केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के हृदय में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप (अनंतशायी – जो शेषनाग पर योगनिद्रा में लेटे हैं) को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।
यह मंदिर अपनी दिव्य प्रतिमा के साथ-साथ दुनिया के सबसे धनी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां के भूमिगत कोषागारों (तहखानों) से अब तक खरबों मूल्य का ख़ज़ाना निकाला जा चुका है।
इसके एक रहस्यमय कक्ष “Vault B” (कक्ष बी) ने विशेषकर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है, जिसे सदियों से अब तक नहीं खोला जा सका और उससे कई किंवदंतियाँ जुड़ी हैं।
पद्मनाभस्वामी मंदिर के अस्तित्व के प्रमाण कम से कम 6ठी शताब्दी तक जाते हैं।
वर्तमान भव्य संरचना का अधिकांश निर्माण त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा ने 18वीं शताब्दी (1733 ई.) में करवाया था।
उन्होंने राज्य को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर स्वयं को उनका “दास” घोषित किया था – आज भी त्रावणकोर राजवंश के वंशज मंदिर के संरक्षक हैं।
पौराणिक कथा अनुसार दिव्य ऋषि विल्वमंगलम को जंगल में श्रीहरि विष्णु बालक रूप में दिखे और फिर अचानक विशाल रूप में शेषनाग पर लेट गए – उसी स्थान पर यह मंदिर बना।
आदि शंकराचार्य ने भी यहाँ पूजा की थी।
मंदिर का उल्लेख कई संगम तमिल साहित्य और पुराणों में मिलता है।
यह 108 दिव्यदेशम (श्रीविष्णु के पवित्र स्थल) में सर्वोच्च माना जाता है।
मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है जिसमें प्रमुख आकर्षण है 100 फुट ऊँचा स्तंभयुक्त गोपुरम (प्रवेश तोरण) जिसके सात तल हैं और सुंदर नक्काशीदार प्रतिमाएँ हैं।
गर्भगृह के अंदर भगवान पद्मनाभ की विशाल प्रतिमा 18 फुट लंबी है –
यह प्रतिमा 12,000 शिलाओं से विशेष मिश्रण (कडुसरक परिवार) द्वारा बनी है, जो एक तरह का आयुर्वेदिक लेप है।
दर्शक इसे तीन द्वारों से दर्शन करते हैं –
मंदिर में कला के अद्भुत नमूने हैं – दीवारों और स्तंभों पर मंदिर की कथाएँ चित्रित हैं।
परिसर में कई मण्डप (हॉल) हैं, जैसे –
कुल मिलाकर, विशाल प्राचीरों से घिरा यह मंदिर स्थापत्य और शिल्पकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में तब आया जब 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के गुप्त कोषागारों को खोला गया।
सदियों से मंदिर के तहखानों (Vaults A, B, C, D, E, F) को नहीं खोला गया था।
एक-एक कर पाँच कोषागार खोले गए और उनसे अपार धनराशि निकली –
अचानक पाया गया कि यह मंदिर संसार का सबसे धनी धार्मिक स्थल बन चुका है।
किंतु इनमें से Vault B (कक्ष बी) नहीं खोला जा सका।
यह मंदिर का सबसे रहस्यमय पहलू है।
इस कक्ष के दरवाजे पर नागदेव की आकृतियाँ उकेरी हैं और लोकविश्वास है कि इसे नागपाश मन्त्र द्वारा बंद किया गया है।
त्रावणकोर राजपरिवार, पुरोहित और श्रद्धालु मानते हैं कि कक्ष बी खोलने का प्रयास करने पर भारी दुर्भाग्य आएगा।
कहा जाता है –
मान्यता है कि इस कक्ष की सुरक्षा स्वयं भगवान विष्णु के गरुड़ मंत्र से बंधी है , जिसे सिर्फ कोई सिद्ध महापुरुष ही खोल सकता है।
आज तक Vault B के पीछे क्या है, कोई नहीं जानता।
कुछ का मानना है वहां अनमोल खजाना है, तो कुछ कहते हैं वहाँ सीधे पाताललोक (समुद्र) को जाने वाला मार्ग है, इसीलिए उसे नहीं छेड़ना चाहिए।
यह कक्ष पद्मनाभस्वामी मंदिर के सबसे बड़े रहस्यों में से है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर वैसे तो आदि अनंत प्रभु के प्रसिद्ध तीर्थ के रूप में सदियों से प्रसिद्ध था, लेकिन हाल के दशक में यह अपने खज़ाने के कारण विश्वपटल पर आया है।
“भारत का सबसे धनी मंदिर” की हेडलाइन ने सभी को चकित कर दिया और लोग इसकी संपदा व रहस्य जानने को उत्सुक हुए।
साथ ही, मंदिर का Vault B भले न खुला हो, पर इससे जुड़ी रहस्यमयी कहानियाँ (मंत्रों का ताला , श्राप) ने इसको और चर्चित बना दिया है।
एक और खास पहलू – यह मंदिर त्रावणकोर के राजपरिवार की निजी संपत्ति जैसा था, लेकिन हाल में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और सरकार के नियंत्रण के बीच यह कानूनी चर्चाओं में भी रहा।
इन सबसे अलग, धार्मिक दृष्टि से यह स्थल वैष्णव भक्तों के लिए अति पूजनीय है, क्योंकि दक्षिण भारत में इतने उत्तर-दक्षिण मिश्रित प्रभाव वाले मंदिर कम ही हैं।
(यहाँ के पूजापाठ में तमिल , मलयालम और संस्कृत परंपराओं का संगम है)।
इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में “स्वर्ग का द्वार” तक कहा गया है, सो इसकी आध्यात्मिक प्रसिद्धि अत्यंत प्राचीन है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रत्येक वर्ष दो बड़े उत्सव मनाए जाते हैं – अल्पषी उत्सवम (अक्टूबर-नवंबर) और पंगुनी उत्सवम (मार्च-अप्रैल)।
ये 10-दिवसीय उत्सव होते हैं जिनमें शामिल हैं:
प्रत्येक वैशाख एकादशी को मूर्ति स्नानम (विशेष स्नान) होता है।
वैष्णव संप्रदाय के त्योहार जैसे विराटोट्सव, झूलन आदि भी मनाए जाते हैं।
इस मंदिर की एक विशिष्ट परंपरा आरतियों की है – दिन में कई बार आरती और प्रसाद अर्पण किया जाता है।
गर्भगृह में केवल हिंदू पहनावे (पुरुष – धोती, महिलाएं – साड़ी) में ही प्रवेश मिलता है।
वैशाख गुण्डु (नवरात्रि के समय दीप जलूस) यहाँ बहुत प्रसिद्ध है।
इसके अलावा, वैकुंठ एकादशी, रामनवमी, श्रीकृष्ण जयंती आदि भी बड़ी श्रद्धा से मनाए जाते हैं।
पुरातत्वविद और इतिहासकार पद्मनाभस्वामी मंदिर के कोषागारों को एक सांस्कृतिक संपदा की तरह देखते हैं।
इनसे निकले सिक्कों और आभूषणों के अध्ययन से प्राचीन व्यापार और कला पर प्रकाश डाला जा रहा है।
कुछ सिक्के रोमन साम्राज्य के मिले हैं, जो रोम-केरल व्यापार को दर्शाते हैं।
वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा इस ख़जाने को संरक्षित रखने की चुनौती है – राज्य और केंद्र सरकार इस पर काम कर रहे हैं।
जहां तक Vault B का सवाल है, कानूनी और धरोहर विशेषज्ञ दोनों दुविधा में हैं –
वैज्ञानिक निकट भविष्य में एक नॉन-इनवेसिव स्कैन द्वारा अंदर झांकने का तरीका निकाल सकते हैं, ताकि बगैर खोले ज्ञात हो सके कि अंदर क्या है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और रहस्य का एक अनूठा संगम है।
इसके समृद्ध कोषागार, गूढ़ रहस्य और आध्यात्मिक ऊर्जा इसे विश्व के सबसे अद्वितीय मंदिरों में शुमार करते हैं।
श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं और ईश्वरीय अनुभूति के साथ रहस्यमयी कहानियों को भी महसूस करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह मंदिर अध्ययन और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी धार्मिक और संस्कृतिक महत्ता कभी कम नहीं हो सकती।
अंततः, पद्मनाभस्वामी के धाम में मानव बुद्धि से परे रहस्य और चमत्कार होना स्वाभाविक है।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के हृदय में स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप (अनंतशायी – जो शेषनाग पर योगनिद्रा में लेटे हैं) को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।
यह मंदिर अपनी दिव्य प्रतिमा के साथ-साथ दुनिया के सबसे धनी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां के भूमिगत कोषागारों (तहखानों) से अब तक खरबों मूल्य का ख़ज़ाना निकाला जा चुका है।
इसके एक रहस्यमय कक्ष “Vault B” (कक्ष बी) ने विशेषकर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है, जिसे सदियों से अब तक नहीं खोला जा सका और उससे कई किंवदंतियाँ जुड़ी हैं।
पद्मनाभस्वामी मंदिर के अस्तित्व के प्रमाण कम से कम 6ठी शताब्दी तक जाते हैं।
वर्तमान भव्य संरचना का अधिकांश निर्माण त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा ने 18वीं शताब्दी (1733 ई.) में करवाया था।
उन्होंने राज्य को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर स्वयं को उनका “दास” घोषित किया था – आज भी त्रावणकोर राजवंश के वंशज मंदिर के संरक्षक हैं।
पौराणिक कथा अनुसार दिव्य ऋषि विल्वमंगलम को जंगल में श्रीहरि विष्णु बालक रूप में दिखे और फिर अचानक विशाल रूप में शेषनाग पर लेट गए – उसी स्थान पर यह मंदिर बना।
आदि शंकराचार्य ने भी यहाँ पूजा की थी।
मंदिर का उल्लेख कई संगम तमिल साहित्य और पुराणों में मिलता है।
यह 108 दिव्यदेशम (श्रीविष्णु के पवित्र स्थल) में सर्वोच्च माना जाता है।
मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है जिसमें प्रमुख आकर्षण है 100 फुट ऊँचा स्तंभयुक्त गोपुरम (प्रवेश तोरण) जिसके सात तल हैं और सुंदर नक्काशीदार प्रतिमाएँ हैं।
गर्भगृह के अंदर भगवान पद्मनाभ की विशाल प्रतिमा 18 फुट लंबी है –
यह प्रतिमा 12,000 शिलाओं से विशेष मिश्रण (कडुसरक परिवार) द्वारा बनी है, जो एक तरह का आयुर्वेदिक लेप है।
दर्शक इसे तीन द्वारों से दर्शन करते हैं –
मंदिर में कला के अद्भुत नमूने हैं – दीवारों और स्तंभों पर मंदिर की कथाएँ चित्रित हैं।
परिसर में कई मण्डप (हॉल) हैं, जैसे –
कुल मिलाकर, विशाल प्राचीरों से घिरा यह मंदिर स्थापत्य और शिल्पकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में तब आया जब 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मंदिर के गुप्त कोषागारों को खोला गया।
सदियों से मंदिर के तहखानों (Vaults A, B, C, D, E, F) को नहीं खोला गया था।
एक-एक कर पाँच कोषागार खोले गए और उनसे अपार धनराशि निकली –
अचानक पाया गया कि यह मंदिर संसार का सबसे धनी धार्मिक स्थल बन चुका है।
किंतु इनमें से Vault B (कक्ष बी) नहीं खोला जा सका।
यह मंदिर का सबसे रहस्यमय पहलू है।
इस कक्ष के दरवाजे पर नागदेव की आकृतियाँ उकेरी हैं और लोकविश्वास है कि इसे नागपाश मन्त्र द्वारा बंद किया गया है।
त्रावणकोर राजपरिवार, पुरोहित और श्रद्धालु मानते हैं कि कक्ष बी खोलने का प्रयास करने पर भारी दुर्भाग्य आएगा।
कहा जाता है –
मान्यता है कि इस कक्ष की सुरक्षा स्वयं भगवान विष्णु के गरुड़ मंत्र से बंधी है , जिसे सिर्फ कोई सिद्ध महापुरुष ही खोल सकता है।
आज तक Vault B के पीछे क्या है, कोई नहीं जानता।
कुछ का मानना है वहां अनमोल खजाना है, तो कुछ कहते हैं वहाँ सीधे पाताललोक (समुद्र) को जाने वाला मार्ग है, इसीलिए उसे नहीं छेड़ना चाहिए।
यह कक्ष पद्मनाभस्वामी मंदिर के सबसे बड़े रहस्यों में से है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर वैसे तो आदि अनंत प्रभु के प्रसिद्ध तीर्थ के रूप में सदियों से प्रसिद्ध था, लेकिन हाल के दशक में यह अपने खज़ाने के कारण विश्वपटल पर आया है।
“भारत का सबसे धनी मंदिर” की हेडलाइन ने सभी को चकित कर दिया और लोग इसकी संपदा व रहस्य जानने को उत्सुक हुए।
साथ ही, मंदिर का Vault B भले न खुला हो, पर इससे जुड़ी रहस्यमयी कहानियाँ (मंत्रों का ताला , श्राप) ने इसको और चर्चित बना दिया है।
एक और खास पहलू – यह मंदिर त्रावणकोर के राजपरिवार की निजी संपत्ति जैसा था, लेकिन हाल में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और सरकार के नियंत्रण के बीच यह कानूनी चर्चाओं में भी रहा।
इन सबसे अलग, धार्मिक दृष्टि से यह स्थल वैष्णव भक्तों के लिए अति पूजनीय है, क्योंकि दक्षिण भारत में इतने उत्तर-दक्षिण मिश्रित प्रभाव वाले मंदिर कम ही हैं।
(यहाँ के पूजापाठ में तमिल , मलयालम और संस्कृत परंपराओं का संगम है)।
इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में “स्वर्ग का द्वार” तक कहा गया है, सो इसकी आध्यात्मिक प्रसिद्धि अत्यंत प्राचीन है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर में प्रत्येक वर्ष दो बड़े उत्सव मनाए जाते हैं – अल्पषी उत्सवम (अक्टूबर-नवंबर) और पंगुनी उत्सवम (मार्च-अप्रैल)।
ये 10-दिवसीय उत्सव होते हैं जिनमें शामिल हैं:
प्रत्येक वैशाख एकादशी को मूर्ति स्नानम (विशेष स्नान) होता है।
वैष्णव संप्रदाय के त्योहार जैसे विराटोट्सव, झूलन आदि भी मनाए जाते हैं।
इस मंदिर की एक विशिष्ट परंपरा आरतियों की है – दिन में कई बार आरती और प्रसाद अर्पण किया जाता है।
गर्भगृह में केवल हिंदू पहनावे (पुरुष – धोती, महिलाएं – साड़ी) में ही प्रवेश मिलता है।
वैशाख गुण्डु (नवरात्रि के समय दीप जलूस) यहाँ बहुत प्रसिद्ध है।
इसके अलावा, वैकुंठ एकादशी, रामनवमी, श्रीकृष्ण जयंती आदि भी बड़ी श्रद्धा से मनाए जाते हैं।
पुरातत्वविद और इतिहासकार पद्मनाभस्वामी मंदिर के कोषागारों को एक सांस्कृतिक संपदा की तरह देखते हैं।
इनसे निकले सिक्कों और आभूषणों के अध्ययन से प्राचीन व्यापार और कला पर प्रकाश डाला जा रहा है।
कुछ सिक्के रोमन साम्राज्य के मिले हैं, जो रोम-केरल व्यापार को दर्शाते हैं।
वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा इस ख़जाने को संरक्षित रखने की चुनौती है – राज्य और केंद्र सरकार इस पर काम कर रहे हैं।
जहां तक Vault B का सवाल है, कानूनी और धरोहर विशेषज्ञ दोनों दुविधा में हैं –
वैज्ञानिक निकट भविष्य में एक नॉन-इनवेसिव स्कैन द्वारा अंदर झांकने का तरीका निकाल सकते हैं, ताकि बगैर खोले ज्ञात हो सके कि अंदर क्या है।
पद्मनाभस्वामी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और रहस्य का एक अनूठा संगम है।
इसके समृद्ध कोषागार, गूढ़ रहस्य और आध्यात्मिक ऊर्जा इसे विश्व के सबसे अद्वितीय मंदिरों में शुमार करते हैं।
श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं और ईश्वरीय अनुभूति के साथ रहस्यमयी कहानियों को भी महसूस करते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह मंदिर अध्ययन और संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी धार्मिक और संस्कृतिक महत्ता कभी कम नहीं हो सकती।
अंततः, पद्मनाभस्वामी के धाम में मानव बुद्धि से परे रहस्य और चमत्कार होना स्वाभाविक है।