जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागतों की रक्षा करने वाले भगवान! आपकी बार-बार जय हो! हे गौ और ब्राह्मणों का हित करने वाले, असुरों का नाश करने वाले, समुद्र की पुत्री लक्ष्मी के प्रिय पति! आपकी जय हो! हे देवताओं और पृथ्वी का पालन करने वाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका रहस्य कोई नहीं जानता। जो स्वभाव से ही कृपालु और दीनों पर दया करने वाले हैं, वे ही हम पर कृपा करें।
जय जय अविनासी सब घट बासी व्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीत अचरित पुनीत माया रहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
हे अविनाशी, सबके हृदय में निवास करने वाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परमानंद स्वरूप, अगम्य, इन्द्रियों से परे, पवित्र चरित्र, माया से रहित, मोक्षदाता (मुकुंद)! आपकी बार-बार जय हो! जिन (भगवान) को पाने के लिए विरक्त और मोह से छूटे हुए मुनियों का समूह भी अत्यंत प्रेम से रात-दिन ध्यान करता है और जिनके गुणों का समूह गान करता है, उन सच्चिदानंद की जय हो!
जेहिं सृष्टि उपाई बिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन, मुनि मन रंजन, गंजन विपति बरुथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा।।
जिन्होंने इस अनेक प्रकार की सृष्टि को बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायक के अकेले ही बनाया है वे पापों का नाश करने वाले भगवान हमारी सुधि लें (हमारी चिंता करें)। हम न (बाह्य) भक्ति (के आडंबर) जानते हैं, न विधि-विधान से पूजा करना जानते हैं। जो संसार के जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाले, मुनियों के मन को आनंदित करने वाले और विपत्तियों के समूह को नष्ट करने वाले हैं, उन भगवान् की शरण में मन, वचन, कर्म और वाणी की चतुराई छोड़कर सभी देवताओं के समूह आये है।
सारद श्रुति सेष रिषय असेषा जा कोउ नहिं जाना।
जेहि दीन पिआरे, बेद पुकारे, द्रबउ सो श्री भगवाना।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुन मंदिर सुख पुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।
सरस्वती, वेद, शेषजी और समस्त ऋषि-मुनि भी जिनको पूरी तरह नहीं जान पाते,जिनका दर्शन पाना अत्यंत दुर्लभ है, ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं,वे ही श्रीभगवान हम पर दया करें। हे संसार रूपी समुद्र के मंथन के लिए मंदराचल स्वरूप, सभी प्रकार से सुंदर, गुणों के धाम, और सुखों के भंडार नाथ, आपके चरण कमलों में मुनि, योगी, और समस्त देवता भय से अति व्याकुल होकर सदा नमस्कार करते हैं।
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।।
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।
हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागतों की रक्षा करने वाले भगवान! आपकी बार-बार जय हो! हे गौ और ब्राह्मणों का हित करने वाले, असुरों का नाश करने वाले, समुद्र की पुत्री लक्ष्मी के प्रिय पति! आपकी जय हो! हे देवताओं और पृथ्वी का पालन करने वाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका रहस्य कोई नहीं जानता। जो स्वभाव से ही कृपालु और दीनों पर दया करने वाले हैं, वे ही हम पर कृपा करें।
जय जय अविनासी सब घट बासी व्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीत अचरित पुनीत माया रहित मुकुंदा।।
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
हे अविनाशी, सबके हृदय में निवास करने वाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परमानंद स्वरूप, अगम्य, इन्द्रियों से परे, पवित्र चरित्र, माया से रहित, मोक्षदाता (मुकुंद)! आपकी बार-बार जय हो! जिन (भगवान) को पाने के लिए विरक्त और मोह से छूटे हुए मुनियों का समूह भी अत्यंत प्रेम से रात-दिन ध्यान करता है और जिनके गुणों का समूह गान करता है, उन सच्चिदानंद की जय हो!
जेहिं सृष्टि उपाई बिबिध बनाई संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।।
जो भव भय भंजन, मुनि मन रंजन, गंजन विपति बरुथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा।।
जिन्होंने इस अनेक प्रकार की सृष्टि को बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायक के अकेले ही बनाया है वे पापों का नाश करने वाले भगवान हमारी सुधि लें (हमारी चिंता करें)। हम न (बाह्य) भक्ति (के आडंबर) जानते हैं, न विधि-विधान से पूजा करना जानते हैं। जो संसार के जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाले, मुनियों के मन को आनंदित करने वाले और विपत्तियों के समूह को नष्ट करने वाले हैं, उन भगवान् की शरण में मन, वचन, कर्म और वाणी की चतुराई छोड़कर सभी देवताओं के समूह आये है।
सारद श्रुति सेष रिषय असेषा जा कोउ नहिं जाना।
जेहि दीन पिआरे, बेद पुकारे, द्रबउ सो श्री भगवाना।
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुन मंदिर सुख पुंजा।
मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।
सरस्वती, वेद, शेषजी और समस्त ऋषि-मुनि भी जिनको पूरी तरह नहीं जान पाते,जिनका दर्शन पाना अत्यंत दुर्लभ है, ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं,वे ही श्रीभगवान हम पर दया करें। हे संसार रूपी समुद्र के मंथन के लिए मंदराचल स्वरूप, सभी प्रकार से सुंदर, गुणों के धाम, और सुखों के भंडार नाथ, आपके चरण कमलों में मुनि, योगी, और समस्त देवता भय से अति व्याकुल होकर सदा नमस्कार करते हैं।