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दक्षिणाचार से वामाचार तक — जानिए माँ काली साधना की पूरी विधि, मंत्र, यंत्र, मुहूर्त और साधना लाभ

दक्षिणाचार से वामाचार तक — जानिए माँ काली साधना की पूरी विधि, मंत्र, यंत्र, मुहूर्त और साधना लाभAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

माँ काली साधना

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क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ काली दस महाविद्याओं में प्रथम एवं आदिशक्ति का प्रमुख उग्र स्वरूप हैं ।  वे काल (समय) और परिवर्तन की देवी हैं, जो सृष्टि के संहार और पुनर्निर्माण की शक्ति रखती हैं। उनका दक्षिणा काली स्वरूप अत्यंत प्रसिद्ध है, जो भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर वरदान देने में अत्यंत चतुर मानी जाती हैं । उनका एक अन्य महत्वपूर्ण स्वरूप श्मशान काली का है, जिनकी उपासना श्मशान जैसे स्थानों पर की जाती है और यह विशेष रूप से उन साधकों के लिए है जो भोग और भय दोनों पर विजय प्राप्त कर चुके हों । काली को समय (काल) का भक्षण करने वाली और उसके उपरांत अपने श्यामल, निराकार स्वरूप में पुनः स्थित हो जाने वाली महाशक्ति के रूप में वर्णित किया गया है । उनका विकराल रूप दुष्टों के लिए भय उत्पन्न करने वाला है, परन्तु भक्तों के लिए वे परम करुणामयी माँ हैं जो सभी संकटों से रक्षा करती हैं। काली साधना में उग्रता और सौम्यता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है; जहाँ दक्षिण काली का वरद हस्त भक्तों पर कृपा बरसाता है, वहीं श्मशान काली का भयनाशक रूप साधक को मृत्यु के भय से मुक्त करता है। यह जीवन के द्वंद्वों (जैसे सृजन-संहार, भय-अभय) को स्वीकार करने और उनसे परे जाने का प्रतीक है।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ काली के भैरव महाकाल हैं । शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव निष्क्रिय। महाकाल भैरव, काल के भी काल, माँ काली की संहारक शक्ति के पूरक हैं।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

माँ काली की साधना के लिए सामान्यतः लाल रंग के वस्त्र, लाल आसन, काली हकीक की माला का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित महाकाली यंत्र, सरसों के तेल का दीपक, रोली या काजल, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है ।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

महाकाली यंत्र उनकी साधना का केंद्र बिंदु होता है। यंत्र को भोजपत्र पर विशेष स्याही (जैसे नमक, काली सरसों और लौंग का मिश्रण) से कनेर की कलम (या विकल्प) द्वारा बनाया जा सकता है; यंत्र निर्माण के समय "ओम कालिका नमः" मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। सामान्यतः यंत्र में त्रिकोण, वृत्त और भूपुर होते हैं। एक विधि के अनुसार, चौकी पर काले रंग का वस्त्र बिछाकर, उस पर एक प्लेट में रोली या काजल से त्रिकोण बनाकर उस पर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित महाकाली यंत्र स्थापित किया जाता है । दक्षिण काली यंत्र की स्थापना चैत्र, आषाढ़ या माघ मास की अष्टमी तिथि को शुभ मानी जाती है। यंत्र को धातु की प्लेट पर रखकर गंगाजल से स्नान कराना, चंदन का टीका लगाना और तुलसी पत्र अर्पित करना भी एक विधान है । यंत्र को घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर दक्षिण दिशा में स्थापित किया जा सकता है।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ काली की पूजा के लिए कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि (काली पूजा या दीपावली) अत्यंत शुभ मानी जाती है । निशिता काल (मध्यरात्रि) में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है । इसके अतिरिक्त, ग्रहण काल, होली की रात्रि, या किसी भी मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि भी काली साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती है ।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: क्रीं । इस बीज मंत्र में 'क' का अर्थ पूर्ण ज्ञान, 'र' का अर्थ शुभ, और बिंदु का अर्थ स्वतंत्रता या मुक्ति देने वाली शक्ति है।

मूल मंत्र (दक्षिण कालिका): "ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा:" अथवा "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।"

अन्य सरल मंत्र: "ॐ श्री महा कालिकायै नमः"

ध्यान श्लोक (उदाहरण):

"शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम्। चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम्॥ मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम्। एवं सञ्चिन्तयेत् कालीं श्मशानालयवासिनीम्॥"

(अर्थ: शव पर आरूढ़, अत्यंत भयानक, घोर दाँतों वाली, हँसते हुए मुख वाली, चार भुजाओं में खड्ग, मुण्ड, वर और अभय मुद्रा धारण करने वाली कल्याणकारी शिवस्वरूपा देवी। मुण्डों की माला धारण की हुई, लपलपाती जिह्वा वाली, दिगम्बरा, श्मशान में निवास करने वाली काली का इस प्रकार ध्यान करना चाहिए।) एक अन्य ध्यान मंत्र का अर्थ है - पृथ्वी को पालने वाली और ब्रह्मांड को सभी प्रकार के संकटों से बचाने वाली देवी माँ को नमन।

v. पूजा विधान:

साधना एकांत स्थान पर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, काले आसन पर बैठकर करनी चाहिए। सर्वप्रथम संकल्प लेकर गुरु, गणेश और भैरव का पूजन करना चाहिए। इसके बाद महाकाली यंत्र की स्थापना कर उसका पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें (धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, अक्षत, जल आदि अर्पित करें)। विशिष्ट न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करने का भी विधान है, जिसमें मंत्रोच्चार के साथ शरीर के विभिन्न अंगों (जैसे शिर, मुख, हृदय) को स्पर्श किया जाता है । इसके बाद निर्दिष्ट मंत्र का निर्धारित संख्या में (जैसे 11, 21 या 108 माला) जाप करना चाहिए। काली कवच का पाठ भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। पूजा के अंत में आरती और क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ काली की उग्र साधनाएँ, विशेषकर श्मशान काली से संबंधित, अत्यंत सावधानी और योग्य गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए । साधना को गुप्त रखना श्रेयस्कर है। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन, शारीरिक और मानसिक शुद्धता, सात्विक आहार और नकारात्मक विचारों से दूरी बनाए रखना आवश्यक है ।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ काली की उपासना वामाचार और दक्षिणाचार दोनों ही पद्धतियों से की जाती है । दक्षिणाचार में सात्विक पूजा-पाठ, मंत्र जप और ध्यान प्रमुख होते हैं। वामाचार पद्धति में पंचमकार (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) का प्रतीकात्मक या वास्तविक प्रयोग किया जा सकता है, जो अत्यंत गूढ़ और विवादास्पद विषय है और केवल अत्यंत उन्नत और योग्य साधकों के लिए गुरु के निर्देशन में ही संभव है। श्मशान साधना सामान्यतः वामाचार से संबंधित मानी जाती है ।

घ. साधना के लाभ:

माँ काली की साधना से साधक को विद्या, लक्ष्मी, राज्यसुख, अष्टसिद्धियाँ, वशीकरण क्षमता, प्रतियोगिताओं, युद्धों और चुनावों में विजय तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है । यह साधना शत्रुओं का नाश करती है, भय और आसुरी शक्तियों से रक्षा प्रदान करती है, और मानसिक शांति लाती है । इसके अतिरिक्त, यह मकान दोष, पितृ दोष और वास्तु दोष जैसे नकारात्मक प्रभावों का निवारण करने में भी सहायक है । माँ काली की कृपा से साधक सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होकर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करता है, जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होता है और पूर्ण रूप से निर्भय हो जाता है । काली की पूजा, विशेषकर अमावस्या या मध्यरात्रि में, समय की चक्रीय प्रकृति और अंधकार से प्रकाश की उत्पत्ति के तांत्रिक सिद्धांत को दर्शाती है। श्मशान में साधना मृत्यु के भय पर विजय और भौतिकता से वैराग्य का प्रतीक है, जो साधक को सांसारिक सीमाओं से परे ले जाती है।


कालीसाधनायंत्रमंत्रअमावस्यासिद्धितांत्रिक
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पढ़िए और जानिए माँ मातंगी साधना की शक्तिशाली विधि, रहस्य, मंत्र और वाक् सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग !
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माँ काली साधना

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माँ काली दस महाविद्याओं में प्रथम एवं आदिशक्ति का प्रमुख उग्र स्वरूप हैं ।  वे काल (समय) और परिवर्तन की देवी हैं, जो सृष्टि के संहार और पुनर्निर्माण की शक्ति रखती हैं। उनका दक्षिणा काली स्वरूप अत्यंत प्रसिद्ध है, जो भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर वरदान देने में अत्यंत चतुर मानी जाती हैं । उनका एक अन्य महत्वपूर्ण स्वरूप श्मशान काली का है, जिनकी उपासना श्मशान जैसे स्थानों पर की जाती है और यह विशेष रूप से उन साधकों के लिए है जो भोग और भय दोनों पर विजय प्राप्त कर चुके हों । काली को समय (काल) का भक्षण करने वाली और उसके उपरांत अपने श्यामल, निराकार स्वरूप में पुनः स्थित हो जाने वाली महाशक्ति के रूप में वर्णित किया गया है । उनका विकराल रूप दुष्टों के लिए भय उत्पन्न करने वाला है, परन्तु भक्तों के लिए वे परम करुणामयी माँ हैं जो सभी संकटों से रक्षा करती हैं। काली साधना में उग्रता और सौम्यता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है; जहाँ दक्षिण काली का वरद हस्त भक्तों पर कृपा बरसाता है, वहीं श्मशान काली का भयनाशक रूप साधक को मृत्यु के भय से मुक्त करता है। यह जीवन के द्वंद्वों (जैसे सृजन-संहार, भय-अभय) को स्वीकार करने और उनसे परे जाने का प्रतीक है।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ काली के भैरव महाकाल हैं । शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव निष्क्रिय। महाकाल भैरव, काल के भी काल, माँ काली की संहारक शक्ति के पूरक हैं।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

माँ काली की साधना के लिए सामान्यतः लाल रंग के वस्त्र, लाल आसन, काली हकीक की माला का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित महाकाली यंत्र, सरसों के तेल का दीपक, रोली या काजल, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि की आवश्यकता होती है ।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

महाकाली यंत्र उनकी साधना का केंद्र बिंदु होता है। यंत्र को भोजपत्र पर विशेष स्याही (जैसे नमक, काली सरसों और लौंग का मिश्रण) से कनेर की कलम (या विकल्प) द्वारा बनाया जा सकता है; यंत्र निर्माण के समय "ओम कालिका नमः" मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। सामान्यतः यंत्र में त्रिकोण, वृत्त और भूपुर होते हैं। एक विधि के अनुसार, चौकी पर काले रंग का वस्त्र बिछाकर, उस पर एक प्लेट में रोली या काजल से त्रिकोण बनाकर उस पर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित महाकाली यंत्र स्थापित किया जाता है । दक्षिण काली यंत्र की स्थापना चैत्र, आषाढ़ या माघ मास की अष्टमी तिथि को शुभ मानी जाती है। यंत्र को धातु की प्लेट पर रखकर गंगाजल से स्नान कराना, चंदन का टीका लगाना और तुलसी पत्र अर्पित करना भी एक विधान है । यंत्र को घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर दक्षिण दिशा में स्थापित किया जा सकता है।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ काली की पूजा के लिए कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि (काली पूजा या दीपावली) अत्यंत शुभ मानी जाती है । निशिता काल (मध्यरात्रि) में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है । इसके अतिरिक्त, ग्रहण काल, होली की रात्रि, या किसी भी मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि भी काली साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती है ।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: क्रीं । इस बीज मंत्र में 'क' का अर्थ पूर्ण ज्ञान, 'र' का अर्थ शुभ, और बिंदु का अर्थ स्वतंत्रता या मुक्ति देने वाली शक्ति है।

मूल मंत्र (दक्षिण कालिका): "ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा:" अथवा "ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।"

अन्य सरल मंत्र: "ॐ श्री महा कालिकायै नमः"

ध्यान श्लोक (उदाहरण):

"शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम्। चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम्॥ मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम्। एवं सञ्चिन्तयेत् कालीं श्मशानालयवासिनीम्॥"

(अर्थ: शव पर आरूढ़, अत्यंत भयानक, घोर दाँतों वाली, हँसते हुए मुख वाली, चार भुजाओं में खड्ग, मुण्ड, वर और अभय मुद्रा धारण करने वाली कल्याणकारी शिवस्वरूपा देवी। मुण्डों की माला धारण की हुई, लपलपाती जिह्वा वाली, दिगम्बरा, श्मशान में निवास करने वाली काली का इस प्रकार ध्यान करना चाहिए।) एक अन्य ध्यान मंत्र का अर्थ है - पृथ्वी को पालने वाली और ब्रह्मांड को सभी प्रकार के संकटों से बचाने वाली देवी माँ को नमन।

v. पूजा विधान:

साधना एकांत स्थान पर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, काले आसन पर बैठकर करनी चाहिए। सर्वप्रथम संकल्प लेकर गुरु, गणेश और भैरव का पूजन करना चाहिए। इसके बाद महाकाली यंत्र की स्थापना कर उसका पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें (धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, अक्षत, जल आदि अर्पित करें)। विशिष्ट न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करने का भी विधान है, जिसमें मंत्रोच्चार के साथ शरीर के विभिन्न अंगों (जैसे शिर, मुख, हृदय) को स्पर्श किया जाता है । इसके बाद निर्दिष्ट मंत्र का निर्धारित संख्या में (जैसे 11, 21 या 108 माला) जाप करना चाहिए। काली कवच का पाठ भी अत्यंत फलदायी माना जाता है। पूजा के अंत में आरती और क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ काली की उग्र साधनाएँ, विशेषकर श्मशान काली से संबंधित, अत्यंत सावधानी और योग्य गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए । साधना को गुप्त रखना श्रेयस्कर है। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन, शारीरिक और मानसिक शुद्धता, सात्विक आहार और नकारात्मक विचारों से दूरी बनाए रखना आवश्यक है ।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ काली की उपासना वामाचार और दक्षिणाचार दोनों ही पद्धतियों से की जाती है । दक्षिणाचार में सात्विक पूजा-पाठ, मंत्र जप और ध्यान प्रमुख होते हैं। वामाचार पद्धति में पंचमकार (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) का प्रतीकात्मक या वास्तविक प्रयोग किया जा सकता है, जो अत्यंत गूढ़ और विवादास्पद विषय है और केवल अत्यंत उन्नत और योग्य साधकों के लिए गुरु के निर्देशन में ही संभव है। श्मशान साधना सामान्यतः वामाचार से संबंधित मानी जाती है ।

घ. साधना के लाभ:

माँ काली की साधना से साधक को विद्या, लक्ष्मी, राज्यसुख, अष्टसिद्धियाँ, वशीकरण क्षमता, प्रतियोगिताओं, युद्धों और चुनावों में विजय तथा अंततः मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है । यह साधना शत्रुओं का नाश करती है, भय और आसुरी शक्तियों से रक्षा प्रदान करती है, और मानसिक शांति लाती है । इसके अतिरिक्त, यह मकान दोष, पितृ दोष और वास्तु दोष जैसे नकारात्मक प्रभावों का निवारण करने में भी सहायक है । माँ काली की कृपा से साधक सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होकर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करता है, जीवन-मरण के चक्र से मुक्त होता है और पूर्ण रूप से निर्भय हो जाता है । काली की पूजा, विशेषकर अमावस्या या मध्यरात्रि में, समय की चक्रीय प्रकृति और अंधकार से प्रकाश की उत्पत्ति के तांत्रिक सिद्धांत को दर्शाती है। श्मशान में साधना मृत्यु के भय पर विजय और भौतिकता से वैराग्य का प्रतीक है, जो साधक को सांसारिक सीमाओं से परे ले जाती है।


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