मेहंदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान राज्य के दौसा ज़िले में तूंगा पहाड़ियों की घाटी में स्थित है।
यह मंदिर भगवान हनुमान जी के बाल रूप (बालाजी) को समर्पित है। देशभर में इसे भूत-प्रेत बाधा मुक्ति के लिए सबसे प्रभावी स्थल माना जाता है। जयपुर-आगरा हाईवे से लगभग 3 किमी अंदर सिकराय गाँव में स्थित यह मंदिर बाहर से देखने में एक सामान्य हनुमान मंदिर जैसा प्रतीत होता है, लेकिन यहाँ प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ घटती हैं जो इसे रहस्यमय बनाती हैं।
मान्यता है कि मेहंदीपुर की इस पहाड़ी घाटी में सैकड़ों वर्ष पूर्व तीन दिव्य मूर्तियाँ प्रकट हुई थीं – बाला हनुमान, प्रेतराज सरकार (प्रेतों के राजा) और भैरव बाबा की मूर्तियाँ। माना जाता है कि ये मूर्तियाँ स्वयंभू (स्वतः भूमि से उत्पन्न) हैं, किसी मानव द्वारा निर्मित नहीं।
करीब एक हजार साल से ये देवता यहाँ विराजमान हैं। कहते हैं कि मंदिर के तत्कालीन महंत को सपने में इन देवताओं के दर्शन हुए और उसी संकेत पर मंदिर का निर्माण किया गया।
यह भी लोककथा है कि अरावली पहाड़ियों के बीच हनुमान जी की प्रतिमा जिस जगह प्रकट हुई, वहाँ पहले घना जंगल था और कुछ सिद्ध पुरुषों की तपोभूमि थी। मेहंदीपुर नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां पहले मेहंदी की झाड़ियाँ बहुत होती थीं। ऐतिहासिक रूप से वर्तमान मंदिर परिसर का विकास 20वीं सदी में शुरू हुआ जब आसपास के क्षेत्र में इसकी ख्याति फैलने लगी।
वास्तुकला और संरचना: मेहंदीपुर बालाजी मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से अन्य हनुमान मंदिरों की तरह सरल है। एक मुख्य सभा मंडप और गर्भगृह है जहाँ बाल हनुमान की मूर्ति स्थापित है। बगल में ही प्रेतराज सरकार (यमराज के अनुचर रूप) की तथा पास में भैरव बाबा (काल भैरव) की प्रतिमाएँ हैं।
मंदिर पत्थर और संगमरमर से बना है तथा दीवारों पर हनुमान चालीसा आदि दोहों-अष्टकों के अंकन मिलते हैं। वास्तुकला में कोई विशेष जटिलता नहीं, पर मंदिर के सामने एक बड़ा चौक है जहां प्रेतबाधा से पीड़ित लोगों के लिए अनुष्ठान होते हैं। चारदीवारी से घिरे परिसर में संतों के निवास और भोजनशाला जैसी सुविधाएँ भी हैं। आसपास कोई भव्य कलात्मक निर्माण न होते हुए भी यह मंदिर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा संरचना के लिए प्रसिद्ध है।
असाधारण शक्तियाँ और रहस्य: मेहंदीपुर बालाजी मंदिर पूरे देश में भूत-प्रेत उतारने के लिए मशहूर है। ऐसा विश्वास है कि जिस व्यक्ति पर किसी बुरी आत्मा या नकारात्मक ऊर्जा का साया हो, उसे यहाँ लाने पर बालाजी की कृपा से वह आत्मा दूर हो जाती है।
प्रेतों की कचहरी इस मंदिर की एक अनूठी बात है – मंदिर में प्रतीकात्मक रूप से यह माना जाता है कि दोपहर में प्रेतराज सरकार के दरबार में उन बुरी आत्माओं की पेशी होती है जिन्होंने किसी मनुष्य को घेरा हुआ हो, और फिर बालाजी महाराज उनका न्याय करते हैं।
कई लोग बताते हैं कि मंदिर के पास पहुँचते ही पीड़ित व्यक्ति के भीतर का प्रेत जोर-जोर से चिल्लाने या उसे दौड़ाने लगता है, मानो मंदिर के प्रभाव से वह बेचैन हो उठा हो। मंदिर परिसर में हर समय आपको अजीब तरह से चिल्लाते, कांपते या विचित्र हरकतें करते लोग दिख जाएंगे – ये वही हैं जिनपर कथित तौर पर किसी भूत-प्रेत का साया है और वे बालाजी के दरबार में आये हैं ताकि मुक्ति मिल सके। यहाँ प्रत्येक दिन सैंकड़ों ऐसे मामले आते हैं।
मेहंदीपुर बालाजी में दो तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं – एक लड्डू (हनुमानजी को) और दूसरा काले चनों का पिंड (सरसों के तेल में बने, जो भैरव बाबा को अर्पित होते हैं)। एक बड़ा रहस्य यह है कि यहाँ का प्रसाद घर नहीं ले जाया जा सकता।
मंदिर के नियम अनुसार जो प्रसाद मिले उसे या तो वहीं ग्रहण करें या मंदिर परिसर में ही छोड़ दें; इसे बाहर ले जाना निषिद्ध है, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से नकारात्मक बाधा आपके साथ घर तक आ सकती है। इसी तरह, यहां आने वाले भक्तों को एक नियम का पालन करना पड़ता है – मंदिर आने के कम-से-कम एक सप्ताह पहले से मांस, मछली , अंडा, शराब, लहसुन-प्याज़ आदि का सेवन वर्जित है।
माना जाता है कि शुद्ध आचरण से ही बालाजी की कृपा प्राप्त होगी।
मंदिर में रोज़ दोपहर 2 बजे कीर्तन होता है, जिसे प्रेतराज सरकार की सभा कहा जाता है। इस दौरान विशेष मंत्रोच्चार और आरती से प्रभावित होकर पीड़ित व्यक्ति जोर-जोर से कांपने लगते हैं, कई बार उल्टी करते हैं या ज़मीन पर गिरकर चीखते हैं – कहते हैं यह प्रेतात्माओं के निकलने की प्रक्रिया होती है। बहुत से भक्तों ने यह चमत्कार अपनी आंखों से देखा है कि पूजा-पाठ के बाद बिल्कुल उग्र व्यवहार कर रहा व्यक्ति शांत हो गया या उसकी आवाज़ बदल गई जैसे उसमें से कोई और शक्ति निकल गई हो।
एक और आश्चर्यजनक तथ्य यह बताया जाता है कि बालाजी की मुख्य मूर्ति की बाईं छाती में एक छोटा छेद है जिससे निरंतर जल की धारा निकलती रहती है। स्थानीय मान्यता में इसे बालाजी का पसीना कहते हैं और इस जल को अमृत मानकर रोगनिवारण हेतु लगाया जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की ख्याति का मुख्य कारण है – भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाना। देश में और कोई मंदिर इस रूप में इतना प्रसिद्ध नहीं जहां प्रतिदिन संगठित रूप से एक्जॉर्सिज्म (भूत-प्रेत उतारने की प्रक्रिया) होता हो। यही वजह है कि दूर-दूर से लोग जिनको लगता है कि उन पर जादू-टोना या ऊपरी हवा का असर है, वे यहाँ आते हैं।
बालाजी (हनुमान) को हिंदू धर्म में संकटमोचक माना जाता है और इस मंदिर ने उस विश्वास को और मजबूत कर दिया है। अपनी इस विशिष्टता के कारण यह स्थान रहस्यमय मंदिरों में गिना जाता है। वर्तमान डिजिटल युग में भी यहां होने वाली घटनाओं को देखकर वैज्ञानिक हैरान रह जाते हैं और इसी कारण कई डॉक्युमेंटरी आदि में इसे दिखाया गया है।
मेहंदीपुर बालाजी में रोज़ाना तीन मुख्य आरती होती हैं – प्रातः, दोपहर और संध्या। मंगलवार और शनिवार (हनुमान जी के वार) को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। इन दिनों विशेष हनुमान चालीसा पाठ एवं भजन-कीर्तन होते हैं।
हर अमावस्या को भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन नकारात्मक शक्तियाँ ज़्यादा सक्रिय होती हैं और बालाजी की पूजा से वे नष्ट होती हैं। हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) और बजरंग बली के अन्य उत्सव (जैसे जन्मोत्सव) यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं।
मंदिर में कोई सालाना बड़ा मेला तो नहीं लगता, पर नवरात्रि और होली-दिवाली जैसे त्योहारों पर भक्तों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। अनुष्ठानों में तेल चढ़ाना, लाल कपड़े व नारियल चढ़ाना, और खुलेआम संकटग्रस्त व्यक्ति की झाड़-फूँक करना शामिल है।
चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मेहंदीपुर बालाजी में जो लोग आते हैं, उनमें से अधिकांश भावनात्मक या मानसिक तनाव से पीड़ित होते हैं। सामूहिक विश्वास और तीव्र धार्मिक माहौल से उनके अवचेतन मन को ऐसा संकेत मिलता है कि वे नाटक-अभिनय (एक्टिंग आउट) करने लगते हैं और फिर धीरे-धीरे अपनी मनोभावना से मुक्त हो जाते हैं।
इसे प्लेसिबो प्रभाव या आस्था का उपचार कहा जा सकता है। पर कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जो चिकित्सा से परे थे – जैसे असामान्य शारीरिक शक्ति का प्रकट होना (एक दुबली महिला को पाँच आदमी भी काबू न कर पाएं) या अलग आवाज़ में बातें करना।
वैज्ञानिक इन घटनाओं को मनोविद्या (परामनोवैज्ञानिक) के क्षेत्र में रखते हैं जिसकी अभी पूरी समझ नहीं है। भारतीय अनुसंधान केंद्रों ने यहाँ के प्रसाद (तेल-चूरा) का भी विश्लेषण किया है, जो सामान्य पाया गया।
कुल मिलाकर, विज्ञान इसे मनोवैज्ञानिक उपचार की तरह देखता है, किंतु श्रद्धालु इसे दैवी शक्ति का चमत्कार मानते हैं।
जो लोग मेहंदीपुर बालाजी से होकर आए हैं, वे प्रायः बताते हैं कि वहाँ का वातावरण बिल्कुल अलग तरह का होता है। एक ओर जहाँ भजन-कीर्तन और “जय हनुमान” की गूँज , तो दूसरी तरफ़ चीखते-चिल्लाते रोगी – यह दृश्य पहले-पहल भय मिश्रित जिज्ञासा उत्पन्न करता है।
कई लोग बताते हैं कि उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि एक व्यक्ति जो अपने होश में नहीं था, बालाजी की आरती के बाद अचानक शांत हो गया और सामान्य व्यवहार करने लगा।
किसी के परिजन कहते हैं कि सालों से डरे-सहमे बीमार को यहाँ लाने पर वह कुछ ही दिनों में ठीक हो गया। स्थानीय लोग भी दावे के साथ कहते हैं कि बालाजी सरकार सब प्रेतबाधाएँ काट देते हैं।
मंदिर के आसपास रहने वाले बताते हैं कि आए दिन अजीब घटनाएँ होती हैं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति के थप्पड़ से रोगी गिर पड़ा और फिर चैतन्य होकर बोला कि अब वह ठीक है।
कुछ अनुभव ऐसे भी हैं जहाँ आधुनिक शिक्षित परिवार ने पहले विश्वास नहीं किया, पर जब डॉक्टरों से बात न बनी तो यहाँ आए और चमत्कार देखकर श्रद्धा से नतमस्तक हो गए।
कुल मिलाकर श्रद्धालु इस स्थल को ईश्वरीय चमत्कार का जीवंत प्रमाण मानते हैं। हाँ, कमज़ोर दिल वालों को यहाँ के दृश्य विचलित भी कर सकते हैं, लेकिन अंतत: बालाजी के न्याय से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर राजस्थान राज्य के दौसा ज़िले में तूंगा पहाड़ियों की घाटी में स्थित है।
यह मंदिर भगवान हनुमान जी के बाल रूप (बालाजी) को समर्पित है। देशभर में इसे भूत-प्रेत बाधा मुक्ति के लिए सबसे प्रभावी स्थल माना जाता है। जयपुर-आगरा हाईवे से लगभग 3 किमी अंदर सिकराय गाँव में स्थित यह मंदिर बाहर से देखने में एक सामान्य हनुमान मंदिर जैसा प्रतीत होता है, लेकिन यहाँ प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ घटती हैं जो इसे रहस्यमय बनाती हैं।
मान्यता है कि मेहंदीपुर की इस पहाड़ी घाटी में सैकड़ों वर्ष पूर्व तीन दिव्य मूर्तियाँ प्रकट हुई थीं – बाला हनुमान, प्रेतराज सरकार (प्रेतों के राजा) और भैरव बाबा की मूर्तियाँ। माना जाता है कि ये मूर्तियाँ स्वयंभू (स्वतः भूमि से उत्पन्न) हैं, किसी मानव द्वारा निर्मित नहीं।
करीब एक हजार साल से ये देवता यहाँ विराजमान हैं। कहते हैं कि मंदिर के तत्कालीन महंत को सपने में इन देवताओं के दर्शन हुए और उसी संकेत पर मंदिर का निर्माण किया गया।
यह भी लोककथा है कि अरावली पहाड़ियों के बीच हनुमान जी की प्रतिमा जिस जगह प्रकट हुई, वहाँ पहले घना जंगल था और कुछ सिद्ध पुरुषों की तपोभूमि थी। मेहंदीपुर नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहां पहले मेहंदी की झाड़ियाँ बहुत होती थीं। ऐतिहासिक रूप से वर्तमान मंदिर परिसर का विकास 20वीं सदी में शुरू हुआ जब आसपास के क्षेत्र में इसकी ख्याति फैलने लगी।
वास्तुकला और संरचना: मेहंदीपुर बालाजी मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से अन्य हनुमान मंदिरों की तरह सरल है। एक मुख्य सभा मंडप और गर्भगृह है जहाँ बाल हनुमान की मूर्ति स्थापित है। बगल में ही प्रेतराज सरकार (यमराज के अनुचर रूप) की तथा पास में भैरव बाबा (काल भैरव) की प्रतिमाएँ हैं।
मंदिर पत्थर और संगमरमर से बना है तथा दीवारों पर हनुमान चालीसा आदि दोहों-अष्टकों के अंकन मिलते हैं। वास्तुकला में कोई विशेष जटिलता नहीं, पर मंदिर के सामने एक बड़ा चौक है जहां प्रेतबाधा से पीड़ित लोगों के लिए अनुष्ठान होते हैं। चारदीवारी से घिरे परिसर में संतों के निवास और भोजनशाला जैसी सुविधाएँ भी हैं। आसपास कोई भव्य कलात्मक निर्माण न होते हुए भी यह मंदिर अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा संरचना के लिए प्रसिद्ध है।
असाधारण शक्तियाँ और रहस्य: मेहंदीपुर बालाजी मंदिर पूरे देश में भूत-प्रेत उतारने के लिए मशहूर है। ऐसा विश्वास है कि जिस व्यक्ति पर किसी बुरी आत्मा या नकारात्मक ऊर्जा का साया हो, उसे यहाँ लाने पर बालाजी की कृपा से वह आत्मा दूर हो जाती है।
प्रेतों की कचहरी इस मंदिर की एक अनूठी बात है – मंदिर में प्रतीकात्मक रूप से यह माना जाता है कि दोपहर में प्रेतराज सरकार के दरबार में उन बुरी आत्माओं की पेशी होती है जिन्होंने किसी मनुष्य को घेरा हुआ हो, और फिर बालाजी महाराज उनका न्याय करते हैं।
कई लोग बताते हैं कि मंदिर के पास पहुँचते ही पीड़ित व्यक्ति के भीतर का प्रेत जोर-जोर से चिल्लाने या उसे दौड़ाने लगता है, मानो मंदिर के प्रभाव से वह बेचैन हो उठा हो। मंदिर परिसर में हर समय आपको अजीब तरह से चिल्लाते, कांपते या विचित्र हरकतें करते लोग दिख जाएंगे – ये वही हैं जिनपर कथित तौर पर किसी भूत-प्रेत का साया है और वे बालाजी के दरबार में आये हैं ताकि मुक्ति मिल सके। यहाँ प्रत्येक दिन सैंकड़ों ऐसे मामले आते हैं।
मेहंदीपुर बालाजी में दो तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं – एक लड्डू (हनुमानजी को) और दूसरा काले चनों का पिंड (सरसों के तेल में बने, जो भैरव बाबा को अर्पित होते हैं)। एक बड़ा रहस्य यह है कि यहाँ का प्रसाद घर नहीं ले जाया जा सकता।
मंदिर के नियम अनुसार जो प्रसाद मिले उसे या तो वहीं ग्रहण करें या मंदिर परिसर में ही छोड़ दें; इसे बाहर ले जाना निषिद्ध है, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से नकारात्मक बाधा आपके साथ घर तक आ सकती है। इसी तरह, यहां आने वाले भक्तों को एक नियम का पालन करना पड़ता है – मंदिर आने के कम-से-कम एक सप्ताह पहले से मांस, मछली , अंडा, शराब, लहसुन-प्याज़ आदि का सेवन वर्जित है।
माना जाता है कि शुद्ध आचरण से ही बालाजी की कृपा प्राप्त होगी।
मंदिर में रोज़ दोपहर 2 बजे कीर्तन होता है, जिसे प्रेतराज सरकार की सभा कहा जाता है। इस दौरान विशेष मंत्रोच्चार और आरती से प्रभावित होकर पीड़ित व्यक्ति जोर-जोर से कांपने लगते हैं, कई बार उल्टी करते हैं या ज़मीन पर गिरकर चीखते हैं – कहते हैं यह प्रेतात्माओं के निकलने की प्रक्रिया होती है। बहुत से भक्तों ने यह चमत्कार अपनी आंखों से देखा है कि पूजा-पाठ के बाद बिल्कुल उग्र व्यवहार कर रहा व्यक्ति शांत हो गया या उसकी आवाज़ बदल गई जैसे उसमें से कोई और शक्ति निकल गई हो।
एक और आश्चर्यजनक तथ्य यह बताया जाता है कि बालाजी की मुख्य मूर्ति की बाईं छाती में एक छोटा छेद है जिससे निरंतर जल की धारा निकलती रहती है। स्थानीय मान्यता में इसे बालाजी का पसीना कहते हैं और इस जल को अमृत मानकर रोगनिवारण हेतु लगाया जाता है।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर की ख्याति का मुख्य कारण है – भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति दिलाना। देश में और कोई मंदिर इस रूप में इतना प्रसिद्ध नहीं जहां प्रतिदिन संगठित रूप से एक्जॉर्सिज्म (भूत-प्रेत उतारने की प्रक्रिया) होता हो। यही वजह है कि दूर-दूर से लोग जिनको लगता है कि उन पर जादू-टोना या ऊपरी हवा का असर है, वे यहाँ आते हैं।
बालाजी (हनुमान) को हिंदू धर्म में संकटमोचक माना जाता है और इस मंदिर ने उस विश्वास को और मजबूत कर दिया है। अपनी इस विशिष्टता के कारण यह स्थान रहस्यमय मंदिरों में गिना जाता है। वर्तमान डिजिटल युग में भी यहां होने वाली घटनाओं को देखकर वैज्ञानिक हैरान रह जाते हैं और इसी कारण कई डॉक्युमेंटरी आदि में इसे दिखाया गया है।
मेहंदीपुर बालाजी में रोज़ाना तीन मुख्य आरती होती हैं – प्रातः, दोपहर और संध्या। मंगलवार और शनिवार (हनुमान जी के वार) को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। इन दिनों विशेष हनुमान चालीसा पाठ एवं भजन-कीर्तन होते हैं।
हर अमावस्या को भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, क्योंकि माना जाता है कि इस दिन नकारात्मक शक्तियाँ ज़्यादा सक्रिय होती हैं और बालाजी की पूजा से वे नष्ट होती हैं। हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) और बजरंग बली के अन्य उत्सव (जैसे जन्मोत्सव) यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं।
मंदिर में कोई सालाना बड़ा मेला तो नहीं लगता, पर नवरात्रि और होली-दिवाली जैसे त्योहारों पर भक्तों की भीड़ कई गुना बढ़ जाती है। अनुष्ठानों में तेल चढ़ाना, लाल कपड़े व नारियल चढ़ाना, और खुलेआम संकटग्रस्त व्यक्ति की झाड़-फूँक करना शामिल है।
चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि मेहंदीपुर बालाजी में जो लोग आते हैं, उनमें से अधिकांश भावनात्मक या मानसिक तनाव से पीड़ित होते हैं। सामूहिक विश्वास और तीव्र धार्मिक माहौल से उनके अवचेतन मन को ऐसा संकेत मिलता है कि वे नाटक-अभिनय (एक्टिंग आउट) करने लगते हैं और फिर धीरे-धीरे अपनी मनोभावना से मुक्त हो जाते हैं।
इसे प्लेसिबो प्रभाव या आस्था का उपचार कहा जा सकता है। पर कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जो चिकित्सा से परे थे – जैसे असामान्य शारीरिक शक्ति का प्रकट होना (एक दुबली महिला को पाँच आदमी भी काबू न कर पाएं) या अलग आवाज़ में बातें करना।
वैज्ञानिक इन घटनाओं को मनोविद्या (परामनोवैज्ञानिक) के क्षेत्र में रखते हैं जिसकी अभी पूरी समझ नहीं है। भारतीय अनुसंधान केंद्रों ने यहाँ के प्रसाद (तेल-चूरा) का भी विश्लेषण किया है, जो सामान्य पाया गया।
कुल मिलाकर, विज्ञान इसे मनोवैज्ञानिक उपचार की तरह देखता है, किंतु श्रद्धालु इसे दैवी शक्ति का चमत्कार मानते हैं।
जो लोग मेहंदीपुर बालाजी से होकर आए हैं, वे प्रायः बताते हैं कि वहाँ का वातावरण बिल्कुल अलग तरह का होता है। एक ओर जहाँ भजन-कीर्तन और “जय हनुमान” की गूँज , तो दूसरी तरफ़ चीखते-चिल्लाते रोगी – यह दृश्य पहले-पहल भय मिश्रित जिज्ञासा उत्पन्न करता है।
कई लोग बताते हैं कि उन्होंने अपनी आँखों से देखा कि एक व्यक्ति जो अपने होश में नहीं था, बालाजी की आरती के बाद अचानक शांत हो गया और सामान्य व्यवहार करने लगा।
किसी के परिजन कहते हैं कि सालों से डरे-सहमे बीमार को यहाँ लाने पर वह कुछ ही दिनों में ठीक हो गया। स्थानीय लोग भी दावे के साथ कहते हैं कि बालाजी सरकार सब प्रेतबाधाएँ काट देते हैं।
मंदिर के आसपास रहने वाले बताते हैं कि आए दिन अजीब घटनाएँ होती हैं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति के थप्पड़ से रोगी गिर पड़ा और फिर चैतन्य होकर बोला कि अब वह ठीक है।
कुछ अनुभव ऐसे भी हैं जहाँ आधुनिक शिक्षित परिवार ने पहले विश्वास नहीं किया, पर जब डॉक्टरों से बात न बनी तो यहाँ आए और चमत्कार देखकर श्रद्धा से नतमस्तक हो गए।
कुल मिलाकर श्रद्धालु इस स्थल को ईश्वरीय चमत्कार का जीवंत प्रमाण मानते हैं। हाँ, कमज़ोर दिल वालों को यहाँ के दृश्य विचलित भी कर सकते हैं, लेकिन अंतत: बालाजी के न्याय से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।