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वह शक्ति, जिनसे उत्पन्न हुईं सभी महाविद्याएँ — त्रिदेव भी करते हैं स्तुति! जानिए देवी महामाया का रहस्य!

वह शक्ति, जिनसे उत्पन्न हुईं सभी महाविद्याएँ — त्रिदेव भी करते हैं स्तुति! जानिए देवी महामाया का रहस्य!AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

उत्पत्ति की कथा व स्रोत

महामाया को संसार और माया (भ्रम उत्पन्न करने वाली शक्ति) का मूर्तिमान स्वरूप माना जाता है। देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) की कथा के प्रारम्भ में भगवान विष्णु को योगनिद्रा में सुलाकर रखने वाली शक्ति को ब्रह्मा किया है। शुम्भ-निशुम्भ के वध की कथा में भी देवी को महामाया कहा गया है, जो संपूर्ण विश्व को मोहित करने वाली हैं विष्णु जब प्रलयकालीन निद्रा में थे और मधु-कैटभ नामक दैत्य ब्रह्माजी पर आक्रमण करने आए, तब ब्रह्माजी ने महामाया योगनिद्रा की स्तुति की।देवी महामाया ने भगवान विष्णु को जगाया ताकि वे राक्षसों का संहार कर सकें। इस प्रकार देवी महामाया को विष्णु की योगनिद्रा और जगद्धात्री (संसार को धारण करने वाली) कहा गया। स्कंद पुराण तथा देवी भागवत पुराण में भी महामाया को आद्यादेवी के रूप में वर्णित किया गया है। ओरिसा की लोक-परम्परा में मान्यता है कि महामाया स्वयं विष्णु की योगनिद्रा शक्ति हैं ।

आध्यात्मिक एवं तांत्रिक महत्त्व

महामाया नाम से ही स्पष्ट है – यह सम्पूर्ण जगत को मोह-माया में बाँधने रूपी पर्दा हटाती हैं तो वहीं दुष्टों को मोह में फँसाकर उनका नाश भी करवाती हैं। तांत्रिक साधना में महामाया को आदिशक्ति कालिका का ही सर्वव्यापी रूप माना जाता है। कालिका पुराण में महामाया का स्वरूप दस भुजाओं वाली वर्णित है, जो कमल के आसन पर स्थित हैं। 64 योगिनियों के चक्र में महामाया को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है – माना जाता है कि चौंसठ योगिनियों में वही प्रधान हैं और उनकी मूर्ति अन्य योगिनियों से आकार में बड़ी भी होती है। महामाया को शव-छेदन (शव के सिर को काटने) जैसी उग्र तांत्रिक क्रिया की अधिष्ठात्री भी कहा गया है, जिसका प्रतीक है कि संसारिक आसक्ति रूपी “शव” को काटकर अलग किया जाए। भक्तों के लिए महामाया जगदम्बा हैं – उनकी माया से ही संसार चलता है और उनकी कृपा से भक्त मोक्ष के मार्ग पर बढ़ता है।

पूजा विधि और अनुष्ठान

महामाया की उपासना सामान्यतः दुर्गा या काली के रूप में ही की जाती है। नवरात्रि में विशेष रूप से अष्टमी-नवमी तिथि को उन्हें दुर्गा सप्तशती के मंत्रों द्वारा पूजते हैं।महामाया को प्रसन्न करने के लिए नारियल, फल और यदि तांत्रिक विधि अपनाई जाए तो बलि-प्रदान तक चढ़ाया जाता है। साथ ही, देवी की कृपा प्राप्त करने हेतु दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय का श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है।, जिसमें उनकी योगनिद्रा रूपी महिमा गाई गई है। तांत्रिक साधक मध्यरात्रि में श्मशान में महामाया (काली) का मंत्र जप कर सिद्धियाँ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। श्री चंडी पाठ में आए मंत्र “दुर्गे समस्यात्मिका जगन्माता महामाया” इत्यादि द्वारा उनकी वंदना की जाती है। सामान्य भक्त महामाया से प्रार्थना करते हैं कि हे महामाये! हमारी मोहमाया दूर करो और सत्य का प्रकाश दो। उनकी पूजा में भक्तभाव मुख्य है – एक छोटे बच्चे की तरह सरल हृदय होकर जो महामाया शारदा (माता) को पुकारता है, माता उसकी रक्षा अवश्य करती हैं।

प्रमुख मंदिर और उपासना स्थल

महामाया के नाम से भारत में कई शक्तिपीठ एवं मंदिर हैं। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के निकट प्रसिध्द हीरापुर चौसठ योगिनी मंदिर को “महामाया मंदिर” भी कहा जाता है । इस प्राचीन वृत्ताकार मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्तियाँ हैं और ठीक प्रवेश के सामने सर्वप्रथम महामाया की बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जिसकी प्रभा सबसे विशिष्ट है । वहाँ स्थानीय ग्रामीण देवी को ग्रामदेवी के रूप में पूजते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में रतनपुर (जिला बिलासपुर) का महामाया देवी मंदिर अत्यन्त प्रसिद्ध है , जहाँ देवी दुर्गा को महामाया रूप में पूजा जाता है । इसी प्रकार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी पुरानी बस्ती में महामाया मंदिर है । ये मंदिर शक्तिपीठ माने जाते हैं जहाँ नवरात्रि में महानुष्ठान होते हैं। प्राचीन काल में त्रिपुरा राज्य में भी महामाया नाम से देवी की अराधना होती थी। इन मंदिरों में दुर्गोत्सव पर विशेष मेले व समारोह होते हैं। श्रद्धालु महामाया के चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित कर सुख-समृद्धि और मोहमुक्ति की कामना करते हैं।

ग्रंथों में उल्लेख

महामाया का उल्लेख प्रमुखतः मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में मिलता है। वहाँ ब्रह्माजी कहते हैं: “त्वं स्वाहा त्वं स्वधा ... त्वं महामाया, जगदम्बिका” – अर्थात् हे देवि, आप ही स्वाहा-स्वधा हैं, आप ही महान विद्या, महामाया और जगत की अंबिका (माता) हैं। देवी भागवत पुराण में त्रिदेव स्वयं देवी महामाया की स्तुति करते हैं कि “आप ही आदिशक्ति महामाया हैं, समस्त ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली जननी हैं”. तांत्रिक ग्रंथ रुद्रयामल तंत्र में भी महामाया को ही पराशक्ति कहा गया है, जिनसे दस महाविद्याओं सहित समस्त योगिनी शक्तियाँ प्रकट हुईं। कालिका पुराण (14वीं सदी) में महामाया की प्रतिमा का वर्णन मिलता है । वहाँ देवी को दस भुजाओं से युक्त, कमल पर आरूढ़ तथा अन्य योगिनियों से उच्च स्थान वाली बताया गया है। इन शास्त्रीय प्रमाणों से स्पष्ट है कि महामाया को आद्या शक्ति और संपूर्ण योगिनी-चक्र की अधिपति माना गया है । भक्तों के लिए वे परमाराध्या भगवती हैं जिनकी शरण में जाने से संसार की माया कट जाती है।


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पढ़िए और जानिए माँ मातंगी साधना की शक्तिशाली विधि, रहस्य, मंत्र और वाक् सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग !
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वह शक्ति, जिनसे उत्पन्न हुईं सभी महाविद्याएँ — त्रिदेव भी करते हैं स्तुति! जानिए देवी महामाया का रहस्य!AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

उत्पत्ति की कथा व स्रोत

महामाया को संसार और माया (भ्रम उत्पन्न करने वाली शक्ति) का मूर्तिमान स्वरूप माना जाता है। देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) की कथा के प्रारम्भ में भगवान विष्णु को योगनिद्रा में सुलाकर रखने वाली शक्ति को ब्रह्मा किया है। शुम्भ-निशुम्भ के वध की कथा में भी देवी को महामाया कहा गया है, जो संपूर्ण विश्व को मोहित करने वाली हैं विष्णु जब प्रलयकालीन निद्रा में थे और मधु-कैटभ नामक दैत्य ब्रह्माजी पर आक्रमण करने आए, तब ब्रह्माजी ने महामाया योगनिद्रा की स्तुति की।देवी महामाया ने भगवान विष्णु को जगाया ताकि वे राक्षसों का संहार कर सकें। इस प्रकार देवी महामाया को विष्णु की योगनिद्रा और जगद्धात्री (संसार को धारण करने वाली) कहा गया। स्कंद पुराण तथा देवी भागवत पुराण में भी महामाया को आद्यादेवी के रूप में वर्णित किया गया है। ओरिसा की लोक-परम्परा में मान्यता है कि महामाया स्वयं विष्णु की योगनिद्रा शक्ति हैं ।

आध्यात्मिक एवं तांत्रिक महत्त्व

महामाया नाम से ही स्पष्ट है – यह सम्पूर्ण जगत को मोह-माया में बाँधने रूपी पर्दा हटाती हैं तो वहीं दुष्टों को मोह में फँसाकर उनका नाश भी करवाती हैं। तांत्रिक साधना में महामाया को आदिशक्ति कालिका का ही सर्वव्यापी रूप माना जाता है। कालिका पुराण में महामाया का स्वरूप दस भुजाओं वाली वर्णित है, जो कमल के आसन पर स्थित हैं। 64 योगिनियों के चक्र में महामाया को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है – माना जाता है कि चौंसठ योगिनियों में वही प्रधान हैं और उनकी मूर्ति अन्य योगिनियों से आकार में बड़ी भी होती है। महामाया को शव-छेदन (शव के सिर को काटने) जैसी उग्र तांत्रिक क्रिया की अधिष्ठात्री भी कहा गया है, जिसका प्रतीक है कि संसारिक आसक्ति रूपी “शव” को काटकर अलग किया जाए। भक्तों के लिए महामाया जगदम्बा हैं – उनकी माया से ही संसार चलता है और उनकी कृपा से भक्त मोक्ष के मार्ग पर बढ़ता है।

पूजा विधि और अनुष्ठान

महामाया की उपासना सामान्यतः दुर्गा या काली के रूप में ही की जाती है। नवरात्रि में विशेष रूप से अष्टमी-नवमी तिथि को उन्हें दुर्गा सप्तशती के मंत्रों द्वारा पूजते हैं।महामाया को प्रसन्न करने के लिए नारियल, फल और यदि तांत्रिक विधि अपनाई जाए तो बलि-प्रदान तक चढ़ाया जाता है। साथ ही, देवी की कृपा प्राप्त करने हेतु दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय का श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है।, जिसमें उनकी योगनिद्रा रूपी महिमा गाई गई है। तांत्रिक साधक मध्यरात्रि में श्मशान में महामाया (काली) का मंत्र जप कर सिद्धियाँ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। श्री चंडी पाठ में आए मंत्र “दुर्गे समस्यात्मिका जगन्माता महामाया” इत्यादि द्वारा उनकी वंदना की जाती है। सामान्य भक्त महामाया से प्रार्थना करते हैं कि हे महामाये! हमारी मोहमाया दूर करो और सत्य का प्रकाश दो। उनकी पूजा में भक्तभाव मुख्य है – एक छोटे बच्चे की तरह सरल हृदय होकर जो महामाया शारदा (माता) को पुकारता है, माता उसकी रक्षा अवश्य करती हैं।

प्रमुख मंदिर और उपासना स्थल

महामाया के नाम से भारत में कई शक्तिपीठ एवं मंदिर हैं। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के निकट प्रसिध्द हीरापुर चौसठ योगिनी मंदिर को “महामाया मंदिर” भी कहा जाता है । इस प्राचीन वृत्ताकार मंदिर में 64 योगिनियों की मूर्तियाँ हैं और ठीक प्रवेश के सामने सर्वप्रथम महामाया की बड़ी प्रतिमा स्थापित है, जिसकी प्रभा सबसे विशिष्ट है । वहाँ स्थानीय ग्रामीण देवी को ग्रामदेवी के रूप में पूजते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में रतनपुर (जिला बिलासपुर) का महामाया देवी मंदिर अत्यन्त प्रसिद्ध है , जहाँ देवी दुर्गा को महामाया रूप में पूजा जाता है । इसी प्रकार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी पुरानी बस्ती में महामाया मंदिर है । ये मंदिर शक्तिपीठ माने जाते हैं जहाँ नवरात्रि में महानुष्ठान होते हैं। प्राचीन काल में त्रिपुरा राज्य में भी महामाया नाम से देवी की अराधना होती थी। इन मंदिरों में दुर्गोत्सव पर विशेष मेले व समारोह होते हैं। श्रद्धालु महामाया के चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित कर सुख-समृद्धि और मोहमुक्ति की कामना करते हैं।

ग्रंथों में उल्लेख

महामाया का उल्लेख प्रमुखतः मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में मिलता है। वहाँ ब्रह्माजी कहते हैं: “त्वं स्वाहा त्वं स्वधा ... त्वं महामाया, जगदम्बिका” – अर्थात् हे देवि, आप ही स्वाहा-स्वधा हैं, आप ही महान विद्या, महामाया और जगत की अंबिका (माता) हैं। देवी भागवत पुराण में त्रिदेव स्वयं देवी महामाया की स्तुति करते हैं कि “आप ही आदिशक्ति महामाया हैं, समस्त ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली जननी हैं”. तांत्रिक ग्रंथ रुद्रयामल तंत्र में भी महामाया को ही पराशक्ति कहा गया है, जिनसे दस महाविद्याओं सहित समस्त योगिनी शक्तियाँ प्रकट हुईं। कालिका पुराण (14वीं सदी) में महामाया की प्रतिमा का वर्णन मिलता है । वहाँ देवी को दस भुजाओं से युक्त, कमल पर आरूढ़ तथा अन्य योगिनियों से उच्च स्थान वाली बताया गया है। इन शास्त्रीय प्रमाणों से स्पष्ट है कि महामाया को आद्या शक्ति और संपूर्ण योगिनी-चक्र की अधिपति माना गया है । भक्तों के लिए वे परमाराध्या भगवती हैं जिनकी शरण में जाने से संसार की माया कट जाती है।


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