पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक बार फिर धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर सवाल खड़े हो गए हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के वरिष्ठ नेता नदीम अफ़ज़ल चान ने आरोप लगाया है कि भलवाल ज़िले के सनातन धर्म मंदिर की ऐतिहासिक ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया गया है और वहाँ पर एक वाणिज्यिक प्लाज़ा का निर्माण जारी है।
चान का आरोप सीधा पंजाब के प्रशासनिक शीर्ष स्तर तक जाता है। उनका कहना है कि यह कब्ज़ा प्रांत के चीफ़ सेक्रेटरी ज़ाहिद अख़्तर ज़मान के भतीजों द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने मीडिया को दिखाए गए वीडियो में भारी मशीनरी मंदिर परिसर के भीतर निर्माण कार्य करती नज़र आ रही है। चान का कहना है कि मंदिर की पुरानी भूमि रिकॉर्ड को बदलकर इसे सरकारी भूमि घोषित कर दिया गया और इसी के आधार पर यह “कब्ज़ा” वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है।
सरकारी प्रतिक्रिया और जांच
इन आरोपों के बाद Evacuee Trust Property Board (ETPB) हरकत में आया है। ETPB सचिव फरीद इक़बाल ने कहा है कि मंदिर की ज़मीन पर हो रहे निर्माण को लेकर नोटिस जारी किया गया है और अवैध निर्माण कार्य को रोकने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बोर्ड ने यह भी माना कि भेरहा और कोट मोमिन (सरगोधा) क्षेत्रों में भी ETPB की संपत्तियों पर इसी तरह के कब्ज़े की शिकायतें मिली हैं। हालाँकि पंजाब प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। चीफ़ सेक्रेटरी ज़मान ने इस विवाद पर टिप्पणी करने से इंकार किया है।
धार्मिक समुदाय की चिंता
स्थानीय हिन्दू समुदाय और मंदिर के पुजारी ने इस घटनाक्रम को “सांप्रदायिक साज़िश” बताया है। उनका कहना है कि पहले से ही अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थलों पर हमले और कब्ज़े की घटनाएँ बढ़ी हैं, और यदि सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए तो यह प्रवृत्ति और गहरी हो सकती है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और तस्वीरों ने मामले को और संवेदनशील बना दिया है। कई मानवाधिकार संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वह न केवल तत्काल कब्ज़ा रोके बल्कि ज़िम्मेदार अधिकारियों और आरोपियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई भी करे।
व्यापक संदर्भ
पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक आबादी लगभग दो प्रतिशत है और हाल के वर्षों में मंदिरों और पूजा स्थलों से जुड़े विवादों में वृद्धि दर्ज की गई है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने भी चिंता जताई है कि धार्मिक स्थलों पर अवैध निर्माण और कब्ज़े की घटनाएँ अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा की भावना को और बढ़ा देती हैं। यह मामला केवल एक ज़मीन विवाद नहीं, बल्कि पाकिस्तान की धार्मिक सहष्णुता और संविधान में दिए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की परीक्षा भी है। यदि आरोपों की पुष्टि होती है, तो यह नज़ीर बनेगा कि प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग किस तरह समुदाय विशेष के धार्मिक अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
निष्कर्ष
भलवाल का यह विवाद इस बात की याद दिलाता है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके स्थलों की रक्षा केवल क़ानून में लिखे शब्दों से संभव नहीं, बल्कि उसे ज़मीनी स्तर पर लागू करना भी उतना ही ज़रूरी है। पाकिस्तान सरकार और उसके संस्थानों के लिए यह अवसर है कि वे अपने दावों को अमल में लाएँ और अल्पसंख्यक समुदाय का विश्वास मज़बूत करें।