पद्मसुन्दरी तंत्र
पद्मसुन्दरी का अर्थ है “कमल जैसी सुन्दरी”। तांत्रिक ग्रंथों में महाविद्याओं में एक कमला (पद्मसुंदरी) भी हैं, जिन्हें लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। लक्ष्मी को पद्मसुन्दरी इसलिए कहते हैं क्योंकि उनका सौंदर्य खिल हुए कमल के समान उज्ज्वल और पावन है। यह नाम लक्ष्मी के मोहक, शीतल और मनोहर स्वरूप का वर्णन करता है – जैसे कीचड़ में रहकर भी कमल निर्मल रहता है, वैसे ही लक्ष्मी समस्त सांसारिक विकारों से परे रहकर दिव्य सौंदर्य बिखेरती हैं।
45. पद्मोद्भवा विष्णु पुराण
पद्मोद्भवा का शाब्दिक अर्थ है “कमल से उत्पन्न” (पद्म से उत्पन्न)। पौराणिक दृष्टि से इस नाम की दो व्याख्या हो सकती है: एक तो यह कि लक्ष्मी कमल (समुद्र) से उत्पन्न हुईं, और दूसरी कि ब्रह्मा के कमल से उत्पन्न सृष्टि की आधारशक्ति भी लक्ष्मी हैं। कुछ स्रोतों में पद्मोद्भविनी लक्ष्मी का उल्लेख है।, जिसमें उनका संबंध उत्पत्ति से जोड़ा गया। समुद्र मंथन में प्रकट होते समय वे हाथ में कमल लिए थीं और एक कमलासन पर अवतरित हुईं, इस कारण कवियों ने उन्हें पद्मोद्भवा कहकर भी संबोधित किया है।
46. पद्ममुखी पुराण
पद्ममुखी का अर्थ है “कमल के समान मुखवाली” – अर्थात जिनका मुखड़ा खिले कमल जैसा सुंदर है। देवी लक्ष्मी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए शास्त्र कहते हैं उनका मुखारविंद (मुख कमल के समान) है। उदाहरणतः विष्णुपुराण और श्रीसूक्त में उनकी प्रसन्न-वदना (हँसमुख) व कमल-सदृश आभा का बखान है। पद्ममुखी नाम से लक्ष्मी के उस रूप की वंदना होती है जिसके दर्शन मात्र से भक्त के मन में आनंद के कमल खिल उठते हैं।
47. पद्मनाभप्रिया वेद (पुरुषसूक्त)
पद्मनाभ-प्रिया का अर्थ है “पद्मनाभ (विष्णु) की प्रिया पत्नी”। पद्मनाभ विष्णु का नाम है (जिनकी नाभि से कमल निकला)। पद्मनाभप्रिया नाम स्पष्ट रूप से बताता है कि लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं। पुरुषसूक्त में भी विष्णु को “लक्ष्मी की पत्नी वाला” कहा गया – "लक्ष्मीश्च पत्नीयं"। श्री लक्ष्मी सदा विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान रहती हैं वह स्थल श्रीवत्स चिह्न कहलाता है। अतः पद्मनाभप्रिया नाम से उनकी महत्त्वपूर्ण पहचान – विष्णुप्रिया – प्रकट होती है।
48. रमा रामायण, पुराण
रमा का अर्थ है “आनंददायिनी” अथवा “आनंद में लीन रहने वाली”। लक्ष्मी का यह प्रचलित नाम है (सीता जी को भी रामायण में श्री व रमा कहा गया है)। रमा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वे विष्णु को प्रसन्न करने वाली हैं (मधुसूदन कामिनी) और स्वयं भी परम आनंदमयी हैं। पुराणों में उल्लेख है कि लक्ष्मी इंदिरा व रमा रूप में नित्य विष्णु के साथ वैकुण्ठ में विहार करती हैं। अतः रमा नाम उनके सौम्य, रमणीय एवं सुखद स्वभाव का परिचायक है।
49. पद्ममालाधरा श्रीसूक्त
पद्म-माला-धरा का अर्थ है “कमलमालाधारिणी” – अर्थात जो कमलों की माला धारण करती हैं। देवी लक्ष्मी का एक रूप कमलमाला पहने हुए दिखाया जाता है। श्रीसूक्त में आता है कि देवी कमलमालिनी हैं। पुराणों में भी पद्ममालाधरा देवी के रूप में उनका नाम प्राप्त होता है। यह नाम संकेत करता है कि लक्ष्मीजी को कमल कितने प्रिय हैं – वे केवल हाथ में कमल ही नहीं रखतीं, बल्कि अपने श्रंगार में भी कमलों की माला पहनती हैं।
50. देवी सर्वत्र
देवी का अर्थ है देवत्व से युक्त – अर्थात दिव्य, प्रकाशस्वरूपा और पूजनीया नारी शक्ति। देवी नाम स्वयं लक्ष्मी के संपूर्ण देवित्व को प्रकट करता है। शास्त्रों में देवी शब्द का प्रयोग आद्या शक्ति के लिए होता है, जिसमें पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी सभी समाहित हैं। देवी महात्म्य में तो दुर्गा को प्रकृति, बुद्धि, लक्ष्मी आदि रूपों में सर्वदेवमयी कहा गया है। लक्ष्मी चूंकि विष्णु की शक्ति और विश्व की जननी हैं, इसलिए वे परमदेवी हैं – यही अर्थ इस नाम में समाहित है।
51. पद्मिनी श्रीसूक्त
पद्मिनी का तात्पर्य “कमलों से युक्त” या “कमलिनी” है। श्री लक्ष्मी को पद्मिनी कहा गया है क्योंकि वे कमल से अभिषिक्त होती हैं – कमल उनके सौंदर्य और वैभव का अभिन्न अंग है। श्रीसूक्त में एक प्रसंग आता है: “पद्मिनीं पुष्करिणीं...” जहाँ पद्मिनी शब्द लक्ष्मी के कमलवान रूप को इंगित करता है। अर्थात कमल के तालाब (पद्म-सरovar) में निवास करने वाली देवी खुद कमलिनी (पद्मिनी) हैं।
52. पद्मगन्धिनी श्रीसूक्त
पद्मगन्धिनी का अर्थ है “जिससे कमल के समान सुगंध आती है”। पद्म (कमल) स्वयं सुवासित होता है, उसी प्रकार देवी लक्ष्मी की उपस्थिति भी सुगंधित और पवित्र होती है। श्रीसूक्त में एक मंत्र है "गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्" – यानि लक्ष्मी ऐसी हैं जिनसे पावन सुगंध फैलती है। इस नाम द्वारा उनकी दिव्य सुगंधमयी आभा की ओर संकेत किया गया है – जिस स्थान पर वे आती हैं, वहाँ वातावरण सुगंधित (पुण्यगंध) हो जाता है।
53. पुण्यगन्धा श्रीसूक्त
पुण्यगन्धा का अर्थ है “पवित्र (पुण्य) सुगंध वाली”। यह नाम भी लक्ष्मी के सुवासित स्वरूप का वर्णन करता है। ऐसी मान्यता है कि वास्तविक समृद्धि केवल धन ही नहीं, बल्कि पुण्य और सत्कर्मों की सुगंध भी है। लक्ष्मी जहाँ वास करती हैं वहाँ पुण्य फलते-फूलते हैं और एक सात्त्विक सुगंध वातावरण में छा जाती है। इसलिए उन्हें पुण्यगन्धा कहा गया – जिनकी उपस्थिति पुण्यमय सुगंध बिखेरती है।
54. सुप्रसन्ना लक्ष्मी स्तुति
सुप्रसन्ना का अर्थ है “अत्यंत प्रसन्न” या “सदैव प्रसन्न रहने वाली”। देवी लक्ष्मी को प्रसन्नवदना कहा जाता है – उनके मुखमंडल पर सदा प्रसन्नता की आभा रहती है लक्ष्मी स्तुति में आता है: “प्रसन्नवदना सौभाग्यदाम्… भजामि” – अर्थात मैं उस प्रसन्न मुखवाली लक्ष्मी का भजन करता हूँ जो सौभाग्य देने वाली हैं। अतः सुप्रसन्ना नाम से माँ लक्ष्मी की कृपालु, हँसमुख एवं प्रसन्नचित्त स्वरूप की महिमा प्रकट होती है – वे प्रसन्न होकर सबको सुख प्रदान करती हैं।
55. प्रसादाभिमुखी तंत्र/स्तोत्र
प्रसादाभिमुखी का अर्थ है “सदा अनुग्रह (प्रसाद) देने को तत्पर चेहरा”। माता लक्ष्मी अपने भक्तों को प्रसाद स्वरूप आशीर्वाद देने के लिए सदा उत्सुक रहती हैं। उनके एक नाम प्रसन्नाक्षी (प्रसन्न नेत्रों वाली) भी है, जो मिलता-जुलता भाव देता है। प्रसादाभिमुखी नाम इंगित करता है कि देवी का मुख हमेशा भक्तों को वरदान देने की तरफ रहता है – वे कृपा बरसाने को उद्यत रहती हैं। यह उनकी दयामयी स्वभाव की ओर इशारा है कि वे थोड़ी भक्ति से ही प्रसन्न होकर प्रसाद (कृपा) बांटती हैं।
56. प्रभा विष्णु पुराण
प्रभा का अर्थ है प्रकाश या आभा। विष्णु पुराण में श्री लक्ष्मी को सूर्य के प्रकाश के समान बताया गया – “विष्णु सूर्य हैं तो श्री उनकी किरण-प्रभा हैं। अर्थात लक्ष्मी, भगवान का तेज हैं जो सारे संसार को प्रकाशमान करता है। इसलिए उन्हें प्रभा कहा जाता है। इस नाम से लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की आराधना होती है जो अज्ञान रूपी तम को मिटाकर ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश फैलाती हैं।
57. चन्द्रवदना पुराण
चन्द्रवदना का अर्थ है “चंद्रमा के समान मुखवाली”। देवी लक्ष्मी का मुखमंडल पूर्ण चंद्र के समान उज्ज्वल और शीतल बताया गया है। पौराणिक स्रोतों में उन्हें चन्द्रवदना (चंद्रमुखी) नाम से स्तुत किया गया है। इस नाम के पीछे भाव यह है कि लक्ष्मीजी का चेहरा चंद्रमा की तरह शांत, दैदीप्यमान व कल्याणकारी है – उसे देखकर भक्तों के मन शीतल आनंद से भर जाते हैं।
58. चन्द्रा काव्य
चन्द्रा स्वयं एक उपमा स्वरूप नाम है, जिसका अर्थ “चंद्रमा” है। देवी लक्ष्मी को रूप-लावण्य, शीतलता और सौम्यता में चंद्रमा के समान माना गया है, इसलिए चन्द्रा नाम उन्हें दिया गया। चंद्रमा रात्रि के अंधकार को दूर कर जगत में शीतल प्रकाश भरता है, वैसे ही लक्ष्मी दरिद्रता रूपी अंधकार मिटाकर शीतल (मंगलमयी) प्रकाश भरती हैं। अतः यह नाम उनकी चंद्र-सदृश गुणों – शीतलता, कोमलता एवं उजास – की ओर इशारा करता है।
59. चन्द्रसहोदरी पुराण
चन्द्रसहोदरी का अर्थ है “चंद्रमा की सहोदर (बहन)”। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से लक्ष्मी और चंद्रमा दोनों ही उत्पन्न हुए थे, इसलिए उन्हें चंद्रमा की सहोदर कहा गया। इस नाम का तात्पर्य यह भी है कि लक्ष्मी और चंद्रमा दोनों एक ही स्रोत (क्षीरसागर) से जन्मे रत्न हैं – चंद्रमा रात्रि को रोशन करता है, और लक्ष्मी जीवन को। दोनों में शीतलता व कल्याण का अंश समान है। अतः देवी का यह नाम समुद्र-मंथन की घटना से जुड़ी उनकी सिबलिंग-जैसी स्थिति को दर्शाता है।
60. चतुर्भुजा आइकोनोग्राफी
चतुर्भुजा का अर्थ है चार भुजाओं वाली। देवी लक्ष्मी को प्रायः चार हाथों वाली दर्शाया जाता है। शास्त्रों में वर्णन है कि लक्ष्मी के चार हाथ मानव जीवन के चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष – के प्रतीक हैं। चतुर्भुजा नाम इसी शास्त्रीय विवरण से आया है। विष्णु जैसे चतुर्भुज हैं, वैसे ही उनकी शक्ति लक्ष्मी भी चतुर्भुजा हैं। चार हाथों में वे कमल, कलश, अभयमुद्रा, वरमुद्रा आदि रखती हैं। यह नाम उनकी सर्वसमर्थ देवी रूप को इंगित करता है।
61. चन्द्ररूपा शास्त्र
चन्द्ररूपा का अर्थ है “चंद्रमा के सदृश स्वरूप वाली”। यह चन्द्रवदना और इन्दुशीतला जैसा ही नाम है, जो लक्ष्मी के चंद्र-समान स्वरूप को रेखांकित करता है। कुछ ग्रंथों में लक्ष्मी को चन्द्ररूपा कहा गया है। – इसका आशय है कि उनका रूप एवं स्वभाव चंद्रमा की भाँति शांतिदायक है। इस नाम के द्वारा भक्त प्रार्थना करते हैं कि माँ लक्ष्मी के चंद्रमयी स्वरूप की छाया उन पर पड़े, जिससे उनके जीवन में भी शीतल संतोष और शांति भर जाए।
62. इन्दिरा पुराण
इन्दिरा देवी लक्ष्मी का अत्यंत प्रसिद्ध नाम है। इन्दिरा शब्द “इन्द्र” से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ चमक या ऐश्वर्य होता है। लक्ष्मी को इन्दिरा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे तेजस्विनी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। पुराणों में इन्दिरा को लक्ष्मी का पर्याय बताया गया है। श्रीसूक्त में भी इन्दिरा नाम से लक्ष्मी का आह्वान है। यह नाम विशेषकर उनके प्रभावशाली स्वरूप और राजसी विभूति को दर्शाता है – इंद्र की तरह समृद्धि प्रदान करने वाली शक्ति होने से वे इन्दिरा हैं।
63. इन्दुशीतला लोकपरंपरा
इन्दुशीतला में “इन्दु” का अर्थ चंद्रमा है और “शीतला” का अर्थ ठंडक पहुंचाने वाली। लक्ष्मी को इन्दुशीतला कहा गया है क्योंकि उनकी उपस्थिति चंद्रमा की किरणों जैसी शीतल और सुखद है। जिस प्रकार चंद्रमा की चाँदनी गर्मी को हर लेती है, उसी प्रकार माँ लक्ष्मी के आगमन से जीवन के संताप दूर हो जाते हैं और शीतल (शांतिमय) वातावरण बन जाता है। यह नाम उनके शांत, सौम्य और करुणामय रूप की अभिव्यक्ति है।
64. आह्लादजननी स्तुति
आह्लादजननी का अर्थ है “आनंद उत्पन्न करने वाली माता”। देवी लक्ष्मी को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि वे अपने भक्तों के जीवन में परम आनंद (आह्लाद) भर देती हैं। उनकी कृपा से हर्ष, उल्लास और सकारात्मकता का संचार होता है। पौराणिक कथाओं में जहां भी लक्ष्मी विराजती हैं, वहाँ हर्ष और समृद्धि स्वयमेव आ जाते हैं। इस प्रकार आह्लादजननी नाम माँ लक्ष्मी की उस शक्ति को दर्शाता है जिससे संपूर्ण जगत को आनंद और उत्साह मिलता है।
65. पुष्टा अष्टलक्ष्मी
पुष्टा का अर्थ है “पोषित” या “तंदुरुस्त/समृद्ध”। लक्ष्मी को पुष्टा इसलिए कहा गया है क्योंकि वे संपूर्ण जगत को पोषण देती हैं और स्वयं भी पूर्ण समृद्धि की प्रतीक हैं। अष्टलक्ष्मी अवधारणा में पुष्टि लक्ष्मी (या धन लक्ष्मी) के रूप में वे बल, स्वास्थ्य और धन की दात्री हैं। पुष्टा नाम यह इंगित करता है कि जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उनका जीवन दिन-प्रतिदिन पुष्ट (समृद्ध) होता जाता है। साथ ही यह नाम देवी के स्निग्ध एवं सहृदय स्वरूप को भी दर्शाता है, जो अपने भक्तों का पालन-पोषण माँ की तरह करती हैं।
66. शिवा दुर्गा सप्तशती
शिवा नाम का अर्थ है “कल्याणकारी”। यहाँ शिव से तात्पर्य भगवान शिव नहीं बल्कि शुभता/मंगल से है। दुर्गा सप्तशती की स्तुति में देवी से कहा गया – "दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वधा स्वाहा नमोस्तुते", जिसमें शिवा का अर्थ कल्याणमयी देवी है। लक्ष्मीजी को शिवा इसीलिए कहते हैं क्योंकि वे स्वयं मंगलमयी हैं और जहाँ विराजती हैं वहाँ शुभ-अशुभ का कल्याण कर देती हैं। उनका यह नाम उनकी मंगलदायिनी शक्ति का परिचायक है।
67. शिवकारी
शिवकारी का शाब्दिक अर्थ है “कल्याण करने वाली”। यह नाम शिवा नाम का ही विस्तार है – लक्ष्मी शुभकारी हैं जो संसार का हित करती हैं। वे अपने भक्तों के जीवन में आनंद, शांति और समृद्धि रूपी कल्याण लाती हैं। सभी शुभ कर्मों में उनकी कृपा शामिल रहती है, इसलिए उन्हें शिव-कार्य (भलाई) करने वाली कहा गया। ऋग्वेद में भी श्री को “मंगलम् यन्न आसादयति स शिवकरी” कहकर संबोधित किया गया है, यानी जो जहाँ जाती हैं वहाँ कल्याण कर देती हैं।
68. सत्य धर्मशास्त्र
सत्य का अर्थ है सत्य स्वरूपा या सत्य पर आधारित। लक्ष्मी को सत्य कहा गया है क्योंकि वे धर्म, सत्य और न्याय की आधारभूत शक्ति हैं। जिस घर में सत्य और धर्म होता है वहाँ लक्ष्मी स्थायी होती हैं। महाभारत में भी कहा गया है कि लक्ष्मी सच्चरित्र और सत्यनिष्ठ लोगों के पास निवास करती हैं। इस प्रकार सत्य नाम से उन्हें उस नैतिक शक्ति के रूप में सराहा गया है जो सत्य के साथ रहती है और उसे फलवती बनाती है।
69. विमला पुराण
विमला का अर्थ है निष्कलंक, बिल्कुल शुद्ध। देवी लक्ष्मी विमला हैं क्योंकि उनमें कोई दोष या कलुष नहीं है। पुराणों में उनका विमला नाम उल्लेखित है।, जो उनके निर्मल, उज्ज्वल स्वरूप का गुणगान करता है। विमला होने के कारण वे अपने आसपास के वातावरण और अपने भक्तों के जीवन को भी पवित्र कर देती हैं। इस नाम द्वारा भक्त उनकी निर्मल कृपा की कामना करते हैं, जो पापों को धोकर जीवन को पवित्र बना देती है।
70. विश्वजननी विष्णु पुराण
विश्वजननी का अर्थ है “संसार की उत्पन्न करने वाली माँ” – अर्थात जगज्जननी। विष्णु पुराण में लक्ष्मी को स्पष्ट रूप से विश्व की माता कहा गया है। विश्व-जननी नाम उसी तथ्य को दोहराता है कि लक्ष्मी ही समस्त सृष्टि की माता हैं। उन्हीं की कोख से (शक्ति से) पूरा ब्रह्मांड जन्म लेता है। इस मातृत्व भाव से भरा हुआ यह नाम हमें याद दिलाता है कि सभी प्राणियों के पोषण और रक्षण के पीछे उसी माँ (लक्ष्मी) की शक्ति काम कर रही है।
71. तुष्टि अष्टलक्ष्मी
तुष्टि का अर्थ है संतोष या संतुष्टि। देवी लक्ष्मी को तुष्टि रूप में इसलिए देखा जाता है क्योंकि उनकी कृपा से ही मनुष्य को आंतरिक संतोष प्राप्त होता है। नवधन (आठ लक्ष्मियाँ) में से एक स्वरूप तुष्टि (संतोष लक्ष्मी) है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है – यह लक्ष्मी ही का एक रूप है। अतः तुष्टि नाम से उनका अभिप्राय उस संतोषदायिनी शक्ति से है जो मानव को लालच छोड़कर संतुष्ट रहना सिखाती है और वास्तविक सुख देती है।
72. दारिद्र्यनाशिनी लक्ष्मी सहस्रनाम
दारिद्र्यनाशिनी का अर्थ है “दरिद्रता (गरीबी) का नाश करने वाली”। यह माता लक्ष्मी का प्रसिद्ध गुण है कि उनकी कृपा से दरिद्रता मिट जाती है। लक्ष्मी सहस्रनाम में दारिद्र्यध्वंसिनी (दारिद्र्य-द्वंसीनी) नाम से उनकी स्तुति की गई है – “वह जो दरिद्रता का नाश करती है” । पौराणिक आख्यानों में भी जब लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं तो दरिद्रता (अलक्ष्मी) का अंत हुआ और समृद्धि लौटी। अतः इस नाम से भक्त प्रार्थना करते हैं कि मां लक्ष्मी उनके जीवन से भी सभी प्रकार की दरिद्रता और अभाव का नाश करें।
73. प्रीति-पुष्करिणी अष्टलक्ष्मी
प्रीति-पुष्करिणी में प्रीति का अर्थ प्रेम/स्नेह है और पुष्करिणी का अर्थ सरोवर (तालाब) है। यानी प्रेम रूपी सरोवर। लक्ष्मी को प्रीति पुष्करिणी इसलिए कहा गया है क्योंकि उनका हृदय प्रेम और करुणा के अथाह सरोवर के समान है। वे अपने भक्तों पर स्नेह लुटाती हैं। नवशक्तियों में प्रेम (प्रीति) को भी लक्ष्मी का रूप माना गया है। इस नाम द्वारा यह दर्शाया गया है कि देवी लक्ष्मी का चरित्र प्रेमपूर्ण है – वे जगत को अपने वात्सल्य रूपी सरोवर से सींचती हैं।
74. शान्ता अष्टलक्ष्मी
शान्ता का अर्थ है “शांत” अथवा शांति प्रदान करने वाली। लक्ष्मी को शान्ता कहा गया है क्योंकि वे कलह का अंत कर घर-परिवार में शांति स्थापित करती हैं। अष्टलक्ष्मी की गणना में शांतिदात्री लक्ष्मी भी मानी गई हैं। जिस स्थान पर लक्ष्मी का वास होता है वहाँ वैर-कलह, अशांति नहीं रहती – वहां मानसिक और पारिवारिक सुख-शांति बनी रहती है। इस प्रकार लक्ष्मी का शान्ता स्वरूप लोक में सुव्यवस्थित, शांतिमय जीवन का आधार है।
75. शुक्लमाल्यांबरा लक्ष्मी ध्यान
शुक्ल-माल्य-अंबरा का अर्थ है “श्वेत पुष्पमाला और सफेद वस्त्र धारण करने वाली देवी”। कई जगह माता लक्ष्मी को गौरवर्णा, श्वेताम्बरा बताया गया है। लक्ष्मी ध्यान श्लोक में आता है: – अर्थात् देवी धवल वस्त्र और सुगंधित फूलों की माला से सुशोभित हैं। श्वेतांबर (सफेद वस्त्र) और श्वेत पुष्पमाला लक्ष्मी की पवित्रता एवं निर्मलता के द्योतक हैं। यह नाम उसी शास्त्रीय विवरण को दर्शाता है कि लक्ष्मीजी उज्ज्वल सफेद वस्त्र और मालाएँ पहनती हैं, जो उनकी शीतलता व पवित्रता का प्रतीक है।
76. श्री वेद, पुराण
श्री शब्द स्वयं में समृद्धि, सौभाग्य और ऐश्वर्य का सूचक है। लक्ष्मी का यह वैदिक नाम है – उन्हें श्री इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वे तेज, ऐश्वर्य और कल्याण की अधिष्ठात्री हैं। “श्री” नाम विशेषतः उनके उस रूप को दर्शाता है जो समस्त धन-धान्य, मान-सम्मान और राजसी विभूति का मूल है। वैदिक ऋचाओं में श्री को सर्व मंगल और समृद्धि की अधिदेवी माना गया है। भगवद्गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं: “यत्नों में मैं श्री (कौशल) हूँ” – यहाँ श्री का अर्थ लक्ष्मी से है। अतः श्री नाम से देवी लक्ष्मी की समस्त ऐश्वर्य एवं सौभाग्य देने वाली शक्ति की स्तुति होती है।
77. भास्करी विष्णु पुराण
भास्करी का अर्थ है “भास्कर (सूर्य) के समान प्रकाशमान”। विष्णु पुराण में कहा गया कि विष्णु सूर्य के समान तेजस्वी हैं और लक्ष्मी सूर्य के उस प्रकाश (कांति) की अधिष्ठात्री हैं। अतः देवी लक्ष्मी को भास्करी नाम दिया गया, क्योंकि उनका तेज सूर्य की प्रभा जैसा दैदीप्यमान है। इसके अतिरिक्त भास्करी नाम इस बात की ओर भी संकेत करता है कि वे सभी को प्रकाशमान भाग्य (रोशन किस्मत) प्रदान करती हैं – जिस पर उनकी कृपा हो, उसका भाग्य सूरज की तरह चमक उठता है।
78. बिल्वनिलया शैव/शक्त परंपरा
बिल्वनिलया का अर्थ है “बिल्व (बेल) वृक्ष में निवास करने वाली”। पद्मपुराण आदि में कथा है कि देवी लक्ष्मी के हृदय से बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुआ और वह शिव को अति प्रिय हो गया। इसके अलावा एक लोककथा के अनुसार लक्ष्मी ने एक बार कोल्हापुर (करवीर क्षेत्र) में बिल्ववृक्षों के वन में निवास किया था उन्हें करवीरवासिनी कहा गया। इन कथाओं के कारण लक्ष्मी का एक नाम बिल्वनिलया भी प्रसिद्ध हुआ। बिल्व वृक्ष देवी लक्ष्मी का प्रतीक बन गया – बिल्वपत्र और बिल्वफल को पूजन में शुभ माना जाता है। यह नाम स्मरण दिलाता है कि देवी लक्ष्मी की कृपा से ही शिव को प्रिय वह पवित्र बिल्व प्रादुर्भूत हुआ, और लक्ष्मी उस वृक्ष में निवास कर धरती को पवित्र करती हैं।
79. वरारोहा ललिता सहस्रनाम
वरारोहा शब्द के कई अर्थ संभव हैं, पर सामान्यतः यह नारी सौंदर्य और शुभ वरदान दोनों से जुड़ा है। ललिता सहस्रनाम में वरारोहा शब्द का प्रयोग देवी के सुंदर आलिंगन या सुगठित जंघा-सौंदर्य के लिए हुआ है। लक्ष्मी के संदर्भ में वरारोहा का अर्थ “श्रेष्ठ आरोह वाली” या “सर्वोत्तम रूप में प्रतिष्ठित” लिया जा सकता है। कुछ व्याख्याओं में इसे “उत्तम जंघाओं वाली” देवी कहा गया है (सौंदर्यसूचक), वहीं अन्य इसे “श्रेष्ठ आसन (अरूह) पर आसीन” या “श्रेष्ठ वाहन पर आरूढ़” मानते हैं। इस नाम से लक्ष्मी की परम सौंदर्यमयी एवं उन्नत प्रतिष्ठा का बखान होता है।
80. यशस्विनी पुराण
यशस्विनी का अर्थ है “यश से युक्त” अर्थात अति ख्यातिप्राप्त या कीर्तिमयी। देवी लक्ष्मी को यशस्विनी कहा जाता है क्योंकि समस्त यश और कीर्ति का मूल भी वे ही हैं। नवगुणों में “कीर्ति (यश)” एक लक्ष्मी का रूप माना गया है। जिस व्यक्ति पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उसे संसार में यश और सम्मान मिलता है। इस प्रकार लक्ष्मी स्वयं जगत की यशस्विनी हैं – उनके महात्म्य का यश तीनों लोकों में गाया जाता है। यह नाम उनके गौरवशाली, सर्वपूजित स्वरूप का द्योतक है।
81. वसुन्धरा अष्टलक्ष्मी (भू देवी)
वसुन्धरा का अर्थ है “धन देने वाली धरती” या पृथ्वी। देवी लक्ष्मी का एक रूप भू देवी हैं, जो स्वयं पृथ्वी हैं। अष्टलक्ष्मियों में भू-लक्ष्मी (या धरती माता) भी लक्ष्मीजी का प्रमुख रूप है। वसुन्धरा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि देवी पृथ्वी सबको धन, धान्य, औषधि, जल आदि जीवनोपयोगी संपदा प्रदान करती है। वसु का अर्थ धन और धरा = धारण करना; इस प्रकार वसुन्धरा यानी जो धन का धारण-पोषण करती है – पृथ्वी माता स्वरूपा लक्ष्मी।
82. उदाराङ्गी (उदारांगा)
उदारांगी का शाब्दिक अर्थ है “उदार/सुंदर अंगों वाली”। यह नाम देवी के सौन्दर्य और उनके हृदय की उदारता दोनों को दर्शाता है। लक्ष्मीजी को उदारांग कहा जाता है क्योंकि उनका स्वरूप परम सुंदर है और वे अत्यंत उदा र हृदय वाली हैं – सबको दान देना, शुभ करना उनका स्वभाव है। उदारांगी नाम में यह भावना निहित है कि देवी अंग-प्रत्यंग से सौंदर्यमयी होने के साथ-साथ स्वभाव से उदार और दयालु हैं। उनकी उदारता रूपी सुंदरता से जगत अभिभूत रहता है।
83. हरिणी पुराण
हरिणी का शाब्दिक अर्थ है “हरिण (मृग) समान चंचल/कोमल”। देवी लक्ष्मी को हरिणी कहा गया है क्योंकि उनका स्वभाव कोमल एवं मनोहारी है, जैसे हरिणी होती है। पुराणों में लक्ष्मी के नामों की सूची में हरिणी नाम भी मिलता है। यह नाम लक्ष्मीजी की सुकोमल, चपल और आकर्षक छवि को व्यक्त करता है – जैसे हिरणी की आँखें बड़ी और सुंदर होती हैं, वैसे ही लक्ष्मी की आँखें कमल के समान बड़ी और कोमल हैं। साथ ही हरिणी की भांति उनकी गति (लीला) भी अप्रत्याशित और दिव्य है।
84. हेममालिनी पुराण
हेममालिनी का अर्थ है “स्वर्ण की माला धारण करने वाली”। हेम मतलब सोना और मालिनी यानी माला पहनने वाली देवी। लक्ष्मी को स्वर्ण आभूषण और माला अति प्रिय हैं – वे स्वयं भी स्वर्णाभूषणों से विभूषि त रहती हैं। पुराणों में हेममालिनी नाम लक्ष्मी को संबोधित करता है। यह नाम संकेत करता है कि देवी लक्ष्मी के गले में सुवर्ण हार सुशोभित है, जो उनके धवल स्वरूप पर चमकता है। स्वर्णमालाधारी होने से उनका वैभव और ऐश्वर्य प्रकट होता है।
85. धनधान्यकरी अष्टलक्ष्मी
धन-धान्यकरी का अर्थ है “धन और अन्न देने वाली”। लक्ष्मी का यह रूप हम दैनिक जीवन में देखते हैं – उनकी कृपा से आर्थिक संपन्नता (धन) और अन्न की प्रचुरता (धान्य) प्राप्त होती है। अष्टलक्ष्मी में धनलक्ष्मी और धान्यलक्ष्मी दो रूप इसी धन-धान्य की दात्री के रूप में पूजे जाते हैं। धनलक्ष्मी रूप में वे स्वर्ण, धन आदि देती हैं, वहीं धान्यलक्ष्मी रूप में अन्न एवं खाद्य सामग्री की भरपूर कृपा करती हैं अतः धनधान्यकरी नाम से उनका सार रूप में आह्वान किया जाता है कि वे जीवन में आर्थिक व खाद्य सम्पन्नता भर दें।
86. सिद्धि लक्ष्मी सहस्रनाम
सिद्धि का अर्थ है “सफलता” या “अलौकिक शक्ति”। लक्ष्मी को सिद्धि कहा जाता है क्योंकि वे धर्म, अर्थ , काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ में सफलता दिलाने वाली शक्ति हैं। सिद्धिलक्ष्मी नाम से भी उनकी आराधना होती है। लक्ष्मी सहस्रनाम में सिद्धलक्ष्मी नाम से देवी को सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली बताया गया है। भक्त जन मानते हैं कि विद्या, कला, व्यापार या साधना – हर क्षेत्र की सफलता के लिए लक्ष्मी की कृपा (सिद्धि) आवश्यक है। इसलिए देवी का यह नाम प्रत्येक कार्य में उनकी आवश्यकता को दर्शाता है।
87. स्त्रैणसौम्या (सदासौम्या) वरलक्ष्मी कथा
स्त्रैण-सौम्या का अर्थ संभवतः “स्त्रियों पर सौम्यता/दया रखने वाली” है (कुछ पाठांतरों में सदा सौम्या भी मिलता है जिसका अर्थ सदा शांति प्रदान करने वाली होता है)। देवी लक्ष्मी को स्त्री जाति की रक्षक भी माना गया है – सुशील स्त्रियों पर उनकी विशेष कृपा रहती है। वरलक्ष्मी व्रत की कथा में यह प्रसंग है कि पुण्यवती नारी चरुमति पर लक्ष्मी इतनी प्रसन्न हुईं कि स्वप्न में आकर व्रत करने को कहा और व्रत से प्रसन्न होकर उसके सहित अन्य स्त्रियों के शरीर पर स्वर्णाभूषण प्रकट कर दिए। यह कथा दर्शाती है कि लक्ष्मी सुहागन स्त्रियों की सौम्य संरक्षिका हैं। अतः स्त्रैणसौम्या नाम उनके उस रूप का द्योतक है जिसमें वे नारी सम्मान और कल्याण की अधिष्ठात्री हैं।
88. शुभप्रदा शास्त्र
शुभप्रदा का अर्थ है “शुभ (मंगल) प्रदान करने वाली”। देवी लक्ष्मी को शुभप्रदा कहते हैं क्योंकि वे अपने भक्तों को जीवन के सभी शुभ फल प्रदान करती हैं – जैसे धन, सुख, स्वास्थ्य, संतति, कीर्ति आदि। वे अपने आगमन से ही घर में सुख-शांति ले आती हैं। मंगलमूर्ति गणेश के साथ भी लक्ष्मी का नाम जोड़ा जाता है (शुभ-लाभ) । पुराणों में लक्ष्मी को शुभां कहकर पुकारा गया है जिसका भाव यही है कि वे मंगल की उत्प्रेरक हैं। अतः शुभप्रदा नाम से लक्ष्मी के उस कल्याणकारी रूप की स्तुति की जाती है जो भक्तों के जीवन में सर्वथा मंगल ही मंगल भर देता है।
89. नृपवेश्मगतानन्दा लोक-विश्वास
नृप-वेेश्म-गत-आनन्दा का अर्थ है “राजाओं के महलों में जाकर आनंद देने वाली”। यह नाम बताता है कि देवी लक्ष्मी राजाओं (शासकों) के भवन में वास करती हैं और वहाँ ऐश्वर्य तथा आनंद भर देती हैं। प्राचीन मान्यता थी कि जहां धर्मपरायण राजा होता है, वहाँ लक्ष्मी स्थायी रहती हैं जिससे राज्य सुखी और समृद्ध होता है। श्रीराम राज्य इसका उदाहरण है जहां प्रजा लक्ष्मी-कृपा से आनंदित थी। लक्ष्मी के इस नाम से संकेत है कि वे समृद्धि को राजप्रासादों से लेकर सामान्य गृहों तक ले जाती हैं, किंतु विशेषतः वह राज्य सुखी होता है जहाँ लक्ष्मी (धन-नैतिकता) का निवास हो।
90. वरलक्ष्मी भविष्योत्तर पुराण
वरलक्ष्मी का अर्थ है “वरणीय लक्ष्मी” या “वर देने वाली लक्ष्मी”। भविष्योत्तर पुराण में वर्णित वरलक्ष्मी व्रत की महिमा से यह नाम प्रसिद्ध हुआ है। कथा में स्वयं शिव पार्वती से कहते हैं कि वरलक्ष्मी व्रत करने से लक्ष्मीजी सहज प्रसन्न होकर सारे वर (मनोकामनाएँ) पूर्ण करती हैं। इसी कारण व्रत का नाम भी वरलक्ष्मी पड़ा – यानी इच्छा पूर्ति करने वाली लक्ष्मी। यह नाम सीधे तौर पर दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी सभी प्रका र के वरदान देने में समर्थ हैं और भक्तों की पुकार पर उन्हें मनचाहा फल देती हैं।
91. वसुप्रदा अष्टलक्ष्मी
वसु-प्रदा का अर्थ है “धन (वसु) प्रदान करने वाली”। देवी लक्ष्मी ही समस्त धन-संपदा की दात्री हैं। अष्टलक्ष्मी में धनलक्ष्मी स्वरूप इस तथ्य को प्रतिपादित करता है कि लक्ष्मी की कृपा से धन-वर्षा होती है। विष्णु पुराण में भी कहा गया कि लक्ष्मी के बिना कोई भी धनवान नहीं हो सकता। वसुप्रदा नाम में लक्ष्मी के इस धनदायी रूप का गुणगान है – वे चाहें तो रंक (निर्धन) को पल में राजा बना दें। अतः इस नाम से देवी से प्रार्थना की जाती है कि वे कृपा कर अपार धन प्रदान करें।
92. शुभा स्तुति
शुभा का अर्थ है कल्याणमयी या स्वयं शुभत्व से युक्त। लक्ष्मी को शुभा कहा गया है क्योंकि वे साक्षात शुभ-शक्ति हैं – जहाँ वे रहती हैं वहाँ अशुभ कुछ नहीं टिकता। शास्त्र कहते हैं, “यस्य गृहे स्थिता लक्ष्मीः तस्य शुभं ही शुभम्” – जिसके घर लक्ष्मी हैं वहाँ प्रत्येक घटना शुभफलदायी होती है। इसीलिए लक्ष्मीजी को शुभां (शुभस्वरूपा) कहते हैं। यह नाम उनके मंगलदायक और पवित्र गुणों को संक्षेप में प्रकट करता है।
93. हिरण्यप्राकारा वेद (श्रीसूक्त)
हिरण्यप्राकारा का शाब्दिक अर्थ है “सोने की प्राचीर/परिवेश से युक्त”। श्रीसूक्त में लक्ष्मी को “हिरण्यप्राकारमा” कहा गया है, जिसमें भाव है कि देवी चारों ओर स्वर्णिम आभा से घिरी हैं। उनका निवास स्वर्ण-प्राचीरों वाले वैकुण्ठ धाम में है। इस नाम से माँ लक्ष्मी की अपार संपदा और तेज का पता चलता है – वे स्वर्ण महलों में निवास करने योग्य हैं और उनका परिवेश सोने जैसा उज्ज्वल है। साथ ही यह नाम यह भी दर्शाता है कि जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उनके चारों ओर सोने सी चमकती सुख-संपदा की दीवार खड़ी हो जाती है जो हर संकट को रोके रहती है।
94. समुद्रतनया विष्णु पुराण
समुद्रतनया का अर्थ है “समुद्र की पुत्री”। यह देवी लक्ष्मी का प्रसiddhi नाम है क्योंकि वे क्षीरसागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न हुई थीं। विष्णु पुराण, हरिवंश आदि में लक्ष्मी को क्षीरसागर-मंथन से उद्भवित बताया गया और क्षीराब्धि-कन्या या सागरतनया जैसे विशेषण दिए गए। समुद्रतनया नाम उसी पौराणिक घटना की ओर सीधा संकेत करता है – की लक्ष्मीजी समुद्र-राज की कन्या हैं। इस नाम के स्मरण से भक्त उस कथा को याद करते हैं जिसमें देवताओं ने उन्हें समुद्र से प्राप्त कर श्री रूप में सम्मानित किया था।
95. जया दुर्गा सप्तशती
जया का अर्थ है “विजयिनी” (सदैव विजय पाने वाली)। देवी-देवताओं के लिए जय संज्ञा का प्रयोग होता है, जैसे दुर्गाजी को “जयन्ती” कहा गया है। लक्ष्मीजी को जया कहने का तात्पर्य है कि वे स्वयं भी सभी संघर्षों में विजयी हैं और अपने भक्तों को भी विजय दिलाती हैं। पौराणिक कथाओं में गजलक्ष्मी रूप में उन्होंने देवराज इंद्र को खोया ऐश्वर्य वापस दिलाया था – यह विजय का प्रतीक है। अतः जया नाम से उनका आवाहन कर भक्त जीवन के संग्रामों में विजय का आशीर्वाद मांगते हैं।
96. मङ्गला (देवी) दुर्गा सप्तशती
मङ्गला देवी अर्थात “मंगल (शुभ) करने वाली देवी”। दुर्गा सप्तशती के पाठ में देवी को मङ्गला नाम से संबोधित किया गया – “जयन्ती मङ्गला काली…” जिसमें मङ्गला का अर्थ है शुभदायिनी। लक्ष्मी स्वयं परम मङ्गलमयी देवी हैं, वे अपने भक्तों के जीवन में सौभाग्य और शुभ घटनाएँ लाती हैं। मंगला गौरी व्रत और शुक्रवार के श्री व्रत में भी लक्ष्मी से घर-परिवार में अखंड मंगल बनाए रखने की प्रार्थना की जाती है। इसलिए यह नाम उनके परम मंगलमय, शुभकारी स्वरूप का स्मरण दिलाता है।
97. विष्णुवक्षस्थलस्थिता पुराण
विष्णु-वक्षःस्थल-स्थिता का अर्थ है “विष्णु के वक्षस्थल (सीने) में प्रतिष्ठित”। यह नाम दर्शाता है कि माता लक्ष्मी सदा भगवान विष्णु के हृदय में निवास करती हैं। पुराणों में वर्णित है कि लक्ष्मी विष्णु के वक्ष पर विराजमान हैं, इसलिए विष्णु को श्रीनिवास (श्री का निवास) कहा जाता है। स्वयं ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में कहा गया “लक्ष्मी उनके (पुरुष के) हृदयरूप में पत्नि हैं”। विष्णु के हृदय में निवास का यह भाव भक्तों को सिखाता है कि वे भगवान के हृदय में दया और प्रेमरूप से स्थित हैं। इस तरह विष्णुवक्षस्थलस्थिता नाम से लक्ष्मी के विष्णु के साथ अभिन्न संबंध (हृदय में सदाविकार) को व्यक्त किया जाता है।
98. विष्णुपत्नी वेद (पुरुषसूक्त)
विष्णुपत्नी यानी भगवान विष्णु की पत्नी। यह नाम सरल होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे लक्ष्मी की पहचान विष्णु से जुड़ी हुई है। ऋग्वेद के प्रसिद्ध पुरुषसूक्त में स्पष्ट कहा गया – “लक्ष्मीश्च पत्नीयम्” अर्थात भगवान नारायण की पत्नी लक्ष्मी ही हैं। सभी पुराणों में भी लक्ष्मी को विष्णुपत्नी (श्रीदेवी) के रूप में पूजा गया है। इस नाम से शाश्वत सत्य स्थापित होता है कि नारायण और लक्ष्मी सदा साथ हैं – भक्त पहले लक्ष्मी (करुणामयी माँ) की शरण जाते हैं, जो पति विष्णु से उन्हें क्षमा दिलाती हैं।
99. प्रसन्नाक्षी पुराण
प्रसन्नाक्षी का अर्थ है “प्रसन्न (हँसते हुए) नेत्रों वाली देवी”। लक्ष्मीजी को प्रसन्नाक्षी कहा जाता है क्योंकि उनके नेत्र सदैव आनंद और दया से भरे होते हैं। उनका हर दृष्टिपात ऐसा है मानो प्रेम बरसा रहा हो। पौराणिक वर्णनों में उनका प्रसन्नाक्षी/प्रसन्नदर्शना रूप बड़ी सहजता से दिखाया गया है – जैसे गरुड़पुराण में श्री को “विलासपूर्ण कटाक्षों वाली” कहा गया। प्रसन्नाक्षी नाम यह विश्वास दिलाता है कि माता लक्ष्मी प्रसन्नचित्त हो अपने भक्तों पर प्रेमपूर्ण दृष्टि डाल रही हैं और उनके दुःख हर रही हैं।
100. नारायणसमाश्रिता वैष्णव परंपरा
नारायण-समाश्रिता का अर्थ है “नारायण का आश्रय लेकर रहने वाली”। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मीजी सदैव भगवान नारायण के आश्रित रहती हैं – वे उनसे कभी अलग नहीं होतीं। वे नारायण के वक्ष में, उनके हृदय में, तथा उनके सान्निध्य में नित्य विराजमान हैं। इस अटूट साथ के कारण ही उन्हें नारायणी भी कहा जाता है। नारायण-समाश्रिता नाम यह दर्शाता है कि देवी लक्ष्मी को स्वयं सर्वाश्रय नारायण का सहचर्य प्राप्त है, इसलिए वे अभय हैं और अपने भक्तों को भी परमेश्वर की शरण में ले जाकर अभय कर देती हैं।
101. दारिद्र्यध्वंसिनी लक्ष्मी सहस्रनाम
दारिद्र्यध्वंसिनी का अर्थ “दरिद्रता का ध्वंस (नाश) करने वाली” – यह दारिद्र्यनाशिनी (नाम क्रमांक 72) का ही समानार्थी नाम है। सहस्रनाम स्तोत्र में यह नाम लक्ष्मी की कृपा से दरिद्रता मिट जाने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। वस्तुतः हिंदू शास्त्रों में श्री (लक्ष्मी) को श्रीहरि की योगमाया कहा गया है – जहाँ श्री नहीं, वहाँ अश्री (दरिद्रता) है। अतः जहाँ लक्ष्मी स्थापित होती हैं, वहाँ से दरिद्रता, क्लेश अपने आप मिट जाते हैं। इस नाम द्वारा भक्त अपनी निर्धनता के विनाश की कामना लक्ष्मी से करते हैं।
102. देवी (महादेवी) देवी उपनिषद
देवी नाम का पुनः उल्लेख यह दर्शाता है कि लक्ष्मी ही समस्त देवियों की अधिष्ठात्री महादेवी हैं। देवी उपनिषद में आदिशक्ति कहती हैं – “मैं ही ब्रह्मविद्या हूँ, रुद्राणी (पार्वती) हूँ, वाराही, वैष्णवी, लक्ष्मी, सरस्वती सब मैं ही हूँ”। अतः लक्ष्मी इस दृष्टि से स्वयं महादेवी हैं। यहाँ दूसरी बार देवी नाम उल्लिखित करके यह इंगित किया गया है कि यद्यपि इस सहस्रनाम/शतनाम में विविध विशेषण हैं, किन्तु लक्ष्मी अंततः वही एकदेवी हैं जिन्हें भिन्न नामों से पुकारा गया।
103. सर्वोपद्रववारिणी पुराण
सर्व-उपद्रव-वारिणी का अर्थ है “सभी आपदाओं/उपद्रवों को वारने (टालने) वाली”। यह नाम दर्शाता है कि माता लक्ष्मी की कृपा से बड़े से बड़े संकट टल जाते हैं। जब वे साथ हों तो कोई उपद्रव पास नहीं फटकता। श्रीसूक्त में भी प्रार्थना है कि “हे लक्ष्मी, मेरी सब विपदाओं को दूर करो”। विष्णु के साथ होने के कारण लक्ष्मी रक्षक स्वरूपा भी हैं – भक्तों के सभी विघ्न-बाधाओं का निवारण वे करती हैं। इस नाम द्वारा लक्ष्मीजी को विश्व की संकटमोचक देवी के रूप में स्मरण किया जाता है।
104. नवदुर्गा लक्ष्मी तंत्र, नारद पुराण
नवदुर्गा का अर्थ है देवी दुर्गा के नौ रूप। शाक्त मत में दुर्गा के नौ रूपों को (शैलपुत्री आदि) नवदुर्गा कहा जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि में होती है। लक्ष्मी तंत्र तथा स्कान्द पुराणान्तर्गत लक्ष्मी सहस्रनाम में लक्ष्मी को परमाद्या महादेवी कहा गया है और दुर्गा, महाकाली, महासरस्वती आदि शक्तियाँ लक्ष्मी के ही विभिन्न रूप बताए गए हैं। नारद पुराण में भी लक्ष्मी के शक्तिशाली रूपों को दुर्गा आदि नामों से वर्णित किया गया है। इस प्रकार नवदुर्गा नाम का उल्लेख लक्ष्मी की सर्वशक्तिमान रूप में दुर्गा समेत समस्त देवियों की अधीश्वरी के अर्थ में होता है।
105. महाकाली लक्ष्मी सहस्रनाम, देवी महात्म्य
महाकाली का अर्थ है “महान काली” – अर्थात काल का संहार करने वाली महामाया। लक्ष्मी सहस्रनाम में लक्ष्मी की महिमा महादेवी, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूपों में गाई गई है। देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) में भी लक्ष्मी को महाकाली के रूप में पूजकर असुरों का नाश करने वाली कहा गया है। पौराणिक कथा में जब दुर्गम नामक असुर ने अत्याचार बढ़ाया तो लक्ष्मी ने दुर्गा रूप धारण कर उसे मारा और तभी से उनका नाम दुर्गा/काली पड़ा। इसप्रकार महाकाली नाम भगवती लक्ष्मी के उग्रतारिणी रूप को इंगित करता है, जिसमें वे समय (काल) को भी जीत लेती हैं।
106. ब्रह्माविष्णुशिवात्मिका शक्त परंपरा
ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका का अर्थ है “ब्रह्मा, विष्णु, शिव – इन तीनों की आत्मस्वरूप शक्ति”। शास्त्रों में एक ओर त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की शक्तियाँ सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती बताई गई हैं, तो दूसरी ओर श्रीविद्या परंपरा में लक्ष्मी को स्वयं पराशक्ति मानकर त्रिदेवों की उत्पत्ति का स्रोत कहा गया है। देवी उपनिषद में आदिशक्ति कहती हैं – “ब्रह्मयोनि अहमस्मि” – अर्थात मैं ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव की जननी शक्ति हूँ। इस नाम से लक्ष्मीजी का वही सर्वोत्पत्तिकारिणी पराशक्ति स्वरूप प्रकट होता है कि त्रिदेव भी जिनसे ऊर्जा पाते हैं , वह शक्ति लक्ष्मी ही हैं।
107. त्रिकालज्ञानसम्पन्ना शास्त्र
त्रिकाल-ज्ञान-संपन्ना का अर्थ है “भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों काल का पूर्ण ज्ञान रखने वाली”। यह देवी के सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले) स्वरूप को इंगित करता है। लक्ष्मीजी को सर्वज्ञ शक्ति माना जाता है – वे सभी जीवों के गत, आगत और वर्तमान का ज्ञान रखती हैं। देवीभागवत आदि पुराणों में कहा गया है कि देवी की दृष्टि समस्त लोकों और कालों पर एकसमान रहती है – वे ईश्वरीय ज्ञान की अधीश्वरी हैं। इस नाम से भक्त विश्वास करते हैं कि माँ लक्ष्मी को उनके मन की, भविष्य की सब बात ज्ञात है; अतः वे हमारी उचित मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगी।
108. भुवनेश्वरी लक्ष्मी सहस्रनाम, तंत्र
भुवनेश्वरी का अर्थ है “तीनों लोकों की ईश्वरी” (भुवन = जगत, ईश्वरी = अधिपति देवी)। यह भी आद्या शक्ति (महादेवी) का एक नाम है, जो दस महाविद्याओं में गिना जाता है। लक्ष्मी सहस्रनाम में भी भुवनेश्वरी नाम से लक्ष्मी की स्तुति की गई है। देवी लक्ष्मी वास्तव में समस्त ब्रह्मांड की संचालिका हैं – त्रिलोक्य की संपदा की स्वामिनी होने के कारण वे भुवनेश्वरी हैं। इस अंतिम नाम के साथ सारतः लक्ष्मीजी की सर्वव्योापक महाशक्ति का बोध होता है कि वे ही इस संपूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री राजेश्वरी हैं।


लक्ष्मीदेवीमहालक्ष्मीसौभाग्यश्रीशक्ति
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