भवानीपुर गांव, मधुबनी जिला, बिहार। यह स्थान मधुबनी से लगभग 14 किलोमीटर दूर है।
भगवान शिव (जिन्हें 'उगना' या 'उग्रनाथ' के रूप में पूजा जाता है)।
Beautiful yellow-red-golden wooden throne with silky velvet bedding. Ideal for Laddu Gopal ji's daily pooja.
यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका सटीक निर्माण काल अज्ञात है, परंतु इसका सबसे महत्वपूर्ण संबंध 14वीं-15वीं शताब्दी के महान मैथिली कवि और शिवभक्त विद्यापति से है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट) माना जाता है।
इस मंदिर से जुड़ी सबसे अद्भुत और मार्मिक कथा यह है कि भगवान शिव स्वयं अपने परम भक्त महाकवि विद्यापति की सेवा करने के लिए मनुष्य रूप में प्रकट हुए थे। विद्यापति की गहन भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने 'उगना' नाम से एक साधारण सेवक का भेष धारण किया और विद्यापति के घर में उनकी चाकरी करने लगे। यह घटना भक्त और भगवान के बीच अगाध प्रेम और भगवान की अपने भक्तों के प्रति असीम अनुकंपा का अद्वितीय उदाहरण है।
एक बार यात्रा के दौरान, जब विद्यापति को तीव्र प्यास लगी और आसपास कोई जलस्रोत नहीं था, तब उगना (भगवान शिव) ने अपनी जटाओं से पवित्र गंगाजल निकालकर विद्यापति को पिलाया। उस जल का स्वाद सामान्य जल से भिन्न और दिव्य होने के कारण विद्यापति को संदेह हुआ और उन्होंने उगना से सत्य पूछा। तब भगवान शिव ने उन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया।
Trusted Hindi translation of the timeless Geeta. Ideal for daily study, gifting, or temple reading.
भगवान शिव ने विद्यापति को अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराने के बाद यह रहस्य गुप्त रखने का निर्देश दिया था। परंतु, एक दिन जब विद्यापति की पत्नी सुशीला ने किसी बात पर क्रोधित होकर उगना (भगवान शिव) को चूल्हे की जलती लकड़ी से प्रताड़ित किया, तो विद्यापति से यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी को उगना का वास्तविक परिचय बता दिया। रहस्य उजागर होते ही, भगवान शिव उसी स्थान पर अंतर्ध्यान हो गए।
माना जाता है कि जिस स्थान पर भगवान शिव ने विद्यापति को अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिया था और जहाँ से वे अंतर्ध्यान हुए थे, ठीक उसी पवित्र स्थल पर आज यह उगना महादेव मंदिर स्थापित है।
उगना महादेव मंदिर भक्त और भगवान के बीच के निश्छल, अंतरंग और सेवापूर्ण संबंध का एक अत्यंत दुर्लभ और प्रेरणादायक प्रतीक है। यह कथा दर्शाती है कि सच्ची भक्ति से भगवान को भी वश में किया जा सकता है। मैथिली साहित्य और संस्कृति में महाकवि विद्यापति और उनसे जुड़ी यह शिव-लीला का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर विद्यापति की प्रगाढ़ शिव-भक्ति और भगवान शिव की अपने भक्तों के प्रति वात्सल्यपूर्ण कृपा का जीवंत स्मारक है।
शिवभक्तों के लिए संपूर्ण ग्यारह खंडों में शिव महापुराण – साधना, स्तुति और ज्ञान का संग्रह।
भगवान का स्वयं अपने भक्त का सेवक बनना – यह कथा अपने आप में इतनी अद्वितीय है कि यह व्यापक रूप से ज्ञात होने पर भी अपनी दिव्यता और विशिष्टता बनाए रखती है। बहुत से लोग इस मंदिर के इस मूल प्रसंग की गहराई से परिचित नहीं हो सकते हैं।
मंदिर का नाम 'उगना महादेव' स्वयं भगवान शिव के उस सेवक रूप को समर्पित है, जो उनकी लीला का स्मरण कराता है।
महाकवि विद्यापति एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं और उनकी रचनाओं तथा जीवन से जुड़ी कथाएं मैथिली लोक परंपराओं में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। सदियों से चली आ रही मौखिक परंपरा और स्थानीय भक्तों की अटूट आस्था इस मंदिर और इससे जुड़ी कथा की प्रामाणिकता के सबसे बड़े प्रमाण हैं। मंदिर का अस्तित्व स्वयं इस दिव्य घटना का साक्षी है।
भवानीपुर गांव, मधुबनी जिला, बिहार। यह स्थान मधुबनी से लगभग 14 किलोमीटर दूर है।
भगवान शिव (जिन्हें 'उगना' या 'उग्रनाथ' के रूप में पूजा जाता है)।
Beautiful yellow-red-golden wooden throne with silky velvet bedding. Ideal for Laddu Gopal ji's daily pooja.
यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका सटीक निर्माण काल अज्ञात है, परंतु इसका सबसे महत्वपूर्ण संबंध 14वीं-15वीं शताब्दी के महान मैथिली कवि और शिवभक्त विद्यापति से है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू (प्राकृतिक रूप से प्रकट) माना जाता है।
इस मंदिर से जुड़ी सबसे अद्भुत और मार्मिक कथा यह है कि भगवान शिव स्वयं अपने परम भक्त महाकवि विद्यापति की सेवा करने के लिए मनुष्य रूप में प्रकट हुए थे। विद्यापति की गहन भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने 'उगना' नाम से एक साधारण सेवक का भेष धारण किया और विद्यापति के घर में उनकी चाकरी करने लगे। यह घटना भक्त और भगवान के बीच अगाध प्रेम और भगवान की अपने भक्तों के प्रति असीम अनुकंपा का अद्वितीय उदाहरण है।
एक बार यात्रा के दौरान, जब विद्यापति को तीव्र प्यास लगी और आसपास कोई जलस्रोत नहीं था, तब उगना (भगवान शिव) ने अपनी जटाओं से पवित्र गंगाजल निकालकर विद्यापति को पिलाया। उस जल का स्वाद सामान्य जल से भिन्न और दिव्य होने के कारण विद्यापति को संदेह हुआ और उन्होंने उगना से सत्य पूछा। तब भगवान शिव ने उन्हें अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया।
Trusted Hindi translation of the timeless Geeta. Ideal for daily study, gifting, or temple reading.
भगवान शिव ने विद्यापति को अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराने के बाद यह रहस्य गुप्त रखने का निर्देश दिया था। परंतु, एक दिन जब विद्यापति की पत्नी सुशीला ने किसी बात पर क्रोधित होकर उगना (भगवान शिव) को चूल्हे की जलती लकड़ी से प्रताड़ित किया, तो विद्यापति से यह सहन नहीं हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी को उगना का वास्तविक परिचय बता दिया। रहस्य उजागर होते ही, भगवान शिव उसी स्थान पर अंतर्ध्यान हो गए।
माना जाता है कि जिस स्थान पर भगवान शिव ने विद्यापति को अपने विराट स्वरूप का दर्शन दिया था और जहाँ से वे अंतर्ध्यान हुए थे, ठीक उसी पवित्र स्थल पर आज यह उगना महादेव मंदिर स्थापित है।
उगना महादेव मंदिर भक्त और भगवान के बीच के निश्छल, अंतरंग और सेवापूर्ण संबंध का एक अत्यंत दुर्लभ और प्रेरणादायक प्रतीक है। यह कथा दर्शाती है कि सच्ची भक्ति से भगवान को भी वश में किया जा सकता है। मैथिली साहित्य और संस्कृति में महाकवि विद्यापति और उनसे जुड़ी यह शिव-लीला का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर विद्यापति की प्रगाढ़ शिव-भक्ति और भगवान शिव की अपने भक्तों के प्रति वात्सल्यपूर्ण कृपा का जीवंत स्मारक है।
शिवभक्तों के लिए संपूर्ण ग्यारह खंडों में शिव महापुराण – साधना, स्तुति और ज्ञान का संग्रह।
भगवान का स्वयं अपने भक्त का सेवक बनना – यह कथा अपने आप में इतनी अद्वितीय है कि यह व्यापक रूप से ज्ञात होने पर भी अपनी दिव्यता और विशिष्टता बनाए रखती है। बहुत से लोग इस मंदिर के इस मूल प्रसंग की गहराई से परिचित नहीं हो सकते हैं।
मंदिर का नाम 'उगना महादेव' स्वयं भगवान शिव के उस सेवक रूप को समर्पित है, जो उनकी लीला का स्मरण कराता है।
महाकवि विद्यापति एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं और उनकी रचनाओं तथा जीवन से जुड़ी कथाएं मैथिली लोक परंपराओं में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। सदियों से चली आ रही मौखिक परंपरा और स्थानीय भक्तों की अटूट आस्था इस मंदिर और इससे जुड़ी कथा की प्रामाणिकता के सबसे बड़े प्रमाण हैं। मंदिर का अस्तित्व स्वयं इस दिव्य घटना का साक्षी है।