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ब्रह्मांड के रहस्य को जानिए — नवग्रह और साक्षी मंत्र कैसे करते हैं हमारे कर्मों का साक्षात्कार !

ब्रह्मांड के रहस्य को जानिए — नवग्रह और साक्षी मंत्र कैसे करते हैं हमारे कर्मों का साक्षात्कार !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

ब्रह्मांड के दिव्य साक्षी: तंत्र-शास्त्रों में नवग्रह और साक्षी मंत्रों का गूढ़ रहस्य

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

सनातन धर्म की दृष्टि में यह ब्रह्मांड जड़ पदार्थों का समूह मात्र नहीं, अपितु एक चैतन्य, जीवंत एवं दिव्य लीला है। इस विराट ब्रह्मांडीय व्यवस्था के प्रत्येक कण में परमात्मा की चेतना व्याप्त है। इसी दिव्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने हेतु परमपिता ब्रह्मा ने जिन दिव्य शक्तियों को नियुक्त किया, वे ही नवग्रह कहलाते हैं। ये केवल खगोलीय पिंड नहीं, अपितु मनुष्य के कर्मों का फल प्रदान करने वाले ब्रह्मांडीय विधान के प्रशासक हैं। दूसरी ओर, इस संपूर्ण लीला के एक शाश्वत, निर्लिप्त दृष्टा हैं—साक्षी। यह साक्षी भाव ही उपनिषदों का सार और आत्म-ज्ञान का परम लक्ष्य है। तंत्र-शास्त्रों में इन दोनों—अर्थात कर्मफल के बाह्य प्रशासक (नवग्रह) और आंतरिक दृष्टा (साक्षी)—को जोड़ने वाली पवित्र साधना ही मंत्र है। आइए, वेद-पुराणों के प्रकाश में हम नवग्रहों के देव-स्वरूप और साक्षी मंत्रों के गूढ़ रहस्य को समझने का प्रयास करें।

नवग्रहों का देव-स्वरूप

ज्योतिष शास्त्र में 'ग्रह' शब्द का अर्थ केवल 'planet' नहीं, अपितु "जो ग्रहण करे या पकड़े" है। ये वे दिव्य सत्ताएं हैं जो प्रत्येक जीव के कर्मों को पकड़कर उसका उचित फल प्रदान करती हैं। वे ब्रह्मांडीय न्याय के देवता हैं, जिनकी रचना स्वयं ब्रह्मा ने धर्म की व्यवस्था बनाए रखने के लिए की है। उनका स्वरूप और उनकी उत्पत्ति पुराणों में स्पष्ट वर्णित है, जो उनके देवत्व को सिद्ध करती है:

सूर्य देव:

ये महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र हैं तथा समस्त ग्रहों के अधिपति हैं। वे जगत की आत्मा और प्राण-ऊर्जा के स्रोत हैं।

चंद्र देव:

पुरुष सूक्त के अनुसार, ये विराट पुरुष के मन से उत्पन्न हुए (चन्द्रमा मनसो जातः)। समुद्र मंथन से भी इनका प्राकट्य हुआ, जिस कारण ये क्षीरसागर के पुत्र कहलाए। भगवान शिव ने इन्हें अपने मस्तक पर धारण कर इनका मान बढ़ाया।

मंगल देव:

ये पृथ्वी देवी के पुत्र हैं, इसीलिए इनका एक नाम 'भूमिपुत्र' है और इनका ध्यान मंत्र "धरणी गर्भ संभूतं" से आरंभ होता है।

राहु एवं केतु:

इनकी कथा अत्यंत गूढ़ है। समुद्र मंथन के समय स्वरभानु नामक असुर ने देवों का वेष धरकर अमृत पान कर लिया। सूर्य और चंद्र देव ने इस रहस्य को उजागर किया, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से सिर (राहु) और धड़ (केतु) दोनों अमर हो गए और उन्हें नवग्रहों में स्थान मिला। यह कथा दर्शाती है कि ब्रह्मांडीय व्यवस्था में अधर्म से जन्मी शक्तियों को भी धर्म की स्थापना हेतु नियोजित कर लिया जाता है।

नवग्रह कोई पृथक देवमंडल नहीं हैं, अपितु त्रिदेवों और उनकी शक्तियों से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। बृहस्पति देवों के गुरु हैं, तो शुक्र असुरों के। शनिदेव भगवान शिव के परम भक्त हैं। इस प्रकार, नवग्रहों की उपासना भी परोक्ष रूप से उसी एक परब्रह्म की आराधना है, जिनसे वे शक्ति प्राप्त करते हैं।

तंत्र एवं आगम शास्त्रों में उपासना मार्ग

तंत्र-मार्ग भय का नहीं, अपितु ब्रह्मांडीय शक्तियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने का मार्ग है। साधक नवग्रहों की ऊर्जा को समझने और उसे अपने अनुकूल बनाने के लिए यंत्र, मंडल और मंत्रों का आश्रय लेता है। मंदिरों में नवग्रहों की स्थापना आगम-शास्त्रों के नियमों के अनुसार होती है, जिसमें कोई भी दो ग्रह एक-दूसरे के सम्मुख नहीं होते। यह उनके विशिष्ट और स्वतंत्र ब्रह्मांडीय प्रभाव का प्रतीक है। इन शक्तियों से संवाद स्थापित करने का सबसे सशक्त माध्यम मंत्र है। तंत्र में मंत्र को देवता का शब्द-स्वरूप या नाद-काय माना जाता है। नवग्रहों की शांति और कृपा प्राप्ति हेतु मुख्यतः तीन प्रकार के मंत्रों का विधान है:

बीज मंत्र:

ये एकाक्षरी मंत्र होते हैं, जिनमें ग्रह की संपूर्ण शक्ति बीज रूप में समाहित होती है। ये अत्यंत प्रभावशाली माने जाते हैं और ग्रहों के अशुभ प्रभाव को शांत करने में सक्षम हैं।

गायत्री मंत्र:

वैदिक संरचना वाले ये मंत्र संबंधित ग्रह देवता से हमारी बुद्धि (धी) को प्रकाशित करने की प्रार्थना हैं।

पौराणिक स्तोत्र:

महर्षि व्यास द्वारा रचित 'नवग्रह स्तोत्र' जैसे भक्तिपूर्ण स्तोत्र भी उपासना का एक सरल और प्रभावी मार्ग हैं।

साक्षी का तत्त्व-दर्शन

अब हम तंत्र-साधना के दूसरे और सबसे गहन पक्ष पर आते हैं—साक्षी। उपनिषदों के अनुसार, 'साक्षी' वह शुद्ध, नित्य और निर्लिप्त चेतना (आत्मा) है, जो मन की सभी अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) और शरीर के सभी कर्मों को देखती है, पर स्वयं उसमें लिप्त नहीं होती। श्वेताश्वतर उपनिषद् (6.11) में इसे स्पष्ट कहा गया है:

"एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा। कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च॥"

(अर्थात, एक ही देव सभी प्राणियों में छिपा है... वह साक्षी, चैतन्य, विशुद्ध और गुणों से परे है)। यही हमारा वास्तविक, अपरिवर्तनीय स्वरूप है।

यह गहन दार्शनिक सिद्धांत हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रतिबिंबित होता है। वैदिक परंपरा में कोई भी यज्ञ, व्रत या संकल्प तब तक पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक उसे दिव्य साक्षियों की उपस्थिति में न किया जाए। ये साक्षी हैं:

अग्नि देव:

यज्ञ के प्रमुख साक्षी, जो हविष्य को देवताओं तक पहुंचाते हैं।

सूर्य देव:

'लोक साक्षी', जो दिन में किए गए सभी कर्मों को देखते हैं।

अष्टदिग्पाल:

इंद्र, वरुण, यम, कुबेर आदि दिशाओं के स्वामी, जो अपने-अपने क्षेत्र में होने वाले प्रत्येक कर्म के साक्षी हैं।

इस प्रकार 'साक्षी' का सिद्धांत तीन स्तरों पर कार्य करता है—ब्रह्मांडीय साक्षी (कर्मों को देखने वाले नवग्रह), अनुष्ठानिक साक्षी (यज्ञ-कर्म को प्रमाणित करने वाले अग्नि-सूर्य आदि देव) और आत्म-साक्षी (मन के व्यापारों को देखने वाली हमारी अपनी आत्मा)।

साक्षी मंत्र एवं ब्रह्मांडीय विधान का समन्वय

'साक्षी मंत्र' का अर्थ दो स्तरों पर समझा जा सकता है। पहला, अनुष्ठानिक अर्थ में, ये वे मंत्र हैं जो दिव्य साक्षियों का आवाहन करते हैं। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण गायत्री मंत्र है, जो सूर्य-स्वरूप सविता देव से हमारी बुद्धि को प्रकाशित करने की प्रार्थना है। यह परम साक्षी मंत्र है, क्योंकि यह हमें सत्य का साक्षी बनने की क्षमता प्रदान करता है। दूसरा, दार्शनिक अर्थ में, कोई भी मंत्र 'साक्षी मंत्र' बन सकता है, यदि उसका जाप साक्षी भाव में स्थित होकर किया जाए। जब साधक मंत्र पर ध्यान केंद्रित करता है, तो वह मन में उठने वाले विचारों और भावनाओं का दृष्टा बन जाता है। मंत्र एक लंगर का कार्य करता है, जो मन को विचारों के प्रवाह में बहने से रोकता है और साधक को अपने सच्चे 'साक्षी स्वरूप' में स्थित होने में सहायता करता है।

इस दृष्टि से, नवग्रह स्वयं सबसे बड़े कर्म-साक्षी हैं। वे हमारे प्रत्येक विचार, वचन और कर्म के मूक दृष्टा हैं और उनका ज्योतिषीय प्रभाव हमारे कर्मों पर ब्रह्मांड की एक निष्पक्ष प्रतिक्रिया मात्र है। अतः, नवग्रह शांति पूजा केवल ग्रहों को प्रसन्न करने का उपाय नहीं, अपितु इस ब्रह्मांडीय साक्षी-व्यवस्था को स्वीकार करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने का एक पवित्र संकल्प है।

ज्ञानयुक्त भक्ति का मार्ग

सनातन धर्म का मार्ग अद्भुत रूप से समन्वित है। हम नवग्रहों की उपासना बाह्य शक्तियों के रूप में आरंभ करते हैं, जो हमारे भाग्य का नियंत्रण करती हैं। मंत्रों की पवित्र साधना के माध्यम से हम इन ब्रह्मांडीय शक्तियों से जुड़ते हैं। यही साधना, जिसे अग्नि और सूर्य जैसे देव साक्षी भाव से देखते हैं, हमारे चित्त को शुद्ध करती है और अंततः हमें उपनिषदों के उस परम सत्य की ओर ले जाती है—कि हमारा वास्तविक स्वरूप वह नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त 'साक्षी आत्मा' ही है।

मंत्र-साधना वह दिव्य सेतु है जो भक्त (जीव) को ब्रह्मांडीय व्यवस्था (जगत) से जोड़ता है और अंततः परब्रह्म में विलीन कर देता है। यही वह मार्ग है जो कर्म-बंधन से संचालित जीवन को एक सचेत, धार्मिक और आनंदपूर्ण जीवन में रूपांतरित करता है।


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