ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धीमहि ।
तन्नो नृसिंहः प्रचोदयात् ।
यह मंत्र "गायत्री महाविज्ञान" जैसे ग्रंथों में विभिन्न देवताओं के गायत्री मंत्रों के अंतर्गत वर्णित है।
भगवान् नृसिंह।
इस गायत्री के जप से पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता की प्राप्ति होती है। यह शत्रुनाश, आतंक एवं आक्रमण से रक्षा करने में अत्यंत प्रभावी है।
सामान्य गायत्री मंत्र जप विधि का पालन किया जा सकता है। विशिष्ट फल की प्राप्ति हेतु भगवान् नृसिंह के उग्र एवं संरक्षणकारी स्वरूप का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जप करना चाहिए। यह मंत्र गायत्री की शक्ति को नृसिंह के उग्र और संरक्षणकारी स्वरूप के साथ जोड़ता है, जो साधक को आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से लड़ने की अदम्य शक्ति प्रदान करता है। "उग्रनृसिंह" और "वज्रनखाय" शब्द भगवान नृसिंह के शक्तिशाली और शत्रु-विनाशक स्वरूप को इंगित करते हैं। गायत्री मंत्र का प्रारूप (विद्महे, धीमहि, प्रचोदयात्) ध्यान और प्रज्ञा-जागरण से जुड़ा है। इन दोनों का संयोजन साधक को न केवल भौतिक शत्रुओं से रक्षा प्रदान करता है, बल्कि अज्ञान और आंतरिक नकारात्मकताओं जैसे सूक्ष्म शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
ॐ उग्रनृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धीमहि ।
तन्नो नृसिंहः प्रचोदयात् ।
यह मंत्र "गायत्री महाविज्ञान" जैसे ग्रंथों में विभिन्न देवताओं के गायत्री मंत्रों के अंतर्गत वर्णित है।
भगवान् नृसिंह।
इस गायत्री के जप से पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता की प्राप्ति होती है। यह शत्रुनाश, आतंक एवं आक्रमण से रक्षा करने में अत्यंत प्रभावी है।
सामान्य गायत्री मंत्र जप विधि का पालन किया जा सकता है। विशिष्ट फल की प्राप्ति हेतु भगवान् नृसिंह के उग्र एवं संरक्षणकारी स्वरूप का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जप करना चाहिए। यह मंत्र गायत्री की शक्ति को नृसिंह के उग्र और संरक्षणकारी स्वरूप के साथ जोड़ता है, जो साधक को आंतरिक और बाह्य शत्रुओं से लड़ने की अदम्य शक्ति प्रदान करता है। "उग्रनृसिंह" और "वज्रनखाय" शब्द भगवान नृसिंह के शक्तिशाली और शत्रु-विनाशक स्वरूप को इंगित करते हैं। गायत्री मंत्र का प्रारूप (विद्महे, धीमहि, प्रचोदयात्) ध्यान और प्रज्ञा-जागरण से जुड़ा है। इन दोनों का संयोजन साधक को न केवल भौतिक शत्रुओं से रक्षा प्रदान करता है, बल्कि अज्ञान और आंतरिक नकारात्मकताओं जैसे सूक्ष्म शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।