एकजटा देवी तारा महाविद्या की ही एक उग्र रूपाभिव्यक्ति हैं। एक-जटा का अर्थ है “एक ही जटा
धारण करने वाली”। पौराणिक या लोककथाओं में एकजटा की स्वतंत्र कथा बहुत कम मिलती है, क्योंकि यह तारा
के भीतर का ही एक विशेष स्वरूप है। तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान बुद्ध के आविर्भाव से पूर्व तारा की एक
उपासना-धार नाम से प्रचलित थी । कालांतर में यह बौद्ध वज्रयान में समाहित हो गई, फिर महर्षि वशिष्ठ द्वारा
पुनः भारत में प्रचारित हुई । इससे पता चलता है कि एकजटा का अस्तित्व प्राचीन काल से शैव एवं तांत्रिक
साधना में रहा है। कुछ विद्वान एकजटा को उग्रतारा का ही पर्याय मानते हैं – जब माता तारा क्रोधित
उग्र रूप धारण करती हैं तो उनके बालों की एक ही जटा आकाश में खड़ी हो जाती है, उसी रूप का
विशेषनाम एकजटा पड़ा। कुछ तंत्र कथाओं में एकजटा को देवी की सहचरी के रूप में भी वर्णित किया
गया है। उदाहरणतः शक्तिसंगम तंत्र में उल्लेख है कि महाविद्या चण्डिका (काली) जब रौद्र हो गईं,
तो उनके शरीर से दो शक्तियाँ – डाकिनी और वरिणी – प्रकट हुईं, जिन्हें अन्य संदर्भों में एकजटा
और नीलसरस्वती कहा गया । इस तरह, एकजटा को तारा/काली की सहयोगिनी शक्ति के रूप
में भी देखा जाता है। बौद्ध परंपरा में एकजटा (उच्चारित: एकजति या ऎकजटी) को परम रक्षिका देवी माना जाता है,
जिनकी एक आँख, एक दाँत और एक स्तन है – यह रूप एकता का प्रतीक है जिसमें समस्त द्वंद्व विलीन हो जाते
हैं। ऐसी कथा है कि पद्मसंभव ने तिब्बत में धर्म की रक्षा हेतु एकजटा देवी को अधिष्ठित किया। हिन्दू तंत्र में,
एकजटा का उद्भव आदि शक्ति के उग्र स्वरूप से जुड़ा है – जब सृष्टि में तमस् बढ़ जाता है,
तो देवी एकजटा रूप में प्रकट होकर अज्ञान का संघार करती हैं। इस प्रकार एकजटा की कथाएँ
सीधे किसी पुराण में विस्तार से न होकर तंत्र शास्त्रों के बीच प्राप्त संकेतों द्वारा जानी जाती हैं। एकजटा देवी के स्वरूप में आध्यात्मिक अर्थ छिपा है – एक जटा इस बात को दर्शाती है कि चेतना की
समस्त शक्ति एकाग्र होकर एक लक्ष्य में बंध गए हैं। एकजटा एकनिष्ठ साधना व एकाग्रता की देवी हैं।
जो साधक मन को एकाग्र करना चाहते हैं, उनके लिए एकजटा की उपासना फलदायी मानी जाती है। तंत्र
में एकजटा को तारा का सबसे भयावह रूप माना गया है, जो संहारकारी भी हैं।एकजटा सभी दिशाओं से
आने वाले नकारात्मक प्रभावों को रोककर साधक को अभेद्य कवच प्रदान करती हैं। इन्हें तारा की गुह्य
रक्षिका माना गया है – कई तारा-मंत्रों में अंत में “एकजटायै नमः” जोड़ा जाता है, ताकि साधना में
विघ्न न आए। एकजटा का एक गुण यह है कि ये दुर्जनों के अहंकार का नाश कर देती हैं। उनके
भैरव (शिव) का नाम अक्षोभ्य है – अर्थात् जो क्रोधित न हो, शांत रहे; यह संकेत है कि
एकजटा साधक को स्थितप्रज्ञ बनाती हैं, शत्रु चाहे कितने ही क्रोध दिलाएं ,काली के एक
भयंकर स्वरूप को भी एकजटा कहा जाता है, जो नग्ना, स्थूल-कटी (भुजाओं में शवों की माला)
और अट्टहासिनी है। आध्यात्मिक रूप से यह मानव के भीतर की अतृप्ति और क्रोध को इंगित करती है
– देवी एकजटा उन तमोगुणी भावनाओं को निगल जाती हैं और साधक को निर्मल करती हैं।
साधना में एकजटा का महत्त्व इसलिए भी है कि वे गुरु-दीक्षा के बिना सुगम नहीं होतीं; उनका स्वरूप गुह्य
है और केवल पारंगत गुरु ही साधक को इस शक्ति से परिचित करवा सकते हैं। एकजटा देवी वैराग्य प्रदान
करती हैं – उनकी उपासना से चेतना सांसारिक आसक्तियों से हटकर एक परम लक्ष्य (मोक्ष या ईश्वर-प्राप्ति)
पर एकाग्र हो जाती है। एकजटा देवी की पूजा आम तौर पर अकेले नहीं की जाती, बल्कि यह तारा महाविद्या की पूजा का ही एक हिस्सा
होती है। जब तारा देवी की साधना होती है, तब एकजटा का भी आह्वान किया जाता है। तांत्रिक साधना में एकजटा
को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष की माला से उनका खास मंत्र जपते हैं। उनका बीज मंत्र होता है — “ॐ ह्रीं स्ट्रैं हुं फट्”,
जो बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
एकजटा की पूजा में श्मशान की भस्म, लाल मिर्च, नीले फूल और तेज सुगंध वाली धूप (लोहबान) चढ़ाई जाती है।
ये सभी चीजें उनकी उग्र शक्ति का प्रतीक होती हैं। पूजा में साधक एक त्रिकोण बनाकर उसके बीच में एक बिंदु बनाता
है, जो देवी का प्रतीक होता है। यह बिंदु चारों ओर की ऊर्जा को खींचकर एक जगह केंद्रित करता है।
ध्यान करते समय साधक एकजटा देवी को अंधेरे आकाश के समान विशाल, माथे पर एक लट, तीसरा नेत्र और ज़ोरदार
अट्टहास करती हुई कल्पना करता है। पूजा के दौरान साधक अपने मन में लगातार “एक जटा, एक जटा” का जाप करता
है ताकि ध्यान एकाग्र बना रहे।
नेपाल और तिब्बत की वज्रयान परंपरा में एकजटा की पूजा थोड़ी अलग होती है। वहाँ नीले रंग की एक आँख वाली देवी
की मूर्ति पर नीले कमल, मदिरा और मांस चढ़ाकर उन्हें योगिनियों की रानी के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू तंत्र परंपरा में इन चीजों का प्रतीकात्मक अर्थ होता है। आम भक्त साधारण रूप से दीपक जलाकर, फल-फूल और
प्रसाद चढ़ाकर देवी से प्रार्थना कर सकते हैं कि “हे माँ, मेरा मन एकाग्र कर दो।” कई साधक अपने साधना कक्ष में
एकजटा का यंत्र भी स्थापित करते हैं ताकि उनका ध्यान न भटके। कुल मिलाकर, एकजटा की पूजा में बाहरी चीजों
से ज़्यादा आंतरिक भाव, ध्यान और शक्ति की जागरूकता को महत्त्व दिया जाता है। एकजटा देवी के बड़े और प्रसिद्ध मंदिर बहुत कम मिलते हैं, क्योंकि उनकी पूजा हमेशा से ही गुप्त और व्यक्तिगत
स्तर पर होती रही है। फिर भी, कुछ जगहों पर एकजटा नाम से छोटे-छोटे मंदिर या शिलालेख जरूर मिले हैं।
उड़ीसा और मध्य प्रदेश के चौसठ योगिनी मंदिरों में कुछ मूर्तियाँ ऐसी हैं, जिन्हें इतिहासकारों ने एकजटा तारा के रूप
में पहचाना है। खासकर उड़ीसा के हिरापुर स्थित 64 योगिनी मंदिर में एक मूर्ति ऐसी है, जिसमें एक लट वाली देवी
दिखती हैं — जिसे कुछ विद्वान एकजटा मानते हैं।
तिब्बत के समये मठ (जिसे समय पुर भी कहा जाता है) में एकजटा को धर्म की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता
था। वहाँ उनकी प्रतिमा एक आंख, एक बाल-जटा और एक दांत वाली बनाई गई थी, जो उनकी उग्र शक्ति को दर्शाती है।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, जैसे सिक्किम और भूटान में, एकजटा देवी को “शीतला” या “एकांग देवी” के रूप में जाना
जाता है। वहाँ की लोक मान्यताओं में उन्हें महामारी और बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर क्षेत्र में कुछ गांवों में देवी “एकवीरा” नाम से पूजी जाती हैं। विद्वान मानते हैं कि एकवीरा
दरअसल एकजटा देवी का ही स्थानीय रूप है, क्योंकि एकवीरा का अर्थ भी “एक जटा वाली” होता है।
बंगाल के तारापीठ में भी एकजटा का गुप्त रूप माना जाता है। वहाँ के साधकों का विश्वास है कि मुख्य तारा
मूर्ति के साथ एक अदृश्य शक्ति के रूप में एकजटा भी विराजमान रहती हैं — जिसे सिर्फ तांत्रिक साधना करने
वाले ही अनुभव कर पाते हैं।
दक्षिण भारत में, खासकर तमिलनाडु के कुछ गांवों में देवी को “एकांगी अम्मन” नाम से पूजा जाता है। जैसे
रामेश्वरम क्षेत्र की लोककथाओं में एक लट वाली काली देवी का उल्लेख मिलता है, जिसे लोग एकजटा का ही रूप मानते हैं।
निष्कर्ष: हालाँकि एकजटा देवी के बहुत भव्य मंदिर नहीं हैं, लेकिन तंत्र साधना स्थलों और शक्ति पीठों में
उनका विशेष स्थान होता है। वे प्रकट न होकर भी साधकों की साधना में सदैव उपस्थित रहती हैं। एकजटा देवी का वर्णन मुख्य रूप से तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। जैसे महा निर्वाण तंत्र, मायातंत्र और तंत्रसार जैसे
ग्रंथों में तारा देवी के अनेक रूपों में एकजटा का नाम भी आता है। तंत्रसार में तो अष्ट तारा रूपों की सूची में
एकजटा को पहला स्थान दिया गया है, जिससे उनकी महत्ता स्पष्ट होती है।
भैरव यामल नामक ग्रंथ में एकजटा को उग्रतारा के साथ वर्णित किया गया है, जो उनकी उग्र और रक्षक शक्ति का
संकेत है। कालिका पुराण में “तीक्ष्णकांता” नाम की देवी का उल्लेख है, जो श्यामवर्णा, एक जटा वाली और
भूखी दिखाई गई हैं। विद्वानों के अनुसार यह तीक्ष्णकांता देवी, एकजटा का ही दूसरा नाम है।
देवीभागवत पुराण में जब देवी सती दस महाविद्याओं के रूप में प्रकट होती हैं, वहाँ एकजटा का नाम अलग से
नहीं आता, लेकिन माना जाता है कि वे तारा देवी के भीतर समाहित रहती हैं।
दक्षिणमार्गी (सामान्य वैदिक) पूजा पद्धतियों में एकजटा का उल्लेख कम मिलता है, क्योंकि उनका नाम विशेष
रूप से वाममार्गी तांत्रिक साधना में प्रमुख होता है।
बौद्ध वज्रयान परंपरा के ग्रंथों जैसे त्रिकाय वज्रयोगिनी तंत्र में एकजटा का विस्तृत वर्णन मिलता है। वहाँ उन्हें
“प्रत्यालीढ मुद्रा” (एक पैर आगे बढ़ाकर युद्ध की मुद्रा में खड़ी) में दर्शाया गया है और उनके बालों को एक
जूड़े में बाँधा हुआ दिखाया गया है।
आधुनिक काल में भी कुछ विद्वानों ने एकजटा का उल्लेख किया है। जैसे जॉन वुडरॉफ़ (Arthur Avalon)
ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ Hymn to Tara में एकजटा से जुड़े मंत्रों और साधना का उल्लेख किया है।
निष्कर्ष: शास्त्रों और तांत्रिक ग्रंथों से यह स्पष्ट होता है कि एकजटा तारा देवी का ही एक उग्र और गूढ़ रूप हैं।
उनका ध्यान और पूजा विशेष रूप से उच्च साधना और आध्यात्मिक शक्ति जागरण के लिए किया जाता है।महाविद्या एकजटा
उत्पत्ति की कथा या स्रोत
आध्यात्मिक एवं तांत्रिक महत्त्व
पूजा विधि और अनुष्ठान (सरल हिंदी में)
प्रमुख मंदिर या स्थान (सरल हिंदी में)
ग्रंथों में उल्लेख या उद्धरण (सरल हिंदी में)
एकजटा देवी तारा महाविद्या की ही एक उग्र रूपाभिव्यक्ति हैं। एक-जटा का अर्थ है “एक ही जटा
धारण करने वाली”। पौराणिक या लोककथाओं में एकजटा की स्वतंत्र कथा बहुत कम मिलती है, क्योंकि यह तारा
के भीतर का ही एक विशेष स्वरूप है। तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान बुद्ध के आविर्भाव से पूर्व तारा की एक
उपासना-धार नाम से प्रचलित थी । कालांतर में यह बौद्ध वज्रयान में समाहित हो गई, फिर महर्षि वशिष्ठ द्वारा
पुनः भारत में प्रचारित हुई । इससे पता चलता है कि एकजटा का अस्तित्व प्राचीन काल से शैव एवं तांत्रिक
साधना में रहा है। कुछ विद्वान एकजटा को उग्रतारा का ही पर्याय मानते हैं – जब माता तारा क्रोधित
उग्र रूप धारण करती हैं तो उनके बालों की एक ही जटा आकाश में खड़ी हो जाती है, उसी रूप का
विशेषनाम एकजटा पड़ा। कुछ तंत्र कथाओं में एकजटा को देवी की सहचरी के रूप में भी वर्णित किया
गया है। उदाहरणतः शक्तिसंगम तंत्र में उल्लेख है कि महाविद्या चण्डिका (काली) जब रौद्र हो गईं,
तो उनके शरीर से दो शक्तियाँ – डाकिनी और वरिणी – प्रकट हुईं, जिन्हें अन्य संदर्भों में एकजटा
और नीलसरस्वती कहा गया । इस तरह, एकजटा को तारा/काली की सहयोगिनी शक्ति के रूप
में भी देखा जाता है। बौद्ध परंपरा में एकजटा (उच्चारित: एकजति या ऎकजटी) को परम रक्षिका देवी माना जाता है,
जिनकी एक आँख, एक दाँत और एक स्तन है – यह रूप एकता का प्रतीक है जिसमें समस्त द्वंद्व विलीन हो जाते
हैं। ऐसी कथा है कि पद्मसंभव ने तिब्बत में धर्म की रक्षा हेतु एकजटा देवी को अधिष्ठित किया। हिन्दू तंत्र में,
एकजटा का उद्भव आदि शक्ति के उग्र स्वरूप से जुड़ा है – जब सृष्टि में तमस् बढ़ जाता है,
तो देवी एकजटा रूप में प्रकट होकर अज्ञान का संघार करती हैं। इस प्रकार एकजटा की कथाएँ
सीधे किसी पुराण में विस्तार से न होकर तंत्र शास्त्रों के बीच प्राप्त संकेतों द्वारा जानी जाती हैं। एकजटा देवी के स्वरूप में आध्यात्मिक अर्थ छिपा है – एक जटा इस बात को दर्शाती है कि चेतना की
समस्त शक्ति एकाग्र होकर एक लक्ष्य में बंध गए हैं। एकजटा एकनिष्ठ साधना व एकाग्रता की देवी हैं।
जो साधक मन को एकाग्र करना चाहते हैं, उनके लिए एकजटा की उपासना फलदायी मानी जाती है। तंत्र
में एकजटा को तारा का सबसे भयावह रूप माना गया है, जो संहारकारी भी हैं।एकजटा सभी दिशाओं से
आने वाले नकारात्मक प्रभावों को रोककर साधक को अभेद्य कवच प्रदान करती हैं। इन्हें तारा की गुह्य
रक्षिका माना गया है – कई तारा-मंत्रों में अंत में “एकजटायै नमः” जोड़ा जाता है, ताकि साधना में
विघ्न न आए। एकजटा का एक गुण यह है कि ये दुर्जनों के अहंकार का नाश कर देती हैं। उनके
भैरव (शिव) का नाम अक्षोभ्य है – अर्थात् जो क्रोधित न हो, शांत रहे; यह संकेत है कि
एकजटा साधक को स्थितप्रज्ञ बनाती हैं, शत्रु चाहे कितने ही क्रोध दिलाएं ,काली के एक
भयंकर स्वरूप को भी एकजटा कहा जाता है, जो नग्ना, स्थूल-कटी (भुजाओं में शवों की माला)
और अट्टहासिनी है। आध्यात्मिक रूप से यह मानव के भीतर की अतृप्ति और क्रोध को इंगित करती है
– देवी एकजटा उन तमोगुणी भावनाओं को निगल जाती हैं और साधक को निर्मल करती हैं।
साधना में एकजटा का महत्त्व इसलिए भी है कि वे गुरु-दीक्षा के बिना सुगम नहीं होतीं; उनका स्वरूप गुह्य
है और केवल पारंगत गुरु ही साधक को इस शक्ति से परिचित करवा सकते हैं। एकजटा देवी वैराग्य प्रदान
करती हैं – उनकी उपासना से चेतना सांसारिक आसक्तियों से हटकर एक परम लक्ष्य (मोक्ष या ईश्वर-प्राप्ति)
पर एकाग्र हो जाती है। एकजटा देवी की पूजा आम तौर पर अकेले नहीं की जाती, बल्कि यह तारा महाविद्या की पूजा का ही एक हिस्सा
होती है। जब तारा देवी की साधना होती है, तब एकजटा का भी आह्वान किया जाता है। तांत्रिक साधना में एकजटा
को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष की माला से उनका खास मंत्र जपते हैं। उनका बीज मंत्र होता है — “ॐ ह्रीं स्ट्रैं हुं फट्”,
जो बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
एकजटा की पूजा में श्मशान की भस्म, लाल मिर्च, नीले फूल और तेज सुगंध वाली धूप (लोहबान) चढ़ाई जाती है।
ये सभी चीजें उनकी उग्र शक्ति का प्रतीक होती हैं। पूजा में साधक एक त्रिकोण बनाकर उसके बीच में एक बिंदु बनाता
है, जो देवी का प्रतीक होता है। यह बिंदु चारों ओर की ऊर्जा को खींचकर एक जगह केंद्रित करता है।
ध्यान करते समय साधक एकजटा देवी को अंधेरे आकाश के समान विशाल, माथे पर एक लट, तीसरा नेत्र और ज़ोरदार
अट्टहास करती हुई कल्पना करता है। पूजा के दौरान साधक अपने मन में लगातार “एक जटा, एक जटा” का जाप करता
है ताकि ध्यान एकाग्र बना रहे।
नेपाल और तिब्बत की वज्रयान परंपरा में एकजटा की पूजा थोड़ी अलग होती है। वहाँ नीले रंग की एक आँख वाली देवी
की मूर्ति पर नीले कमल, मदिरा और मांस चढ़ाकर उन्हें योगिनियों की रानी के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू तंत्र परंपरा में इन चीजों का प्रतीकात्मक अर्थ होता है। आम भक्त साधारण रूप से दीपक जलाकर, फल-फूल और
प्रसाद चढ़ाकर देवी से प्रार्थना कर सकते हैं कि “हे माँ, मेरा मन एकाग्र कर दो।” कई साधक अपने साधना कक्ष में
एकजटा का यंत्र भी स्थापित करते हैं ताकि उनका ध्यान न भटके। कुल मिलाकर, एकजटा की पूजा में बाहरी चीजों
से ज़्यादा आंतरिक भाव, ध्यान और शक्ति की जागरूकता को महत्त्व दिया जाता है। एकजटा देवी के बड़े और प्रसिद्ध मंदिर बहुत कम मिलते हैं, क्योंकि उनकी पूजा हमेशा से ही गुप्त और व्यक्तिगत
स्तर पर होती रही है। फिर भी, कुछ जगहों पर एकजटा नाम से छोटे-छोटे मंदिर या शिलालेख जरूर मिले हैं।
उड़ीसा और मध्य प्रदेश के चौसठ योगिनी मंदिरों में कुछ मूर्तियाँ ऐसी हैं, जिन्हें इतिहासकारों ने एकजटा तारा के रूप
में पहचाना है। खासकर उड़ीसा के हिरापुर स्थित 64 योगिनी मंदिर में एक मूर्ति ऐसी है, जिसमें एक लट वाली देवी
दिखती हैं — जिसे कुछ विद्वान एकजटा मानते हैं।
तिब्बत के समये मठ (जिसे समय पुर भी कहा जाता है) में एकजटा को धर्म की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता
था। वहाँ उनकी प्रतिमा एक आंख, एक बाल-जटा और एक दांत वाली बनाई गई थी, जो उनकी उग्र शक्ति को दर्शाती है।
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, जैसे सिक्किम और भूटान में, एकजटा देवी को “शीतला” या “एकांग देवी” के रूप में जाना
जाता है। वहाँ की लोक मान्यताओं में उन्हें महामारी और बीमारियों से बचाने वाली देवी माना जाता है।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर क्षेत्र में कुछ गांवों में देवी “एकवीरा” नाम से पूजी जाती हैं। विद्वान मानते हैं कि एकवीरा
दरअसल एकजटा देवी का ही स्थानीय रूप है, क्योंकि एकवीरा का अर्थ भी “एक जटा वाली” होता है।
बंगाल के तारापीठ में भी एकजटा का गुप्त रूप माना जाता है। वहाँ के साधकों का विश्वास है कि मुख्य तारा
मूर्ति के साथ एक अदृश्य शक्ति के रूप में एकजटा भी विराजमान रहती हैं — जिसे सिर्फ तांत्रिक साधना करने
वाले ही अनुभव कर पाते हैं।
दक्षिण भारत में, खासकर तमिलनाडु के कुछ गांवों में देवी को “एकांगी अम्मन” नाम से पूजा जाता है। जैसे
रामेश्वरम क्षेत्र की लोककथाओं में एक लट वाली काली देवी का उल्लेख मिलता है, जिसे लोग एकजटा का ही रूप मानते हैं।
निष्कर्ष: हालाँकि एकजटा देवी के बहुत भव्य मंदिर नहीं हैं, लेकिन तंत्र साधना स्थलों और शक्ति पीठों में
उनका विशेष स्थान होता है। वे प्रकट न होकर भी साधकों की साधना में सदैव उपस्थित रहती हैं। एकजटा देवी का वर्णन मुख्य रूप से तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। जैसे महा निर्वाण तंत्र, मायातंत्र और तंत्रसार जैसे
ग्रंथों में तारा देवी के अनेक रूपों में एकजटा का नाम भी आता है। तंत्रसार में तो अष्ट तारा रूपों की सूची में
एकजटा को पहला स्थान दिया गया है, जिससे उनकी महत्ता स्पष्ट होती है।
भैरव यामल नामक ग्रंथ में एकजटा को उग्रतारा के साथ वर्णित किया गया है, जो उनकी उग्र और रक्षक शक्ति का
संकेत है। कालिका पुराण में “तीक्ष्णकांता” नाम की देवी का उल्लेख है, जो श्यामवर्णा, एक जटा वाली और
भूखी दिखाई गई हैं। विद्वानों के अनुसार यह तीक्ष्णकांता देवी, एकजटा का ही दूसरा नाम है।
देवीभागवत पुराण में जब देवी सती दस महाविद्याओं के रूप में प्रकट होती हैं, वहाँ एकजटा का नाम अलग से
नहीं आता, लेकिन माना जाता है कि वे तारा देवी के भीतर समाहित रहती हैं।
दक्षिणमार्गी (सामान्य वैदिक) पूजा पद्धतियों में एकजटा का उल्लेख कम मिलता है, क्योंकि उनका नाम विशेष
रूप से वाममार्गी तांत्रिक साधना में प्रमुख होता है।
बौद्ध वज्रयान परंपरा के ग्रंथों जैसे त्रिकाय वज्रयोगिनी तंत्र में एकजटा का विस्तृत वर्णन मिलता है। वहाँ उन्हें
“प्रत्यालीढ मुद्रा” (एक पैर आगे बढ़ाकर युद्ध की मुद्रा में खड़ी) में दर्शाया गया है और उनके बालों को एक
जूड़े में बाँधा हुआ दिखाया गया है।
आधुनिक काल में भी कुछ विद्वानों ने एकजटा का उल्लेख किया है। जैसे जॉन वुडरॉफ़ (Arthur Avalon)
ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ Hymn to Tara में एकजटा से जुड़े मंत्रों और साधना का उल्लेख किया है।
निष्कर्ष: शास्त्रों और तांत्रिक ग्रंथों से यह स्पष्ट होता है कि एकजटा तारा देवी का ही एक उग्र और गूढ़ रूप हैं।
उनका ध्यान और पूजा विशेष रूप से उच्च साधना और आध्यात्मिक शक्ति जागरण के लिए किया जाता है।महाविद्या एकजटा
उत्पत्ति की कथा या स्रोत
आध्यात्मिक एवं तांत्रिक महत्त्व
पूजा विधि और अनुष्ठान (सरल हिंदी में)
प्रमुख मंदिर या स्थान (सरल हिंदी में)
ग्रंथों में उल्लेख या उद्धरण (सरल हिंदी में)