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जपमाला का 108 रहस्य: सुमेरु, ब्रह्म-ग्रंथि ,108 मनकों का विज्ञान,ज्योतिष, नक्षत्र, प्राण, सही विधि और नियम समझें !

जपमाला का 108 रहस्य: सुमेरु, ब्रह्म-ग्रंथि ,108 मनकों का विज्ञान,ज्योतिष, नक्षत्र, प्राण, सही विधि और नियम समझें !AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

अक्षरमाला रहस्य: मंत्र जप में माला गणना का शास्त्रीय एवं आध्यात्मिक महत्व

मंगलाचरण: साधना का दिव्य उपकरण - जपमाला

ॐ श्री गुरुभ्यो नमः। ॐ श्री गणेशाय नमः। ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः।

सनातन धर्म की ज्ञान-गंगा में, ईश्वर तक पहुँचने के अनगिनत मार्ग वर्णित हैं, जिनमें 'जप' को एक अत्यंत सरल, सुगम और शक्तिशाली सोपान माना गया है। यह एक ऐसी साधना है जिसमें भक्त अपने इष्टदेव के नाम या मंत्र का निरंतर स्मरण करता है, और इस पवित्र अनुष्ठान में उसका सबसे निष्ठावान साथी होती है - जपमाला। सामान्य दृष्टि से देखने पर यह केवल मनकों की एक लड़ी प्रतीत हो सकती है, जिसका उपयोग मंत्रों की गिनती के लिए किया जाता है। परन्तु, शास्त्रों की दृष्टि से यह एक साधारण गणना-यंत्र नहीं, अपितु एक अत्यंत शक्तिशाली एवं दिव्य आध्यात्मिक उपकरण है 1। यह साधक और साध्य के मध्य एक सेतु है, शक्ति-स्वरूपा है और ऊर्जा की संवाहक है।

जपमाला का प्रत्येक अंग - उसके मनकों की संख्या, उनके मध्य की ग्रंथि, उसका शीर्ष-मनका 'सुमेरु' और उसे धारण करने की विधि - सब कुछ गहन शास्त्रीय विधानों पर आधारित है। आगम शास्त्रों, पुराणों और तंत्र ग्रंथों में इसका विस्तृत विवेचन मिलता है। यह लेख उन्हीं शास्त्र-वचनों के प्रकाश में जपमाला के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने का एक विनम्र प्रयास है, ताकि प्रत्येक साधक अपनी साधना के इस अभिन्न अंग के महत्व को समझकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा को और भी अधिक गहराई प्रदान कर सके। यह समझना आवश्यक है कि माला केवल एक गणक नहीं, अपितु ऊर्जा का एक जीवंत संवाहक है। जब साधक मंत्रोच्चार के साथ एक-एक मनके को आगे बढ़ाता है, तो वह केवल गिनती नहीं कर रहा होता, अपितु प्रत्येक मनके को मंत्र की दिव्य ध्वनि-तरंगों से अभिमंत्रित एवं ऊर्जान्वित कर रहा होता है। 108 बार के मंत्रोच्चार से यह माला एक शक्तिशाली ऊर्जा-चक्र का निर्माण करती है, जो साधक के आभामंडल को सुदृढ़ करती है और उसे गहन ध्यानावस्था में ले जाने में सहायक होती है 2।

१०८ मनकों का ब्रह्मांडीय एवं आध्यात्मिक विधान

यह प्रश्न सहज ही उठता है कि जपमाला में 108 मनके ही क्यों होते हैं? यह संख्या कोई आकस्मिक चयन नहीं है, अपितु इसके पीछे गहन खगोलीय, ज्योतिषीय, शारीरिक और आध्यात्मिक विज्ञान छिपा है। यह पवित्र संख्या व्यक्ति (व्यष्टि) को ब्रह्मांड (समष्टि) के साथ एक लय में स्थापित करती है।

ज्योतिष शास्त्रीय रहस्य

हमारे ऋषियों ने ब्रह्मांड को एक जीवंत इकाई के रूप में देखा और पाया कि संख्या 108 ब्रह्मांडीय गणित की आधारशिला है।

ग्रह एवं राशि: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सम्पूर्ण ब्रह्मांड को 12 राशियों में विभाजित किया गया है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रहों को प्रधान माना गया है। जब हम इन 12 राशियों को 9 ग्रहों से गुणा करते हैं, तो गुणनफल 108 आता है (12×9=108)। अतः, 108 मनकों की एक माला का जप करने का अर्थ है सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय शक्तियों का आह्वान करना और उन्हें अपने अनुकूल बनाना। यह जप साधक को सभी ग्रहों और राशियों के प्रभाव-क्षेत्र से जोड़ता है।

नक्षत्र एवं चरण: वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का विशेष महत्व है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण या 'पद' होते हैं। इस प्रकार, 27 नक्षत्रों के कुल चरण भी 108 होते हैं (27×4=108)। माला का प्रत्येक मनका इन 108 चरणों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। जब साधक एक माला पूरी करता है, तो वह प्रतीकात्मक रूप से सम्पूर्ण नक्षत्र-मंडल की परिक्रमा कर लेता है, जिससे उसे समस्त दिव्य नक्षत्रों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

प्राण-विज्ञान का गूढ़ार्थ

जपमाला का विधान केवल बाह्य ब्रह्मांड से ही नहीं, अपितु हमारे आंतरिक ब्रह्मांड, अर्थात हमारे शरीर और प्राणों से भी जुड़ा है।

श्वास-प्रश्वास की गणना: शास्त्रों के अनुसार, एक स्वस्थ मनुष्य 24 घंटों में लगभग 21,600 बार श्वास लेता है। दिन के 12 घंटे हम सांसारिक कार्यों में व्यतीत करते हैं, जिनमें लगभग 10,800 श्वासें व्यय हो जाती हैं। शेष 12 घंटे आध्यात्मिक साधना और विश्राम के लिए होते हैं, जिनमें 10,800 श्वासें शेष रहती हैं। शास्त्रों का निर्देश है कि मनुष्य को अपनी प्रत्येक श्वास के साथ ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। परन्तु, हर साधक के लिए 10,800 बार जप करना संभव नहीं है। अतः, ऋषियों ने करुणावश इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर 108 की संख्या को जप के लिए निर्धारित कर दिया। इस प्रकार, 108 बार किया गया जप 10,800 श्वासों द्वारा किए गए स्मरण का पुण्य फल प्रदान करता है।

पौराणिक एवं शास्त्रीय प्रमाण

शिव पुराण का वचन: भगवान शिव स्वयं शिव पुराण की वायवीय संहिता में 108 मनकों की माला को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं। यह स्पष्ट शास्त्र-प्रमाण इस संख्या की दिव्यता और महत्व को सिद्ध करता है। 108 दानों की माला को 'सर्वसिद्धिदायक' अर्थात सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली कहा गया है।

सूर्य की कलाएं: सूर्यदेव को साक्षात देवता माना गया है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, सूर्य एक वर्ष में 2,16,000 कलाएं बदलता है। वह छह माह उत्तरायण और छह माह दक्षिणायन रहता है। इस प्रकार, सूर्य अपनी एक अयन (छह माह) की यात्रा में 1,08,000 कलाएं बदलता है। इसी दिव्य संख्या से अंतिम तीन शून्य हटाकर 108 की संख्या को जपमाला के लिए पवित्र माना गया। इस प्रकार, माला का प्रत्येक मनका सूर्य की एक दिव्य कला का प्रतीक है, जो हमें तेज, ऊर्जा और आरोग्यता प्रदान करती है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि 108 की संख्या केवल एक अंक नहीं, अपितु एक ब्रह्मांडीय सूत्र है। यह ज्योतिष, खगोल और मानव शरीर-विज्ञान के विभिन्न चक्रों का एक मिलन बिंदु है। जब साधक 108 मनकों की माला पूरी करता है, तो वह केवल एक संख्या पूरी नहीं करता, अपितु सचेत रूप से अपनी प्राणिक ऊर्जा और मानसिक तरंगों को सौरमंडल और ब्रह्मांड की लय के साथ संरेखित करता है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यक्तिगत प्रार्थना को एक सार्वभौमिक अनुनाद में परिवर्तित कर देता है, जिससे मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

जपमाला की दिव्य संरचना: सुमेरु एवं ब्रह्म-ग्रंथि

एक सिद्ध जपमाला की संरचना अत्यंत वैज्ञानिक और प्रतीकात्मक होती है। इसके दो प्रमुख अंग हैं - 'सुमेरु' और 'ब्रह्म-ग्रंथि', जो साधक को साधना के महत्वपूर्ण नियमों का स्मरण कराते हैं।

गुरु-स्वरूप 'सुमेरु'

माला के 108 मनकों के अतिरिक्त एक और बड़ा व भिन्न मनका होता है, जिसे 'सुमेरु' या 'गुरु-मनका' कहा जाता है। यह 109वां मनका गिनती में नहीं आता। सुमेरु पर्वत की भांति यह सर्वोच्च शिखर का प्रतीक है, जो साक्षात गुरु-तत्व, परब्रह्म या उस आध्यात्मिक लक्ष्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे साधक प्राप्त करना चाहता है।

मेरु-उल्लंघन निषेध: जप का सबसे महत्वपूर्ण शास्त्रीय नियम है कि सुमेरु को कभी भी लांघा नहीं जाता। 108 मंत्रों का जप पूरा होने पर साधक सुमेरु तक पहुँचता है। इसके पश्चात, अगली माला प्रारंभ करने के लिए माला को पार नहीं किया जाता, बल्कि उसे श्रद्धापूर्वक मस्तक से लगाकर घुमा लिया जाता है और अंतिम मनके से ही पुनः जप प्रारंभ कर दिया जाता है। यह क्रिया गुरु के प्रति नतमस्तक होने और कृतज्ञता ज्ञापित करने का प्रतीक है। इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ यह है कि साधना का उद्देश्य गुरु या ईश्वर से 'आगे निकलना' नहीं, बल्कि निरंतर उनकी परिक्रमा करते हुए उनकी सेवा में लगे रहना है। एक चक्र का पूर्ण होना साधना की एक मंजिल है, अंत नहीं।

स्थिरता की 'ब्रह्म-ग्रंथि'

प्रत्येक मनके के पश्चात जो गाँठ लगाई जाती है, उसे 'ब्रह्म-ग्रंथि' कहते हैं। इसका दोहरा महत्व है:

व्यावहारिक महत्व: यह ग्रंथि दो मनकों को आपस में टकराने से रोकती है, जिससे जप के समय ध्वनि नहीं होती और साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। यदि माला कभी टूट भी जाए, तो सभी मनके बिखरते नहीं हैं।

आध्यात्मिक महत्व: ब्रह्म-ग्रंथि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की शक्ति का प्रतीक है। यह प्रत्येक मंत्र द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को उसी मनके में 'स्थिर' या 'सील' कर देती है। यह सुनिश्चित करती है कि मंत्र की दिव्य ऊर्जा व्यर्थ न जाए और प्रत्येक मनका एक ऊर्जा-केंद्र के रूप में स्थापित हो जाए। यह इस बात का प्रतीक है कि साधना का प्रत्येक चरण पूर्ण, विशिष्ट और पवित्र है, जिसे ब्रह्म-शक्ति द्वारा सुरक्षित रखा गया है।

इस प्रकार, जपमाला की संरचना स्वयं में आध्यात्मिक यात्रा का एक गहन प्रतीक बन जाती है। 108 मनके जीवन और साधना के चक्रीय सोपान हैं। ब्रह्म-ग्रंथि वह दिव्य अनुशासन और नियम है जो हमारी यात्रा को स्थिरता और सार्थकता प्रदान करता है। और सुमेरु वह परम लक्ष्य है - ईश्वर या आत्म-साक्षात्कार। सुमेरु को न लांघने का नियम हमें विनम्रता सिखाता है और यह बोध कराता है कि अनंत की यात्रा स्वयं अनंत है।

मंत्र जप की शास्त्र-सम्मत विधि एवं नियम

मंत्र जप का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में इसकी विधि और नियमों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इन नियमों का पालन करने से साधना शीघ्र फलदायी होती है।

माला धारण एवं संचालन

जप के लिए माला को सदैव दाहिने हाथ में ही धारण करना चाहिए।

माला को मध्यमा उंगली पर रखना चाहिए और अंगूठे की सहायता से एक-एक मनके को अपनी ओर खींचना चाहिए। शास्त्रीय दृष्टि से, मध्यमा उंगली आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है, जो एक शुद्ध और निष्पक्ष आधार प्रदान करती है। अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतीक है, जो प्रत्येक मंत्र के साथ साधक के कर्मों और अशुद्धियों को भस्म करने का द्योतक है। कुछ वैष्णव परंपराओं में अनामिका उंगली का भी उपयोग किया जाता है, जो पृथ्वी तत्व का प्रतीक है और साधना में स्थिरता लाती है।

तर्जनी का निषेध: अहंकार का त्याग

यह जप का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अनिवार्य नियम है। जप करते समय तर्जनी उंगली का स्पर्श माला से कदापि नहीं होना चाहिए।

शास्त्रीय कारण: शास्त्रों में तर्जनी उंगली को 'अहंकार' का प्रतीक माना गया है। इसी उंगली का प्रयोग किसी पर आरोप लगाने, आदेश देने या क्रोध प्रकट करने के लिए किया जाता है। जप पूर्ण समर्पण, विनम्रता और भक्ति का कार्य है। इसमें अहंकार का लेशमात्र भी स्थान नहीं है। अहंकार की प्रतीक इस उंगली का प्रयोग करने से जप की सात्विक ऊर्जा दूषित हो जाती है और साधना निष्फल हो सकती है। इसीलिए जप करते समय इस उंगली को 'गोमुखी' से बाहर रखा जाता है, जो इस बात का भौतिक अनुस्मारक है कि हमें अपना अहंकार अपनी साधना से बाहर रखना है।

माला की शुद्धि एवं मर्यादा

गोमुखी का प्रयोग: जपमाला को सदैव 'गोमुखी' नामक एक विशेष थैली में रखकर ही जप करना चाहिए। गोमुखी माला को बाह्य अशुद्धियों, धूल-मिट्टी और दूसरों की दृष्टि से बचाती है। ऐसा माना जाता है कि जप करते समय यदि किसी की दृष्टि माला पर पड़ जाए, तो जप की ऊर्जा का क्षय होता है। गोमुखी साधना में गोपनीयता और विनम्रता का भाव भी बनाए रखती है।

स्थान की पवित्रता: माला को कभी भी नाभि के नीचे नहीं ले जाना चाहिए और न ही उसे भूमि पर रखना चाहिए । प्रयोग न होने पर माला को किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान, जैसे पूजा गृह में, रखना चाहिए। यह व्यक्तिगत होती है, अतः अपनी जपमाला किसी अन्य को प्रयोग के लिए नहीं देनी चाहिए।

प्राण-प्रतिष्ठा: नई माला का प्रयोग करने से पूर्व उसकी शुद्धि और प्राण-प्रतिष्ठा करना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया में माला को गंगाजल, पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) से शुद्ध किया जाता है, फिर धूप-दीप दिखाकर सम्बंधित देवता के मंत्रों से उसे अभिमंत्रित किया जाता है। इस संस्कार से माला एक जड़ वस्तु न रहकर, दिव्य चेतना का एक जीवंत माध्यम बन जाती है।

शास्त्र-सम्मत माला का चयन: किस देवता के लिए कौन-सी माला?

शास्त्रों में विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना के लिए विभिन्न प्रकार की मालाओं का विधान बताया गया है। सही माला का चयन करने से साधक की ऊर्जा इष्टदेव की ऊर्जा से शीघ्र जुड़ जाती है और उपासना का फल त्वरित प्राप्त होता है।

रुद्राक्ष माला

संदर्भ: शिव पुराण में भगवान शिव स्वयं देवी पार्वती से कहते हैं कि रुद्राक्ष उनके नेत्रों से गिरे अश्रुओं से उत्पन्न हुआ है और उन्हें अत्यंत प्रिय है।

देवता: यह माला प्रमुख रूप से भगवान शिव और उनके सभी स्वरूपों की आराधना के लिए है। इसके अतिरिक्त माँ दुर्गा, भगवान गणेश, कार्तिकेय और हनुमान जी के मंत्र जप के लिए भी रुद्राक्ष की माला को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

माहात्म्य: शिव पुराण के अनुसार, रुद्राक्ष सर्व-पाप नाशक है और भोग (सांसारिक सुख) एवं मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) दोनों प्रदान करने वाला है। रुद्राक्ष की माला पर किया गया जप करोड़ों गुना अधिक फल देता है 25।

तुलसी माला

संदर्भ: पद्म पुराण में तुलसी की महिमा का विस्तृत वर्णन है, जहाँ उन्हें 'विष्णु-प्रिया' (भगवान विष्णु की प्रिय) कहा गया है।

देवता: यह माला भगवान विष्णु और उनके अवतारों, विशेषकर भगवान श्री कृष्ण और श्री राम की उपासना के लिए अनिवार्य मानी गई है।

माहात्म्य: तुलसी माला पर जप करने से सात्विकता, भक्ति और वैराग्य की वृद्धि होती है। यह मन और शरीर दोनों को शुद्ध करती है। पद्म पुराण के अनुसार, जिसके कंठ में तुलसी माला हो, उसे यमदूत भी स्पर्श नहीं कर सकते।

अन्य दिव्य मालाएं

स्फटिक माला: यह शुक्र ग्रह से सम्बंधित है और माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती एवं माँ दुर्गा की उपासना के लिए उत्तम मानी जाती है। यह एकाग्रता, मानसिक शांति और समृद्धि प्रदान करती है तथा क्रोध को शांत करती है।

कमलगट्टे की माला: कमल के बीजों से बनी यह माला विशेष रूप से धन की देवी माँ महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयोग की जाती है। इससे धन-ऐश्वर्य और व्यापार में वृद्धि की कामना पूर्ण होती है।

चंदन माला: श्वेत चंदन की माला भगवान विष्णु और अन्य सात्विक देवताओं की पूजा तथा मानसिक शांति के लिए प्रयोग होती है। रक्त (लाल) चंदन की माला माँ दुर्गा, हनुमान जी और मंगल ग्रह की शांति के लिए प्रयोग की जाती है। यह शक्ति, साहस और ऊर्जा प्रदान करती है।

इष्टदेव अनुसार माला चयन सारणी
माला का प्रकार सम्बंधित देवी/देवता शास्त्रीय संदर्भ / मुख्य फल
रुद्राक्षभगवान शिव, माँ दुर्गा, गणेश, हनुमानशिव पुराण: सर्व-पाप नाशक, भोग एवं मोक्ष प्रदायक, कोटि गुना फल।
तुलसीभगवान विष्णु, श्री कृष्ण, श्री रामपद्म पुराण: विष्णु-प्रिय, भक्ति वर्धक, आत्मिक एवं शारीरिक शुद्धि।
स्फटिकमाँ लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, चंद्र देवआगम शास्त्र: एकाग्रता, मानसिक शांति, क्रोध नियंत्रण, समृद्धि।
कमलगट्टेमाँ महालक्ष्मीतंत्र शास्त्र: धन-ऐश्वर्य प्राप्ति, कारोबार में उन्नति।
श्वेत चंदनभगवान विष्णु एवं अन्य शांत स्वरूप देवताशास्त्र: मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा, सात्विक भाव वृद्धि।
रक्त चंदनहनुमान जी, माँ दुर्गा, गणेश, मंगल ग्रहशास्त्र: शक्ति, साहस, आत्मविश्वास, ऊर्जा वृद्धि।

उपसंहार: मोक्ष प्रदायिनी अक्षरमाला

इस विस्तृत विवेचन से यह स्पष्ट है कि जपमाला केवल मनकों की एक लड़ी नहीं, अपितु सनातन धर्म के गहन आध्यात्मिक विज्ञान का एक मूर्त स्वरूप है। 108 की संख्या एक ब्रह्मांडीय प्रतिध्वनि है जो साधक को समष्टि से जोड़ती है। इसका सुमेरु गुरु-तत्व का, ब्रह्म-ग्रंथि अनुशासन का और इसे फेरने की विधि अहंकार के त्याग का प्रतीक है।

माला से एक चक्र पूरा करना केवल 108 की गिनती पूरी करना नहीं है, यह एक सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय यज्ञ है। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो साधक के श्वास, मन, चेतना और प्राण को ब्रह्मांड की लय के साथ एकाकार कर देता है। जब एक साधक अटूट श्रद्धा, शुद्ध विधि और भक्तिपूर्ण हृदय से इस अक्षरमाला को धारण कर अपने इष्ट का नाम जपता है, तो यह साधारण सी दिखने वाली माला उसके लिए 'कल्पवृक्ष' बन जाती है - एक ऐसा दिव्य वृक्ष जो उसकी सभी सात्विक कामनाओं को पूर्ण करता है और अंततः उसे परम लक्ष्य, अर्थात 'मोक्ष' तक ले जाता है। अतः, अपनी जपमाला को केवल एक वस्तु न समझें, उसे अपने गुरु और इष्ट का जीवंत स्वरूप मानकर पूर्ण श्रद्धा और सम्मान के साथ अपनी साधना में प्रयोग करें।

॥ ॐ तत् सत् ॥


जपमाला 108 सुमेरु क्या है ब्रह्म ग्रंथि अर्थ रुद्राक्ष माला फायदे तुलसी माला किसके लिए जपमाला कैसे फेरें गोमुखी का उपयोग मंत्र जप नियम देवता अनुसार माला 108 क्यों