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पढ़िए: क्यों भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था?

पढ़िए: क्यों भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

कामदेव और भगवान शिव

एक बार भगवान शिव कठोर समाधि में लीन थे। उसी समय तारकासुर नामक एक दैत्य का जन्म हुआ। उसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से यह आशीर्वाद मांगा कि उसे भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न बालक ही मार सके।

इस आशीर्वाद को प्राप्त करने के बाद तारकासुर ने देवताओं, ऋषियों और मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने सभी लोकों और उनके लोकपालों को पराजित कर अपने अधीन कर लिया। वह अजर-अमर था, इसलिए उसे कोई भी पराजित नहीं कर पाता था। देवता उसके साथ कई तरह की लड़ाइयाँ लड़कर हार गए। तब वे भगवान ब्रह्मा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाने लगे।

भगवान ब्रह्मा ने सभी देवताओं को दुःखी देखकर उनकी समस्या सुनी और समाधान की दिशा में विचार किया।

ब्रह्माजी ने सबको समझाते हुए कहा— "इस दैत्य की मृत्यु तभी संभव है, जब भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न पुत्र उसका वध करे। इसे युद्ध में पराजित केवल वही कर सकता है।”
देवी पार्वती ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया है, और वही उनकी अर्धांगिनी बनेंगी। आप सभी भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए कामदेव की सहायता लें।

फिर देवताओं ने बड़े प्रेम से स्तुति की। तब पंच बाण धारण करने वाले और मछली के चिह्न युक्त ध्वजा सहित कामदेव प्रकट हुए।

देवताओं ने कामदेव से अपनी सारी विपत्ति कही। यह सुनकर कामदेव ने मन में विचार किया और हँसते हुए देवताओं से कहा, "भगवान शिव के साथ विरोध करना मेरे लिए संभव नहीं है, इसमें मेरी कोई कुशलता नहीं है।”

"तथापि मैं तुम्हारा कार्य तो करूँगा, क्योंकि वेद दूसरों के उपकार को परम धर्म कहते हैं। जो दूसरों के हित के लिए अपना शरीर त्याग देता है, संतजन सदा उसकी बड़ाई करते हैं।"

यह कहकर और सबको नमन कर, कामदेव अपने पुष्पधनुष को हाथ में लेकर कैलाश की ओर चल पड़ा। चलते समय कामदेव मन ही मन यह विचार करता रहा कि भगवान शिव के साथ विरोध करने से मेरा मरण निश्चित है।

जब कामदेव कैलाश पहुँचा, तो उसने शिवजी को गहन घोर समाधि में लीन देखा। इसके बाद, उसने वसंत और अपनी शक्तियों का सहारा लेकर वातावरण को सुगंधित और आकर्षक बनाने की कोशिश की, ताकि शिवजी की समाधि भंग हो सके।

कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों उपाय और सारी कलाएँ आज़माकर भी हार गया, लेकिन भगवान शिव की अचल समाधि को विचलित नहीं कर सका। तब कामदेव क्रोधित हो उठा।

आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर, कामदेव का मन क्रोध से भर गया और वह उस डाली पर चढ़ गया। उसने अपने पुष्पधनुष पर अपने पाँच बाण चढ़ाए और अत्यंत क्रोध में भरकर लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए धनुष की डोर को पूरी तरह से खींच लिया।

कामदेव ने तीक्ष्ण पाँच बाण छोड़े, जो भगवान शिव के हृदय में जाकर लगे। तब उनकी समाधि टूट गई और वे जाग गए। भगवान शिव के मन में अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और चारों ओर देखना शुरू किया। उनका तेज ऐसा था कि वातावरण में एक भयमय स्थिति बन गई।

जब भगवान शिव ने आम के पत्तों के पीछे छिपे कामदेव को देखा, तो उन्हें अत्यंत क्रोध आया, जिससे तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला, और उनकी दृष्टि पड़ते ही कामदेव जलकर भस्म हो गया।

जगत में बड़ा हाहाकार मच गया। देवता भयभीत हो गए और सोचने लगे कि कामदेव के भस्म होने से सृष्टि में क्या परिणाम होगा। चारों ओर शोक और भय का माहौल छा गया।

कामदेव की पत्नी रति ने जब अपने पति की यह दशा सुनी, तो वह तुरंत मूर्छित हो गई। रोती-बिलखती वह भगवान शिव के पास पहुँची। उसने अनेक प्रकार से विनती की और हाथ जोड़कर शिवजी के सामने खड़ी हो गई।

"शीघ्र कृपा करने वाले और करुणा के सागर भगवान शिव ने उस असहाय रति को देखकर उसे आशीर्वाद दिया: 'जब पृथ्वी के भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अव्यर्थ नहीं होगा।'"

निष्कर्ष

यह कथा हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य, त्याग, और धैर्य के साथ ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है। कामदेव ने लोककल्याण के लिए अपना बलिदान दिया, जबकि उनकी पत्नी रति ने अपने प्रेम और विश्वास के बल पर भगवान शिव से आशी


कामदेवशिवरतिक्रोधभस्मप्रद्युम्नकैलाश

पढ़िए: क्यों भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था?

पढ़िए: क्यों भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था?AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

कामदेव और भगवान शिव

एक बार भगवान शिव कठोर समाधि में लीन थे। उसी समय तारकासुर नामक एक दैत्य का जन्म हुआ। उसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से यह आशीर्वाद मांगा कि उसे भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न बालक ही मार सके।

इस आशीर्वाद को प्राप्त करने के बाद तारकासुर ने देवताओं, ऋषियों और मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसने सभी लोकों और उनके लोकपालों को पराजित कर अपने अधीन कर लिया। वह अजर-अमर था, इसलिए उसे कोई भी पराजित नहीं कर पाता था। देवता उसके साथ कई तरह की लड़ाइयाँ लड़कर हार गए। तब वे भगवान ब्रह्मा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाने लगे।

भगवान ब्रह्मा ने सभी देवताओं को दुःखी देखकर उनकी समस्या सुनी और समाधान की दिशा में विचार किया।

ब्रह्माजी ने सबको समझाते हुए कहा— "इस दैत्य की मृत्यु तभी संभव है, जब भगवान शिव के वीर्य से उत्पन्न पुत्र उसका वध करे। इसे युद्ध में पराजित केवल वही कर सकता है।”
देवी पार्वती ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया है, और वही उनकी अर्धांगिनी बनेंगी। आप सभी भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए कामदेव की सहायता लें।

फिर देवताओं ने बड़े प्रेम से स्तुति की। तब पंच बाण धारण करने वाले और मछली के चिह्न युक्त ध्वजा सहित कामदेव प्रकट हुए।

देवताओं ने कामदेव से अपनी सारी विपत्ति कही। यह सुनकर कामदेव ने मन में विचार किया और हँसते हुए देवताओं से कहा, "भगवान शिव के साथ विरोध करना मेरे लिए संभव नहीं है, इसमें मेरी कोई कुशलता नहीं है।”

"तथापि मैं तुम्हारा कार्य तो करूँगा, क्योंकि वेद दूसरों के उपकार को परम धर्म कहते हैं। जो दूसरों के हित के लिए अपना शरीर त्याग देता है, संतजन सदा उसकी बड़ाई करते हैं।"

यह कहकर और सबको नमन कर, कामदेव अपने पुष्पधनुष को हाथ में लेकर कैलाश की ओर चल पड़ा। चलते समय कामदेव मन ही मन यह विचार करता रहा कि भगवान शिव के साथ विरोध करने से मेरा मरण निश्चित है।

जब कामदेव कैलाश पहुँचा, तो उसने शिवजी को गहन घोर समाधि में लीन देखा। इसके बाद, उसने वसंत और अपनी शक्तियों का सहारा लेकर वातावरण को सुगंधित और आकर्षक बनाने की कोशिश की, ताकि शिवजी की समाधि भंग हो सके।

कामदेव अपनी सेना समेत करोड़ों उपाय और सारी कलाएँ आज़माकर भी हार गया, लेकिन भगवान शिव की अचल समाधि को विचलित नहीं कर सका। तब कामदेव क्रोधित हो उठा।

आम के वृक्ष की एक सुंदर डाली देखकर, कामदेव का मन क्रोध से भर गया और वह उस डाली पर चढ़ गया। उसने अपने पुष्पधनुष पर अपने पाँच बाण चढ़ाए और अत्यंत क्रोध में भरकर लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए धनुष की डोर को पूरी तरह से खींच लिया।

कामदेव ने तीक्ष्ण पाँच बाण छोड़े, जो भगवान शिव के हृदय में जाकर लगे। तब उनकी समाधि टूट गई और वे जाग गए। भगवान शिव के मन में अत्यंत क्रोध उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और चारों ओर देखना शुरू किया। उनका तेज ऐसा था कि वातावरण में एक भयमय स्थिति बन गई।

जब भगवान शिव ने आम के पत्तों के पीछे छिपे कामदेव को देखा, तो उन्हें अत्यंत क्रोध आया, जिससे तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने अपना तीसरा नेत्र खोला, और उनकी दृष्टि पड़ते ही कामदेव जलकर भस्म हो गया।

जगत में बड़ा हाहाकार मच गया। देवता भयभीत हो गए और सोचने लगे कि कामदेव के भस्म होने से सृष्टि में क्या परिणाम होगा। चारों ओर शोक और भय का माहौल छा गया।

कामदेव की पत्नी रति ने जब अपने पति की यह दशा सुनी, तो वह तुरंत मूर्छित हो गई। रोती-बिलखती वह भगवान शिव के पास पहुँची। उसने अनेक प्रकार से विनती की और हाथ जोड़कर शिवजी के सामने खड़ी हो गई।

"शीघ्र कृपा करने वाले और करुणा के सागर भगवान शिव ने उस असहाय रति को देखकर उसे आशीर्वाद दिया: 'जब पृथ्वी के भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अव्यर्थ नहीं होगा।'"

निष्कर्ष

यह कथा हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य, त्याग, और धैर्य के साथ ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है। कामदेव ने लोककल्याण के लिए अपना बलिदान दिया, जबकि उनकी पत्नी रति ने अपने प्रेम और विश्वास के बल पर भगवान शिव से आशी


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