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माँ बगलामुखी की रहस्यमयी साधना: शत्रु-विनाश, वाक्-सिद्धि और तांत्रिक शक्तियों की अद्भुत उपासना

माँ बगलामुखी की रहस्यमयी साधना: शत्रु-विनाश, वाक्-सिद्धि और तांत्रिक शक्तियों की अद्भुत उपासनाAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

माँ बगलामुखी साधना

क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या के रूप में प्रतिष्ठित हैं । उन्हें 'पीताम्बरा देवी' (पीले वस्त्र धारण करने वाली) या 'ब्रह्मास्त्र रूपिणी' भी कहा जाता है, जो उनकी अमोघ शक्ति का द्योतक है । माँ बगलामुखी मुख्य रूप से शत्रुओं को वश में करने, उनकी वाणी, गति और बुद्धि को स्तंभित (स्थिर या निष्क्रिय) करने की असीम शक्ति रखती हैं । उनका वर्ण सुनहरी या पीली आभा लिए हुए होता है, वे पीले वस्त्र धारण करती हैं और पीले कमलों से भरे अमृत सागर के मध्य स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान होती हैं । वे अपने एक हाथ में मुद्गर (गदा) और दूसरे में शत्रु की जिह्वा पकड़े हुए चित्रित की जाती हैं। बगलामुखी साधना मुख्य रूप से 'स्तंभन' शक्ति पर केंद्रित है - अर्थात, नकारात्मक शक्तियों, शत्रुओं की गतिविधियों और हानिकारक वाणी को रोकने या स्थिर करने की क्षमता।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय या एकवक्त्र भैरव माने जाते हैं। मृत्युंजय स्वरूप यह इंगित करता है कि उनकी शक्ति न केवल शत्रुओं का स्तंभन करती है, बल्कि मृत्यु जैसे परम भय पर भी विजय दिलाने में सक्षम है।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

साधना के लिए पीला आसन, पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी, चने की दाल, और हल्दी की माला या रुद्राक्ष की माला की आवश्यकता होती है । बगलामुखी यंत्र भी महत्वपूर्ण है, जिसे चने की दाल से बनाया जा सकता है या फिर ताम्रपत्र अथवा चांदी के पत्र पर अंकित करवाया जा सकता है।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

बगलामुखी यंत्र में सामान्यतः एक केंद्रीय बिंदु या षट्कोण होता है, जिसके चारों ओर अष्टदल कमल और फिर वर्गाकार भूपुर होता है। यंत्र को तांबे, कांसे, चांदी या सोने पर बनाया जा सकता है। यंत्र को पंचामृत से स्नान कराकर, पूजा स्थान पर पीले वस्त्र पर स्थापित करना चाहिए। फूल, नारियल, हल्दी, चावल आदि से प्रतिदिन यंत्र की पूजा करनी चाहिए ।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ बगलामुखी की साधना किसी भी शुभ दिन, विशेषकर गुप्त नवरात्रि के दौरान, या शुक्रवार (यंत्र स्थापना के लिए) को प्रारंभ की जा सकती है। रात्रि का समय, विशेष रूप से 9 बजे से 12 बजे के बीच, उनकी साधना के लिए उत्तम माना जाता है।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: ह्लीं अथवा ह्र्लीं ।

मूल मंत्र: "ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा:"। एक अन्य प्रसिद्ध मंत्र है: "ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन"

ध्यान श्लोक:

"मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्। पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीं देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम्॥"

(अर्थ: अमृत के सागर के मध्य में स्थित मणिमंडप में रत्नवेदी पर सुशोभित सिंहासन पर विराजमान, परिपक्व पीले वर्ण वाली, पीले वस्त्र, आभूषण और मालाओं से विभूषित अंगों वाली, हाथ में मुद्गर और शत्रु की जिह्वा धारण करने वाली देवी का मैं स्मरण करता हूँ।) में उनके मंत्र का अर्थ दिया गया है, जो ध्यान में सहायक हो सकता है।

v. पूजा विधान:

साधक को प्रातःकाल स्नान कर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठना चाहिए। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गुरु पूजन, गणपति पूजन और मृत्युंजय मंत्र का एक माला जाप करना श्रेयस्कर है। इसके बाद संकल्प, आवाहन और न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करें । हल्दी की माला से निर्दिष्ट बगलामुखी मंत्र का जाप (जैसे 6 माला प्रतिदिन या सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान) करना चाहिए। पूजा के उपरांत दान करने का भी विधान है।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ बगलामुखी की साधना अत्यंत शक्तिशाली होती है, अतः इसे गुरु की आज्ञा और उनके मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। साधना को गुप्त रखना चाहिए । साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना, स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग से दूर रहना अनिवार्य है । यह साधना डरपोक या कमजोर हृदय वाले व्यक्तियों के लिए नहीं है, क्योंकि साधना के दौरान भयानक अनुभव या आवाजें सुनाई दे सकती हैं; ऐसे में साधक को अविचलित रहना चाहिए। साधना के दौरान दीपक निरंतर जलता रहना चाहिए।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ बगलामुखी उग्र कोटि की देवी हैं। उनकी पूजा मुख्यतः तांत्रिक विधि से होती है, जिसमें स्तंभन, उच्चाटन और वशीकरण जैसे प्रयोग शामिल हो सकते हैं, जो वामाचार की ओर संकेत करते हैं। हालांकि, उनकी सामान्य पूजा और मंत्र जाप दक्षिणाचार विधि से भी संभव है, जिसका उद्देश्य आत्मरक्षा और नकारात्मक शक्तियों का शमन होता है। बगलामुखी की पीत वर्ण और हल्दी जैसी पीली वस्तुओं का प्रयोग बृहस्पति ग्रह (ज्ञान और धर्म) के प्रभाव को दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि स्तंभन शक्ति का प्रयोग केवल धर्म और न्याय की रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए।

घ. साधना के लाभ:

माँ बगलामुखी की साधना से शत्रुओं का नाश होता है, उन पर विजय प्राप्त होती है, और उनकी वाणी, बुद्धि एवं गतिविधियों का स्तंभन हो जाता है। यह साधना सभी प्रकार के वाद-विवादों, मुकदमों और कोर्ट-कचहरी के मामलों में निश्चित सफलता दिलाती है। साधक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है, उसकी बुद्धि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है । जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर होती हैं और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं। यह साधना काले जादू, बुरी नजर और अन्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है। कर्ज, बीमारी और दुर्घटनाओं से बचाव होता है । बगलामुखी साधना यह दर्शाती है कि तांत्रिक परंपरा में न केवल सृजनात्मक और विध्वंसात्मक शक्तियां हैं, बल्कि स्थिर करने और नियंत्रित करने वाली शक्तियां भी महत्वपूर्ण हैं, जो जीवन में संतुलन और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।


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पढ़िए और जानिए माँ मातंगी साधना की शक्तिशाली विधि, रहस्य, मंत्र और वाक् सिद्धि प्राप्त करने का मार्ग !
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माँ बगलामुखी की रहस्यमयी साधना: शत्रु-विनाश, वाक्-सिद्धि और तांत्रिक शक्तियों की अद्भुत उपासनाAI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

माँ बगलामुखी साधना

क. परिचय एवं स्वरूप:

माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या के रूप में प्रतिष्ठित हैं । उन्हें 'पीताम्बरा देवी' (पीले वस्त्र धारण करने वाली) या 'ब्रह्मास्त्र रूपिणी' भी कहा जाता है, जो उनकी अमोघ शक्ति का द्योतक है । माँ बगलामुखी मुख्य रूप से शत्रुओं को वश में करने, उनकी वाणी, गति और बुद्धि को स्तंभित (स्थिर या निष्क्रिय) करने की असीम शक्ति रखती हैं । उनका वर्ण सुनहरी या पीली आभा लिए हुए होता है, वे पीले वस्त्र धारण करती हैं और पीले कमलों से भरे अमृत सागर के मध्य स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान होती हैं । वे अपने एक हाथ में मुद्गर (गदा) और दूसरे में शत्रु की जिह्वा पकड़े हुए चित्रित की जाती हैं। बगलामुखी साधना मुख्य रूप से 'स्तंभन' शक्ति पर केंद्रित है - अर्थात, नकारात्मक शक्तियों, शत्रुओं की गतिविधियों और हानिकारक वाणी को रोकने या स्थिर करने की क्षमता।

ख. संबद्ध देवता/शक्ति:

माँ बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय या एकवक्त्र भैरव माने जाते हैं। मृत्युंजय स्वरूप यह इंगित करता है कि उनकी शक्ति न केवल शत्रुओं का स्तंभन करती है, बल्कि मृत्यु जैसे परम भय पर भी विजय दिलाने में सक्षम है।

ग. साधना विधि:

i. आवश्यक सामग्री:

साधना के लिए पीला आसन, पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी, चने की दाल, और हल्दी की माला या रुद्राक्ष की माला की आवश्यकता होती है । बगलामुखी यंत्र भी महत्वपूर्ण है, जिसे चने की दाल से बनाया जा सकता है या फिर ताम्रपत्र अथवा चांदी के पत्र पर अंकित करवाया जा सकता है।

ii. यंत्र निर्माण/विवरण एवं पूजा:

बगलामुखी यंत्र में सामान्यतः एक केंद्रीय बिंदु या षट्कोण होता है, जिसके चारों ओर अष्टदल कमल और फिर वर्गाकार भूपुर होता है। यंत्र को तांबे, कांसे, चांदी या सोने पर बनाया जा सकता है। यंत्र को पंचामृत से स्नान कराकर, पूजा स्थान पर पीले वस्त्र पर स्थापित करना चाहिए। फूल, नारियल, हल्दी, चावल आदि से प्रतिदिन यंत्र की पूजा करनी चाहिए ।

iii. शुभ मुहूर्त एवं काल:

माँ बगलामुखी की साधना किसी भी शुभ दिन, विशेषकर गुप्त नवरात्रि के दौरान, या शुक्रवार (यंत्र स्थापना के लिए) को प्रारंभ की जा सकती है। रात्रि का समय, विशेष रूप से 9 बजे से 12 बजे के बीच, उनकी साधना के लिए उत्तम माना जाता है।

iv. मंत्र एवं ध्यान श्लोक:

बीज मंत्र: ह्लीं अथवा ह्र्लीं ।

मूल मंत्र: "ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा:"। एक अन्य प्रसिद्ध मंत्र है: "ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन"

ध्यान श्लोक:

"मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्। पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीं देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम्॥"

(अर्थ: अमृत के सागर के मध्य में स्थित मणिमंडप में रत्नवेदी पर सुशोभित सिंहासन पर विराजमान, परिपक्व पीले वर्ण वाली, पीले वस्त्र, आभूषण और मालाओं से विभूषित अंगों वाली, हाथ में मुद्गर और शत्रु की जिह्वा धारण करने वाली देवी का मैं स्मरण करता हूँ।) में उनके मंत्र का अर्थ दिया गया है, जो ध्यान में सहायक हो सकता है।

v. पूजा विधान:

साधक को प्रातःकाल स्नान कर पीले वस्त्र धारण करने चाहिए और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठना चाहिए। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गुरु पूजन, गणपति पूजन और मृत्युंजय मंत्र का एक माला जाप करना श्रेयस्कर है। इसके बाद संकल्प, आवाहन और न्यास (अंगन्यास, करन्यास) करें । हल्दी की माला से निर्दिष्ट बगलामुखी मंत्र का जाप (जैसे 6 माला प्रतिदिन या सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान) करना चाहिए। पूजा के उपरांत दान करने का भी विधान है।

vi. नियम एवं विशेष सावधानियां:

माँ बगलामुखी की साधना अत्यंत शक्तिशाली होती है, अतः इसे गुरु की आज्ञा और उनके मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। साधना को गुप्त रखना चाहिए । साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना, स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग से दूर रहना अनिवार्य है । यह साधना डरपोक या कमजोर हृदय वाले व्यक्तियों के लिए नहीं है, क्योंकि साधना के दौरान भयानक अनुभव या आवाजें सुनाई दे सकती हैं; ऐसे में साधक को अविचलित रहना चाहिए। साधना के दौरान दीपक निरंतर जलता रहना चाहिए।

vii. वामाचार/दक्षिणाचार पहलू:

माँ बगलामुखी उग्र कोटि की देवी हैं। उनकी पूजा मुख्यतः तांत्रिक विधि से होती है, जिसमें स्तंभन, उच्चाटन और वशीकरण जैसे प्रयोग शामिल हो सकते हैं, जो वामाचार की ओर संकेत करते हैं। हालांकि, उनकी सामान्य पूजा और मंत्र जाप दक्षिणाचार विधि से भी संभव है, जिसका उद्देश्य आत्मरक्षा और नकारात्मक शक्तियों का शमन होता है। बगलामुखी की पीत वर्ण और हल्दी जैसी पीली वस्तुओं का प्रयोग बृहस्पति ग्रह (ज्ञान और धर्म) के प्रभाव को दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि स्तंभन शक्ति का प्रयोग केवल धर्म और न्याय की रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए।

घ. साधना के लाभ:

माँ बगलामुखी की साधना से शत्रुओं का नाश होता है, उन पर विजय प्राप्त होती है, और उनकी वाणी, बुद्धि एवं गतिविधियों का स्तंभन हो जाता है। यह साधना सभी प्रकार के वाद-विवादों, मुकदमों और कोर्ट-कचहरी के मामलों में निश्चित सफलता दिलाती है। साधक को वाक् सिद्धि प्राप्त होती है, उसकी बुद्धि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है । जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर होती हैं और सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं। यह साधना काले जादू, बुरी नजर और अन्य नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है। कर्ज, बीमारी और दुर्घटनाओं से बचाव होता है । बगलामुखी साधना यह दर्शाती है कि तांत्रिक परंपरा में न केवल सृजनात्मक और विध्वंसात्मक शक्तियां हैं, बल्कि स्थिर करने और नियंत्रित करने वाली शक्तियां भी महत्वपूर्ण हैं, जो जीवन में संतुलन और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।


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