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भगवान हनुमान के 108 शक्तिशाली नाम – हर नाम में छिपी है विजय, भक्ति और रक्षा की शक्ति !

भगवान हनुमान के 108 शक्तिशाली नाम – हर नाम में छिपी है विजय, भक्ति और रक्षा की शक्ति !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

हनुमान जी के 108 पवित्र नाम

नाम (संस्कृत) अर्थ (हिंदी) विवरण व शास्त्रीय संदर्भ (यदि उपलब्ध)
आञ्जनेय अंजना का पुत्र माता अंजना की संतान होने के कारण हनुमान को आञ्जनेय कहा जाता है।वाल्मीकि रामायण सहित विभिन्न ग्रंथों में हनुमान को अंजना-सुत (अंजनीपुत्र) कहकर पुकारा गया है।
केसरीनंदन केसरी के पुत्र हनुमान के पिता वानर राजा केसरी थे, इसलिए उन्हें केसरीनंदन (केसरी के आनंद-दायक पुत्र) कहा जाता है। तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा में भी “शंकर सुवन केसरी नंदन” कहकर यह नाम आया है।
पवनपुत्र / वायुपुत्र पवन देव के पुत्र वायु देवता के आशीर्वाद से जन्म लेने के कारण हनुमान पवनपुत्र या वायुपुत्र कहलाते हैं। स्वयं वाल्मीकि रामायण में उन्हें “मारुतात्मज” (मारुत = पवन, आत्मज = पुत्र) कहकर संबोधित किया गया है।
हनुमान / हनूमत् (विशाल) जबड़े वाला एक पुराण कथा के अनुसार बाल्यकाल में सूर्य को फल समझकर पकड़ने पर इंद्र के वज्र प्रहार से हनुमान जी की ठुड्डी (हनु ) में चोट लगी, जिससे उनका जबड़ा स्थायी रूप से कुछ विकृत हो गया। इसी कारण उनका नाम हनुमान पड़ा, जिसका संस्कृत अर्थ है “विचित्र या भारी जबड़े वाला”।
महावीर महान वीर, पराक्रमी अपार बल और शौर्य प्रदर्शित करने के कारण हनुमान महावीर (सबसे वीर) कहलाते हैं। उनकी वीरता रामायण में समुद्र लांघने से लेकर युद्ध में राक्षस सेना के संहार तक जगप्रसिद्ध है।
बजरंगबली वज्र-अंग वाले बलवान बजरंगबली शब्द “वज्र-अंग बली” का अपभ्रंश है। इसका अर्थ है “वज्र के समान अंगों वाला शक्तिशाली व्यक्ति।” हनुमान के शरीर को वज्र से भी कठोर और मजबूत माना गया है, इसलिए उत्तर भारत में भक्तिपूर्व क उन्हें बजरंगबली कहा जाता है।
संकटमोचन संकटों को दूर करने वाले हनुमान जी अपने भक्तों के सभी दु:ख-दर्द और संकट हर लेते हैं, इसीलिए भक्ति परंपरा में उनका नाम संकटमोचन (संकटों का मोच क, दूर करने वाला) प्रसिद्ध हुआ। तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा में भी उन्हें “संकट तें हनुमान छुड़ावै” कहकर स्मरण किया जाता है, जो उनके संकटहरण स्वरूप की पुष्टि करता है।
मारुति मारुत (पवन) के पुत्र मारुति तथा मारुतात्मज दोनों ही शब्दों का अर्थ “पवनदेव के पुत्र” है। हनुमान वायु के अंश से उत्पन्न हुए , इसीलिए वाल्मीकि रामायण में उन्हें मारुतात्मज कहा गया है। दक्षिण भारत में विशेषतः हनुमान को आञ्जनेय के साथ मारुति नाम से भी पुकारा जाता है।
कपीश्वर कपियों के ईश्वर (स्वामी) हनुमान वानर-भालुओं की सेना के अग्रणी एवं सर्वश्रेष्ठ सदस्य थे, इस कारण उनका नाम कपीश्वर (वानरों के स्वामी) पड़ा। भगवान राम स्वयं उन्हें “कपिश्रेष्ठ” (समस्त वानरों में श्रेष्ठ) कहते हैं।
वानर वानर (बंदर) कुल में जन्मे हनुमान जी देवतुल्य वानर (कपि) योनि में अवतरित हुए। रामायण में वे सुग्रीव की वानर सेना के प्रमुख योद्धा थे। इसी कारण वे कपि (वानर) के रूप में जाने जाते हैं। उनका बाहरी स्वरूप वानर का है किन्तु चरित्र दैवीय है, जो यह 示 करता है कि भगवान किसी भी रूप में भक्तों की सहायता को आ सकते हैं।
अञ्जनागर्भसम्भूत अंजना के गर्भ से उत्पन्न हनुमान जी माता अंजना के गर्भ से प्रकट हुए, इसलिए उनकी एक उपाधि अञ्जनागर्भसम्भू त (अंजना के गर्भ से उत्पन्न) भी है । अनेक ग्रंथों में हनुमान की जन्मकथा में अंजना का तप एवं शिव के प्रसाद से उनके गर्भ में हनुमान का आविर्भाव वर्णित है।
बालार्कसदृशानन बाल सूर्य के समान मुख-कांति वाले हनुमान जी के मुखमण्डल की आभा उदय होते हुए बाल-सूर्य के समान वर्णित की गई है। इसी आधार पर उन्हें बालार्क-सदृशानन कहा जाता है, जिसका अर्थ है “बाल सूर्य के समान चेहरे वाले”। यह नाम उनके दिव्य तेज को दर्शाता है।
लंकिनीभंजन लंकिनी नामक राक्षसी को परास्त करने वाले सुंदरकांड की कथा के अनुसार, लंका नगरी के द्वार पर प्रहरी राक्षसी लंकिनी को हनुमान ने एक मुक्के से परास्त किया था । ब्रह्मा के वरदान से बंधी हुई लंकिनी को पराजित कर हनुमान ने उसका अभिमान तोड़ा, इसलिए वह नाम लंकिनीभंजन (लंकिनी को भंग करने वाले) उन पर सूचित होता है।
सिंहिकाप्राणभंजन सिंहिका राक्षसी के प्राण नष्ट करने वाले समुद्र पार करते समय हनुमान का साया पकड़ने वाली समुद्री राक्षसी सिंहिका को हनुमान ने मार डाला था (उसके प्राणों का भंजन किया)। इस पराक्रम के कारण हनुमान सिंहिकाप्राणभंजन कहलाते हैं। वाल्मीकि रामायण (सुंदरकांड) में यह प्रसंग मिलता है कि कैसे हनुमान ने छल से घात लगाने वाली सिंहिका का अंत कर दिया।
अक्षहन्ता अक्ष (अक्षयकुमार) का संहारकर्ता रावण के पुत्र अक्षयकुमार (जिसे अक्ष भी कहते हैं) का वध हनुमान ने लंका में युद्ध करते समय अपने पराक्रम से किया था । इसीलिए उन्हें अक्षहन्ता (अक्ष का संहार करने वाला) कहा जाता है। यह घटना लंकाकांड में हनुमान की वीरता का परिचायक है।
भीमसेन-सहायक भीमसेन (भीम) के सहायाकारका महाभारत के वनपर्व में हनुमान अपने आधे भाई भीमसेन से वन में मिले और उनकी शक्ति की परीक्षा लेकर उनका घमंड दूर किया। साथ ही हनुमान ने भीम को कठिन मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस भी दिया। इस हेतु हनुमान को भीमसेन-सहायक (भीम के सहायक) कहा जाता है। भविष्यमें कुршेत्र युद्ध में भी हनुमान अर्जुन-भीम आदि पांडवों के सहायक रहे (अरjuna के रथ पर ध्वजा के रूप में)।
सर्वदुःखहरा सभी दुःखों को हरने वाले भक्तों के कष्ट निवारण में हनुमान अग्रणी हैं। वे अपने उपासकों के सभी दुःख-दर्द दूर कर देते हैं, इसलिए उन्हें सर्वदुःखहरा (सभी दुःखों को हरने वाला) कहा गया है। कलियुग में हनुमत उपासना को पीड़ा-नाशक माना गया है – “भक्तों के सब दुःख दूर करें हनुमान”।
सर्वलोकचारिण समस्त लोकों में विचरण करने वाले हनुमान जी को त्रिलोकविजयी कहा जाता है – वे देवLok, मर्त्यLok, पाताल आदि सभी लोकों में मुक्त रूप से गमन कर सकते हैं। इसी गुण के कारण उन्हें सर्वलोकचारिण कहा गया है। उदाहरणतः वे आकाश में सूर्य तक पहुंचे, पाताल लोक में अहिरावण वध हेतु उतरे, तथा धरती पर तो राम-काज में विचरण किया हीen.wikipedia.org।
मनोजव मन के समान वेग वाले संस्कृत स्तुति में हनुमान को “मनोजवम् मारुत-तुल्य-वेगम्” कहा गया है – अर्थात उनके पास मन की तरह (विचार-जैसी) तीव्र गति है। वे पवन देव के पुत्र हैं, अतः उनकी गति पवन (हवा) समान है। इस गुण के कारण उनका नाम मनोजव पड़ा, क्योंकि वे सूक्ष्म रूप में मनोविचार जैसी तीव्रता से कहीं भी प्रकट हो सकते हैं।
पारिजात-द्रुमूल-स्थ पारिजात वृक्ष की जड़ पर स्थित (वासी) राम-रावण युद्ध के बाद मान्य कथा के अनुसार हनुमान हिमालय के गंधमादन पर्वत पर बस गए, जहाँ दिव्य पारिजात वृक्ष स्थित था। इसी से उनका नाम पारिजात-द्रु-मूल-स्थ हुआ, अर्थात पारिजात के पेड़ की जड़ के समीप रहने वाले। यह नाम संकेत करता है कि लंका विजय के पश्चात हनुमान ध्यान-तप के लिए हिमालय चले गए थे।
सर्वमन्त्रस्वरूप समस्त मन्त्रों के स्वरूप वाले हनुमान जी को सभी वेद-मन्त्रों का जीवंत स्वरूप माना जाता है। भक्ति धारणा है कि हनुमान नाम स्वयं एक महामंत्र है जिसमें समस्त मन्त्रों का प्रभाव समाहित है। वेद-पुराणों में संकेत मिलता है कि हनुमान चालीसा व अन्य स्तुतियों में उनके अनेक नाम जपने मात्र से सभी मन्त्रों का फल मिल सकता है – इसलिए उन्हें सर्वमन्त्रस्वरूप कहा जाता है।
सर्वतन्त्रस्वरूपिण सभी तंत्रों के स्वरूपधारी इसी प्रकार हनुमान को सभी तांत्रिक शक्तियों और योग-विधाओं का अधिष्ठाता माना जाता है। वे भक्ति, योग एवं तंत्र सभी मार्गों में सक्षम हैं। इस सर्वशक्तिमान रूप में उन्हें सर्वतन्त्रस्वरूपिण कहा गया है – यानि वे प्रत्येक तंत्र (शक्ति/विद्या) के स्वामी स्वरूप हैं।
सर्वयन्त्रात्मक सभी यंत्रों में अंतर्निहित आत्मा तांत्रिक मान्यताओं में हनुमान को प्रत्येक यंत्र (देवी-देवताओं के चक्र/यंत्र) की आत्म-शक्ति माना गया है। अर्थात प्रत्येक शुभ यंत्र में हनुमान की चेतना विद्यमान है। इस कारण एक नाम सर्वयन्त्रात्मक भी मिलता है, जो बताता है कि समस्त यंत्रों की शक्ति हनुमान से ही उत्पन्न होती है।
कुमार-ब्रह्मचारी सदैव युवा ब्रह्मचारी हनुमान आजीवन ब्रह्मचारी (निःस्पृह रहते हुए अविवाहित) रहे हैं। उन्होंने युवावस्था से लेकर अनंतकाल तक ब्रह्मचर्य का पालन किया, इसीलिए उन्हें कुमार ब्रह्मचारी (युवा तपस्वी) कहा जाता है। उनकी ब्रह्मचर्य शक्ति के कारण ही उन्हें अष्टसिद्धियाँ प्राप्त हुईं और वे चिरंजीवी बने।
महाकाय अत्यंत विशाल काया वाले हनुमान अपनी इच्छा से अपना शरीर पर्वत के समान विशाल बना सकते हैं। उनकी आकृति बढ़कर विशालकाय हो जाती है, इसलिए वे महाकाय (महान आकार वाले) कहे जाते हैं। रामायण में समुद्र लांघते समय उन्होंने पर्वताकार रूप धारण किया था और त्रिकूट पर्वत (लंका) पर उतरते समय पूरा आकाश ढक लिया था।
सर्वरोगहरा सभी रोगों को हरने वाले श्री हनुमान की कृपा से भक्तों के शारीरिक-मानसिक समस्त रोग व व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। शनिदेव ने भी हनुमान को वरदान दिया कि उनकी पूजा करने से ग्रहजनित रोग-शोक नहीं सताएंगे। इस प्रकार सर्वरोगहरा नाम हनुमान जी के रोगनाशक स्वरूप को दर्शाता है।
प्रभव प्रभावशाली, महान प्रभुत्व वाले हनुमान जी असाधारण तेज, बल और गुणों से सम्पन्न होकर महान प्रभाव वाले व्यक्तित्व हैं। उनका प्रभुत्व देवता, मानव, दानव सभी स्वीकार करते हैं। इसी आधार पर उन्हें प्रभव (शक्तिशाली प्रभावान) कहा गया है। रामायण में अंगद कहते हैं – “हनुमान के प्रताप से सम्पूर्ण लंका काँप उठी।”
बलसिद्धिकर बल और सिद्धि प्रदान करने वाले हनुमान अपने भक्तों को अद्भुत बल प्रदान करते हैं और अपनी कृपा से उन्हें सिद्धि-सफलता दिलाते हैं। भक्ति मान्यता है कि हनुमान जी “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता” हैं – अर्थात आठों महासिद्धियाँ और नौ निधियाँ देने में समर्थ हैं इसलिए उनका नाम बल-सिद्धिकर (बल और सिद्धि देने वाला) प्रसिद्ध है।
भक्तवत्सल भक्तों पर पुत्रवत स्नेह करने वाले हनुमान अपने भक्तों पर पिता समान वात्सल्य रखते हैं। जो भी श्रद्धालु उनकी शरण आता है, उस पर वे पुत्र की तरह स्नेह-दृष्टि रखते हैं। इसी कारण उन्हें भक्तवत्सल कहा जाता है – अर्थात भक्तों के प्रति अत्यंत स्नेहशील एवं कृपालु देव।
दीनबंधु दीन-दुखियों के मित्र एवं रक्षक हनुमान गरीब, असहाय एवं दुःखी जनों के रक्षक हैं। वे हमेशा दुर्बलों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं, इसलिए दीनबंधु (दीनों के बंधु) कहलाते हैं। रामायण में विभीषण ने हनुमान को “दीनदयाल” कहा – जो दीनों पर दया करने वाले हैं। यह नाम उनके करुणामय स्वभाव को दर्शाता है।
धीर धैर्यवान एवं वीर अपार शक्ति के बावजूद हनुमान अत्यंत संयमी एवं धैर्यवान हैं। उन्होंने हर कठिन परिस्थिति में धीरज नहीं खोया – चाहे समुद्र पार करते समय विपत्तियाँ आई हों या लंका में रावण के समक्ष धैर्य रखा। उनके इसी गुण के कारण उन्हें धीर (स्थिरचित्त वीर) कहा जाता है। उनकी वीरता के साथ धैर्य समन्वयित है।
दशग्रीव-कुलान्तक दशग्रीव (रावण) के कुल का अंत करने वाले दशग्रीव रावण का ही अन्य नाम है (दस सिर वाला)। हनुमान ने भगवान राम की युद्ध में सहायता करके तथा रावण की लंका का विनाश करके राक्षस कुल के विनाश में प्रमुख भूमिका निभाई। इस हेतु उन्हें दशग्रीव-कुलांतक कहा जाता है – अर्थात् रावण के कुल का नाश करने वाला। यह नाम संकेत करता है कि रावण-वध रूपी अंत में हनुमान का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
गन्धर्वविद्या-तत्वज्ञ गंधर्व विद्याओं के तत्व के जानकार हनुमान जी संगीत, नृत्य आदि गन्धर्व-कलाओं में भी प्रवीण माने जाते हैं। उनके एक नाम गन्धर्वविद्या-तत्त्वज्ञ का तात्पर्य है कि वे गन्धर्वों की विद्याओं के तत्व को भली-भांति जानते हैं। प्राचीन कथा अनुसार हनुमान को संगीत का ऐसा ज्ञान था कि नारद मुनि भी उनसे हार मान गए थे – इसलिए यह नाम उनकी कलाप्रवीणता का द्योतक है।
गन्धमादन-शैलस्थ गंधमादन पर्वत पर स्थित (वासी) लंक विजय के उपरांत हनुमान जी ने शेष जीवन हिमालय के गंधमादन पर्वत पर तप में बिताया – ऐसी मान्यता है। वे वहीं से भीम आदि को दर्शन देते हैं। इसीलिए उनका नाम गन्धमादन-शैलस्थ हुआ, अर्थात गंधमादन पर्वत का वासी। आज भी बद्रीकाश्रम क्षेत्र में एक हनुमान चट्टी स्थान है जिसे हनुमान का निवास क्षेत्र माना जाता है।
जाम्बवत्-प्रीति-वर्धन जाम्बवान की प्रीति (प्रसन्नता) बढ़ाने वाले लक्ष्मण के मूर्छित होने पर जाम्बवान ने हनुमान को संजीवनी लाने की याद दिलाई। हनुमान के हिमालय से पूरा पर्वत उठा लाने पर वृद्ध जाम्बवान अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी प्रशंसा की। इसी घटना से हनुमान को जाम्बवत्-प्रीति-वर्धन कहा गया – अर्थात जिन्होंने जाम्बवान की प्रीति (आनंद) बढ़ाई । यह नाम उनकी त्वरित कृति और वरिष्ठ जनों को संतोष देने वाले स्वभाव को दर्शाता है।
भविष्य-चतुरानन भविष्य के चतुरानन (ब्रह्मा) पुराणों की एक मान्यता अनुसार कलियुग के अंत तक हनुमान पृथ्वी पर रहकर धर्मकार्य करेंगे और वर्तमान ब्रह्मा के काल समाप्ति पर अगले कल्प में स्वयं ब्रह्मा पद को सुशोभित करेंगे। इसी कारण हनुमान का एक नाम भविष्य-चतुरानन भी बताया गया है – अर्थात भविष्य में चार मुख वाले सृष्टिकर्ता (ब्रह्मा) बनने वाले। यह नाम उनकी चिरंजीवित्व और ईश्वरीय महिमा को सूचित करता है।
चञ्चलद्वाल-शिखोज्ज्वल मस्तक के ऊपर चमकती चंचल पूँछ वाले हनुमान जी की पूँछ उनके लिए अत्यंत गौरव का है। चित्रों में भी उनकी पूँछ अक्सर माथे के ऊपर लहराती दिखती है। चञ्चल-द्वाल-लम्बमान-शिखोज्ज्वल नाम का अर्थ है “जिसकी चंचल पूँछ शिखर (सिर) पर उज्ज्वल रूप में सुशोभित है यह नाम संकेत करता है कि लंका दहन के समय जला हुआ पूँछ का अग्रभाग भी उनके मस्तक पर विजयकेतु जैसा चमक रहा था।
चिरंजीवी चिरंजीवी (अमर) हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है – वे सात चिरंजीवियों में से एक हैं जो कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर विद्यमान रहेंगेwemy.in। इसी कारण उनका प्रमुख नाम चिरंजीवी (सदैव जीवित रहने वाले) है। विभिन्न ग्रंथों में युगों-युगों तक हनुमान के जीवित रहने की कथाएँ हैं, जैसे महाभारत में भीम से मुलाकात और कलियुग में मध्वाचार्य को दर्शन देना।
चतुर्बाहु / चतुर्वजू (संस्कृत में 'बाहु' = भुजा) चार भुजाओं वाले हनुमान के प्रसिद्ध पंचमुखी रूप में उनके पाँच मुख और दस भुजाएँ दर्शाई जाती हैं। किन्तु उनके चतुर्भुज रूप का भी वर्णन मिलता है – जिसमें उनके चार हाथ हैं और वे भगवान की तरह शंख-चक्र-गदा-पदम धारण किए हैं। अतः चतुर्बाहु नाम हनुमान के विष्णु-समान रूप अथवा ब्रह्मचारी रूप को दर्शाता है। इस रूप में वे भक्तों को अभयदान देते हैं।
दान्त दमन की हुई इन्द्रियों वाले (संयमी) दान्त का अर्थ है “जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया हो।” हनुमान जी काम, क्रोध आदि पर पूर्ण विजय प्राप्त योगी हैं। उनके इसी जितेन्द्रिय गुण के कारण उन्हें दान्त कहा गया है – अर्थात पूर्णतः संयमी एवं शांत स्वभाव वाले। वे क्रोध को नियंत्रित कर उचित समय पर ही उसका प्रयोग करते थे (जैसे लंका दहन के समय)।
शान्त शांतचित्त, अति शांत स्वभाव वाले हनुमान जी बलवान होते हुए भी विनम्र एवं शांतचित्त हैं। अगर परिस्थितियाँ न करें तो वे उग्र रूप धारण नहीं करते। इस धीर-गंभीर, शांत स्वभाव के कारण उनका एक नाम शान्त है। उदाहरणतः रावण सभा में बाँधे जाने पर भी हनुमान आतुर नहीं हुए बल्कि धैर्यपूर्वक विभीषण आदि से वार्तालाप करते रहे।
प्रसन्नात्मा प्रसन्न आत्मा, सदैव खुश रहने वाले हनुमान जी सदा आनंदित, प्रसन्नचित्त एवं सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। उन्हें प्रसन्नात्मा कहा गया है – अर्थात जिनका आत्मभाव प्रसन्न है। सीता जी ने अशोक वाटिका में हनुमान को देखा तो मन प्रसन्न हुआ, क्योंकि हनुमान के मुख से अद्भुत तेज और प्रसन्नता टपकती थी।
शत-कण्ठ-मदापहर्ता शत-कंठ के घमंड को दूर करने वाले शतकण्ठ का शाब्दिक अर्थ “सौ गले” है। कुछ विद्वान इसे कुबेर या इंद्र का पर्याय मानते हैं। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि हनुमान ने किसी अत्यंत अहंकारी देव या असुर (जिसे सौ कंठों वाला कहा गया) का घमंड चूर किया। शत-कण्ठ-मदापहर्ता अर्थात “शत-कंठ के मद (अहं) को अपहरण करने वाले”। यह सम्भवतः इंद्र का घमंड तोड़ने (शिशु हनुमान को वज्र से मारने पर) या रावण-कुंभकर्ण के वंश (100 पुत्र) के नाश की ओर संकेत करता है।
योगी महान योगी, तपस्वी हनुमान जी परम योगेश्वर हैं – उन्हों ने कठोर तप, ब्रह्मचर्य और ध्यान द्वारा अपार सिद्धियाँ हासिल कीं। वे साक्षात शिव के अवतार माने जाते हैं, जो सर्वोच्च योगी हैं। इसलिए उनका एक नाम योगी भी है। हनुमान जी ध्यानमग्न मुद्रा में भी पूजे जाते हैं, जहाँ वे राम-नाम जपते हुए योगासन में बैठे दिखते हैं – यह उनके योगीस्वरूप का परिचय है।
रामकथा-लोभन रामकथा के श्रवण में लोलुप (आसक्त) हनुमान जी को रामकथा सुनने का अत्यंत लोभ (लालसा) रहता है। रामकथा-लोलुप नाम से अर्थ है “जो राम की कथा के रस में डूबे रहने को उत्सुक हों”। हर जगह कहा जाता है कि जहाँ भी रामायण का पाठ होता है, हनुमान जी अदृश्य रूप में वहाँ उपस्थित होकर श्रवण करते हैं। उनकी यह रामकथा-प्रीति उन्हें रामकथा का प्रथम श्रोता बनाती है।
सीतान्वेषण-पण्डित सीता को खोज निकालने में प्रवीण हनुमान जी ने लंका में माता सीता की खोज बड़ी चतुराई एवं विद्वत्ता से की। तुलसीदास लिखते हैं “सुंदर सकल मोहे हु बुझाई” – उन्होंने पूरे अशोकवाटिका का अनुसंधान कर सीता जी को खोज निकाला। इस अद्भुत कार्य की वजह से उनका नाम सीतान्वेषण-पंडित (सीता की खोज के विशेषज्ञ) रखा गया। यह नाम उनकी बुद्धिमत्ता और अनुसंधान कौशल को दर्शाता है।
वज्रनख वज्र के समान कठोर नाखून वाले हनुमान जी के नख (नाखून) वज्र के समान अमोघ और कठोर माने जाते हैं। वज्रनख का अर्थ है “वज्र जैसे नखों वाला”। कई मूर्तियों में हनुमान के हाथ के नाखून बढ़े हुए दिखते हैं जो दर्शाते हैं कि वे अपने नखों से भी शत्रु का संहार कर सकते हैं (जैसे नरसिंह भगवान ने किया था)।
रुद्रवीर्यसमुद्भव रुद्र (शिव) के वीर्य (शक्ति) से उत्पन्न शैव मत के अनुसार हनुमान भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि शिव ने अपने तेज से हनुमान रूप में अवतार लिया। इसीलिए उनका नाम रुद्रवीर्यसमुद्भव पड़ा – अर्थात रुद्र के वीर्य से उत्पन्न हुए। हनुमान चालीसा में भी उन्हें “शंकर सुवन” (शंकर के पुत्र) कहा गया है, जो इसी ओर संकेत करता है।
इन्द्रजित-प्रहित-अमोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारक इन्द्रजित (मेघनाद) के छोड़े अचूक ब्रह्मास्त्र को विफल करने वाले लंकाकांड में रावण-पुत्र मेघनाद (इन्द्रजित) ने हनुमान को बांधने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र का सम्मान रखते हुए स्वयं को बंधन में बंध जाने दिया, लेकिन बाद में चतुराई से उस अस्त्र के प्रभाव से मुक्त भी हो गए। इस पराक्रम के कारण उनका नाम इन्द्रजित-प्रहित-अमोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारक (मेघनाद द्वारा छोड़े गए अचूक ब्रह्मास्त्र का निवारण करने वाले) प्रसिद्ध है।
“कपिध्वज” पार्थ (अर्जुन) के रथ-ध्वज के शिखर पर निवास करने वाले महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के आग्रह पर हनुमान जी ने अर्जुन के रथ के ध्वज (पताका) पर स्थान लिया था। भगवद्गीता 1.20 में अर्जुन को “कपिध्वज” कहा गया – अर्थात जिसके रथ पर कपि (हनुमान) ध्वजा पर विराजमान हों । इसलिए हनुमान का नाम पार्थ-ध्वजाग्र-संवासि हैg – जो अर्जुन के रथ के शीर्ष पर निवास करते हैं।
शरपञ्जर-भेदक तीरों के पिंजरे/सेतु को भेदने वाले एक पौराणिक प्रसंग में, अर्जुन ने भगवान राम की लीला सुनकर अहंकारवश कहा था कि वे तीरों का पुल बना देते तो वानरों को पत्थर जोड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती। श्रीकृष्ण ने परीक्षा ली और हनुमान को उस तीरों के पुल पर चलने भेजा। हनुमान के कदम रखते ही अर्जुन के तीरों का पुल टूटकर बिखर गया, जिससे अर्जुन का गर्व भंग हुआ। तब से हनुमान शरपञ्जर-भेदक (तीरों के पञ्जर/जाल को भेदने वाला) कहे गए
दशबाहु दस भुजाओं वाले पंचमुखी हनुमान स्वरूप में हनुमान जी के पाँच मुख और दस भुजाएँ होती हैं (प्रत्येक मुख के दो भुजाएँ)। इस उग्र रूप में वे दसों भुजाओं से शत्रुनाश करते हैं। इसलिए दशबाहु नाम प्रसिद्ध है। यह नाम संकेत करता है कि हनुमान शक्ति, शस्त्र और संरक्षण सभी दिशाओं में प्रदान करते हैं – उनके दस हाथ रक्षा और आशीर्वाद के प्रतीक हैं।
लोकपूज्य तीनों लोकों द्वारा पूजा जाने योग्य हनुमान जी लोकपूज्य हैं, अर्थात तीनों लोकों में पूजनीय हैं। पृथ्वी पर तो उनको भक्त पूजते ही हैं, साथ ही स्वयं देवी-देवता भी हनुमान जी की स्तुति करते हैं। रामायण में देवताओं ने हनुमान को रामकाज में बाधाओं को पार करने हेतु आशीर्वाद दिया था और अंत में उनकी विजय पर पुष्पवर्षा की थी – यह दर्शाता है कि वे स्वर्गलोक में भी आदरणीय हैं।
सागरोत्तरक समुद्र को पार करने वाले हनुमान जी ने श्रीराम का संदेश लेकर सुग्रीव के दूत रूप में लगभग 100 योजन (800 मील) विस्तृत समुद्र को एक ही छलांग में पार किया। ऐसा अद्वितीय कार्य केवल हनुमान ने ही किया, इसीलिए उन्हें सागरोत्तरक (सागर को उत्तीर्ण करने वाले) कहा जाता है।वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में हनुमान की इस समुद्र-लंघन लीला का विस्तृत वर्णन मिलता है।
सीताशोकनाशन / सीताशोकनिवारक सीता के शोक का नाश करने वाले अशोक वाटिका में हनुमान ने सीता माता को रामचंद्र जी की अँगूठी और संदेश देकर उनका संताप दूर किया था। सिया राम का स्मरण पाकर सीता जी के हृदय से उदासी मिट गई और उनमें आशा का संचार हुआ। इसलिए हनुमान सीताशोकनाशन अथवा सीताशोकनिवारक कहलाते हैं – अर्थात जिन्होंने माता सीता के शोक का निवारण किया।
श्रीमत् / श्रीमन्त संपदा, सम्मान और ऐश्वर्य से युक्त (महान) श्रीमंत शब्द का अर्थ है “श्री (ऐश्वर्य/समृद्धि) से युक्त व्यक्ति।” हनुमान जी दिव्य ऐश्वर्य, अपार गुण और कीर्ति के भंडार हैं। वे ज्ञान, बल, सिद्धि, भक्ति सभी संपदाओं से सम्पन्न हैं, अतः उनका एक नाम श्रीमत् (विभूति-सम्पन्न) भी है।भक्तजन हनुमान की आरती में गाते हैं “रामरसायन तुम्हरे पासा” – तुम्हारे पास (भक्ति रूपी) संपदा अपरंपार है।
विभीषण-प्रियकर विभीषण को प्रिय (अनुकूल) करने वाले हनुमान जी ने लंका में रावण के अनुचर भाई विभीषण को राम का संदेश देकर, उनका पक्ष जानकर और उनका मन जीता। विभीषण हनुमान की विनम्रता एवं बुद्धिमत्ता से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें “कपिवर” कहकर सम्मान दिया। इसी से हनुमान विभीषण-प्रियकर कहलाते हैं – अर्थात जिन्होंने विभीषण का हृदय जीत लिया। बाद में विभीषण को श्रीराम से मिलाने और लंका का राजा बनाने में भी हनुमान का बड़ा योगदान रहा।
केसरीसुत केसरी के पुत्र केसरीसुत और केसरीनंदन का अर्थ समान है – “वानरराज केसरी का पुत्र।” हनुमान जी के पिता केसरी थे और माता अंजना। उनके वंश का उल्लेख करते हुए उन्हें कई स्थानों पर केसरी-पुत्र कहा गया है। उदाहरणतः हनुमान चालीसा में “केसरी नंदन” तो संस्कृत स्तुति में “केसरी सुताय नमः” आया है।
सुग्रीव-सचिव सुग्रीव के मंत्री (सलाहकार) हनुमान किष्किंधा के राजा सुग्रीव के प्रधान मंत्री एवं सलाहकार थे। वह सुग्रीव के विश्वस्त मित्र भी थे। सुग्रीव-सचिव नाम का अर्थ है “सुग्रीव के मंत्री” । रामायण में हनुमान ने ही सुग्रीव-राम की मैत्री करवाई और युद्ध में वानर सेना को संगठित करने में उनकी भूमिका मंत्री जैसी थी। इस प्रकार वे धर्मराज्य के आदर्श मंत्री माने जाते हैं।
शूर शूरवीर, अत्यंत बहादुर हनुमान अद्भुत पराक्रम और साहस के प्रतीक हैं। वे निरभय होकर असुरों से भिड़ जाते थे और असंभव से कार्य कर दिखाते थे। इसलिए उनका एक नाम शूर (महाबहादुर) भी है । वाल्मीकि रामायण में उन्हें वीर हनुमान अनेक बार संबोधित किया गया है। उनका शौर् य प्रख्यात होने से महावीरो नाम तो है ही, शूर उसी का पर्याय है।
सुरार्चित देवताओं द्वारा अर्चित (पूजित) सुरार्चित का अर्थ है “जिसकी देवताओं ने भी आराधना की हो।” हनुमान जी देवताओं द्वारा वंदित हैं। लंका दहन के बाद जब हनुमान ने रामचंद्र को सीता का समाचार दिया, तब नारद आदि देवर्षियों ने प्रकट होकर उनकी स्तुति की थी। महर्षि भारद्वाज ने भी यज्ञ में हनुमान का आवाहन किया था। इन प्रसंगों के कारण हनुमान सुरों द्वारा अर्चित माने जाते हैं।
स्फटिकाभ स्फटिक (क्रिस्टल) के समान आभा वाले हनुमान जी की दिव्य कांती को स्फटिकाभ कहा गया है – अर्थात जिनका तेज और स्वरूप स्फटिक मणि जैसा निर्मल एवं उज्ज्वल है। इसका तात्पर्य है कि हनुमान पापरहित, निष्कलंक एवं अत्यंत पवित्र तेज वाले हैं। उनकी उपमा कभी सुवर्ण पर्वत से दी जाती है तो कभी चमकते स्फटिक से, जो उनकी अनूठी आभा को दर्शाती है।
संजीवन-नगा-हर्ता संजीवनी (औषधि) पर्वत को उठा लाने वाले युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हुए तो हनुमान हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाने उड़ चले। आवश्यक जड़ी पहचानने में कठिनाई होने पर हनुमान पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही उठा लाए थे। इस अद्वितीय पराक्रम के कारण उन्हें संजीवन-नगाहर्ता कहा जाता है – अर्थात संजीवनी वाले पर्वत को उखाड़ लाने वाले शक्तिमान। आज भी हरिकथा में गाते हैं: “लाए सजीवन लखन जियाये” – यह नाम उसी प्रसंग की याद दिलाता है।
शुचि शुचि = पवित्र, शुद्ध चरित्र वाले शुचि शब्द का अर्थ है पवित्र एवं निर्मल। हनुमान जी पूर्णतः शुद्ध आचार-विचार वाले देवता हैं – उनमें काम, लोभ, मोह का लेश नहीं। इस कारण उन्हें शुचि कहा गया है। वे ब्रह्मचारी हैं, सच्चरित्र हैं, किसी प्रकार के पाप से दूर हैं। भक्तमानस में उनकी छवि निर्मल ज्योति समान है।
वाग्मी सुशील वक्ता हनुमान जी अत्यंत कुशल वक्ता और धारणीय संवादकर्ता हैं। वाग्मी का अर्थ है “प्रवक्ता” – वे आवश्यकता पड़ने पर अपनी वाणी से शत्रु-मित्र सभी को प्रभावित कर लेते हैं। रावण की सभा में भी उन्होंने निर्भीक किन्तु मर्यादित भाषण दिया। तुलसीदास ने उन्हें “कवि” (कवित्व क्षमता वाले) कहा। अतः वाग्मिता के गुण के कारण हनुमान यह नाम धारण करते हैं।
दृढ़व्रत दृढ़ प्रतिज्ञ, अटल संकल्प वाले हनुमान जी जो भी संकल्प लेते हैं उसे पूर्ण करके ही मानते हैं। उनका व्रत (निश्चय) अत्यंत दृढ़ है। इसीसे उन्हें दृढ़व्रत कहा गया – अर्थात अटल प्रतिज्ञावान। उदाहरणार्थ, सीता माता को ढूँढने का संकल्प लेकर वे लंका तक गए और कार्य पूर्ण कर ही लौटे। उनकी दृढ़प्रतिज्ञता का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में “हनुमान् यत्नमस्ति” (हनुमान प्रयास में जुटा ही रहेगा) जैसे वाक्य से हुआ है।
पञ्चवक्त्र / पञ्चमुखी पाँच मुखों वाले (पंचमुखी रूप) यह हनुमान जी के विख्यात पंचमुखी हनुमान स्वरूप को दर्शाता है। भगवान हनुमान ने अहिरावण वध के समय पंचमुखी अवतार लिया था – जिसमें उनके अपने मुख के अतिरिक्त नरसिंह, गरुड़, वराह एवं हयग्रीव के मुख थे। इस रूप में उनके दस भुजाएँ भी थीं। अतः पंचवक्त्र नाम से उनकी पाँच-मुखी शक्ति को पूजा जाता है। पंचमुखी हनुमान की उपासना से भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं ऐसा माना जाता है।
महातपस्वी महान तपस्वी, योगी हनुमान जी बाल्यकाल से ही परम तपस्वी हैं। सूर्य को गुरु मानकर उन्होंने बाल्यकाल में घोर विद्याध्ययन व तप किया था। उनका एक नाम महातपस्वी है – अर्थात महान तप करने वाला योगी। उन्होंने राम सेवा को ही तप का रूप मानकर आजीवन ब्रह्मचर्य और सेवा का व्रत निभाया। कलियुग में भी वे अज्ञात रूप में तपस्यारत हैं ऐसी जनश्रुति है।
दैत्यकार्य-विघातक दैत्यों (राक्षसों) के कार्यों का विध्वंसक हनुमान जहाँ कहीं राक्षसों की कुदृष्टि देखते हैं, उसे विफल कर देते हैं। लंका में उन्होंने राक्षसों द्वारा सीता को सताने के प्रयास विफल किए, मेघनाद के ब्रह्मास्त्र की योजना विफल की, अक्षयकुमार का अंत किया – कुल मिलाकर राक्षसों के हर कुत्सित प्रयास का विनाश किया। इसलिए वे दैत्यकार्यविघातक (असुरों के कार्यों को विफल करने वाले) कहे जाते हैं। भक्त प्रह्लाद के समान हनुमान हर युग में धर्म की रक्षा हेतु दैत्यों के विरुद्ध कार्यरत हैं।
लक्ष्मण-प्राणदात लक्ष्मण कोदान देने वाले मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और उनके प्राण संकट में थे। तब हनुमान संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण वापस ले आए। इस कारण श्रीराम ने प्रसन्न होकर कहा कि “हनुमान ने मेरे भाई के प्राण बचाकर मुझे जीवनदान दिया”। अतः हनुमान का नाम लक्ष्मण-प्राणदाता प्रसिद्ध हुआ। यह नाम उनके चरम परोपकार और चिकित्सक रूप को दर्शाता है।
वज्रकाय वज्र के समान काय (देह) वाले हनुमान जी की काया (शरीर) इंद्र के वज्र जैसे कठोर एवं अजेय है।स्वयं इंद्र का वज्रपात उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका था। पवनपुत्र होने से उनकी देह द्रढ़ और वज्र-सदृश है, इसीलिए उन्हें वज्रकाय कहा जाता है।बजरंगबली नाम भी इसी ओर संकेत करता है कि उनकी भुजाएँ, टाँगें आदि वज्र (बजरंग) जैसी शक्तिशाली हैं।
महाद्युति महान तेज वाले, अत्यंत दीप्तिमान हनुमान जी अपार तेजस्विता से युक्त हैं। उनका रूप महान ओज और प्रकाश से दीप्त है, अतः वे महाद्युति (महान तेज वाले) कहलाते हैं। जब हनुमान लंका में प्रकट हुए तो उनकी प्रभा देख राक्षस आश्चर्यचकित रह गए – यह प्रसंग उनकी देह से प्रस्फुटित महातेज का उदाहरण है। उनकी उपमा सहस्र सूर्यों के प्रकाश से भी दी जाती है।
रामदूत राम के दूत (संदेशवाहक) हनुमान जी श्रीराम के परमभक्त ही नहीं, उनके दूत भी हैं। सुग्रीव द्वारा परिचय मिलने के बाद श्रीराम ने सीता की खोज का दायित्व हनुमान को दिया। हनुमान ने रामदूत बनकर सीता को राम का संदेश और मुद्रिका पहुंचाई । इसी वजह से वह नाम प्रसिद्ध हुआ। तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ही उन्हें “रामदूत अतुलित बलधामा” कहा है – यानि राम के दूत और असीम बल के धाम।
प्रज्ञ / प्राज्ञ अत्यंत बुद्धिमान, ज्ञानी हनुमान जी को प्रज्ञ (प्रखर बुद्धि वाले) तथा महापंडित माना जाता है। उनका नाम प्राज्ञ इस बात का द्योतक है कि वे विद्याओं में पारंगत हैं। स्वयं भगवान राम ने हनुमान की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की थी – “इतनी सुंदर नीति युक्त वचन केवल महान पंडित ही बोल सकता है।” वाल्मीकि रामायण में भी हनुमान को निपुण बुद्धि कहा गया है।
सत्यवचन / सत्यवाक्य सदैव सत्य बोलने वाले सत्यवाक्य या सत्यवचन नाम का अर्थ है “जो सदैव सत्य ही बोले।” हनुमान जी धर्मपरायण हैं – वे कभी असत्य भाषण नहीं करते। माता सीता के समक्ष भी उन्होंने स्वयं को सत्यनिष्ठ रामदूत के रूप में पेश किया, जिससे जानकी जी को उन पर तुरंत भरोसा हो गया। उनके इस सत्यवादी गुण के कारण शास्त्रों में उन्हें सत्यवचन कहा गया हैwemy.in।
सत्यसंकल्प सत्य प्रतिज्ञ, अटल निश्चय वाले हनुमान जी का प्रत्येक संकल्प सत् और अटल होता है। वे वही संकल्प लेते हैं जो धर्मसम्मत हो और उसे किसी भी परिस्थिति में पूरा करके दिखाते हैं। इसलिए सत्यसंकल्प नाम से उनकी ख्याति है। उदाहरणार्थ, उन्होंने जाम्बवान को वचन दिया था कि संजीवनी लेकर ही लौटेंगे, और सचमुच लक्ष्मण को जीवित करके ही लौटे।
कपिश्रेष्ठ कपियों में श्रेष्ठ पूरी वानर जाति में हनुमान सबसे श्रेष्ठ हैं – इस बात को स्वयं भगवान राम और अन्य वानर वीरों ने स्वीकारा। रामायण में हनुमान को कपीश्वर (वानर-स्वामी ) के साथ कपिश्रेष्ठ भी कहा गया है।कपिश्रेष्ठ नाम का अर्थ है “सर्वश्रेष्ठ वानर”। सीता माता ने अशोक वाटिका में हनुमान को देखकर कहा था – “इतने तेजस्वी और बुद्धिमान कपि को रामकाज के लिए स्वयं नरश्रेष्ठ राम ने ही भेजा होगा।”
सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवक सीता सहित श्रीराम के चरणों की सेवा में रत रहने वाले सेवक हनुमान जी अपना जीवन भगवान श्रीराम और माता सीता की सेवा में अर्पित करते हैं। उनका एक नाम सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवाधर (या सेवक) है, जिसका अर्थ: “जो सीता समेत श्रीराम के चरणों की सेवा का भार धारित करते हैं।” वे सदा श्रीराम-सीता के चरणों में उपस्थित रहकर सेवा करने को तत्पर रहते हैं – इसका प्रमाण लंका विजय के बाद सीता-राम के चरणों को स्पर्श कर आज्ञा माँगना था।
वीतराग राग-द्वेष से रहित, विरक्त हनुमान जी ने सभी सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों पर विजय पाई हुई है – वे निरंतर भगवान की शरण में रहने वाले विरक्त महात्मा हैं। इसीलिए उन्हें वीतराग (जिसमें कोई राग-द्वेष न हो) कहा गया है।सुंदरकांड में वर्णन आता है कि लंका में विभीषण ने हनुमान को अपने भोग-सुख का प्रस्ताव दिया, किन्तु हनुमान ने नम्रतापूर्वक यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि “मुझे रामचरन के सिवा और कुछ नहीं चाहिए।”
प्रिय प्रिय, सबको अति प्रिय हनुमान जी अपने गुणों, सेवाभाव और विनम्रता के कारण सबके प्रिय हैं। भगवान श्रीराम के तो वे अत्यंत प्रिय हैं ही (“राम दुलारे” – हनुमान चालीसा), साथ ही विभीषण, सुग्रीव, अंगद जैसे मित्रों के भी प्रिय बने। उनका प्रिय नाम इंगित करता है कि वे जिसके साथ होते हैं, उसके प्यारे बन जाते हैं। उनके शत्रु भी अंततः उनके गुणों के कायल हो गए – स्वयं रावण ने मरते समय हनुमान की प्रशंसा की थी।
महाकार महान आकार वाले (विशाल रूपधारी) इस नाम का भावार्थ महाकाय से मिलता-जुलता है। महाकार का शाब्दिक अर्थ “विशाल रूप” है। हनुमान जी आवश्यकता पड़ने पर अपना आकार अति विशाल कर लेते हैं – जैसे समुद्र लाँघते समय पहाड़ जैसा रूप, या युद्ध में त्रिलोक जितना विराट रूप। इसलिए उन्हें महाकार भी कहा जाता है। इसके विपरीत वे सूक्ष्म रूप भी धरते हैं, लेकिन महाकार नाम उनके विराट रूप की महिमा बताता है।
प्रतापवान / प्रतापवत् प्रतापी, यशस्वी और तेजस्वी हनुमान जी तेज, शौर्य और कीर्ति – इन तीनों दृष्टियों से अत्यंत प्रतापी हैं। उनका प्रताप (औद्धत्य-भरा तेज) ऐसा है कि शत्रु थर्रा उठते हैं और मित्र गर्वित होते हैं। प्रतापवत् नाम इस ओर संकेत करता है कि वे अप्रतिम प्रताप के धनी हैंwemy.in। रामायण में जाम्बवान ने कहा था – “हनुमान जैसा प्रतापी तीनों लोकों में कोई नहीं”। उनका यह प्रताप ईश्वर प्रदत्त एवं स्वयं अर्जित दोनों है।
श्रुतिमत् श्रुति (वेद) का मर्म जानने वाले (विद्वान) हनुमान जी वेद-शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित हैं। श्रुतिमत् का अर्थ है “जिसे वेदों का ज्ञान हो” – अर्थात् जो श्रुति (वेद) का तत्व जानता होwemy.in। वाल्मीकि रामायण में ज्ञान-विज्ञान में निपुण होने के कारण हनुमान को “नवनव होने” (नव व्याकरण के ज्ञाता) कहा गया। उनके इसी पांडित्य गुण की वजह से यह नाम दिया गया है। प्रभु श्रीराम ने भी विभीषण से कहा था – “हनुमान वेदों का रहस्य समझने वाले महान ज्ञानी हैं।”
सुमनोहर अत्यंत मनोहर (सुंदर) रूप वाले हनुमान जी का बाह्य रूप अत्यंत आकर्षक और मनोहर है। बाल्यकाल में उनका रूप देखते ही सूर्य देव ने उन्हें अपने ओर आता समझ लिया था। सुमनोहर नाम इस तथ्य को दर्शाता है कि हनुमान सुंदरता और आभा में भी अद्वितीय हैंwemy.in। तुलसीदास ने उन्हें “कंचन बरन बिराज सुबेसा” कहकर स्वर्ण-सी कांति और शोभायुक्त वर्ण वाला बताया है – अर्थात वे देखने में भी परम मनोहर हैं।
तेजस्वी ओजस्वी, प्रखर तेज वाले हनुमान जी को तेजस्वी उनके अंग-अंग से प्रकट होने वाले ओज के कारण कहा जाता है। वे शत्रु के लिए भयंकर तेजस्वी (उग्र तेज) और भक्तों के लिए सुखद तेज (शीतल प्रकाश) हैं। उनकी दृष्टि में तेज है, वाणी में तेज है, चरित्र में तेज है। रामचरितमानस में उन्हें “कोटि सूर्य सम तेज प्रताप” कहा गया है – यानी करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी।
बलदक्ष बल तथा कार्यकुशलता में दक्ष हनुमान जी केवल शक्तिशाली ही नहीं, अत्यंत कौशलपूर्ण ढंग से बल प्रयोग करने वाले भी हैं। बलदक्ष का अर्थ है “शक्ति एवं कौशल में निपुण”wemy.in। उदाहरणार्थ, अशोकवाटिका में उन्होंने आक्रमणकारी राक्षसों को एक-एक कर संगठित ढंग से मार गिराया, पूरे वन को उजाड़ दिया, पर सीता माँ को खरोंच भी नहीं आने दी – यह उनकी बल-कौशल दक्षता का प्रमाण है। इसलिए उन्हें बलदक्ष कहा गया है।
भक्तवश्य भक्तों के वश में रहने वाले (प्रेम से बंधे) हनुमान जी अपने प्रेमी भक्तों के प्रेम में बँधकर उनके वश में हो जाते हैं। भक्तवश्य का तात्पर्य है “जो भक्त के वश में (प्रेमवश) आ जाए”। शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जितने राम के वश में हैं, उतने ही अपने भक्त शबरी, तुलसीदास आदि के प्रेम में भी बंध गए थे। श्रीराम स्वयं कहते हैं – “जो मेरे भक्त हैं, वे हनुमान के भी हृदय में बसते हैं।”
महानिधि महान निधि (बड़े भंडार) के समान हनुमान जी गुणों के महान भंडार हैं। वे बल, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य आदि सद्गुणों की चलती-फिरती निधि हैं। इसलिए उन्हें महानिधि कहा गया है, अर्थात् “महासंपदा/महाभंडार”। रामायण में जाम्बवान ने कहा था – “हनुमान में सभी गुणों का भंडार भरा है।” उनकी विनम्रता, सेवा, शौर्य, बुद्धि, परोपकार – ये सभी गुणमणियां उनके भीतर भरी हैं, इस नाते वे महानिधि हैं।
सर्वज्ञ सर्वज्ञानी (सब कुछ जानने वाले) हनुमान जी को अष्टावधान (एक साथ आठ काम करने में सक्षम) और सर्वज्ञ कहा जाता है । सर्वज्ञ नाम इंगित करता है कि वे तीनों काल (भूत, भविष्य, वर्तमान) का ज्ञान रखते हैं तथा लोक-परलोक के रहस्यों के भी ज्ञाता हैं। पुराणों में भीम को हनुमान ने भविष्योक्ति दी थी कि भगवान का सुयश (महिमा) ही सदा अक्षय रहने वाला है। ऐसे सर्वज्ञान के कारण उन्हें सर्वज्ञ कहा जाता है।
पर्वतविद् पर्वतों के भौगोलिक ज्ञान के ज्ञाता हनुमान जी चारों दिशाओं के भूगोल से परिचित हैं। संजीवनी ढूंढ़ते समय उन्होंने हिमालय के अनेक पर्वतों को पहचान लिया था। इसीलिए उनका नाम पर्वतविद् (पर्वतों के रहस्य-ज्ञान से युक्त) आया । महाभारत में भीम से भेंट के समय उन्होंने कैलाश जाने का मार्ग बताया था। यह नाम उनके भौगोलिक एवं पर्यावरण संबंधी ज्ञान को दर्शाता है – वे प्रकृति के भी मर्मज्ञ हैं।
रत्नकुण्डल-दीप्तिमत् रत्नजड़ित कुण्डलों की आभा से दीप्तिमान हनुमान जी के कानों में दिव्य रत्नजड़ित कुण्डल शोभित रहते थेwemy.in। बालि ने युवावस्था में हनुमान के ये कुण्डल पहचाने थे। रत्नकुण्डल-दीप्तिमत् नाम इंगित करता है कि उनके कानों के रत्नकुण्डलों की चमक से उनका मुख मंडल दमकता है।यह नाम उनके राजसी वैभव और दिव्य अलंकरण को सूचित करता है, जो उनकी माता अंजना ने उन्हें बालपन में पहनाए थे (कथा अनुसार इंद्र ने उन्हें पुनः कुण्डल भेंट किए जब हनुमान ने उनका वज्र सहा)।
गन्धर्वविद्या-लोलुप गन्धर्व विद्याओं (संगीत-कला) में आसक्त हनुमान केवल युद्धकला ही नहीं, संगीत-कला में भी पारंगत थे। गन्धर्वविद्या-लोलुप नाम का अर्थ है “जो गन्धर्वों की कला-विद्या के प्रेमी हैं”। एक कथा में नारद मुनि को संगीत प्रतियोगिता में हनुमान ने परास्त किया और उन्हें विष्णु-भक्ति का मर्म समझाया। यह नाम दर्शाता है कि हनुमान सुर-ताल-नृत्य जैसी कलाओं में भी दक्ष हैं, जो उनके समग्र गुणों का हिस्सा है।
तापन शत्रुओं को संताप (तपन) देने वाले तापन शब्द का अर्थ है जलाना या कष्ट देना। हनुमान अपने शत्रुओं को कठोर दंड देकर संतप्त कर देते हैंwemy.in। उन्होंने रावण की लंका जलाई, असुरों को जलाया, अतिकाय राक्षसों को भीषण पीड़ा दी। इसलिए उन्हें तापन कहा जाता है – अर्थात जो दुस्टों को ताप देता है। उनके नाम से ही भूत-पिशाच आदि भागते हैं; यह भी उनके तापन स्वरूप का एक पहलू है (हनुमान चालीसा: “भूत पिशाच निकट नहिं आवै”)।
महारावण-मर्दन महा रावण का मर्दन करने वाले इस नाम के दो अर्थ हैं: (1) महाबली रावण के मर्दनकर्ता – हनुमान जी के पराक्रम ने रावण के घमंड को चूर किया और उसके विनाश का मार्ग प्रशस्त किया। (2) महिरावण (रावण के भाई) के संहारक – बंगाल की कथा अनुसार पाताल के महारावण (महिरावण) का वध पंचमुखी हनुमान ने किया । दोनों ही अर्थों में हनुमान महारावणमर्दन हैं – चाहे वह लंकापति रावण हो या पातालपति महिरावण, दोनों के दर्प को हनुमान ने चूर्ण किया।
नवव्याकृत-पण्डित नौ व्याकरणों के पंडित (विशेषज्ञ) वाल्मीकि रामायण की प रंपरा में वर्णित है कि हनुमान नौ प्रकार के व्याकरण के प्रकाण्ड पंडित थे। जब हनुमान जी सीता माता से अशोकवाटिका में मिले तो उनकी शुद्ध संस्कृत एवं व्याकरण ज्ञान से सीता चकित हुईं – “एवं विद्वान् दशग्रीवेऽपि न दृश्यते” (इतने विद्वान रावण के दरबार में भी नहीं) । नव-व्याकृत-पंडित नाम इसी ओर संकेत करता है और बताता है कि वे व्याकरण-शास्त्र के उस्ताद हैं।
महात्मा महात्मा (महान आत्मा) हनुमान जी एक महान आत्मा हैं। महात्मा शब्द उनके उदात्त चरित्र, परोपकारिता और विनम्रता का द्योतक है। वे शक्तिमान होते हुए भी अहंकारशून्य हैं, प्रभु-भक्ति में लीन रहते हैं और निश्छल भाव से सेवा करते हैं – यही सच्चे महात्मा के लक्षण हैं । श्रीराम ने हनुमान को गले लगाकर “मेरे लिए तुम भाई से बढ़कर हो” कहा था। भक्तों ने भी प्रत्येक युग में उन्हें महात्मा के रूप में सम्मान दिया है।
भक्तवत्सल भक्तों पर स्नेह रखने वाले (देख ऊपर) भक्तवत्सल नाम ऊपर प्रविष्ट हो चुका है – देखें क्रमांक 28। हनुमान जी सदा अपने भक्तों पर कृपा-दृष्टि रखते हैं और उनके दोषों को अनदेखा कर उन्हें गले लगाते हैं। इस गुण के कारण उनकी पूजा करने वालों को यह विश्वास मिलता है कि “हनुमान हमारे अपने हैं”।
सीताराम-पाद-सेवक श्रीसीता-राम के चरण सेवक (देख ऊपर) सीताराम-पाद-सेवक नाम भी ऊपर क्रमांक 84 पर उल्लिखित है। हनुमान जी अपने आराध्य श्रीराम-जानकी के चरणों में ही अपने जीवन का सार देखते हैं। बाल्मिकी रामायण के अंतिम सर्गों में वर्णन है कि अयोध्या राज्याभिषेक के पश्चात भी हनुमान राजसभा छोड़कर राम-सीता के चरणों के पास ही बैठे रहते थे, क्योंकि सेवा ही उनका धन है


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जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।
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भगवान हनुमान के 108 शक्तिशाली नाम – हर नाम में छिपी है विजय, भक्ति और रक्षा की शक्ति !

भगवान हनुमान के 108 शक्तिशाली नाम – हर नाम में छिपी है विजय, भक्ति और रक्षा की शक्ति !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

हनुमान जी के 108 पवित्र नाम

नाम (संस्कृत) अर्थ (हिंदी) विवरण व शास्त्रीय संदर्भ (यदि उपलब्ध)
आञ्जनेय अंजना का पुत्र माता अंजना की संतान होने के कारण हनुमान को आञ्जनेय कहा जाता है।वाल्मीकि रामायण सहित विभिन्न ग्रंथों में हनुमान को अंजना-सुत (अंजनीपुत्र) कहकर पुकारा गया है।
केसरीनंदन केसरी के पुत्र हनुमान के पिता वानर राजा केसरी थे, इसलिए उन्हें केसरीनंदन (केसरी के आनंद-दायक पुत्र) कहा जाता है। तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा में भी “शंकर सुवन केसरी नंदन” कहकर यह नाम आया है।
पवनपुत्र / वायुपुत्र पवन देव के पुत्र वायु देवता के आशीर्वाद से जन्म लेने के कारण हनुमान पवनपुत्र या वायुपुत्र कहलाते हैं। स्वयं वाल्मीकि रामायण में उन्हें “मारुतात्मज” (मारुत = पवन, आत्मज = पुत्र) कहकर संबोधित किया गया है।
हनुमान / हनूमत् (विशाल) जबड़े वाला एक पुराण कथा के अनुसार बाल्यकाल में सूर्य को फल समझकर पकड़ने पर इंद्र के वज्र प्रहार से हनुमान जी की ठुड्डी (हनु ) में चोट लगी, जिससे उनका जबड़ा स्थायी रूप से कुछ विकृत हो गया। इसी कारण उनका नाम हनुमान पड़ा, जिसका संस्कृत अर्थ है “विचित्र या भारी जबड़े वाला”।
महावीर महान वीर, पराक्रमी अपार बल और शौर्य प्रदर्शित करने के कारण हनुमान महावीर (सबसे वीर) कहलाते हैं। उनकी वीरता रामायण में समुद्र लांघने से लेकर युद्ध में राक्षस सेना के संहार तक जगप्रसिद्ध है।
बजरंगबली वज्र-अंग वाले बलवान बजरंगबली शब्द “वज्र-अंग बली” का अपभ्रंश है। इसका अर्थ है “वज्र के समान अंगों वाला शक्तिशाली व्यक्ति।” हनुमान के शरीर को वज्र से भी कठोर और मजबूत माना गया है, इसलिए उत्तर भारत में भक्तिपूर्व क उन्हें बजरंगबली कहा जाता है।
संकटमोचन संकटों को दूर करने वाले हनुमान जी अपने भक्तों के सभी दु:ख-दर्द और संकट हर लेते हैं, इसीलिए भक्ति परंपरा में उनका नाम संकटमोचन (संकटों का मोच क, दूर करने वाला) प्रसिद्ध हुआ। तुलसीदास रचित हनुमान चालीसा में भी उन्हें “संकट तें हनुमान छुड़ावै” कहकर स्मरण किया जाता है, जो उनके संकटहरण स्वरूप की पुष्टि करता है।
मारुति मारुत (पवन) के पुत्र मारुति तथा मारुतात्मज दोनों ही शब्दों का अर्थ “पवनदेव के पुत्र” है। हनुमान वायु के अंश से उत्पन्न हुए , इसीलिए वाल्मीकि रामायण में उन्हें मारुतात्मज कहा गया है। दक्षिण भारत में विशेषतः हनुमान को आञ्जनेय के साथ मारुति नाम से भी पुकारा जाता है।
कपीश्वर कपियों के ईश्वर (स्वामी) हनुमान वानर-भालुओं की सेना के अग्रणी एवं सर्वश्रेष्ठ सदस्य थे, इस कारण उनका नाम कपीश्वर (वानरों के स्वामी) पड़ा। भगवान राम स्वयं उन्हें “कपिश्रेष्ठ” (समस्त वानरों में श्रेष्ठ) कहते हैं।
वानर वानर (बंदर) कुल में जन्मे हनुमान जी देवतुल्य वानर (कपि) योनि में अवतरित हुए। रामायण में वे सुग्रीव की वानर सेना के प्रमुख योद्धा थे। इसी कारण वे कपि (वानर) के रूप में जाने जाते हैं। उनका बाहरी स्वरूप वानर का है किन्तु चरित्र दैवीय है, जो यह 示 करता है कि भगवान किसी भी रूप में भक्तों की सहायता को आ सकते हैं।
अञ्जनागर्भसम्भूत अंजना के गर्भ से उत्पन्न हनुमान जी माता अंजना के गर्भ से प्रकट हुए, इसलिए उनकी एक उपाधि अञ्जनागर्भसम्भू त (अंजना के गर्भ से उत्पन्न) भी है । अनेक ग्रंथों में हनुमान की जन्मकथा में अंजना का तप एवं शिव के प्रसाद से उनके गर्भ में हनुमान का आविर्भाव वर्णित है।
बालार्कसदृशानन बाल सूर्य के समान मुख-कांति वाले हनुमान जी के मुखमण्डल की आभा उदय होते हुए बाल-सूर्य के समान वर्णित की गई है। इसी आधार पर उन्हें बालार्क-सदृशानन कहा जाता है, जिसका अर्थ है “बाल सूर्य के समान चेहरे वाले”। यह नाम उनके दिव्य तेज को दर्शाता है।
लंकिनीभंजन लंकिनी नामक राक्षसी को परास्त करने वाले सुंदरकांड की कथा के अनुसार, लंका नगरी के द्वार पर प्रहरी राक्षसी लंकिनी को हनुमान ने एक मुक्के से परास्त किया था । ब्रह्मा के वरदान से बंधी हुई लंकिनी को पराजित कर हनुमान ने उसका अभिमान तोड़ा, इसलिए वह नाम लंकिनीभंजन (लंकिनी को भंग करने वाले) उन पर सूचित होता है।
सिंहिकाप्राणभंजन सिंहिका राक्षसी के प्राण नष्ट करने वाले समुद्र पार करते समय हनुमान का साया पकड़ने वाली समुद्री राक्षसी सिंहिका को हनुमान ने मार डाला था (उसके प्राणों का भंजन किया)। इस पराक्रम के कारण हनुमान सिंहिकाप्राणभंजन कहलाते हैं। वाल्मीकि रामायण (सुंदरकांड) में यह प्रसंग मिलता है कि कैसे हनुमान ने छल से घात लगाने वाली सिंहिका का अंत कर दिया।
अक्षहन्ता अक्ष (अक्षयकुमार) का संहारकर्ता रावण के पुत्र अक्षयकुमार (जिसे अक्ष भी कहते हैं) का वध हनुमान ने लंका में युद्ध करते समय अपने पराक्रम से किया था । इसीलिए उन्हें अक्षहन्ता (अक्ष का संहार करने वाला) कहा जाता है। यह घटना लंकाकांड में हनुमान की वीरता का परिचायक है।
भीमसेन-सहायक भीमसेन (भीम) के सहायाकारका महाभारत के वनपर्व में हनुमान अपने आधे भाई भीमसेन से वन में मिले और उनकी शक्ति की परीक्षा लेकर उनका घमंड दूर किया। साथ ही हनुमान ने भीम को कठिन मार्ग पर आगे बढ़ने का साहस भी दिया। इस हेतु हनुमान को भीमसेन-सहायक (भीम के सहायक) कहा जाता है। भविष्यमें कुршेत्र युद्ध में भी हनुमान अर्जुन-भीम आदि पांडवों के सहायक रहे (अरjuna के रथ पर ध्वजा के रूप में)।
सर्वदुःखहरा सभी दुःखों को हरने वाले भक्तों के कष्ट निवारण में हनुमान अग्रणी हैं। वे अपने उपासकों के सभी दुःख-दर्द दूर कर देते हैं, इसलिए उन्हें सर्वदुःखहरा (सभी दुःखों को हरने वाला) कहा गया है। कलियुग में हनुमत उपासना को पीड़ा-नाशक माना गया है – “भक्तों के सब दुःख दूर करें हनुमान”।
सर्वलोकचारिण समस्त लोकों में विचरण करने वाले हनुमान जी को त्रिलोकविजयी कहा जाता है – वे देवLok, मर्त्यLok, पाताल आदि सभी लोकों में मुक्त रूप से गमन कर सकते हैं। इसी गुण के कारण उन्हें सर्वलोकचारिण कहा गया है। उदाहरणतः वे आकाश में सूर्य तक पहुंचे, पाताल लोक में अहिरावण वध हेतु उतरे, तथा धरती पर तो राम-काज में विचरण किया हीen.wikipedia.org।
मनोजव मन के समान वेग वाले संस्कृत स्तुति में हनुमान को “मनोजवम् मारुत-तुल्य-वेगम्” कहा गया है – अर्थात उनके पास मन की तरह (विचार-जैसी) तीव्र गति है। वे पवन देव के पुत्र हैं, अतः उनकी गति पवन (हवा) समान है। इस गुण के कारण उनका नाम मनोजव पड़ा, क्योंकि वे सूक्ष्म रूप में मनोविचार जैसी तीव्रता से कहीं भी प्रकट हो सकते हैं।
पारिजात-द्रुमूल-स्थ पारिजात वृक्ष की जड़ पर स्थित (वासी) राम-रावण युद्ध के बाद मान्य कथा के अनुसार हनुमान हिमालय के गंधमादन पर्वत पर बस गए, जहाँ दिव्य पारिजात वृक्ष स्थित था। इसी से उनका नाम पारिजात-द्रु-मूल-स्थ हुआ, अर्थात पारिजात के पेड़ की जड़ के समीप रहने वाले। यह नाम संकेत करता है कि लंका विजय के पश्चात हनुमान ध्यान-तप के लिए हिमालय चले गए थे।
सर्वमन्त्रस्वरूप समस्त मन्त्रों के स्वरूप वाले हनुमान जी को सभी वेद-मन्त्रों का जीवंत स्वरूप माना जाता है। भक्ति धारणा है कि हनुमान नाम स्वयं एक महामंत्र है जिसमें समस्त मन्त्रों का प्रभाव समाहित है। वेद-पुराणों में संकेत मिलता है कि हनुमान चालीसा व अन्य स्तुतियों में उनके अनेक नाम जपने मात्र से सभी मन्त्रों का फल मिल सकता है – इसलिए उन्हें सर्वमन्त्रस्वरूप कहा जाता है।
सर्वतन्त्रस्वरूपिण सभी तंत्रों के स्वरूपधारी इसी प्रकार हनुमान को सभी तांत्रिक शक्तियों और योग-विधाओं का अधिष्ठाता माना जाता है। वे भक्ति, योग एवं तंत्र सभी मार्गों में सक्षम हैं। इस सर्वशक्तिमान रूप में उन्हें सर्वतन्त्रस्वरूपिण कहा गया है – यानि वे प्रत्येक तंत्र (शक्ति/विद्या) के स्वामी स्वरूप हैं।
सर्वयन्त्रात्मक सभी यंत्रों में अंतर्निहित आत्मा तांत्रिक मान्यताओं में हनुमान को प्रत्येक यंत्र (देवी-देवताओं के चक्र/यंत्र) की आत्म-शक्ति माना गया है। अर्थात प्रत्येक शुभ यंत्र में हनुमान की चेतना विद्यमान है। इस कारण एक नाम सर्वयन्त्रात्मक भी मिलता है, जो बताता है कि समस्त यंत्रों की शक्ति हनुमान से ही उत्पन्न होती है।
कुमार-ब्रह्मचारी सदैव युवा ब्रह्मचारी हनुमान आजीवन ब्रह्मचारी (निःस्पृह रहते हुए अविवाहित) रहे हैं। उन्होंने युवावस्था से लेकर अनंतकाल तक ब्रह्मचर्य का पालन किया, इसीलिए उन्हें कुमार ब्रह्मचारी (युवा तपस्वी) कहा जाता है। उनकी ब्रह्मचर्य शक्ति के कारण ही उन्हें अष्टसिद्धियाँ प्राप्त हुईं और वे चिरंजीवी बने।
महाकाय अत्यंत विशाल काया वाले हनुमान अपनी इच्छा से अपना शरीर पर्वत के समान विशाल बना सकते हैं। उनकी आकृति बढ़कर विशालकाय हो जाती है, इसलिए वे महाकाय (महान आकार वाले) कहे जाते हैं। रामायण में समुद्र लांघते समय उन्होंने पर्वताकार रूप धारण किया था और त्रिकूट पर्वत (लंका) पर उतरते समय पूरा आकाश ढक लिया था।
सर्वरोगहरा सभी रोगों को हरने वाले श्री हनुमान की कृपा से भक्तों के शारीरिक-मानसिक समस्त रोग व व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। शनिदेव ने भी हनुमान को वरदान दिया कि उनकी पूजा करने से ग्रहजनित रोग-शोक नहीं सताएंगे। इस प्रकार सर्वरोगहरा नाम हनुमान जी के रोगनाशक स्वरूप को दर्शाता है।
प्रभव प्रभावशाली, महान प्रभुत्व वाले हनुमान जी असाधारण तेज, बल और गुणों से सम्पन्न होकर महान प्रभाव वाले व्यक्तित्व हैं। उनका प्रभुत्व देवता, मानव, दानव सभी स्वीकार करते हैं। इसी आधार पर उन्हें प्रभव (शक्तिशाली प्रभावान) कहा गया है। रामायण में अंगद कहते हैं – “हनुमान के प्रताप से सम्पूर्ण लंका काँप उठी।”
बलसिद्धिकर बल और सिद्धि प्रदान करने वाले हनुमान अपने भक्तों को अद्भुत बल प्रदान करते हैं और अपनी कृपा से उन्हें सिद्धि-सफलता दिलाते हैं। भक्ति मान्यता है कि हनुमान जी “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता” हैं – अर्थात आठों महासिद्धियाँ और नौ निधियाँ देने में समर्थ हैं इसलिए उनका नाम बल-सिद्धिकर (बल और सिद्धि देने वाला) प्रसिद्ध है।
भक्तवत्सल भक्तों पर पुत्रवत स्नेह करने वाले हनुमान अपने भक्तों पर पिता समान वात्सल्य रखते हैं। जो भी श्रद्धालु उनकी शरण आता है, उस पर वे पुत्र की तरह स्नेह-दृष्टि रखते हैं। इसी कारण उन्हें भक्तवत्सल कहा जाता है – अर्थात भक्तों के प्रति अत्यंत स्नेहशील एवं कृपालु देव।
दीनबंधु दीन-दुखियों के मित्र एवं रक्षक हनुमान गरीब, असहाय एवं दुःखी जनों के रक्षक हैं। वे हमेशा दुर्बलों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं, इसलिए दीनबंधु (दीनों के बंधु) कहलाते हैं। रामायण में विभीषण ने हनुमान को “दीनदयाल” कहा – जो दीनों पर दया करने वाले हैं। यह नाम उनके करुणामय स्वभाव को दर्शाता है।
धीर धैर्यवान एवं वीर अपार शक्ति के बावजूद हनुमान अत्यंत संयमी एवं धैर्यवान हैं। उन्होंने हर कठिन परिस्थिति में धीरज नहीं खोया – चाहे समुद्र पार करते समय विपत्तियाँ आई हों या लंका में रावण के समक्ष धैर्य रखा। उनके इसी गुण के कारण उन्हें धीर (स्थिरचित्त वीर) कहा जाता है। उनकी वीरता के साथ धैर्य समन्वयित है।
दशग्रीव-कुलान्तक दशग्रीव (रावण) के कुल का अंत करने वाले दशग्रीव रावण का ही अन्य नाम है (दस सिर वाला)। हनुमान ने भगवान राम की युद्ध में सहायता करके तथा रावण की लंका का विनाश करके राक्षस कुल के विनाश में प्रमुख भूमिका निभाई। इस हेतु उन्हें दशग्रीव-कुलांतक कहा जाता है – अर्थात् रावण के कुल का नाश करने वाला। यह नाम संकेत करता है कि रावण-वध रूपी अंत में हनुमान का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
गन्धर्वविद्या-तत्वज्ञ गंधर्व विद्याओं के तत्व के जानकार हनुमान जी संगीत, नृत्य आदि गन्धर्व-कलाओं में भी प्रवीण माने जाते हैं। उनके एक नाम गन्धर्वविद्या-तत्त्वज्ञ का तात्पर्य है कि वे गन्धर्वों की विद्याओं के तत्व को भली-भांति जानते हैं। प्राचीन कथा अनुसार हनुमान को संगीत का ऐसा ज्ञान था कि नारद मुनि भी उनसे हार मान गए थे – इसलिए यह नाम उनकी कलाप्रवीणता का द्योतक है।
गन्धमादन-शैलस्थ गंधमादन पर्वत पर स्थित (वासी) लंक विजय के उपरांत हनुमान जी ने शेष जीवन हिमालय के गंधमादन पर्वत पर तप में बिताया – ऐसी मान्यता है। वे वहीं से भीम आदि को दर्शन देते हैं। इसीलिए उनका नाम गन्धमादन-शैलस्थ हुआ, अर्थात गंधमादन पर्वत का वासी। आज भी बद्रीकाश्रम क्षेत्र में एक हनुमान चट्टी स्थान है जिसे हनुमान का निवास क्षेत्र माना जाता है।
जाम्बवत्-प्रीति-वर्धन जाम्बवान की प्रीति (प्रसन्नता) बढ़ाने वाले लक्ष्मण के मूर्छित होने पर जाम्बवान ने हनुमान को संजीवनी लाने की याद दिलाई। हनुमान के हिमालय से पूरा पर्वत उठा लाने पर वृद्ध जाम्बवान अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी प्रशंसा की। इसी घटना से हनुमान को जाम्बवत्-प्रीति-वर्धन कहा गया – अर्थात जिन्होंने जाम्बवान की प्रीति (आनंद) बढ़ाई । यह नाम उनकी त्वरित कृति और वरिष्ठ जनों को संतोष देने वाले स्वभाव को दर्शाता है।
भविष्य-चतुरानन भविष्य के चतुरानन (ब्रह्मा) पुराणों की एक मान्यता अनुसार कलियुग के अंत तक हनुमान पृथ्वी पर रहकर धर्मकार्य करेंगे और वर्तमान ब्रह्मा के काल समाप्ति पर अगले कल्प में स्वयं ब्रह्मा पद को सुशोभित करेंगे। इसी कारण हनुमान का एक नाम भविष्य-चतुरानन भी बताया गया है – अर्थात भविष्य में चार मुख वाले सृष्टिकर्ता (ब्रह्मा) बनने वाले। यह नाम उनकी चिरंजीवित्व और ईश्वरीय महिमा को सूचित करता है।
चञ्चलद्वाल-शिखोज्ज्वल मस्तक के ऊपर चमकती चंचल पूँछ वाले हनुमान जी की पूँछ उनके लिए अत्यंत गौरव का है। चित्रों में भी उनकी पूँछ अक्सर माथे के ऊपर लहराती दिखती है। चञ्चल-द्वाल-लम्बमान-शिखोज्ज्वल नाम का अर्थ है “जिसकी चंचल पूँछ शिखर (सिर) पर उज्ज्वल रूप में सुशोभित है यह नाम संकेत करता है कि लंका दहन के समय जला हुआ पूँछ का अग्रभाग भी उनके मस्तक पर विजयकेतु जैसा चमक रहा था।
चिरंजीवी चिरंजीवी (अमर) हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है – वे सात चिरंजीवियों में से एक हैं जो कलियुग के अंत तक पृथ्वी पर विद्यमान रहेंगेwemy.in। इसी कारण उनका प्रमुख नाम चिरंजीवी (सदैव जीवित रहने वाले) है। विभिन्न ग्रंथों में युगों-युगों तक हनुमान के जीवित रहने की कथाएँ हैं, जैसे महाभारत में भीम से मुलाकात और कलियुग में मध्वाचार्य को दर्शन देना।
चतुर्बाहु / चतुर्वजू (संस्कृत में 'बाहु' = भुजा) चार भुजाओं वाले हनुमान के प्रसिद्ध पंचमुखी रूप में उनके पाँच मुख और दस भुजाएँ दर्शाई जाती हैं। किन्तु उनके चतुर्भुज रूप का भी वर्णन मिलता है – जिसमें उनके चार हाथ हैं और वे भगवान की तरह शंख-चक्र-गदा-पदम धारण किए हैं। अतः चतुर्बाहु नाम हनुमान के विष्णु-समान रूप अथवा ब्रह्मचारी रूप को दर्शाता है। इस रूप में वे भक्तों को अभयदान देते हैं।
दान्त दमन की हुई इन्द्रियों वाले (संयमी) दान्त का अर्थ है “जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया हो।” हनुमान जी काम, क्रोध आदि पर पूर्ण विजय प्राप्त योगी हैं। उनके इसी जितेन्द्रिय गुण के कारण उन्हें दान्त कहा गया है – अर्थात पूर्णतः संयमी एवं शांत स्वभाव वाले। वे क्रोध को नियंत्रित कर उचित समय पर ही उसका प्रयोग करते थे (जैसे लंका दहन के समय)।
शान्त शांतचित्त, अति शांत स्वभाव वाले हनुमान जी बलवान होते हुए भी विनम्र एवं शांतचित्त हैं। अगर परिस्थितियाँ न करें तो वे उग्र रूप धारण नहीं करते। इस धीर-गंभीर, शांत स्वभाव के कारण उनका एक नाम शान्त है। उदाहरणतः रावण सभा में बाँधे जाने पर भी हनुमान आतुर नहीं हुए बल्कि धैर्यपूर्वक विभीषण आदि से वार्तालाप करते रहे।
प्रसन्नात्मा प्रसन्न आत्मा, सदैव खुश रहने वाले हनुमान जी सदा आनंदित, प्रसन्नचित्त एवं सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। उन्हें प्रसन्नात्मा कहा गया है – अर्थात जिनका आत्मभाव प्रसन्न है। सीता जी ने अशोक वाटिका में हनुमान को देखा तो मन प्रसन्न हुआ, क्योंकि हनुमान के मुख से अद्भुत तेज और प्रसन्नता टपकती थी।
शत-कण्ठ-मदापहर्ता शत-कंठ के घमंड को दूर करने वाले शतकण्ठ का शाब्दिक अर्थ “सौ गले” है। कुछ विद्वान इसे कुबेर या इंद्र का पर्याय मानते हैं। यह नाम इस ओर संकेत करता है कि हनुमान ने किसी अत्यंत अहंकारी देव या असुर (जिसे सौ कंठों वाला कहा गया) का घमंड चूर किया। शत-कण्ठ-मदापहर्ता अर्थात “शत-कंठ के मद (अहं) को अपहरण करने वाले”। यह सम्भवतः इंद्र का घमंड तोड़ने (शिशु हनुमान को वज्र से मारने पर) या रावण-कुंभकर्ण के वंश (100 पुत्र) के नाश की ओर संकेत करता है।
योगी महान योगी, तपस्वी हनुमान जी परम योगेश्वर हैं – उन्हों ने कठोर तप, ब्रह्मचर्य और ध्यान द्वारा अपार सिद्धियाँ हासिल कीं। वे साक्षात शिव के अवतार माने जाते हैं, जो सर्वोच्च योगी हैं। इसलिए उनका एक नाम योगी भी है। हनुमान जी ध्यानमग्न मुद्रा में भी पूजे जाते हैं, जहाँ वे राम-नाम जपते हुए योगासन में बैठे दिखते हैं – यह उनके योगीस्वरूप का परिचय है।
रामकथा-लोभन रामकथा के श्रवण में लोलुप (आसक्त) हनुमान जी को रामकथा सुनने का अत्यंत लोभ (लालसा) रहता है। रामकथा-लोलुप नाम से अर्थ है “जो राम की कथा के रस में डूबे रहने को उत्सुक हों”। हर जगह कहा जाता है कि जहाँ भी रामायण का पाठ होता है, हनुमान जी अदृश्य रूप में वहाँ उपस्थित होकर श्रवण करते हैं। उनकी यह रामकथा-प्रीति उन्हें रामकथा का प्रथम श्रोता बनाती है।
सीतान्वेषण-पण्डित सीता को खोज निकालने में प्रवीण हनुमान जी ने लंका में माता सीता की खोज बड़ी चतुराई एवं विद्वत्ता से की। तुलसीदास लिखते हैं “सुंदर सकल मोहे हु बुझाई” – उन्होंने पूरे अशोकवाटिका का अनुसंधान कर सीता जी को खोज निकाला। इस अद्भुत कार्य की वजह से उनका नाम सीतान्वेषण-पंडित (सीता की खोज के विशेषज्ञ) रखा गया। यह नाम उनकी बुद्धिमत्ता और अनुसंधान कौशल को दर्शाता है।
वज्रनख वज्र के समान कठोर नाखून वाले हनुमान जी के नख (नाखून) वज्र के समान अमोघ और कठोर माने जाते हैं। वज्रनख का अर्थ है “वज्र जैसे नखों वाला”। कई मूर्तियों में हनुमान के हाथ के नाखून बढ़े हुए दिखते हैं जो दर्शाते हैं कि वे अपने नखों से भी शत्रु का संहार कर सकते हैं (जैसे नरसिंह भगवान ने किया था)।
रुद्रवीर्यसमुद्भव रुद्र (शिव) के वीर्य (शक्ति) से उत्पन्न शैव मत के अनुसार हनुमान भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि शिव ने अपने तेज से हनुमान रूप में अवतार लिया। इसीलिए उनका नाम रुद्रवीर्यसमुद्भव पड़ा – अर्थात रुद्र के वीर्य से उत्पन्न हुए। हनुमान चालीसा में भी उन्हें “शंकर सुवन” (शंकर के पुत्र) कहा गया है, जो इसी ओर संकेत करता है।
इन्द्रजित-प्रहित-अमोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारक इन्द्रजित (मेघनाद) के छोड़े अचूक ब्रह्मास्त्र को विफल करने वाले लंकाकांड में रावण-पुत्र मेघनाद (इन्द्रजित) ने हनुमान को बांधने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र का सम्मान रखते हुए स्वयं को बंधन में बंध जाने दिया, लेकिन बाद में चतुराई से उस अस्त्र के प्रभाव से मुक्त भी हो गए। इस पराक्रम के कारण उनका नाम इन्द्रजित-प्रहित-अमोघ-ब्रह्मास्त्र-विनिवारक (मेघनाद द्वारा छोड़े गए अचूक ब्रह्मास्त्र का निवारण करने वाले) प्रसिद्ध है।
“कपिध्वज” पार्थ (अर्जुन) के रथ-ध्वज के शिखर पर निवास करने वाले महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के आग्रह पर हनुमान जी ने अर्जुन के रथ के ध्वज (पताका) पर स्थान लिया था। भगवद्गीता 1.20 में अर्जुन को “कपिध्वज” कहा गया – अर्थात जिसके रथ पर कपि (हनुमान) ध्वजा पर विराजमान हों । इसलिए हनुमान का नाम पार्थ-ध्वजाग्र-संवासि हैg – जो अर्जुन के रथ के शीर्ष पर निवास करते हैं।
शरपञ्जर-भेदक तीरों के पिंजरे/सेतु को भेदने वाले एक पौराणिक प्रसंग में, अर्जुन ने भगवान राम की लीला सुनकर अहंकारवश कहा था कि वे तीरों का पुल बना देते तो वानरों को पत्थर जोड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती। श्रीकृष्ण ने परीक्षा ली और हनुमान को उस तीरों के पुल पर चलने भेजा। हनुमान के कदम रखते ही अर्जुन के तीरों का पुल टूटकर बिखर गया, जिससे अर्जुन का गर्व भंग हुआ। तब से हनुमान शरपञ्जर-भेदक (तीरों के पञ्जर/जाल को भेदने वाला) कहे गए
दशबाहु दस भुजाओं वाले पंचमुखी हनुमान स्वरूप में हनुमान जी के पाँच मुख और दस भुजाएँ होती हैं (प्रत्येक मुख के दो भुजाएँ)। इस उग्र रूप में वे दसों भुजाओं से शत्रुनाश करते हैं। इसलिए दशबाहु नाम प्रसिद्ध है। यह नाम संकेत करता है कि हनुमान शक्ति, शस्त्र और संरक्षण सभी दिशाओं में प्रदान करते हैं – उनके दस हाथ रक्षा और आशीर्वाद के प्रतीक हैं।
लोकपूज्य तीनों लोकों द्वारा पूजा जाने योग्य हनुमान जी लोकपूज्य हैं, अर्थात तीनों लोकों में पूजनीय हैं। पृथ्वी पर तो उनको भक्त पूजते ही हैं, साथ ही स्वयं देवी-देवता भी हनुमान जी की स्तुति करते हैं। रामायण में देवताओं ने हनुमान को रामकाज में बाधाओं को पार करने हेतु आशीर्वाद दिया था और अंत में उनकी विजय पर पुष्पवर्षा की थी – यह दर्शाता है कि वे स्वर्गलोक में भी आदरणीय हैं।
सागरोत्तरक समुद्र को पार करने वाले हनुमान जी ने श्रीराम का संदेश लेकर सुग्रीव के दूत रूप में लगभग 100 योजन (800 मील) विस्तृत समुद्र को एक ही छलांग में पार किया। ऐसा अद्वितीय कार्य केवल हनुमान ने ही किया, इसीलिए उन्हें सागरोत्तरक (सागर को उत्तीर्ण करने वाले) कहा जाता है।वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में हनुमान की इस समुद्र-लंघन लीला का विस्तृत वर्णन मिलता है।
सीताशोकनाशन / सीताशोकनिवारक सीता के शोक का नाश करने वाले अशोक वाटिका में हनुमान ने सीता माता को रामचंद्र जी की अँगूठी और संदेश देकर उनका संताप दूर किया था। सिया राम का स्मरण पाकर सीता जी के हृदय से उदासी मिट गई और उनमें आशा का संचार हुआ। इसलिए हनुमान सीताशोकनाशन अथवा सीताशोकनिवारक कहलाते हैं – अर्थात जिन्होंने माता सीता के शोक का निवारण किया।
श्रीमत् / श्रीमन्त संपदा, सम्मान और ऐश्वर्य से युक्त (महान) श्रीमंत शब्द का अर्थ है “श्री (ऐश्वर्य/समृद्धि) से युक्त व्यक्ति।” हनुमान जी दिव्य ऐश्वर्य, अपार गुण और कीर्ति के भंडार हैं। वे ज्ञान, बल, सिद्धि, भक्ति सभी संपदाओं से सम्पन्न हैं, अतः उनका एक नाम श्रीमत् (विभूति-सम्पन्न) भी है।भक्तजन हनुमान की आरती में गाते हैं “रामरसायन तुम्हरे पासा” – तुम्हारे पास (भक्ति रूपी) संपदा अपरंपार है।
विभीषण-प्रियकर विभीषण को प्रिय (अनुकूल) करने वाले हनुमान जी ने लंका में रावण के अनुचर भाई विभीषण को राम का संदेश देकर, उनका पक्ष जानकर और उनका मन जीता। विभीषण हनुमान की विनम्रता एवं बुद्धिमत्ता से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें “कपिवर” कहकर सम्मान दिया। इसी से हनुमान विभीषण-प्रियकर कहलाते हैं – अर्थात जिन्होंने विभीषण का हृदय जीत लिया। बाद में विभीषण को श्रीराम से मिलाने और लंका का राजा बनाने में भी हनुमान का बड़ा योगदान रहा।
केसरीसुत केसरी के पुत्र केसरीसुत और केसरीनंदन का अर्थ समान है – “वानरराज केसरी का पुत्र।” हनुमान जी के पिता केसरी थे और माता अंजना। उनके वंश का उल्लेख करते हुए उन्हें कई स्थानों पर केसरी-पुत्र कहा गया है। उदाहरणतः हनुमान चालीसा में “केसरी नंदन” तो संस्कृत स्तुति में “केसरी सुताय नमः” आया है।
सुग्रीव-सचिव सुग्रीव के मंत्री (सलाहकार) हनुमान किष्किंधा के राजा सुग्रीव के प्रधान मंत्री एवं सलाहकार थे। वह सुग्रीव के विश्वस्त मित्र भी थे। सुग्रीव-सचिव नाम का अर्थ है “सुग्रीव के मंत्री” । रामायण में हनुमान ने ही सुग्रीव-राम की मैत्री करवाई और युद्ध में वानर सेना को संगठित करने में उनकी भूमिका मंत्री जैसी थी। इस प्रकार वे धर्मराज्य के आदर्श मंत्री माने जाते हैं।
शूर शूरवीर, अत्यंत बहादुर हनुमान अद्भुत पराक्रम और साहस के प्रतीक हैं। वे निरभय होकर असुरों से भिड़ जाते थे और असंभव से कार्य कर दिखाते थे। इसलिए उनका एक नाम शूर (महाबहादुर) भी है । वाल्मीकि रामायण में उन्हें वीर हनुमान अनेक बार संबोधित किया गया है। उनका शौर् य प्रख्यात होने से महावीरो नाम तो है ही, शूर उसी का पर्याय है।
सुरार्चित देवताओं द्वारा अर्चित (पूजित) सुरार्चित का अर्थ है “जिसकी देवताओं ने भी आराधना की हो।” हनुमान जी देवताओं द्वारा वंदित हैं। लंका दहन के बाद जब हनुमान ने रामचंद्र को सीता का समाचार दिया, तब नारद आदि देवर्षियों ने प्रकट होकर उनकी स्तुति की थी। महर्षि भारद्वाज ने भी यज्ञ में हनुमान का आवाहन किया था। इन प्रसंगों के कारण हनुमान सुरों द्वारा अर्चित माने जाते हैं।
स्फटिकाभ स्फटिक (क्रिस्टल) के समान आभा वाले हनुमान जी की दिव्य कांती को स्फटिकाभ कहा गया है – अर्थात जिनका तेज और स्वरूप स्फटिक मणि जैसा निर्मल एवं उज्ज्वल है। इसका तात्पर्य है कि हनुमान पापरहित, निष्कलंक एवं अत्यंत पवित्र तेज वाले हैं। उनकी उपमा कभी सुवर्ण पर्वत से दी जाती है तो कभी चमकते स्फटिक से, जो उनकी अनूठी आभा को दर्शाती है।
संजीवन-नगा-हर्ता संजीवनी (औषधि) पर्वत को उठा लाने वाले युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हुए तो हनुमान हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाने उड़ चले। आवश्यक जड़ी पहचानने में कठिनाई होने पर हनुमान पूरा द्रोणागिरी पर्वत ही उठा लाए थे। इस अद्वितीय पराक्रम के कारण उन्हें संजीवन-नगाहर्ता कहा जाता है – अर्थात संजीवनी वाले पर्वत को उखाड़ लाने वाले शक्तिमान। आज भी हरिकथा में गाते हैं: “लाए सजीवन लखन जियाये” – यह नाम उसी प्रसंग की याद दिलाता है।
शुचि शुचि = पवित्र, शुद्ध चरित्र वाले शुचि शब्द का अर्थ है पवित्र एवं निर्मल। हनुमान जी पूर्णतः शुद्ध आचार-विचार वाले देवता हैं – उनमें काम, लोभ, मोह का लेश नहीं। इस कारण उन्हें शुचि कहा गया है। वे ब्रह्मचारी हैं, सच्चरित्र हैं, किसी प्रकार के पाप से दूर हैं। भक्तमानस में उनकी छवि निर्मल ज्योति समान है।
वाग्मी सुशील वक्ता हनुमान जी अत्यंत कुशल वक्ता और धारणीय संवादकर्ता हैं। वाग्मी का अर्थ है “प्रवक्ता” – वे आवश्यकता पड़ने पर अपनी वाणी से शत्रु-मित्र सभी को प्रभावित कर लेते हैं। रावण की सभा में भी उन्होंने निर्भीक किन्तु मर्यादित भाषण दिया। तुलसीदास ने उन्हें “कवि” (कवित्व क्षमता वाले) कहा। अतः वाग्मिता के गुण के कारण हनुमान यह नाम धारण करते हैं।
दृढ़व्रत दृढ़ प्रतिज्ञ, अटल संकल्प वाले हनुमान जी जो भी संकल्प लेते हैं उसे पूर्ण करके ही मानते हैं। उनका व्रत (निश्चय) अत्यंत दृढ़ है। इसीसे उन्हें दृढ़व्रत कहा गया – अर्थात अटल प्रतिज्ञावान। उदाहरणार्थ, सीता माता को ढूँढने का संकल्प लेकर वे लंका तक गए और कार्य पूर्ण कर ही लौटे। उनकी दृढ़प्रतिज्ञता का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में “हनुमान् यत्नमस्ति” (हनुमान प्रयास में जुटा ही रहेगा) जैसे वाक्य से हुआ है।
पञ्चवक्त्र / पञ्चमुखी पाँच मुखों वाले (पंचमुखी रूप) यह हनुमान जी के विख्यात पंचमुखी हनुमान स्वरूप को दर्शाता है। भगवान हनुमान ने अहिरावण वध के समय पंचमुखी अवतार लिया था – जिसमें उनके अपने मुख के अतिरिक्त नरसिंह, गरुड़, वराह एवं हयग्रीव के मुख थे। इस रूप में उनके दस भुजाएँ भी थीं। अतः पंचवक्त्र नाम से उनकी पाँच-मुखी शक्ति को पूजा जाता है। पंचमुखी हनुमान की उपासना से भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं ऐसा माना जाता है।
महातपस्वी महान तपस्वी, योगी हनुमान जी बाल्यकाल से ही परम तपस्वी हैं। सूर्य को गुरु मानकर उन्होंने बाल्यकाल में घोर विद्याध्ययन व तप किया था। उनका एक नाम महातपस्वी है – अर्थात महान तप करने वाला योगी। उन्होंने राम सेवा को ही तप का रूप मानकर आजीवन ब्रह्मचर्य और सेवा का व्रत निभाया। कलियुग में भी वे अज्ञात रूप में तपस्यारत हैं ऐसी जनश्रुति है।
दैत्यकार्य-विघातक दैत्यों (राक्षसों) के कार्यों का विध्वंसक हनुमान जहाँ कहीं राक्षसों की कुदृष्टि देखते हैं, उसे विफल कर देते हैं। लंका में उन्होंने राक्षसों द्वारा सीता को सताने के प्रयास विफल किए, मेघनाद के ब्रह्मास्त्र की योजना विफल की, अक्षयकुमार का अंत किया – कुल मिलाकर राक्षसों के हर कुत्सित प्रयास का विनाश किया। इसलिए वे दैत्यकार्यविघातक (असुरों के कार्यों को विफल करने वाले) कहे जाते हैं। भक्त प्रह्लाद के समान हनुमान हर युग में धर्म की रक्षा हेतु दैत्यों के विरुद्ध कार्यरत हैं।
लक्ष्मण-प्राणदात लक्ष्मण कोदान देने वाले मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और उनके प्राण संकट में थे। तब हनुमान संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण वापस ले आए। इस कारण श्रीराम ने प्रसन्न होकर कहा कि “हनुमान ने मेरे भाई के प्राण बचाकर मुझे जीवनदान दिया”। अतः हनुमान का नाम लक्ष्मण-प्राणदाता प्रसिद्ध हुआ। यह नाम उनके चरम परोपकार और चिकित्सक रूप को दर्शाता है।
वज्रकाय वज्र के समान काय (देह) वाले हनुमान जी की काया (शरीर) इंद्र के वज्र जैसे कठोर एवं अजेय है।स्वयं इंद्र का वज्रपात उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका था। पवनपुत्र होने से उनकी देह द्रढ़ और वज्र-सदृश है, इसीलिए उन्हें वज्रकाय कहा जाता है।बजरंगबली नाम भी इसी ओर संकेत करता है कि उनकी भुजाएँ, टाँगें आदि वज्र (बजरंग) जैसी शक्तिशाली हैं।
महाद्युति महान तेज वाले, अत्यंत दीप्तिमान हनुमान जी अपार तेजस्विता से युक्त हैं। उनका रूप महान ओज और प्रकाश से दीप्त है, अतः वे महाद्युति (महान तेज वाले) कहलाते हैं। जब हनुमान लंका में प्रकट हुए तो उनकी प्रभा देख राक्षस आश्चर्यचकित रह गए – यह प्रसंग उनकी देह से प्रस्फुटित महातेज का उदाहरण है। उनकी उपमा सहस्र सूर्यों के प्रकाश से भी दी जाती है।
रामदूत राम के दूत (संदेशवाहक) हनुमान जी श्रीराम के परमभक्त ही नहीं, उनके दूत भी हैं। सुग्रीव द्वारा परिचय मिलने के बाद श्रीराम ने सीता की खोज का दायित्व हनुमान को दिया। हनुमान ने रामदूत बनकर सीता को राम का संदेश और मुद्रिका पहुंचाई । इसी वजह से वह नाम प्रसिद्ध हुआ। तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ही उन्हें “रामदूत अतुलित बलधामा” कहा है – यानि राम के दूत और असीम बल के धाम।
प्रज्ञ / प्राज्ञ अत्यंत बुद्धिमान, ज्ञानी हनुमान जी को प्रज्ञ (प्रखर बुद्धि वाले) तथा महापंडित माना जाता है। उनका नाम प्राज्ञ इस बात का द्योतक है कि वे विद्याओं में पारंगत हैं। स्वयं भगवान राम ने हनुमान की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की थी – “इतनी सुंदर नीति युक्त वचन केवल महान पंडित ही बोल सकता है।” वाल्मीकि रामायण में भी हनुमान को निपुण बुद्धि कहा गया है।
सत्यवचन / सत्यवाक्य सदैव सत्य बोलने वाले सत्यवाक्य या सत्यवचन नाम का अर्थ है “जो सदैव सत्य ही बोले।” हनुमान जी धर्मपरायण हैं – वे कभी असत्य भाषण नहीं करते। माता सीता के समक्ष भी उन्होंने स्वयं को सत्यनिष्ठ रामदूत के रूप में पेश किया, जिससे जानकी जी को उन पर तुरंत भरोसा हो गया। उनके इस सत्यवादी गुण के कारण शास्त्रों में उन्हें सत्यवचन कहा गया हैwemy.in।
सत्यसंकल्प सत्य प्रतिज्ञ, अटल निश्चय वाले हनुमान जी का प्रत्येक संकल्प सत् और अटल होता है। वे वही संकल्प लेते हैं जो धर्मसम्मत हो और उसे किसी भी परिस्थिति में पूरा करके दिखाते हैं। इसलिए सत्यसंकल्प नाम से उनकी ख्याति है। उदाहरणार्थ, उन्होंने जाम्बवान को वचन दिया था कि संजीवनी लेकर ही लौटेंगे, और सचमुच लक्ष्मण को जीवित करके ही लौटे।
कपिश्रेष्ठ कपियों में श्रेष्ठ पूरी वानर जाति में हनुमान सबसे श्रेष्ठ हैं – इस बात को स्वयं भगवान राम और अन्य वानर वीरों ने स्वीकारा। रामायण में हनुमान को कपीश्वर (वानर-स्वामी ) के साथ कपिश्रेष्ठ भी कहा गया है।कपिश्रेष्ठ नाम का अर्थ है “सर्वश्रेष्ठ वानर”। सीता माता ने अशोक वाटिका में हनुमान को देखकर कहा था – “इतने तेजस्वी और बुद्धिमान कपि को रामकाज के लिए स्वयं नरश्रेष्ठ राम ने ही भेजा होगा।”
सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवक सीता सहित श्रीराम के चरणों की सेवा में रत रहने वाले सेवक हनुमान जी अपना जीवन भगवान श्रीराम और माता सीता की सेवा में अर्पित करते हैं। उनका एक नाम सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवाधर (या सेवक) है, जिसका अर्थ: “जो सीता समेत श्रीराम के चरणों की सेवा का भार धारित करते हैं।” वे सदा श्रीराम-सीता के चरणों में उपस्थित रहकर सेवा करने को तत्पर रहते हैं – इसका प्रमाण लंका विजय के बाद सीता-राम के चरणों को स्पर्श कर आज्ञा माँगना था।
वीतराग राग-द्वेष से रहित, विरक्त हनुमान जी ने सभी सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों पर विजय पाई हुई है – वे निरंतर भगवान की शरण में रहने वाले विरक्त महात्मा हैं। इसीलिए उन्हें वीतराग (जिसमें कोई राग-द्वेष न हो) कहा गया है।सुंदरकांड में वर्णन आता है कि लंका में विभीषण ने हनुमान को अपने भोग-सुख का प्रस्ताव दिया, किन्तु हनुमान ने नम्रतापूर्वक यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि “मुझे रामचरन के सिवा और कुछ नहीं चाहिए।”
प्रिय प्रिय, सबको अति प्रिय हनुमान जी अपने गुणों, सेवाभाव और विनम्रता के कारण सबके प्रिय हैं। भगवान श्रीराम के तो वे अत्यंत प्रिय हैं ही (“राम दुलारे” – हनुमान चालीसा), साथ ही विभीषण, सुग्रीव, अंगद जैसे मित्रों के भी प्रिय बने। उनका प्रिय नाम इंगित करता है कि वे जिसके साथ होते हैं, उसके प्यारे बन जाते हैं। उनके शत्रु भी अंततः उनके गुणों के कायल हो गए – स्वयं रावण ने मरते समय हनुमान की प्रशंसा की थी।
महाकार महान आकार वाले (विशाल रूपधारी) इस नाम का भावार्थ महाकाय से मिलता-जुलता है। महाकार का शाब्दिक अर्थ “विशाल रूप” है। हनुमान जी आवश्यकता पड़ने पर अपना आकार अति विशाल कर लेते हैं – जैसे समुद्र लाँघते समय पहाड़ जैसा रूप, या युद्ध में त्रिलोक जितना विराट रूप। इसलिए उन्हें महाकार भी कहा जाता है। इसके विपरीत वे सूक्ष्म रूप भी धरते हैं, लेकिन महाकार नाम उनके विराट रूप की महिमा बताता है।
प्रतापवान / प्रतापवत् प्रतापी, यशस्वी और तेजस्वी हनुमान जी तेज, शौर्य और कीर्ति – इन तीनों दृष्टियों से अत्यंत प्रतापी हैं। उनका प्रताप (औद्धत्य-भरा तेज) ऐसा है कि शत्रु थर्रा उठते हैं और मित्र गर्वित होते हैं। प्रतापवत् नाम इस ओर संकेत करता है कि वे अप्रतिम प्रताप के धनी हैंwemy.in। रामायण में जाम्बवान ने कहा था – “हनुमान जैसा प्रतापी तीनों लोकों में कोई नहीं”। उनका यह प्रताप ईश्वर प्रदत्त एवं स्वयं अर्जित दोनों है।
श्रुतिमत् श्रुति (वेद) का मर्म जानने वाले (विद्वान) हनुमान जी वेद-शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित हैं। श्रुतिमत् का अर्थ है “जिसे वेदों का ज्ञान हो” – अर्थात् जो श्रुति (वेद) का तत्व जानता होwemy.in। वाल्मीकि रामायण में ज्ञान-विज्ञान में निपुण होने के कारण हनुमान को “नवनव होने” (नव व्याकरण के ज्ञाता) कहा गया। उनके इसी पांडित्य गुण की वजह से यह नाम दिया गया है। प्रभु श्रीराम ने भी विभीषण से कहा था – “हनुमान वेदों का रहस्य समझने वाले महान ज्ञानी हैं।”
सुमनोहर अत्यंत मनोहर (सुंदर) रूप वाले हनुमान जी का बाह्य रूप अत्यंत आकर्षक और मनोहर है। बाल्यकाल में उनका रूप देखते ही सूर्य देव ने उन्हें अपने ओर आता समझ लिया था। सुमनोहर नाम इस तथ्य को दर्शाता है कि हनुमान सुंदरता और आभा में भी अद्वितीय हैंwemy.in। तुलसीदास ने उन्हें “कंचन बरन बिराज सुबेसा” कहकर स्वर्ण-सी कांति और शोभायुक्त वर्ण वाला बताया है – अर्थात वे देखने में भी परम मनोहर हैं।
तेजस्वी ओजस्वी, प्रखर तेज वाले हनुमान जी को तेजस्वी उनके अंग-अंग से प्रकट होने वाले ओज के कारण कहा जाता है। वे शत्रु के लिए भयंकर तेजस्वी (उग्र तेज) और भक्तों के लिए सुखद तेज (शीतल प्रकाश) हैं। उनकी दृष्टि में तेज है, वाणी में तेज है, चरित्र में तेज है। रामचरितमानस में उन्हें “कोटि सूर्य सम तेज प्रताप” कहा गया है – यानी करोड़ सूर्यों के समान तेजस्वी।
बलदक्ष बल तथा कार्यकुशलता में दक्ष हनुमान जी केवल शक्तिशाली ही नहीं, अत्यंत कौशलपूर्ण ढंग से बल प्रयोग करने वाले भी हैं। बलदक्ष का अर्थ है “शक्ति एवं कौशल में निपुण”wemy.in। उदाहरणार्थ, अशोकवाटिका में उन्होंने आक्रमणकारी राक्षसों को एक-एक कर संगठित ढंग से मार गिराया, पूरे वन को उजाड़ दिया, पर सीता माँ को खरोंच भी नहीं आने दी – यह उनकी बल-कौशल दक्षता का प्रमाण है। इसलिए उन्हें बलदक्ष कहा गया है।
भक्तवश्य भक्तों के वश में रहने वाले (प्रेम से बंधे) हनुमान जी अपने प्रेमी भक्तों के प्रेम में बँधकर उनके वश में हो जाते हैं। भक्तवश्य का तात्पर्य है “जो भक्त के वश में (प्रेमवश) आ जाए”। शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जितने राम के वश में हैं, उतने ही अपने भक्त शबरी, तुलसीदास आदि के प्रेम में भी बंध गए थे। श्रीराम स्वयं कहते हैं – “जो मेरे भक्त हैं, वे हनुमान के भी हृदय में बसते हैं।”
महानिधि महान निधि (बड़े भंडार) के समान हनुमान जी गुणों के महान भंडार हैं। वे बल, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य आदि सद्गुणों की चलती-फिरती निधि हैं। इसलिए उन्हें महानिधि कहा गया है, अर्थात् “महासंपदा/महाभंडार”। रामायण में जाम्बवान ने कहा था – “हनुमान में सभी गुणों का भंडार भरा है।” उनकी विनम्रता, सेवा, शौर्य, बुद्धि, परोपकार – ये सभी गुणमणियां उनके भीतर भरी हैं, इस नाते वे महानिधि हैं।
सर्वज्ञ सर्वज्ञानी (सब कुछ जानने वाले) हनुमान जी को अष्टावधान (एक साथ आठ काम करने में सक्षम) और सर्वज्ञ कहा जाता है । सर्वज्ञ नाम इंगित करता है कि वे तीनों काल (भूत, भविष्य, वर्तमान) का ज्ञान रखते हैं तथा लोक-परलोक के रहस्यों के भी ज्ञाता हैं। पुराणों में भीम को हनुमान ने भविष्योक्ति दी थी कि भगवान का सुयश (महिमा) ही सदा अक्षय रहने वाला है। ऐसे सर्वज्ञान के कारण उन्हें सर्वज्ञ कहा जाता है।
पर्वतविद् पर्वतों के भौगोलिक ज्ञान के ज्ञाता हनुमान जी चारों दिशाओं के भूगोल से परिचित हैं। संजीवनी ढूंढ़ते समय उन्होंने हिमालय के अनेक पर्वतों को पहचान लिया था। इसीलिए उनका नाम पर्वतविद् (पर्वतों के रहस्य-ज्ञान से युक्त) आया । महाभारत में भीम से भेंट के समय उन्होंने कैलाश जाने का मार्ग बताया था। यह नाम उनके भौगोलिक एवं पर्यावरण संबंधी ज्ञान को दर्शाता है – वे प्रकृति के भी मर्मज्ञ हैं।
रत्नकुण्डल-दीप्तिमत् रत्नजड़ित कुण्डलों की आभा से दीप्तिमान हनुमान जी के कानों में दिव्य रत्नजड़ित कुण्डल शोभित रहते थेwemy.in। बालि ने युवावस्था में हनुमान के ये कुण्डल पहचाने थे। रत्नकुण्डल-दीप्तिमत् नाम इंगित करता है कि उनके कानों के रत्नकुण्डलों की चमक से उनका मुख मंडल दमकता है।यह नाम उनके राजसी वैभव और दिव्य अलंकरण को सूचित करता है, जो उनकी माता अंजना ने उन्हें बालपन में पहनाए थे (कथा अनुसार इंद्र ने उन्हें पुनः कुण्डल भेंट किए जब हनुमान ने उनका वज्र सहा)।
गन्धर्वविद्या-लोलुप गन्धर्व विद्याओं (संगीत-कला) में आसक्त हनुमान केवल युद्धकला ही नहीं, संगीत-कला में भी पारंगत थे। गन्धर्वविद्या-लोलुप नाम का अर्थ है “जो गन्धर्वों की कला-विद्या के प्रेमी हैं”। एक कथा में नारद मुनि को संगीत प्रतियोगिता में हनुमान ने परास्त किया और उन्हें विष्णु-भक्ति का मर्म समझाया। यह नाम दर्शाता है कि हनुमान सुर-ताल-नृत्य जैसी कलाओं में भी दक्ष हैं, जो उनके समग्र गुणों का हिस्सा है।
तापन शत्रुओं को संताप (तपन) देने वाले तापन शब्द का अर्थ है जलाना या कष्ट देना। हनुमान अपने शत्रुओं को कठोर दंड देकर संतप्त कर देते हैंwemy.in। उन्होंने रावण की लंका जलाई, असुरों को जलाया, अतिकाय राक्षसों को भीषण पीड़ा दी। इसलिए उन्हें तापन कहा जाता है – अर्थात जो दुस्टों को ताप देता है। उनके नाम से ही भूत-पिशाच आदि भागते हैं; यह भी उनके तापन स्वरूप का एक पहलू है (हनुमान चालीसा: “भूत पिशाच निकट नहिं आवै”)।
महारावण-मर्दन महा रावण का मर्दन करने वाले इस नाम के दो अर्थ हैं: (1) महाबली रावण के मर्दनकर्ता – हनुमान जी के पराक्रम ने रावण के घमंड को चूर किया और उसके विनाश का मार्ग प्रशस्त किया। (2) महिरावण (रावण के भाई) के संहारक – बंगाल की कथा अनुसार पाताल के महारावण (महिरावण) का वध पंचमुखी हनुमान ने किया । दोनों ही अर्थों में हनुमान महारावणमर्दन हैं – चाहे वह लंकापति रावण हो या पातालपति महिरावण, दोनों के दर्प को हनुमान ने चूर्ण किया।
नवव्याकृत-पण्डित नौ व्याकरणों के पंडित (विशेषज्ञ) वाल्मीकि रामायण की प रंपरा में वर्णित है कि हनुमान नौ प्रकार के व्याकरण के प्रकाण्ड पंडित थे। जब हनुमान जी सीता माता से अशोकवाटिका में मिले तो उनकी शुद्ध संस्कृत एवं व्याकरण ज्ञान से सीता चकित हुईं – “एवं विद्वान् दशग्रीवेऽपि न दृश्यते” (इतने विद्वान रावण के दरबार में भी नहीं) । नव-व्याकृत-पंडित नाम इसी ओर संकेत करता है और बताता है कि वे व्याकरण-शास्त्र के उस्ताद हैं।
महात्मा महात्मा (महान आत्मा) हनुमान जी एक महान आत्मा हैं। महात्मा शब्द उनके उदात्त चरित्र, परोपकारिता और विनम्रता का द्योतक है। वे शक्तिमान होते हुए भी अहंकारशून्य हैं, प्रभु-भक्ति में लीन रहते हैं और निश्छल भाव से सेवा करते हैं – यही सच्चे महात्मा के लक्षण हैं । श्रीराम ने हनुमान को गले लगाकर “मेरे लिए तुम भाई से बढ़कर हो” कहा था। भक्तों ने भी प्रत्येक युग में उन्हें महात्मा के रूप में सम्मान दिया है।
भक्तवत्सल भक्तों पर स्नेह रखने वाले (देख ऊपर) भक्तवत्सल नाम ऊपर प्रविष्ट हो चुका है – देखें क्रमांक 28। हनुमान जी सदा अपने भक्तों पर कृपा-दृष्टि रखते हैं और उनके दोषों को अनदेखा कर उन्हें गले लगाते हैं। इस गुण के कारण उनकी पूजा करने वालों को यह विश्वास मिलता है कि “हनुमान हमारे अपने हैं”।
सीताराम-पाद-सेवक श्रीसीता-राम के चरण सेवक (देख ऊपर) सीताराम-पाद-सेवक नाम भी ऊपर क्रमांक 84 पर उल्लिखित है। हनुमान जी अपने आराध्य श्रीराम-जानकी के चरणों में ही अपने जीवन का सार देखते हैं। बाल्मिकी रामायण के अंतिम सर्गों में वर्णन है कि अयोध्या राज्याभिषेक के पश्चात भी हनुमान राजसभा छोड़कर राम-सीता के चरणों के पास ही बैठे रहते थे, क्योंकि सेवा ही उनका धन है


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