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जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।

जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

श्री राधा के 108 दिव्य नाम

श्री राधा के 108 नाम उनके अनंत गुणों, लीलाओं, स्वरूप और ऐश्वर्य का संक्षिप्त परिचय हैं। ये नाम केवल विशेषण नहीं, बल्कि ध्यान के बिंदु और मंत्र हैं, जिनके माध्यम से भक्त उनके विभिन्न स्वरूपों से जुड़ता है। यहाँ प्रस्तुत सूची मुख्य रूप से श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा रचित श्री राधिका-अष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्र तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं गर्ग संहिता में वर्णित नामों पर आधारित है। प्रत्येक नाम का अर्थ औ र उसका शास्त्रीय विवेचन नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत है।

श्री राधिका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्: नाम, अर्थ एवं शास्त्रीय विवेचन
क्रमांक नाम शास्त्रीय विवेचन एवं संदर्भ
1 राधा (Radha) संक्षिप्त अर्थ: आराधना की परम वस्तु; निर्वाणदात्री
विवेचन: यह उनका मूल और सर्वोपरि नाम है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, 'रा' का अर्थ है 'प्राप्ति' और 'धा' का अर्थ है 'निर्वाण'। वे भक्तों को परम मोक्ष प्रदान करती हैं। एक अन्य अर्थ के अनुसार, श्रीकृष्ण जिनकी 'आराधना' करते हैं, वे राधा हैं। वे एक साथ आराध्य और आराधिका दोनों हैं। उनका नाम जपने मात्र से श्रीकृष्ण भक्त की ओर आकर्षित होते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड 2, अध्याय 48; राधोपनिषद।
2 राधिका (Radhika) संक्षिप्त अर्थ: आराधना करने वाली; श्री राधा का एक प्रेमपूर्ण संबोधन
विवेचन: यह 'राधा' नाम का ही एक और स्वरूप है, जिसमें प्रेम और आत्मीयता का भाव अधिक है। यह उनके 'आराधिका' स्वरूप पर बल देता है, अर्थात् जो श्रीकृष्ण की सर्वश्रेष्ठ उपासिका हैं। भक्तगण और स्वयं श्रीकृष्ण भी उन्हें प्रेम से 'राधिके' कहकर पुकारते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण; गर्ग संहिता।
कृष्णवल्लभा (Krishnavallabha) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय
विवेचन: वल्लभा का अर्थ है 'अत्यंत प्रिय' या 'प्रेयसी'। वे श्रीकृष्ण की सभी प्रेयसियों में श्रेष्ठ और उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। यह नाम उनके और कृष्ण के बीच के अनन्य प्रेम संबंध को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता; पद्म पुराण।
4 कृष्णसंयुता (Krishnasamyuta) संक्षिप्त अर्थ: जो सदा श्रीकृष्ण के साथ रहती हैं
विवेचन: संयुता का अर्थ है 'सदा संयुक्त रहने वाली'। वे नित्य-लीला में एक क्षण के लिए भी श्रीकृष्ण से अलग नहीं होतीं। उनका विरह केवल लौकिक लीला में भक्तों को रस का आस्वादन कराने के लिए एक अभिनय मात्र है। तत्वतः वे सदा कृष्ण के साथ ही हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
5 वृन्दावनेश्वरी (Vrindavaneshwari) संक्षिप्त अर्थ: वृन्दावन की अधीश्वरी (रानी)
विवेचन: वृन्दावन केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक धाम है जो श्री राधा की शक्ति से ही प्रकट और पोषित होता है। वे वृन्दावन की प्रत्येक लता, वृक्ष, पशु और पक्षी की स्वामिनी हैं। स्कंद और मत्स्य पुराण में उन्हें वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। श्रीकृष्ण भी उनकी अनुमति और प्रसन्नता से ही वृन्दावन में विहार करते हैं।
संदर्भ: स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण; श्री राधिका स्तोत्र।
6 कृष्णप्रिया (Krishnapriya) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण की प्रिया
विवेचन: यह नाम उनके कृष्ण-प्रेम के सार को व्यक्त करता है। वे केवल कृष्ण की प्रिय नहीं, बल्कि 'प्रिय' की परिभाषा हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान नारायण कहते हैं कि वे कृष्ण की सबसे प्रिय संगिनी हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड; गर्ग संहिता।
7 मदनमोहिनी (Madanmohini) संक्षिप्त अर्थ: कामदेव को भी मोहित करने वाली
विवेचन: भगवान श्रीकृष्ण को 'मदन मोहन' कहा जाता है, क्योंकि वे स्वयं कामदेव (मदन) को भी मोहित कर लेते हैं। किंतु श्री राधा श्रीकृष्ण को भी मोहित कर लेती हैं, इसलिए वे 'मदनमोहिनी' हैं। यह नाम उनकी सुंदरता और आकर्षण की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
8 श्रीमती (Shrimati) संक्षिप्त अर्थ: सौंदर्य, ऐश्वर्य और कांति से युक्त
विवेचन: 'श्री' का अर्थ है लक्ष्मी, सौंदर्य, ऐश्वर्य और कांति। 'मती' का अर्थ है 'युक्त'। वे समस्त प्रकार के सौंदर्य और ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। स्वयं लक्ष्मी जी भी उनकी अंश-कला हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
9 रसिकेश्वरी (Rasikeshwari) संक्षिप्त अर्थ: रसिकों की ईश्वरी
विवेचन: जो भक्त दिव्य प्रेम-रस का आस्वादन करना चाहते हैं, वे 'रसिक' कहलाते हैं। श्री राधा उन सभी रसिक भक्तों की ईश्वरी हैं और उन्हें ही रस-माधुर्य प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
10 रासेश्वरी (Raseshwari) संक्षिप्त अर्थ: रासलीला की अधीश्वरी
विवेचन: रासलीला वैष्णव भक्ति का सर्वोच्च और गहनतम रहस्य है। श्री राधा उस महारास की केंद्र-बिंदु और स्वामिनी हैं। उनके बिना रास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे ही श्रीकृष्ण को रास में आनंद प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
11 परमानन्दरूपिणी (Paramanandarupini) संक्षिप्त अर्थ: परमानंद का साक्षात् स्वरूप
विवेचन: वे आनंद की स्रोत, ह्लादिनी शक्ति हैं। उनका स्वरूप ही परमानंद से बना है। जो भी उनके संपर्क में आता है, वह दिव्य आनंद से भर जाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड
12 वृषभानुजा (Vrishabhanuja) संक्षिप्त अर्थ: राजा वृषभानु की पुत्री
विवेचन: लौकिक लीला में, श्री राधा बरसाना के राजा, गोपश्रेष्ठ श्री वृषभानु की पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। यद्यपि वे अयोनिजा (गर्भ से उत्पन्न नहीं) हैं, उन्होंने वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्तिदा को अपनी दिव्य लीला में माता-पिता के रूप में चुना। यह नाम उनके दिव्य अवतरण और ब्रज लीला में उनकी पहचान को दर्शाता है।
संदर्भ: पद्म पुराण; ब्रह्मवैवर्त पुराण; श्री राधिका स्तोत्र।
13 गोपी (Gopi) संक्षिप्त अर्थ: गोप-कन्या; जो अपनी इंद्रियों से कृष्ण रस का पान करे
विवेचन: 'गोपी' शब्द का अर्थ है जो अपनी इंद्रियों (गो) से कृष्ण-रस का पान (पि) करे। श्री राधा सभी गोपियों में प्रधान और उनकी शिरोमणि हैं। अन्य सभी गोपियाँ उन्हीं की काय-व्यूह (विस्तार) स्वरूपा हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण; गर्ग संहिता
14 प्रधानगोपिका (Pradhanagopika) संक्षिप्त अर्थ: सभी गोपियों में प्रधान
विवेचन: वृन्दावन की असंख्य गोपियों में श्री राधा का स्थान सर्वोच्च है। वे सभी की नेत्री, स्वामिनी और आदर्श हैं। सभी गोपियाँ उनकी सेवा करके ही श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर पाती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
15 गान्धर्वा (Gandharva) संक्षिप्त अर्थ: गंधर्वों द्वारा पूजित; सर्वश्रेष्ठ गायिका
विवेचन: गंधर्वगण स्वर्गीय गायक और संगीतज्ञ हैं। श्री राधा की गायन कला इतनी मधुर है कि स्वयं गंधर्व भी उनसे सीखते हैं और उनकी आराधना करते हैं। यह नाम उनकी कला-निपुणता को दर्शाता है।
संदर्भ: पद्म पुराण श्री राधिका स्तोत्र ।
16 चंचलाक्षी (Chanchalakshi) संक्षिप्त अर्थ: जिनके नेत्र चंचल हैं
विवेचन: उनके नेत्र प्रेम और भावों की चंचलता से भरे हुए हैं, जो श्रीकृष्ण को निरंतर आकर्षित करते हैं। उनके नेत्रों की चपलता उनके आंतरिक प्रेम-उल्लास का बाह्य प्रदर्शन है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
दामोदरप्रिया (Damodarapriya) संक्षिप्त अर्थ: दामोदर (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: 'दामोदर' श्रीकृष्ण का वह नाम है जो माता यशोदा द्वारा उन्हें ऊखल से बाँधे जाने की लीला से पड़ा। श्री राधा को श्रीकृष्ण का यह बाल-स्वरूप अत्यंत प्रिय है, अतः वे 'दामोदरप्रिया' हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
18 हरिकान्ता (Harikanta) संक्षिप्त अर्थ: हरि (श्रीकृष्ण) की प्रियतमा
विवेचन: 'हरि' का एक अर्थ है 'जो हरण कर ले'। श्रीकृष्ण भक्तों के दुःख और अपने सौंदर्य से मन हर लेते हैं। श्री राधा उन 'हरि' का भी मन हरण कर लेती हैं, अतः वे उनकी 'कान्ता' (प्रियतमा) हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
19 रमा (Ramaa) संक्षिप्त अर्थ: लक्ष्मी स्वरूपा; आनंद देने वाली
विवेचन: 'रमा' देवी लक्ष्मी का एक नाम है। श्री राधा को 'रमा' कहा जाता है क्योंकि वे समस्त ऐश्वर्य की स्रोत हैं और स्वयं महालक्ष्मी भी उन्हीं की अंश-कला हैं। वे ही श्रीकृष्ण को आनंद ('रमण') कराती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
20 वृन्दा (Vrinda) संक्षिप्त अर्थ: तुलसी स्वरूपा; समूह की नेत्री
विवेचन: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्री राधा के सोलह प्रमुख नामों में से एक 'वृन्दा' है। वे ही वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी 'वृन्दादेवी' (तुलसी) के रूप में प्रकट होती हैं और कृष्ण की लीलाओं का आयोजन करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
21 विमला (Vimala) संक्षिप्त अर्थ: जो सर्वथा निर्मल और दोषरहित हैं
विवेचन: उनमें माया का लेशमात्र भी नहीं है। वे शुद्ध सत्त्व का मूर्तिमान स्वरूप हैं। उनका हृदय, चरित्र और स्वरूप पूर्णतः निर्मल है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
22 केशवप्रिया (Keshavapriya) संक्षिप्त अर्थ: केशव (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: 'केशव' श्रीकृष्ण का एक नाम है जिसका एक अर्थ है 'सुंदर केशों वाले'। श्री राधा को कृष्ण का यह स्वरूप प्रिय है, अतः वे 'केशवप्रिया' हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
23 नन्दनन्दनवल्लभा (Nandanandanavallabha) संक्षिप्त अर्थ: नंद के नंदन (श्रीकृष्ण) की प्रेयसी
विवेचन: यह नाम ब्रज-लीला के माधुर्य को दर्शाता है। वे परब्रह्म की नहीं, बल्कि नंदबाबा के लाला, माखनचोर कन्हैया की प्रेयसी हैं। यह उनके प्रेम की सहजता और माधुर्य को प्रकट करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
यशोदानन्दवल्लभा (Yashodanandavallabha) संक्षिप्त अर्थ: यशोदा के आनंद (श्रीकृष्ण) की प्रेयसी
विवेचन: श्रीकृष्ण माता यशोदा के आनंद के स्रोत हैं। श्री राधा उन 'यशोदानंदन' की वल्लभा हैं। यह नाम भी उनके ब्रज-भाव की घनिष्ठता को व्यक्त करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
25 सर्वमंगला (Sarvamangala) संक्षिप्त अर्थ: जो सभी का मंगल करती हैं
विवेचन: वे मंगल का साक्षात् स्वरूप हैं। उनकी कृपा, उनका नाम, उनका स्मरण - सब कुछ भक्तों के लिए परम मंगलकारी है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
26 गोवर्धनचरी (Govardhanachari) संक्षिप्त अर्थ: गोवर्धन पर्वत पर विचरण करने वाली
विवेचन: गोवर्धन पर्वत राधा-कृष्ण की अंतरंग लीलाओं का प्रमुख स्थल है। श्री राधा अपनी सखियों के साथ वहाँ विचरण करती हैं, कंदराओं में लीला करती हैं, इसलिए वे 'गोवर्धनचरी' कहलाती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
27 गोपानन्दकरी (Gopanandakari) संक्षिप्त अर्थ: ग्वाल-बालों को आनंद देने वाली
विवेचन: वे केवल श्रीकृष्ण को ही नहीं, अपितु उनके सभी सखाओं, ग्वाल-बालों को भी अपने वात्सल्य और प्रेम से आनंद प्रदान करती हैं। वे संपूर्ण ब्रजमंडल की आनंद-दायिनी हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
28 त्रैलोक्यसुन्दरी (Trailokyasundari) संक्षिप्त अर्थ: तीनों लोकों में सबसे सुंदर
विवेचन: उनकी सुंदरता अनुपम और अलौकिक है। तीनों लोकों - स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल - में उनके समान कोई सुंदरी नहीं है। रति, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की सुंदरता उनके सौंदर्य-सिंधु की एक बूँद मात्र है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
29 विकसितमुखाम्बुजा (Vikasitamukhambuja) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख खिले हुए कमल के समान है
विवेचन: उनका मुखमंडल सदैव प्रेम और आनंद से प्रफुल्लित रहता है, जैसे पूर्ण खिला हुआ कमल। यह उनके आंतरिक आनंद और सौंदर्य का प्रतीक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
30 पद्मा (Padma) संक्षिप्त अर्थ: कमल के समान सुंदर; लक्ष्मी स्वरूपा
विवेचन: 'पद्म' या कमल पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है। उनके नेत्र, हाथ, चरण सभी कमल के समान हैं। यह नाम उनके लक्ष्मी-स्वरूप को भी इंगित करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
31 पद्महस्ता (Padmahasta) संक्षिप्त अर्थ: जिनके हाथ कमल के समान कोमल और सुंदर हैं
विवेचन: उनके कर-कमल अत्यंत कोमल हैं और उन्हीं हाथों से वे श्रीकृष्ण की सेवा करती हैं। यह नाम उनके शारीरिक सौंदर्य और सेवा-भाव को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
32 पवित्रा (Pavitra) संक्षिप्त अर्थ: परम पवित्र
विवेचन: वे स्वयं पवित्रता की मूर्ति हैं। उनका नाम, कथा और स्मरण करने मात्र से तीनों भुवन पवित्र हो जाते हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ब्रह्मवैवर्त पुराण।
33 सत्या (Satya) संक्षिप्त अर्थ: सत्य स्वरूपा
विवेचन: वे परम सत्य का स्त्री-स्वरूप हैं। वे शाश्वत और नित्य हैं। उनका अस्तित्व किसी अन्य पर निर्भर नहीं है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
34 कृष्णवामांगसम्भूता (Krishna-Vamanga-Sambhuta) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के वाम अंग से प्रकट हुईं
विवेचन: यह नाम उनके दिव्य और अविभाज्य मूल को इंगित करता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, गोलोक धाम में परब्रह्म श्रीकृष्ण ने स्वयं को दो रूपों में विभक्त किया। उनके दक्षिण अंग से पुरुष (कृष्ण) और वाम अंग से प्रकृति (राधा) का प्राकट्य हुआ। यह दर्शाता है कि वे श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं हैं, बल्कि उनका ही स्त्री-रूप हैं, जो प्रेम और आनंद की लीला के लिए प्रकट हुआ है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
35 परमेश्वरी (Parameshwari) संक्षिप्त अर्थ: परम ईश्वरी
विवेचन: वे सभी ईश्वरों और देवों की भी ईश्वरी हैं। वे मूल शक्ति हैं जिनसे अन्य सभी देवियाँ प्रकट होती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
36 कृष्णस्वरूपीणी (Krishnaswarupini) संक्षिप्त अर्थ: जिनका स्वरूप श्रीकृष्ण के समान है
विवेचन: रूप, गुण, तेज और स्वभाव में वे श्रीकृष्ण के ही समान हैं। लीला में वे कभी-कभी कृष्ण का रूप भी धारण कर लेती हैं। यह उनके और कृष्ण के बीच की तात्विक अभिन्नता को दर्शाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।।
37 वृन्दावनविहारिणी (Vrindavanaviharini) संक्षिप्त अर्थ: वृन्दावन में विहार (क्रीड़ा) करने वाली
विवेचन: उनका प्रिय लीला-स्थल वृन्दावन है। वे अपनी सखियों और श्रीकृष्ण के साथ वृन्दावन के कुंजों और वनों में नित्य विहार करती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण गर्ग संहिता
38 चन्द्रावली (Chandravali) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी आभा में अनेक चंद्रमाओं की कांति है
विवेचन: 'चन्द्रावली' का अर्थ है चंद्रमाओं की पंक्ति। उनके सौंदर्य में अनंत चंद्रमाओं की शीतलता और प्रकाश है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के षोडशनाम स्तोत्र में यह एक प्रमुख नाम है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
39 चन्द्रकान्ता (Chandrakanta) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी कांति चंद्रमा के समान है
विवेचन: उनका मुख और शरीर चंद्रमा के समान शीतल, सुंदर और प्रकाशमान है। श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर उन्हें इस नाम से पुकारते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
40 शरच्चन्द्रप्रभानना (Sharacchandraprabhanana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख शरद् पूर्णिमा के चंद्रमा के समान है
विवेचन: शरद् ऋतु का चंद्रमा सबसे निर्मल, पूर्ण और कांतिमान होता है। उनका मुखमंडल उसी शरद्-चंद्र के समान तेजोमय और सुंदर है। यह नाम महर्षि वेदव्यास द्वारा दिया गया बताया जाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
41 माधवसङ्गिनी (Madhavasangini) संक्षिप्त अर्थ: माधव (श्रीकृष्ण) की संगिनी
विवेचन: वे माधव की नित्य संगिनी हैं। 'माधव' अर्थात् 'मा' (लक्ष्मी/राधा) के 'धव' (पति/स्वामी)। यह नाम दर्शाता है कि कृष्ण भी राधा के होने से ही 'माधव' कहलाते हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
42 कीर्तिदाकन्यका (Kirtidakanyaka) संक्षिप्त अर्थ: कीर्तिदा की कन्या
विवेचन: लौकिक लीला में उनकी माता का नाम कीर्तिदा था। वे वृषभानु की पत्नी और राधा की मैया हैं। यह नाम उनके वात्सल्य-भाव से जुड़े भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
43 विशाखासखि (Vishakhasakhi) संक्षिप्त अर्थ: विशाखा की सखी
विवेचन: विशाखा श्री राधा की अष्टसखियों में से एक, उनकी सबसे प्रिय और अंतरंग सखी हैं। यह नाम राधा के सख्य-भाव और उनकी प्रिय सखियों के साथ उनके संबंधों को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
44 ललितासखि (Lalitasakhi) संक्षिप्त अर्थ: ललिता की सखी
विवेचन: ललिता भी राधा की अष्टसखियों में प्रमुख हैं, जो स्वभाव से थोड़ी प्रखर हैं और राधा-कृष्ण के मान-मनुहार की लीलाओं का आयोजन करती हैं। श्री राधा ललिता के प्राणों का आधार हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता श्री राधिका स्तोत्र ।
45 अनंगमञ्जरी (Anangamanjari) संक्षिप्त अर्थ: कामदेव की मंजरी (कली) स्वरूपा
विवेचन: वे प्रेम की साक्षात् मूर्ति हैं, जो कामदेव (अनंग) को भी जीवन देने वाली मंजरी के समान हैं। यह नाम उनके छोटे बहन के रूप में भी आता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
46 सौम्यरूपा (Saumyarupa) संक्षिप्त अर्थ: जिनका रूप अत्यंत सौम्य और शांत है
विवेचन: यद्यपि वे परम शक्ति हैं, उनका स्वरूप भक्तों के लिए अत्यंत सौम्य, शांत और करुणामय है। उनका सौम्य रूप भक्तों के हृदय को शांति प्रदान करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
47 विचित्रवासिनी (Vichitravasini) संक्षिप्त अर्थ: जो विचित्र (अद्भुत) वस्त्र धारण करती हैं
विवेचन: उनके वस्त्र अलौकिक और नित्य नवीन होते हैं। वे अपनी कला से स्वयं को और श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए अद्भुत श्रृंगार और वस्त्र धारण करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
48 हृद्या (Hridya) संक्षिप्त अर्थ: जो हृदय को प्रिय लगने वाली हैं
विवेचन: उनका स्वरूप, नाम और कथा सभी के हृदय को प्रिय और आकर्षक लगते हैं। वे श्रीकृष्ण के हृदय में निवास करती हैं और भक्तों के हृदय को भी अपना निवास बनाती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
49 दयारूपा (Dayarupa) संक्षिप्त अर्थ: दया की साक्षात् मूर्ति
विवेचन: वे करुणा और दया का स्वरूप हैं। उनकी दया से ही जीव को भक्ति प्राप्त होती है। उनका हृदय भक्तों के दुःख से तुरंत द्रवित हो जाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
50 गोकुलानन्दकर्त्री (Gokulanandakartri) संक्षिप्त अर्थ: गोकुल को आनंद प्रदान करने वाली
विवेचन: वे संपूर्ण गोकुल-मंडल के आनंद का कारण हैं। उनकी उपस्थिति से ही गोकुल में उत्सव और आनंद का वातावरण रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
51 रासक्रीडाकरी (Rasakridakari) संक्षिप्त अर्थ: रास क्रीड़ा करने वाली
विवेचन: वे रासलीला की नायिका हैं और श्रीकृष्ण के साथ रास क्रीड़ा का विस्तार करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
52 रासवासिनी (Rasavasini) संक्षिप्त अर्थ: जो रास में निवास करती हैं
विवेचन: रासमंडल उनका नित्य निवास स्थान है। वे सदा रास के भाव में ही स्थित रहती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
53 सुन्दरी (Sundari) संक्षिप्त अर्थ: परम सुंदरी
विवेचन: यह उनके अलौकिक सौंदर्य का परिचायक है। वे सौंदर्य की परिभाषा हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
54 गोपवेशमनोहरा (Gopaveshamanohara) संक्षिप्त अर्थ: गोपी के वेश में मन को हरने वाली
विवेचन: उनका सहज, सरल गोपी वेश भी अत्यंत मनोहर है और श्रीकृष्ण के मन को हर लेता है। यह उनके माधुर्य भाव की पराकाष्ठा है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
55 कृष्णांगवासिनी (Krishnangavasini) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के अंगों में निवास करने वाली
विवेचन: वे श्रीकृष्ण के हृदय और उनके अंगों में अभिन्न रूप से निवास करती हैं। यह उनकी अद्वैत स्थिति का प्रतीक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
56 यौवनस्था (Yauvanastha) संक्षिप्त अर्थ: जो नित्य यौवन में स्थित हैं
विवेचन: वे नित्य-किशोरी हैं। उनकी अवस्था सदा सोलह वर्ष की रहती है। उनका यौवन दिव्य और अप्राकृत है, जो कभी क्षीण नहीं होता।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
57 मधुरा (Madhura) संक्षिप्त अर्थ: मधुरता की मूर्ति
विवेचन: उनका रूप, वाणी, लीला, स्वभाव - सब कुछ मधुर है। वे माधुर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
58 कृपावती (Kripavati) संक्षिप्त अर्थ: अत्यंत कृपा करने वाली
विवेचन: वे कृपा की सागर हैं। बिना किसी योग्यता के भी वे जीवों पर अहैतुकी कृपा करती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
59 तरुणी (Taruni) संक्षिप्त अर्थ: नित्य नवीन यौवन से संपन्न
विवेचन: 'तरुणी' का अर्थ है नव-यौवना। वे नित्य नवीन और स्फूर्तिवान रहती हैं। उनका सौंदर्य और उत्साह सदा एक-सा बना रहता है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
60 दुःखहन्त्री (Duhkhahantri) संक्षिप्त अर्थ: सभी दुःखों का नाश करने वाली
विवेचन: उनका स्मरण मात्र भक्तों के आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - तीनों प्रकार के दुःखों का नाश कर देता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
61 रतिप्रदा (Ratiprada) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के चरणों में रति (प्रेम) प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति स्वाभाविक और निश्छल प्रेम को जाग्रत करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
62 गतिप्रदा (Gatiprada) संक्षिप्त अर्थ: परम गति (आश्रय) प्रदान करने वाली
विवेचन: वे भक्तों के लिए परम आश्रय और अंतिम गति हैं। उनकी शरण लेने के बाद किसी और आश्रय की आवश्यकता नहीं रहती।
संदर्भ: गर्ग संहिता
63 आनन्दप्रदायिनी (Anandapradayini) संक्षिप्त अर्थ: आनंद प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ह्लादिनी शक्ति होने के कारण आनंद का स्रोत हैं और अपने आश्रितों को दिव्य आनंद प्रदान करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
64 धृति (Dhriti) संक्षिप्त अर्थ: धैर्य स्वरूपा
विवेचन: वे धैर्य की मूर्ति हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वे भक्तों को धैर्य प्रदान करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
65 लज्जा (Lajja) संक्षिप्त अर्थ: लज्जा की अधिष्ठात्री देवी
विवेचन: लज्जा स्त्री का एक स्वाभाविक गुण और आभूषण है। श्री राधा में यह गुण अपनी पराकाष्ठा पर है, जो उनके शील और माधुर्य को और भी बढ़ा देता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
66 कान्ति (Kanti) संक्षिप्त अर्थ: दिव्य कांति (आभा) स्वरूपा
विवेचन: उनके शरीर से निकलने वाली सुनहरी आभा, जिसे 'गौर-कांति' कहते हैं, से संपूर्ण गोलोक और वृन्दावन प्रकाशित रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
67 पुष्टि (Pushti) संक्षिप्त अर्थ: पुष्टि (पोषण) प्रदान करने वाली शक्ति
विवेचन: वे भक्ति का पोषण करती हैं। वे वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग की स्वामिनी हैं, जो भगवान की कृपा को ही एकमात्र साधन मानता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
68 स्मृति (Smriti) संक्षिप्त अर्थ: स्मृति शक्ति स्वरूपा
विवेचन: वे सभी ज्ञान और स्मृतियों की आधार हैं। उनकी कृपा से ही भक्तों को भगवान का नित्य स्मरण बना रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
69 तुष्टि (Tushti) संक्षिप्त अर्थ: संतोष स्वरूपा
विवेचन: वे संतोष की मूर्ति हैं। उनकी कृपा पाने के बाद भक्त को पूर्ण संतोष मिल जाता है और किसी सांसारिक वस्तु की इच्छा नहीं रहती।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
70 मति (Mati) संक्षिप्त अर्थ: बुद्धि स्वरूपा
विवेचन: वे शुद्ध और सात्विक बुद्धि की अधिष्ठात्री हैं। उनकी कृपा से भक्त की बुद्धि सांसारिक विषयों से हटकर भगवान में लगती है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
71 कला (Kala) संक्षिप्त अर्थ: चौंसठ कलाओं में निपुण
विवेचन: वे गायन, वादन, नृत्य, चित्रकारी आदि सभी 64 कलाओं में पारंगत हैं और इन कलाओं का प्रयोग श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए करती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
72 कलावती (Kalavati) संक्षिप्त अर्थ: कलाओं की स्वामिनी
विवेचन: यह नाम उनकी कला-निपुणता को दर्शाता है। लौकिक लीला में उनकी माता का नाम भी 'कलावती' (कीर्तिदा का एक नाम) था, जो यह इंगित करता है कि कला स्वयं उनकी माता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण । राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
73 वीणापाणि (Vinapani) संक्षिप्त अर्थ: जिनके हाथ में वीणा है
विवेचन: जैसे देवी सरस्वती के हाथ में वीणा होती है, उसी प्रकार श्री राधा भी वीणा वादन में निपुण हैं। उनका वीणा वादन सुनकर श्रीकृष्ण भी मोहित हो जाते हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
74 स्मितमुखी (Smitamukhi) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख सदैव मुस्कान से युक्त रहता है
विवेचन: उनके मुख पर सदैव एक मधुर, रहस्यमयी मुस्कान रहती है, जो उनके आंतरिक आनंद और प्रेम का प्रतीक है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
75 रक्ताशोकलता (Raktashokalata) संक्षिप्त अर्थ: लाल अशोक की लता के समान
विवेचन: उनके कोमल अंग और लालिमा युक्त सौंदर्य की तुलना लाल अशोक की पुष्प-लता से की जाती है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
76 विष्णुप्रिया (Vishnupriya) संक्षिप्त अर्थ: विष्णु (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: श्रीकृष्ण ही परम विष्णु हैं। यह नाम दर्शाता है कि वे सर्वव्यापी भगवान विष्णु की भी परम प्रेयसी हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
77 विष्णोरंकनिवासिनी (Vishnorankanivasini) संक्षिप्त अर्थ: विष्णु (श्रीकृष्ण) की गोद में निवास करने वाली
विवेचन: वे सदा श्रीकृष्ण की गोद में या उनके हृदय में निवास करती हैं, जो उनके और भगवान के बीच की परम निकटता और प्रेम को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
78 मूलप्रकृति (Mula Prakriti) संक्षिप्त अर्थ: सभी सृष्टियों की मूल प्रकृति
विवेचन: वे ही मूल शक्ति हैं जिनसे भौतिक और आध्यात्मिक जगत की सभी प्रकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। सांख्य दर्शन की प्रकृति भी उन्हीं का एक अंश मात्र है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
79 ईश्वरी (Ishwari) संक्षिप्त अर्थ: सबकी नियंत्रक और स्वामिनी
विवेचन: वे परम नियंत्रक हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि भी उनके निर्देश पर ही कार्य करते हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
80 गोविन्दप्रणयाधारा (Govindapranayadhara) संक्षिप्त अर्थ: गोविन्द के प्रेम का आधार
विवेचन: गोविन्द (श्रीकृष्ण) का सारा प्रेम उन्हीं में टिका हुआ है। वे ही कृष्ण के प्रेम की पात्र और आधार दोनों हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
81 जगदानन्दिसद्यशः (Jagadanandisadyashah) संक्षिप्त अर्थ: जिनका निर्मल यश जगत को आनंद देता है
विवेचन: नारद जैसे देवर्षि भी उनके यश का गान करते हैं, जिसे सुनकर संपूर्ण जगत आनंदित होता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
82 कारुण्यविद्रवद्देहा (Karunyavidravaddeha) संक्षिप्त अर्थ: जिनका शरीर करुणा से द्रवित रहता है
विवेचन: वे करुणा की साक्षात् मूर्ति हैं। भक्तों का दुःख देखकर उनका शरीर मानो करुणा से पिघल जाता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
83 माधुर्यघटा (Madhuryaghata) संक्षिप्त अर्थ: माधुर्य का घड़ा (समूह)
विवेचन: वे माधुर्य का घनीभूत स्वरूप हैं, मानो सारा माधुर्य एकत्रित होकर उन्हीं के रूप में प्रकट हुआ हो।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
84 गोकुलत्वप्रदायिनी (Gokulatvapradayini) संक्षिप्त अर्थ: गोकुल-भाव प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों को गोकुल का सहज, मधुर प्रेम-भाव प्रदान करती हैं, जिससे वे भगवान को अपना सखा, पुत्र या प्रियतम मान सकते हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
85 प्रेमप्रिया (Premapriya) संक्षिप्त अर्थ: जिन्हें प्रेम प्रिय है
विवेचन: उन्हें किसी भी अन्य वस्तु से अधिक शुद्ध और निश्छल प्रेम ही प्रिय है। वे ज्ञान, योग या कर्मकांड से नहीं, केवल प्रेम से ही वश में होती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
86 प्रेमरूपा (Premarupa) संक्षिप्त अर्थ: प्रेम का साक्षात् स्वरूप
विवेचन: वे प्रेम की परिभाषा और उसका मूर्तिमान स्वरूप हैं। प्रेम क्या है, यह उन्हें देखकर ही जाना जा सकता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
87 प्रेमदा (Premada) संक्षिप्त अर्थ: प्रेम प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों के सूखे हृदय में भगवत्-प्रेम का संचार करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता 27।
88 भक्तिदा (Bhaktida) संक्षिप्त अर्थ: भक्ति प्रदान करने वाली
विवेचन: उनकी कृपा के बिना सच्ची भक्ति मिलना असंभव है। वे ही भक्ति की देवी हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण ।
89 सर्वाद्या (Sarvadya) संक्षिप्त अर्थ: जो सबसे आदि (पहले) हैं
विवेचन: वे ही सभी कारणों का मूल कारण हैं। सृष्टि में उनसे पहले कुछ भी नहीं था।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
90 गोविन्दमोहिनी (Govindamohini) संक्षिप्त अर्थ: गोविन्द को मोहित करने वाली
विवेचन: वे अपने रूप, गुण और प्रेम से इंद्रियों के स्वामी 'गोविन्द' को भी मोहित कर लेती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
91 सकलेप्सितदात्री (Saklepsitadatri) संक्षिप्त अर्थ: सभी अभीष्ट वस्तुओं को देने वाली
विवेचन: वे भक्तों की सभी मनोकामनाओं को, चाहे वे भौतिक हों या आध्यात्मिक, पूर्ण करने में समर्थ हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
92 भवव्याधिविनाशिनी (Bhavavyadhivinashini) संक्षिप्त अर्थ: संसार रूपी रोग का विनाश करने वाली
विवेचन: वे जन्म-मृत्यु के चक्र रूपी संसार-रोग की अचूक औषधि हैं। उनका नाम-स्मरण इस रोग का नाश कर देता है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
93 परात्परतरा (Paratparatara) संक्षिप्त अर्थ: जो पर से भी पर हैं
विवेचन: वे श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम हैं। आध्यात्मिक जगत में उनसे ऊँचा कोई तत्व नहीं है।
संदर्भ: पद्म पुराण श्री राधा स्तोत्र 28।
94 पूर्णा (Purna) संक्षिप्त अर्थ: जो स्वयं में पूर्ण हैं
विवेचन: वे स्वयं में पूर्ण हैं और उन्हें किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं है। वे पूर्ण शक्ति हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
95 पूर्णचन्द्रविमानना (Purnachandravimanana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान है
विवेचन: 'विमानना' का अर्थ है 'मुखमंडल'। उनका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान निष्कलंक, शीतल और प्रकाशमान है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
96 भुक्तिमुक्तिप्रदा (Bhuktimuktiprada) संक्षिप्त अर्थ: भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली
विवेचन: वे अपने भक्तों को उनकी इच्छानुसार सांसारिक भोग (भुक्ति) और आध्यात्मिक मोक्ष (मुक्ति) दोनों प्रदान करने में समर्थ हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
97 नित्यनूतना (Nityanutana) संक्षिप्त अर्थ: जो नित्य नवीन हैं
विवेचन: उनका सौंदर्य और लीलाएं नित्य नवीन रहती हैं। श्रीकृष्ण हर क्षण उनमें एक नया सौंदर्य और माधुर्य पाते हैं, इसलिए उनका प्रेम कभी पुराना नहीं पड़ता।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
98 गौरचन्द्रानना (Gaurachandranana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख गोरे चंद्रमा के समान है
विवेचन: उनकी देह का वर्ण तप्त स्वर्ण के समान 'गौर' है। उनका मुख उस सुनहरे चंद्रमा के समान है जो अत्यंत दुर्लभ और आकर्षक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
99 मन्त्रराजैकसिद्धिदा (Mantrarajaikasiddhida) संक्षिप्त अर्थ: मन्त्रराज (अठारह-अक्षर गोपाल मंत्र) की एकमात्र सिद्धि देने वाली
विवेचन: वैष्णव परंपरा में अठारह-अक्षर का गोपाल मंत्र 'मंत्रराज' कहलाता है। उस मंत्र की अंतिम सिद्धि श्री राधा की कृपा से ही प्राप्त होती है। वे ही उस मंत्र का फल देने वाली हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
100 अष्टादशाक्षरफला (Ashtadashaksharaphala) संक्षिप्त अर्थ: अठारह-अक्षर मंत्र का फल स्वरूपा
विवेचन: वे केवल मंत्र का फल देती ही नहीं, बल्कि स्वयं ही उस मंत्र का फल हैं। मंत्र का जप करके अंततः उन्हीं की प्राप्ति होती है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
101 गोवर्धनगुहागेहा (Govardhanaguhageha) संक्षिप्त अर्थ: गोवर्धन की गुफा ही जिनका घर है
विवेचन: गोवर्धन की रहस्यमयी गुफाएं उनकी और कृष्ण की सबसे अंतरंग लीलाओं का स्थल हैं। वे गुफाएं ही उनका वास्तविक घर हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
102 यमुनाभगिनी (Yamunabhagini) संक्षिप्त अर्थ: यमुना जी की बहन
विवेचन: श्री यमुना जी सूर्य की पुत्री हैं और श्री राधा वृषभानु (जो सूर्य के अंश माने जाते हैं) की पुत्री हैं। इस नाते वे यमुना जी को अपनी बहन मानती हैं और उनसे अगाध प्रेम करती हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
103 स्वयंनिर्वाणदात्री (Swayamnirvanadatri) संक्षिप्त अर्थ: स्वयं निर्वाण देने वाली
विवेचन: यह नाम ब्रह्मवैवर्त पुराण की उस व्याख्या पर आधारित है जहाँ 'रा' दानवाचक और 'धा' निर्वाणवाचक है। वे स्वयं ही मोक्ष प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण ।
104 गाढबुद्धिबला (Gadhabuddhibala) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी बुद्धि और बल अत्यंत गहन है
विवेचन: वे केवल प्रेम और माधुर्य में ही नहीं, बल्कि बुद्धि और शक्ति में भी गहन हैं। वे अपनी बुद्धि से लीला में श्रीकृष्ण को भी पराजित कर देती हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
105 वंशीविकर्षिणी (Vamshivikarshini) संक्षिप्त अर्थ: वंशी को भी अपनी ओर खींच लेने वाली
विवेचन: श्रीकृष्ण की वंशी तीनों लोकों को आकर्षित करती है, पर श्री राधा अपने प्रेम और बुद्धि-बल से उस वंशी को भी कृष्ण के होठों से खींच लेती हैं, जो उनके सर्वोच्च आकर्षण को सिद्ध करता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
106 कृष्णप्राणाधिका (Krishnapranadhika) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय
विवेचन: यह नाम उनके प्रेम की पराकाष्ठा है। भगवान को अपने प्राणों से अधिक कुछ भी प्रिय नहीं होता, किंतु श्री राधा उन्हें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
107 व्रजचन्द्रेन्द्रियग्रामविश्रामविधुशालिका (Vrajachandrendriyagramavishramavidhushalika) संक्षिप्त अर्थ: व्रज के चंद्रमा (श्रीकृष्ण) की समस्त इंद्रियों के लिए विश्राम की शीतल कुटिया
विवेचन: यह एक अत्यंत गहन नाम है। इसका अर्थ है कि व्रज के चंद्रमा श्रीकृष्ण की समस्त इंद्रियाँ (आँख, कान, नाक आदि) केवल श्री राधा में ही आकर पूर्ण विश्राम और शांति पाती हैं। वे ही कृष्ण की इंद्रियों की अंतिम तृप्ति हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
108 कृष्णसर्वेन्द्रियोन्मादीराधेत्यक्षरयुग्मकम् (Krishnasarvendriyonmadiradhetyaksharayugmakam) संक्षिप्त अर्थ: 'रा-धा' यह दो अक्षरों का युग्म श्रीकृष्ण की सभी इंद्रियों को उन्मत्त (मदहोश) कर देता है
विवेचन: यह नाम श्री राधा नाम की महिमा का शिखर है। 'रा' और 'धा' - यह दो अक्षर मात्र ही इतने शक्तिशाली हैं कि वे परब्रह्म श्रीकृष्ण की समस्त इंद्रियों को प्रेम में पागल और उन्मत्त करने की क्षमता रखते हैं। यह सिद्ध करता है कि नाम और नामी में कोई भेद नहीं है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।


राधारानीगोपियोंकृष्णप्रियाअधिष्ठात्रीगोपीराजवृंदावनी
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जानिए देवी लक्ष्मी जी के वे 108 नाम जो समृद्धि, शांति और शुभ ऊर्जा का आह्वान करते हैं – हर नाम स्वयं में एक मंत्र है।
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जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।

जानिए राधारानी के वे 108 नाम, जो गोपियों की अधिष्ठात्री, कृष्णप्रिया और अनन्य भक्ति की प्रतीक हैं – हर नाम मन को माधुर्य से भर देता है।AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

श्री राधा के 108 दिव्य नाम

श्री राधा के 108 नाम उनके अनंत गुणों, लीलाओं, स्वरूप और ऐश्वर्य का संक्षिप्त परिचय हैं। ये नाम केवल विशेषण नहीं, बल्कि ध्यान के बिंदु और मंत्र हैं, जिनके माध्यम से भक्त उनके विभिन्न स्वरूपों से जुड़ता है। यहाँ प्रस्तुत सूची मुख्य रूप से श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी द्वारा रचित श्री राधिका-अष्टोत्तर-शत-नाम स्तोत्र तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं गर्ग संहिता में वर्णित नामों पर आधारित है। प्रत्येक नाम का अर्थ औ र उसका शास्त्रीय विवेचन नीचे दी गई तालिका में प्रस्तुत है।

श्री राधिका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्: नाम, अर्थ एवं शास्त्रीय विवेचन
क्रमांक नाम शास्त्रीय विवेचन एवं संदर्भ
1 राधा (Radha) संक्षिप्त अर्थ: आराधना की परम वस्तु; निर्वाणदात्री
विवेचन: यह उनका मूल और सर्वोपरि नाम है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, 'रा' का अर्थ है 'प्राप्ति' और 'धा' का अर्थ है 'निर्वाण'। वे भक्तों को परम मोक्ष प्रदान करती हैं। एक अन्य अर्थ के अनुसार, श्रीकृष्ण जिनकी 'आराधना' करते हैं, वे राधा हैं। वे एक साथ आराध्य और आराधिका दोनों हैं। उनका नाम जपने मात्र से श्रीकृष्ण भक्त की ओर आकर्षित होते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड 2, अध्याय 48; राधोपनिषद।
2 राधिका (Radhika) संक्षिप्त अर्थ: आराधना करने वाली; श्री राधा का एक प्रेमपूर्ण संबोधन
विवेचन: यह 'राधा' नाम का ही एक और स्वरूप है, जिसमें प्रेम और आत्मीयता का भाव अधिक है। यह उनके 'आराधिका' स्वरूप पर बल देता है, अर्थात् जो श्रीकृष्ण की सर्वश्रेष्ठ उपासिका हैं। भक्तगण और स्वयं श्रीकृष्ण भी उन्हें प्रेम से 'राधिके' कहकर पुकारते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण; गर्ग संहिता।
कृष्णवल्लभा (Krishnavallabha) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय
विवेचन: वल्लभा का अर्थ है 'अत्यंत प्रिय' या 'प्रेयसी'। वे श्रीकृष्ण की सभी प्रेयसियों में श्रेष्ठ और उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। यह नाम उनके और कृष्ण के बीच के अनन्य प्रेम संबंध को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता; पद्म पुराण।
4 कृष्णसंयुता (Krishnasamyuta) संक्षिप्त अर्थ: जो सदा श्रीकृष्ण के साथ रहती हैं
विवेचन: संयुता का अर्थ है 'सदा संयुक्त रहने वाली'। वे नित्य-लीला में एक क्षण के लिए भी श्रीकृष्ण से अलग नहीं होतीं। उनका विरह केवल लौकिक लीला में भक्तों को रस का आस्वादन कराने के लिए एक अभिनय मात्र है। तत्वतः वे सदा कृष्ण के साथ ही हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
5 वृन्दावनेश्वरी (Vrindavaneshwari) संक्षिप्त अर्थ: वृन्दावन की अधीश्वरी (रानी)
विवेचन: वृन्दावन केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक धाम है जो श्री राधा की शक्ति से ही प्रकट और पोषित होता है। वे वृन्दावन की प्रत्येक लता, वृक्ष, पशु और पक्षी की स्वामिनी हैं। स्कंद और मत्स्य पुराण में उन्हें वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। श्रीकृष्ण भी उनकी अनुमति और प्रसन्नता से ही वृन्दावन में विहार करते हैं।
संदर्भ: स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण; श्री राधिका स्तोत्र।
6 कृष्णप्रिया (Krishnapriya) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण की प्रिया
विवेचन: यह नाम उनके कृष्ण-प्रेम के सार को व्यक्त करता है। वे केवल कृष्ण की प्रिय नहीं, बल्कि 'प्रिय' की परिभाषा हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान नारायण कहते हैं कि वे कृष्ण की सबसे प्रिय संगिनी हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड; गर्ग संहिता।
7 मदनमोहिनी (Madanmohini) संक्षिप्त अर्थ: कामदेव को भी मोहित करने वाली
विवेचन: भगवान श्रीकृष्ण को 'मदन मोहन' कहा जाता है, क्योंकि वे स्वयं कामदेव (मदन) को भी मोहित कर लेते हैं। किंतु श्री राधा श्रीकृष्ण को भी मोहित कर लेती हैं, इसलिए वे 'मदनमोहिनी' हैं। यह नाम उनकी सुंदरता और आकर्षण की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
8 श्रीमती (Shrimati) संक्षिप्त अर्थ: सौंदर्य, ऐश्वर्य और कांति से युक्त
विवेचन: 'श्री' का अर्थ है लक्ष्मी, सौंदर्य, ऐश्वर्य और कांति। 'मती' का अर्थ है 'युक्त'। वे समस्त प्रकार के सौंदर्य और ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। स्वयं लक्ष्मी जी भी उनकी अंश-कला हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता।
9 रसिकेश्वरी (Rasikeshwari) संक्षिप्त अर्थ: रसिकों की ईश्वरी
विवेचन: जो भक्त दिव्य प्रेम-रस का आस्वादन करना चाहते हैं, वे 'रसिक' कहलाते हैं। श्री राधा उन सभी रसिक भक्तों की ईश्वरी हैं और उन्हें ही रस-माधुर्य प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
10 रासेश्वरी (Raseshwari) संक्षिप्त अर्थ: रासलीला की अधीश्वरी
विवेचन: रासलीला वैष्णव भक्ति का सर्वोच्च और गहनतम रहस्य है। श्री राधा उस महारास की केंद्र-बिंदु और स्वामिनी हैं। उनके बिना रास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वे ही श्रीकृष्ण को रास में आनंद प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
11 परमानन्दरूपिणी (Paramanandarupini) संक्षिप्त अर्थ: परमानंद का साक्षात् स्वरूप
विवेचन: वे आनंद की स्रोत, ह्लादिनी शक्ति हैं। उनका स्वरूप ही परमानंद से बना है। जो भी उनके संपर्क में आता है, वह दिव्य आनंद से भर जाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड
12 वृषभानुजा (Vrishabhanuja) संक्षिप्त अर्थ: राजा वृषभानु की पुत्री
विवेचन: लौकिक लीला में, श्री राधा बरसाना के राजा, गोपश्रेष्ठ श्री वृषभानु की पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। यद्यपि वे अयोनिजा (गर्भ से उत्पन्न नहीं) हैं, उन्होंने वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्तिदा को अपनी दिव्य लीला में माता-पिता के रूप में चुना। यह नाम उनके दिव्य अवतरण और ब्रज लीला में उनकी पहचान को दर्शाता है।
संदर्भ: पद्म पुराण; ब्रह्मवैवर्त पुराण; श्री राधिका स्तोत्र।
13 गोपी (Gopi) संक्षिप्त अर्थ: गोप-कन्या; जो अपनी इंद्रियों से कृष्ण रस का पान करे
विवेचन: 'गोपी' शब्द का अर्थ है जो अपनी इंद्रियों (गो) से कृष्ण-रस का पान (पि) करे। श्री राधा सभी गोपियों में प्रधान और उनकी शिरोमणि हैं। अन्य सभी गोपियाँ उन्हीं की काय-व्यूह (विस्तार) स्वरूपा हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण; गर्ग संहिता
14 प्रधानगोपिका (Pradhanagopika) संक्षिप्त अर्थ: सभी गोपियों में प्रधान
विवेचन: वृन्दावन की असंख्य गोपियों में श्री राधा का स्थान सर्वोच्च है। वे सभी की नेत्री, स्वामिनी और आदर्श हैं। सभी गोपियाँ उनकी सेवा करके ही श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर पाती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
15 गान्धर्वा (Gandharva) संक्षिप्त अर्थ: गंधर्वों द्वारा पूजित; सर्वश्रेष्ठ गायिका
विवेचन: गंधर्वगण स्वर्गीय गायक और संगीतज्ञ हैं। श्री राधा की गायन कला इतनी मधुर है कि स्वयं गंधर्व भी उनसे सीखते हैं और उनकी आराधना करते हैं। यह नाम उनकी कला-निपुणता को दर्शाता है।
संदर्भ: पद्म पुराण श्री राधिका स्तोत्र ।
16 चंचलाक्षी (Chanchalakshi) संक्षिप्त अर्थ: जिनके नेत्र चंचल हैं
विवेचन: उनके नेत्र प्रेम और भावों की चंचलता से भरे हुए हैं, जो श्रीकृष्ण को निरंतर आकर्षित करते हैं। उनके नेत्रों की चपलता उनके आंतरिक प्रेम-उल्लास का बाह्य प्रदर्शन है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
दामोदरप्रिया (Damodarapriya) संक्षिप्त अर्थ: दामोदर (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: 'दामोदर' श्रीकृष्ण का वह नाम है जो माता यशोदा द्वारा उन्हें ऊखल से बाँधे जाने की लीला से पड़ा। श्री राधा को श्रीकृष्ण का यह बाल-स्वरूप अत्यंत प्रिय है, अतः वे 'दामोदरप्रिया' हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
18 हरिकान्ता (Harikanta) संक्षिप्त अर्थ: हरि (श्रीकृष्ण) की प्रियतमा
विवेचन: 'हरि' का एक अर्थ है 'जो हरण कर ले'। श्रीकृष्ण भक्तों के दुःख और अपने सौंदर्य से मन हर लेते हैं। श्री राधा उन 'हरि' का भी मन हरण कर लेती हैं, अतः वे उनकी 'कान्ता' (प्रियतमा) हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
19 रमा (Ramaa) संक्षिप्त अर्थ: लक्ष्मी स्वरूपा; आनंद देने वाली
विवेचन: 'रमा' देवी लक्ष्मी का एक नाम है। श्री राधा को 'रमा' कहा जाता है क्योंकि वे समस्त ऐश्वर्य की स्रोत हैं और स्वयं महालक्ष्मी भी उन्हीं की अंश-कला हैं। वे ही श्रीकृष्ण को आनंद ('रमण') कराती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
20 वृन्दा (Vrinda) संक्षिप्त अर्थ: तुलसी स्वरूपा; समूह की नेत्री
विवेचन: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्री राधा के सोलह प्रमुख नामों में से एक 'वृन्दा' है। वे ही वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी 'वृन्दादेवी' (तुलसी) के रूप में प्रकट होती हैं और कृष्ण की लीलाओं का आयोजन करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
21 विमला (Vimala) संक्षिप्त अर्थ: जो सर्वथा निर्मल और दोषरहित हैं
विवेचन: उनमें माया का लेशमात्र भी नहीं है। वे शुद्ध सत्त्व का मूर्तिमान स्वरूप हैं। उनका हृदय, चरित्र और स्वरूप पूर्णतः निर्मल है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
22 केशवप्रिया (Keshavapriya) संक्षिप्त अर्थ: केशव (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: 'केशव' श्रीकृष्ण का एक नाम है जिसका एक अर्थ है 'सुंदर केशों वाले'। श्री राधा को कृष्ण का यह स्वरूप प्रिय है, अतः वे 'केशवप्रिया' हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
23 नन्दनन्दनवल्लभा (Nandanandanavallabha) संक्षिप्त अर्थ: नंद के नंदन (श्रीकृष्ण) की प्रेयसी
विवेचन: यह नाम ब्रज-लीला के माधुर्य को दर्शाता है। वे परब्रह्म की नहीं, बल्कि नंदबाबा के लाला, माखनचोर कन्हैया की प्रेयसी हैं। यह उनके प्रेम की सहजता और माधुर्य को प्रकट करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
यशोदानन्दवल्लभा (Yashodanandavallabha) संक्षिप्त अर्थ: यशोदा के आनंद (श्रीकृष्ण) की प्रेयसी
विवेचन: श्रीकृष्ण माता यशोदा के आनंद के स्रोत हैं। श्री राधा उन 'यशोदानंदन' की वल्लभा हैं। यह नाम भी उनके ब्रज-भाव की घनिष्ठता को व्यक्त करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
25 सर्वमंगला (Sarvamangala) संक्षिप्त अर्थ: जो सभी का मंगल करती हैं
विवेचन: वे मंगल का साक्षात् स्वरूप हैं। उनकी कृपा, उनका नाम, उनका स्मरण - सब कुछ भक्तों के लिए परम मंगलकारी है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
26 गोवर्धनचरी (Govardhanachari) संक्षिप्त अर्थ: गोवर्धन पर्वत पर विचरण करने वाली
विवेचन: गोवर्धन पर्वत राधा-कृष्ण की अंतरंग लीलाओं का प्रमुख स्थल है। श्री राधा अपनी सखियों के साथ वहाँ विचरण करती हैं, कंदराओं में लीला करती हैं, इसलिए वे 'गोवर्धनचरी' कहलाती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
27 गोपानन्दकरी (Gopanandakari) संक्षिप्त अर्थ: ग्वाल-बालों को आनंद देने वाली
विवेचन: वे केवल श्रीकृष्ण को ही नहीं, अपितु उनके सभी सखाओं, ग्वाल-बालों को भी अपने वात्सल्य और प्रेम से आनंद प्रदान करती हैं। वे संपूर्ण ब्रजमंडल की आनंद-दायिनी हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
28 त्रैलोक्यसुन्दरी (Trailokyasundari) संक्षिप्त अर्थ: तीनों लोकों में सबसे सुंदर
विवेचन: उनकी सुंदरता अनुपम और अलौकिक है। तीनों लोकों - स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल - में उनके समान कोई सुंदरी नहीं है। रति, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की सुंदरता उनके सौंदर्य-सिंधु की एक बूँद मात्र है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
29 विकसितमुखाम्बुजा (Vikasitamukhambuja) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख खिले हुए कमल के समान है
विवेचन: उनका मुखमंडल सदैव प्रेम और आनंद से प्रफुल्लित रहता है, जैसे पूर्ण खिला हुआ कमल। यह उनके आंतरिक आनंद और सौंदर्य का प्रतीक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
30 पद्मा (Padma) संक्षिप्त अर्थ: कमल के समान सुंदर; लक्ष्मी स्वरूपा
विवेचन: 'पद्म' या कमल पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक है। उनके नेत्र, हाथ, चरण सभी कमल के समान हैं। यह नाम उनके लक्ष्मी-स्वरूप को भी इंगित करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
31 पद्महस्ता (Padmahasta) संक्षिप्त अर्थ: जिनके हाथ कमल के समान कोमल और सुंदर हैं
विवेचन: उनके कर-कमल अत्यंत कोमल हैं और उन्हीं हाथों से वे श्रीकृष्ण की सेवा करती हैं। यह नाम उनके शारीरिक सौंदर्य और सेवा-भाव को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
32 पवित्रा (Pavitra) संक्षिप्त अर्थ: परम पवित्र
विवेचन: वे स्वयं पवित्रता की मूर्ति हैं। उनका नाम, कथा और स्मरण करने मात्र से तीनों भुवन पवित्र हो जाते हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ब्रह्मवैवर्त पुराण।
33 सत्या (Satya) संक्षिप्त अर्थ: सत्य स्वरूपा
विवेचन: वे परम सत्य का स्त्री-स्वरूप हैं। वे शाश्वत और नित्य हैं। उनका अस्तित्व किसी अन्य पर निर्भर नहीं है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
34 कृष्णवामांगसम्भूता (Krishna-Vamanga-Sambhuta) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के वाम अंग से प्रकट हुईं
विवेचन: यह नाम उनके दिव्य और अविभाज्य मूल को इंगित करता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, गोलोक धाम में परब्रह्म श्रीकृष्ण ने स्वयं को दो रूपों में विभक्त किया। उनके दक्षिण अंग से पुरुष (कृष्ण) और वाम अंग से प्रकृति (राधा) का प्राकट्य हुआ। यह दर्शाता है कि वे श्रीकृष्ण से भिन्न नहीं हैं, बल्कि उनका ही स्त्री-रूप हैं, जो प्रेम और आनंद की लीला के लिए प्रकट हुआ है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड।
35 परमेश्वरी (Parameshwari) संक्षिप्त अर्थ: परम ईश्वरी
विवेचन: वे सभी ईश्वरों और देवों की भी ईश्वरी हैं। वे मूल शक्ति हैं जिनसे अन्य सभी देवियाँ प्रकट होती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
36 कृष्णस्वरूपीणी (Krishnaswarupini) संक्षिप्त अर्थ: जिनका स्वरूप श्रीकृष्ण के समान है
विवेचन: रूप, गुण, तेज और स्वभाव में वे श्रीकृष्ण के ही समान हैं। लीला में वे कभी-कभी कृष्ण का रूप भी धारण कर लेती हैं। यह उनके और कृष्ण के बीच की तात्विक अभिन्नता को दर्शाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।।
37 वृन्दावनविहारिणी (Vrindavanaviharini) संक्षिप्त अर्थ: वृन्दावन में विहार (क्रीड़ा) करने वाली
विवेचन: उनका प्रिय लीला-स्थल वृन्दावन है। वे अपनी सखियों और श्रीकृष्ण के साथ वृन्दावन के कुंजों और वनों में नित्य विहार करती हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण गर्ग संहिता
38 चन्द्रावली (Chandravali) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी आभा में अनेक चंद्रमाओं की कांति है
विवेचन: 'चन्द्रावली' का अर्थ है चंद्रमाओं की पंक्ति। उनके सौंदर्य में अनंत चंद्रमाओं की शीतलता और प्रकाश है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के षोडशनाम स्तोत्र में यह एक प्रमुख नाम है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
39 चन्द्रकान्ता (Chandrakanta) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी कांति चंद्रमा के समान है
विवेचन: उनका मुख और शरीर चंद्रमा के समान शीतल, सुंदर और प्रकाशमान है। श्रीकृष्ण प्रसन्न होकर उन्हें इस नाम से पुकारते हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
40 शरच्चन्द्रप्रभानना (Sharacchandraprabhanana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख शरद् पूर्णिमा के चंद्रमा के समान है
विवेचन: शरद् ऋतु का चंद्रमा सबसे निर्मल, पूर्ण और कांतिमान होता है। उनका मुखमंडल उसी शरद्-चंद्र के समान तेजोमय और सुंदर है। यह नाम महर्षि वेदव्यास द्वारा दिया गया बताया जाता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
41 माधवसङ्गिनी (Madhavasangini) संक्षिप्त अर्थ: माधव (श्रीकृष्ण) की संगिनी
विवेचन: वे माधव की नित्य संगिनी हैं। 'माधव' अर्थात् 'मा' (लक्ष्मी/राधा) के 'धव' (पति/स्वामी)। यह नाम दर्शाता है कि कृष्ण भी राधा के होने से ही 'माधव' कहलाते हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
42 कीर्तिदाकन्यका (Kirtidakanyaka) संक्षिप्त अर्थ: कीर्तिदा की कन्या
विवेचन: लौकिक लीला में उनकी माता का नाम कीर्तिदा था। वे वृषभानु की पत्नी और राधा की मैया हैं। यह नाम उनके वात्सल्य-भाव से जुड़े भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
43 विशाखासखि (Vishakhasakhi) संक्षिप्त अर्थ: विशाखा की सखी
विवेचन: विशाखा श्री राधा की अष्टसखियों में से एक, उनकी सबसे प्रिय और अंतरंग सखी हैं। यह नाम राधा के सख्य-भाव और उनकी प्रिय सखियों के साथ उनके संबंधों को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
44 ललितासखि (Lalitasakhi) संक्षिप्त अर्थ: ललिता की सखी
विवेचन: ललिता भी राधा की अष्टसखियों में प्रमुख हैं, जो स्वभाव से थोड़ी प्रखर हैं और राधा-कृष्ण के मान-मनुहार की लीलाओं का आयोजन करती हैं। श्री राधा ललिता के प्राणों का आधार हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता श्री राधिका स्तोत्र ।
45 अनंगमञ्जरी (Anangamanjari) संक्षिप्त अर्थ: कामदेव की मंजरी (कली) स्वरूपा
विवेचन: वे प्रेम की साक्षात् मूर्ति हैं, जो कामदेव (अनंग) को भी जीवन देने वाली मंजरी के समान हैं। यह नाम उनके छोटे बहन के रूप में भी आता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
46 सौम्यरूपा (Saumyarupa) संक्षिप्त अर्थ: जिनका रूप अत्यंत सौम्य और शांत है
विवेचन: यद्यपि वे परम शक्ति हैं, उनका स्वरूप भक्तों के लिए अत्यंत सौम्य, शांत और करुणामय है। उनका सौम्य रूप भक्तों के हृदय को शांति प्रदान करता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
47 विचित्रवासिनी (Vichitravasini) संक्षिप्त अर्थ: जो विचित्र (अद्भुत) वस्त्र धारण करती हैं
विवेचन: उनके वस्त्र अलौकिक और नित्य नवीन होते हैं। वे अपनी कला से स्वयं को और श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए अद्भुत श्रृंगार और वस्त्र धारण करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
48 हृद्या (Hridya) संक्षिप्त अर्थ: जो हृदय को प्रिय लगने वाली हैं
विवेचन: उनका स्वरूप, नाम और कथा सभी के हृदय को प्रिय और आकर्षक लगते हैं। वे श्रीकृष्ण के हृदय में निवास करती हैं और भक्तों के हृदय को भी अपना निवास बनाती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
49 दयारूपा (Dayarupa) संक्षिप्त अर्थ: दया की साक्षात् मूर्ति
विवेचन: वे करुणा और दया का स्वरूप हैं। उनकी दया से ही जीव को भक्ति प्राप्त होती है। उनका हृदय भक्तों के दुःख से तुरंत द्रवित हो जाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
50 गोकुलानन्दकर्त्री (Gokulanandakartri) संक्षिप्त अर्थ: गोकुल को आनंद प्रदान करने वाली
विवेचन: वे संपूर्ण गोकुल-मंडल के आनंद का कारण हैं। उनकी उपस्थिति से ही गोकुल में उत्सव और आनंद का वातावरण रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
51 रासक्रीडाकरी (Rasakridakari) संक्षिप्त अर्थ: रास क्रीड़ा करने वाली
विवेचन: वे रासलीला की नायिका हैं और श्रीकृष्ण के साथ रास क्रीड़ा का विस्तार करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
52 रासवासिनी (Rasavasini) संक्षिप्त अर्थ: जो रास में निवास करती हैं
विवेचन: रासमंडल उनका नित्य निवास स्थान है। वे सदा रास के भाव में ही स्थित रहती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
53 सुन्दरी (Sundari) संक्षिप्त अर्थ: परम सुंदरी
विवेचन: यह उनके अलौकिक सौंदर्य का परिचायक है। वे सौंदर्य की परिभाषा हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
54 गोपवेशमनोहरा (Gopaveshamanohara) संक्षिप्त अर्थ: गोपी के वेश में मन को हरने वाली
विवेचन: उनका सहज, सरल गोपी वेश भी अत्यंत मनोहर है और श्रीकृष्ण के मन को हर लेता है। यह उनके माधुर्य भाव की पराकाष्ठा है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
55 कृष्णांगवासिनी (Krishnangavasini) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के अंगों में निवास करने वाली
विवेचन: वे श्रीकृष्ण के हृदय और उनके अंगों में अभिन्न रूप से निवास करती हैं। यह उनकी अद्वैत स्थिति का प्रतीक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
56 यौवनस्था (Yauvanastha) संक्षिप्त अर्थ: जो नित्य यौवन में स्थित हैं
विवेचन: वे नित्य-किशोरी हैं। उनकी अवस्था सदा सोलह वर्ष की रहती है। उनका यौवन दिव्य और अप्राकृत है, जो कभी क्षीण नहीं होता।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
57 मधुरा (Madhura) संक्षिप्त अर्थ: मधुरता की मूर्ति
विवेचन: उनका रूप, वाणी, लीला, स्वभाव - सब कुछ मधुर है। वे माधुर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
58 कृपावती (Kripavati) संक्षिप्त अर्थ: अत्यंत कृपा करने वाली
विवेचन: वे कृपा की सागर हैं। बिना किसी योग्यता के भी वे जीवों पर अहैतुकी कृपा करती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
59 तरुणी (Taruni) संक्षिप्त अर्थ: नित्य नवीन यौवन से संपन्न
विवेचन: 'तरुणी' का अर्थ है नव-यौवना। वे नित्य नवीन और स्फूर्तिवान रहती हैं। उनका सौंदर्य और उत्साह सदा एक-सा बना रहता है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
60 दुःखहन्त्री (Duhkhahantri) संक्षिप्त अर्थ: सभी दुःखों का नाश करने वाली
विवेचन: उनका स्मरण मात्र भक्तों के आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक - तीनों प्रकार के दुःखों का नाश कर देता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
61 रतिप्रदा (Ratiprada) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण के चरणों में रति (प्रेम) प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति स्वाभाविक और निश्छल प्रेम को जाग्रत करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
62 गतिप्रदा (Gatiprada) संक्षिप्त अर्थ: परम गति (आश्रय) प्रदान करने वाली
विवेचन: वे भक्तों के लिए परम आश्रय और अंतिम गति हैं। उनकी शरण लेने के बाद किसी और आश्रय की आवश्यकता नहीं रहती।
संदर्भ: गर्ग संहिता
63 आनन्दप्रदायिनी (Anandapradayini) संक्षिप्त अर्थ: आनंद प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ह्लादिनी शक्ति होने के कारण आनंद का स्रोत हैं और अपने आश्रितों को दिव्य आनंद प्रदान करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
64 धृति (Dhriti) संक्षिप्त अर्थ: धैर्य स्वरूपा
विवेचन: वे धैर्य की मूर्ति हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वे भक्तों को धैर्य प्रदान करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
65 लज्जा (Lajja) संक्षिप्त अर्थ: लज्जा की अधिष्ठात्री देवी
विवेचन: लज्जा स्त्री का एक स्वाभाविक गुण और आभूषण है। श्री राधा में यह गुण अपनी पराकाष्ठा पर है, जो उनके शील और माधुर्य को और भी बढ़ा देता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
66 कान्ति (Kanti) संक्षिप्त अर्थ: दिव्य कांति (आभा) स्वरूपा
विवेचन: उनके शरीर से निकलने वाली सुनहरी आभा, जिसे 'गौर-कांति' कहते हैं, से संपूर्ण गोलोक और वृन्दावन प्रकाशित रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
67 पुष्टि (Pushti) संक्षिप्त अर्थ: पुष्टि (पोषण) प्रदान करने वाली शक्ति
विवेचन: वे भक्ति का पोषण करती हैं। वे वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग की स्वामिनी हैं, जो भगवान की कृपा को ही एकमात्र साधन मानता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
68 स्मृति (Smriti) संक्षिप्त अर्थ: स्मृति शक्ति स्वरूपा
विवेचन: वे सभी ज्ञान और स्मृतियों की आधार हैं। उनकी कृपा से ही भक्तों को भगवान का नित्य स्मरण बना रहता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
69 तुष्टि (Tushti) संक्षिप्त अर्थ: संतोष स्वरूपा
विवेचन: वे संतोष की मूर्ति हैं। उनकी कृपा पाने के बाद भक्त को पूर्ण संतोष मिल जाता है और किसी सांसारिक वस्तु की इच्छा नहीं रहती।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
70 मति (Mati) संक्षिप्त अर्थ: बुद्धि स्वरूपा
विवेचन: वे शुद्ध और सात्विक बुद्धि की अधिष्ठात्री हैं। उनकी कृपा से भक्त की बुद्धि सांसारिक विषयों से हटकर भगवान में लगती है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
71 कला (Kala) संक्षिप्त अर्थ: चौंसठ कलाओं में निपुण
विवेचन: वे गायन, वादन, नृत्य, चित्रकारी आदि सभी 64 कलाओं में पारंगत हैं और इन कलाओं का प्रयोग श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए करती हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
72 कलावती (Kalavati) संक्षिप्त अर्थ: कलाओं की स्वामिनी
विवेचन: यह नाम उनकी कला-निपुणता को दर्शाता है। लौकिक लीला में उनकी माता का नाम भी 'कलावती' (कीर्तिदा का एक नाम) था, जो यह इंगित करता है कि कला स्वयं उनकी माता है।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण । राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
73 वीणापाणि (Vinapani) संक्षिप्त अर्थ: जिनके हाथ में वीणा है
विवेचन: जैसे देवी सरस्वती के हाथ में वीणा होती है, उसी प्रकार श्री राधा भी वीणा वादन में निपुण हैं। उनका वीणा वादन सुनकर श्रीकृष्ण भी मोहित हो जाते हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
74 स्मितमुखी (Smitamukhi) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख सदैव मुस्कान से युक्त रहता है
विवेचन: उनके मुख पर सदैव एक मधुर, रहस्यमयी मुस्कान रहती है, जो उनके आंतरिक आनंद और प्रेम का प्रतीक है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
75 रक्ताशोकलता (Raktashokalata) संक्षिप्त अर्थ: लाल अशोक की लता के समान
विवेचन: उनके कोमल अंग और लालिमा युक्त सौंदर्य की तुलना लाल अशोक की पुष्प-लता से की जाती है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
76 विष्णुप्रिया (Vishnupriya) संक्षिप्त अर्थ: विष्णु (श्रीकृष्ण) की प्रिया
विवेचन: श्रीकृष्ण ही परम विष्णु हैं। यह नाम दर्शाता है कि वे सर्वव्यापी भगवान विष्णु की भी परम प्रेयसी हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
77 विष्णोरंकनिवासिनी (Vishnorankanivasini) संक्षिप्त अर्थ: विष्णु (श्रीकृष्ण) की गोद में निवास करने वाली
विवेचन: वे सदा श्रीकृष्ण की गोद में या उनके हृदय में निवास करती हैं, जो उनके और भगवान के बीच की परम निकटता और प्रेम को दर्शाता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
78 मूलप्रकृति (Mula Prakriti) संक्षिप्त अर्थ: सभी सृष्टियों की मूल प्रकृति
विवेचन: वे ही मूल शक्ति हैं जिनसे भौतिक और आध्यात्मिक जगत की सभी प्रकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। सांख्य दर्शन की प्रकृति भी उन्हीं का एक अंश मात्र है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
79 ईश्वरी (Ishwari) संक्षिप्त अर्थ: सबकी नियंत्रक और स्वामिनी
विवेचन: वे परम नियंत्रक हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि भी उनके निर्देश पर ही कार्य करते हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
80 गोविन्दप्रणयाधारा (Govindapranayadhara) संक्षिप्त अर्थ: गोविन्द के प्रेम का आधार
विवेचन: गोविन्द (श्रीकृष्ण) का सारा प्रेम उन्हीं में टिका हुआ है। वे ही कृष्ण के प्रेम की पात्र और आधार दोनों हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
81 जगदानन्दिसद्यशः (Jagadanandisadyashah) संक्षिप्त अर्थ: जिनका निर्मल यश जगत को आनंद देता है
विवेचन: नारद जैसे देवर्षि भी उनके यश का गान करते हैं, जिसे सुनकर संपूर्ण जगत आनंदित होता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
82 कारुण्यविद्रवद्देहा (Karunyavidravaddeha) संक्षिप्त अर्थ: जिनका शरीर करुणा से द्रवित रहता है
विवेचन: वे करुणा की साक्षात् मूर्ति हैं। भक्तों का दुःख देखकर उनका शरीर मानो करुणा से पिघल जाता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
83 माधुर्यघटा (Madhuryaghata) संक्षिप्त अर्थ: माधुर्य का घड़ा (समूह)
विवेचन: वे माधुर्य का घनीभूत स्वरूप हैं, मानो सारा माधुर्य एकत्रित होकर उन्हीं के रूप में प्रकट हुआ हो।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
84 गोकुलत्वप्रदायिनी (Gokulatvapradayini) संक्षिप्त अर्थ: गोकुल-भाव प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों को गोकुल का सहज, मधुर प्रेम-भाव प्रदान करती हैं, जिससे वे भगवान को अपना सखा, पुत्र या प्रियतम मान सकते हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
85 प्रेमप्रिया (Premapriya) संक्षिप्त अर्थ: जिन्हें प्रेम प्रिय है
विवेचन: उन्हें किसी भी अन्य वस्तु से अधिक शुद्ध और निश्छल प्रेम ही प्रिय है। वे ज्ञान, योग या कर्मकांड से नहीं, केवल प्रेम से ही वश में होती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
86 प्रेमरूपा (Premarupa) संक्षिप्त अर्थ: प्रेम का साक्षात् स्वरूप
विवेचन: वे प्रेम की परिभाषा और उसका मूर्तिमान स्वरूप हैं। प्रेम क्या है, यह उन्हें देखकर ही जाना जा सकता है।
संदर्भ: गर्ग संहिता ।
87 प्रेमदा (Premada) संक्षिप्त अर्थ: प्रेम प्रदान करने वाली
विवेचन: वे ही भक्तों के सूखे हृदय में भगवत्-प्रेम का संचार करती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता 27।
88 भक्तिदा (Bhaktida) संक्षिप्त अर्थ: भक्ति प्रदान करने वाली
विवेचन: उनकी कृपा के बिना सच्ची भक्ति मिलना असंभव है। वे ही भक्ति की देवी हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण ।
89 सर्वाद्या (Sarvadya) संक्षिप्त अर्थ: जो सबसे आदि (पहले) हैं
विवेचन: वे ही सभी कारणों का मूल कारण हैं। सृष्टि में उनसे पहले कुछ भी नहीं था।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
90 गोविन्दमोहिनी (Govindamohini) संक्षिप्त अर्थ: गोविन्द को मोहित करने वाली
विवेचन: वे अपने रूप, गुण और प्रेम से इंद्रियों के स्वामी 'गोविन्द' को भी मोहित कर लेती हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
91 सकलेप्सितदात्री (Saklepsitadatri) संक्षिप्त अर्थ: सभी अभीष्ट वस्तुओं को देने वाली
विवेचन: वे भक्तों की सभी मनोकामनाओं को, चाहे वे भौतिक हों या आध्यात्मिक, पूर्ण करने में समर्थ हैं।
संदर्भ: गर्ग संहिता
92 भवव्याधिविनाशिनी (Bhavavyadhivinashini) संक्षिप्त अर्थ: संसार रूपी रोग का विनाश करने वाली
विवेचन: वे जन्म-मृत्यु के चक्र रूपी संसार-रोग की अचूक औषधि हैं। उनका नाम-स्मरण इस रोग का नाश कर देता है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
93 परात्परतरा (Paratparatara) संक्षिप्त अर्थ: जो पर से भी पर हैं
विवेचन: वे श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम हैं। आध्यात्मिक जगत में उनसे ऊँचा कोई तत्व नहीं है।
संदर्भ: पद्म पुराण श्री राधा स्तोत्र 28।
94 पूर्णा (Purna) संक्षिप्त अर्थ: जो स्वयं में पूर्ण हैं
विवेचन: वे स्वयं में पूर्ण हैं और उन्हें किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता नहीं है। वे पूर्ण शक्ति हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
95 पूर्णचन्द्रविमानना (Purnachandravimanana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान है
विवेचन: 'विमानना' का अर्थ है 'मुखमंडल'। उनका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान निष्कलंक, शीतल और प्रकाशमान है।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
96 भुक्तिमुक्तिप्रदा (Bhuktimuktiprada) संक्षिप्त अर्थ: भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली
विवेचन: वे अपने भक्तों को उनकी इच्छानुसार सांसारिक भोग (भुक्ति) और आध्यात्मिक मोक्ष (मुक्ति) दोनों प्रदान करने में समर्थ हैं।
संदर्भ: पद्म पुराण ।
97 नित्यनूतना (Nityanutana) संक्षिप्त अर्थ: जो नित्य नवीन हैं
विवेचन: उनका सौंदर्य और लीलाएं नित्य नवीन रहती हैं। श्रीकृष्ण हर क्षण उनमें एक नया सौंदर्य और माधुर्य पाते हैं, इसलिए उनका प्रेम कभी पुराना नहीं पड़ता।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
98 गौरचन्द्रानना (Gaurachandranana) संक्षिप्त अर्थ: जिनका मुख गोरे चंद्रमा के समान है
विवेचन: उनकी देह का वर्ण तप्त स्वर्ण के समान 'गौर' है। उनका मुख उस सुनहरे चंद्रमा के समान है जो अत्यंत दुर्लभ और आकर्षक है।
संदर्भ: गर्ग संहिता
99 मन्त्रराजैकसिद्धिदा (Mantrarajaikasiddhida) संक्षिप्त अर्थ: मन्त्रराज (अठारह-अक्षर गोपाल मंत्र) की एकमात्र सिद्धि देने वाली
विवेचन: वैष्णव परंपरा में अठारह-अक्षर का गोपाल मंत्र 'मंत्रराज' कहलाता है। उस मंत्र की अंतिम सिद्धि श्री राधा की कृपा से ही प्राप्त होती है। वे ही उस मंत्र का फल देने वाली हैं।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
100 अष्टादशाक्षरफला (Ashtadashaksharaphala) संक्षिप्त अर्थ: अठारह-अक्षर मंत्र का फल स्वरूपा
विवेचन: वे केवल मंत्र का फल देती ही नहीं, बल्कि स्वयं ही उस मंत्र का फल हैं। मंत्र का जप करके अंततः उन्हीं की प्राप्ति होती है।
संदर्भ: राधा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र ।
101 गोवर्धनगुहागेहा (Govardhanaguhageha) संक्षिप्त अर्थ: गोवर्धन की गुफा ही जिनका घर है
विवेचन: गोवर्धन की रहस्यमयी गुफाएं उनकी और कृष्ण की सबसे अंतरंग लीलाओं का स्थल हैं। वे गुफाएं ही उनका वास्तविक घर हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
102 यमुनाभगिनी (Yamunabhagini) संक्षिप्त अर्थ: यमुना जी की बहन
विवेचन: श्री यमुना जी सूर्य की पुत्री हैं और श्री राधा वृषभानु (जो सूर्य के अंश माने जाते हैं) की पुत्री हैं। इस नाते वे यमुना जी को अपनी बहन मानती हैं और उनसे अगाध प्रेम करती हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
103 स्वयंनिर्वाणदात्री (Swayamnirvanadatri) संक्षिप्त अर्थ: स्वयं निर्वाण देने वाली
विवेचन: यह नाम ब्रह्मवैवर्त पुराण की उस व्याख्या पर आधारित है जहाँ 'रा' दानवाचक और 'धा' निर्वाणवाचक है। वे स्वयं ही मोक्ष प्रदान करती हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण ।
104 गाढबुद्धिबला (Gadhabuddhibala) संक्षिप्त अर्थ: जिनकी बुद्धि और बल अत्यंत गहन है
विवेचन: वे केवल प्रेम और माधुर्य में ही नहीं, बल्कि बुद्धि और शक्ति में भी गहन हैं। वे अपनी बुद्धि से लीला में श्रीकृष्ण को भी पराजित कर देती हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
105 वंशीविकर्षिणी (Vamshivikarshini) संक्षिप्त अर्थ: वंशी को भी अपनी ओर खींच लेने वाली
विवेचन: श्रीकृष्ण की वंशी तीनों लोकों को आकर्षित करती है, पर श्री राधा अपने प्रेम और बुद्धि-बल से उस वंशी को भी कृष्ण के होठों से खींच लेती हैं, जो उनके सर्वोच्च आकर्षण को सिद्ध करता है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
106 कृष्णप्राणाधिका (Krishnapranadhika) संक्षिप्त अर्थ: श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय
विवेचन: यह नाम उनके प्रेम की पराकाष्ठा है। भगवान को अपने प्राणों से अधिक कुछ भी प्रिय नहीं होता, किंतु श्री राधा उन्हें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं।
संदर्भ: ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड ।
107 व्रजचन्द्रेन्द्रियग्रामविश्रामविधुशालिका (Vrajachandrendriyagramavishramavidhushalika) संक्षिप्त अर्थ: व्रज के चंद्रमा (श्रीकृष्ण) की समस्त इंद्रियों के लिए विश्राम की शीतल कुटिया
विवेचन: यह एक अत्यंत गहन नाम है। इसका अर्थ है कि व्रज के चंद्रमा श्रीकृष्ण की समस्त इंद्रियाँ (आँख, कान, नाक आदि) केवल श्री राधा में ही आकर पूर्ण विश्राम और शांति पाती हैं। वे ही कृष्ण की इंद्रियों की अंतिम तृप्ति हैं।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।
108 कृष्णसर्वेन्द्रियोन्मादीराधेत्यक्षरयुग्मकम् (Krishnasarvendriyonmadiradhetyaksharayugmakam) संक्षिप्त अर्थ: 'रा-धा' यह दो अक्षरों का युग्म श्रीकृष्ण की सभी इंद्रियों को उन्मत्त (मदहोश) कर देता है
विवेचन: यह नाम श्री राधा नाम की महिमा का शिखर है। 'रा' और 'धा' - यह दो अक्षर मात्र ही इतने शक्तिशाली हैं कि वे परब्रह्म श्रीकृष्ण की समस्त इंद्रियों को प्रेम में पागल और उन्मत्त करने की क्षमता रखते हैं। यह सिद्ध करता है कि नाम और नामी में कोई भेद नहीं है।
संदर्भ: श्री राधिका स्तोत्र ।


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