हमारे सनातन धर्म के शास्त्रों में सृष्टि की संरचना को 14 लोकों में विभाजित किया गया है। ये लोक भौतिक और आध्यात्मिक अनुभवों का प्रतीक हैं, लेकिन इनसे परे भी एक ऐसी दिव्य अवस्था है, जहां माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
14 लोकों की संरचना
शास्त्रों के अनुसार, 14 लोकों को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है:
1. ऊपरी सात लोक (स्वर्गीय लोक):
- भूर लोक: पृथ्वी का स्थान, जहां मानव रहते हैं।
- भुवर लोक: यहां साधक आत्माएं और सिद्ध योगियों का वास है।
- स्वर्ग लोक: यह देवताओं का निवास स्थान है।
- महा लोक: उच्च साधकों का स्थान।
- जन लोक: तपस्वियों और ऋषियों का निवास।
- तप लोक: ब्रह्मर्षियों का निवास स्थान।
- सत्य लोक: इसे ब्रह्मा लोक भी कहा जाता है, जहां ब्रह्मा जी रहते हैं।
2. निचले सात लोक (पाताल लोक):
- अतल: तामसिक ऊर्जा और आसुरी गतिविधियों का क्षेत्र।
- वितल: भौतिक सुखों का अनुभव करने का स्थान।
- सुतल: बलि महाराज का निवास स्थान।
- तलातल: मायावी शक्तियों और तामसिक कर्मों का स्थान।
- महातल: तामसिक प्रकृति वाले प्राणियों का निवास।
- रसातल: यह असुरों और दैत्यों का क्षेत्र है।
- पाताल: यह सबसे निचला लोक है, जो अज्ञान और तामसिकता का प्रतीक है।
माया और इसके प्रभाव
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने समझाया है कि ये 14 लोक माया के अधीन हैं। माया, जो सत्व, रज और तम तीन गुणों के माध्यम से आत्मा को भ्रमित करती है, भौतिक सुखों का आभास कराती है।
माया के सुख की सीमाएं
इन लोकों में माया के 11 प्रकार के सुखों का अनुभव होता है। उदाहरण के लिए:
- एक सम्राट, जो पूरी पृथ्वी पर शासन करता है।
- स्वर्ग के राजा इंद्र का सुख।
- उच्चतर देवताओं के लोकों में भोग।
लेकिन यह सब सुख अस्थायी और क्षणिक हैं। ये सुख आत्मा को तृप्त नहीं करते, क्योंकि आत्मा का स्वभाव अनंत आनंद प्राप्त करना है।
परमधाम की महिमा
14 लोकों के पार परमधाम स्थित है, जहां माया का कोई प्रवेश नहीं है।
परमधाम का वर्णन
- बिरजा नदी: यह नदी माया और परमधाम के बीच विभाजन रेखा है। इसे 'कारणार्णव' भी कहते हैं।
- परमधाम की विशेषताएं:
- माया यहां प्रवेश नहीं कर सकती।
- यहां दुख, बंधन और कर्म का कोई स्थान नहीं है।
- केवल शाश्वत आनंद, दिव्य प्रेम और शांति का वास है।
"14 लोकों के सुख से परे, परमधाम में अनंत आनंद की स्थिति है। यहां आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में रहती है।"