भगवान् श्रीकृष्ण, विष्णु के पूर्णावतार माने जाते हैं। उनकी लीलाएँ, उपदेश (विशेषतः श्रीमद्भगवद्गीता) और विभिन्न स्वरूपों की उपासना अत्यंत लोकप्रिय है। यहाँ कुछ अल्पज्ञात कृष्ण मंत्र प्रस्तुत हैं:
गोपाल तापनी उपनिषद् कृष्णोपासना का एक महत्वपूर्ण एवं प्राचीनतम स्रोत है। इसमें वर्णित मंत्र न केवल भक्ति प्रधान हैं बल्कि बीज मंत्रों के रहस्य और दार्शनिक गहराई को भी समाहित करते हैं। 'क्लीं' बीज का प्रयोग इन मंत्रों को विशेष तांत्रिक शक्ति भी प्रदान करता है, जो सृष्टि की मूल शक्तियों को जागृत करने की क्षमता रखता है। "गोपीजनवल्लभ" जैसे विशेषण कृष्ण के मधुर और प्रेममय स्वरूप को इंगित करते हैं, जो भक्ति मार्ग के साधकों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है।
क्लीं कृष्णाय नमः।
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण।
अर्थ/फलश्रुति: 'क्लीं' कामबीज है। उपनिषद् के अनुसार, 'क' से कृष्ण, 'ल' से जीवन (या जल), 'ई' से शक्ति (या स्त्री), और बिंदु (अनुस्वार 'ं') से प्रेम या चंद्र। इस प्रकार, यह बीजमंत्र कृष्ण के विभिन्न पहलुओं को समाहित करता है। कृष्ण का एक अर्थ पापों का आकर्षण (नाश) करने वाला भी है। अतः यह मंत्र पाप-नाशक एवं कृष्ण-प्रीति वर्धक है।
विधि: ध्यान एवं भक्तिपूर्वक जप।
क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण।
अर्थ/फलश्रुति: शीघ्र परम तत्व की प्राप्ति, अंतःकरण शुद्धि, ज्ञान प्राप्ति। 'गोविन्द' का अर्थ है गायों, भूमि और वेदों के पालक, या इंद्रियों के ज्ञाता। 'गोपीजनवल्लभ' गोपियों के प्रियतम का द्योतक है। 'स्वाहा' समर्पण का प्रतीक है।
विधि: वैखरी वाणी से, लंबा खींचकर जप (जैसे "क्लीं ऽऽऽऽऽम कृष्णाऽऽऽऽऽऽयऽ...")। मंत्र के अर्थ का भाव करना, अर्थात उसे बार-बार चित्त में स्थापित करना।
ॐ नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे। विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमोनमः॥
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण (विश्वरूप)।
अर्थ/फलश्रुति: यह मंत्र भगवान् कृष्ण को उनके विश्वरूप और परमेश्वर स्वरूप में नमस्कार करता है। 'विश्वस्थित्यन्तहेतवे' का अर्थ है विश्व की स्थिति (पालन) और अंत (प्रलय) के कारण। यह मंत्र वेदान्त के इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि परमात्मा ही जगत का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है।
विधि: भक्ति एवं समर्पण पूर्वक जप।
भगवान् श्रीकृष्ण, विष्णु के पूर्णावतार माने जाते हैं। उनकी लीलाएँ, उपदेश (विशेषतः श्रीमद्भगवद्गीता) और विभिन्न स्वरूपों की उपासना अत्यंत लोकप्रिय है। यहाँ कुछ अल्पज्ञात कृष्ण मंत्र प्रस्तुत हैं:
गोपाल तापनी उपनिषद् कृष्णोपासना का एक महत्वपूर्ण एवं प्राचीनतम स्रोत है। इसमें वर्णित मंत्र न केवल भक्ति प्रधान हैं बल्कि बीज मंत्रों के रहस्य और दार्शनिक गहराई को भी समाहित करते हैं। 'क्लीं' बीज का प्रयोग इन मंत्रों को विशेष तांत्रिक शक्ति भी प्रदान करता है, जो सृष्टि की मूल शक्तियों को जागृत करने की क्षमता रखता है। "गोपीजनवल्लभ" जैसे विशेषण कृष्ण के मधुर और प्रेममय स्वरूप को इंगित करते हैं, जो भक्ति मार्ग के साधकों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है।
क्लीं कृष्णाय नमः।
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण।
अर्थ/फलश्रुति: 'क्लीं' कामबीज है। उपनिषद् के अनुसार, 'क' से कृष्ण, 'ल' से जीवन (या जल), 'ई' से शक्ति (या स्त्री), और बिंदु (अनुस्वार 'ं') से प्रेम या चंद्र। इस प्रकार, यह बीजमंत्र कृष्ण के विभिन्न पहलुओं को समाहित करता है। कृष्ण का एक अर्थ पापों का आकर्षण (नाश) करने वाला भी है। अतः यह मंत्र पाप-नाशक एवं कृष्ण-प्रीति वर्धक है।
विधि: ध्यान एवं भक्तिपूर्वक जप।
क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण।
अर्थ/फलश्रुति: शीघ्र परम तत्व की प्राप्ति, अंतःकरण शुद्धि, ज्ञान प्राप्ति। 'गोविन्द' का अर्थ है गायों, भूमि और वेदों के पालक, या इंद्रियों के ज्ञाता। 'गोपीजनवल्लभ' गोपियों के प्रियतम का द्योतक है। 'स्वाहा' समर्पण का प्रतीक है।
विधि: वैखरी वाणी से, लंबा खींचकर जप (जैसे "क्लीं ऽऽऽऽऽम कृष्णाऽऽऽऽऽऽयऽ...")। मंत्र के अर्थ का भाव करना, अर्थात उसे बार-बार चित्त में स्थापित करना।
ॐ नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे। विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमोनमः॥
स्रोत: गोपाल तापनी उपनिषद्।
देवता: भगवान् श्रीकृष्ण (विश्वरूप)।
अर्थ/फलश्रुति: यह मंत्र भगवान् कृष्ण को उनके विश्वरूप और परमेश्वर स्वरूप में नमस्कार करता है। 'विश्वस्थित्यन्तहेतवे' का अर्थ है विश्व की स्थिति (पालन) और अंत (प्रलय) के कारण। यह मंत्र वेदान्त के इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि परमात्मा ही जगत का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है।
विधि: भक्ति एवं समर्पण पूर्वक जप।