गुजरात राज्य के सौराष्ट्र (काठियावाड़) क्षेत्र के वेरावल नगर के निकट प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
सोमनाथ का शाब्दिक अर्थ है “सोम के स्वामी” अर्थात चंद्रदेव के ईश्वर – पौराणिक कथा अनुसार चंद्रमा ने यहां भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था।
यह मंदिर हिन्दुओं का अति पुनीत तीर्थ है जो अरब सागर के किनारे स्थित है।
ऐतिहासिक रूप से इसे कई बार तोड़ा और बनाया गया, किंतु इसकी महिमा अक्षुण्ण रही।
साथ ही, इस मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य और चमत्कार की कहानियाँ भी प्रचलित हैं, जैसे इसकी शिवलिंग के बारे में कहा जाता था कि यह हवा में मंडराती थी और सोना उत्पन्न कर सकती थी।
सोमनाथ मंदिर के प्राचीन अस्तित्व के प्रमाण लगभग 2000 वर्ष पुराने हैं।
माना जाता है कि इसका मूल निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोम ने भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त कर किया था।
बाद में त्रेता युग में रावण के ससुर राजा विभीषण ने और द्वापर में श्रीकृष्ण के पौत्र बभ्रुवाहन ने इसे पुनर्निर्मित किया।
आधुनिक इतिहास में यह मंदिर बारंबार विदेशी आक्रमणों का शिकार हुआ – महमूद गज़नवी ने 1025 ई. में इसे लूटा और ध्वस्त किया, बाद में इसे प्रभास क्षेत्र के राजा भीमदेव सोलंकी ने 12वीं सदी में फिर बनाया।
1300-1700 ई. के बीच इसे पाँच बार मुस्लिम शासकों द्वारा तोड़ा और हिन्दू शासकों द्वारा पुनः बनाया गया।
अंतिम बार 1706 में मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने इसे गिराया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयत्नों से 1951 में वर्तमान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भव्य रूप में हुआ।
आज जो मंदिर है वह चालुक्य शैली में बना विशाल मंदिर है जिसका 150 फीट ऊँचा प्रमुख शिखर अरब सागर की लहरों को निहारता है।
सोमनाथ मंदिर का पुनर्जन्म अनेक बार हुआ है, इसीलिए इसे “फ़ीनिक्स” पक्षी की तरह पुनर्जीवित होने वाला मंदिर भी कहते हैं।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर पूरी तरह गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित है, जिसे बिना लोहे के प्रयोग के स्तंभों को जोड़कर खड़ा किया गया है।
मंदिर के शिखर पर 10 टन वजनी सोने का कलश और 27 फुट लंबा ध्वजदंड (ध्वज स्तंभ) स्थित है।
भीतर गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है और ऊपर से गोलाकार गुंबद है जिस पर नृत्यरत नटराज की मूर्ति उकेरी गई है।
सभा मंडप में 6 स्तंभों पर सुंदर नक्काशी है।
मंदिर परिसर के दक्षिण में समुद्र तट पर एक स्तंभ (बाण स्तंभ) लगाया गया है जिस पर संस्कृत में लिखा है – “इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में कोई स्थलीय भूखंड नहीं है।”
यह सोमनाथ का बाण स्तंभ मशहूर है, जो सम्पूर्ण दक्षिण महासागर में सोमनाथ की अद्वितीय स्थिति को दर्शाता है।
माना जाता है पुराने मंदिर में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जमीन से कुछ ऊँचा स्थापित था और उसपर छत में चुंबकीय धातुओं का प्रयोग कर इसे मंडराया गया था – हालांकि इस दावे का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, यह लोककथा है।
वास्तुकला में नए मंदिर ने पुराने परिसर की कई परंपराएँ अपनाई हैं, मसलन इसका गर्भगृह पूर्वाभिमुख है ताकि सूर्योदय की पहली किरण शिवलिंग पर पड़े।
सोमनाथ मंदिर और ज्योतिर्लिंग से अनेक अद्भुत बातें जोड़ी जाती रही हैं।
कहा जाता था कि प्राचीन सोमनाथ का शिवलिंग हवा में झूलता था , मतलब जमीन से बिना स्पर्श के अधर में था।
यह संभवतः मंदिर के गुम्बद में लगे शक्तिशाली चुंबकों के कारण था (ऐसा विवरण कुछ विदेशी यात्रियों के कथनों में आता है)।
हालांकि आधुनिक इतिहासकार इसे मिथक मानते हैं, क्योंकि इतने शक्तिशाली चुंबक उस युग में सहज उपलब्ध नहीं थे, पर कल्पना कीजिए कि मध्यकाल में लोग इस शिवलिंग को देखकर कितना अचंभित होते होंगे!
एक और किवदंती है कि इस शिवलिंग में से समय-समय पर सोने के सिक्के या स्वर्णरजत प्राप्त होता था – इसे शिव की कृपा से सोना उत्पन्न करने वाला माना गया।
संभव है मंदिर में राजाओं द्वारा सोना चढ़ाया जाता रहा हो जिसे जनता के बीच दान कर ये कहानियाँ बनीं।
महमूद गज़नी ने जब शिवलिंग तोड़ा, तो कहा जाता है उससे दूध की धारा निकली और पूरी मस्जिद को डुबो दिया जहां वे शिवलिंग के टुकड़े ले गए थे, जिससे डरकर उन्होंने टुकड़ों को दूर फेंक दिया।
(आज भी वे टुकड़े कुछ मस्जिदों की सीढ़ियों में लगे बताए जाते हैं)।
लोगों की आस्था है कि हर बार मंदिर टूटने पर शिवलिंग भूमि में समा जाता था और पुनर्निर्माण पर फिर प्रकट हो जाता था – इसे वे शिव की अमर्त्यता का प्रमाण मानते हैं।
समुद्र तट पर बना होने से सोमनाथ मंदिर पर प्रकृति की शक्तियाँ भी समय-समय पर तांडव करती हैं – जैसे 2004 की सुनामी में समूचे तटीय क्षेत्र में भीषण तबाही हुई, पर मंदिर को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ। लोग इसे भगवान सोमनाथ की कृपा कहते हैं।
अंदर गर्भगृह में कई श्रद्धालुओं को शिवलिंग से प्रकाश-चमक निकलती दिखाई देने की अनुभूतियाँ भी हुई हैं (विशेषकर शिवरात्रि की रात्रि ध्यान में बैठे लोगों ने ऐसा बताया)।
कुछ स्थानीय कहानियों के अनुसार, पूर्णिमा की रात समुद्र की लहरें मंदिर की चट्टान से टकराकर एक विशेष नाद पैदा करती हैं जिसे ध्यान से सुनो तो “ॐ” की ध्वनि सी लगती है।
सोमनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में गिना जाता है और प्रथम ज्योतिर्लिंग होने के नाते इसकी धार्मिक प्रतिष्ठा अत्यंत ऊँची है।
“सौराष्ट्र सोमनाथं” – अर्थात सौराष्ट्र में सोमनाथ – यह वाक्य हर श्रद्धालु की मनोकामना सूची में रहता है कि जीवन में एक बार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करें।
बार-बार आक्रमण झेलने और फिर उठ खड़े होने की इसकी कहानी ने इसे हिन्दू पुनर्जागरण का प्रतीक भी बना दिया है।
स्वतंत्र भारत में सोमनाथ पुनर्निर्माण को आजादी की सांस्कृतिक उपलब्धि के रूप में देखा गया, जिससे यह राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बना।
वर्तमान में मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित भव्य तीर्थ के तौर पर यहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
साथ ही, गुजरात पर्यटन के मुख्य आकर्षणों में से एक होने के कारण देश-विदेश के पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं।
सोमनाथ मंदिर में हर सोमवार (शिव का दिन) विशाल जनसमूह अभिषेक हेतु उमड़ता है।
प्रति वर्ष महाशिवरात्रि पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है – लाखों भक्त रात्रि भर जागकर शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक करते हैं और भजन-कीर्तन चलता है।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर और श्रावण मास के हर सोमवार विशेष शोभायात्रा निकाली जाती है।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा हर शाम भव्य आरती की जाती है जिसे देखने सैकड़ों लोग जुटते हैं – सागर किनारे दीपों की पंक्तियाँ और शंख-घंटों का मधुर समवेत स्वरों में “जय सोमनाथ” गुंजायमान होता है।
एक आधुनिक आकर्षण प्रकाश एवं ध्वनि प्रदर्शन (लाइट एंड साउंड शो) है जो प्रतिदिन सायंकाल मंदिर प्रांगण में होता है – इसमें सोमनाथ का इतिहास और महात्म्य प्रदर्शित किया जाता है।
मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत आदि पर भी पूजन होते हैं।
अभिषेक के लिए श्रंगार गौरी, बिल्वपत्र, कमल, धतूरा इत्यादि फूल-पत्तियों की व्यवस्था रहती है।
सोमनाथ मंदिर के नवीन पुनर्निर्माण में आधुनिक इंजीनियरिंग की सहायता ली गई ताकि यह भूकंप, सुनामी जैसी आपदाओं में अडिग रहे।
इसकी नींव में विस्तृत कंक्रीट का आधार बनाया गया है जबकि ऊपर का ढाँचा पत्थर का है।
बाण स्तंभ का विवरण प्राचीन खगोलविद्या की परिपक्वता दिखाता है – जीपीएस से भी सत्यापित हुआ है कि सोमनाथ से सीधे दक्षिण ध्रुव तक कोई पृथ्वी भाग नहीं है (पहला पड़ाव अंटार्कटिका ही है)।
यह मानकर चलते हैं कि शायद पुराने मंदिर के पुरोहित-ज्योतिषियों को पृथ्वी के गोल होने का और देशांतर-रेखांश का कुछ ज्ञान था।
सोमनाथ के समुद्र तटीय पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने के लिए भी प्रयास हुए हैं – तटबंध बनाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुराने विवरणों में वर्णित चुंबकीय गुणों की सत्यता खोजने का प्रयास किया, किंतु अब कुछ पता नहीं चलता क्योंकि नया शिवलिंग मानवनिर्मित है और गुम्बद में चुंबक नहीं लगाये गए हैं।
(टूटे मंदिर के अवशेष में भी ऐसा कुछ नहीं मिला था)। फिर भी, यह कहना गलत न होगा कि भौतिक विज्ञान और स्थापत्य कला का प्रयोग उस युग में इतनी दक्षता से हुआ कि लोग इसे चमत्कार समझते रहे।
आज भी मंदिर के पुजारी ध्यान कर उस ज्योतिर्लिंग से ऊर्जा प्रवाह अनुभव करते हैं – इसे वैज्ञानिक स्थल की भू-चुंबकीय ऊर्जा का केंद्र होना मानते हैं।
सोमनाथ मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों को एक भव्य आलौकिक अनुभूति होती है – विशाल परिसर, समंदर की गर्जना, शिखर पर लहराता ध्वज – ये सब मन में श्रद्धा का ज्वार जगा देते हैं।
गर्भगृह के सम्मुख पहुँचकर पुरोहितों द्वारा की जा रही जल-अभिषेक क्रिया को देखकर कई श्रद्धालु अपनी सुध-बुध खोकर “हर हर महादेव” का जयघोष करने लगते हैं।
कतार में लगे तीर्थयात्री साझा करते हैं कि उन्हें यहाँ कुछ अजीब शांति और सुरक्षा का अनुभव होता है – मानो इतने विध्वंस के बाद भी मंदिर का खड़ा रहना उन्हें जीवन के संघर्षों से जूझने की प्रेरणा देता है।
रात्रि में मंदिर प्रांगण में बैठकर लहरों की आवाज़ सुनते हुए कुछ साधक ध्यान लगाते हैं – कई कहते हैं कि उन्होंने सचमुच ॐकार का नाद समुद्र से आते सुना।
एक प्रसिद्ध अनुभव अधिकांश आगंतुकों का है: मंदिर के प्रांगण से जब क्षितिज की ओर देखते हैं तो बस नीला समुद्र और आकाश का अंतहीन फैलाव दिखता है, उस वक्त वे उस बाण स्तंभ पर लिखे वाक्य को याद कर प्रकृति के विशालपन और ईश्वर की सर्वव्यापकता का एहसास करते हैं।
साथ ही, कुछ लोग महमूद गज़नवी के आक्रमण की घटना याद कर दुख व्यक्त करते हैं लेकिन तुरंत इस पुनर्निर्माण को देख गर्व महसूस करते हैं – यह भावनात्मक ज्वार उन्हें संयम और सहनशक्ति का पाठ पढ़ाता है।
मंदिर में दर्शन के बाद प्रसाद रूप में मिले हलवे या लड्डू को ग्रहण करते हुए वे मन ही मन कामना करते हैं कि शिव की कृपा सदा देश पर बनी रहे और सोमनाथ की ज्योतिर्लिंग की तरह भारत भी दीर्घायु व अमर बना रहे।
निस्संदेह, सोमनाथ आकर हर भक्त एक मजबूत आस्था और अदम्य आशा लेकर लौटता है।
गुजरात राज्य के सौराष्ट्र (काठियावाड़) क्षेत्र के वेरावल नगर के निकट प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
सोमनाथ का शाब्दिक अर्थ है “सोम के स्वामी” अर्थात चंद्रदेव के ईश्वर – पौराणिक कथा अनुसार चंद्रमा ने यहां भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था।
यह मंदिर हिन्दुओं का अति पुनीत तीर्थ है जो अरब सागर के किनारे स्थित है।
ऐतिहासिक रूप से इसे कई बार तोड़ा और बनाया गया, किंतु इसकी महिमा अक्षुण्ण रही।
साथ ही, इस मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य और चमत्कार की कहानियाँ भी प्रचलित हैं, जैसे इसकी शिवलिंग के बारे में कहा जाता था कि यह हवा में मंडराती थी और सोना उत्पन्न कर सकती थी।
सोमनाथ मंदिर के प्राचीन अस्तित्व के प्रमाण लगभग 2000 वर्ष पुराने हैं।
माना जाता है कि इसका मूल निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोम ने भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त कर किया था।
बाद में त्रेता युग में रावण के ससुर राजा विभीषण ने और द्वापर में श्रीकृष्ण के पौत्र बभ्रुवाहन ने इसे पुनर्निर्मित किया।
आधुनिक इतिहास में यह मंदिर बारंबार विदेशी आक्रमणों का शिकार हुआ – महमूद गज़नवी ने 1025 ई. में इसे लूटा और ध्वस्त किया, बाद में इसे प्रभास क्षेत्र के राजा भीमदेव सोलंकी ने 12वीं सदी में फिर बनाया।
1300-1700 ई. के बीच इसे पाँच बार मुस्लिम शासकों द्वारा तोड़ा और हिन्दू शासकों द्वारा पुनः बनाया गया।
अंतिम बार 1706 में मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने इसे गिराया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयत्नों से 1951 में वर्तमान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भव्य रूप में हुआ।
आज जो मंदिर है वह चालुक्य शैली में बना विशाल मंदिर है जिसका 150 फीट ऊँचा प्रमुख शिखर अरब सागर की लहरों को निहारता है।
सोमनाथ मंदिर का पुनर्जन्म अनेक बार हुआ है, इसीलिए इसे “फ़ीनिक्स” पक्षी की तरह पुनर्जीवित होने वाला मंदिर भी कहते हैं।
वर्तमान सोमनाथ मंदिर पूरी तरह गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित है, जिसे बिना लोहे के प्रयोग के स्तंभों को जोड़कर खड़ा किया गया है।
मंदिर के शिखर पर 10 टन वजनी सोने का कलश और 27 फुट लंबा ध्वजदंड (ध्वज स्तंभ) स्थित है।
भीतर गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है और ऊपर से गोलाकार गुंबद है जिस पर नृत्यरत नटराज की मूर्ति उकेरी गई है।
सभा मंडप में 6 स्तंभों पर सुंदर नक्काशी है।
मंदिर परिसर के दक्षिण में समुद्र तट पर एक स्तंभ (बाण स्तंभ) लगाया गया है जिस पर संस्कृत में लिखा है – “इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में कोई स्थलीय भूखंड नहीं है।”
यह सोमनाथ का बाण स्तंभ मशहूर है, जो सम्पूर्ण दक्षिण महासागर में सोमनाथ की अद्वितीय स्थिति को दर्शाता है।
माना जाता है पुराने मंदिर में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जमीन से कुछ ऊँचा स्थापित था और उसपर छत में चुंबकीय धातुओं का प्रयोग कर इसे मंडराया गया था – हालांकि इस दावे का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है, यह लोककथा है।
वास्तुकला में नए मंदिर ने पुराने परिसर की कई परंपराएँ अपनाई हैं, मसलन इसका गर्भगृह पूर्वाभिमुख है ताकि सूर्योदय की पहली किरण शिवलिंग पर पड़े।
सोमनाथ मंदिर और ज्योतिर्लिंग से अनेक अद्भुत बातें जोड़ी जाती रही हैं।
कहा जाता था कि प्राचीन सोमनाथ का शिवलिंग हवा में झूलता था , मतलब जमीन से बिना स्पर्श के अधर में था।
यह संभवतः मंदिर के गुम्बद में लगे शक्तिशाली चुंबकों के कारण था (ऐसा विवरण कुछ विदेशी यात्रियों के कथनों में आता है)।
हालांकि आधुनिक इतिहासकार इसे मिथक मानते हैं, क्योंकि इतने शक्तिशाली चुंबक उस युग में सहज उपलब्ध नहीं थे, पर कल्पना कीजिए कि मध्यकाल में लोग इस शिवलिंग को देखकर कितना अचंभित होते होंगे!
एक और किवदंती है कि इस शिवलिंग में से समय-समय पर सोने के सिक्के या स्वर्णरजत प्राप्त होता था – इसे शिव की कृपा से सोना उत्पन्न करने वाला माना गया।
संभव है मंदिर में राजाओं द्वारा सोना चढ़ाया जाता रहा हो जिसे जनता के बीच दान कर ये कहानियाँ बनीं।
महमूद गज़नी ने जब शिवलिंग तोड़ा, तो कहा जाता है उससे दूध की धारा निकली और पूरी मस्जिद को डुबो दिया जहां वे शिवलिंग के टुकड़े ले गए थे, जिससे डरकर उन्होंने टुकड़ों को दूर फेंक दिया।
(आज भी वे टुकड़े कुछ मस्जिदों की सीढ़ियों में लगे बताए जाते हैं)।
लोगों की आस्था है कि हर बार मंदिर टूटने पर शिवलिंग भूमि में समा जाता था और पुनर्निर्माण पर फिर प्रकट हो जाता था – इसे वे शिव की अमर्त्यता का प्रमाण मानते हैं।
समुद्र तट पर बना होने से सोमनाथ मंदिर पर प्रकृति की शक्तियाँ भी समय-समय पर तांडव करती हैं – जैसे 2004 की सुनामी में समूचे तटीय क्षेत्र में भीषण तबाही हुई, पर मंदिर को कुछ खास नुकसान नहीं हुआ। लोग इसे भगवान सोमनाथ की कृपा कहते हैं।
अंदर गर्भगृह में कई श्रद्धालुओं को शिवलिंग से प्रकाश-चमक निकलती दिखाई देने की अनुभूतियाँ भी हुई हैं (विशेषकर शिवरात्रि की रात्रि ध्यान में बैठे लोगों ने ऐसा बताया)।
कुछ स्थानीय कहानियों के अनुसार, पूर्णिमा की रात समुद्र की लहरें मंदिर की चट्टान से टकराकर एक विशेष नाद पैदा करती हैं जिसे ध्यान से सुनो तो “ॐ” की ध्वनि सी लगती है।
सोमनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में गिना जाता है और प्रथम ज्योतिर्लिंग होने के नाते इसकी धार्मिक प्रतिष्ठा अत्यंत ऊँची है।
“सौराष्ट्र सोमनाथं” – अर्थात सौराष्ट्र में सोमनाथ – यह वाक्य हर श्रद्धालु की मनोकामना सूची में रहता है कि जीवन में एक बार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करें।
बार-बार आक्रमण झेलने और फिर उठ खड़े होने की इसकी कहानी ने इसे हिन्दू पुनर्जागरण का प्रतीक भी बना दिया है।
स्वतंत्र भारत में सोमनाथ पुनर्निर्माण को आजादी की सांस्कृतिक उपलब्धि के रूप में देखा गया, जिससे यह राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बना।
वर्तमान में मंदिर ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित भव्य तीर्थ के तौर पर यहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
साथ ही, गुजरात पर्यटन के मुख्य आकर्षणों में से एक होने के कारण देश-विदेश के पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं।
सोमनाथ मंदिर में हर सोमवार (शिव का दिन) विशाल जनसमूह अभिषेक हेतु उमड़ता है।
प्रति वर्ष महाशिवरात्रि पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है – लाखों भक्त रात्रि भर जागकर शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक करते हैं और भजन-कीर्तन चलता है।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर और श्रावण मास के हर सोमवार विशेष शोभायात्रा निकाली जाती है।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा हर शाम भव्य आरती की जाती है जिसे देखने सैकड़ों लोग जुटते हैं – सागर किनारे दीपों की पंक्तियाँ और शंख-घंटों का मधुर समवेत स्वरों में “जय सोमनाथ” गुंजायमान होता है।
एक आधुनिक आकर्षण प्रकाश एवं ध्वनि प्रदर्शन (लाइट एंड साउंड शो) है जो प्रतिदिन सायंकाल मंदिर प्रांगण में होता है – इसमें सोमनाथ का इतिहास और महात्म्य प्रदर्शित किया जाता है।
मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत आदि पर भी पूजन होते हैं।
अभिषेक के लिए श्रंगार गौरी, बिल्वपत्र, कमल, धतूरा इत्यादि फूल-पत्तियों की व्यवस्था रहती है।
सोमनाथ मंदिर के नवीन पुनर्निर्माण में आधुनिक इंजीनियरिंग की सहायता ली गई ताकि यह भूकंप, सुनामी जैसी आपदाओं में अडिग रहे।
इसकी नींव में विस्तृत कंक्रीट का आधार बनाया गया है जबकि ऊपर का ढाँचा पत्थर का है।
बाण स्तंभ का विवरण प्राचीन खगोलविद्या की परिपक्वता दिखाता है – जीपीएस से भी सत्यापित हुआ है कि सोमनाथ से सीधे दक्षिण ध्रुव तक कोई पृथ्वी भाग नहीं है (पहला पड़ाव अंटार्कटिका ही है)।
यह मानकर चलते हैं कि शायद पुराने मंदिर के पुरोहित-ज्योतिषियों को पृथ्वी के गोल होने का और देशांतर-रेखांश का कुछ ज्ञान था।
सोमनाथ के समुद्र तटीय पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखने के लिए भी प्रयास हुए हैं – तटबंध बनाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुराने विवरणों में वर्णित चुंबकीय गुणों की सत्यता खोजने का प्रयास किया, किंतु अब कुछ पता नहीं चलता क्योंकि नया शिवलिंग मानवनिर्मित है और गुम्बद में चुंबक नहीं लगाये गए हैं।
(टूटे मंदिर के अवशेष में भी ऐसा कुछ नहीं मिला था)। फिर भी, यह कहना गलत न होगा कि भौतिक विज्ञान और स्थापत्य कला का प्रयोग उस युग में इतनी दक्षता से हुआ कि लोग इसे चमत्कार समझते रहे।
आज भी मंदिर के पुजारी ध्यान कर उस ज्योतिर्लिंग से ऊर्जा प्रवाह अनुभव करते हैं – इसे वैज्ञानिक स्थल की भू-चुंबकीय ऊर्जा का केंद्र होना मानते हैं।
सोमनाथ मंदिर में प्रवेश करते ही भक्तों को एक भव्य आलौकिक अनुभूति होती है – विशाल परिसर, समंदर की गर्जना, शिखर पर लहराता ध्वज – ये सब मन में श्रद्धा का ज्वार जगा देते हैं।
गर्भगृह के सम्मुख पहुँचकर पुरोहितों द्वारा की जा रही जल-अभिषेक क्रिया को देखकर कई श्रद्धालु अपनी सुध-बुध खोकर “हर हर महादेव” का जयघोष करने लगते हैं।
कतार में लगे तीर्थयात्री साझा करते हैं कि उन्हें यहाँ कुछ अजीब शांति और सुरक्षा का अनुभव होता है – मानो इतने विध्वंस के बाद भी मंदिर का खड़ा रहना उन्हें जीवन के संघर्षों से जूझने की प्रेरणा देता है।
रात्रि में मंदिर प्रांगण में बैठकर लहरों की आवाज़ सुनते हुए कुछ साधक ध्यान लगाते हैं – कई कहते हैं कि उन्होंने सचमुच ॐकार का नाद समुद्र से आते सुना।
एक प्रसिद्ध अनुभव अधिकांश आगंतुकों का है: मंदिर के प्रांगण से जब क्षितिज की ओर देखते हैं तो बस नीला समुद्र और आकाश का अंतहीन फैलाव दिखता है, उस वक्त वे उस बाण स्तंभ पर लिखे वाक्य को याद कर प्रकृति के विशालपन और ईश्वर की सर्वव्यापकता का एहसास करते हैं।
साथ ही, कुछ लोग महमूद गज़नवी के आक्रमण की घटना याद कर दुख व्यक्त करते हैं लेकिन तुरंत इस पुनर्निर्माण को देख गर्व महसूस करते हैं – यह भावनात्मक ज्वार उन्हें संयम और सहनशक्ति का पाठ पढ़ाता है।
मंदिर में दर्शन के बाद प्रसाद रूप में मिले हलवे या लड्डू को ग्रहण करते हुए वे मन ही मन कामना करते हैं कि शिव की कृपा सदा देश पर बनी रहे और सोमनाथ की ज्योतिर्लिंग की तरह भारत भी दीर्घायु व अमर बना रहे।
निस्संदेह, सोमनाथ आकर हर भक्त एक मजबूत आस्था और अदम्य आशा लेकर लौटता है।