सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।।
नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।।
शिवजी की आज्ञा सुनते ही उनके सभी गण (अनुचर) वहाँ आ गए और उन्होंने स्वामी के चरण कमलों में अपना सिर झुकाया (नमन किया)। अनेक प्रकार के वाहनों और अनेक प्रकार के वेशों वाले अपने समाज (गणों के समूह) को देखकर शिवजी हँसे।
कोउ मुख हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। हृष्ट पुष्ट कोउ अति तन खीना।।
कोई गण बिना मुख का है, तो किसी के बहुत से मुख हैं; कोई बिना हाथ-पैर का है, तो किसी के कई हाथ-पैर हैं; किसी की बहुत आँखें हैं, तो किसी की एक भी आँख नहीं है; कोई बहुत दुबला-पतला है, तो कोई बहुत ही मोटा-ताजा है।
तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
भूषन कराल कपाल कर सब संतन सोनित तन भरें।।
खर स्वान सूकर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
बहु जनम प्रेत पिसाच जोगिनि जमात बरनत नहिं बनै।।
कोई बहुत दुबला है, कोई अत्यधिक मोटा है, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेश धारण किए हुए है। कोई भयंकर गहने पहने हुए है, हाथों में खोपड़ियाँ लिए हुए, और सबके शरीर पर ताजा खून लिपटा हुआ है। कईयों के मुख गधे, कुत्ते, सूअर और सियार जैसे हैं। वहाँ बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों के समूह एकत्रित हैं।
सब भूत-प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सभी बड़े मौजी और आनंदमय हैं। देखने में वे अत्यंत बेढंगे लगते हैं और उनकी वाणी भी अत्यंत विचित्र ढंग से होती है। जैसा दूल्हा (भगवान शिव) है, वैसी ही अनोखी बारात सजी है। वे रास्ते में चलते हुए अनेक प्रकार के तमाशे करते रहते हैं, जिससे उनका अनूठा और अद्भुत स्वरूप प्रकट होता है।
शिव समाज जब देखन लागे। बिडर चले बाहन सब भागे।।
जैसे ही शिव जी की बारात हिमाचल जी के द्वार पर पहुँची, भूत, प्रेत और पिशाचों को देखकर हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि डर गए और इधर-उधर भागने लगे। लेकिन कुछ बड़ी उम्र के समझदार और धैर्यवान लोग वहाँ खड़े रहे। उन्होंने धैर्य बनाए रखा और बारात की अगुवानी करते हुए भगवान शिव का स्वागत किया।
सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।।
नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।।
शिवजी की आज्ञा सुनते ही उनके सभी गण (अनुचर) वहाँ आ गए और उन्होंने स्वामी के चरण कमलों में अपना सिर झुकाया (नमन किया)। अनेक प्रकार के वाहनों और अनेक प्रकार के वेशों वाले अपने समाज (गणों के समूह) को देखकर शिवजी हँसे।
कोउ मुख हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। हृष्ट पुष्ट कोउ अति तन खीना।।
कोई गण बिना मुख का है, तो किसी के बहुत से मुख हैं; कोई बिना हाथ-पैर का है, तो किसी के कई हाथ-पैर हैं; किसी की बहुत आँखें हैं, तो किसी की एक भी आँख नहीं है; कोई बहुत दुबला-पतला है, तो कोई बहुत ही मोटा-ताजा है।
तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
भूषन कराल कपाल कर सब संतन सोनित तन भरें।।
खर स्वान सूकर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
बहु जनम प्रेत पिसाच जोगिनि जमात बरनत नहिं बनै।।
कोई बहुत दुबला है, कोई अत्यधिक मोटा है, कोई पवित्र और कोई अपवित्र वेश धारण किए हुए है। कोई भयंकर गहने पहने हुए है, हाथों में खोपड़ियाँ लिए हुए, और सबके शरीर पर ताजा खून लिपटा हुआ है। कईयों के मुख गधे, कुत्ते, सूअर और सियार जैसे हैं। वहाँ बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगिनियों के समूह एकत्रित हैं।
सब भूत-प्रेत नाचते और गाते हैं, वे सभी बड़े मौजी और आनंदमय हैं। देखने में वे अत्यंत बेढंगे लगते हैं और उनकी वाणी भी अत्यंत विचित्र ढंग से होती है। जैसा दूल्हा (भगवान शिव) है, वैसी ही अनोखी बारात सजी है। वे रास्ते में चलते हुए अनेक प्रकार के तमाशे करते रहते हैं, जिससे उनका अनूठा और अद्भुत स्वरूप प्रकट होता है।
शिव समाज जब देखन लागे। बिडर चले बाहन सब भागे।।
जैसे ही शिव जी की बारात हिमाचल जी के द्वार पर पहुँची, भूत, प्रेत और पिशाचों को देखकर हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि डर गए और इधर-उधर भागने लगे। लेकिन कुछ बड़ी उम्र के समझदार और धैर्यवान लोग वहाँ खड़े रहे। उन्होंने धैर्य बनाए रखा और बारात की अगुवानी करते हुए भगवान शिव का स्वागत किया।