स्कंदमाता का अर्थ है “स्कंद (कार्तिकेय) की माता”। स्कंद भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं, जिन्हें कार्तिकेय, सुब्रमण्य या कुमार के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता, अर्थात माता पार्वती का वह रूप जिसमें उन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद को गोद में धारण किया हुआ है। नवरात्रि के पाँचवें दिन इस देवी की उपासना की जाती है। शास्त्रों में स्कंदमाता को कमलासन पर विराजित अति सुन्दर देवी के रूप में दर्शाया गया है – ये चार भुजाधारी हैं, इनमें दो हाथों में कमल पुष्प हैं, एक हाथ में उन्होंने अपने बालक स्कंद को पकड़ा हुआ है और एक हाथ अभयमुद्रा में उठा है। इनका वाहन सिंह है। माँ का मुखमंडल तेजस्वी है और वे वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं।
स्कंदमाता का यह रूप माँ पार्वती को उनके पुत्र प्राप्ति के संदर्भ में दर्शाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं को तारकासुर नाम के महाबलशाली असुर से मुक्ति दिलाने के लिए केवल शिवपुत्र ही सक्षम हो सकता था – तारकासुर को वरदान था कि उसका वध शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकेगा। तब शिव-पार्वती के विवाह के बाद, देवी ने अपने पुत्र को जन्म नहीं बल्कि विशेष परिस्थिति में प्राप्त किया। कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म सामान्य तरीके से न होकर भगवान शिव के तेज से हुआ जिसे अग्निदेव और गंगाजी के माध्यम से छह कृत्तिका नक्षत्रों (स्त्रियों) ने धारण किया और बाद में पार्वती ने उन छह बच्चों को एकाकार करके स्कंद को गोद में लिया। कार्तिकेय जीHence, पार्वती को स्कंदमाता कहा गया – क्योंकि उन्होंने शिशु स्कंद को अपनी गोद में पाल-पोसकर बड़ा किया। स्कंद ने बड़े होकर देवताओं की सेना का नेतृत्व किया और राक्षस तारकासुर का वध किया। इस प्रकार स्कंदमाता के अवतार का उद्देश्य महान देवसेनापति को जन्म देना और उसका पालन-पोषण करना था, ताकि अत्याचार का अंत हो सके। माँ पार्वती ने मातृत्व के इस रूप में अपने पुत्र को युद्ध के योग्य बना कर संसार की रक्षा में अप्रत्यक्ष योगदान दिया। उनकी कहानी से यह संदेश मिलता है कि माता का प्रेम और मार्गदर्शन संतान को संसार के सबसे बड़े संग्राम के लिए भी तैयार कर सकता है।
स्कंदमाता को माँ स्वरूप में शक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को माँ का वात्सल्य एवं सुरक्षा का आश्वासन मिलता है। माना जाता है कि पांचवें नवरात्रि पर साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है, जहाँ स्कंदमाता की कृपा से उसे अलौकिक शांति और सुख का अनुभव होता है। देवी स्कंदमाता अपने पुत्र को गोद में लिए हुए होती हैं, इससे उन्होंने अपने एक हाथ को सदैव खाली रखा है जो भक्तों को अभय और वर प्रदान करने हेतु तत्पर रहता है। उनकी उपासना से संतानों को सुख-समृद्धि मिलती है और संकट दूर होते हैं। जो स्त्रियाँ संतान प्राप्ति की कामना रखती हैं, वे भी स्कंदमाता की आराधना करती हैं। माँ का यह रूप करुणामयी है – ये अपने भक्तों को उसी तरह प्यार करती हैं जैसे एक माता अपने शिशु को करती है। स्कंदमाता को सिंहवाहिनी देवी भी कहते हैं क्योंकि वे सिंह पर सवार रहती हैं। इनकी सवारी और शस्त्र कम दिखाई देते हैं क्योंकि एक हाथ बालक को थामे है, जो दर्शाता है कि एक मां अपने शौर्य को भी संतति के लिए नरम बना देती है। फिर भी, संकट आने पर यही माता अपने सिंह पर आरूढ़ होकर दुष्टों का अंत भी करने का सामर्थ्य रखती है। भक्तों का विश्वास है कि स्कंदमाता की कृपा से उन्हें परम शांति के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी संभव होती है, क्योंकि इस रूप में देवी परमकल्याणकारी मानी गई हैं। वे अपने भक्तों के लिए सदा द्वारपाल की तरह खड़ी रहती हैं – जिस तरह माँ बालक को जरा सी आहट पर भी थाम लेती है, वैसे ही देवी संकट आने से पहले ही अपने भक्त को संभाल लेती हैं।
स्कंदमाता के प्रसिद्ध मंदिर भारत में कुछ स्थानों पर देखे जा सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में खखनाल गाँव के निकट इनका एक गुफा मंदिर है, जहाँ प्राचीन काल से देवी की आराधना की जाती है। मान्यता है कि यह वही स्थल है जहाँ पार्वती ने कार्तिकेय को उत्पन्न होने के बाद कुछ समय तक छिपाकर पाला था। स्कंदमाता के अन्य मंदिर वाराणसी में और दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में भी बताए जाते हैं। स्कंदमाता को लेकर लोकविश्वास है कि माता पार्वती आज भी कैलाश पर्वत पर अपने दोनों पुत्रों – स्कंद (कार्तिकेय) और श्रीगणेश – के साथ विराजमान हैं और देवी गौरा के इस रूप की पूजा वहाँ देवगण करते हैं। जो भक्त उनकी शरण जाता है, उसकी गोद वे खुशियों से भर देती हैं। ऐसा भी माना जाता है कि नवरात्रि के पांचवें दिन साक्षात स्कंदमाता धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने दर्शन मात्र से भक्तों के समस्त रोग-दोष दूर करती हैं। स्कंदमाता की कृपा दृष्टि जिस परिवार पर होती है वहाँ वंश की वृद्धि और उन्नति होती है। वर्तमान में भी जिन प्रदेशों में कार्तिकेय या श्याम कुमार की पूजा की परंपरा है, वहाँ पार्वती को स्कंदमाता रूप में अवश्य स्मरण किया जाता है। कुल मिलाकर, स्कंदमाता अपने पुत्र के माध्यम से संसार की रक्षा करने वाली और अपनी ममता से संसार का पालन करने वाली जगदम्बा हैं।
स्कंदमाता का अर्थ है “स्कंद (कार्तिकेय) की माता”। स्कंद भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं, जिन्हें कार्तिकेय, सुब्रमण्य या कुमार के नाम से भी जाना जाता है। स्कंदमाता, अर्थात माता पार्वती का वह रूप जिसमें उन्होंने अपने पुत्र भगवान स्कंद को गोद में धारण किया हुआ है। नवरात्रि के पाँचवें दिन इस देवी की उपासना की जाती है। शास्त्रों में स्कंदमाता को कमलासन पर विराजित अति सुन्दर देवी के रूप में दर्शाया गया है – ये चार भुजाधारी हैं, इनमें दो हाथों में कमल पुष्प हैं, एक हाथ में उन्होंने अपने बालक स्कंद को पकड़ा हुआ है और एक हाथ अभयमुद्रा में उठा है। इनका वाहन सिंह है। माँ का मुखमंडल तेजस्वी है और वे वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं।
स्कंदमाता का यह रूप माँ पार्वती को उनके पुत्र प्राप्ति के संदर्भ में दर्शाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं को तारकासुर नाम के महाबलशाली असुर से मुक्ति दिलाने के लिए केवल शिवपुत्र ही सक्षम हो सकता था – तारकासुर को वरदान था कि उसका वध शिव के पुत्र द्वारा ही हो सकेगा। तब शिव-पार्वती के विवाह के बाद, देवी ने अपने पुत्र को जन्म नहीं बल्कि विशेष परिस्थिति में प्राप्त किया। कार्तिकेय (स्कंद) का जन्म सामान्य तरीके से न होकर भगवान शिव के तेज से हुआ जिसे अग्निदेव और गंगाजी के माध्यम से छह कृत्तिका नक्षत्रों (स्त्रियों) ने धारण किया और बाद में पार्वती ने उन छह बच्चों को एकाकार करके स्कंद को गोद में लिया। कार्तिकेय जीHence, पार्वती को स्कंदमाता कहा गया – क्योंकि उन्होंने शिशु स्कंद को अपनी गोद में पाल-पोसकर बड़ा किया। स्कंद ने बड़े होकर देवताओं की सेना का नेतृत्व किया और राक्षस तारकासुर का वध किया। इस प्रकार स्कंदमाता के अवतार का उद्देश्य महान देवसेनापति को जन्म देना और उसका पालन-पोषण करना था, ताकि अत्याचार का अंत हो सके। माँ पार्वती ने मातृत्व के इस रूप में अपने पुत्र को युद्ध के योग्य बना कर संसार की रक्षा में अप्रत्यक्ष योगदान दिया। उनकी कहानी से यह संदेश मिलता है कि माता का प्रेम और मार्गदर्शन संतान को संसार के सबसे बड़े संग्राम के लिए भी तैयार कर सकता है।
स्कंदमाता को माँ स्वरूप में शक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को माँ का वात्सल्य एवं सुरक्षा का आश्वासन मिलता है। माना जाता है कि पांचवें नवरात्रि पर साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है, जहाँ स्कंदमाता की कृपा से उसे अलौकिक शांति और सुख का अनुभव होता है। देवी स्कंदमाता अपने पुत्र को गोद में लिए हुए होती हैं, इससे उन्होंने अपने एक हाथ को सदैव खाली रखा है जो भक्तों को अभय और वर प्रदान करने हेतु तत्पर रहता है। उनकी उपासना से संतानों को सुख-समृद्धि मिलती है और संकट दूर होते हैं। जो स्त्रियाँ संतान प्राप्ति की कामना रखती हैं, वे भी स्कंदमाता की आराधना करती हैं। माँ का यह रूप करुणामयी है – ये अपने भक्तों को उसी तरह प्यार करती हैं जैसे एक माता अपने शिशु को करती है। स्कंदमाता को सिंहवाहिनी देवी भी कहते हैं क्योंकि वे सिंह पर सवार रहती हैं। इनकी सवारी और शस्त्र कम दिखाई देते हैं क्योंकि एक हाथ बालक को थामे है, जो दर्शाता है कि एक मां अपने शौर्य को भी संतति के लिए नरम बना देती है। फिर भी, संकट आने पर यही माता अपने सिंह पर आरूढ़ होकर दुष्टों का अंत भी करने का सामर्थ्य रखती है। भक्तों का विश्वास है कि स्कंदमाता की कृपा से उन्हें परम शांति के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी संभव होती है, क्योंकि इस रूप में देवी परमकल्याणकारी मानी गई हैं। वे अपने भक्तों के लिए सदा द्वारपाल की तरह खड़ी रहती हैं – जिस तरह माँ बालक को जरा सी आहट पर भी थाम लेती है, वैसे ही देवी संकट आने से पहले ही अपने भक्त को संभाल लेती हैं।
स्कंदमाता के प्रसिद्ध मंदिर भारत में कुछ स्थानों पर देखे जा सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में खखनाल गाँव के निकट इनका एक गुफा मंदिर है, जहाँ प्राचीन काल से देवी की आराधना की जाती है। मान्यता है कि यह वही स्थल है जहाँ पार्वती ने कार्तिकेय को उत्पन्न होने के बाद कुछ समय तक छिपाकर पाला था। स्कंदमाता के अन्य मंदिर वाराणसी में और दिल्ली के पटपड़गंज इलाके में भी बताए जाते हैं। स्कंदमाता को लेकर लोकविश्वास है कि माता पार्वती आज भी कैलाश पर्वत पर अपने दोनों पुत्रों – स्कंद (कार्तिकेय) और श्रीगणेश – के साथ विराजमान हैं और देवी गौरा के इस रूप की पूजा वहाँ देवगण करते हैं। जो भक्त उनकी शरण जाता है, उसकी गोद वे खुशियों से भर देती हैं। ऐसा भी माना जाता है कि नवरात्रि के पांचवें दिन साक्षात स्कंदमाता धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने दर्शन मात्र से भक्तों के समस्त रोग-दोष दूर करती हैं। स्कंदमाता की कृपा दृष्टि जिस परिवार पर होती है वहाँ वंश की वृद्धि और उन्नति होती है। वर्तमान में भी जिन प्रदेशों में कार्तिकेय या श्याम कुमार की पूजा की परंपरा है, वहाँ पार्वती को स्कंदमाता रूप में अवश्य स्मरण किया जाता है। कुल मिलाकर, स्कंदमाता अपने पुत्र के माध्यम से संसार की रक्षा करने वाली और अपनी ममता से संसार का पालन करने वाली जगदम्बा हैं।