भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक पूज्य त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ—जिसे स्थानीय भाषा में माताबारी भी कहा जाता है—अब अपने नये रूप में पुनः जगमगा उठा है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने घोषणा की है कि 22 सितम्बर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहाँ पहुँचकर पुनर्निर्मित मंदिर का उद्घाटन करेंगे। यह केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि पूरे उत्तर–पूर्व भारत के लिए आस्था और गौरव का पर्व है।
शक्ति–साधना का महत्त्व
शास्त्रों के अनुसार, जहाँ-जहाँ सती माँ के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। उदयपुर स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर उन्हीं पवित्र स्थानों में है। कहा जाता है कि यहाँ दक्षिणा कालिका स्वयं त्रिपुरा सुंदरी के रूप में विराजती हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि यह स्थान त्रिकाल–सिद्धि और मुक्ति–मार्ग का प्रदाता है। नवरात्र और दीपावली पर यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं।
पुनर्निर्माण और नवदृष्टि
केंद्र की PRASHAD योजना और राज्य सरकार के सहयोग से इस मंदिर का नवीनीकरण हुआ है। परियोजना की लागत ₹97.7 करोड़ आँकी गई है। इस योजना में मंदिर परिसर का विस्तार, यात्रियों की सुविधा, और धार्मिक–सांस्कृतिक अनुभव को नया आयाम देने के उपाय शामिल हैं। सबसे आकर्षक तत्व है “51 शक्तिपीठ पार्क”—जहाँ सभी शक्तिपीठों की प्रतिकृतियाँ स्थापित होंगी। यह पार्क भक्तों को एक ही स्थान पर शक्ति परंपरा की व्यापक झलक दिखाएगा। इसके साथ ही यात्री–सुविधाएँ, मार्गों का आधुनिकीकरण, प्रकाश और जल–व्यवस्था, तथा सुरक्षा इंतज़ाम भी किए गए हैं।
प्रधानमंत्री का आगमन
मुख्यमंत्री साहा ने स्पष्ट किया है कि प्रधानमंत्री मोदी सीधे माताबारी में प्रवेश कर पूजा-अर्चना करेंगे और उद्घाटन करेंगे। कोई सार्वजनिक सभा नहीं होगी। यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि कार्यक्रम का केंद्र केवल माँ की आराधना और मंदिर का लोकार्पण है, न कि राजनीतिक भाषण। राज्य भर में इस अवसर की तैयारियाँ जोरों पर हैं। सुरक्षा एजेंसियाँ, मंत्रिपरिषद और स्थानीय प्रशासन लगातार स्थल का निरीक्षण कर रहे हैं। हेलीकॉप्टर कॉरिडोर, ट्रैफिक कंट्रोल और श्रद्धालुओं के आवागमन की विशेष योजनाएँ बन चुकी हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का यह नूतन रूप न केवल राज्य की धार्मिक पहचान को सशक्त करेगा, बल्कि उत्तर–पूर्व भारत को राष्ट्रीय तीर्थ पर्यटन की धारा से भी जोड़ देगा। यहाँ का उद्घाटन संदेश देता है कि धर्म और विकास एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। मंदिर में 51 शक्तिपीठों का साक्षात्कार करने वाला यह परिसर भारतीय आध्यात्मिकता की विविधता को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास है। भक्तों के लिए यह स्थल अब केवल दर्शन का स्थान नहीं, बल्कि संस्कृति–शिक्षा और आस्था–अनुभूति का केन्द्र होगा।
निष्कर्ष
22 सितम्बर का दिन केवल त्रिपुरा नहीं, पूरे भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा। जब प्रधानमंत्री स्वयं माताबारी के चरणों में प्रणाम करेंगे और नवनिर्मित मंदिर को राष्ट्र को समर्पित करेंगे, तो यह क्षण धर्म, संस्कृति और राष्ट्रनिर्माण के संगम का प्रतीक बनेगा। त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ हमें स्मरण कराता है कि भारत की शक्ति परंपरा आज भी जीवित है और आधुनिक विकास की धारा में वह और अधिक प्रकाशित हो रही है।