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जानिए देवी दुर्गा के वे 108 नाम, जो नवदुर्गा, शक्तिपीठ और तांत्रिक साधनाओं से जुड़े हैं – हर नाम में एक शक्ति, एक आशीर्वाद !

जानिए देवी दुर्गा के वे 108 नाम, जो नवदुर्गा, शक्तिपीठ और तांत्रिक साधनाओं से जुड़े हैं – हर नाम में एक शक्ति, एक आशीर्वाद !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

देवी दुर्गा के 108 प्रमुख नाम

मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) में भगवान शिव ने पार्वती को मा ता दुर्गा के 108 नाम बताए हैं। इन नामों के जप से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को अभिष्ट फल देती हैं। नीचे तालिका में देवी दुर्गा के 108 नाम, उनका शाब्दिक अर्थ तथा नामकरण का संक्षिप्त कारण/संदर्भ प्रस्तुत है। इन विवरणों को प्रामाणिक शास्त्रों (पुराण, उपनिषद आदि) के आधार पर सरल भाषा में दिया गया है।

नाम (देवी) अर्थ (शाब्दिक) नामकरण का आधार/संदर्भ (संक्षेप में)
सती सत्यनिष्ठा व पतिव्रता (स्वयं को जला देने वाली) प्रजापति दक्ष की कन्या एवं शिव-पत्नी जिन्होंने पिता के यज्ञ में आत्मदाह किया था, उसी घटना से इन्हें सती (आदर्श पतिव्रता जो आत्मोत्सर्ग करे) नाम मिला। यह कथा शिव पुराण, देवी भागवत आदि पुराणों में वर्णित है।
साध्वी परम पुण्यवती, धर्मपरायणा स्त्री देवी के पवित्र, सात्विक स्वभाव को दर्शाने वाला नाम। साध्वी का अर्थ है सदाचारिणी धर्मनिष्ठ महिला – जो अपने तप, संयम और पतिव्रत धर्म के लिए विख्यात हों।
भवप्रीता भव द्वारा प्रीता – संसार द्वारा प्रिय भव का अर्थ सृष्टि/प्राणिजनित संसार है। देवी जगत-जननी हैं और समस्त संसार को प्रिय हैं, इसलिए उनका नाम भवप्रीता पड़ा – अर्थात् जगद्वंदिता जिनको सारा जगत प्यार करता है।
भवानी भव (शिव) की अर्धांगिनी; जगत् जननी भवानी शिवजी (भव) की शक्ति का नाम है। शिव-पत्नी होने से पार्वती को भवानी कहा गया। इसका अर्थ जगत् की माता भी है – देवी को समस्त सृष्टि की पालनकर्ता माना गया है।
भवमोचनी भव (संसार) से मोक्ष दिलाने वाली देवी का नाम भवमोचनी इसलिए पड़ा क्योंकि वे संसार बंधन से मुक्त कराने वाली शक्ति हैं। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि दुर्गा देवी भक्तों के आवागमन (भव चक्र) से छुटकारा दिलाती हैं, hence भवमोचनी।
आर्या आदरणीय, श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न आर्या का अर्थ है महान या पूजनीय महिला। देवी को यह नाम उनकी उत्कृष्ट महानता एवं पूज्यता के कारण मिला – वे आदिशक्ति एवं समस्त देवों द्वारा आदरणीय हैं।
दुर्गा दुर्गम (कठिन) से पार कराने वाली; अजेय दुर्गा शब्द का अर्थ है “दुर्ग समान दुर्जेय” अर्थात अप्राप्य एवं अजेय शक्ति। देवी को दुर्गा नाम तब मिला जब उन्होंने दैत्य दुर्गमासुर का वध किया था । यह नाम उनके अभेद्य तेज और असुरों पर विजयों का द्योतक है।
जया विजयी (सदा जय पाने वाली) देवी जया कहलाती हैं क्योंकि असुरों पर सदैव उनकी जीत होती है। यह नाम उनके अपराजेय पराक्रम को दर्शाता है – दुर्गा हर युद्ध में विजयश्री प्राप्त करती हैं।
आद्या आदिकालीन, मूल आदि शक्ति आद्या का अर्थ है आदि (प्रारंभिक) शक्ति। शास्त्रों में दुर्गा को आदिशक्ति कहा गया है – देवी उपनिषत् आदि में वे स्वयं कहती हैं “मैं ही आदि-सृष्टि हूँ”. अतः आदिम शक्ति होने से उनका नाम आद्या पड़ा।
त्रिनेत्रा तीन नेत्रों वाली (त्रयीरूपेन्द्रिया) देवी के शिव के समान ही तीन नेत्र हैं – सूर्य, चंद्र और अग्नि जिनसे भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान होता है। इसलिए उन्हें त्रिनेत्रा कहा गया। उनके तीसरे नेत्र से प्रलयाग्नि तथा ज्ञान दोनों प्रकट होते हैं।
शूलधारिणी शूल (त्रिशूल) धारण करने वाली दुर्गा अपने कर-कमलों में त्रिशूल धारण करती हैं, इसलिए शूलधारिणी नाम से जानी जाती हैं। त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है जिसे धारण कर देवी त्रिदेवों की शक्ति स्वयं धारण करती हैं।
पिनाकधारिणी पिनाक (शिव-धनुष) उठाने वाली पिनाक भगवान शिव का धनुष है। शास्त्रों के अनुसार देवी ने शुम्भ-निशुम्भ संग्राम में शिव के धनुष पिनाक को धारण कर पराक्रम दिखाया था, अतः वे पिनाकधारिणी कहलाती हैं।
चित्रा विचित्र एवं मनोहर रूप वाली चित्रा का अर्थ है अद्भुत या चित्रवत सुंदर। देवी का स्वरूप अनंत सौंदर्य और विविधता लिए हुए है, इसलिए उन्हें चित्रा कहा गया – उनका प्रत्येक रूप अद्वितीय चित्र समान है।
चण्डघण्टा प्रचण्ड घंटेधारी (भयंकर घंटी वाली) देवी पार्वती ने असुरों से युद्ध में घण्टे का भी प्रयोग किया था। उनके घंटे की प्रचण्ड ध्वनि से दैत्य भयभीत हुए। उसी पराक्रम के प्रतीक रूप में उनका नाम चण्डघण्टा (भयानक घंटाधारी) प्रसिद्ध हुआ।
महातपा महान तपस्या वाली (तपस्विनी) महातपा का अर्थ है महान तप करने वाली। पार्वती ने शिव को पाने हेतु घोर तपस्या की थी, इसलिए देवी के लिए महातपा नाम प्रयोग होता है – वे अत्यंत तपस्विनी हैं।
मनस् मन स्वरूपिणी (अंतःकरण) मनस् शब्द मन/चित्त को दर्शाता है। शास्त्रों में देवी को विराट मन का रूप कहा गया है – या देवी सर्वभूतेषु मनरूपेण संस्थिता... इस आधार पर दुर्गा मनस् कहलाती हैं, अर्थात समस्त प्राणियों के मन के रूप में स्थित देवी।
बुद्धि बुद्धि (विवेक) की अधिष्ठात्री शक्ति देवी समस्त जीवों की बुद्धि में निवास करती हैं। देवी महात्म्य में स्तुति है: “या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै...” – अर्थात् जो देवी सब प्राणियों में बुद्धि रूप में स्थित हैं। इस प्रकार उन्हें बुद्धि नाम से संबोधित किया जाता है।
अहंकारा अहं (अहंकार) तत्व की नियंत्रक देवी अहंकारा हैं, अर्थात सृष्टि के अहं तत्व की अधिष्ठात्री। पुराणों में वर्णित है कि ब्रह्मांड के पंचतत्वों में अहंकार भी एक तत्व है जिसके संचालन वाली शक्ति दुर्गा हैं। अतः उन्हें यह नाम मिला – वे सृष्टि के अहंभाव को नियंत्रित करने वाली हैं।
चित्तरूपा चित्त (चेतना) स्वरूपिणी चित्त का अर्थ विचार एवं चेतना है। देवी का नाम चित्तरूपा इसलिए है क्योंकि वे शुद्ध चेतना की स्वरूप हैं। योगशास्त्रों में चिति शक्ति (चेतना) को ही आदिशक्ति कहा गया है, वही दुर्गा हैं – सभी विचार, भावनाएँ जिनसे उत्पन्न हों।
चिता चिता (अंतिम सत्य, शव-दाह) चिता का शाब्दिक अर्थ शवदाह की अग्नि है। यह नाम देवी के उग्र रूप की ओर संकेत करता है – वह शक्ति जो संहार के बाद सबको अपनी गोद (चिता) में जगह देती है। कालिका पुराण आदि में काली को श्मशानवासिनी कहा गया है जो शमशान की चिता पर नृत्य करती हैं, अतः देवी को चिता कहा गया।
चिति चित् शक्ति (शुद्ध बुद्धि/स्मृति) चिति शब्द दिव्य बुद्धि या शक्ति को इंगित करता है। देवी चिति नाम से पुकारी जाती हैं क्योंकि वे समस्त ज्ञान एवं चेतना का स्रोत हैं। उन्हें परमात्मस्वरूप चित् (ब्रह्मज्ञान) की अधिष्ठात्री माना गया है।
सर्वमंत्रमयी सभी मंत्रों से युक्त, सर्वशक्तिमती शास्त्र कहते हैं देवी सर्व मन्त्रों की आत्मा हैं। सर्वमंत्रमयी नाम का अर्थ है कि समस्त मंत्र, स्तोत्र, यज्ञोपयोगी शक्तियाँ देवी में निहित हैं। दुर्गा सप्तशती में देवताओं द्वारा की गई स्तुति भी सभी मंत्रों का सार कहती है कि “देवी तुम ही मंत्रात्मिका हो” – अतः यह नाम।
सत्ता सत् स्वरूपा (परम अस्तित्व) सत्ता शब्द सत् (परमसत्य अस्तित्व) को दर्शाता है। देवी को सत्ता कहा गया क्योंकि वही परम सत्ता (ब्रह्म) हैं जो सर्वत्र व्याप्त है। मार्कण्डेय ऋषि उन्हें विश्व का आधारभूत सत् तत्व बताते हैं।
सत्यानन्दस्वरूपिणी शाश्वत सत्य एवं आनन्द की मूर्ति दुर्गा का स्वरूप सत् (सत्य) तथा चित् आनंद से ओतप्रोत है। अतः उन्हें सत्यानन्दस्वरूपिणी कहा जाता है – जो शाश्वत सत्य और आनन्द की प्रतीक हैं। यह नाम देवी को सच्चिदानन्दरूपिणी परमेश्वरी के रूप में स्थापित करता है।
अनन्ता अनन्त, अपरिमेय (जिसका अंत ना हो) अनन्ता का अर्थ है जिसका कोई अंत नहीं। देवी का वैभव, शक्ति और जीवन अनन्त है। देवी उपासना में उन्हें अनंत शक्ति कहा गया है – वे सीमाहीन हैं, अपार हैं, इसलिए यह नाम उन्हें दिया गया।
भाविनी सुंदर, शोभना (शुभ-भाव रखने वाली) भाविनी का अर्थ सुंदर स्त्री या शुभ भावों से युक्त नारी है। देवी भाविनी कहलाती हैं क्योंकि उनका रूप अति सौंदर्यमय है एवं वे करुणा, स्नेह जैसे शुभ भावों से भरी हैं। भक्तों के प्रति उनका मातृसुलभ कोमल भाव सर्वविदित है।
भाव्या भविष्योन्मुखी, भविष्य से संबन्धित भाव्या शब्द भावि (भविष्य) से बना है। देवी को भाव्या इसलिए कहा गया कि वे सृष्टि के भविष्य का निर्धारण करने वाली हैं और कल्याणकारी भाव रखती हैं। वे आने वाले समय को सँवारने वाली शक्ति हैं।
भव्याः भव्य, विभूतिमती (दीप्तिमान) भव्य का अर्थ है महान या दीप्तिमान। देवी का स्वरूप दिव्य तेज से देदीप्यमान है, इसी कारण उन्हें भव्याः (महिमा-मंडित) कहा गया। वे अपनी भव्यता से तीनों लोकों को प्रकाशित करती हैं।
अभव्याः अभव्य, अशुभ/भयावनी (काली रूप में) अभव्य का अर्थ है अशुभ या भीषण. देवी के उग्र स्वरूप (जैसे कालिका) को अभव्य कहा गया है क्योंकि वह पापियों के लिए भयंकर है। कालिका उपपुराण में उल्लेख है कि देवी के काली रूप को देखकर दैत्य त्रस्त हो जाते थे – यही अर्थ इस नाम में है।
सदागति सदा मंगलमयी गति (मोक्ष प्रदान करने वाली) सदागति का शाब्दिक अर्थ है "हमेशा वाली गति" अर्थात् मोक्ष या परम गति। दुर्गा सदागति हैं क्योंकि वे भक्तों को मुक्ति का मार्ग प्रदान करती हैं। उनके चरणों में शरण लेने से जीव को उत्तम गति (मोक्ष) सदा के लिए प्राप्त होती है।
शांभवी शंभु (शिव) की प्रिया/शक्ति शांभवी अर्थात् शिव की अर्धांगिनी – पार्वती। शिव को शंभु कहा जाता है, अतः उनकी पत्नी पार्वती शांभवी कहलाती हैं। कई पुराणों (जैसे स्कंद पुराण) में पार्वती के लिए यह नाम आया है।
देवमाता देवताओं की माता (दिव्य जननी) दुर्गा को देवमाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे समस्त देवों की मूल आद्या शक्ति हैं। देवी भागवत में विष्णु, ब्रह्मा, शिव आदि देवताओं ने उन्हें अपनी माता स्वरूप प्रणाम किया है – वे सम्पूर्ण देवसमूह का पोषण करने वाली जगदम्बिका हैं।
चिंता चिंता (चिन्तन शक्ति, विचार) चिंता का अर्थ है विचार अथवा मनन। देवी चिंता रूपा हैं – वे ज्ञान की अधिष्ठात्री होने से भक्तों के सभी संतापों को हरती हैं। पुराणों में कहा गया “भव-बन्ध का चिंतन जिनसे कटे वह शक्ति दुर्गा हैं।” अर्थात देवी की शरण से सारी चिंताएँ मिट जाती हैं, इसलिए यह नाम।
रत्नप्रिया रत्नों को प्रिय, रत्नाभूषण धारिणी रत्नप्रिया का अर्थ है जिसे रत्न प्रिय हों। दुर्गा को पुराणों में रत्नाभूषणों से अलंकृत बताया गया है – वे रत्नों की प्रभा से सुशोभित रहती हैं। साथ ही, वे अपने भक्तों को भी रत्न के समान अनमोल मानकर प्यार करती हैं।
सर्वविद्या समस्त विद्याओं की ज्ञाता/दाता दुर्गा सर्वविद्या हैं, अर्थात् सभी विद्याओं की देवी। देवी उपनिषद में कहा है “सर्व की आदि देवी दुर्गा ही हैं।” अतः सर्वविद्या नाम से प्रकट है कि संगीत, कला, युद्धकला, अध्यात्म सभी प्रकार के ज्ञान उनमें निहित हैं।
दक्षकन्या दक्ष प्रजापति की कन्या पूर्वजन्म में देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इसी कारण दुर्गा का एक नाम दक्षकन्या है। यह नाम उनके सती अवतार की स्मृति दिलाता है – दक्ष की पुत्री जिसने बाद में पार्वती रूप में पुनर्जन्म लिया।
दक्षयज्ञविनाशिनी दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली जब दक्ष ने शिव का अपमान करके यज्ञ किया, तब सती (दुर्गा) उस यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं। इसके बाद शिव के गणों ने दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दिया। इस प्रसंग के कारण देवी को दक्षयज्ञविनाशिनी कहा गया – अर्थात जिसने दक्ष के अभिमानी यज्ञ का विनाश किया। यह कथा कई पुराणों में वर्णित है।
अपर्णा पर्ण-रहित (पत्ते तक न खाने वाली) देवी पार्वती ने घोर तपस्या में अन्न-जल तो दूर, पत्ते तक खाना छोड़ दिया था। इस पर देवताओं ने श्रद्धा से उन्हें अपर्णा नाम दिया – “जो पत्तों का भी त्याग कर दे”। हरिवंश पुराण में पार्वती को अपर्णा कहा गया है क्योंकि उन्होंने कठोर उपवास किया था ।
अनेकवर्णा कई वर्णों/रंगों वाली दुर्गा के रूप अनेक हैं – कभी वे गौर वर्णा हैं तो कभी श्यामल, कभी रक्तवर्णा। इसलिए उन्हें अनेकवर्णा कहा जाता है। कल्याणकारी गौरी और उग्र काली आदि भिन्न वर्णों में प्रकट स्वरूप इसी देवी के पहलू हैं।
पाताला पाटल (गुलाबी-लाल) वर्ण वाली पाताला का अर्थ है गहरा लाल या गुलाबी रंग। पुराणों में वर्णित है कि देवी एक रूप में रक्तवर्णा हैं – उनके शरीर का रंग लाल कमल के समान दिपदिपाता है। इस लाल रंग के कारण उन्हें पाताला (लालवर्णा) कहा गया।
पातालावती लाल वस्त्र पहनने वाली दुर्गा का एक नाम पातालावती भी है क्योंकि वे पाटल-वर्ण (लाल रंग) के परिधान धारण करती हैं। शास्त्रों में उन्हें लाल साड़ी व लाल फूलों से सुसज्जित दिखाया गया है – यह उग्रशक्ति का प्रतीक रंग है।
पट्टांबर-परिधाना पट्टाम्बर (चर्म-वस्त्र) धारण करने वाली कुछ पुराणों में उग्र काली रूपी दुर्गा को व्याघ्रचर्म या हस्ति-चर्म का वस्त्र पहने दर्शाया गया है। इसलिए उनका नाम पट्टांबर-परिधाना पड़ा – अर्थात चमड़े के बने वस्त्र पहनने वाली देवी। यह उनका उग्र, त्यागमय स्वरूप दिखाता है (श्मशानवासी काली)।
कलमञ्जीर-रञ्जिनी मधुर घुँघरू की ध्वनि से मोहित करने वाली कल-मञ्जीर का अर्थ है घुँघरूयुक्त पायल। देवी के चरणों में बंधे मञ्जीरों (पायल) की मधुर झंकार तीनों लोकों को मंत्रमुग्ध करती है। अतः वे कलमञ्जीररञ्जिनी कहलाती हैं – यानी जिनकी पायल की रुनझुन से भक्त मोहित हों।
अमेया अमेय, अपरिमेय (जिसका मापन न हो सके) दुर्गा अमेया हैं – उनकी महिमा का कोई पारावार नहीं। अमेया का अर्थ है जिसे मापा न जा सके। उनकी शक्ति, करुणा और सौंदर्य अनंत हैं जिन्हें मन, वाणी से पूर्णतया व्यक्त नहीं किया जा सकता।
विक्रमा विक्रमी, अत्यंत पराक्रमी विक्रम शब्द का अर्थ है पराक्रम या वीरता। दुर्गा विक्रमा इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने महिषासुर सहित अनेकों संग्रामों में अद्वितीय शौर्य दिखाया। उनके इसी महान विक्रम के स्मरण में यह नाम रखा गया।
क्रूरा (दुष्टों के लिए) क्रूर, कठोर क्रूरा का अर्थ है निर्दय या उग्र। देवी का यह नाम उनके उग्र-न्यायकारी रूप को दर्शाता है जो दैत्य एवं पापी प्राणियों के प्रति बेहद कठोर है। भक्तों के लिए वे करुणामयी हैं, किंतु दुष्टों के लिए क्रूर संहारिणी।
सुन्दरी अति सुंदर, रूपवती दुर्गा जगन्माता होते हुए भी अतीव सुन्दरी हैं। उनका सौंदर्य दिव्य है, इसी लिए उन्हें सुन्दरी कहा जाता है। कई ग्रंथों में पार्वती को त्रिलोचन सुन्दरी कहा गया – अर्थात तीनों लोकों में उनसे बढ़कर सुंदर कोई नहीं।
सुरसुन्दरी देवों में सर्वाधिक सुंदर, दिव्य रूपवती सुरसुन्दरी अर्थात देवताओं की सुंदरी। यह नाम दर्शाता है कि देवी का सौंदर्य स्वर्ग की अप्सराओं से भी बढ़कर है। वे स्वयं श्री (लक्ष्मी) और शोभा की अधिष्ठात्री हैं, इसलिए सुरसुन्दरी कहलाती हैं।
वनदुर्गा वन की दुर्गा (अरण्य की रक्षिका) देवी का एक रूप वनदुर्गा है जो जंगलों में निवास करने वाले भक्तों की रक्षक देवी हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा ने वन में तपस्यारत संतों की रक्षा असुरों से की, तब से वे वनदुर्गा कहलाईं। उनका यह स्वरूप पर्वतीय एवं वन क्षेत्रों में विशेष पूजा जाता है।
मातंगी मातंग ऋषि द्वारा आराधित महाविद्या मातंगी देवी दुर्गा की एक महाविद्या हैं। कथा है कि मतंग मुनि ने जंगल में उनकी घोर उपासना की थी। इस कारण देवी का यह तांत्रिक रूप मातंगी (मतंग की आराध्या) कहलाया। वे उच्छिष्ट-चण्डालों के बीच पूजित होने वाली विद्या भी हैं, जो सभी को स्वीकार करती हैं।
मतंगमुनि-पूजिता मतंग मुनि द्वारा पूजित देवी मतंग मुनि पुराने काल के एक महान तपस्वी थे जिन्होंने आदि शक्ति की आराधना की। कहा जाता है कि उनके उपास्य देवी स्वरूप को सम्मान में मतंगमुनिपूजिता कहा गया – अर्थात् जिसे मतंग ऋषि ने पूजा। यह नाम मातंगी देवी का विशेषण है।
ब्राह्मी ब्रह्मा की शक्ति (ब्रह्माणी मातृका) ब्राह्मी सप्तमातृकाओं में प्रथम हैं – ये सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की शक्ति का अवतार हैं। देवी महात्म्य में वर्णन है कि शुंभ-निशुंभ युद्ध में ब्राह्मी ने हंसवाहिनी स्वरूप लेकर देवी की सहायता की थी। उनका वर्ण पीत (हल्दी जैसा) बताया गया है।
माहेश्वरी महेश (शिव) की शक्ति (महेशानी) माहेश्वरी सप्तमातृका में शिव की शक्ति हैं। पुराणों में इनका वर्ण सफेद वृषभ-वाहिनी देवी के रूप में है। इन्होंने देवी दुर्गा को त्रिशूल एवं ऋषभवाहन के साथ सहायता दी। माहेश्वरी नाम शिवांश शक्ति होने के कारण है।
ऐन्द्रि (इन्द्राणी) इन्द्र की शक्ति ऐन्द्रि (या इन्द्राणी) देवी इंद्र की शक्तिस्वरूपा मातृका हैं। इन्हें ऐरावत-वाहिनी दर्शाया गया है। देवी महात्म्य की कथा में इन्द्राणी ने अपने वज्र से असुरों को परास्त किया था। उनका नाम शाची भी है और वे स्वर्ग की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।
कौमारी कुमार (स्कन्द) की शक्ति (स्कन्दमाता) कौमारी सप्तमातृका में कार्तिकेय (स्कन्द) की शक्ति हैं। इन्हें मयूर-वाहिनी रणचण्डी रूप में दिखाया गया है। पुराण अनुसार, कौमारी ने देवी को अपनी शक्ति से असुरों के सेनापति पर विजय दिलाई। उनका नाम स्कन्दमाता भी है क्योंकि ये स्कन्द की शक्ति हैं।
वैष्णवी विष्णु की शक्ति (लक्ष्मी स्वरूप) वैष्णवी भगवती विष्णु की शक्तिरूपा हैं। देवी महात्म्य में इन्हें गरुड़वाहिनी चक्रधारिणी रूप में वर्णित किया गया – इन्होंने अपने चक्र से असुरों का संहार किया। वैष्णवी वास्तव में महालक्ष्मी का ही योद्धा रूप है जो देवी दुर्गा का अंश है।
चामुण्डा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली देवी देवी महात्म्य में कथा है कि दुर्गा के तीक्ष्ण क्रोध से काली उत्पन्न हुईं और उन्होंने दो महामन्सी असुर चण्ड व मुण्ड का संहार किया । उस पर देवी दुर्गा ने प्रसन्न होकर काली को “चामुण्डा” नाम प्रदान किया – चण्ड तथा मुण्ड का वध करने के कारण। तभी से महाकाली चामुण्डा नाम से पूजित हैं।
वाराही वाराह (सूकर) अवतार की शक्ति वाराही सप्तमातृका में भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति हैं। इन्हें महिषवाहिनी दाँतों वाली देवी के रूप में दिखाया जाता है। देवी भागवत में वर्णित है कि वाराही ने रक्तबीज नामक असुर से युद्ध में अपनी शक्ति से देवी की सहायता की।
लक्ष्मी लक्ष्मी (धन-संपदा और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री) दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में भी पूजा जाता है। दुर्गा सप्तशती के मध्य चरित्र में महिषासुर से युद्ध करते समय देवी महामाया लक्ष्मी रूप में प्रकट हुई थीं – सभी देवों की शक्तियाँ समाहित कर। तब से दुर्गा को लक्ष्मी (धन एवं समृद्धि की देवी) नाम से अभिहित किया जाने लगा।
पुरुषाकृति पुरुष रूप धारण करने वाली पुरुषाकृति नाम बताता है कि देवी आवश्यकता पड़ने पर पुरुष रूप भी धारण कर सकती हैं। कुछ तंत्र ग्रंथों में वर्णन आता है कि शुम्भ-वध से पूर्व देवी ने सुंदर युवक का रूप लिया था जिससे शुम्भ मोहित हुआ। यह नाम उनकी सर्वरूप धारिता शक्ति का द्योतक है – वे स्त्री-पुरुष सभी रूप धारण करने में सक्षम हैं।
विमलोत्कर्षिणी विमल उत्कर्ष देने वाली (निर्मल आनंददायिनी) विमल अर्थ शुद्ध/निर्मल और उत्कर्षिणी यानी उत्कर्ष या परम आनंद देने वाली। दुर्गा विमलोत्कर्षिणी हैं क्योंकि वे भक्तों के मन के मलिन भाव दूर कर परम आनंद की प्राप्ति करवाती हैं। उनकी कृपा से आत्मा निर्मल होकर उत्कर्ष (उन्नति) प्राप्त करती है।
ज्ञान ज्ञानस्वरूपा (परब्रह्म ज्ञान देने वाली) देवी स्वयं ज्ञानरूपा हैं। ज्ञान नाम से संकेत है कि जगत का समस्त ज्ञान, विद्याएँ और विज्ञान उन्हीं से प्रस्फुटित होते हैं। देवी भगवती को वेदों में महाविद्या कहा गया है – वे वेद-शास्त्र की निष्णात दाता हैं।
क्रिया क्रियाशक्ति (सक्रिय शक्ति) क्रिया का अर्थ है कर्म या कार्रवाई। देवी क्रिया स्वरूपिणी हैं क्योंकि ब्रह्मांड की समस्त क्रियाओं के मूल में उनकी शक्ति कार्यरत है। शक्तिस्वरूपिणी दुर्गा बिना संसर्ग के ही समस्त चराचर को गतिमान करती हैं (गीता में जिसे मया आद्यश्रक्ति कहा है)।
नित्या नित्य, शाश्वत (सदैव रहने वाली) नित्या शब्द शाश्वतता का बोध कराता है। देवी नित्या हैं – वे आदि-अनंत काल से हैं और अनादि-अंत रहित हैं। देवी उपासना में 16 नित्याओं का वर्णन है, जिनमें आदिशक्ति दुर्गा को महानित्य कहा गया है – वे कालातीत हैं।
बुद्धिदा बुद्धि देने वाली (विवेक प्रदात्री) दुर्गा बुद्धिदा हैं क्योंकि वे अपने भक्तों को विवेक, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करती हैं। देवी सार्द्धशती में कहा गया है “या देवी बुद्धि रूप में हृदय में स्थित होकर भवबंधन काट देती हैं” – वे ही बुद्धिदात्री दुर्गा हैं।
बहुला बहु-रूप वाली (नाना रूपों में व्यापक) बहुला का अर्थ है बहुताधिक या प्रचुर। देवी बहुला इसलिए हैं क्योंकि उनके अनंत रूप-स्वरूप हैं – जैसे शक्ति के असंख्य रूपों में वे व्याप्त हैं (दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि सबमें वही शक्ति बहुल रूप से मौजूद है)।
बहुलप्रेमा अत्यधिक प्रेममयी (सर्वप्रिय) बहुलप्रेमा नाम देवी के अपार वात्सल्य और प्रेम को दर्शाता है। दुर्गा सृष्टि के समस्त प्राणियों से मातृप्रेम करती हैं और सबका कल्याण चाहती हैं। शास्त्र कहते हैं देवी सर्वभूतहृदयोत्पत्तिकरणी हैं – सबके हृदय में प्रेम उत्पन्न करने वाली, इसलिए यह नाम (अर्थात “जो सबकी प्रिय हैं”)।
सर्ववाहनवाहना सभी वाहनों पर आरूढ़ होने वाली सर्ववाहनवाहना नाम का तात्पर्य है कि देवी किसी एक वाहन तक सीमित नहीं हैं – सिंह, शेर, हाथी, गरुड़ से लेकर नृसिंह तक सभी वाहन उनके हैं। देवी भागवत में वर्णित है कि उन्होंने प्रत्येक वाहन पर आरूढ़ होकर दैत्यों का संहार किया था। यह नाम उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है (वे हर स्थान पर, हर रूप में सवार हैं)।
शुम्भ-निशुम्भ-हननी शुम्भ-निशुम्भ नामक असुरों का संहार करने वाली देवी ने दुर्धर्ष असुर भाईयों शुम्भ व निशुम्भ का वध कर त्रिलोक में शांति स्थापित की। देवी महात्म्य अध्याय 10-11 में यह कथा है कि देवी कौशिकी/चण्डिका रूप में अवतरित हुईं और शुम्भ-निशुम्भ को अकेले युद्ध में मार गिराया। इसलिए वे शुम्भ-निशुम्भ-नाशिनी कहलाती हैं।
महिषासुर-मर्दिनी महिषासुर राक्षस का मर्दन करने वाली महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का अत्यंत प्रसिद्ध नाम है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी ने महादैत्य महिषासुर को पराजित कर उसका वध किया। यह उनका महालक्ष्मी स्वरूप था। इस विजयोत्सव के में दुर्गापूजा (महाषष्ठी-नवरात्रि) मनाई जाती है और देवी को महिषासुर-मर्दिनी (महिष के दैत्य का संहार करने वाली) कहा जाता है।
मधु-कैटभ-विदलनी मधु-कैटभ दैत्यों का अंत करने वाली सृष्टि के प्रारंभ में विष्णु भगवान की नाभि से उत्पन्न कमल से दो असुर मधु व कैटभ पैदा हुए थे। देवी महात्म्य में कथा है कि देवी योगनिद्रा ने इन्हें मोहित कर विष्णु द्वारा मरवा डाला। देवी के इसी पराक्रम के कारण उन्हें मधु-कैटभ-हनत्री (हन्त्री) कहा गया। कुछ ग्रंथों में उन्हें योगनिद्रा महामाया भी कहा गया है जो मधु-कैटभ का नाश करती हैं।
चण्ड-मुण्ड-विनाशिनी चण्ड और मुण्ड का विनाश करने वाली देवी के चामुण्डा रूप की यह लीला है। देवी महात्म्य अध्याय 7 में वर्णित है कि काली ने असुर सरदार चण्ड व मुण्ड के सिर काट कर उन्हें मार दिया था । जब काली ये सिर देवी दुर्गा के चरणों में लाई, तब माँ ने प्रसन्न होकर कहा “तू चण्ड-मुण्ड को मारने से चामुण्डा नाम से प्रसिद्ध होगी”। उसी घटना से दुर्गा का नाम चण्डमुण्ड-विनाशिनी भी प्रचलित हुआ।
सर्वासुरविनाशिनी सभी असुरों का नाश करने वाली सर्वासुरविनाशा नाम से सूचित होता है कि देवी समस्त दानव एवं दुष्ट शक्तियों का नाश करती हैं। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया “या देवी सर्वासुरानाशिनी...” – अर्थात वह महाशक्ति जो हर युग में पाप-असुरों का संहार करती है।
सर्वदानवघातिनी सभी दानवों का घात/संहार करने वाली दुर्गा सर्वदानवघातिनी हैं – कोई भी दानव (दैत्य) उनसे बच नहीं सकता। यह नाम सर्वासुरविनाशिनी का ही समानार्थी है, जो उनके दानव-दलन रूप की पुष्टि करता है। Skanda Purana में उल्लेख है कि देवी ने दैत्यों को पराजित कर देवों को घात से (आक्रमण से) बचाया था।
सर्वशास्त्रमयी समस्त शास्त्र-शस्त्रों से युक्त यहाँ शास्त्र से तात्पर्य अस्त्र-शस्त्र और विद्या दोनों से है। सर्वशास्त्रमयी देवी की परिभाषा है कि वे सभी शस्त्रों की धारी हैं और सभी शास्त्र-ज्ञान में निपुण हैं। दुर्गा सप्तशती में देवताओं ने अपने-अपने आयुध एवं शक्तियाँ देवी को प्रदान की थीं – इसलिए दुर्गा सर्वास्त्र-शस्त्र सज्जित होकर सर्वशास्त्रमयी बनीं।
सत्या सत्यस्वरूपा (परम सत्य) दुर्गा सत्या हैं क्योंकि वे ही परम सत्य हैं। सत्य नाम इंगित करता है कि त्रिकाल (भूत, वर्त्तमान, भविष्य) में एकमात्र देवी दुर्गा का अस्तित्त्व अखंड है। उनका सच्चिदानंद स्वरूप ही परमसत्य है। भक्त उनके इस नाम का स्मरण सत्य पथ पर चलने हेतु करते हैं (जैसे “दुर्गा ही सत्य है”)।
सर्वास्त्रधारिणी सभी अस्त्र धारण करने वाली दुर्गा को सर्वास्त्रधारिणी कहा जाता है क्योंकि वे सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहती हैं। उनके अनेक हाथों में त्रिशूल, चक्र, शंख, तलवार, धनुष, वज्र आदि सभी देवों के अस्त्र विद्यमान हैं। यह नाम उनके सर्वशक्तिमत्ता का परिचायक है।
अनेकशस्त्रहस्ता अनेक शस्त्रों को हाथों में रखने वाली अनेक शस्त्र हस्ता अर्थात जिनके हाथों में असंख्य शस्त्र हैं। दुर्गा के प्रत्येक हाथ में विभिन्न आयुध हैं – जैसे एक हाथ में तलवार तो दूसरे में खड्ग, किसी में ढाल तो किसी में त्रिशूल। इस कारण उन्हें यह विशेषण मिला।
अनेकास्त्रधारिणी अनेक अस्त्र (दूर तक मार करने वाले शस्त्र) धारण करने वाली देवी के भंडार में अनंत दिव्य अस्त्र भी हैं (जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र आदि)। अनेकास्त्रधारिणी नाम इसी तथ्य को दर्शाता है कि युद्ध में वह अनेक प्रकार के दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करती हैं।
कुमारी कुमारिका (कुमारी कन्या रूप) दुर्गा का एक रूप कुमारी है – नौ वर्ष तक की अविवाहित कन्या रूप में उनकी पूजा होती है (कुमारी पूजा)। कुमारी नाम दर्शाता है कि देवी शाश्वत बालिका रूप में भी विद्यमान हैं। स्कन्द पुराण में कहा “कन्या रूपेण देवी प्रतिष्ठिता” – वे स्वयं कन्यारूपा हैं।
एककन्या अद्वितीय कन्या (एकमात्र पुत्री) एककन्या का अर्थ है एकमात्र कन्या। पुराणों में पार्वती को हिमालय की एकमात्र पुत्री कहा गया, जो अवतार में सती के बाद जन्मीं। दुर्गा को एककन्या नाम इसलिए मिला क्योंकि वे अद्वितीय हैं – सृष्टि में उनके समान दूसरी कोई दिव्य कन्या नहीं।
कैशोरी किशोरी (नवयुवा कन्या रूप) कैशोरी शब्द का अर्थ किशोर अवस्था की कन्या है। दुर्गा को कैशोरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि नवयौवन रूप में भी वे पूजित हैं। कालिका पुराण में पार्वती की अठारह-वर्षीय रूप को कैशोरी कहा गया है – वह रूप जिसमें उन्होंने शिव को मोहित किया।
युवती युवा स्त्री (पूर्ण यौवनावस्था) दुर्गा का एक नाम युवती है, जो उनके विकसित पूर्ण यौवन वाले स्वरूप को इंगित करता है। पार्वती ने युवा स्त्री रूप में शिव से विवाह किया – इस प्रसंग में उन्हें युवती (युवा नारी) कहा गया। यह नाम दर्शाता है कि देवी किशोरी से लेकर प्रौढ़ा तक सभी अवस्थाओं में अधिष्ठान रूप से उपस्थित हैं।
यति संन्यासिनी, तपस्विनी यति का अर्थ है संन्यस्त जीवन बिताने वाली योगिनी। पार्वती ने घोर तपस्या कर शिव को प्राप्त किया, इसलिए वे यति स्वरूपा भी हैं। कुछ पुराणों में दुर्गा को वन में तप करने वाली तेजस्विनी संन्यासिनियों की अधिष्ठात्री कहा गया – अतः यह नाम।
अप्रौढ़ा जो कभी वृद्ध न हो (कुमारावस्था में स्थिर) अप्रौढ़ा का अर्थ है जो प्रौढ़ (वृद्ध) न हो। दुर्गा अप्रौढ़ा हैं – वे सदा युवा शक्ति का भण्डार हैं, उन प र काल का प्रभाव नहीं पड़ता । वे बल्या से युवा अवस्था तक ही सीमित दिखती हैं, कभी बूढ़ी नहीं होतीं।
प्रौढ़ा प्रौढ़ा (परिपक्व आयु वाली) प्रौढ़ा नाम यह दर्शाता है कि देवी परिपक्व आयु (प्रौढ़ अवस्था) में भी प्रकट होती हैं। स्कंद पुराण में नवदुर्गा की अंतिम स्वरूप सिद्धिदात्री को एक प्रौढ़ा देवी के रूप में दिखाया गया है। यह नाम बताता है कि देवी हर आयु रूप में कृपा कर सकती हैं।
वृद्धमाता वृद्ध माता (वयोवृद्ध रूप में माता) दुर्गा वृद्धमाता भी हैं – वे वृद्ध मातृस्वरूप में करुणामयी दयालु माँ के समान हैं। पुराणों में कथा है कि एक वृद्धा ने शुम्भ-निशुम्भ युद्ध से पूर्व देवी की सेवा की, तब माँ ने स्वयं वृद्धा रूप लेकर उसे दर्शन दिए। इस प्रकार वृद्धमाता नाम उनकी करूणामयी ममता को दर्शाता है।
बलप्रदा बल प्रदान करने वाली दुर्गा बलप्रदा हैं – वे अपने भक्तों को मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक बल देती हैं। देवी माहात्म्य में वर्णित है कि उनकी उपासना से श्रीराम को रावण पर विजय का बल मिला था। यह नाम उनकी शक्ति-दायिनी प्रकृति को इंगित करता है।
महोदरी विशाल उदर वाली (ब्रह्मांड को धारण करने वाली) महोदरी का शाब्दिक अर्थ है विशाल पेट/उदर वाली। पुराणों के अनुसार देवी के उदर में पूरा ब्रह्मांड समाहितहै। – वे समस्त चराचर जगत को अपनी कोख में धारण किए हुए हैं। इसलिए उन्हें महोदरी (विश्वोदरी) कहा गया है।
मुक्तकेशी खुले केशों वाली (विकराल स्वरूप में) दुर्गा के उग्र रूप (जैसे काली) में बाल खुले और बिखरे होते हैं। अतः उन्हें मुक्तकेशी कहा जाताहै। – अर्थात् जो मुक्त केश धारण करती हैं। देवी महात्म्य में चण्डिका (काली) के खुले जटाजूट का वर्णन मिलता है जो उनके उन्मत्त रूप को दर्शाता है।
घोररूपा अति भयंकर रूप वाली घोर का अर्थ भयंकर/भयानक। दुर्गा के प्रलयंकर रौद्र स्वरूप को घोररूपा कहा गया है। जब उनका क्रोध चरम पर होता है तो उनका रूप अत्यंत उग्र (दांत निकले हुए, रक्त नेत्र आदि) हो जाता है – यह नाम उसी भयंकरता का स्मरण दिलाता है।
महाबला अपार बलशाली, महान शक्ति संपन्न दुर्गा महाबला हैं – अर्थात उनमें अपार बल है जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता। देवी सूक्त में कहा “या देवी बलरूपेण संस्थिता…” – वे ही सब देवों को शक्तिप्रदायिनी हैं। इस नाम से उनकी अद्वितीय शक्ति का बखान होता है।
अग्निज्वाला अग्नि-ज्वाला के समान तीक्ष्ण तेज वाली दुर्गा का तेज प्रचण्ड अग्नि-ज्वाला के समान है। इसलिए उन्हें अग्निज्वाला कहा गया। देवी महात्म्य में रक्तबीज के संहार के समय उनके मुख से निकली अग्नि-ज्वालाओं का वर्णन है जिससे असंख्य रक्तबीज भस्म हो गए – यह नाम उसी महातेज का द्योतक है।
रौद्रमुखी रौद्र (रुद्र) समान उग्र मुख वाली रौद्रमुखी का अर्थ है जिनका मुख क्रोध में रुद्र के समान भयावह हो जाता है। देवीभागवत में वर्णन है कि शुम्भ से युद्ध करते समय देवी ने रौद्र रूप धारण किया – उनके मुखमण्डल से प्रलयंकारी ज्वालाएँ निकलीं। इस कारण उन्हें रौद्रमुखी कहा गया (रुद्र = शिव का भयंकर रूप)।
कालरात्रि घोर अंधकार रूपी रात्रि (अज्ञान-सूर्य का अंत करने वाली) कालरात्रि दुर्गा की नवदुर्गा में सातवीं उग्र रूप हैं। इस रूप में उनका वर्ण कृष्ण (अंधकार) है, बाल बिखरे हैं और गले में नरमुंड माला है। यह नाम संकेत करता है कि देवी अज्ञान रूपी अंधकार (कालरात्रि) को स्वयं घोर अंधेरी रात की तरह आत्मसात कर लेती हैं ताकि भक्तों को प्रकाश मिल सके।
तपस्विनी तपस्या में लीन, संन्यस्त (योगिनी) दुर्गा तपस्विनी हैं – उन्होंने अपने पार्वती अवतार में घोर तप किया था। वे योग-ध्यान में लीन रहने वाली आदिशक्ति हैं। कात्यायन ऋषि के आश्रम में जन्म लेकर भी उन्होंने बाल्यकाल में तपस्या की थी। यह नाम उनके वैराग्य एवं साधना पक्ष को प्रदर्शित करता है।
नारायणी नारायण (विष्णु) की शक्ति/बहन (योगमाया) देवी महात्म्य में देवता स्तुति करते हैं: “नारायणी नमोस्तुते”। दुर्गा को नारायणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे भगवान विष्णु की योगमाया हैं – विष्णु की शक्ति और भगिनी। जब महिषासुर-वध के बाद सभी देवों ने उनकी स्तुति की, तब विष्णु ने उन्हें नारायणी कहकर प्रणाम किया (अर्थात नारायण की Powers)।
भद्रकाली भद्र (मंगलकारी) एवं उग्र काली रूप भद्रकाली देवी के उग्र रूप काली का ही एक शुभ-स्वरूप नाम है। शिव पुराण के अनुसार सती के आत्मदाह से क्रोधित शिव ने तांडव करते हुए भद्रकाली को प्रकट किया था । उन्होंने दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया। इस रूप में वे उग्र होते हुए भी भक्तों के लिए भद्र (मंगलदायिनी) हैं – भद्रकाली (कल्याणकारी काली)।
विष्णुमाया विष्णु की माया (योगनिद्रा शक्ति) देवी को विष्णुमाया भी कहा जाता है – अर्थात विष्णु भगवान की मायाशक्ति । दुर्गा सप्तशती में यही योगनिद्रा दुर्गा के रूप में व्यक्त होकर विष्णु को जागृत करती है। शास्त्रों में वर्णन है कि हरि (विष्णु) की निद्रा व माया वही जगदंबा है, अतः नारायणी दुर्गा को विष्णुमाया नाम दिया गया।
जलोदरी जलोदर (ब्रह्मांडीय जल को उदर में धारण करने वाली) जलोदरी नाम में जल + उदर है – अर्थात जिनका उदर ब्रह्माण्ड रूपी कारणजल का स्थल है। हिंदू सृष्टि-धारणा में कहा गया है कि प्रलयकाल में समस्त चराचर जल में लीन हो जाता है और देवी उस जल को अपने उदर में धारण करती हैं। इस प्रकार वे जलोदरी (विश्व को धारण करने वाली) कहलाती हैं।
शिवदूती शिव को दूत बनाने वाली (दूत रूप में प्रयोग करने वाली) देवी महात्म्य की अद्भुत घटना है जहाँ चण्डिका दुर्गा ने स्वयं भगवान शिव को अपना दूत बनाकर असुर शुम्भ-निशुम्भ के पास संदेश लेक र भेजा था। शिव ने देवी का दूत बनकर असुरों को चेतावनी दी। इस लीला के कारण उनका नाम शिवदूती पड़ा – अर्थात् जिन्होंने शिव को ही दूत बना लिया। यह देवी की परम सत्ता को दर्शाता है (शिव भी जिनके कार्य करते हैं)।
कराली अत्यंत उग्र एवं भयंकर (कठोर) कराली का अर्थ है प्रचंड भयंकर। देवी के उग्रतम रूप को कराली कहा गया है – जैसे कालिका की विकराल दांतों-जबड़ों वाली मूर्ति। वैदिक साहित्य में कराली अग्नि की एक ज्वाला का नाम भी है, जिसका रूप बहुत भयंकर बताया गया। दुर्गा के बारे में कहा जाता है कि संकट के समय उनका रूप कराली हो जाता है जो पापियों का सर्वनाश कर देता है।
अनन्ता (पुनः) अनंत, असीम (जिसका पार न हो) देवी की अनंत महिमा को अनन्ता नाम दोहराकर भी स्मरण किया गया है। वास्तव में दुर्गा अनंत शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, जिनका ना आरंभ है ना अंत। उनका यह अपरिमेय स्वरूप मनुष्य की बुद्धि की सीमा से परे है – इसीलिए अनन्ता नाम पुनः उल्लेखित है, जोर देने के लिए कि माता दुर्गा अनन्त हैं।
परमेश्वरी परम ईश्वर स्वरूपा, सर्वोच्च अधिष्ठात्री दुर्गा परमेश्वरी हैं – अर्थात समस्त जगत की स्वामिनी सर्वोच्च शक्ति। देवी सूक्त (ऋग्वेद 10.125) में कहा: “अहं स्वधा अहं स्वाहा, अहम् विश्वमिदं प्रभु” – अर्थात देवी कहती हैं “मैं ही परमेश्वरी हूँ, सब मुझसे ही प्रस्फुटित होता है”. इस प्रकार परमेश्वरी नाम उनके ब्रह्मस्वरूप को दर्शाता है।
कात्यायनी कात्यायन ऋषि की पुत्री (कात्यायन-जात) मार्कण्डेय पुराण की कथा अनुसार देवी ने महिषासुर-वध हेतु ऋषि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था । ऋषि ने सबसे पहले इनकी पूजा की, इसलिए कात्यायनी नाम पड़ा। यह दुर्गा जी की नवदुर्गा में छठी स्वरूप भी हैं। नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा होती है – शक्ति के उग्र और सौम्य रूप के संतुलन स्वरूप।
सावित्री सवितृ (सूर्य) की पुत्री; वेद-शक्ति गायत्री दुर्गा का एक नाम सावित्री है जो सूर्यदेव सवितृ की पुत्री के रूप में है। दुर्गा सप्तशती में महादेवी कहती हैं “मैं ही ब्रह्मविद्या उपदेशिका सावित्री हूँ”. देवी भगवतम् में सावित्री को वेदों की जननी के रूप में दर्शाया गया है। यह नाम माता के गायत्री स्वरूप (पांचवी महाविद्या) को भी इंगित करता है – जो सरस्वती का ही वैदिक रूप है।
प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष (प्रकट) स्वरूपिणी, साक्षात अभिव्यक्त दुर्गा प्रत्यक्ष हैं – अर्थात वे साक्षात दर्शन देने वाली देवी हैं। जब भी भक्त पुकारते हैं, माँ किसी-ना-किसी रूप में प्रत्यक्ष सहायता हेतु प्रकट होती हैं। शास्त्रों में नवदुर्गा को प्रत्यक्ष देवियाँ कहा गया – इस नाम का भाव है कि माँ दुर्गा सगुण रूप में अनुभव की जा सकती हैं (वे केवल निराकार नहीं, साकार भी हैं)।
ब्रह्मवादिनी ब्रह्म का ज्ञान देने वाली (तत्वचिंतक) ब्रह्मवादिनी का अर्थ है ब्रह्म पर वाद या चर्चा करने वाली, अर्थात ब्रह्मज्ञान का उपदेश देने वाली देवी। दुर्गा को शास्त्रों में आदिशक्ति सरस्वती भी माना जाता है, जो वेदज्ञान की प्रतीक हैं। देवी भागवत के देवीगीता प्रसंग में दुर्गा द्वारा ब्रह्मज्ञान का उपदेश मिलता है। इस प्रकार ब्रह्मवादिनी नाम उनके सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ज्ञानस्वरूप को दर्शाता है


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जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।
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जानिए देवी दुर्गा के वे 108 नाम, जो नवदुर्गा, शक्तिपीठ और तांत्रिक साधनाओं से जुड़े हैं – हर नाम में एक शक्ति, एक आशीर्वाद !

जानिए देवी दुर्गा के वे 108 नाम, जो नवदुर्गा, शक्तिपीठ और तांत्रिक साधनाओं से जुड़े हैं – हर नाम में एक शक्ति, एक आशीर्वाद !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

देवी दुर्गा के 108 प्रमुख नाम

मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) में भगवान शिव ने पार्वती को मा ता दुर्गा के 108 नाम बताए हैं। इन नामों के जप से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को अभिष्ट फल देती हैं। नीचे तालिका में देवी दुर्गा के 108 नाम, उनका शाब्दिक अर्थ तथा नामकरण का संक्षिप्त कारण/संदर्भ प्रस्तुत है। इन विवरणों को प्रामाणिक शास्त्रों (पुराण, उपनिषद आदि) के आधार पर सरल भाषा में दिया गया है।

नाम (देवी) अर्थ (शाब्दिक) नामकरण का आधार/संदर्भ (संक्षेप में)
सती सत्यनिष्ठा व पतिव्रता (स्वयं को जला देने वाली) प्रजापति दक्ष की कन्या एवं शिव-पत्नी जिन्होंने पिता के यज्ञ में आत्मदाह किया था, उसी घटना से इन्हें सती (आदर्श पतिव्रता जो आत्मोत्सर्ग करे) नाम मिला। यह कथा शिव पुराण, देवी भागवत आदि पुराणों में वर्णित है।
साध्वी परम पुण्यवती, धर्मपरायणा स्त्री देवी के पवित्र, सात्विक स्वभाव को दर्शाने वाला नाम। साध्वी का अर्थ है सदाचारिणी धर्मनिष्ठ महिला – जो अपने तप, संयम और पतिव्रत धर्म के लिए विख्यात हों।
भवप्रीता भव द्वारा प्रीता – संसार द्वारा प्रिय भव का अर्थ सृष्टि/प्राणिजनित संसार है। देवी जगत-जननी हैं और समस्त संसार को प्रिय हैं, इसलिए उनका नाम भवप्रीता पड़ा – अर्थात् जगद्वंदिता जिनको सारा जगत प्यार करता है।
भवानी भव (शिव) की अर्धांगिनी; जगत् जननी भवानी शिवजी (भव) की शक्ति का नाम है। शिव-पत्नी होने से पार्वती को भवानी कहा गया। इसका अर्थ जगत् की माता भी है – देवी को समस्त सृष्टि की पालनकर्ता माना गया है।
भवमोचनी भव (संसार) से मोक्ष दिलाने वाली देवी का नाम भवमोचनी इसलिए पड़ा क्योंकि वे संसार बंधन से मुक्त कराने वाली शक्ति हैं। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया है कि दुर्गा देवी भक्तों के आवागमन (भव चक्र) से छुटकारा दिलाती हैं, hence भवमोचनी।
आर्या आदरणीय, श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न आर्या का अर्थ है महान या पूजनीय महिला। देवी को यह नाम उनकी उत्कृष्ट महानता एवं पूज्यता के कारण मिला – वे आदिशक्ति एवं समस्त देवों द्वारा आदरणीय हैं।
दुर्गा दुर्गम (कठिन) से पार कराने वाली; अजेय दुर्गा शब्द का अर्थ है “दुर्ग समान दुर्जेय” अर्थात अप्राप्य एवं अजेय शक्ति। देवी को दुर्गा नाम तब मिला जब उन्होंने दैत्य दुर्गमासुर का वध किया था । यह नाम उनके अभेद्य तेज और असुरों पर विजयों का द्योतक है।
जया विजयी (सदा जय पाने वाली) देवी जया कहलाती हैं क्योंकि असुरों पर सदैव उनकी जीत होती है। यह नाम उनके अपराजेय पराक्रम को दर्शाता है – दुर्गा हर युद्ध में विजयश्री प्राप्त करती हैं।
आद्या आदिकालीन, मूल आदि शक्ति आद्या का अर्थ है आदि (प्रारंभिक) शक्ति। शास्त्रों में दुर्गा को आदिशक्ति कहा गया है – देवी उपनिषत् आदि में वे स्वयं कहती हैं “मैं ही आदि-सृष्टि हूँ”. अतः आदिम शक्ति होने से उनका नाम आद्या पड़ा।
त्रिनेत्रा तीन नेत्रों वाली (त्रयीरूपेन्द्रिया) देवी के शिव के समान ही तीन नेत्र हैं – सूर्य, चंद्र और अग्नि जिनसे भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान होता है। इसलिए उन्हें त्रिनेत्रा कहा गया। उनके तीसरे नेत्र से प्रलयाग्नि तथा ज्ञान दोनों प्रकट होते हैं।
शूलधारिणी शूल (त्रिशूल) धारण करने वाली दुर्गा अपने कर-कमलों में त्रिशूल धारण करती हैं, इसलिए शूलधारिणी नाम से जानी जाती हैं। त्रिशूल भगवान शिव का प्रमुख अस्त्र है जिसे धारण कर देवी त्रिदेवों की शक्ति स्वयं धारण करती हैं।
पिनाकधारिणी पिनाक (शिव-धनुष) उठाने वाली पिनाक भगवान शिव का धनुष है। शास्त्रों के अनुसार देवी ने शुम्भ-निशुम्भ संग्राम में शिव के धनुष पिनाक को धारण कर पराक्रम दिखाया था, अतः वे पिनाकधारिणी कहलाती हैं।
चित्रा विचित्र एवं मनोहर रूप वाली चित्रा का अर्थ है अद्भुत या चित्रवत सुंदर। देवी का स्वरूप अनंत सौंदर्य और विविधता लिए हुए है, इसलिए उन्हें चित्रा कहा गया – उनका प्रत्येक रूप अद्वितीय चित्र समान है।
चण्डघण्टा प्रचण्ड घंटेधारी (भयंकर घंटी वाली) देवी पार्वती ने असुरों से युद्ध में घण्टे का भी प्रयोग किया था। उनके घंटे की प्रचण्ड ध्वनि से दैत्य भयभीत हुए। उसी पराक्रम के प्रतीक रूप में उनका नाम चण्डघण्टा (भयानक घंटाधारी) प्रसिद्ध हुआ।
महातपा महान तपस्या वाली (तपस्विनी) महातपा का अर्थ है महान तप करने वाली। पार्वती ने शिव को पाने हेतु घोर तपस्या की थी, इसलिए देवी के लिए महातपा नाम प्रयोग होता है – वे अत्यंत तपस्विनी हैं।
मनस् मन स्वरूपिणी (अंतःकरण) मनस् शब्द मन/चित्त को दर्शाता है। शास्त्रों में देवी को विराट मन का रूप कहा गया है – या देवी सर्वभूतेषु मनरूपेण संस्थिता... इस आधार पर दुर्गा मनस् कहलाती हैं, अर्थात समस्त प्राणियों के मन के रूप में स्थित देवी।
बुद्धि बुद्धि (विवेक) की अधिष्ठात्री शक्ति देवी समस्त जीवों की बुद्धि में निवास करती हैं। देवी महात्म्य में स्तुति है: “या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै...” – अर्थात् जो देवी सब प्राणियों में बुद्धि रूप में स्थित हैं। इस प्रकार उन्हें बुद्धि नाम से संबोधित किया जाता है।
अहंकारा अहं (अहंकार) तत्व की नियंत्रक देवी अहंकारा हैं, अर्थात सृष्टि के अहं तत्व की अधिष्ठात्री। पुराणों में वर्णित है कि ब्रह्मांड के पंचतत्वों में अहंकार भी एक तत्व है जिसके संचालन वाली शक्ति दुर्गा हैं। अतः उन्हें यह नाम मिला – वे सृष्टि के अहंभाव को नियंत्रित करने वाली हैं।
चित्तरूपा चित्त (चेतना) स्वरूपिणी चित्त का अर्थ विचार एवं चेतना है। देवी का नाम चित्तरूपा इसलिए है क्योंकि वे शुद्ध चेतना की स्वरूप हैं। योगशास्त्रों में चिति शक्ति (चेतना) को ही आदिशक्ति कहा गया है, वही दुर्गा हैं – सभी विचार, भावनाएँ जिनसे उत्पन्न हों।
चिता चिता (अंतिम सत्य, शव-दाह) चिता का शाब्दिक अर्थ शवदाह की अग्नि है। यह नाम देवी के उग्र रूप की ओर संकेत करता है – वह शक्ति जो संहार के बाद सबको अपनी गोद (चिता) में जगह देती है। कालिका पुराण आदि में काली को श्मशानवासिनी कहा गया है जो शमशान की चिता पर नृत्य करती हैं, अतः देवी को चिता कहा गया।
चिति चित् शक्ति (शुद्ध बुद्धि/स्मृति) चिति शब्द दिव्य बुद्धि या शक्ति को इंगित करता है। देवी चिति नाम से पुकारी जाती हैं क्योंकि वे समस्त ज्ञान एवं चेतना का स्रोत हैं। उन्हें परमात्मस्वरूप चित् (ब्रह्मज्ञान) की अधिष्ठात्री माना गया है।
सर्वमंत्रमयी सभी मंत्रों से युक्त, सर्वशक्तिमती शास्त्र कहते हैं देवी सर्व मन्त्रों की आत्मा हैं। सर्वमंत्रमयी नाम का अर्थ है कि समस्त मंत्र, स्तोत्र, यज्ञोपयोगी शक्तियाँ देवी में निहित हैं। दुर्गा सप्तशती में देवताओं द्वारा की गई स्तुति भी सभी मंत्रों का सार कहती है कि “देवी तुम ही मंत्रात्मिका हो” – अतः यह नाम।
सत्ता सत् स्वरूपा (परम अस्तित्व) सत्ता शब्द सत् (परमसत्य अस्तित्व) को दर्शाता है। देवी को सत्ता कहा गया क्योंकि वही परम सत्ता (ब्रह्म) हैं जो सर्वत्र व्याप्त है। मार्कण्डेय ऋषि उन्हें विश्व का आधारभूत सत् तत्व बताते हैं।
सत्यानन्दस्वरूपिणी शाश्वत सत्य एवं आनन्द की मूर्ति दुर्गा का स्वरूप सत् (सत्य) तथा चित् आनंद से ओतप्रोत है। अतः उन्हें सत्यानन्दस्वरूपिणी कहा जाता है – जो शाश्वत सत्य और आनन्द की प्रतीक हैं। यह नाम देवी को सच्चिदानन्दरूपिणी परमेश्वरी के रूप में स्थापित करता है।
अनन्ता अनन्त, अपरिमेय (जिसका अंत ना हो) अनन्ता का अर्थ है जिसका कोई अंत नहीं। देवी का वैभव, शक्ति और जीवन अनन्त है। देवी उपासना में उन्हें अनंत शक्ति कहा गया है – वे सीमाहीन हैं, अपार हैं, इसलिए यह नाम उन्हें दिया गया।
भाविनी सुंदर, शोभना (शुभ-भाव रखने वाली) भाविनी का अर्थ सुंदर स्त्री या शुभ भावों से युक्त नारी है। देवी भाविनी कहलाती हैं क्योंकि उनका रूप अति सौंदर्यमय है एवं वे करुणा, स्नेह जैसे शुभ भावों से भरी हैं। भक्तों के प्रति उनका मातृसुलभ कोमल भाव सर्वविदित है।
भाव्या भविष्योन्मुखी, भविष्य से संबन्धित भाव्या शब्द भावि (भविष्य) से बना है। देवी को भाव्या इसलिए कहा गया कि वे सृष्टि के भविष्य का निर्धारण करने वाली हैं और कल्याणकारी भाव रखती हैं। वे आने वाले समय को सँवारने वाली शक्ति हैं।
भव्याः भव्य, विभूतिमती (दीप्तिमान) भव्य का अर्थ है महान या दीप्तिमान। देवी का स्वरूप दिव्य तेज से देदीप्यमान है, इसी कारण उन्हें भव्याः (महिमा-मंडित) कहा गया। वे अपनी भव्यता से तीनों लोकों को प्रकाशित करती हैं।
अभव्याः अभव्य, अशुभ/भयावनी (काली रूप में) अभव्य का अर्थ है अशुभ या भीषण. देवी के उग्र स्वरूप (जैसे कालिका) को अभव्य कहा गया है क्योंकि वह पापियों के लिए भयंकर है। कालिका उपपुराण में उल्लेख है कि देवी के काली रूप को देखकर दैत्य त्रस्त हो जाते थे – यही अर्थ इस नाम में है।
सदागति सदा मंगलमयी गति (मोक्ष प्रदान करने वाली) सदागति का शाब्दिक अर्थ है "हमेशा वाली गति" अर्थात् मोक्ष या परम गति। दुर्गा सदागति हैं क्योंकि वे भक्तों को मुक्ति का मार्ग प्रदान करती हैं। उनके चरणों में शरण लेने से जीव को उत्तम गति (मोक्ष) सदा के लिए प्राप्त होती है।
शांभवी शंभु (शिव) की प्रिया/शक्ति शांभवी अर्थात् शिव की अर्धांगिनी – पार्वती। शिव को शंभु कहा जाता है, अतः उनकी पत्नी पार्वती शांभवी कहलाती हैं। कई पुराणों (जैसे स्कंद पुराण) में पार्वती के लिए यह नाम आया है।
देवमाता देवताओं की माता (दिव्य जननी) दुर्गा को देवमाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे समस्त देवों की मूल आद्या शक्ति हैं। देवी भागवत में विष्णु, ब्रह्मा, शिव आदि देवताओं ने उन्हें अपनी माता स्वरूप प्रणाम किया है – वे सम्पूर्ण देवसमूह का पोषण करने वाली जगदम्बिका हैं।
चिंता चिंता (चिन्तन शक्ति, विचार) चिंता का अर्थ है विचार अथवा मनन। देवी चिंता रूपा हैं – वे ज्ञान की अधिष्ठात्री होने से भक्तों के सभी संतापों को हरती हैं। पुराणों में कहा गया “भव-बन्ध का चिंतन जिनसे कटे वह शक्ति दुर्गा हैं।” अर्थात देवी की शरण से सारी चिंताएँ मिट जाती हैं, इसलिए यह नाम।
रत्नप्रिया रत्नों को प्रिय, रत्नाभूषण धारिणी रत्नप्रिया का अर्थ है जिसे रत्न प्रिय हों। दुर्गा को पुराणों में रत्नाभूषणों से अलंकृत बताया गया है – वे रत्नों की प्रभा से सुशोभित रहती हैं। साथ ही, वे अपने भक्तों को भी रत्न के समान अनमोल मानकर प्यार करती हैं।
सर्वविद्या समस्त विद्याओं की ज्ञाता/दाता दुर्गा सर्वविद्या हैं, अर्थात् सभी विद्याओं की देवी। देवी उपनिषद में कहा है “सर्व की आदि देवी दुर्गा ही हैं।” अतः सर्वविद्या नाम से प्रकट है कि संगीत, कला, युद्धकला, अध्यात्म सभी प्रकार के ज्ञान उनमें निहित हैं।
दक्षकन्या दक्ष प्रजापति की कन्या पूर्वजन्म में देवी सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इसी कारण दुर्गा का एक नाम दक्षकन्या है। यह नाम उनके सती अवतार की स्मृति दिलाता है – दक्ष की पुत्री जिसने बाद में पार्वती रूप में पुनर्जन्म लिया।
दक्षयज्ञविनाशिनी दक्ष के यज्ञ का विनाश करने वाली जब दक्ष ने शिव का अपमान करके यज्ञ किया, तब सती (दुर्गा) उस यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं। इसके बाद शिव के गणों ने दक्ष का यज्ञ नष्ट कर दिया। इस प्रसंग के कारण देवी को दक्षयज्ञविनाशिनी कहा गया – अर्थात जिसने दक्ष के अभिमानी यज्ञ का विनाश किया। यह कथा कई पुराणों में वर्णित है।
अपर्णा पर्ण-रहित (पत्ते तक न खाने वाली) देवी पार्वती ने घोर तपस्या में अन्न-जल तो दूर, पत्ते तक खाना छोड़ दिया था। इस पर देवताओं ने श्रद्धा से उन्हें अपर्णा नाम दिया – “जो पत्तों का भी त्याग कर दे”। हरिवंश पुराण में पार्वती को अपर्णा कहा गया है क्योंकि उन्होंने कठोर उपवास किया था ।
अनेकवर्णा कई वर्णों/रंगों वाली दुर्गा के रूप अनेक हैं – कभी वे गौर वर्णा हैं तो कभी श्यामल, कभी रक्तवर्णा। इसलिए उन्हें अनेकवर्णा कहा जाता है। कल्याणकारी गौरी और उग्र काली आदि भिन्न वर्णों में प्रकट स्वरूप इसी देवी के पहलू हैं।
पाताला पाटल (गुलाबी-लाल) वर्ण वाली पाताला का अर्थ है गहरा लाल या गुलाबी रंग। पुराणों में वर्णित है कि देवी एक रूप में रक्तवर्णा हैं – उनके शरीर का रंग लाल कमल के समान दिपदिपाता है। इस लाल रंग के कारण उन्हें पाताला (लालवर्णा) कहा गया।
पातालावती लाल वस्त्र पहनने वाली दुर्गा का एक नाम पातालावती भी है क्योंकि वे पाटल-वर्ण (लाल रंग) के परिधान धारण करती हैं। शास्त्रों में उन्हें लाल साड़ी व लाल फूलों से सुसज्जित दिखाया गया है – यह उग्रशक्ति का प्रतीक रंग है।
पट्टांबर-परिधाना पट्टाम्बर (चर्म-वस्त्र) धारण करने वाली कुछ पुराणों में उग्र काली रूपी दुर्गा को व्याघ्रचर्म या हस्ति-चर्म का वस्त्र पहने दर्शाया गया है। इसलिए उनका नाम पट्टांबर-परिधाना पड़ा – अर्थात चमड़े के बने वस्त्र पहनने वाली देवी। यह उनका उग्र, त्यागमय स्वरूप दिखाता है (श्मशानवासी काली)।
कलमञ्जीर-रञ्जिनी मधुर घुँघरू की ध्वनि से मोहित करने वाली कल-मञ्जीर का अर्थ है घुँघरूयुक्त पायल। देवी के चरणों में बंधे मञ्जीरों (पायल) की मधुर झंकार तीनों लोकों को मंत्रमुग्ध करती है। अतः वे कलमञ्जीररञ्जिनी कहलाती हैं – यानी जिनकी पायल की रुनझुन से भक्त मोहित हों।
अमेया अमेय, अपरिमेय (जिसका मापन न हो सके) दुर्गा अमेया हैं – उनकी महिमा का कोई पारावार नहीं। अमेया का अर्थ है जिसे मापा न जा सके। उनकी शक्ति, करुणा और सौंदर्य अनंत हैं जिन्हें मन, वाणी से पूर्णतया व्यक्त नहीं किया जा सकता।
विक्रमा विक्रमी, अत्यंत पराक्रमी विक्रम शब्द का अर्थ है पराक्रम या वीरता। दुर्गा विक्रमा इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने महिषासुर सहित अनेकों संग्रामों में अद्वितीय शौर्य दिखाया। उनके इसी महान विक्रम के स्मरण में यह नाम रखा गया।
क्रूरा (दुष्टों के लिए) क्रूर, कठोर क्रूरा का अर्थ है निर्दय या उग्र। देवी का यह नाम उनके उग्र-न्यायकारी रूप को दर्शाता है जो दैत्य एवं पापी प्राणियों के प्रति बेहद कठोर है। भक्तों के लिए वे करुणामयी हैं, किंतु दुष्टों के लिए क्रूर संहारिणी।
सुन्दरी अति सुंदर, रूपवती दुर्गा जगन्माता होते हुए भी अतीव सुन्दरी हैं। उनका सौंदर्य दिव्य है, इसी लिए उन्हें सुन्दरी कहा जाता है। कई ग्रंथों में पार्वती को त्रिलोचन सुन्दरी कहा गया – अर्थात तीनों लोकों में उनसे बढ़कर सुंदर कोई नहीं।
सुरसुन्दरी देवों में सर्वाधिक सुंदर, दिव्य रूपवती सुरसुन्दरी अर्थात देवताओं की सुंदरी। यह नाम दर्शाता है कि देवी का सौंदर्य स्वर्ग की अप्सराओं से भी बढ़कर है। वे स्वयं श्री (लक्ष्मी) और शोभा की अधिष्ठात्री हैं, इसलिए सुरसुन्दरी कहलाती हैं।
वनदुर्गा वन की दुर्गा (अरण्य की रक्षिका) देवी का एक रूप वनदुर्गा है जो जंगलों में निवास करने वाले भक्तों की रक्षक देवी हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा ने वन में तपस्यारत संतों की रक्षा असुरों से की, तब से वे वनदुर्गा कहलाईं। उनका यह स्वरूप पर्वतीय एवं वन क्षेत्रों में विशेष पूजा जाता है।
मातंगी मातंग ऋषि द्वारा आराधित महाविद्या मातंगी देवी दुर्गा की एक महाविद्या हैं। कथा है कि मतंग मुनि ने जंगल में उनकी घोर उपासना की थी। इस कारण देवी का यह तांत्रिक रूप मातंगी (मतंग की आराध्या) कहलाया। वे उच्छिष्ट-चण्डालों के बीच पूजित होने वाली विद्या भी हैं, जो सभी को स्वीकार करती हैं।
मतंगमुनि-पूजिता मतंग मुनि द्वारा पूजित देवी मतंग मुनि पुराने काल के एक महान तपस्वी थे जिन्होंने आदि शक्ति की आराधना की। कहा जाता है कि उनके उपास्य देवी स्वरूप को सम्मान में मतंगमुनिपूजिता कहा गया – अर्थात् जिसे मतंग ऋषि ने पूजा। यह नाम मातंगी देवी का विशेषण है।
ब्राह्मी ब्रह्मा की शक्ति (ब्रह्माणी मातृका) ब्राह्मी सप्तमातृकाओं में प्रथम हैं – ये सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी की शक्ति का अवतार हैं। देवी महात्म्य में वर्णन है कि शुंभ-निशुंभ युद्ध में ब्राह्मी ने हंसवाहिनी स्वरूप लेकर देवी की सहायता की थी। उनका वर्ण पीत (हल्दी जैसा) बताया गया है।
माहेश्वरी महेश (शिव) की शक्ति (महेशानी) माहेश्वरी सप्तमातृका में शिव की शक्ति हैं। पुराणों में इनका वर्ण सफेद वृषभ-वाहिनी देवी के रूप में है। इन्होंने देवी दुर्गा को त्रिशूल एवं ऋषभवाहन के साथ सहायता दी। माहेश्वरी नाम शिवांश शक्ति होने के कारण है।
ऐन्द्रि (इन्द्राणी) इन्द्र की शक्ति ऐन्द्रि (या इन्द्राणी) देवी इंद्र की शक्तिस्वरूपा मातृका हैं। इन्हें ऐरावत-वाहिनी दर्शाया गया है। देवी महात्म्य की कथा में इन्द्राणी ने अपने वज्र से असुरों को परास्त किया था। उनका नाम शाची भी है और वे स्वर्ग की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।
कौमारी कुमार (स्कन्द) की शक्ति (स्कन्दमाता) कौमारी सप्तमातृका में कार्तिकेय (स्कन्द) की शक्ति हैं। इन्हें मयूर-वाहिनी रणचण्डी रूप में दिखाया गया है। पुराण अनुसार, कौमारी ने देवी को अपनी शक्ति से असुरों के सेनापति पर विजय दिलाई। उनका नाम स्कन्दमाता भी है क्योंकि ये स्कन्द की शक्ति हैं।
वैष्णवी विष्णु की शक्ति (लक्ष्मी स्वरूप) वैष्णवी भगवती विष्णु की शक्तिरूपा हैं। देवी महात्म्य में इन्हें गरुड़वाहिनी चक्रधारिणी रूप में वर्णित किया गया – इन्होंने अपने चक्र से असुरों का संहार किया। वैष्णवी वास्तव में महालक्ष्मी का ही योद्धा रूप है जो देवी दुर्गा का अंश है।
चामुण्डा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली देवी देवी महात्म्य में कथा है कि दुर्गा के तीक्ष्ण क्रोध से काली उत्पन्न हुईं और उन्होंने दो महामन्सी असुर चण्ड व मुण्ड का संहार किया । उस पर देवी दुर्गा ने प्रसन्न होकर काली को “चामुण्डा” नाम प्रदान किया – चण्ड तथा मुण्ड का वध करने के कारण। तभी से महाकाली चामुण्डा नाम से पूजित हैं।
वाराही वाराह (सूकर) अवतार की शक्ति वाराही सप्तमातृका में भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति हैं। इन्हें महिषवाहिनी दाँतों वाली देवी के रूप में दिखाया जाता है। देवी भागवत में वर्णित है कि वाराही ने रक्तबीज नामक असुर से युद्ध में अपनी शक्ति से देवी की सहायता की।
लक्ष्मी लक्ष्मी (धन-संपदा और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री) दुर्गा को महालक्ष्मी रूप में भी पूजा जाता है। दुर्गा सप्तशती के मध्य चरित्र में महिषासुर से युद्ध करते समय देवी महामाया लक्ष्मी रूप में प्रकट हुई थीं – सभी देवों की शक्तियाँ समाहित कर। तब से दुर्गा को लक्ष्मी (धन एवं समृद्धि की देवी) नाम से अभिहित किया जाने लगा।
पुरुषाकृति पुरुष रूप धारण करने वाली पुरुषाकृति नाम बताता है कि देवी आवश्यकता पड़ने पर पुरुष रूप भी धारण कर सकती हैं। कुछ तंत्र ग्रंथों में वर्णन आता है कि शुम्भ-वध से पूर्व देवी ने सुंदर युवक का रूप लिया था जिससे शुम्भ मोहित हुआ। यह नाम उनकी सर्वरूप धारिता शक्ति का द्योतक है – वे स्त्री-पुरुष सभी रूप धारण करने में सक्षम हैं।
विमलोत्कर्षिणी विमल उत्कर्ष देने वाली (निर्मल आनंददायिनी) विमल अर्थ शुद्ध/निर्मल और उत्कर्षिणी यानी उत्कर्ष या परम आनंद देने वाली। दुर्गा विमलोत्कर्षिणी हैं क्योंकि वे भक्तों के मन के मलिन भाव दूर कर परम आनंद की प्राप्ति करवाती हैं। उनकी कृपा से आत्मा निर्मल होकर उत्कर्ष (उन्नति) प्राप्त करती है।
ज्ञान ज्ञानस्वरूपा (परब्रह्म ज्ञान देने वाली) देवी स्वयं ज्ञानरूपा हैं। ज्ञान नाम से संकेत है कि जगत का समस्त ज्ञान, विद्याएँ और विज्ञान उन्हीं से प्रस्फुटित होते हैं। देवी भगवती को वेदों में महाविद्या कहा गया है – वे वेद-शास्त्र की निष्णात दाता हैं।
क्रिया क्रियाशक्ति (सक्रिय शक्ति) क्रिया का अर्थ है कर्म या कार्रवाई। देवी क्रिया स्वरूपिणी हैं क्योंकि ब्रह्मांड की समस्त क्रियाओं के मूल में उनकी शक्ति कार्यरत है। शक्तिस्वरूपिणी दुर्गा बिना संसर्ग के ही समस्त चराचर को गतिमान करती हैं (गीता में जिसे मया आद्यश्रक्ति कहा है)।
नित्या नित्य, शाश्वत (सदैव रहने वाली) नित्या शब्द शाश्वतता का बोध कराता है। देवी नित्या हैं – वे आदि-अनंत काल से हैं और अनादि-अंत रहित हैं। देवी उपासना में 16 नित्याओं का वर्णन है, जिनमें आदिशक्ति दुर्गा को महानित्य कहा गया है – वे कालातीत हैं।
बुद्धिदा बुद्धि देने वाली (विवेक प्रदात्री) दुर्गा बुद्धिदा हैं क्योंकि वे अपने भक्तों को विवेक, बुद्धि और ज्ञान प्रदान करती हैं। देवी सार्द्धशती में कहा गया है “या देवी बुद्धि रूप में हृदय में स्थित होकर भवबंधन काट देती हैं” – वे ही बुद्धिदात्री दुर्गा हैं।
बहुला बहु-रूप वाली (नाना रूपों में व्यापक) बहुला का अर्थ है बहुताधिक या प्रचुर। देवी बहुला इसलिए हैं क्योंकि उनके अनंत रूप-स्वरूप हैं – जैसे शक्ति के असंख्य रूपों में वे व्याप्त हैं (दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि सबमें वही शक्ति बहुल रूप से मौजूद है)।
बहुलप्रेमा अत्यधिक प्रेममयी (सर्वप्रिय) बहुलप्रेमा नाम देवी के अपार वात्सल्य और प्रेम को दर्शाता है। दुर्गा सृष्टि के समस्त प्राणियों से मातृप्रेम करती हैं और सबका कल्याण चाहती हैं। शास्त्र कहते हैं देवी सर्वभूतहृदयोत्पत्तिकरणी हैं – सबके हृदय में प्रेम उत्पन्न करने वाली, इसलिए यह नाम (अर्थात “जो सबकी प्रिय हैं”)।
सर्ववाहनवाहना सभी वाहनों पर आरूढ़ होने वाली सर्ववाहनवाहना नाम का तात्पर्य है कि देवी किसी एक वाहन तक सीमित नहीं हैं – सिंह, शेर, हाथी, गरुड़ से लेकर नृसिंह तक सभी वाहन उनके हैं। देवी भागवत में वर्णित है कि उन्होंने प्रत्येक वाहन पर आरूढ़ होकर दैत्यों का संहार किया था। यह नाम उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है (वे हर स्थान पर, हर रूप में सवार हैं)।
शुम्भ-निशुम्भ-हननी शुम्भ-निशुम्भ नामक असुरों का संहार करने वाली देवी ने दुर्धर्ष असुर भाईयों शुम्भ व निशुम्भ का वध कर त्रिलोक में शांति स्थापित की। देवी महात्म्य अध्याय 10-11 में यह कथा है कि देवी कौशिकी/चण्डिका रूप में अवतरित हुईं और शुम्भ-निशुम्भ को अकेले युद्ध में मार गिराया। इसलिए वे शुम्भ-निशुम्भ-नाशिनी कहलाती हैं।
महिषासुर-मर्दिनी महिषासुर राक्षस का मर्दन करने वाली महिषासुरमर्दिनी दुर्गा का अत्यंत प्रसिद्ध नाम है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी ने महादैत्य महिषासुर को पराजित कर उसका वध किया। यह उनका महालक्ष्मी स्वरूप था। इस विजयोत्सव के में दुर्गापूजा (महाषष्ठी-नवरात्रि) मनाई जाती है और देवी को महिषासुर-मर्दिनी (महिष के दैत्य का संहार करने वाली) कहा जाता है।
मधु-कैटभ-विदलनी मधु-कैटभ दैत्यों का अंत करने वाली सृष्टि के प्रारंभ में विष्णु भगवान की नाभि से उत्पन्न कमल से दो असुर मधु व कैटभ पैदा हुए थे। देवी महात्म्य में कथा है कि देवी योगनिद्रा ने इन्हें मोहित कर विष्णु द्वारा मरवा डाला। देवी के इसी पराक्रम के कारण उन्हें मधु-कैटभ-हनत्री (हन्त्री) कहा गया। कुछ ग्रंथों में उन्हें योगनिद्रा महामाया भी कहा गया है जो मधु-कैटभ का नाश करती हैं।
चण्ड-मुण्ड-विनाशिनी चण्ड और मुण्ड का विनाश करने वाली देवी के चामुण्डा रूप की यह लीला है। देवी महात्म्य अध्याय 7 में वर्णित है कि काली ने असुर सरदार चण्ड व मुण्ड के सिर काट कर उन्हें मार दिया था । जब काली ये सिर देवी दुर्गा के चरणों में लाई, तब माँ ने प्रसन्न होकर कहा “तू चण्ड-मुण्ड को मारने से चामुण्डा नाम से प्रसिद्ध होगी”। उसी घटना से दुर्गा का नाम चण्डमुण्ड-विनाशिनी भी प्रचलित हुआ।
सर्वासुरविनाशिनी सभी असुरों का नाश करने वाली सर्वासुरविनाशा नाम से सूचित होता है कि देवी समस्त दानव एवं दुष्ट शक्तियों का नाश करती हैं। मार्कण्डेय पुराण में कहा गया “या देवी सर्वासुरानाशिनी...” – अर्थात वह महाशक्ति जो हर युग में पाप-असुरों का संहार करती है।
सर्वदानवघातिनी सभी दानवों का घात/संहार करने वाली दुर्गा सर्वदानवघातिनी हैं – कोई भी दानव (दैत्य) उनसे बच नहीं सकता। यह नाम सर्वासुरविनाशिनी का ही समानार्थी है, जो उनके दानव-दलन रूप की पुष्टि करता है। Skanda Purana में उल्लेख है कि देवी ने दैत्यों को पराजित कर देवों को घात से (आक्रमण से) बचाया था।
सर्वशास्त्रमयी समस्त शास्त्र-शस्त्रों से युक्त यहाँ शास्त्र से तात्पर्य अस्त्र-शस्त्र और विद्या दोनों से है। सर्वशास्त्रमयी देवी की परिभाषा है कि वे सभी शस्त्रों की धारी हैं और सभी शास्त्र-ज्ञान में निपुण हैं। दुर्गा सप्तशती में देवताओं ने अपने-अपने आयुध एवं शक्तियाँ देवी को प्रदान की थीं – इसलिए दुर्गा सर्वास्त्र-शस्त्र सज्जित होकर सर्वशास्त्रमयी बनीं।
सत्या सत्यस्वरूपा (परम सत्य) दुर्गा सत्या हैं क्योंकि वे ही परम सत्य हैं। सत्य नाम इंगित करता है कि त्रिकाल (भूत, वर्त्तमान, भविष्य) में एकमात्र देवी दुर्गा का अस्तित्त्व अखंड है। उनका सच्चिदानंद स्वरूप ही परमसत्य है। भक्त उनके इस नाम का स्मरण सत्य पथ पर चलने हेतु करते हैं (जैसे “दुर्गा ही सत्य है”)।
सर्वास्त्रधारिणी सभी अस्त्र धारण करने वाली दुर्गा को सर्वास्त्रधारिणी कहा जाता है क्योंकि वे सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहती हैं। उनके अनेक हाथों में त्रिशूल, चक्र, शंख, तलवार, धनुष, वज्र आदि सभी देवों के अस्त्र विद्यमान हैं। यह नाम उनके सर्वशक्तिमत्ता का परिचायक है।
अनेकशस्त्रहस्ता अनेक शस्त्रों को हाथों में रखने वाली अनेक शस्त्र हस्ता अर्थात जिनके हाथों में असंख्य शस्त्र हैं। दुर्गा के प्रत्येक हाथ में विभिन्न आयुध हैं – जैसे एक हाथ में तलवार तो दूसरे में खड्ग, किसी में ढाल तो किसी में त्रिशूल। इस कारण उन्हें यह विशेषण मिला।
अनेकास्त्रधारिणी अनेक अस्त्र (दूर तक मार करने वाले शस्त्र) धारण करने वाली देवी के भंडार में अनंत दिव्य अस्त्र भी हैं (जैसे ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र आदि)। अनेकास्त्रधारिणी नाम इसी तथ्य को दर्शाता है कि युद्ध में वह अनेक प्रकार के दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करती हैं।
कुमारी कुमारिका (कुमारी कन्या रूप) दुर्गा का एक रूप कुमारी है – नौ वर्ष तक की अविवाहित कन्या रूप में उनकी पूजा होती है (कुमारी पूजा)। कुमारी नाम दर्शाता है कि देवी शाश्वत बालिका रूप में भी विद्यमान हैं। स्कन्द पुराण में कहा “कन्या रूपेण देवी प्रतिष्ठिता” – वे स्वयं कन्यारूपा हैं।
एककन्या अद्वितीय कन्या (एकमात्र पुत्री) एककन्या का अर्थ है एकमात्र कन्या। पुराणों में पार्वती को हिमालय की एकमात्र पुत्री कहा गया, जो अवतार में सती के बाद जन्मीं। दुर्गा को एककन्या नाम इसलिए मिला क्योंकि वे अद्वितीय हैं – सृष्टि में उनके समान दूसरी कोई दिव्य कन्या नहीं।
कैशोरी किशोरी (नवयुवा कन्या रूप) कैशोरी शब्द का अर्थ किशोर अवस्था की कन्या है। दुर्गा को कैशोरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि नवयौवन रूप में भी वे पूजित हैं। कालिका पुराण में पार्वती की अठारह-वर्षीय रूप को कैशोरी कहा गया है – वह रूप जिसमें उन्होंने शिव को मोहित किया।
युवती युवा स्त्री (पूर्ण यौवनावस्था) दुर्गा का एक नाम युवती है, जो उनके विकसित पूर्ण यौवन वाले स्वरूप को इंगित करता है। पार्वती ने युवा स्त्री रूप में शिव से विवाह किया – इस प्रसंग में उन्हें युवती (युवा नारी) कहा गया। यह नाम दर्शाता है कि देवी किशोरी से लेकर प्रौढ़ा तक सभी अवस्थाओं में अधिष्ठान रूप से उपस्थित हैं।
यति संन्यासिनी, तपस्विनी यति का अर्थ है संन्यस्त जीवन बिताने वाली योगिनी। पार्वती ने घोर तपस्या कर शिव को प्राप्त किया, इसलिए वे यति स्वरूपा भी हैं। कुछ पुराणों में दुर्गा को वन में तप करने वाली तेजस्विनी संन्यासिनियों की अधिष्ठात्री कहा गया – अतः यह नाम।
अप्रौढ़ा जो कभी वृद्ध न हो (कुमारावस्था में स्थिर) अप्रौढ़ा का अर्थ है जो प्रौढ़ (वृद्ध) न हो। दुर्गा अप्रौढ़ा हैं – वे सदा युवा शक्ति का भण्डार हैं, उन प र काल का प्रभाव नहीं पड़ता । वे बल्या से युवा अवस्था तक ही सीमित दिखती हैं, कभी बूढ़ी नहीं होतीं।
प्रौढ़ा प्रौढ़ा (परिपक्व आयु वाली) प्रौढ़ा नाम यह दर्शाता है कि देवी परिपक्व आयु (प्रौढ़ अवस्था) में भी प्रकट होती हैं। स्कंद पुराण में नवदुर्गा की अंतिम स्वरूप सिद्धिदात्री को एक प्रौढ़ा देवी के रूप में दिखाया गया है। यह नाम बताता है कि देवी हर आयु रूप में कृपा कर सकती हैं।
वृद्धमाता वृद्ध माता (वयोवृद्ध रूप में माता) दुर्गा वृद्धमाता भी हैं – वे वृद्ध मातृस्वरूप में करुणामयी दयालु माँ के समान हैं। पुराणों में कथा है कि एक वृद्धा ने शुम्भ-निशुम्भ युद्ध से पूर्व देवी की सेवा की, तब माँ ने स्वयं वृद्धा रूप लेकर उसे दर्शन दिए। इस प्रकार वृद्धमाता नाम उनकी करूणामयी ममता को दर्शाता है।
बलप्रदा बल प्रदान करने वाली दुर्गा बलप्रदा हैं – वे अपने भक्तों को मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक बल देती हैं। देवी माहात्म्य में वर्णित है कि उनकी उपासना से श्रीराम को रावण पर विजय का बल मिला था। यह नाम उनकी शक्ति-दायिनी प्रकृति को इंगित करता है।
महोदरी विशाल उदर वाली (ब्रह्मांड को धारण करने वाली) महोदरी का शाब्दिक अर्थ है विशाल पेट/उदर वाली। पुराणों के अनुसार देवी के उदर में पूरा ब्रह्मांड समाहितहै। – वे समस्त चराचर जगत को अपनी कोख में धारण किए हुए हैं। इसलिए उन्हें महोदरी (विश्वोदरी) कहा गया है।
मुक्तकेशी खुले केशों वाली (विकराल स्वरूप में) दुर्गा के उग्र रूप (जैसे काली) में बाल खुले और बिखरे होते हैं। अतः उन्हें मुक्तकेशी कहा जाताहै। – अर्थात् जो मुक्त केश धारण करती हैं। देवी महात्म्य में चण्डिका (काली) के खुले जटाजूट का वर्णन मिलता है जो उनके उन्मत्त रूप को दर्शाता है।
घोररूपा अति भयंकर रूप वाली घोर का अर्थ भयंकर/भयानक। दुर्गा के प्रलयंकर रौद्र स्वरूप को घोररूपा कहा गया है। जब उनका क्रोध चरम पर होता है तो उनका रूप अत्यंत उग्र (दांत निकले हुए, रक्त नेत्र आदि) हो जाता है – यह नाम उसी भयंकरता का स्मरण दिलाता है।
महाबला अपार बलशाली, महान शक्ति संपन्न दुर्गा महाबला हैं – अर्थात उनमें अपार बल है जिसे कोई पराजित नहीं कर सकता। देवी सूक्त में कहा “या देवी बलरूपेण संस्थिता…” – वे ही सब देवों को शक्तिप्रदायिनी हैं। इस नाम से उनकी अद्वितीय शक्ति का बखान होता है।
अग्निज्वाला अग्नि-ज्वाला के समान तीक्ष्ण तेज वाली दुर्गा का तेज प्रचण्ड अग्नि-ज्वाला के समान है। इसलिए उन्हें अग्निज्वाला कहा गया। देवी महात्म्य में रक्तबीज के संहार के समय उनके मुख से निकली अग्नि-ज्वालाओं का वर्णन है जिससे असंख्य रक्तबीज भस्म हो गए – यह नाम उसी महातेज का द्योतक है।
रौद्रमुखी रौद्र (रुद्र) समान उग्र मुख वाली रौद्रमुखी का अर्थ है जिनका मुख क्रोध में रुद्र के समान भयावह हो जाता है। देवीभागवत में वर्णन है कि शुम्भ से युद्ध करते समय देवी ने रौद्र रूप धारण किया – उनके मुखमण्डल से प्रलयंकारी ज्वालाएँ निकलीं। इस कारण उन्हें रौद्रमुखी कहा गया (रुद्र = शिव का भयंकर रूप)।
कालरात्रि घोर अंधकार रूपी रात्रि (अज्ञान-सूर्य का अंत करने वाली) कालरात्रि दुर्गा की नवदुर्गा में सातवीं उग्र रूप हैं। इस रूप में उनका वर्ण कृष्ण (अंधकार) है, बाल बिखरे हैं और गले में नरमुंड माला है। यह नाम संकेत करता है कि देवी अज्ञान रूपी अंधकार (कालरात्रि) को स्वयं घोर अंधेरी रात की तरह आत्मसात कर लेती हैं ताकि भक्तों को प्रकाश मिल सके।
तपस्विनी तपस्या में लीन, संन्यस्त (योगिनी) दुर्गा तपस्विनी हैं – उन्होंने अपने पार्वती अवतार में घोर तप किया था। वे योग-ध्यान में लीन रहने वाली आदिशक्ति हैं। कात्यायन ऋषि के आश्रम में जन्म लेकर भी उन्होंने बाल्यकाल में तपस्या की थी। यह नाम उनके वैराग्य एवं साधना पक्ष को प्रदर्शित करता है।
नारायणी नारायण (विष्णु) की शक्ति/बहन (योगमाया) देवी महात्म्य में देवता स्तुति करते हैं: “नारायणी नमोस्तुते”। दुर्गा को नारायणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे भगवान विष्णु की योगमाया हैं – विष्णु की शक्ति और भगिनी। जब महिषासुर-वध के बाद सभी देवों ने उनकी स्तुति की, तब विष्णु ने उन्हें नारायणी कहकर प्रणाम किया (अर्थात नारायण की Powers)।
भद्रकाली भद्र (मंगलकारी) एवं उग्र काली रूप भद्रकाली देवी के उग्र रूप काली का ही एक शुभ-स्वरूप नाम है। शिव पुराण के अनुसार सती के आत्मदाह से क्रोधित शिव ने तांडव करते हुए भद्रकाली को प्रकट किया था । उन्होंने दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया। इस रूप में वे उग्र होते हुए भी भक्तों के लिए भद्र (मंगलदायिनी) हैं – भद्रकाली (कल्याणकारी काली)।
विष्णुमाया विष्णु की माया (योगनिद्रा शक्ति) देवी को विष्णुमाया भी कहा जाता है – अर्थात विष्णु भगवान की मायाशक्ति । दुर्गा सप्तशती में यही योगनिद्रा दुर्गा के रूप में व्यक्त होकर विष्णु को जागृत करती है। शास्त्रों में वर्णन है कि हरि (विष्णु) की निद्रा व माया वही जगदंबा है, अतः नारायणी दुर्गा को विष्णुमाया नाम दिया गया।
जलोदरी जलोदर (ब्रह्मांडीय जल को उदर में धारण करने वाली) जलोदरी नाम में जल + उदर है – अर्थात जिनका उदर ब्रह्माण्ड रूपी कारणजल का स्थल है। हिंदू सृष्टि-धारणा में कहा गया है कि प्रलयकाल में समस्त चराचर जल में लीन हो जाता है और देवी उस जल को अपने उदर में धारण करती हैं। इस प्रकार वे जलोदरी (विश्व को धारण करने वाली) कहलाती हैं।
शिवदूती शिव को दूत बनाने वाली (दूत रूप में प्रयोग करने वाली) देवी महात्म्य की अद्भुत घटना है जहाँ चण्डिका दुर्गा ने स्वयं भगवान शिव को अपना दूत बनाकर असुर शुम्भ-निशुम्भ के पास संदेश लेक र भेजा था। शिव ने देवी का दूत बनकर असुरों को चेतावनी दी। इस लीला के कारण उनका नाम शिवदूती पड़ा – अर्थात् जिन्होंने शिव को ही दूत बना लिया। यह देवी की परम सत्ता को दर्शाता है (शिव भी जिनके कार्य करते हैं)।
कराली अत्यंत उग्र एवं भयंकर (कठोर) कराली का अर्थ है प्रचंड भयंकर। देवी के उग्रतम रूप को कराली कहा गया है – जैसे कालिका की विकराल दांतों-जबड़ों वाली मूर्ति। वैदिक साहित्य में कराली अग्नि की एक ज्वाला का नाम भी है, जिसका रूप बहुत भयंकर बताया गया। दुर्गा के बारे में कहा जाता है कि संकट के समय उनका रूप कराली हो जाता है जो पापियों का सर्वनाश कर देता है।
अनन्ता (पुनः) अनंत, असीम (जिसका पार न हो) देवी की अनंत महिमा को अनन्ता नाम दोहराकर भी स्मरण किया गया है। वास्तव में दुर्गा अनंत शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, जिनका ना आरंभ है ना अंत। उनका यह अपरिमेय स्वरूप मनुष्य की बुद्धि की सीमा से परे है – इसीलिए अनन्ता नाम पुनः उल्लेखित है, जोर देने के लिए कि माता दुर्गा अनन्त हैं।
परमेश्वरी परम ईश्वर स्वरूपा, सर्वोच्च अधिष्ठात्री दुर्गा परमेश्वरी हैं – अर्थात समस्त जगत की स्वामिनी सर्वोच्च शक्ति। देवी सूक्त (ऋग्वेद 10.125) में कहा: “अहं स्वधा अहं स्वाहा, अहम् विश्वमिदं प्रभु” – अर्थात देवी कहती हैं “मैं ही परमेश्वरी हूँ, सब मुझसे ही प्रस्फुटित होता है”. इस प्रकार परमेश्वरी नाम उनके ब्रह्मस्वरूप को दर्शाता है।
कात्यायनी कात्यायन ऋषि की पुत्री (कात्यायन-जात) मार्कण्डेय पुराण की कथा अनुसार देवी ने महिषासुर-वध हेतु ऋषि कात्यायन के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था । ऋषि ने सबसे पहले इनकी पूजा की, इसलिए कात्यायनी नाम पड़ा। यह दुर्गा जी की नवदुर्गा में छठी स्वरूप भी हैं। नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा होती है – शक्ति के उग्र और सौम्य रूप के संतुलन स्वरूप।
सावित्री सवितृ (सूर्य) की पुत्री; वेद-शक्ति गायत्री दुर्गा का एक नाम सावित्री है जो सूर्यदेव सवितृ की पुत्री के रूप में है। दुर्गा सप्तशती में महादेवी कहती हैं “मैं ही ब्रह्मविद्या उपदेशिका सावित्री हूँ”. देवी भगवतम् में सावित्री को वेदों की जननी के रूप में दर्शाया गया है। यह नाम माता के गायत्री स्वरूप (पांचवी महाविद्या) को भी इंगित करता है – जो सरस्वती का ही वैदिक रूप है।
प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष (प्रकट) स्वरूपिणी, साक्षात अभिव्यक्त दुर्गा प्रत्यक्ष हैं – अर्थात वे साक्षात दर्शन देने वाली देवी हैं। जब भी भक्त पुकारते हैं, माँ किसी-ना-किसी रूप में प्रत्यक्ष सहायता हेतु प्रकट होती हैं। शास्त्रों में नवदुर्गा को प्रत्यक्ष देवियाँ कहा गया – इस नाम का भाव है कि माँ दुर्गा सगुण रूप में अनुभव की जा सकती हैं (वे केवल निराकार नहीं, साकार भी हैं)।
ब्रह्मवादिनी ब्रह्म का ज्ञान देने वाली (तत्वचिंतक) ब्रह्मवादिनी का अर्थ है ब्रह्म पर वाद या चर्चा करने वाली, अर्थात ब्रह्मज्ञान का उपदेश देने वाली देवी। दुर्गा को शास्त्रों में आदिशक्ति सरस्वती भी माना जाता है, जो वेदज्ञान की प्रतीक हैं। देवी भागवत के देवीगीता प्रसंग में दुर्गा द्वारा ब्रह्मज्ञान का उपदेश मिलता है। इस प्रकार ब्रह्मवादिनी नाम उनके सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ज्ञानस्वरूप को दर्शाता है


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