जानिए: ‘नमः शिवाय’ पञ्चाक्षर मंत्र से सिद्धि कैसे पाएं? अर्थ, साधना-विधि, पुरश्चरण और चमत्कारिक फल—पढ़िए विस्तार से

शिव कृपा का राजमार्ग: ‘नमः शिवाय’ पञ्चाक्षर मंत्र से सिद्धि कैसे प्राप्त करें?
मंगलाचरण - देवाधिदेव महादेव का आदिमंत्र
देवाधिदेव महादेव की कृपा अपरम्पार है। वे आशुतोष हैं, अर्थात अल्प भक्ति से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इस कलियुग में, जहाँ जीव सांसारिक माया और कष्टों से घिरा है, उन करुणामय शिव ने अपने भक्तों के कल्याण हेतु एक अत्यंत सरल किन्तु परम शक्तिशाली राजमार्ग प्रदान किया है। यह राजमार्ग है उनका आदिमंत्र - ‘नमः शिवाय’। यह केवल पाँच अक्षरों का समूह नहीं, अपितु स्वयं भगवान शिव का शब्द-स्वरूप, उनका साक्षात् नाद-विग्रह है।
शिव महापुराण के अनुसार, इस महामंत्र की महिमा का वर्णन सौ करोड़ वर्षों में भी संभव नहीं है। यह वह दिव्य मंत्र है, जिसे स्वयं भगवान शिव ने सम्पूर्ण देहधारियों के मनोरथों की सिद्धि के लिए प्रतिपादित किया। स्कन्द पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि जिसके हृदय में ‘नमः शिवाय’ मंत्र निवास करता है, उसे अन्य बहुत से मंत्रों, तीर्थों, तपस्याओं अथवा यज्ञों की क्या आवश्यकता है?। यह मंत्रराज समस्त वेदों का सारतत्व है और साधक को लौकिक एवं पारलौकिक सुख प्रदान कर अंत में मोक्ष की ओर ले जाता है।
श्रुति-स्मृति-पुराणेषु पंचाक्षरस्य महिमा
इस महामंत्र की प्रामाणिकता और महिमा स्वयं श्रुतियों (वेदों) में स्थापित है। यह कोई लौकिक रचना नहीं, अपितु अनादि वैदिक ज्ञान का हृदय है। कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता के अंतर्गत ‘श्री रुद्रम् चमकम्’ में तथा शुक्ल यजुर्वेद की ‘रुद्राष्टाध्यायी’ में यह मंत्र ‘’ के रूप में प्रकट हुआ है, जिसका अर्थ है ‘उस कल्याणकारी शिव को नमस्कार है और जो उनसे भी अधिक कल्याणकारी हैं, उन्हें भी नमस्कार है’। वेदों के हृदय में स्थित होने के कारण ही इसे ‘वेदों का सारतत्व’ कहा गया है।
इस मंत्र का प्रत्येक अक्षर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के एक-एक तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल एक प्रार्थना नहीं, अपितु अपने भीतर स्थित पंच-तत्वों को ब्रह्मांड के पंच-महाभूतों के साथ सामंजस्य में लाने की एक यौगिक प्रक्रिया है।
‘न’ कार पृथ्वी तत्व का प्रतीक है, जो स्थिरता और आधार प्रदान करता है।
‘म’ कार जल तत्व का प्रतीक है, जो जीवन में प्रवाह और सरसता लाता है।
‘शि’ कार अग्नि तत्व का प्रतीक है, जो पापों और अज्ञान का दहन कर रूपांतरण की ऊर्जा देता है।
‘वा’ कार वायु तत्व का प्रतीक है, जो शरीर में प्राण-शक्ति का संचार करता है।
‘य’ कार आकाश तत्व का प्रतीक है, जो चेतना के विस्तार और सर्वव्यापकता का बोध कराता है।
इस प्रकार, इस मंत्र का जप करने वाला साधक अपने शरीर और चेतना को ब्रह्मांडीय व्यवस्था के साथ एकाकार करता है। ‘नमः शिवाय’ को ‘पंचाक्षर मंत्र’ कहते हैं। जब इसके आदि में प्रणव अर्थात ‘ॐ’ जोड़ दिया जाता है, तब यह ‘षडाक्षर मंत्र’ बन जाता है। शास्त्रों के अनुसार, ‘नमः शिवाय’ का जप कोई भी कर सकता है, परन्तु ‘ॐ’ लगाकर जप करने का अधिकार गुरु-दीक्षा के उपरांत ही प्राप्त होता है, क्योंकि गुरु की कृपा से ही प्रणव की पूर्ण शक्ति जाग्रत होती है।
साधना का पथ - शिवत्व की ओर प्रथम चरण
पंचाक्षर मंत्र द्वारा सिद्धि प्राप्त करना केवल यांत्रिक जप पर नहीं, अपितु एक समग्र साधना पर निर्भर करता है। इसके कुछ प्रमुख चरण शास्त्रों में वर्णित हैं:
श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण:
साधना का मूल आधार है- अटूट श्रद्धा। ‘नमः शिवाय’ का शाब्दिक अर्थ ही है ‘मैं शिव को नमन करता हूँ’। यह ‘मैं’ और ‘मेरे’ के अहंकार का भगवान के चरणों में विसर्जन है। जब साधक पूर्ण समर्पण भाव से जप करता है, तभी मंत्र की चेतना जाग्रत होती है।
गुरु-दीक्षा का महत्व:
यद्यपि भगवान का नाम स्वयं ही पवित्र है, तथापि समर्थ गुरु के मुख से मंत्र प्राप्त करने (दीक्षा) का विशेष महत्व है। गुरु अपनी तपस्या की शक्ति से मंत्र को चैतन्य करके शिष्य को प्रदान करते हैं, जिससे साधक का मार्ग सुगम और शीघ्र फलदायी हो जाता है।
नित्य जप एवं ध्यान:
साधना में निरंतरता अनिवार्य है। प्रतिदिन, विशेषकर ब्रह्ममुहूर्त में, एक शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। रुद्राक्ष की माला से न्यूनतम 108 बार (एक माला) मंत्र का जप करें, क्योंकि रुद्राक्ष भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। जप के समय मन को भगवान शिव के शांत, सौम्य और कल्याणकारी स्वरूप पर एकाग्र करें।
आचार-विचार की शुद्धि:
मंत्र की दिव्य ऊर्जा को धारण करने के लिए पात्र की शुद्धि आवश्यक है। सात्विक आहार (शाकाहार), सत्य भाषण, इंद्रिय संयम और सदाचार का पालन करने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं, जिससे साधना का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
पुरश्चरण (गहन साधना):
जो साधक मंत्र-सिद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, उनके लिए शास्त्रों में ‘पुरश्चरण’ की विधि बताई गई है। यह एक विशेष अनुष्ठान है जिसमें एक निश्चित अवधि (जैसे माघ या भाद्रपद मास में 29 दिन) में मंत्र का निर्धारित संख्या (जैसे 5 लाख) में जप, हवन, तर्पण आदि किया जाता है। यह एक गहन तपस्या है, जिसे सफलतापूर्वक संपन्न करने पर मंत्र सिद्ध हो जाता है।
साधना का फल - सिद्धियों का यथार्थ स्वरूप
‘सिद्धि’ का अर्थ केवल चमत्कारिक शक्तियों की प्राप्ति नहीं है। पंचाक्षर मंत्र की साधना से प्राप्त होने वाली वास्तविक सिद्धियाँ साधक का आंतरिक रूपांतरण करती हैं:
चित्त-शुद्धि एवं पाप-नाश:
मंत्र के जप से उत्पन्न आध्यात्मिक अग्नि जन्म-जन्मांतर के संचित पाप-कर्मों और कुसंस्कारों को भस्म कर देती है, जिससे चित्त निर्मल हो जाता है।
मानसिक शांति एवं अभय:
यह मंत्र मन की चंचलता, तनाव, क्रोध, भय और चिंता को शांत करता है। साधक को एक असीम मानसिक शांति और निर्भयता का अनुभव होता है।
सर्व-मनोरथ-सिद्धि:
जब चित्त शुद्ध और शांत हो जाता है, तब महादेव की कृपा से साधक के सभी सात्विक मनोरथ स्वयं ही पूर्ण होने लगते हैं। जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और सफलता प्राप्त होती है। कुछ साधकों को ‘वचन सिद्धि’ भी प्राप्त होती है, जिससे उनकी वाणी सत्य और प्रभावशाली हो जाती है।
शिव कृपा एवं मोक्ष:
साधना का सर्वोच्च फल है- भगवान शिव की अहैतुकी कृपा की प्राप्ति। यही परम सिद्धि है। इस कृपा से साधक जीवन के अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। वह ‘शिवत्व’ अर्थात शिव-चेतना के साथ एकाकार हो जाता है।
उपसंहार - कल्याण का शाश्वत पथ
भगवान शिव का पंचाक्षर मंत्र ‘नमः शिवाय’ उनकी करुणा का साक्षात् प्रवाह है। यह शिव-कृपा तक पहुँचने का वह राजमार्ग है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है, चाहे वह किसी भी वर्ण, आश्रम या परिस्थिति में हो। देवाधिदेव को आडम्बरपूर्ण कर्मकांड नहीं, अपितु एक निर्मल हृदय की सच्ची पुकार प्रिय है।
अतः पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ इस महामंत्र का आश्रय लें। यह आपके जीवन को शांत, सफल और सार्थक बनाएगा तथा अंततः आपको उस परम कल्याणमय शिव के धाम तक ले जाएगा, जहाँ केवल आनंद ही आनंद है।
नमः शिवाय