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पढ़िए:भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना कैसे की?

पढ़िए:भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना कैसे की?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

(A) सृष्टि की उत्पत्ति

विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के निर्माण की विस्तृत व्याख्या की गई है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं। उन्हीं से सृजन, पालन और संहार की प्रक्रिया संचालित होती है।

सनातन धर्म के अनुसार, सृष्टि की रचना भगवान विष्णु की योगनिद्रा से प्रारंभ होती है। जब संपूर्ण ब्रह्मांड शून्य में विलीन हो जाता है और चारों ओर असीम जलराशि फैल जाती है, तब भगवान विष्णु अपनी अनंत शैय्या पर शयन करते हैं।

1. आदिशक्ति और विष्णु की भूमिका

  • सृष्टि के प्रारंभ में केवल परमात्मा विष्णु ही थे, जो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापक थे।
  • इस समय सृष्टि शून्य अवस्था में थी, चारों ओर केवल अंधकार था और कोई भौतिक तत्व विद्यमान नहीं था।
  • भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे, और उनका दिव्य शरीर क्षीरसागर में स्थित था।
  • जब सृष्टि की रचना का समय आया, तब उन्होंने अपनी योगमाया शक्ति से सृष्टि की रचना का संकल्प किया।
  • भगवान विष्णु के संकल्प से सृष्टि का पहला तत्व महत्तत्त्व (बुद्धि का स्रोत) प्रकट हुआ।
  • इसके बाद अहंकार उत्पन्न हुआ, जिससे तीन प्रकार की शक्तियों की उत्पत्ति हुई।
  • इसके बाद पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की उत्पत्ति हुई।

ब्रह्मा की उत्पत्ति और सृष्टि रचना का कार्य

  • भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से एक कमल प्रकट किया, जिसे ब्रह्मांड का बीज कहा जाता है।
  • जब ब्रह्मा जी कमल के अंदर जन्म लेते हैं, तो उन्हें अपनी उत्पत्ति और अस्तित्व की जानकारी नहीं होती। वे चारों दिशाओं में देखते हैं लेकिन कुछ भी नहीं पाते। फिर वे अपने भीतर ध्यान लगाते हैं और तपस्या करते हैं। अत्यधिक काल के बाद, उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं !
  • इस कमल के भीतर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, जिन्हें भगवान विष्णु ने सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा।
  • जब ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई, तो उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि वे कौन हैं और उनका क्या कार्य है।
  • तब भगवान विष्णु ने उन्हें सृष्टि रचने की शक्ति प्रदान की और सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।

2. महत्तत्त्व और प्रकृति

(1) महत्तत्त्व की उत्पत्ति

  • सृष्टि की संरचना का पहला चरण महत्तत्त्व की उत्पत्ति थी, जो बुद्धि और चेतना का स्रोत है।
  • महत्तत्त्व से ही संवेदनाओं, मन और इंद्रियों की उत्पत्ति हुई।
  • महत्तत्त्व से उत्पन्न सत्व, रज और तम गुणों के आधार पर सृष्टि का क्रमिक विकास हुआ।

(2) अहंकार की उत्पत्ति

  • सात्त्विक अहंकार:
    • इससे देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों की बुद्धि उत्पन्न हुई।
    • सात्त्विक अहंकार से इंद्रियाँ और मन प्रकट हुए, जिससे जीवों में ज्ञान, ध्यान और चिंतन की क्षमता विकसित हुई।
  • राजसिक अहंकार:
    • इससे मनुष्यों और प्राणियों के मन और कर्म उत्पन्न हुए।
    • यह गति, इच्छा, कर्म और प्रवृत्तियों का आधार बना।
    • राजसिक अहंकार से पंच ज्ञानेन्द्रियाँ (नेत्र, कान, त्वचा, जीभ, नाक) और पंच कर्मेंद्रियाँ (हाथ, पैर, मुख, गुदा, जननेंद्रिय) प्रकट हुईं।
  • तामसिक अहंकार:
    • इससे जड़ पदार्थ (पंचमहाभूत) उत्पन्न हुए।
    • यह स्थूलता, निष्क्रियता और जड़ता का प्रतीक है।
    • तामसिक अहंकार से महाभूतों की उत्पत्ति हुई, जो संपूर्ण भौतिक जगत का आधार बने।

3. पंचमहाभूतों का निर्माण

भगवान विष्णु ने सृष्टि की संरचना के लिए पंचमहाभूतों (पाँच मूलभूत तत्वों) को प्रकट किया।

  • आकाश
    • ध्वनि का स्रोत है।
    • इससे नाद (ध्वनि) की उत्पत्ति हुई, जिससे वेदों और मंत्रों की शक्ति प्रकट हुई।
    • आकाश ही शब्द तत्व का मूल है।
  • वायु
    • स्पर्श और गति का स्रोत है।
    • वायु तत्व से प्राण, जीवन शक्ति और शरीर में संवेदनाएँ उत्पन्न हुईं।
    • यह स्पर्श तत्व का मूल है।
  • अग्नि
    • रूप और प्रकाश का स्रोत है।
    • अग्नि से ताप, ऊर्जा और रूप उत्पन्न हुआ, जिससे नेत्रों की दृष्टि संभव हुई।
    • यह रूप तत्व का मूल है।
  • जल
    • स्वाद और तरलता का स्रोत है।
    • जल ही जीवन का आधार है और इससे रस (स्वाद) की उत्पत्ति हुई।
    • यह रस तत्व का मूल है।
  • पृथ्वी
    • गंध और स्थिरता का स्रोत है।
    • पृथ्वी तत्व से सभी भौतिक पदार्थ, शरीर और स्थूल वस्तुएँ बनीं।
    • यह गंध तत्व का मूल है।

इन पंचमहाभूतों से ही संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रह-नक्षत्र, जीव और पदार्थ का निर्माण हुआ।

4. तत्वों के संयोजन से ब्रह्मांड की रचना

  • पंचमहाभूतों के संयोजन से भौतिक और आध्यात्मिक लोकों की रचना हुई।
  • इसके बाद चौदह लोकों (ऊर्ध्वलोक और अधोलोक) का निर्माण हुआ।
  • जीवों की उत्पत्ति के लिए भगवान विष्णु ने मनु और सप्तर्षियों की रचना की।
  • मनु से मनुष्य जाति का जन्म हुआ, जबकि सप्तर्षियों से ऋषि, मुनि और संतों की उत्पत्ति हुई।
  • भगवान विष्णु ने देवताओं, असुरों, यक्षों, गंधर्वों, नागों और अन्य प्राणियों की रचना की।

(2) चौदह लोकों का निर्माण

विष्णु पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के क्रम में भगवान विष्णु ने चौदह लोकों की रचना की।
ये लोक तीन भागों में विभाजित हैं:

(A) ऊर्ध्व लोक (स्वर्गीय लोक - उच्च लोक)

  • सत्यलोक (ब्रह्मलोक) – ब्रह्मा जी का निवास स्थान। यहाँ केवल मुक्ति प्राप्त आत्माएँ जाती हैं।
  • तपोलोक – महान तपस्वी ऋषियों का लोक, जो तपस्या द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हैं।
  • जनलोक – संत-महात्मा और ब्रह्मवेत्ता ऋषियों का स्थान।
  • महर्लोक – पुण्य आत्माओं और उच्च स्तर के योगियों का निवास।
  • स्वर्गलोक – इंद्र और अन्य देवताओं का लोक। यहाँ पुण्य आत्माएँ अपने कर्मों के अनुसार सुख भोगने आती हैं।
  • भुवर्लोक – सूर्य, चंद्र और ग्रह-नक्षत्रों की सत्ता का स्थान।
  • भूलोक (पृथ्वी लोक) – मनुष्यों का लोक, जिसे कर्मभूमि कहा जाता है।

भूलोक ही वह स्थान है, जहाँ कर्मों के आधार पर मोक्ष, स्वर्ग या नरक की यात्रा तय होती है।

(B) अधोलोक (निचले लोक)

  • अतल लोक – दैत्य, दानव और नागों का निवास स्थान।
  • वितल लोक – यक्ष, गंधर्व और रहस्यमयी प्राणियों का लोक।
  • सुतल लोक – राजा बलि का राज्य। विष्णु स्वयं यहाँ वामन रूप में निवास करते हैं।
  • रसातल लोक – असुरों और राक्षसों का लोक।
  • महातल लोक – अत्यंत शक्तिशाली नागों का स्थान।
  • पाताल लोक – सबसे निचला लोक, जहाँ बड़े-बड़े नाग, दैत्य और मायावी शक्तियाँ निवास करती हैं।
  • नरकलोक – जहाँ पापियों को उनके कर्मों के आधार पर दंड दिया जाता है।

इन चौदह लोकों के निर्माण के साथ, ब्रह्मांड का आधार पूर्ण हुआ और जीवों के विभिन्न कर्मों के अनुसार उन्हें इन लोकों में स्थान प्राप्त हुआ।

(3) जीवों की उत्पत्ति

भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड के संचालन के लिए जीवों की उत्पत्ति की। यह क्रम निम्नलिखित था:

(A) मनु और मानव जाति की उत्पत्ति

  • भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के माध्यम से सृष्टि के क्रम में मनु की रचना की, जो मनुष्यों के आदिपुरुष माने जाते हैं।
  • स्वायंभुव मनु प्रथम मनु थे, जिनसे मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई।
  • मनु से संतानोत्पत्ति के द्वारा विभिन्न कुलों और राजवंशों का निर्माण हुआ।

(B) सप्तर्षियों की उत्पत्ति

  • भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के माध्यम से सप्तर्षियों (सात महान ऋषियों) की रचना की।
  • ये सप्तर्षि सृष्टि के आधारभूत संरक्षक और ज्ञान के प्रसारक माने जाते हैं।
  • इनके द्वारा वेदों और धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी गई, जिससे मनुष्यों को धर्म और नीति का ज्ञान प्राप्त हुआ।

(C) देवता, असुर, यक्ष और अन्य प्राणी

  • देवताओं की उत्पत्ति सतोगुण से हुई, जो धर्म की रक्षा के लिए ब्रह्मांड में स्थित हैं।
  • असुरों की उत्पत्ति तमोगुण से हुई, जो अधर्म और दैत्य प्रवृत्ति के प्रतीक बने।
  • यक्ष, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ – ये सभी स्वर्गीय जीव श्रेणी में आते हैं, जो भक्ति, संगीत और सेवा के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • नाग, राक्षस और दानव – ये अधोलोक के प्राणी हैं, जो कभी-कभी अधर्म के कारण देवताओं से युद्ध करते हैं।

इस प्रकार, भगवान विष्णु के आदेश से संपूर्ण चराचर जगत का निर्माण हुआ और विभिन्न जीवों को उनके गुणों और कर्मों के अनुसार लोकों में स्थान मिला।

(4) ब्रह्मांडीय चक्र और सृष्टि की पुनरावृत्ति

  • विष्णु पुराण के अनुसार, ब्रह्मांड एक चक्रीय प्रक्रिया से गुजरता है।
  • हर कल्प के अंत में महाप्रलय होता है, जिसमें सभी जीव और लोक नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके बाद, भगवान विष्णु नवीन सृष्टि की रचना करते हैं , और यह चक्र पुनः प्रारंभ हो जाता है।
  • हर कल्प में मनु बदलते हैं, और देवताओं तथा दैत्यों का संतुलन नए रूप में स्थापित होता है।

निष्कर्ष

  • ✔ भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं।
  • ✔ पंचमहाभूतों से संपूर्ण ब्रह्मांड और जीवन की उत्पत्ति हुई।
  • ✔ चौदह लोकों का निर्माण हुआ, जिनमें प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार रहता है।
  • ✔ मनु, सप्तर्षि और देवताओं की उत्पत्ति से सृष्टि का क्रम व्यवस्थित हुआ।
  • ✔ ब्रह्मांड चक्रीय प्रक्रिया में चलता है, जहाँ हर कल्प में सृष्टि, पालन और संहार होता रहता है।

इस प्रकार, विष्णु पुराण सृष्टि, जीवों और ब्रह्मांड की रचना को अत्यंत वैज्ञानिक और दार्शनिक रूप में प्रस्तुत करता है।


योगनिद्रासृष्टिब्रह्मानाभिकमललोकप्रलयत्रिदेव
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(A) सृष्टि की उत्पत्ति

विष्णु पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति और ब्रह्मांड के निर्माण की विस्तृत व्याख्या की गई है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं। उन्हीं से सृजन, पालन और संहार की प्रक्रिया संचालित होती है।

सनातन धर्म के अनुसार, सृष्टि की रचना भगवान विष्णु की योगनिद्रा से प्रारंभ होती है। जब संपूर्ण ब्रह्मांड शून्य में विलीन हो जाता है और चारों ओर असीम जलराशि फैल जाती है, तब भगवान विष्णु अपनी अनंत शैय्या पर शयन करते हैं।

1. आदिशक्ति और विष्णु की भूमिका

  • सृष्टि के प्रारंभ में केवल परमात्मा विष्णु ही थे, जो निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापक थे।
  • इस समय सृष्टि शून्य अवस्था में थी, चारों ओर केवल अंधकार था और कोई भौतिक तत्व विद्यमान नहीं था।
  • भगवान विष्णु योगनिद्रा में विश्राम कर रहे थे, और उनका दिव्य शरीर क्षीरसागर में स्थित था।
  • जब सृष्टि की रचना का समय आया, तब उन्होंने अपनी योगमाया शक्ति से सृष्टि की रचना का संकल्प किया।
  • भगवान विष्णु के संकल्प से सृष्टि का पहला तत्व महत्तत्त्व (बुद्धि का स्रोत) प्रकट हुआ।
  • इसके बाद अहंकार उत्पन्न हुआ, जिससे तीन प्रकार की शक्तियों की उत्पत्ति हुई।
  • इसके बाद पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) की उत्पत्ति हुई।

ब्रह्मा की उत्पत्ति और सृष्टि रचना का कार्य

  • भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से एक कमल प्रकट किया, जिसे ब्रह्मांड का बीज कहा जाता है।
  • जब ब्रह्मा जी कमल के अंदर जन्म लेते हैं, तो उन्हें अपनी उत्पत्ति और अस्तित्व की जानकारी नहीं होती। वे चारों दिशाओं में देखते हैं लेकिन कुछ भी नहीं पाते। फिर वे अपने भीतर ध्यान लगाते हैं और तपस्या करते हैं। अत्यधिक काल के बाद, उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं !
  • इस कमल के भीतर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, जिन्हें भगवान विष्णु ने सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा।
  • जब ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई, तो उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि वे कौन हैं और उनका क्या कार्य है।
  • तब भगवान विष्णु ने उन्हें सृष्टि रचने की शक्ति प्रदान की और सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई।

2. महत्तत्त्व और प्रकृति

(1) महत्तत्त्व की उत्पत्ति

  • सृष्टि की संरचना का पहला चरण महत्तत्त्व की उत्पत्ति थी, जो बुद्धि और चेतना का स्रोत है।
  • महत्तत्त्व से ही संवेदनाओं, मन और इंद्रियों की उत्पत्ति हुई।
  • महत्तत्त्व से उत्पन्न सत्व, रज और तम गुणों के आधार पर सृष्टि का क्रमिक विकास हुआ।

(2) अहंकार की उत्पत्ति

  • सात्त्विक अहंकार:
    • इससे देवताओं, ऋषियों और मनुष्यों की बुद्धि उत्पन्न हुई।
    • सात्त्विक अहंकार से इंद्रियाँ और मन प्रकट हुए, जिससे जीवों में ज्ञान, ध्यान और चिंतन की क्षमता विकसित हुई।
  • राजसिक अहंकार:
    • इससे मनुष्यों और प्राणियों के मन और कर्म उत्पन्न हुए।
    • यह गति, इच्छा, कर्म और प्रवृत्तियों का आधार बना।
    • राजसिक अहंकार से पंच ज्ञानेन्द्रियाँ (नेत्र, कान, त्वचा, जीभ, नाक) और पंच कर्मेंद्रियाँ (हाथ, पैर, मुख, गुदा, जननेंद्रिय) प्रकट हुईं।
  • तामसिक अहंकार:
    • इससे जड़ पदार्थ (पंचमहाभूत) उत्पन्न हुए।
    • यह स्थूलता, निष्क्रियता और जड़ता का प्रतीक है।
    • तामसिक अहंकार से महाभूतों की उत्पत्ति हुई, जो संपूर्ण भौतिक जगत का आधार बने।

3. पंचमहाभूतों का निर्माण

भगवान विष्णु ने सृष्टि की संरचना के लिए पंचमहाभूतों (पाँच मूलभूत तत्वों) को प्रकट किया।

  • आकाश
    • ध्वनि का स्रोत है।
    • इससे नाद (ध्वनि) की उत्पत्ति हुई, जिससे वेदों और मंत्रों की शक्ति प्रकट हुई।
    • आकाश ही शब्द तत्व का मूल है।
  • वायु
    • स्पर्श और गति का स्रोत है।
    • वायु तत्व से प्राण, जीवन शक्ति और शरीर में संवेदनाएँ उत्पन्न हुईं।
    • यह स्पर्श तत्व का मूल है।
  • अग्नि
    • रूप और प्रकाश का स्रोत है।
    • अग्नि से ताप, ऊर्जा और रूप उत्पन्न हुआ, जिससे नेत्रों की दृष्टि संभव हुई।
    • यह रूप तत्व का मूल है।
  • जल
    • स्वाद और तरलता का स्रोत है।
    • जल ही जीवन का आधार है और इससे रस (स्वाद) की उत्पत्ति हुई।
    • यह रस तत्व का मूल है।
  • पृथ्वी
    • गंध और स्थिरता का स्रोत है।
    • पृथ्वी तत्व से सभी भौतिक पदार्थ, शरीर और स्थूल वस्तुएँ बनीं।
    • यह गंध तत्व का मूल है।

इन पंचमहाभूतों से ही संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रह-नक्षत्र, जीव और पदार्थ का निर्माण हुआ।

4. तत्वों के संयोजन से ब्रह्मांड की रचना

  • पंचमहाभूतों के संयोजन से भौतिक और आध्यात्मिक लोकों की रचना हुई।
  • इसके बाद चौदह लोकों (ऊर्ध्वलोक और अधोलोक) का निर्माण हुआ।
  • जीवों की उत्पत्ति के लिए भगवान विष्णु ने मनु और सप्तर्षियों की रचना की।
  • मनु से मनुष्य जाति का जन्म हुआ, जबकि सप्तर्षियों से ऋषि, मुनि और संतों की उत्पत्ति हुई।
  • भगवान विष्णु ने देवताओं, असुरों, यक्षों, गंधर्वों, नागों और अन्य प्राणियों की रचना की।

(2) चौदह लोकों का निर्माण

विष्णु पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के क्रम में भगवान विष्णु ने चौदह लोकों की रचना की।
ये लोक तीन भागों में विभाजित हैं:

(A) ऊर्ध्व लोक (स्वर्गीय लोक - उच्च लोक)

  • सत्यलोक (ब्रह्मलोक) – ब्रह्मा जी का निवास स्थान। यहाँ केवल मुक्ति प्राप्त आत्माएँ जाती हैं।
  • तपोलोक – महान तपस्वी ऋषियों का लोक, जो तपस्या द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हैं।
  • जनलोक – संत-महात्मा और ब्रह्मवेत्ता ऋषियों का स्थान।
  • महर्लोक – पुण्य आत्माओं और उच्च स्तर के योगियों का निवास।
  • स्वर्गलोक – इंद्र और अन्य देवताओं का लोक। यहाँ पुण्य आत्माएँ अपने कर्मों के अनुसार सुख भोगने आती हैं।
  • भुवर्लोक – सूर्य, चंद्र और ग्रह-नक्षत्रों की सत्ता का स्थान।
  • भूलोक (पृथ्वी लोक) – मनुष्यों का लोक, जिसे कर्मभूमि कहा जाता है।

भूलोक ही वह स्थान है, जहाँ कर्मों के आधार पर मोक्ष, स्वर्ग या नरक की यात्रा तय होती है।

(B) अधोलोक (निचले लोक)

  • अतल लोक – दैत्य, दानव और नागों का निवास स्थान।
  • वितल लोक – यक्ष, गंधर्व और रहस्यमयी प्राणियों का लोक।
  • सुतल लोक – राजा बलि का राज्य। विष्णु स्वयं यहाँ वामन रूप में निवास करते हैं।
  • रसातल लोक – असुरों और राक्षसों का लोक।
  • महातल लोक – अत्यंत शक्तिशाली नागों का स्थान।
  • पाताल लोक – सबसे निचला लोक, जहाँ बड़े-बड़े नाग, दैत्य और मायावी शक्तियाँ निवास करती हैं।
  • नरकलोक – जहाँ पापियों को उनके कर्मों के आधार पर दंड दिया जाता है।

इन चौदह लोकों के निर्माण के साथ, ब्रह्मांड का आधार पूर्ण हुआ और जीवों के विभिन्न कर्मों के अनुसार उन्हें इन लोकों में स्थान प्राप्त हुआ।

(3) जीवों की उत्पत्ति

भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड के संचालन के लिए जीवों की उत्पत्ति की। यह क्रम निम्नलिखित था:

(A) मनु और मानव जाति की उत्पत्ति

  • भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के माध्यम से सृष्टि के क्रम में मनु की रचना की, जो मनुष्यों के आदिपुरुष माने जाते हैं।
  • स्वायंभुव मनु प्रथम मनु थे, जिनसे मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई।
  • मनु से संतानोत्पत्ति के द्वारा विभिन्न कुलों और राजवंशों का निर्माण हुआ।

(B) सप्तर्षियों की उत्पत्ति

  • भगवान विष्णु ने ब्रह्मा के माध्यम से सप्तर्षियों (सात महान ऋषियों) की रचना की।
  • ये सप्तर्षि सृष्टि के आधारभूत संरक्षक और ज्ञान के प्रसारक माने जाते हैं।
  • इनके द्वारा वेदों और धर्मशास्त्रों की शिक्षा दी गई, जिससे मनुष्यों को धर्म और नीति का ज्ञान प्राप्त हुआ।

(C) देवता, असुर, यक्ष और अन्य प्राणी

  • देवताओं की उत्पत्ति सतोगुण से हुई, जो धर्म की रक्षा के लिए ब्रह्मांड में स्थित हैं।
  • असुरों की उत्पत्ति तमोगुण से हुई, जो अधर्म और दैत्य प्रवृत्ति के प्रतीक बने।
  • यक्ष, गंधर्व, किन्नर और अप्सराएँ – ये सभी स्वर्गीय जीव श्रेणी में आते हैं, जो भक्ति, संगीत और सेवा के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • नाग, राक्षस और दानव – ये अधोलोक के प्राणी हैं, जो कभी-कभी अधर्म के कारण देवताओं से युद्ध करते हैं।

इस प्रकार, भगवान विष्णु के आदेश से संपूर्ण चराचर जगत का निर्माण हुआ और विभिन्न जीवों को उनके गुणों और कर्मों के अनुसार लोकों में स्थान मिला।

(4) ब्रह्मांडीय चक्र और सृष्टि की पुनरावृत्ति

  • विष्णु पुराण के अनुसार, ब्रह्मांड एक चक्रीय प्रक्रिया से गुजरता है।
  • हर कल्प के अंत में महाप्रलय होता है, जिसमें सभी जीव और लोक नष्ट हो जाते हैं।
  • इसके बाद, भगवान विष्णु नवीन सृष्टि की रचना करते हैं , और यह चक्र पुनः प्रारंभ हो जाता है।
  • हर कल्प में मनु बदलते हैं, और देवताओं तथा दैत्यों का संतुलन नए रूप में स्थापित होता है।

निष्कर्ष

  • ✔ भगवान विष्णु ही संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण हैं।
  • ✔ पंचमहाभूतों से संपूर्ण ब्रह्मांड और जीवन की उत्पत्ति हुई।
  • ✔ चौदह लोकों का निर्माण हुआ, जिनमें प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार रहता है।
  • ✔ मनु, सप्तर्षि और देवताओं की उत्पत्ति से सृष्टि का क्रम व्यवस्थित हुआ।
  • ✔ ब्रह्मांड चक्रीय प्रक्रिया में चलता है, जहाँ हर कल्प में सृष्टि, पालन और संहार होता रहता है।

इस प्रकार, विष्णु पुराण सृष्टि, जीवों और ब्रह्मांड की रचना को अत्यंत वैज्ञानिक और दार्शनिक रूप में प्रस्तुत करता है।


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