यमुना का बढ़ता प्रवाह और संकट की स्थिति
स्थानीय प्रशासन ने बताया कि आमतौर पर बांके बिहारी मंदिर और यमुना के बीच लगभग 600 मीटर की दूरी रहती है, किंतु इस बाढ़ ने उस दूरी को घटाकर केवल 100 मीटर कर दिया। मानो यमुना मैया अपने आंचल को बढ़ाकर सीधे अपने प्रभु के दरबार तक आ पहुँची हों। यह दृश्य भक्तों के लिए भय और भक्ति, दोनों का अनुभव कराता है। परिक्रमा मार्ग, जहाँ साधक और श्रद्धालु हर दिन “राधे-राधे” का नाम जपते हुए चरण रखते हैं, अब आधे किलोमीटर तक जल में डूब चुका है। वहाँ की हरियाली, धूल और पगडंडियाँ अब जलधारा के नीचे हैं—जैसे कृष्ण की बंसी की धुन पर यमुना स्वयं नृत्य कर रही हो।
प्रशासनिक चेतावनी और राहत प्रयास
मथुरा-वृंदावन प्रशासन ने तुरंत अलर्ट जारी करते हुए तीर्थयात्रियों और पर्यटकों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की है। गंगा घाटों और नदी तट से दूरी बनाने को कहा गया है। आगरा तक भी यमुना का पानी बढ़ने से हाथी घाट जलमग्न हो गया और ताजमहल परिसर तक पानी पहुँचने की खबरें हैं। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि जलस्तर और बढ़ा तो कई अन्य मंदिर मार्ग भी बंद करने पड़ सकते हैं। राहतकर्मी और स्थानीय स्वयंसेवक श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचा रहे हैं।
भक्तों की दृष्टि: आस्था और परीक्षा
सोशल मीडिया पर वृंदावन के मंदिरों की जलमग्न तस्वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं। कई भक्त इसे श्रीकृष्ण की लीला मानकर स्वीकार कर रहे हैं—जैसे यमुना मैया स्वयं प्रभु के चरणों में मिलने चली आई हों। किंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि यह परिस्थिति एक बड़ी चुनौती है। यह बाढ़ केवल प्राकृतिक संकट नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक परीक्षा भी है। ब्रज की परंपरा हमेशा यही कहती आई है कि भक्ति केवल आरती और भजन तक सीमित नहीं, बल्कि सेवा और संयम में भी निहित है। इस समय सबसे बड़ा भजन यही है कि एक-दूसरे की रक्षा करें, प्रशासन का सहयोग करें और धैर्य बनाए रखें।
निष्कर्ष: आस्था का दीपक
वृंदावन की यह बाढ़ हमें याद दिलाती है कि तीर्थ केवल आस्था का स्थल नहीं, बल्कि प्रकृति की अनिश्चितताओं के बीच संतुलन और सहअस्तित्व का पाठ भी है। यमुना का यह उफान अस्थायी है—जैसे ही जलस्तर घटेगा, परिक्रमा मार्ग पुनः खुल जाएगा और श्रद्धालु उसी उत्साह से “राधे-राधे” का संकीर्तन करेंगे। पर यह अनुभव हमें हमेशा यह स्मरण कराएगा कि भक्ति का अर्थ केवल मंदिर तक पहुँचना नहीं, बल्कि परिस्थिति में धैर्य रखना और प्रकृति के संदेश को समझना भी है।