कात्यायनी नाम का संबंध महर्षि कात्यायन से है। स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, कत नामक प्रसिद्ध ऋषि के पुत्र ऋषि कात्य हुए, उनकी गोत्र में आगे चलकर महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए। महर्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की कठोर उपासना की थी और वरदान स्वरूप देवी ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया। चूंकि यह कन्या महर्षि कात्यायन के यहाँ पैदा हुई थीं, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा गया। देवी कात्यायनी को देवी पार्वती का छठा स्वरूप माना जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। यह रूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। इन्हें स्वर्ण वर्ण का कहा जाता है, चार या अष्टभुजी रूप में दर्शाया जाता है, और इनका वाहन सिंह है। कात्यायनी को श्रेष्ठ योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है।
कात्यायनी देवी के अवतार की कथा दैत्य महिषासुर के वध से जुड़ी हुई है। भगवती दुर्गा के इसी रूप ने महिषासुर का अंत किया, इसलिए इन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। देवीभागवत आदि पुराणों में वर्णित है कि महिषासुर नामक अति पराक्रमी असुर ने कठिन तप द्वारा ब्रह्माजी से वरदान लिया था कि उसे कोई पुरुष देवता या मानव मार नहीं सकेगा। वरदान पाकर महिषासुर अहंकारी हो उठा और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा। उसने स्वर्ग से इंद्र आदि देवताओं को निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया था। तब देवता त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के पास पहुंचे और सबने मिलकर अपनी-अपनी शक्ति का अंश निकाला। उन सभी शक्तियों के तेज से एक परम सुंदरी एवं दिव्य कन्या प्रकट हुई। यह देवी रूप महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट होकर उनकी पुत्री बनीं। महर्षि ने श्रद्धापूर्वक उस कन्या का नाम कात्यायनी रखा और नौ दिनों तक उसकी पूजा की। दशवें दिन उस कन्या ने विशाल रूप धारण कर महिषासुर से भयंकर युद्ध किया। महिषासुर ने भैंसे का रूप लेकर देवी पर आक्रमण किया, तब देवी ने तलवार से उसका वध कर डाला। इस प्रकार महिषासुर का अंत करके देवी ने देवताओं को उनका स्वर्गलोक वापस दिलाया। चूंकि देवी ने कात्यायन ऋषि के यहाँ जन्म लिया था और उन्हीं के बताये विधान से महिषासुर का नाश किया, इसलिए वे कात्यायनी कहलाईं। इस अवतार का उद्देश्य धर्म की स्थापना और पाप का नाश था। कात्यायनी को विनाशिनी शक्ति के रूप में भी देखा जाता है, जिनका अवतरण पापियों के संहार हेतु हुआ।
माँ कात्यायनी को नारी शक्ति के प्रचंड रूप का प्रतीक माना जाता है। इनकी पूजा से शत्रुओं पर विजय, रोगों से मुक्ति और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए कात्यायनी की उपासना का महत्त्व है – पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए वृंदावन की गोपियों ने माँ कात्यायनी की पूजा की थी। आज भी अविवाहित लड़कियाँ मनचाहे जीवनसाथी के लिए मार्गशीर्ष माह में कात्यायनी व्रत रखती हैं। कात्यायनी देवी को दुर्गा पूजन में सबसे उग्र रूप माना जाता है, इनके स्वरूप में आंखों में क्रोध की ज्वाला है, चारों हाथों में तलवार, त्रिशूल, कमल और अभयमुद्रा हैं। उनका सिंह वाहन दुष्टों को डराने के लिए पर्याप्त है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह रूप आज्ञा चक्र को जागृत करता है, जिससे साधक को अदम्य साहस और वर प्राप्त होते हैं। देवी कात्यायनी की कृपा से अनेक योगी अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं। वे भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली हैं | नवरात्रि के छठे दिन इनकी आराधना करने वाले साधक का मनबुद्धि शक्तिशाली होती है और उसे भक्तिभाव के साथ वीरत्व भी प्राप्त होता है। कात्यायनी को दशमहाविद्याओं में भी स्थान मिलता है (काली आदि महाविद्याओं के स्वरूपों में), जो उनकी उच्च शक्तिसंपन्न प्रकृति को दर्शाता है।
देवी कात्यायनी के कई शक्तिपीठ और मंदिर भारत भर में प्रसिद्ध हैं। कर्नाटक राज्य के अंकोला क्षेत्र के पास एवेर्सा नामक स्थान पर कात्यायनी बनेश्वर मंदिर है, जो माँ के दक्षिण भारत में प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश के मथुरा (वृंदावन) में कात्यायनी शक्तिपीठ है, जहाँ सती की केशराशि गिरी थी। इसे वृंदावन के भूतेश्वर क्षेत्र में विराजित शक्तिपीठ माना जाता है और वहाँ नित्य माँ कात्यायनी की पूजा होती है। दिल्ली में भी छतरपुर का प्रसिद्ध कात्यायनी मंदिर है, जो भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाता है। लोक मान्यता है कि महिषासुर का वध करने के उपरांत माँ कात्यायनी ने विजया दशमी के दिन विंध्याचल पर्वत पर निवास किया – इसलिए विंध्याचल (उत्तर प्रदेश) की विन्ध्यवासिनी देवी को भी कात्यायनी का ही रूप माना जाता है। वर्तमान में भक्तों का विश्वास है कि माँ कात्यायनी ब्रज भूमि (वृंदावन) में अब भी गोपियों का कल्याण करती हैं और जो कन्या सच्चे मन से उन्हें पुकारती है, उसे योग्य जीवनसाथी का वरदान देती हैं। शक्ति रूप में देवी सारी सृष्टि में व्याप्त हैं, किन्तु विशेष रूप से धर्म की रक्षा करने हेतु वे हर युग में प्रकट होती हैं। इसलिए भक्त कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा, माँ कात्यायनी किसी न किसी रूप में जन्म लेकर पापियों का संहार करेंगी। उनकी शाश्वत उपस्थिति हर उस स्थान पर महसूस की जा सकती है जहाँ नारी शक्ति का सम्मान होता है और अन्याय के विरुद्ध कोई खड़ा होता है। नवरात्रि में छठे दिन देवी के इसी रौद्र-सुंदरी स्वरूप की प्रार्थना कर भक्त अपने अंदर के साहस व ऊर्जा को जागृत करते हैं।
कात्यायनी नाम का संबंध महर्षि कात्यायन से है। स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, कत नामक प्रसिद्ध ऋषि के पुत्र ऋषि कात्य हुए, उनकी गोत्र में आगे चलकर महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए। महर्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की कठोर उपासना की थी और वरदान स्वरूप देवी ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया। चूंकि यह कन्या महर्षि कात्यायन के यहाँ पैदा हुई थीं, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहा गया। देवी कात्यायनी को देवी पार्वती का छठा स्वरूप माना जाता है, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। यह रूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। इन्हें स्वर्ण वर्ण का कहा जाता है, चार या अष्टभुजी रूप में दर्शाया जाता है, और इनका वाहन सिंह है। कात्यायनी को श्रेष्ठ योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है।
कात्यायनी देवी के अवतार की कथा दैत्य महिषासुर के वध से जुड़ी हुई है। भगवती दुर्गा के इसी रूप ने महिषासुर का अंत किया, इसलिए इन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है। देवीभागवत आदि पुराणों में वर्णित है कि महिषासुर नामक अति पराक्रमी असुर ने कठिन तप द्वारा ब्रह्माजी से वरदान लिया था कि उसे कोई पुरुष देवता या मानव मार नहीं सकेगा। वरदान पाकर महिषासुर अहंकारी हो उठा और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा। उसने स्वर्ग से इंद्र आदि देवताओं को निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया था। तब देवता त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के पास पहुंचे और सबने मिलकर अपनी-अपनी शक्ति का अंश निकाला। उन सभी शक्तियों के तेज से एक परम सुंदरी एवं दिव्य कन्या प्रकट हुई। यह देवी रूप महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट होकर उनकी पुत्री बनीं। महर्षि ने श्रद्धापूर्वक उस कन्या का नाम कात्यायनी रखा और नौ दिनों तक उसकी पूजा की। दशवें दिन उस कन्या ने विशाल रूप धारण कर महिषासुर से भयंकर युद्ध किया। महिषासुर ने भैंसे का रूप लेकर देवी पर आक्रमण किया, तब देवी ने तलवार से उसका वध कर डाला। इस प्रकार महिषासुर का अंत करके देवी ने देवताओं को उनका स्वर्गलोक वापस दिलाया। चूंकि देवी ने कात्यायन ऋषि के यहाँ जन्म लिया था और उन्हीं के बताये विधान से महिषासुर का नाश किया, इसलिए वे कात्यायनी कहलाईं। इस अवतार का उद्देश्य धर्म की स्थापना और पाप का नाश था। कात्यायनी को विनाशिनी शक्ति के रूप में भी देखा जाता है, जिनका अवतरण पापियों के संहार हेतु हुआ।
माँ कात्यायनी को नारी शक्ति के प्रचंड रूप का प्रतीक माना जाता है। इनकी पूजा से शत्रुओं पर विजय, रोगों से मुक्ति और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए कात्यायनी की उपासना का महत्त्व है – पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए वृंदावन की गोपियों ने माँ कात्यायनी की पूजा की थी। आज भी अविवाहित लड़कियाँ मनचाहे जीवनसाथी के लिए मार्गशीर्ष माह में कात्यायनी व्रत रखती हैं। कात्यायनी देवी को दुर्गा पूजन में सबसे उग्र रूप माना जाता है, इनके स्वरूप में आंखों में क्रोध की ज्वाला है, चारों हाथों में तलवार, त्रिशूल, कमल और अभयमुद्रा हैं। उनका सिंह वाहन दुष्टों को डराने के लिए पर्याप्त है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह रूप आज्ञा चक्र को जागृत करता है, जिससे साधक को अदम्य साहस और वर प्राप्त होते हैं। देवी कात्यायनी की कृपा से अनेक योगी अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं। वे भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली हैं | नवरात्रि के छठे दिन इनकी आराधना करने वाले साधक का मनबुद्धि शक्तिशाली होती है और उसे भक्तिभाव के साथ वीरत्व भी प्राप्त होता है। कात्यायनी को दशमहाविद्याओं में भी स्थान मिलता है (काली आदि महाविद्याओं के स्वरूपों में), जो उनकी उच्च शक्तिसंपन्न प्रकृति को दर्शाता है।
देवी कात्यायनी के कई शक्तिपीठ और मंदिर भारत भर में प्रसिद्ध हैं। कर्नाटक राज्य के अंकोला क्षेत्र के पास एवेर्सा नामक स्थान पर कात्यायनी बनेश्वर मंदिर है, जो माँ के दक्षिण भारत में प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश के मथुरा (वृंदावन) में कात्यायनी शक्तिपीठ है, जहाँ सती की केशराशि गिरी थी। इसे वृंदावन के भूतेश्वर क्षेत्र में विराजित शक्तिपीठ माना जाता है और वहाँ नित्य माँ कात्यायनी की पूजा होती है। दिल्ली में भी छतरपुर का प्रसिद्ध कात्यायनी मंदिर है, जो भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाता है। लोक मान्यता है कि महिषासुर का वध करने के उपरांत माँ कात्यायनी ने विजया दशमी के दिन विंध्याचल पर्वत पर निवास किया – इसलिए विंध्याचल (उत्तर प्रदेश) की विन्ध्यवासिनी देवी को भी कात्यायनी का ही रूप माना जाता है। वर्तमान में भक्तों का विश्वास है कि माँ कात्यायनी ब्रज भूमि (वृंदावन) में अब भी गोपियों का कल्याण करती हैं और जो कन्या सच्चे मन से उन्हें पुकारती है, उसे योग्य जीवनसाथी का वरदान देती हैं। शक्ति रूप में देवी सारी सृष्टि में व्याप्त हैं, किन्तु विशेष रूप से धर्म की रक्षा करने हेतु वे हर युग में प्रकट होती हैं। इसलिए भक्त कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा, माँ कात्यायनी किसी न किसी रूप में जन्म लेकर पापियों का संहार करेंगी। उनकी शाश्वत उपस्थिति हर उस स्थान पर महसूस की जा सकती है जहाँ नारी शक्ति का सम्मान होता है और अन्याय के विरुद्ध कोई खड़ा होता है। नवरात्रि में छठे दिन देवी के इसी रौद्र-सुंदरी स्वरूप की प्रार्थना कर भक्त अपने अंदर के साहस व ऊर्जा को जागृत करते हैं।