कामाख्या देवी मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी शहर में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह माँ शक्ति (सती) को समर्पित 51 शक्तिपीठों में प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यता अनुसार माता सती का योनि अंग यहाँ गिरा था। यही कारण है कि यह स्थल देवी कामाख्या के शक्तिपीठ के रूप में अति श्रद्धेय है।
कामाख्या मंदिर का प्रारंभिक इतिहास स्पष्ट नहीं है, किंतु प्राचीन साहित्य में इसका उल्लेख 7वीं सदी से मिलता है। माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण प्रागज्योतिषपुर के राजाओं ने प्राचीन काल में किया था और यह मुस्लिम आक्रमण में नष्ट हुआ। वर्तमान मंदिर 1565 ई. में कोच राजा नर नारायण द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।
देवी कामाख्या को कामना की देवी कहा जाता है और तांत्रिक उपासना में उनका विशेष स्थान है।
कलिका पुराण आदि ग्रंथों में कामाख्या देवी की महिमा विस्तृत रूप से वर्णित है। यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि गर्भगृह में योनि आकार की शिला है जिसे भूमिगत प्राकृतिक झरने का जल सतत भिगोता रहता है – यही देवी का प्रतीक है।
कामाख्या मंदिर नीलाचल शैली की पारंपरिक असमिया वास्तुकला में बना है। इसका शिखर गुंबदाकार है और चारों ओर कई छोटे गुंबद हैं। मंदिर का वर्तमान ढांचा 16वीं शताब्दी में बने पत्थर के मंदिर के अवशेषों पर आधारित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए संकीर्ण सीढ़ियाँ हैं, जहाँ प्राकृतिक गुफानुमा संरचना में देवी स्थापित हैं। मंदिर की दीवारों पर मूर्तिकला में देवी-देवताओं की आकृतियाँ और शिलालेख अंकित हैं। परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। असम की पारंपरिक शिल्पकला की झलक मंदिर की बनावट में देखने को मिलती है।
कामाख्या मंदिर सबसे अधिक अपने रहस्यमय पर्व अंबुवाची मेले के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ (जून) माह में तीन दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि मान्यता है कि इस अवधि में देवी कामाख्या रजस्वला (मासिक धर्म) होती हैं। इन दिनों गर्भगृह में स्थित झरने का पानी लाल रंग का हो जाता है जिसे देवी के ऋतुस्वास्थ्य (रजोधर्म) का प्रतीक माना जाता है। तीन दिन बाद मंदिर खोलकर भक्तों को “रक्तवस्त्र” प्रसाद स्वरूप दिया जाता है – यह वह लाल कपड़ा होता है जिससे उस दौरान देवी के स्थल को ढंका गया था। यह घटना आधुनिक विज्ञान के लिए आज भी रहस्य है कि झरने का जल स्वतः लाल कैसे हो जाता है।
मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठानों का भी विशेष महत्व है – देशभर से तांत्रिक यहाँ शक्तिपूजन करने आते हैं और कहा जाता है कि यहाँ साधना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। कामाख्या को “कामदेवी” भी कहते हैं और मान्यता है कि यहाँ निसंतान दंपत्ति पूजा करें तो संतानप्राप्ति की कामना पूर्ण होती है।
कामाख्या मंदिर अपनी तांत्रिक साधना और अंबुवाची मेले के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह शक्तिपीठ स्त्री ऊर्जा और सृजन शक्ति का उत्सव है जहाँ देवी के मासिक धर्म को दिव्य दृष्टि से मान्यता दी गई है। शक्तिपूजा के इस केंद्र को आदि शक्तिपीठ भी कहा जाता है। देश-विदेश से पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ के रहस्यमय पर्व को देखने आते हैं। कामाख्या मंदिर पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है और गुवाहाटी आने वाले हर भक्त की आस्था का मुख्य केंद्र रहता है।
अंबुवाची मेला (जून) इस मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव है, जब लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। इसके अलावा दुर्गापूजा और नवरात्रि में भी भव्य समारोह होते हैं। दुर्गाष्टमी और विश्वकर्मा पूजा पर भी विशेष पूजन होता है। प्रतिदिन मंदिर में प्रातः और संध्या आरती होती है। बलि प्रथा भी लंबे समय से यहाँ रही है – अंबुवाची के समय पशुबलि दी जाती थी (हालांकि अब काफी नियंत्रित है)। मंदिर में प्रसाद के रूप में कामाख्या प्रसाद मिलता है जिसमें हलवा और नारियल आदि होते हैं। खास बात यह है कि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति है, जो अन्य कई मंदिरों से इसे अलग बनाता है।
वैज्ञानिकों ने कामाख्या के प्राकृतिक लाल झरने के पानी की रासायनिक संरचना को समझने की कोशिश की है। कुछ मतों के अनुसार पहाड़ी मिट्टी में लौह-अयस्क की अधिकता के कारण पानी लाल हो सकता है, परंतु निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सका है। मंदिर का स्थान भी भूवैज्ञानिक दृष्टि से विशेष है – कुछ अध्ययनों में पहाड़ी के नीचे रेडियोक्टीव या ऊष्मीय ऊर्जा स्रोतों के होने की बात कही गई जो पानी के रंग को प्रभावित कर सकते हैं। फिर भी स्थानीय पुजारी इस लाल रंग को देवी के शक्ति-चिन्ह के रूप में ही देखते हैं। तांत्रिक अनुष्ठानों को लेकर भी वैज्ञानिक मानते हैं कि यह ध्यान और मनोवैज्ञानिक विश्वास का प्रभाव होता होगा, जिसके कारण साधकों को अनुभव होते हैं। पर अनेक साधक यहाँ अलौकिक अनुभव पाने का दावा करते हैं, जो विज्ञान की सीमा से परे है।
कामाख्या आने वाले भक्त बताते हैं कि इस शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से मनोकामनाएँ पूर्ण होने का विश्वास जागृत होता है। अंबुवाची मेले के दौरान तो वातावरण में अद्भुत ऊर्जा महसूस होती है – साधु-संतों का जमावड़ा, तांत्रिकों की पूजा और देवी का चमत्कारिक दर्शन, यह सब भक्तों को आध्यात्मिक आनंद से भर देता है। कई श्रद्धालु बताते हैं कि उन्हें यहाँ आकर आत्मिक शांति और मानसिक शक्ति मिलती है। स्त्रियाँ विशेषकर कामाख्या माँ से प्रार्थना करती हैं और कई निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलने की कथाएँ भी प्रचलित हैं। कुल मिलाकर कामाख्या शक्तिपीठ श्रद्धा, रहस्य और शक्ति का ऐसा संगम है जिसे अनुभव करके ही समझा जा सकता है।
कामाख्या देवी मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी शहर में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है। यह माँ शक्ति (सती) को समर्पित 51 शक्तिपीठों में प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है, क्योंकि पौराणिक मान्यता अनुसार माता सती का योनि अंग यहाँ गिरा था। यही कारण है कि यह स्थल देवी कामाख्या के शक्तिपीठ के रूप में अति श्रद्धेय है।
कामाख्या मंदिर का प्रारंभिक इतिहास स्पष्ट नहीं है, किंतु प्राचीन साहित्य में इसका उल्लेख 7वीं सदी से मिलता है। माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण प्रागज्योतिषपुर के राजाओं ने प्राचीन काल में किया था और यह मुस्लिम आक्रमण में नष्ट हुआ। वर्तमान मंदिर 1565 ई. में कोच राजा नर नारायण द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।
देवी कामाख्या को कामना की देवी कहा जाता है और तांत्रिक उपासना में उनका विशेष स्थान है।
कलिका पुराण आदि ग्रंथों में कामाख्या देवी की महिमा विस्तृत रूप से वर्णित है। यहाँ देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि गर्भगृह में योनि आकार की शिला है जिसे भूमिगत प्राकृतिक झरने का जल सतत भिगोता रहता है – यही देवी का प्रतीक है।
कामाख्या मंदिर नीलाचल शैली की पारंपरिक असमिया वास्तुकला में बना है। इसका शिखर गुंबदाकार है और चारों ओर कई छोटे गुंबद हैं। मंदिर का वर्तमान ढांचा 16वीं शताब्दी में बने पत्थर के मंदिर के अवशेषों पर आधारित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए संकीर्ण सीढ़ियाँ हैं, जहाँ प्राकृतिक गुफानुमा संरचना में देवी स्थापित हैं। मंदिर की दीवारों पर मूर्तिकला में देवी-देवताओं की आकृतियाँ और शिलालेख अंकित हैं। परिसर में अन्य छोटे मंदिर भी हैं जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। असम की पारंपरिक शिल्पकला की झलक मंदिर की बनावट में देखने को मिलती है।
कामाख्या मंदिर सबसे अधिक अपने रहस्यमय पर्व अंबुवाची मेले के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ (जून) माह में तीन दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं क्योंकि मान्यता है कि इस अवधि में देवी कामाख्या रजस्वला (मासिक धर्म) होती हैं। इन दिनों गर्भगृह में स्थित झरने का पानी लाल रंग का हो जाता है जिसे देवी के ऋतुस्वास्थ्य (रजोधर्म) का प्रतीक माना जाता है। तीन दिन बाद मंदिर खोलकर भक्तों को “रक्तवस्त्र” प्रसाद स्वरूप दिया जाता है – यह वह लाल कपड़ा होता है जिससे उस दौरान देवी के स्थल को ढंका गया था। यह घटना आधुनिक विज्ञान के लिए आज भी रहस्य है कि झरने का जल स्वतः लाल कैसे हो जाता है।
मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठानों का भी विशेष महत्व है – देशभर से तांत्रिक यहाँ शक्तिपूजन करने आते हैं और कहा जाता है कि यहाँ साधना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। कामाख्या को “कामदेवी” भी कहते हैं और मान्यता है कि यहाँ निसंतान दंपत्ति पूजा करें तो संतानप्राप्ति की कामना पूर्ण होती है।
कामाख्या मंदिर अपनी तांत्रिक साधना और अंबुवाची मेले के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह शक्तिपीठ स्त्री ऊर्जा और सृजन शक्ति का उत्सव है जहाँ देवी के मासिक धर्म को दिव्य दृष्टि से मान्यता दी गई है। शक्तिपूजा के इस केंद्र को आदि शक्तिपीठ भी कहा जाता है। देश-विदेश से पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ के रहस्यमय पर्व को देखने आते हैं। कामाख्या मंदिर पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है और गुवाहाटी आने वाले हर भक्त की आस्था का मुख्य केंद्र रहता है।
अंबुवाची मेला (जून) इस मंदिर का सबसे बड़ा उत्सव है, जब लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। इसके अलावा दुर्गापूजा और नवरात्रि में भी भव्य समारोह होते हैं। दुर्गाष्टमी और विश्वकर्मा पूजा पर भी विशेष पूजन होता है। प्रतिदिन मंदिर में प्रातः और संध्या आरती होती है। बलि प्रथा भी लंबे समय से यहाँ रही है – अंबुवाची के समय पशुबलि दी जाती थी (हालांकि अब काफी नियंत्रित है)। मंदिर में प्रसाद के रूप में कामाख्या प्रसाद मिलता है जिसमें हलवा और नारियल आदि होते हैं। खास बात यह है कि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति है, जो अन्य कई मंदिरों से इसे अलग बनाता है।
वैज्ञानिकों ने कामाख्या के प्राकृतिक लाल झरने के पानी की रासायनिक संरचना को समझने की कोशिश की है। कुछ मतों के अनुसार पहाड़ी मिट्टी में लौह-अयस्क की अधिकता के कारण पानी लाल हो सकता है, परंतु निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सका है। मंदिर का स्थान भी भूवैज्ञानिक दृष्टि से विशेष है – कुछ अध्ययनों में पहाड़ी के नीचे रेडियोक्टीव या ऊष्मीय ऊर्जा स्रोतों के होने की बात कही गई जो पानी के रंग को प्रभावित कर सकते हैं। फिर भी स्थानीय पुजारी इस लाल रंग को देवी के शक्ति-चिन्ह के रूप में ही देखते हैं। तांत्रिक अनुष्ठानों को लेकर भी वैज्ञानिक मानते हैं कि यह ध्यान और मनोवैज्ञानिक विश्वास का प्रभाव होता होगा, जिसके कारण साधकों को अनुभव होते हैं। पर अनेक साधक यहाँ अलौकिक अनुभव पाने का दावा करते हैं, जो विज्ञान की सीमा से परे है।
कामाख्या आने वाले भक्त बताते हैं कि इस शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से मनोकामनाएँ पूर्ण होने का विश्वास जागृत होता है। अंबुवाची मेले के दौरान तो वातावरण में अद्भुत ऊर्जा महसूस होती है – साधु-संतों का जमावड़ा, तांत्रिकों की पूजा और देवी का चमत्कारिक दर्शन, यह सब भक्तों को आध्यात्मिक आनंद से भर देता है। कई श्रद्धालु बताते हैं कि उन्हें यहाँ आकर आत्मिक शांति और मानसिक शक्ति मिलती है। स्त्रियाँ विशेषकर कामाख्या माँ से प्रार्थना करती हैं और कई निसंतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलने की कथाएँ भी प्रचलित हैं। कुल मिलाकर कामाख्या शक्तिपीठ श्रद्धा, रहस्य और शक्ति का ऐसा संगम है जिसे अनुभव करके ही समझा जा सकता है।