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लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर: आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है !

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लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर: आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है ! AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित एक चित्र।🔒 चित्र का पूर्ण अधिकार pauranik.org के पास सुरक्षित है।

वीरभद्र (लेपाक्षी) मंदिर, अनंतपुर (आंध्र प्रदेश)

स्थान एवं परिचय

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले के एक छोटे से कस्बे लेपाक्षी में स्थित वीरभद्र मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य विशेषता – हवा में लटकता स्तंभ – के कारण संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था और यहां भगवान शिव के उग्र रूप वीरभद्र की पूजा होती है।

यह विजयनगर शैली में निर्मित मंदिर “हैंगिंग पिलर टेम्पल” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां एक स्तंभ जमीन को नहीं छूता, बल्कि थोड़ा उठा हुआ है। इसके अलावा, मंदिर से जुड़े कई पौराणिक प्रसंग और दुर्लभ चित्रकला इसे रहस्यमयकलात्मक स्थली बनाते हैं।

इतिहास और पौराणिक कथा

वीरभद्र मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल (लगभग 1530 ई.) में दो भाईयों – विरुपन्ना नायक और विरन्ना – ने करवाया था। ये राजा अच्युतदेवराय के दरबार में उच्च पदों पर थे।

मंदिर बनाने की कहानी भी दिलचस्प है – कहते हैं राजा अच्युतराय के खजांची विरुपन्ना ने राजकोष से धन लेकर अपनी श्रद्धा से यह मंदिर बनवाना शुरू किया। जब राजा को पता चला, वे कुपित हुए, तब विरुपन्ना ने स्वयं अपनी आँखें निकाल कर भगवान को अर्पित कर दीं (ताकि राजा को दंड न देना पड़े)।

आज भी मंदिर की पश्चिमी दीवार पर दो लाल धब्बे दिखते हैं जिन्हें विरुपन्ना की आँखों के निशान कहा जाता है। इसीलिए लोग इसे “लेपाक्षी – अंधे का गाँव” भी कहते हैं (तेलुगु में लेपाक्षी = “उठो, पक्षी”, जो एक दूसरी कथा से आया है)।

दरअसल, लेपाक्षी नाम रामायण के एक प्रसंग से जुड़ा है – माना जाता है रावण से युद्ध में घायल जटायू पक्षी यहीं गिरा था, और प्रभु श्रीराम ने उसे “ले पाक्षी” (“उठो, पक्षी”) कहकर पुकारा। तभी से इस गाँव का नाम लेपाक्षी पड़ा।

वास्तुकला और कलात्मकता

वीरभद्र मंदिर विजयनगर साम्राज्य की उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है। मंदिर में 70 स्तंभ हैं, जिनपर सुंदर नक्काशी है और छतों पर रंगीन भित्तिचित्र (फ्रेस्को पेंटिंग्स) बने हैं।

सबसे प्रसिद्ध है एक स्तंभ जो छत को छूता है लेकिन फर्श से कुछ मिलीमीटर उठा हुआ है – ऐसा लगता है वह हवा में झूल रहा है। लोग उस स्तंभ के नीचे से कपड़ा या कागज़ निकालकर इस चमत्कार को परखते हैं।

यह वास्तु-चातुर्य का अनूठा नमूना है कि छत का भार पास के अन्य स्तंभों पर संतुलित किया गया और एक स्तंभ ज़मीन से जानबूझकर नहीं जोड़ा गया।

ब्रिटिश जमाने में एक इंजीनियर हैमिल्टन ने 1902 में इस रहस्य को समझने के लिए इस स्तंभ को हिलाने की कोशिश की, तब 10 दूसरे खंभे भी हलके हिलने लगे – डर से उसने प्रयास रोक दिया।

ASI की जांच में पता चला कि यह कोई गलती नहीं, बल्कि बिल्डरों की प्रतिभा का सबूत है कि बिना नींव छुए खंभा खड़ा है।

मंदिर के अन्य मुख्य आकर्षणों में विशाल नाट्यमंडप (नृत्य मंच), काल भैरव का मंदिर और “अधूरा कल्याण मंडप” (शिव-पार्वती विवाह मंडप) शामिल है।

आध्यात्मिक ऊर्जा और मान्यता

लेपाक्षी से एक मान्यता और जुड़ी है कि यह स्थान सप्तर्षियों की तपोभूमि था, यहाँ सकारात्मक ऊर्जा बेहद प्रबल है। कई आगंतुक ध्यान अवस्था में कुछ अद्भुत अनुभव होने की बात बताते हैं।

हालाँकि यह व्यक्तिगत अनुभूति हो सकती है, पर स्थानीय लोग कहते हैं कि वीरभद्र स्वामी की उपस्थिति से यहाँ दुष्ट शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती, इसलिए यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत सुरक्षित और ऊर्जावान है।

प्रसिद्धि के कारण

वीरभद्र स्वामी (लेपाक्षी) मंदिर अपने हैंगिंग पिलर के कारण भारत के रहस्यमय स्थलों की सूची में हमेशा शामिल किया जाता है।

अनेक पर्यटन पुस्तिकाओं, टीवी शोज़ और लेखों ने इसे प्रचारित किया है, जिससे दूर-दूर के लोग इसे देखने आते हैं। साथ ही, यह मंदिर विजयनगर काल की कला का खजाना है – यहाँ की चित्रकला, शिल्पकला, सब बेजोड़ है।

इतिहास प्रेमियों के लिए भी विरुपन्ना की कथा, जटायू की कथा रोचक हैं। आज आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग भी इसे एक मुख्य आकर्षण के रूप में प्रस्तुत करता है। मंदिर का शांत ग्रामीण परिवेश, आसपास लाल चट्टानों का प्राकृतिक सौंदर्य भी इसे लोकप्रिय बनाता है।

उत्सव और परंपराएँ

वीरभद्र (लेपाक्षी) मंदिर में महाशिवरात्रि सबसे बड़ा त्योहार है। उस दिन तेलंगाना, कर्नाटक तक से श्रद्धालु यहाँ जल चढ़ाने और रातभर भजन करने आते हैं।

कहा जाता है शिवरात्रि पर झूलते स्तंभ के नीचे से निकलने से विशेष पुण्य मिलता है।

इसके अलावा, हर साल फरवरी के आसपास लेपाक्षी उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, और मंदिर को केंद्र बनाकर मेला लगता है।

नवरात्रि, आदि शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा इत्यादि पर भी श्रद्धालु जुटते हैं।

दैनिक पूजा क्रम में सुबह अभिषेक, दोपहर महानाैवेद्य और संध्या आरती शामिल है।

इस मंदिर के पुजारी अभी भी स्थानीय वंश परंपरा से नियुक्त होते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पूजा करते आ रहे हैं।

स्थानीय लोग विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए मंदिर के खुले मंडपों का उपयोग करते हैं – माना जाता है शिव-पार्वती के अधूरे कल्याण मंडप में विवाह शुभ फल देता है।

वैज्ञानिक अध्ययन

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने लेपाक्षी मंदिर पर काफ़ी अध्ययन किया है। झूलते स्तंभ के रहस्य को उन्होंने भलीभांति समझा – दरअसल यह स्तंभ पूरी छत से टिका है और पास के दो मजबूत स्तंभों के सहारे लटकता है।

ASI ने इसे यथावत रखने के लिए आवश्यक उपाय किए हैं और आगंतुकों से इसपर झूलने-लटकने को मना किया जाता है ताकि संरचना को हानि न पहुंचे।

एएसआई के संरक्षकों ने मंदिर के कुछ जीर्ण भागों को पुनर्स्थापित भी किया है, लेकिन झूलते स्तंभ को छेड़ा नहीं क्योंकि वह पूरी संरचना की कुंजी है।

वैज्ञानिकों ने छत के चित्रों को डिजिटल तरीके से संरक्षित करने का कार्य भी हाथ में लिया है, ताकि उनके रंगरूप आने वाली पीढ़ियों को दिखाए जा सकें।

जब ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने स्तंभ हिलाया था, तब मंदिर की संरचना को थोड़ा नुकसान हुआ था (मंदिर के दक्षिण-पूर्व कोने में दरारें आई थीं) – ASI ने उन दरारों को भरकर मज़बूत किया है।

भू-वैज्ञानिक नज़रिए से यह क्षेत्र कठोर ग्रैनाइट का है, जिसने मंदिर को मज़बूत आधार दिया हुआ है। कुल मिलाकर, इस धरोहर को संरक्षित रखने के भरसक प्रयास जारी हैं ताकि इसका रहस्य और गौरव बना रहे।

पर्यटकों/श्रद्धालुओं के अनुभव

लेपाक्षी आने वाले यात्रियों को सबसे रोमांचक क्षण तब लगता है जब गाइड या पुजारी उन्हें झूलते खंभे के नीचे से कपड़ा पार करने को कहते हैं।

लोग हैरत से देखते हैं कि कपड़ा सचमुच आर-पार निकल जाता है और स्तंभ ज़मीन से छुआ नहीं है – इस प्रयोग के बाद मंदिर के प्रति उनकी जिज्ञासा और भक्ति बढ़ जाती है।

वास्तु और इतिहास के छात्र यहाँ आकर घंटों चित्र बनाते हैं, माप लेते हैं और उस जमाने के इंजीनियरों को सलाम करते हैं।

आसपास की शांति और कम भीड़भाड़ भी अधिकांश पर्यटकों को सुकून देती है – वे बैठकर पेंटिंग्स निहारते हैं या पौराणिक कथाओं की मूर्तियों को पहचानते हैं।

एक विदेशी पर्यटक ने अपने ब्लॉग में लिखा, “I slid a paper under a pillar and it went through – It felt like magic carved in stone!” यानी “मैंने स्तंभ के नीचे कागज़ सरकाया और वह पार हो गया – लगा मानो पत्थर में जादू गढ़ दिया गया हो!”

भक्त लोग नंदी के सामने और गर्भगृह में प्रार्थना करते हैं, उन्हें मानो प्राचीन काल में होने का एहसास आता है क्योंकि यहाँ की हर चीज़ इतिहास बोलती है।

कुल मिलाकर, वीरभद्र स्वामी का यह मंदिर एक साथ श्रद्धा, कौतूहल और गर्व पैदा करता है।

लोग अपने परिजनों को भी सलाह देते हैं: “एक बार जीव न में इस अद्भुत लेपाक्षी के खंभे को ज़रूर देखो, यह हमारे पूर्वजों की हुनरमंदी का चमत्कार है।”

सच में, लेपाक्षी मंदिर का रहस्य भरा सौंदर्य हर देखने वाले के हृदय में बस जाता है।


वीरभद्रमंदिरलेपाक्षीरहस्यस्तंभइतिहास
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लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर: आंध्र प्रदेश का रहस्यमयी मंदिर, जहाँ एक स्तंभ हवा में लटका है ! AI द्वारा विशेष रूप से इस लेख के लिए निर्मित चित्र।

वीरभद्र (लेपाक्षी) मंदिर, अनंतपुर (आंध्र प्रदेश)

स्थान एवं परिचय

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले के एक छोटे से कस्बे लेपाक्षी में स्थित वीरभद्र मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य विशेषता – हवा में लटकता स्तंभ – के कारण संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था और यहां भगवान शिव के उग्र रूप वीरभद्र की पूजा होती है।

यह विजयनगर शैली में निर्मित मंदिर “हैंगिंग पिलर टेम्पल” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां एक स्तंभ जमीन को नहीं छूता, बल्कि थोड़ा उठा हुआ है। इसके अलावा, मंदिर से जुड़े कई पौराणिक प्रसंग और दुर्लभ चित्रकला इसे रहस्यमयकलात्मक स्थली बनाते हैं।

इतिहास और पौराणिक कथा

वीरभद्र मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासनकाल (लगभग 1530 ई.) में दो भाईयों – विरुपन्ना नायक और विरन्ना – ने करवाया था। ये राजा अच्युतदेवराय के दरबार में उच्च पदों पर थे।

मंदिर बनाने की कहानी भी दिलचस्प है – कहते हैं राजा अच्युतराय के खजांची विरुपन्ना ने राजकोष से धन लेकर अपनी श्रद्धा से यह मंदिर बनवाना शुरू किया। जब राजा को पता चला, वे कुपित हुए, तब विरुपन्ना ने स्वयं अपनी आँखें निकाल कर भगवान को अर्पित कर दीं (ताकि राजा को दंड न देना पड़े)।

आज भी मंदिर की पश्चिमी दीवार पर दो लाल धब्बे दिखते हैं जिन्हें विरुपन्ना की आँखों के निशान कहा जाता है। इसीलिए लोग इसे “लेपाक्षी – अंधे का गाँव” भी कहते हैं (तेलुगु में लेपाक्षी = “उठो, पक्षी”, जो एक दूसरी कथा से आया है)।

दरअसल, लेपाक्षी नाम रामायण के एक प्रसंग से जुड़ा है – माना जाता है रावण से युद्ध में घायल जटायू पक्षी यहीं गिरा था, और प्रभु श्रीराम ने उसे “ले पाक्षी” (“उठो, पक्षी”) कहकर पुकारा। तभी से इस गाँव का नाम लेपाक्षी पड़ा।

वास्तुकला और कलात्मकता

वीरभद्र मंदिर विजयनगर साम्राज्य की उत्कृष्ट शिल्पकला का नमूना है। मंदिर में 70 स्तंभ हैं, जिनपर सुंदर नक्काशी है और छतों पर रंगीन भित्तिचित्र (फ्रेस्को पेंटिंग्स) बने हैं।

सबसे प्रसिद्ध है एक स्तंभ जो छत को छूता है लेकिन फर्श से कुछ मिलीमीटर उठा हुआ है – ऐसा लगता है वह हवा में झूल रहा है। लोग उस स्तंभ के नीचे से कपड़ा या कागज़ निकालकर इस चमत्कार को परखते हैं।

यह वास्तु-चातुर्य का अनूठा नमूना है कि छत का भार पास के अन्य स्तंभों पर संतुलित किया गया और एक स्तंभ ज़मीन से जानबूझकर नहीं जोड़ा गया।

ब्रिटिश जमाने में एक इंजीनियर हैमिल्टन ने 1902 में इस रहस्य को समझने के लिए इस स्तंभ को हिलाने की कोशिश की, तब 10 दूसरे खंभे भी हलके हिलने लगे – डर से उसने प्रयास रोक दिया।

ASI की जांच में पता चला कि यह कोई गलती नहीं, बल्कि बिल्डरों की प्रतिभा का सबूत है कि बिना नींव छुए खंभा खड़ा है।

मंदिर के अन्य मुख्य आकर्षणों में विशाल नाट्यमंडप (नृत्य मंच), काल भैरव का मंदिर और “अधूरा कल्याण मंडप” (शिव-पार्वती विवाह मंडप) शामिल है।

आध्यात्मिक ऊर्जा और मान्यता

लेपाक्षी से एक मान्यता और जुड़ी है कि यह स्थान सप्तर्षियों की तपोभूमि था, यहाँ सकारात्मक ऊर्जा बेहद प्रबल है। कई आगंतुक ध्यान अवस्था में कुछ अद्भुत अनुभव होने की बात बताते हैं।

हालाँकि यह व्यक्तिगत अनुभूति हो सकती है, पर स्थानीय लोग कहते हैं कि वीरभद्र स्वामी की उपस्थिति से यहाँ दुष्ट शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती, इसलिए यह स्थान आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत सुरक्षित और ऊर्जावान है।

प्रसिद्धि के कारण

वीरभद्र स्वामी (लेपाक्षी) मंदिर अपने हैंगिंग पिलर के कारण भारत के रहस्यमय स्थलों की सूची में हमेशा शामिल किया जाता है।

अनेक पर्यटन पुस्तिकाओं, टीवी शोज़ और लेखों ने इसे प्रचारित किया है, जिससे दूर-दूर के लोग इसे देखने आते हैं। साथ ही, यह मंदिर विजयनगर काल की कला का खजाना है – यहाँ की चित्रकला, शिल्पकला, सब बेजोड़ है।

इतिहास प्रेमियों के लिए भी विरुपन्ना की कथा, जटायू की कथा रोचक हैं। आज आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग भी इसे एक मुख्य आकर्षण के रूप में प्रस्तुत करता है। मंदिर का शांत ग्रामीण परिवेश, आसपास लाल चट्टानों का प्राकृतिक सौंदर्य भी इसे लोकप्रिय बनाता है।

उत्सव और परंपराएँ

वीरभद्र (लेपाक्षी) मंदिर में महाशिवरात्रि सबसे बड़ा त्योहार है। उस दिन तेलंगाना, कर्नाटक तक से श्रद्धालु यहाँ जल चढ़ाने और रातभर भजन करने आते हैं।

कहा जाता है शिवरात्रि पर झूलते स्तंभ के नीचे से निकलने से विशेष पुण्य मिलता है।

इसके अलावा, हर साल फरवरी के आसपास लेपाक्षी उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, और मंदिर को केंद्र बनाकर मेला लगता है।

नवरात्रि, आदि शिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा इत्यादि पर भी श्रद्धालु जुटते हैं।

दैनिक पूजा क्रम में सुबह अभिषेक, दोपहर महानाैवेद्य और संध्या आरती शामिल है।

इस मंदिर के पुजारी अभी भी स्थानीय वंश परंपरा से नियुक्त होते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पूजा करते आ रहे हैं।

स्थानीय लोग विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए मंदिर के खुले मंडपों का उपयोग करते हैं – माना जाता है शिव-पार्वती के अधूरे कल्याण मंडप में विवाह शुभ फल देता है।

वैज्ञानिक अध्ययन

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने लेपाक्षी मंदिर पर काफ़ी अध्ययन किया है। झूलते स्तंभ के रहस्य को उन्होंने भलीभांति समझा – दरअसल यह स्तंभ पूरी छत से टिका है और पास के दो मजबूत स्तंभों के सहारे लटकता है।

ASI ने इसे यथावत रखने के लिए आवश्यक उपाय किए हैं और आगंतुकों से इसपर झूलने-लटकने को मना किया जाता है ताकि संरचना को हानि न पहुंचे।

एएसआई के संरक्षकों ने मंदिर के कुछ जीर्ण भागों को पुनर्स्थापित भी किया है, लेकिन झूलते स्तंभ को छेड़ा नहीं क्योंकि वह पूरी संरचना की कुंजी है।

वैज्ञानिकों ने छत के चित्रों को डिजिटल तरीके से संरक्षित करने का कार्य भी हाथ में लिया है, ताकि उनके रंगरूप आने वाली पीढ़ियों को दिखाए जा सकें।

जब ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने स्तंभ हिलाया था, तब मंदिर की संरचना को थोड़ा नुकसान हुआ था (मंदिर के दक्षिण-पूर्व कोने में दरारें आई थीं) – ASI ने उन दरारों को भरकर मज़बूत किया है।

भू-वैज्ञानिक नज़रिए से यह क्षेत्र कठोर ग्रैनाइट का है, जिसने मंदिर को मज़बूत आधार दिया हुआ है। कुल मिलाकर, इस धरोहर को संरक्षित रखने के भरसक प्रयास जारी हैं ताकि इसका रहस्य और गौरव बना रहे।

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लेपाक्षी आने वाले यात्रियों को सबसे रोमांचक क्षण तब लगता है जब गाइड या पुजारी उन्हें झूलते खंभे के नीचे से कपड़ा पार करने को कहते हैं।

लोग हैरत से देखते हैं कि कपड़ा सचमुच आर-पार निकल जाता है और स्तंभ ज़मीन से छुआ नहीं है – इस प्रयोग के बाद मंदिर के प्रति उनकी जिज्ञासा और भक्ति बढ़ जाती है।

वास्तु और इतिहास के छात्र यहाँ आकर घंटों चित्र बनाते हैं, माप लेते हैं और उस जमाने के इंजीनियरों को सलाम करते हैं।

आसपास की शांति और कम भीड़भाड़ भी अधिकांश पर्यटकों को सुकून देती है – वे बैठकर पेंटिंग्स निहारते हैं या पौराणिक कथाओं की मूर्तियों को पहचानते हैं।

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कुल मिलाकर, वीरभद्र स्वामी का यह मंदिर एक साथ श्रद्धा, कौतूहल और गर्व पैदा करता है।

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