Pauranik Comments(0) Like(0) 5 Min Read

पढ़िए: राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर का रहस्य! और वहाँ क्यों होती है हज़ारों चूहों की पूजा?

🎧 इस लेख को सुनें

पढ़िए: राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर का रहस्य! और वहाँ क्यों होती है हज़ारों चूहों की पूजा?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

करणी माता मंदिर, देशनोक (राजस्थान)

स्थान एवं परिचय

करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के बीकानेर ज़िले में देशनोक नामक कस्बे में स्थित है।

यह मंदिर “चूहों वाला मंदिर” के नाम से मशहूर है, क्योंकि यहाँ करीब 20,000 काले चूहे स्वतंत्र रूप से मंदिर परिसर में रहते हैं और श्रद्धालु उनकी पूजासेवा करते हैं।

दुनिया में अपनी तरह का यह अनोखा मंदिर माता करणी (जिन्हें दुर्गा माता का अवतार माना जाता है) को समर्पित है।

सफेद संगमरमर से बने इसके द्वार और चांदी से जड़ी बाड़े इसकी भव्यता दिखाते हैं, लेकिन सबसे अद्भुत दृश्य है – जगर-मगर दौड़ते हुए असंख्य चूहे, जो भक्तों के पैरों से खेलते रहते हैं।

इतिहास व पौराणिक कथा

करणी माता का जन्म 14वीं शताब्दी में चारण वंश में हुआ था।

लोकदेवी के रूप में उन्होंने बीकानेर और जोधपुर रियासतों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

करणी माता को शक्ति स्वरूपा माना गया और मान्यता है कि उन्होंने 151 वर्ष की आयु तक जीवित रहकर अनेक चमत्कार किए।

इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक प्रसिद्ध कथा है – करणी माता की बहन का पुत्र लक्ष्मण कपिल सरोवर (कोलायत) में डूब कर मर गया

माता करणी ने अपनी शक्ति से यमराज से उसे पुनर्जीवित करने को कहा, पर यमराज ने इंकार कर दिया।

तब माता ने घोषणा की कि उनके परिवार के लोग मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाएंगे बल्कि चूहे के रूप में इस मंदिर में ही जीवित रहेंगे।

उन्होंने उस बालक को भी चूहे के रूप में पुर्नजीवित कर दिया।

ऐसी भी मान्यता है कि करणी माता ने युद्ध में मारे गए सैनिकों को चूहों का रूप दे दिया और अपनी सेवा में रख लिया।

इस तरह यह मंदिर उन मनुष्यों के पुनर्जन्म स्वरूप चूहों का निवास बन गया जो माता के आशीर्वाद से मृत्यु के बाद भी यहाँ मौजूद हैं।

ऐतिहासिक महत्व

ऐतिहासिक तौर पर वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने लगभग 20वीं सदी की शुरुआत (1900 के आसपास) में करवाया था।

इसमें संगमरमर का विशाल द्वार और परिसर है।

पर करणी माता की पूजा तो उनके जीवनकाल (लगभग 1530 में समाधि लेने के बाद) से ही होने लगी थी।

इस मंदिर को पाकिस्तान में हिंगलाज शक्ति पीठ से भी जोड़कर देखा जाता है – कुछ इतिहासकारों का मत है कि देश विभाजन के बाद हिंगलाज देवी (जो करणी माता से समरूप मानी जाती हैं) की परंपरा को लोग यहाँ ले आए

वास्तुकला की विशेषताएँ

करणी माता मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से राजपूत और मुगल शैली का मिश्रण दर्शाता है।

इसके मुख्य द्वार पर चांदी के बड़े-बड़े दरवाज़े हैं जिन पर देवी के विभिन्न रूप अंकित हैं।

मंदिर का अग्रभाग संगमरमर का बना है जिस पर सुंदर जाली का काम और फूल-पत्तियों की खुदाई है।

अंदर गर्भगृह तक चांदी की बाड़ लगी है ताकि चूहे उससे अंदर-बाहर आ-जा सकें।

गर्भगृह में माता करणी की प्रतिमा विराजमान है और सामने उनकी सवारी (सिंह) की मूर्ति है।

फर्श संगमरमर का है और दीवारों पर उल्टे कलश जैसी आकृतियाँ हैं जहां चूहे बैठना पसंद करते हैं।

विशेष यह कि पूरे मंदिर में चूहों की रक्षा हेतु धातु की जालियां ऊपर लगाई गई हैं ताकि चील, बाज़ जैसे शिकारी पक्षी अंदर आ सकें।

मंदिर में कई बड़े कटोरे या थाल रखे रहते हैं जिनमें दूध और प्रसाद चूहों के खाने के लिए डाला जाता है।

कुल मिलाकर मंदिर उतना भव्य नहीं जितना विचित्र है – यहाँ मानव और चूहों का सह-अस्तित्व इसकी वास्तुकला का अभिन्न अंग है।

असाधारण रहस्य और चमत्कार

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य हैं – इसके चूहे

सुबह मंगला आरती से लेकर रात शयन आरती तक हजारों चूहे मंदिर में दौड़ते-फिरते रहते हैं और भक्त उनके बीच से चलते हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि इतने चूहों के संपर्क में आने पर भी आज तक कोई बीमारी (प्लेग आदि) यहाँ नहीं फैली, न ही चूहों द्वारा किसी को काटने या नुकसान की घटना होती है।

भक्त इन चूहों को कब्बा कहते हैं और करणी माता के बच्चे मानते हैं।

यदि कोई चूहा आपके पैर पर चढ़ जाए तो उसे शुभ माना जाता है।

यहां तक कि चूहों द्वारा झूठा किया प्रसाद भी भक्त आदरपूर्वक ग्रहण करते हैं और कहते हैं इससे माता का आशीर्वाद मिलता है लेकिन कोई रोग नहीं होता।

यह बात वैज्ञानिक दृष्टि से चौंकाने वाली है कि इतने चूहों के बीच भी सफाई और स्वास्थ्य बना रहता है।

मंदिर में लगभग 20,000 चूहे हैं, अधिकतर काले रंग के।

इनमें से कुछ विरले सफेद रंग के चूहे भी हैं, जिन्हें अत्यंत शुभ माना जाता है।

मान्यता है कि सफेद चूहे करणी माता के अवतार या उनके परिवार के विशेष सदस्यों की आत्मा हैं और इन्हें देखना सौभाग्यशाली होता है।

दर्शनार्थी सफेद चूहों की एक झलक पाने को उत्सुक रहते हैं।

एक और प्रथा है – अगर दुर्भाग्यवश किसी भक्त के पैर से कोई चूहा मर जाए, तो प्रायश्चितस्वरूप उसे उतने ही वजन का चांदी का चूहा मंदिर में अर्पित करना पड़ता है।

चूहों का अनुशासन और मंदिर के चमत्कार

यह भी चमत्कार ही माना जाएगा कि इतने चूहे दिन में आरती के समय अनुशासन से बाहर आकर पूजा में शामिल होते हैं।

सुबह मंगला आरती और शाम संध्या आरती के वक्त बड़ी संख्या में चूहे बिलों से निकलकर गर्भगृह के आसपास घूमते हैं मानो आरती में संगत कर रहे हों।

जैसे ही आरती समाप्त होती है, वे फिर प्रसाद खाने या खेल में लग जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, मंदिर में स्थापित अखंड दीपक सदियों से जल रहा है (कहते हैं करणी माता के समय से प्रज्वलित है)।

कुल मिलाकर, चूहों की उपस्थिति और उनसे जुड़े इतने तथ्यों ने सदियों से इस मंदिर को रहस्यमय बना रखा है।

प्रसिद्धि के कारण

करणी माता मंदिर की ख्याति का मुख्य आधार हैं यहाँ के चूहे

चूहों का मंदिर” सुनते ही देश-विदेश के पर्यटक भी अचरजवश यहाँ आना चाहते हैं।

यह मंदिर लोकदेवी करणी माता की शक्ति पर श्रद्धा का जीवंत उदाहरण माना जाता है कि कैसे उनकी कृपा से चूहे पूजा जाते हैं और इंसान के साथ रहते हैं।

चूंकि ऐसा मंदिर दुनियाभर में दूसरा नहीं, इसलिए अनेक अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं, चैनलों ने इसे कवर किया है, जिससे यह विश्वविख्यात पर्यटन स्थल बन गया।

भक्तों के लिए यह स्थान अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है – मान्यता है कि माता करणी जागृत देवी हैं जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं (जिसका उदाहरण चूहों की रक्षा है)।

बीकानेर राजघराने की कुलदेवी होने के नाते भी इस मंदिर को राजस्य संरक्षण मिला है और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है।

मुख्य उत्सव और परंपराएँ

नवरात्रि में (चैत्र और आश्विन, दोनों) करणी माता मंदिर में विशाल मेलों का आयोजन होता है।

श्रद्धालु पैदल यात्रा कर देशनोक पहुँचते हैं।

नवरात्रों के चौथे दिन (चैत्र शुक्ल चतुर्थी) को करणी माता का स्थापना दिवस मनाया जाता है – दूर-दूर से भक्त आते हैं, भजन-कीर्तन होते हैं और विशेष श्रृंगार किया जाता है।

इसके अलावा हर वर्ष मार्च-अप्रैल में करणी माता मेले लगते हैं जहाँ सैकड़ों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

दैनिक अनुष्ठानों में सुबह मंगला आरती, दोपहर भोग और शाम संध्या आरती शामिल हैं, जिनमें चूहों को खास प्रसाद दिया जाता है।

श्रद्धालु अपने घरों से अनाज, मिठाई आदि भी चूहों के लिए लाकर दान करते हैं।

एक विशेष सेवा यह है कि यहाँ आने वाले भक्त खुद झाड़ू लेकर मंदिर साफ करते हैं ताकि चूहों का मल-मूत्र हटाकर सफाई रखी जा सके – इसे वे पुनीत कार्य मानते हैं।

इस सहयोग से भी मंदिर हमेशा अपेक्षाकृत स्वच्छ रहता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक समुदाय के लिए करणी माता मंदिर एक विचित्र पारिस्थितिकी तंत्र सरीखा है।

जैव विज्ञान की दृष्टि से इतने चूहों के बावजूद महामारी न फैलना समझ से परे है।

कुछ अध्ययनों में पाया गया कि यहाँ के चूहों में प्लेग के जीवाणु मौजूद नहीं हैं – संभवतः रेगिस्तानी क्षेत्र होने से या किसी प्रतिरोधी क्षमता के कारण।

कुछ का मत है कि मंदिर में हर कोने पर लगाए गए नीम के निरंतर प्रसार और नियमित सफाई के कारण बैक्टीरिया पनप नहीं पाते।

यह मंदिर मानव-पशु सहजीवन का अद्वितीय केस स्टडी है।

शोधार्थी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इतनी बड़ी चूहों की आबादी एक ही जगह कैसे नियंत्रित रहती है – शायद भोजन की उपलब्धता के आधार पर उनकी प्राकृतिक जनसंख्या नियंत्रण हो जाता है।

भक्तों व पर्यटकों के अनुभव

जो भी व्यक्ति पहली बार इस मंदिर में आता है, वह सैकड़ों चूहों को पैरों के आसपास घूमते देख अचंभित रह जाता है।

शुरू में कुछ डर या घिन का भाव हो सकता है, लेकिन कुछ ही देर में जब देखते हैं कि ये चूहे बेहद निर्भय और अहिंसक हैं, तब वह भय प्रेम में बदल जाता है।

भक्त बताते हैं कि प्रसाद का कटोरा रखते ही चूहों का झुंड आकर दूध पीने लगता है – यह दृश्य उनके दिल में माता के चमत्कार के प्रति श्रद्धा भर देता है।

कई लोगों को यहाँ सफेद चूहा दिख जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वे इसे अपने जीवन की सबसे विशेष घटना मानते हैं।

एक पर्यटक ने लिखा कि – “मैं एक चूहे को हाथ से उठाकर दुलारने लगी और वह बिलकुल नहीं भागा, तब मुझे अहसास हुआ कि सच में देवी की कृपा से ये मानव-मित्र बन चुके हैं।”

कुछ भक्त अपनी समस्याएँ लेकर आते हैं और मानते हैं कि कब्बा (चूहा) द्वारा छू जाने पर उनकी तकलीफ दूर हो जाएगी।

उनके लिए यह स्पर्श किसी आशीर्वाद से कम नहीं।

बाहर से आने वाले पर्यटकों को आरंभ में असुविधा होती है – मसलन पाँव में चूहे लिपट जाएँगे, आदि – किंतु मंदिर प्रबंधन ने चप्पल-जूते बाहर रखवाकर, अंदर निरंतर सफाई रखकर माहौल को संभाला हुआ है।

कुल मिलाकर, यहाँ हर व्यक्ति एक अनूठा किस्सा लेकर जाता है कि – “कैसे हमने चूहों के साथ बैठकर प्रसाद खाया और कुछ भी असामान्य नहीं लगा” – ऐसी सद्भावना करणी माता की महिमा ही है।


करणीमंदिरमाताकाबारहस्यपूजा
Image Gallery
बाबा बैद्यनाथ धाम: शिव शक्ति के पावन मिलन स्थल की पौराणिक महिमा, पूजन विधि, भक्ति परंपराएँ और आध्यात्मिक रहस्य !
Featured Posts

पढ़िए: राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर का रहस्य! और वहाँ क्यों होती है हज़ारों चूहों की पूजा?

🎧 इस लेख को सुनें

पढ़िए: राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता मंदिर का रहस्य! और वहाँ क्यों होती है हज़ारों चूहों की पूजा?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

करणी माता मंदिर, देशनोक (राजस्थान)

स्थान एवं परिचय

करणी माता का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के बीकानेर ज़िले में देशनोक नामक कस्बे में स्थित है।

यह मंदिर “चूहों वाला मंदिर” के नाम से मशहूर है, क्योंकि यहाँ करीब 20,000 काले चूहे स्वतंत्र रूप से मंदिर परिसर में रहते हैं और श्रद्धालु उनकी पूजासेवा करते हैं।

दुनिया में अपनी तरह का यह अनोखा मंदिर माता करणी (जिन्हें दुर्गा माता का अवतार माना जाता है) को समर्पित है।

सफेद संगमरमर से बने इसके द्वार और चांदी से जड़ी बाड़े इसकी भव्यता दिखाते हैं, लेकिन सबसे अद्भुत दृश्य है – जगर-मगर दौड़ते हुए असंख्य चूहे, जो भक्तों के पैरों से खेलते रहते हैं।

इतिहास व पौराणिक कथा

करणी माता का जन्म 14वीं शताब्दी में चारण वंश में हुआ था।

लोकदेवी के रूप में उन्होंने बीकानेर और जोधपुर रियासतों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

करणी माता को शक्ति स्वरूपा माना गया और मान्यता है कि उन्होंने 151 वर्ष की आयु तक जीवित रहकर अनेक चमत्कार किए।

इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक प्रसिद्ध कथा है – करणी माता की बहन का पुत्र लक्ष्मण कपिल सरोवर (कोलायत) में डूब कर मर गया

माता करणी ने अपनी शक्ति से यमराज से उसे पुनर्जीवित करने को कहा, पर यमराज ने इंकार कर दिया।

तब माता ने घोषणा की कि उनके परिवार के लोग मृत्यु के बाद यमलोक नहीं जाएंगे बल्कि चूहे के रूप में इस मंदिर में ही जीवित रहेंगे।

उन्होंने उस बालक को भी चूहे के रूप में पुर्नजीवित कर दिया।

ऐसी भी मान्यता है कि करणी माता ने युद्ध में मारे गए सैनिकों को चूहों का रूप दे दिया और अपनी सेवा में रख लिया।

इस तरह यह मंदिर उन मनुष्यों के पुनर्जन्म स्वरूप चूहों का निवास बन गया जो माता के आशीर्वाद से मृत्यु के बाद भी यहाँ मौजूद हैं।

ऐतिहासिक महत्व

ऐतिहासिक तौर पर वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने लगभग 20वीं सदी की शुरुआत (1900 के आसपास) में करवाया था।

इसमें संगमरमर का विशाल द्वार और परिसर है।

पर करणी माता की पूजा तो उनके जीवनकाल (लगभग 1530 में समाधि लेने के बाद) से ही होने लगी थी।

इस मंदिर को पाकिस्तान में हिंगलाज शक्ति पीठ से भी जोड़कर देखा जाता है – कुछ इतिहासकारों का मत है कि देश विभाजन के बाद हिंगलाज देवी (जो करणी माता से समरूप मानी जाती हैं) की परंपरा को लोग यहाँ ले आए

वास्तुकला की विशेषताएँ

करणी माता मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से राजपूत और मुगल शैली का मिश्रण दर्शाता है।

इसके मुख्य द्वार पर चांदी के बड़े-बड़े दरवाज़े हैं जिन पर देवी के विभिन्न रूप अंकित हैं।

मंदिर का अग्रभाग संगमरमर का बना है जिस पर सुंदर जाली का काम और फूल-पत्तियों की खुदाई है।

अंदर गर्भगृह तक चांदी की बाड़ लगी है ताकि चूहे उससे अंदर-बाहर आ-जा सकें।

गर्भगृह में माता करणी की प्रतिमा विराजमान है और सामने उनकी सवारी (सिंह) की मूर्ति है।

फर्श संगमरमर का है और दीवारों पर उल्टे कलश जैसी आकृतियाँ हैं जहां चूहे बैठना पसंद करते हैं।

विशेष यह कि पूरे मंदिर में चूहों की रक्षा हेतु धातु की जालियां ऊपर लगाई गई हैं ताकि चील, बाज़ जैसे शिकारी पक्षी अंदर आ सकें।

मंदिर में कई बड़े कटोरे या थाल रखे रहते हैं जिनमें दूध और प्रसाद चूहों के खाने के लिए डाला जाता है।

कुल मिलाकर मंदिर उतना भव्य नहीं जितना विचित्र है – यहाँ मानव और चूहों का सह-अस्तित्व इसकी वास्तुकला का अभिन्न अंग है।

असाधारण रहस्य और चमत्कार

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य हैं – इसके चूहे

सुबह मंगला आरती से लेकर रात शयन आरती तक हजारों चूहे मंदिर में दौड़ते-फिरते रहते हैं और भक्त उनके बीच से चलते हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि इतने चूहों के संपर्क में आने पर भी आज तक कोई बीमारी (प्लेग आदि) यहाँ नहीं फैली, न ही चूहों द्वारा किसी को काटने या नुकसान की घटना होती है।

भक्त इन चूहों को कब्बा कहते हैं और करणी माता के बच्चे मानते हैं।

यदि कोई चूहा आपके पैर पर चढ़ जाए तो उसे शुभ माना जाता है।

यहां तक कि चूहों द्वारा झूठा किया प्रसाद भी भक्त आदरपूर्वक ग्रहण करते हैं और कहते हैं इससे माता का आशीर्वाद मिलता है लेकिन कोई रोग नहीं होता।

यह बात वैज्ञानिक दृष्टि से चौंकाने वाली है कि इतने चूहों के बीच भी सफाई और स्वास्थ्य बना रहता है।

मंदिर में लगभग 20,000 चूहे हैं, अधिकतर काले रंग के।

इनमें से कुछ विरले सफेद रंग के चूहे भी हैं, जिन्हें अत्यंत शुभ माना जाता है।

मान्यता है कि सफेद चूहे करणी माता के अवतार या उनके परिवार के विशेष सदस्यों की आत्मा हैं और इन्हें देखना सौभाग्यशाली होता है।

दर्शनार्थी सफेद चूहों की एक झलक पाने को उत्सुक रहते हैं।

एक और प्रथा है – अगर दुर्भाग्यवश किसी भक्त के पैर से कोई चूहा मर जाए, तो प्रायश्चितस्वरूप उसे उतने ही वजन का चांदी का चूहा मंदिर में अर्पित करना पड़ता है।

चूहों का अनुशासन और मंदिर के चमत्कार

यह भी चमत्कार ही माना जाएगा कि इतने चूहे दिन में आरती के समय अनुशासन से बाहर आकर पूजा में शामिल होते हैं।

सुबह मंगला आरती और शाम संध्या आरती के वक्त बड़ी संख्या में चूहे बिलों से निकलकर गर्भगृह के आसपास घूमते हैं मानो आरती में संगत कर रहे हों।

जैसे ही आरती समाप्त होती है, वे फिर प्रसाद खाने या खेल में लग जाते हैं।

इसके अतिरिक्त, मंदिर में स्थापित अखंड दीपक सदियों से जल रहा है (कहते हैं करणी माता के समय से प्रज्वलित है)।

कुल मिलाकर, चूहों की उपस्थिति और उनसे जुड़े इतने तथ्यों ने सदियों से इस मंदिर को रहस्यमय बना रखा है।

प्रसिद्धि के कारण

करणी माता मंदिर की ख्याति का मुख्य आधार हैं यहाँ के चूहे

चूहों का मंदिर” सुनते ही देश-विदेश के पर्यटक भी अचरजवश यहाँ आना चाहते हैं।

यह मंदिर लोकदेवी करणी माता की शक्ति पर श्रद्धा का जीवंत उदाहरण माना जाता है कि कैसे उनकी कृपा से चूहे पूजा जाते हैं और इंसान के साथ रहते हैं।

चूंकि ऐसा मंदिर दुनियाभर में दूसरा नहीं, इसलिए अनेक अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं, चैनलों ने इसे कवर किया है, जिससे यह विश्वविख्यात पर्यटन स्थल बन गया।

भक्तों के लिए यह स्थान अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भी प्रसिद्ध है – मान्यता है कि माता करणी जागृत देवी हैं जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं (जिसका उदाहरण चूहों की रक्षा है)।

बीकानेर राजघराने की कुलदेवी होने के नाते भी इस मंदिर को राजस्य संरक्षण मिला है और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है।

मुख्य उत्सव और परंपराएँ

नवरात्रि में (चैत्र और आश्विन, दोनों) करणी माता मंदिर में विशाल मेलों का आयोजन होता है।

श्रद्धालु पैदल यात्रा कर देशनोक पहुँचते हैं।

नवरात्रों के चौथे दिन (चैत्र शुक्ल चतुर्थी) को करणी माता का स्थापना दिवस मनाया जाता है – दूर-दूर से भक्त आते हैं, भजन-कीर्तन होते हैं और विशेष श्रृंगार किया जाता है।

इसके अलावा हर वर्ष मार्च-अप्रैल में करणी माता मेले लगते हैं जहाँ सैकड़ों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

दैनिक अनुष्ठानों में सुबह मंगला आरती, दोपहर भोग और शाम संध्या आरती शामिल हैं, जिनमें चूहों को खास प्रसाद दिया जाता है।

श्रद्धालु अपने घरों से अनाज, मिठाई आदि भी चूहों के लिए लाकर दान करते हैं।

एक विशेष सेवा यह है कि यहाँ आने वाले भक्त खुद झाड़ू लेकर मंदिर साफ करते हैं ताकि चूहों का मल-मूत्र हटाकर सफाई रखी जा सके – इसे वे पुनीत कार्य मानते हैं।

इस सहयोग से भी मंदिर हमेशा अपेक्षाकृत स्वच्छ रहता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक समुदाय के लिए करणी माता मंदिर एक विचित्र पारिस्थितिकी तंत्र सरीखा है।

जैव विज्ञान की दृष्टि से इतने चूहों के बावजूद महामारी न फैलना समझ से परे है।

कुछ अध्ययनों में पाया गया कि यहाँ के चूहों में प्लेग के जीवाणु मौजूद नहीं हैं – संभवतः रेगिस्तानी क्षेत्र होने से या किसी प्रतिरोधी क्षमता के कारण।

कुछ का मत है कि मंदिर में हर कोने पर लगाए गए नीम के निरंतर प्रसार और नियमित सफाई के कारण बैक्टीरिया पनप नहीं पाते।

यह मंदिर मानव-पशु सहजीवन का अद्वितीय केस स्टडी है।

शोधार्थी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इतनी बड़ी चूहों की आबादी एक ही जगह कैसे नियंत्रित रहती है – शायद भोजन की उपलब्धता के आधार पर उनकी प्राकृतिक जनसंख्या नियंत्रण हो जाता है।

भक्तों व पर्यटकों के अनुभव

जो भी व्यक्ति पहली बार इस मंदिर में आता है, वह सैकड़ों चूहों को पैरों के आसपास घूमते देख अचंभित रह जाता है।

शुरू में कुछ डर या घिन का भाव हो सकता है, लेकिन कुछ ही देर में जब देखते हैं कि ये चूहे बेहद निर्भय और अहिंसक हैं, तब वह भय प्रेम में बदल जाता है।

भक्त बताते हैं कि प्रसाद का कटोरा रखते ही चूहों का झुंड आकर दूध पीने लगता है – यह दृश्य उनके दिल में माता के चमत्कार के प्रति श्रद्धा भर देता है।

कई लोगों को यहाँ सफेद चूहा दिख जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वे इसे अपने जीवन की सबसे विशेष घटना मानते हैं।

एक पर्यटक ने लिखा कि – “मैं एक चूहे को हाथ से उठाकर दुलारने लगी और वह बिलकुल नहीं भागा, तब मुझे अहसास हुआ कि सच में देवी की कृपा से ये मानव-मित्र बन चुके हैं।”

कुछ भक्त अपनी समस्याएँ लेकर आते हैं और मानते हैं कि कब्बा (चूहा) द्वारा छू जाने पर उनकी तकलीफ दूर हो जाएगी।

उनके लिए यह स्पर्श किसी आशीर्वाद से कम नहीं।

बाहर से आने वाले पर्यटकों को आरंभ में असुविधा होती है – मसलन पाँव में चूहे लिपट जाएँगे, आदि – किंतु मंदिर प्रबंधन ने चप्पल-जूते बाहर रखवाकर, अंदर निरंतर सफाई रखकर माहौल को संभाला हुआ है।

कुल मिलाकर, यहाँ हर व्यक्ति एक अनूठा किस्सा लेकर जाता है कि – “कैसे हमने चूहों के साथ बैठकर प्रसाद खाया और कुछ भी असामान्य नहीं लगा” – ऐसी सद्भावना करणी माता की महिमा ही है।


करणीमंदिरमाताकाबारहस्यपूजा
विशेष पोस्ट

बाबा बैद्यनाथ धाम: शिव शक्ति के पावन मिलन स्थल की पौराणिक महिमा, पूजन विधि, भक्ति परंपराएँ और आध्यात्मिक रहस्य !
बाबा बैद्यनाथ धाम: शिव शक्ति के पावन मिलन स्थल की पौराणिक महिमा, पूजन विधि, भक्ति परंपराएँ और आध्यात्मिक रहस्य !

शिव शक्ति के पावन मिलन स्थल की पौराणिक महिमा, पूजन विधि, भक्ति परंपराएँ और आध्यात्मिक रहस्य

बैद्यनाथ

पढ़िए सोमनाथ महादेव मंदिर के इतिहास, पुनर्निर्माण और शिवलिंग के रहस्यमय चमत्कार के बारे में – पहला ज्योतिर्लिंग जहाँ शिव की महिमा युगों-युगों तक अक्षुण्ण रही
पढ़िए सोमनाथ महादेव मंदिर के इतिहास, पुनर्निर्माण और शिवलिंग के रहस्यमय चमत्कार के बारे में – पहला ज्योतिर्लिंग जहाँ शिव की महिमा युगों-युगों तक अक्षुण्ण रही

सोमनाथ महादेव मंदिर के इतिहास, पुनर्निर्माण और शिवलिंग के रहस्यमय चमत्कार के बारे में – पहला ज्योतिर्लिंग जहाँ शिव की महिमा युगों-युगों तक अक्षुण्ण रही

महादेव

इस मंदिर में आज भी जल रही हैं दिव्य ज्वालाएँ – जानिए माँ ज्वाला के चमत्कारी धाम की रहस्यमयी कहानी!
इस मंदिर में आज भी जल रही हैं दिव्य ज्वालाएँ – जानिए माँ ज्वाला के चमत्कारी धाम की रहस्यमयी कहानी!

जहाँ माता सती की जिह्वा गिरी, वहाँ अनंत काल से जल रही हैं नौ अग्नि ज्वालाएँ – एक रहस्य और आस्था का संगम

सती

लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर: आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है !
लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर: आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है !

आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है और इतिहास आज भी जीवंत प्रतीत होता है

वीरभद्र

पढ़िए पुरी जगन्नाथ मंदिर के: रहस्य, चमत्कार और आध्यात्मिक भव्यता के बारे में
पढ़िए पुरी जगन्नाथ मंदिर के: रहस्य, चमत्कार और आध्यात्मिक भव्यता के बारे में

जगन्नाथ मंदिर के चमत्कारिक रहस्य और अनूठी परंपराएँ

जगन्नाथ

पढ़िए: कैलाश मंदिर का रहस्य! और कैसे एक ही पहाड़ से तराशी गई दुनिया की सबसे भव्य भगवान शिव की प्रतिमा!
पढ़िए: कैलाश मंदिर का रहस्य! और कैसे एक ही पहाड़ से तराशी गई दुनिया की सबसे भव्य भगवान शिव की प्रतिमा!

यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थापत्य चमत्कार है जिसे एक ही विशाल पर्वत को काटकर ऊपर से नीचे की ओर तराशा गया – इसकी भव्यता और निर्माण तकनीक आज भी रहस्य बनी हुई है!

शिव

पद्मनाभस्वामी मंदिर का रहस्य: दुनिया का सबसे धनी मंदिर और उसका एक कक्ष जहाँ है स्वर्ग जाने का रास्ता!
पद्मनाभस्वामी मंदिर का रहस्य: दुनिया का सबसे धनी मंदिर और उसका एक कक्ष जहाँ है स्वर्ग जाने का रास्ता!

यह सिर्फ़ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी खज़ाने का द्वार है – जहाँ भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन कर रहे हैं और सदियों से एक गुप्त कक्ष बंद है, जिसे कोई खोलने का साहस नहीं कर पाया!

विष्णु

शनि शिंगणापुर: शनि देव का वह शक्तिशाली मंदिर और गाँव जहाँ ना दरवाज़े हैं, ना ताले, फिर भी कोई चोरी नहीं होती!
शनि शिंगणापुर: शनि देव का वह शक्तिशाली मंदिर और गाँव जहाँ ना दरवाज़े हैं, ना ताले, फिर भी कोई चोरी नहीं होती!

यह अनोखा गाँव और मंदिर, जहाँ शनि देव की छत्रहीन प्रतिमा खुले आसमान के नीचे विराजमान है और श्रद्धालु बिना किसी भय के अपने घरों के द्वार खुले रखते हैं।

शनि

पढ़िए! मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के बारे में: जहाँ भूत-प्रेत बाधाओं का होता है चमत्कारिक उपचार!
पढ़िए! मेहंदीपुर बालाजी मंदिर के बारे में: जहाँ भूत-प्रेत बाधाओं का होता है चमत्कारिक उपचार!

राजस्थान के दौसा जिले में स्थित यह मंदिर अपनी रहस्यमयी अनुष्ठानों और तांत्रिक साधनाओं के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों लोग भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति पाने आते हैं।

बालाजी

पढ़िए! रहस्यमयी और शक्तिशाली कामाख्या देवी मंदिर का अद्भुत चमत्कार ! जहाँ देवी स्वयं रजस्वला होती हैं और जल हो जाता है रक्तवर्ण!
पढ़िए! रहस्यमयी और शक्तिशाली कामाख्या देवी मंदिर का अद्भुत चमत्कार ! जहाँ देवी स्वयं रजस्वला होती हैं और जल हो जाता है रक्तवर्ण!

कामाख्या शक्तिपीठ – तंत्र साधना, चमत्कारिक रहस्यों और देवी की दिव्य ऊर्जा का अद्भुत संगम!

कामाख्या

ऐसे और लेख