त्रिपुर भैरवी साधना का सार: स्वरूप, प्रमुख मंत्र, साधना-विधि, सिद्धियाँ, गुरु-कृपा और सावधानियाँ। सरल भाषा में मोक्ष तक का मार्ग जानें।

भगवती त्रिपुर भैरवी की मंत्र-साधना: सिद्धियाँ एवं परमार्थ
सनातन धर्म की ज्ञान-गंगा में दशमहाविद्याओं का स्थान सर्वोच्च है। ये केवल देवियाँ नहीं, अपितु उस एक पराशक्ति के दस दिव्य स्वरूप हैं, जो सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। इन्हीं महाविद्याओं में भगवती त्रिपुर भैरवी का स्थान है, जो भगवान शिव के उग्र स्वरूप 'भैरव' की संघारिणी शक्ति हैं। वे तप, अग्नि और विध्वंस की मूर्तिमान स्वरूप हैं, जिनका स्मरण मात्र साधक के भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर देता है।
माँ त्रिपुर भैरवी की साधना अत्यंत तीव्र और तेजस्वी मानी गई है। यह केवल भौतिक कामनाओं की पूर्ति का मार्ग नहीं, अपितु स्वयं को तपाकर कुंदन बनाने की एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है। उनके मंत्र शब्द मात्र नहीं, अपितु शब्द-ब्रह्म की वो शक्ति हैं जो साधक के जीवन का रूपांतरण करने में सक्षम हैं। आइए, वेद-शास्त्रों के प्रकाश में यह जानने का प्रयास करें कि माँ त्रिपुर भैरवी के मंत्रों की शरण में जाने से साधक को कौन-सी विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और इस साधना का अंतिम लक्ष्य क्या है।
स्वरूप, तत्व और महिमा
किसी भी देवता की साधना से पूर्व उनके स्वरूप का ध्यान अनिवार्य है। भैरवी यामल तंत्र जैसे शास्त्र माँ त्रिपुर भैरवी के स्वरूप का अद्भुत वर्णन करते हैं। उनका ध्यान इस प्रकार किया जाता है:
उद्यद्भानु सहस्रकान्तिमरुणा क्षौमां शिरोमालिकां।
रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं विद्यामभीति वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद्वक्त्रारविन्द श्रियं।
देवीं बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम्।।
अर्थात्, जिनकी देह की कांति सहस्त्रों उगते हुए सूर्यों के समान है, जो रक्त-वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण करती हैं, जिनके गले में मुंडों की माला है, वे अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक, वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं और मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट पर चंद्रमा की कला सुशोभित है।
उनका यह स्वरूप गहन प्रतीकों से युक्त है। सहस्त्र सूर्यों का तेज उनके ज्ञान और चेतना की प्रचंड ऊर्जा का प्रतीक है। हाथ में पुस्तक और माला यह दर्शाती है कि वे परम ज्ञान और साधना की अधिष्ठात्री हैं 4। उनका नाम 'त्रिपुर' भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 'त्रिपुर' का अर्थ है - भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्गलोक, इन तीनों लोकों की वे स्वामिनी हैं। साथ ही, वे चेतना की तीन अवस्थाओं - जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति - पर भी नियंत्रण रखती हैं 8।
शास्त्रों में माँ भैरवी को 'नित्य प्रलय' की अधिष्ठात्री कहा गया है। महाप्रलय (सृष्टि का पूर्ण विनाश) और नित्य प्रलय (प्रतिक्षण होने वाला परिवर्तन) में भेद है। संसार का प्रत्येक कण हर क्षण बन और बिगड़ रहा है, यही नित्य प्रलय है। माँ भैरवी इसी परिवर्तन की शक्ति हैं। साधक के जीवन में उनकी कृपा इसी 'नित्य प्रलय' के रूप में कार्य करती है। वे पुरानी बाधाओं, रोगों, शत्रुओं और नकारात्मक कर्मों का प्रतिक्षण क्षय करती हैं, ताकि साधक के नवीन, शुद्ध और शक्तिशाली स्वरूप का निर्माण हो सके।
त्रिपुर भैरवी के मंत्र: शब्द-ब्रह्म की शक्ति
माँ त्रिपुर भैरवी के मंत्रों में उनकी संपूर्ण शक्ति निहित है। शास्त्रोक्त विधि और गुरु-निर्देशन में इन मंत्रों का जप करने से साधक को अद्भुत सिद्धियों की प्राप्ति होती है। उनके कुछ प्रमुख मंत्र इस प्रकार हैं:
- मूल मंत्र: ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:
- त्र्यक्षरी मंत्र: हसैं हसकरीं हसैं
- गायत्री मंत्र:ॐ त्रिपुरायै विद्महे भैरव्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्
इन मंत्रों की साधना केवल उच्चारण तक सीमित नहीं है। इसकी एक पूर्ण शास्त्रीय विधि है, जिसमें संकल्प, विनियोग, न्यास, ध्यान और जप का क्रम होता है। 'न्यास' (करन्यास, हृदयादि षडंगन्यास) एक गहन तांत्रिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा साधक मंत्र के चैतन्य को अपने शरीर के विभिन्न अंगों में स्थापित करता है। यह प्रक्रिया साधक के स्थूल शरीर को एक दिव्य पात्र बनाती है, जो देवी की प्रचंड ऊर्जा को धारण करने के योग्य बन सके। इसीलिए कहा जाता है कि ऐसी तीव्र साधनाएं सदैव योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए।
मंत्र-साधना से प्राप्त होने वाली विशेष सिद्धियाँ
माँ त्रिपुर भैरवी की उपासना करने वाले साधक को उनकी कृपा से भौतिक, सूक्ष्म और आध्यात्मिक, तीनों स्तरों पर सिद्धियों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वर्णित फलों के आधार पर इन्हें इस प्रकार समझा जा सकता है:
सिद्धि का प्रकार | सिद्धि का नाम | फल/लाभ |
---|---|---|
भौतिक | ऐश्वर्य-प्राप्ति | व्यापार में वृद्धि, धन-संपदा में लाभ, दरिद्रता और ऋण का नाश, जीवन में सौभाग्य और भौतिक सुखों की प्राप्ति। |
भौतिक | शत्रु-विजय | अधिदैविक (ग्रह-नक्षत्रों के दुष्प्रभाव), अधिभौतिक (शारीरिक शत्रु, मुकदमे), और आध्यात्मिक (काम, क्रोध जैसे आंतरिक शत्रु) - तीनों प्रकार के शत्रुओं पर पूर्ण विजय। |
भौतिक | रक्षा एवं आरोग्य | तंत्र-मंत्र बाधाओं का निवारण, नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा, अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति, और उत्तम आरोग्य की प्राप्ति। |
सूक्ष्म | वाक् सिद्धि | वाणी में अद्भुत तेज, प्रभाव और सत्यता का प्राकट्य। साधक जो भी कहता है, वह सत्य और फलित होने लगता है। यह सिद्धि वाद-विवाद में विजय और नेतृत्व क्षमता प्रदान करती है। |
सूक्ष्म | सम्मोहन शक्ति | साधक के व्यक्तित्व में एक दिव्य और चुंबकीय आकर्षण उत्पन्न होता है, जिससे सभी लोग स्वाभाविक रूप से उसकी ओर आकर्षित होते हैं और उसका सम्मान करते हैं। |
आध्यात्मिक | कुंडलिनी-जागरण | माँ त्रिपुर भैरवी मूलाधार चक्र में स्थित कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी साधना से यह सुप्त ऊर्जा जाग्रत होकर ऊर्ध्वगामी होती है, जिससे चेतना का विस्तार होता है। |
आध्यात्मिक | मोक्ष-प्राप्ति | समस्त साधनाओं का अंतिम लक्ष्य। माँ की कृपा से साधक के सभी कर्म-बंधन और अज्ञान का नाश होता है, और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर परमानंद को प्राप्त करता है। |
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये सिद्धियाँ साधक को क्यों प्राप्त होती हैं। उदाहरण के लिए, 'वाक् सिद्धि' इसलिए मिलती है क्योंकि माँ भैरवी स्वयं 'परा वाक्' (सर्वोच्च वाणी) की शक्ति हैं। उनकी साधना से साधक की वाणी उस मूल स्रोत से जुड़ जाती है, जिससे उसमें सत्यता और प्रभाव का संचार होता है। इसी प्रकार, उनकी 'नित्य प्रलय' की शक्ति ही साधक के शत्रुओं, बाधाओं और रोगों का समूल नाश कर उसे विजय और आरोग्य प्रदान करती है।
साधना का मर्म: गुरु-कृपा एवं मोक्ष का पथ
तंत्र-मार्ग अत्यंत शक्तिशाली होने के साथ-साथ जटिल भी है। कुलार्णव तंत्र जैसे महान ग्रंथ स्पष्ट निर्देश देते हैं कि बिना गुरु-दीक्षा के महाविद्या साधना निष्फल भी हो सकती है। गुरु द्वारा दिया गया मंत्र केवल शब्द नहीं होता, वह गुरु की तपस्या और मंत्र-चैतन्य से युक्त होता है, जो शिष्य के भीतर शीघ्र फलित होता है।
गुरु ही शिष्य को समझाते हैं कि सिद्धियाँ लक्ष्य नहीं, बल्कि मार्ग के पड़ाव हैं। वे साधक को सांसारिक बाधाओं से मुक्त करने के लिए मिलती हैं, ताकि वह निर्विघ्न होकर अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर सके। यदि साधक इन सिद्धियों में उलझकर अहंकार कर बैठे, तो यह उसके पतन का कारण बन जाता है।
वास्तव में, त्रिपुर भैरवी की साधना का सर्वोच्च फल 'मोक्ष' है, जिसे शास्त्रों में 'परम पुरुषार्थ' कहा गया है। मोक्ष का अर्थ है समस्त दुखों से पूर्ण निवृत्ति और अपने शुद्ध, सच्चिदानंद ब्रह्म-स्वरूप में स्थित हो जाना। माँ त्रिपुर भैरवी की 'नित्य प्रलय' की शक्ति अंततः साधक के अज्ञान, अहंकार और कर्म-संस्कारों का भी 'प्रलय' अर्थात नाश कर देती है, जिससे आत्मा अपने शुद्ध, मुक्त स्वरूप को प्राप्त करती है। यही उनकी साधना का सर्वोच्च वरदान है।