भगवान् वामन, विष्णु के बौने ब्राह्मण अवतार हैं जिन्होंने राजा बलि के अभिमान का मर्दन कर तीन पग भूमि में त्रिलोक नाप लिया था। वामन अवतार छोटे रूप में विराट शक्ति का प्रतीक है। इनके मंत्र संकल्प शक्ति, विनम्रता के साथ महान उपलब्धियां प्राप्त करने और बाधाओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं। "ॐ तप रूपाय" गायत्री विशेष रूप से सृष्टि-कर्ता के रूप में उनके ध्यान को इंगित करती है। वामन का बौना रूप होते हुए भी त्रिलोक को नाप लेना उनकी असीम शक्ति का प्रतीक है। अतः उनके मंत्र संकल्प-शक्ति और अप्रत्याशित सफलता प्रदान कर सकते हैं। "तप रूपाय" और "श्रृष्टिकर्ताय" जैसे शब्द उनके सूक्ष्म किन्तु सर्व-शक्तिमान स्वरूप को दर्शाते हैं। विशिष्ट तिथियों (एकादशी, गुरुवार) और सामग्री (इलायची) के साथ जप विधान इन मंत्रों की विशेष फलदायकता की ओर संकेत करते हैं।
देवेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे। प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः॥
नमस्ते पदमनाभाय नमस्ते जलः
शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि वाल यामन अप्रिणे॥
नमः शांग धनुर्याण पाठ्ये
वामनाय च। यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः॥
ॐ तप रूपाय विद्महे श्रृष्टिकर्ताय धीमहि तन्नो वामन प्रचोदयात्।
ओम नमो भगवते वामनाय नमः।
पूजन एवं अर्घ्य मंत्र ज़ी न्यूज़ के एक लेख में तथा मूल मंत्र एक यूट्यूब वीडियो में संदर्भित हैं। वामन गायत्री का उल्लेख भी मिलता है।
भगवान् वामन।
पूजन मंत्र से कष्टों का निवारण होता है वामन गायत्री मंत्र शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए कौशल विकास, मानसिक पीड़ा से मुक्ति तथा बाधाओं का निवारण करने में सहायक है।
पूजन एवं अर्घ्य मंत्र वामन जयंती पर पूजन के समय प्रयुक्त होते हैं। वामन गायत्री का जप एकादशी तिथि और शनिवार को 11, 108 या 1008 बार करना चाहिए। मूल मंत्र "ओम नमो भगवते वामनाय नमः" का जप खरमास में अथवा किसी भी गुरुवार को किया जा सकता है। एक विधि के अनुसार, 21 इलायची रखकर 20 मिनट तक इस मूल मंत्र का जप करना निर्दिष्ट है ।
भगवान् वामन, विष्णु के बौने ब्राह्मण अवतार हैं जिन्होंने राजा बलि के अभिमान का मर्दन कर तीन पग भूमि में त्रिलोक नाप लिया था। वामन अवतार छोटे रूप में विराट शक्ति का प्रतीक है। इनके मंत्र संकल्प शक्ति, विनम्रता के साथ महान उपलब्धियां प्राप्त करने और बाधाओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं। "ॐ तप रूपाय" गायत्री विशेष रूप से सृष्टि-कर्ता के रूप में उनके ध्यान को इंगित करती है। वामन का बौना रूप होते हुए भी त्रिलोक को नाप लेना उनकी असीम शक्ति का प्रतीक है। अतः उनके मंत्र संकल्प-शक्ति और अप्रत्याशित सफलता प्रदान कर सकते हैं। "तप रूपाय" और "श्रृष्टिकर्ताय" जैसे शब्द उनके सूक्ष्म किन्तु सर्व-शक्तिमान स्वरूप को दर्शाते हैं। विशिष्ट तिथियों (एकादशी, गुरुवार) और सामग्री (इलायची) के साथ जप विधान इन मंत्रों की विशेष फलदायकता की ओर संकेत करते हैं।
देवेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे। प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नमः॥
नमस्ते पदमनाभाय नमस्ते जलः
शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि वाल यामन अप्रिणे॥
नमः शांग धनुर्याण पाठ्ये
वामनाय च। यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नमः॥
ॐ तप रूपाय विद्महे श्रृष्टिकर्ताय धीमहि तन्नो वामन प्रचोदयात्।
ओम नमो भगवते वामनाय नमः।
पूजन एवं अर्घ्य मंत्र ज़ी न्यूज़ के एक लेख में तथा मूल मंत्र एक यूट्यूब वीडियो में संदर्भित हैं। वामन गायत्री का उल्लेख भी मिलता है।
भगवान् वामन।
पूजन मंत्र से कष्टों का निवारण होता है वामन गायत्री मंत्र शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए कौशल विकास, मानसिक पीड़ा से मुक्ति तथा बाधाओं का निवारण करने में सहायक है।
पूजन एवं अर्घ्य मंत्र वामन जयंती पर पूजन के समय प्रयुक्त होते हैं। वामन गायत्री का जप एकादशी तिथि और शनिवार को 11, 108 या 1008 बार करना चाहिए। मूल मंत्र "ओम नमो भगवते वामनाय नमः" का जप खरमास में अथवा किसी भी गुरुवार को किया जा सकता है। एक विधि के अनुसार, 21 इलायची रखकर 20 मिनट तक इस मूल मंत्र का जप करना निर्दिष्ट है ।